NIOS Class 10 Psychology Chapter 17 प्रसन्नता और सुख

प्रश्न 3. आवश्यकताओं व इच्छाओं की सन्तुष्टि कैसे करेंगे?
उत्तर- ध्यान रहे कि आत्म-स्वीकृति असंतोष दूर करने में मदद करती है। वस्तुतः कल्याण के लिए व्यक्ति की इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति अनिवार्य है। व्यक्ति की आवश्यकताओं को भोजन, आवास और कपड़े की कमी बताती है। इच्छा एक व्यक्ति को किसी वस्तु से खुशी मिलने की उम्मीद बताती है। इच्छा का प्रकटीकरण आवश्यकता की वस्तु के स्वरूप, मात्रा और वैशिष्ट्य से विशेष लगाव है। कई बार इच्छा और आवश्यकता एक-दूसरे का पर्याय हो जाते हैं, लेकिन नवीनता के प्रति आकर्षित इच्छा को पूरा करने में असंतोष या अवसाद होता है।

यदि मूलभूत जैविक आवश्यकताओं को छोड़ दें, तो हम जानते हैं कि हमारी आवश्यकताएं और इच्छाएं स्वभाव से ही एक के पूरा होने पर दूसरे के उत्पन्न होने की प्रवृत्ति दिखाती हैं। ये अनवरत इच्छाएं, एक के बाद दूसरी और फिर तीसरी, पूर्ण होने पर ही अस्थायी सुख या सन्तुष्टि देती हैं। यहाँ प्रश्न उठता है कि अगर इच्छा पूरी होने से मिलने वाले सुख अस्थायी होता है, तो इच्छा को उत्पन्न होने ही क्यों दिया जाए? नहीं, इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इच्छाएं पैदा ही न होने दें; इसके बजाय, यह समझना चाहिए कि आवश्यकता पूर्ति से प्राप्त सुख अस्थायी होता है, और इस तरह, बार-बार वास्तविकता का अनुभव होने पर ही दृष्टिकोण या इच्छा भाव में बदलाव आता है। इसके बाद वस्तु की इच्छा कम होने लगती है। ऐसी स्थिति में थोड़ा-बहुत असंतोष भी जागता है, तो वह बुरा नहीं होता।

जबकि इच्छाएं एक विशिष्ट वस्तु के प्रति हमारी आस्था का परिणाम हैं, तो आवश्यकता एक अनिवार्य वस्तु की कमी को दिखाती है। स्थिति विशेष में उन कार्यों की पहचान करना, जो हमें सुख व प्रसन्नता देते हैं, जीवन में सन्तोष या असन्तोष के कारण को जानने का एक तरीका भी हो सकता है। जैसे किसी को अभावग्रस्त की सहायता करना, एक अच्छी विचारप्रधान किताब पढ़ना या किसी सुंदर रमणीय स्थान या समुद्र के किनारे की सैर करना, लेकिन ऐसा न होने पर भी आपको निराश नहीं करना चाहिए। असल में, व्यक्ति की अभिरुचियां और शौक इसी तरह के कार्य हैं, जो उसे व्यस्त रखते हैं और उसे अपने शौक में व्यस्त सन्तुष्टि का अनुभव कराते हैं, दूसरी निरर्थक आसक्तियों की चिंता से दूर रखते हैं।

कुछ स्थितियां वास्तव में अनुपस्थिति में असन्तोषकारी भले ही हों, प्राप्ति पर भी खास प्रसन्नता नहीं देती। व्यक्ति की भौतिक इच्छाएं इसी कोटि की हैं। हम इन्हें असन्तोषजनक कह सकते हैं। लेकिन यह निश्चित है कि सन्तुष्टि कारकों में व्यक्ति को दीर्घकालीन प्रसन्नता व कल्याण की अनुभूति कराने की क्षमता सर्वाधिक होती है और ऐसी प्रसन्नता व कल्याण की अनुभूति के स्रोत आन्तरिक होते हैं और आत्मनिरीक्षण के द्वारा व्यक्ति इन्हें भली प्रकार समझ सकता है।

