NIOS Class 10 Social Science Chapter 18. स्थानीय शासन तथा क्षेत्रीय प्रशासन

NIOS Class 10 Social Science Chapter 18. स्थानीय शासन तथा क्षेत्रीय प्रशासन

NIOS Class 10 Social Science Chapter 18 स्थानीय शासन तथा क्षेत्रीय प्रशासन – NIOS कक्षा 10वीं के विद्यार्थियों के लिए जो अपनी क्लास में सबसे अच्छे अंक पाना चाहता है उसके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10th सामाजिक विज्ञान अध्याय 18. (स्थानीय शासन तथा क्षेत्रीय प्रशासन) के लिए समाधान दिया गया है. इस NIOSClass 10 Social Science Chapter 18. Local Governments And Field Administration की मदद से विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है. इसे आप अच्छे से पढ़े यह आपकी परीक्षा के लिए फायदेमंद होगा .हमारी वेबसाइट पर NIOS Class 10 Social Science के सभी चेप्टर के सलुसन दिए गए है .

NIOS Class 10 Social Science Chapter 18 Solution – स्थानीय शासन तथा क्षेत्रीय प्रशासन

प्रश्न 1. स्थानीय निकाय जरूरी क्यों है? अपना विचार व्यक्त करें।
उत्तर- नगरपालिकाएँ और नगर निगम हमारे शहरों और कस्बों के स्थानीय निकाय हैं। शहरों में अधिक लोग रहते हैं और अधिक सुघटित होते हैं। आधारभूत नागरिक सुविधाएँ, जैसे जल आपूर्ति, पानी की निकासी, कूड़े का निपटान, जन स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, सड़कों का निर्माण और रखरखाव तथा सफाई की व्यवस्था, नगरपालिका प्रशासन द्वारा संभाली जानी चाहिए। हमारे जीवन में स्थानीय शासन का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह दैनिक जीवन में काम करता है।

शहरों में पीने के लिए स्वच्छ पानी और कूड़े से निजात नहीं मिलेगी अगर ये काम नहीं किए जाएंगे। यदि किसी शहर में पीने के पानी की आपूर्ति एक दिन भी बंद हो जाती है, तो शहर में हड़कंप मच जाएगा। इसी तरह, सफाई कर्मियों की हड़ताल से शहरों में कूड़े का ढेर लगता है, जिससे जीवन मुश्किल हो जाता है। हम शहरी स्थानीय शासन सेवा के बिना एक दिन भी नहीं बिता सकते।

प्रश्न 2. पंचायती राज संस्थाओं की रचना और कार्यों की विवेचना करें तथा उनकी भूमिकाओं का परीक्षण करें।
उत्तर – पंचायती राज के त्रिस्तरीय ढाँचे का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-
1. ग्राम स्तर पर पंचायत- पंचायती राज का यह आधार अथवा ऋणमूल स्तर होता है। पंचायत में किसी एक गाँव अथवा गाँवों के समूह के लिए (क) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का प्रतीक ग्राम सभा, (ख) ग्राम पंचायत और (ग) न्याय पंचायत आदि आते हैं।

(क) ग्राम सभा – 73वें संशोधन की एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि यह ग्राम सभा को एक स्पष्ट लोकतंत्र की संस्था मानता है। ग्रामसभा देश में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की एकमात्र संस्था है क्योंकि गाँवों के समूह में रहने वाले सभी वयस्क लोग इसके सदस्य हैं। ग्रामसभा वर्ष में दो बार होती है। ग्रामसभाओं में लोगों की आम बैठक होती है, इसलिए वे पंचायतों की वार्षिक आय-व्यय का ब्यौरा सुनते हैं, लेखा निरीक्षण करते हैं या प्रशासनिक रिपोर्टों को सुनते हैं और नई विकास परियोजनाओं को स्वीकार करते हैं। यह गाँव के गरीब लोगों की पहचान करने में सहायता करता है, ताकि उन्हें पैसे देने की व्यवस्था की जा सके।

(ख) ग्राम पंचायत – देश में ग्राम स्तरीय पंचायती राज है। अधिकांश राज्यों में यह पंचायत के नाम से जाना जाता है। गाँव की जनसंख्या ग्राम पंचायत की सदस्य संख्या का निर्धारण करती है। इसलिए प्रत्येक गाँव की पंचायत में अलग-अलग सदस्य होते हैं। चुनाव एकल सदस्य क्षेत्र पर करवाए जाते हैं। कुछ अनुसूचित जातियों और जनजातियों की महिलाएं एक-तिहाई सीटों का अधिकारी हैं।