यह सच है कि समाज से व्यक्ति है, तो “व्यक्ति से समाज है” भी सही है, इसलिए कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि समाज के बिना कोई व्यक्ति नहीं है या समाज के बिना कोई व्यक्ति नहीं है। हम सब अपने समाज से पैदा होते हैं। प्रत्येक समाज या संस्कृति में नियम और उम्मीदें हैं, जो सभी लोगों की भूमिका और व्यवहार के नियम बनाते हैं। ऐसी उम्मीदों के अनुरूप हम जीवन के प्रारम्भ से आगे बढ़ते हैं। हम इन मानदण्डों को धीरे-धीरे अपनाते हैं। ये हमारी आत्म-ध्वनि बनाते हैं।

हम अपने आप को दोषी महसूस करते हैं अगर हम सामाजिक नियमों के खिलाफ कुछ करते हैं, भले ही कोई दूसरा इसके बारे में नहीं जानता। वास्तविक जीवन में इनमें बहुत भिन्नता हो सकती है, लेकिन कुछ संस्कृतियों में सामान्य मार्गदर्शी सिद्धान्त लगभग समान हैं।

इसलिए जरूरी है कि यदि व्यक्ति अप्रसन्न है, तो वह आत्म- निरीक्षण करे। ऐसा करके उसे अप्रसन्नता के कारणों का पता चल जाएगा। इसी प्रकार प्रसन्नता की दशा में भी आत्मनिरीक्षण करना जरूरी है, ताकि प्रसन्नता के कारण का पता चल सके। इस तरह प्रसन्नता व अप्रसन्नता की स्थिति में सन्तोष व असंतोष के कारणों की जानकारी पाई जा सकती है। संतोषकारी कारकों को पाने के लिए व्यक्ति में अधिकाधिक प्रयास ही कल्याण की सामान्य अनुभूति में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 4. तनाव और समस्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- समस्थिति जैविक है। यह शरीर के भीतरी वातावरण में मौजूद प्रत्येक कोशिका को दिखाता है। शरीर के कई स्तरों, जैसे ऑक्सीजन, ग्लुकोज, जल, रक्तदाब और शरीर का तापमान, कोशिकाओं को सुचारु रूप से काम करने के लिए सक्रिय रहना चाहिए। यदि किसी कारण से पूर्वोक्त स्तरों में सीमा से अधिक विचलन होता है, तो पर्याप्त पोषण के अभाव में कोशिकाएं मर जाती हैं, जो अंततः मृत्यु तक हो सकती है। इसलिए कहा जा सकता है कि शरीर के आंतरिक स्तर में सुंदरता और स्वस्थता का संकेत है।

तनाव- किसी भी प्रकार का विचलन (परिवर्तन) शरीर को परेशान करता है यदि शरीर के भीतरी स्तरों में समस्थिति में एक निर्धारित सीमा से अधिक विचलन होता है। शरीर इस असंतुलन को ठीक करने (सन्तुलन बनाए रखने) के लिए तुरंत कई क्रियाएं शुरू कर देता है। शरीर को सन्तुलित स्थिति में ही काम करना संभव है। ज़ाहिर है, मस्तिष्क भी अच्छी तरह से काम कर सकता है जब माहौल शांत, स्थिर और स्थिर है।
“टेंशन” एक आम शब्द है जिसे हम अक्सर सुनते हैं। हिन्दी में आंगल शब्द से ही यह शब्द तनाव बन गया है। छोटे से छोटे बच्चे होने से मुझे बहुत टेंशन है। यह टेंशन या तनाव अक्सर मन की खराब स्थिति से होता है।

वस्तुतः यह शब्द जीवविज्ञान से आता है, जहां यह शरीर की स्थिर अवस्था में किसी भी तरह का विचलन को बताता है। मानव संवेदनशील है, इसलिए तनाव के दो स्तर हो सकते हैं: शारीरिक तनाव, जो शरीर की स्थिति में आए व्यवधान से उत्पन्न होता है; और मनोवैज्ञानिक तनाव, जो मनोवैज्ञानिक व्यवहार से उत्पन्न होता है।W.neera मानसिक तनाव: मानव मस्तिष्क के आंतरिक सन्तुलन में आने वाले संघर्ष को मनोवैज्ञानिक तनाव भी कहते हैं।