(ग) न्याय पंचायत- ये न्यायिक पंचायतें पुरानी ग्रामीण पंचायतों की तरह हैं, जो स्थानीय विवादों को हल करते थे। इसका उद्देश्य शीघ्र और सस्ता न्याय प्रदान करना है। न्याय पंचायत के अधिकार क्षेत्रों में भिन्नता है। पाँच ग्राम पंचायतों से अधिक होने पर न्याय पंचायत बनाई जाती है। राज्य कानून इनका कार्यकाल निर्धारित करता है, जो तीन से पाँच वर्ष होता है। न्याय पंचायत आम तौर पर आपराधिक और छोटे दीवानी मामलों की सुनवाई करता है।

2. पंचायत समिति – पंचायती राज का दूसरा अथवा मध्यम स्तर का पंचायत समिति है, जो ग्राम पंचायत या जिला परिषद के बीच कड़ी का काम करता है। साथ ही, समिति क्षेत्र की जनसंख्या पंचायत समिति की सदस्य संख्या निर्धारित करती है। कुछ सदस्य सीधे पंचायत समिति में चुने जाते हैं। ग्राम पंचायत समिति का पदेन सदस्य ग्राम पंचायत अध्यक्ष होता है। लेकिन सभी पंचायतों के अध्यक्ष समिति के सदस्य नहीं होते हैं। सदस्यों की संख्या प्रत्येक राज्य में अलग-अलग होती है और हर वर्ष चक्रण विधि से बदलती है। इसका अर्थ है कि केवल कुछ ग्राम पंचायतों के अध्यक्ष इसके सदस्य होते हैं। कुछ पंचायतों में विधायकों, विधानपरिषद सदस्यों और सांसदों को भी समिति का सदस्य नामांकित किया जाता है जो समिति क्षेत्र से संबंधित हैं। प्रायः पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्यों में से अध्यक्ष चुना जाता है।

3. जिला परिषद – जिला स्तर पर पंचायती राज का सर्वोच्च स्तर जिला परिषद है। विभिन्न राज्यों में इस संस्था के कुछ सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से होता है, क्योंकि यह जनसंख्या पर निर्भर है। पंचायत समितियों के अध्यक्ष जिला परिषद में पदेन सदस्य होते हैं। जिले से संबंधित सांसद, विधानसभा सदस्य और विधानपरिषद सदस्य भी जिला परिषद के सदस्य होते हैं। अध्यक्ष या प्रेसीडेंट, जिला परिषद का चेयरपर्सन इसके निर्वाचित सदस्यों में से चुना जाता है।

ग्राम पंचायत का कार्यक्षेत्र निम्नलिखित है:
(i) सामाजिक कार्य -सफाई, पानी की आपूर्ति, प्रकाश व्यवस्था, जल निकासी ।
(ii) विकास कार्य – सड़कें बनवाना व उनकी देखरेख, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन ।
(iii) प्रशासनिक कार्य – जन्म – मृत्यु का पंजीकरण, कर निर्धारण, बाजार प्रबंध
(iv) कल्याणकारी कार्य-शिक्षा, रोजगार, कल्याणकारी योजनाएं व उनका क्रियान्वयन ।

ग्राम पंचायत के तीन प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं :
1. अपने क्षेत्र की विकास योजनाओं का समन्वय व पर्यवेक्षण करना ।
2. अपने क्षेत्र के लिए वार्षिक योजना और बजट तैयार करना ।
3. ग्राम पंचायतों द्वारा किए गए विकासात्मक कार्यों पर निगरानी रखना ।
पंचायत समिति के कार्य निम्नलिखित हैं :
अपने क्षेत्र की विकास योजनाओं का समन्वय और पर्यवेक्षण करना ।
अपने क्षेत्र के लिए वार्षिक योजना और बजट तैयार करना ।
अपने क्षेत्र में विकास योजनाओं तथा अन्य कार्यक्रमों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना ।
ग्राम पंचायतों द्वारा किए गए विकासात्मक कार्यों पर निगरानी रखना ।
कृषि और सिंचाई सुविधाओं के विकास पर निगरानी रखना ।