उपर्युक्त किसी भी परिस्थिति में समायोजन, सन्तुलन या सामना करने वाले व्यवहार की आवश्यकता तनाव को जन्म देगी। तनाव के लिए कई परिस्थितियां जिम्मेदार हैं: विभिन्न स्तरों पर तनाव को जन्म देने वाले कारक में आयु, युवावस्था, लिंग (स्त्री या पुरुष), मानसिक संसाधन (स्थितिगत अनुकूलता या प्रतिकूलता) और सामाजिक-सांस्कृतिक कारक शामिल हैं। इसमें बालक के तनाव के कारण कुछ अलग होंगे, युवा लोगों के तनाव के कारण कुछ अलग होंगे, और वृद्ध लोगों के तनाव के कारण कुछ अलग होंगे।

ये भी अलग-अलग हैं। तनाव भी अलग होता है। कुछ कम तनाव हैं। इन्हें भी हल करना उतना ही आसान है। कुछ गंभीर प्रकृति के तनाव हैं। इसमें हमें यह भी पता होना चाहिए कि कौन-से कारक हमें इन तनावों का सामना करने की क्षमता देते हैं।

आन्तरिक तनाव के लिएबाहरी तनाव के लिए
(i) अच्छा स्वास्थ्य

(ii) व्यक्ति की सकारात्मक छवि

(iii) आत्मविश्वास

(iv) संवेगात्मक सुरक्षा

(v) सोच में लचीलापन

(vi) अध्यवसाय

(vii) सहनशीलता

(i) परिवार तथा मित्रों के साथ अच्छा संबंध

(ii) आर्थिक व भौतिक संसाधन

(iii) रीति-रिवाज, धार्मिक प्रथाएं

(iv) ईश्वर में आस्था

(v) विश्वास

(vi) धैर्य, सहिष्णुता

तनावों के समाधान में सहयोगी संसाधन – ये कुछ प्रमुख सहयोगी संसाधन है। यह सूची और भी लम्बी हो सकती है। व्यक्ति स्वयं अपने तनाव के कारण और उसके समाधन में सहयोगी संसाध नों की पहचान करके तनाव से मुक्त हो सकता है।

प्रश्न 5. व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण में परस्पर निर्भरता पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर- हम जानते हैं कि लोग सामाजिक हैं। वह समाज में पैदा होता है और समाज में ही जीवित रहकर पंचतत्त्व में विलीन होता है। साथ ही, मनुष्य से ही समाज और समाज से ही मनुष्य है। यानी मनुष्य और समाज एक दूसरे से संबंधित हैं। मानव के किसी भी कार्य की सफलता समाज पर निर्भर करती है, और समाज के किसी भी कार्य की सफलता मनुष्यों पर निर्भर करती है। विद्यालय एक उदाहरण है। विद्यालय एक विद्यालय नहीं होता अगर उसमें विद्यार्थी, शिक्षक और विद्यार्थी नहीं होते। हमारे दैनिक जीवन में बहुत से “कार्य” हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।

हमारे लिए खाद्य सामग्री कोई बनाता है, कोई तैयार करता है। साथ ही आवास, जल, विद्युत, सड़क और परिवहन के साधन भी उपलब्ध हैं। कल्पना करें कि क्या जीवन की कल्पना संभव है यदि हमें ये सामान दूसरों से नहीं मिलते, जैसे किसान, बुनकर, राज-मजदूर, बिजली, जल-विभाग उद्योगशालाओं से? जीवन निश्चित रूप से शोचनीय और दर्दनाक होगा। मानव समाज की परस्पर निर्भरता की सीमा इस पूरी क्रिया-व्यापार से स्पष्ट होती है। जिन लोगों ने हमारा जीवन इतना आरामदायक और सुविधापूर्ण बनाया है, यह सोचने से स्पष्ट होता है कि हमारे दिल में हर चीज, चाहे वस्तु हो या मुद्रा, विनिमय के माध्यम से उपलब्ध है, के प्रति गर्व है।

यह निर्भरता का आभास बाल्यकाल में ही समझ के विकास के साथ आने लगता है। माता-पिता बच्चे को समय-समय पर पालन-पोषण, शिक्षा, मनोरंजन के साधन, आवश्यक व सार्थक ज्ञान और उपदेश देते हैं। शिक्षक हमें शिक्षा देते हैं। ज्ञान प्राप्त करके, हम किसी सरकारी या गैर-सरकारी संस्थान में सेवा शर्तों का पालन करते हुए आत्मनिर्भर होते हैं। गृहस्थ जीवन में प्रवेश करके जीवन-साथी के साथ मिलकर जीवन का सुख भोगते हुए स्वयं एक परिवार के रूप में अपने कर्तव्यों को पूरा करने में सक्षम हो जाते हैं।