जिला परिषद् के कार्य – जिला परिषद् के मुख्य कार्यों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है :
(क) सलाहकार कार्य – यह जिला के विकासशील कार्यों के सम्बन्ध में सरकार को सलाह देती है तथा जिला परिषद् की आबंटित योजनाओं के क्रियान्वयन में सलाहकार की भूमिका निभाती है ।

(ख) वित्तय कार्य – परिषद् पंचायत समिति के बजट का पर्यवेक्षण और अनुमोदन करती है तथा केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा जिला परिषद् को आबंटित धन को पंचायत समितियों में विभाजित करती है ।

(ग) विकास कार्य – जिले के विकास कार्यों और क्रियान्वित विकास योजनाओं तथा प्रखण्ड के अन्य क्रियाकलापों की निगरानी करना ।

(घ) सामाजिक कार्य – यह भी पंचायतों और पंचायत समितियों की तरह काम करता है, जैसे सड़क और पुल बनाना और उद्यान और पीने के पानी की व्यवस्था करना। सामाजिक कार्यों में स्थानीय कार्यक्रमों की देखरेख करना भी शामिल है।

(ङ) कल्याणकारी कार्य – बाजार स्थापित करना, मेलों तथा पर्व की देखभाल, पुस्तकालयों और स्वास्थ्य केन्द्र, जच्चा-बच्चा केन्द्र, बाल- विकास, परिवार नियोजन केन्द्र स्थापित करना, महामारी और आकस्मिक विपदा के समय राहत कार्य की व्यवस्था करना तथा पाठशालाओं और विद्यालयों की स्थापना करना ।

प्रश्न 3. शहरी स्थानीय निकाय की रचना व कार्य की संक्षिप्त व्याख्या करें।
उत्तर- 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के बाद भारत में शहरी स्वशासन को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है – नगर निगम, नगरपालिकाएँ और नगर पंचायतें ।

(1) नगर निगम – विशेष कानून, जिसे राज्य विधानमंडल पारित करता है, के तहत नगर निगम बनाया जाता है। इसकी स्थापना संघ शासित प्रदेशों में संसद द्वारा पारित कानून से की जाती है। ऐसे कानून राज्य में किसी निगम या दो निगमों के लिए बनाए जा सकते हैं। ज्यादातर स्थानीय निकायों की तुलना में नगर निगम अधिक स्वतंत्र है। इसका चुनाव हर पांच वर्ष में होता है और इसके सदस्यों में से मेयर या महापौर भी चुना जाता है।

(2) नगर परिषद – प्रत्येक राज्य ने देश में नगरपालिकाओं को बनाने के लिए कानून बनाए हैं, जो उनके काम, ढाँचा, संसाधन और नागरिक प्रशासन में उनकी भूमिका बताते हैं। 50,000 से अधिक लोगों वाले शहरी क्षेत्रों का शासन नगर परिषद नामक निर्वाचित नगर निकाय करता है। 3 लाख की किसी भी नगरपालिका क्षेत्र को क्षेत्र के शासन में सही सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए वार्ड समिति बनानी होती है।

( 3 ) नगर समिति – इसके अंतर्गत क्षेत्र आते हैं, जो संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं, 50,000 से कम लोगों के हैं और नगरपालिका या नगर निगम द्वारा नियंत्रित हैं। यह अक्सर शहर की सबसे छोटी इकाई है। अंततः, शहरों में सरकार चलाने के लिए इसे तीन अलग-अलग निगमों में बाँटा गया है, जो अपने-अपने स्तर पर शासन चलाते हैं। किसी निगम या नगर निकाय के संगठनों को अक्सर दो भागों में विभाजित करके शहरी स्थानीय निकायों के मुख्य कार्यों को पूरा किया जाता है-
(क) विचारक और
(ख) कार्यकारी।

निगम परिषद, नगर परिषद या परिषद में लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि हैं। यह भाग एक वियाधिका की तरह काम करता है, यानी विचारक है। इससे नगर नीतियों और उनके कार्यान्वयन पर चर्चा और बहस होती है। यह शहरी स्थानीय निकाय के बजट को पारित करता है, टैक्स से संबंधित संसाधन बनाने वाली सेवाओं की दरें निर्धारित करता है और नगर प्रशासन के अन्य क्षेत्रों पर व्यापक नीतियाँ बनाता है। यह नगरपालिका के प्रशासन पर नज़र रखने के साथ ही कार्यपालिका को अपने काम के लिए उत्तरदायी मानता है। निगमों में निगमायुक्त कार्यकारी अध्यक्ष होता है, साथ ही अन्य अधिकारी (जैसे इंजीनियर्स, वित्तीय अधिकारी, स्वास्थ्य अधिकारी आदि) अध्यक्ष के नियंत्रण और निरीक्षण में काम करते हैं। दिल्ली या मुम्बई नगर निगमों जैसे बड़े निगमों के आयुक्त अक्सर आईएएस अधिकारी हैं। नगरपालिका संस्थाओं में कार्यकारी अधिकारी की स्थिति भी इसी प्रकार की होती है, जो पूरे प्रशासन को देखता है।

नगरपालिका कार्यों को आम तौर पर दो भागों में बांटा जाता है: अनिवार्य और ऐच्छिक। अनिवार्य कार्यों को संपादन करना आवश्यक है। पानी की आपूर्ति, गली में प्रकाश व्यवस्था, पानी की निकासी और सीवर, कूड़ा हटाना, संक्रामक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण आवश्यक कार्य हैं। अनिवार्य कार्यों में शामिल हैं जन टीकाकरण, प्रसूति एवं बाल कल्याण केंद्रों, अस्पतालों और डिसपेंसरियों की देखभाल, खाद्य पदार्थों में मिलावट की जाँच, गन्दी बस्तियों को हटाना, बिजली की आपूर्ति, श्मशान और कब्रिस्तान की देखभाल, नगर योजना आदि।

प्रश्न 4. पंचायती राज व्यवस्था और शहरी स्थानीय निकायों की बनावट व भूमिकाओं में 73वें एवं 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा क्या प्रमुख बदलाव लाया गया है?
उत्तर- 73वें संशोधन के द्वारा पंचायती राज प्रणाली के स्वशासन की संवैधानिक स्थिति को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है । इस संशोधन की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. देश में पंचायती राज प्रणाली में ग्राम, प्रखंड और जिला स्तर पर तीन स्तरीय व्यवस्था होगी ।
2. सभी पंचायतों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित रहेंगे ।
3. अनुसूचित जातियों और जनजातियों की महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित होगा। महिलाओं का एक-तिहाई स्थान होगा।
4. पंचायतों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव इस संशोधन की प्रमुख विशेषता थी ।
5. प्रत्येक स्तर पर पंचायतों का पदावधि पाँच वर्ष होगा। यदि पंचायत समय से पहले भंग हो जाती है, तो वे छह महीने के भीतर फिर से चुने जाएंगे।

केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त आयोगों और कमेटियों की सिफारिशों और सुझावों के परिणामस्वरूप संविधान (74वाँ संशोधन) एक्ट 1992 में लागू हुआ। पहले, राज्य सरकारों को स्थानीय निकायों को अपनी मर्जी से चलाने का अधिकार था। इस संशोधन ने शहरी स्वशासन संस्थाओं की स्थापना, सशक्तीकरण और प्रणाली के लिए कानून बनाया। इस कानून के मुख्य प्रावधानों को दो प्रमुख श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
1. अनिवार्य तथा
2. ऐच्छिक । अनिवार्य

प्रावधानों में से दो प्रावधान, जो सभी राज्यों के लिए आवश्यक हैं, वे निम्नलिखित हैं-
1. छोटे और बहुत बड़े शहरी क्षेत्रों में क्रमशः नगर पंचायतों, नगर परिषदों और नगर निकायों का गठन करना ।
2. शहरी स्थानीय निकायों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें
3. महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कराना । आरक्षित करना ।
4. पंचायती राज संस्थाओं में चुनाव करवाने हेतु गठित (73वाँ संशोधन) राज्य चुनाव आयोग शहरी स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के भी चुनाव करवाएगा।
5. स्थानीय शहरी स्वशासन निकायों के वित्तीय मामलों को भी राज्य वित्त आयोग, पंचायती राज संस्थाओं को देखने के लिए बनाया गया है, देखेगा।
6. शहरी स्थानीय स्वशासन निकायों का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है और उनके भंग होने पर छह महीने के भीतर नए चुनाव करवाने होते हैं।