विकास के दौरान व्यक्ति की सोच भी बदलती है। यह सब सामूहिक समाजिक योगदान को दिखाता है। असल में, परस्पर निर्भरता की समझ, हमारे अधिकारों और धन्यवाद की भावना, हमारे आसपास एक सुरक्षित वातावरण बना सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, समाज व्यक्तियों से बनता है और भावुक शब्द है। अत: अगर कोई कहता है कि अकेले उसके व्यवहार या आचरण से समाज को बदल नहीं सकता, तो वह गलत है। क्योंकि इसके लिए दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास, लक्ष्य की ईमानदारी और सही मूल्यों का पालन करने का साहस करना चाहिए। यह समाज में मूल्यों का अनुकरण और उनमें दृढ़ विश्वास का एक उदाहरण मात्र है। यह ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ एक व्यक्ति आगे चलता है, बाकी सब पीछे चलते हैं।

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, महात्मा गांधी, शहीद भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, मौलाना आजाद, सुभाष चन्द्र बोस और जवाहर लाल नेहरू जैसे समाज सुधारकों व नेताओं ने अहिंसा, त्याग और बलिदान को अपना जीवन लक्ष्य बनाया। इस परिस्थिति में अपने आप को देखना और समझना चाहिए। आत्म-बोध और आत्म-प्रत्यक्षीकरण अपनी रुझान और क्षमता को खोजने और उन्हें पूरी तरह से विकसित करने की प्रक्रिया है। यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी क्षमताओं और अभिरुचियों को विकसित करने के लिए एक जीवन शैली चुने। आत्मज्ञान का मतलब है कि हर व्यक्ति में एक विशिष्ट क्षमता है, जो हमें खोजना और ईमानदारी और कठिन परिश्रम से पूरी तरह विकसित करना है।

प्रश्न 6. अभ्यास के लिए विश्रांति के प्रमुख चरणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- विश्रांति के लिए अभ्यास के लिए सामान्यतया बौद्ध ज्ञान में तीन चरणों की चर्चा की गई है, यहां उन्हीं का विवरण प्रस्तुत है:
चरण 1:
शांत बैठिए और अपने शरीर को शिथिल कीजिए।
पूर्णतः स्थिर और शांत हो जाइए।
अपनी आंखें बंद कीजिए।
सहजता का अनुभव कीजिए।
अपने मन को शांत होने दीजिए।
जब आपका मन ठीक प्रकार से शांत हो जाए, तो यह कामना कीजिए ‘मैं सुखी रहूं’, ‘मैं स्वस्थ रहूं’, ‘मैं कष्टों से मुक्त रहूं’, जैसे ही आप मानसिक रूप से बार-बार कामना करेंगे, आप में स्वयं के प्रति प्रेम बढ़ेगा। कल्पना कीजिए कि आप स्वस्थ हो रहे हैं।

चरण 2:
अब आप अपने माता-पिता तथा किसी प्रिय व्यक्ति के बारे में सोचिए तथा और उसी प्रकार कामना कीजिए ‘वे सुखी रहें’, ‘वे स्वस्थ रहें’, ‘वे कष्टों से मुक्त रहें। जैसे ही आप मानसिक रूप से बार-बार यह कामना करेंगे, आप में उनके प्रति प्रेम बढ़ेगा। कल्पना कीजिए कि आपका प्रेम उन्हें स्वस्थ कर रहा है और वे स्वस्थ तथा सुखी हो रहे हैं।

चरण 3:
आप अपनी सहानुभूति को पृथ्वी के सभी प्राणियों के लिए बढ़ाएं और चाहें कि सभी प्राणी सुखी रहें, स्वस्थ रहें, कष्टों से मुक्त रहें, किसी से घृणा न करें, मैत्री और शांति से रहें। आप मानसिक रूप से इसे करना चाहिए। ऐसी ही कल्पना कीजिए और अनुभव कीजिए कि आपकी सहानुभूति दुनिया में शांति ला रही है और सभी लोगों की ओर फैल रही है।

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