74वें संशोधन अब सभी राज्यों में नगर निगमों और नगर स्वशासन की संस्थाओं को निष्पक्ष रूप से नियंत्रित करता है। लेकिन स्थानीय स्वशासन अभी भी राज्य सूची में है, जो ध्यान देने योग्य है। इस प्रकार, राज्यों को 73वें और 74वें संशोधन ने शासन के संबंध में एक ढाँचा दिया है।

प्रश्न 5. क्या आप समझते हैं कि 73वां एवं 74वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम 1992 ने सच्चे अर्थों में महिलाओं को सशक्त किया है । पुष्टि कीजिए ।
उत्तर- 1993 में, 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम ने भारतीय महिलाओं को सशक्ता प्रदान करते हुए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कुल सीटों में एक तिहाई आरक्षण प्रदान किया। ढाई लाख निकायों के माध्यम से सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करते हुए, ग्रामीण क्षेत्रों में एक लाख महिलाएं स्वयं निर्णय लेने और निर्माताओं के रूप में उभर रही हैं। इनमें से 75 हजार महिलाओं को प्रत्येक क्षेत्र में अध्यक्ष, ब्लाक और जिला स्तर पर प्रवेश दिया जा रहा है। इसके अलावा, राज्य सरकारों, जैसे राजस्थान सरकार, ने सेवा नियमों को बदलकर कर्मचारियों को अपनी पत्नियों को यातना देने के दोषी ठहराया है। उन्हें सजा के रूप में बर्खास्त करना, वेतनवृद्धि को रोकना, अपराध के अनुसार सजा देना, आदि तय किए गए हैं। स्कूलों में बच्चे के दाखिले पर माता का नाम और पिता का नाम भी लिखा जाता है। सशक्त कानूनों ने महिलाओं को उनके अधिकारों से बचाया है।

स्थानीय शासन तथा क्षेत्रीय प्रशासन के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. नगरपालिका के पांच कार्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर – नगरपालिका के कार्य-
(i) जल आपूर्ति ।
(ii) स्वास्थ्य, सफाई, कूड़ा-करकट का प्रबंध ।
(iii) बाहरी सुविधाएं जैसे पार्क, खेल मैदान, सड़कें और पुल बनाना ।
(iv) भूमि के इस्तेमाल, भवनों और अन्य निर्माण कार्य के लिए नियम बनाना ।
(iv) नागरिक सुविधाएं जैसे गलियों में प्रकाश-पार्किंग, बस स्टॉप तथा जनसुविधाओं की व्यवस्था करना ।

प्रश्न 2. खण्ड विकास अधिकारी के मुख्य कार्यों को लिखिए |
उत्तर-खण्ड विकास अधिकारी (बी०डी०ओ०) के दो प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
1. विकासात्मक प्रबंध,
2. पंचायत समिति के प्रबंध
1. विकासात्मक प्रबंध – विकासात्मक प्रबंध के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्यों का उल्लेख किया गया है-
(i) बी०डी०ओ० अपने ब्लॉक में विभिन्न परियोजनाओं और कार्यक्रमों से विकासात्मक प्रबंध के लिए संपर्क बनाए रखता है।
(ii) कार्यों का निरीक्षण कर रिपोर्ट बनाकर उच्च अधिकारियों को भेजता है
(iii) विशेष लक्ष्य निर्धारित परियोजनाओं (जैसे अनुसूचित जाति, जनजाति या आदिवासी विकास या लाभभोगी परियोजनाओं) का कार्यान्वयन और निरीक्षण बीडीओ के कार्यकलाप से होता है।
(iv) BDO विभिन्न महत्वपूर्ण योजनाओं, जैसे सिंचाई और सड़क निर्माण, को समय पर पूरा करने के लिए उनके बीच समन्वय करता है।

2. पंचायत समिति के प्रबंध – पंचायत समिति के प्रबंध के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य हैं :
(i) समिति का सचिव होने के नाते, BDO प्रखण्ड स्तर के राजनीतिक नेताओं (प्रखण्ड अध्यक्ष सहित) से संपर्क रखता है।
(ii) BDO बजट आदि बनाने के लिए अतिरिक्त काम भी करता है।
(iii) पंचायत समिति के अधिकारी के रूप में, इसका मुख्य कर्तव्य समिति स्तर के विकासात्मक कार्यों की निगरानी करना और उनका सही रिकॉर्ड रखना है।

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