NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 15 – नीलकंठ

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 15 – नीलकंठ

NCERT Solutions Class 7 Hindi (Vasant) Chapter 15 नीलकंठ – कक्षा 7 के विद्यार्थियों के लिए जो अपनी क्लास में अच्छे अंक पाना चाहता है उसके लिए यहां पर एनसीईआरटी कक्षा 7th हिंदी अध्याय 15. (नीलकंठ) के लिए समाधान दिया गया है. इस NCERT Solutions For Class 7th Hindi Chapter 15. Neelkanth की मदद से विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी अच्छे से कर सकता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है. इससे की छात्रों को तैयारी करने में किसी भी मुश्किल का सामना न करना पड़े।इस पोस्ट से आप NCERT BOOK के अध्याय 15 नीलकंठ (महादेवी वर्मा) का पूरा हल प्राप्त कर सकते है।

TextbookNCERT
ClassClass 7
SubjectHindi
ChapterChapter 15
Chapter Nameनीलकंठ

अभ्यास के सभी प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1. मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए?
उत्तर

मोर और मोरनी के नाम उनके रूप, रंग और स्वभाव के आधार पर रखे गए थे। मोर की गर्दन लंबी नीली और हरी आभा वाली थी। वह अपनी गर्दन का उपयोग हर काम के लिए बड़े कोमल ढंग से करता था। इसलिए लेखिका ने उसका नाम नीलकंठ रख दिया था। मोरनी देखने में मोर जैसी सुंदर नहीं थी, किन्तु मोर की छाया बनकर सदा उसके साथ रहती थी। इसलिए उसका नाम राधा रखा गया था।

प्रश्न 2. जाली के बड़े घर में पहुंचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ?
उत्तर-

जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का स्वागत विभिन्न पक्षियों व जानवरों ने अलग-अलग ढंग से किया था। मोर के बच्चों को देखकर लक्का कबूतर उनके चारों ओर घूमकर गुटरगूं-गुटरगूं करने लगा था। बड़े खरगोश बड़ी गंभीरता से उनका निरीक्षण करने लगे थे तथा छोटे खरगोशों ने उनके आस-पास उछल-कूद करके उनका स्वागत किया था। तोता एक आँख बंद करके उनकी जाँच-पड़ताल करने लगा था। अतः स्पष्ट है कि मोर के बच्चों का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से किया गया था। उनके वहाँ आने पर चिड़ियाघर में हलचल-सी मच गई थी।

प्रश्न 3. लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?
उत्तर

– नीलकंठ एक सुंदर एवं समझदार पक्षी था। उसकी हर चेष्टा अपने आप में आकर्षक थी, किन्तु लेखिका को उसकी निम्नलिखित चेष्टाएँ बहुत भाती थीं
(1) उसका दाना खाने का ढंग।
(2) गर्दन ऊँची करके बाहर से आने वाले मेहमानों का सम्मानपूर्वक स्वागत करना।
(3) गर्दन टेढ़ी करके शब्द सुनना।
(4) मेघों को देखकर पंखों को गोलाकार करके नृत्य करना।
(5) लेखिका के सामने पंख फैलाकर खड़ा होना।

प्रश्न 4. ‘इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा’-वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर

‘इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा’ यह वाक्य नीलकंठ और राधा के प्रेमपूर्वक जीवन में कुब्जा नामक मोरमी के प्रवेश की घटना की ओर संकेत करता है। महादेवी जी एक घायल मोरनी पर दया करके उसे अपने घर ले आयी थी। उसका इलाज किया और वह ठीक हो गई। उसका नाम कुब्जा रख दिया गया। वह दूसरों के साथ मिलकर नहीं रहना चाहती थी। वह नीलकंठ और राधा को साथ-साथ नहीं देख सकती थी। वह राधा पर प्रहार करती रहती थी तथा स्वयं नीलकंठ के साथ रहना चाहती थी। उसने राधा के अंडे भी तोड़ दिए थे। उसके इस व्यवहार से नीलकंठ और राधा के प्रेम की दुनिया उजड़ गई थी। नीलकंठ निराश रहने लगा था और निराशा और राधा का वियोग ही उसकी मृत्यु का कारण बना।

प्रश्न 5. वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था?
उत्तर

नीलकंठ को फूलों से लदे एवं हरे भरे वृक्ष बहुत अच्छे लगते थे। इसलिए वह वसंत ऋतु के आते ही आम के वृक्ष की सुनहली मंजरियों व लाल-लाल पत्तों वाले अशोक वृक्षों पर बैठना पसंद करता था। उसके लिए वसंत ऋतु में जालीघर में बंद . रहना असहनीय हो जाता था।

प्रश्न 6. जालीघर में रहने वाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कब्जा के साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?
उत्तर

जालीघर में रहने वाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, क्योंकि उनके स्वभाव में भिन्नता होने के बावजूद एक-दूसरे के साथ मिलकर रहने की प्रवृत्ति थी। लेकिन कुब्जा उन सब से अलग प्रवृत्ति की थी। उसका स्वभाव ईर्ष्यालु था। वह बिना कारण सबसे लड़ती-झगड़ती रहती थी। विशेषकर वह राधा से बहुत ही ईर्ष्या करती थी। उसके इसी स्वभाव के कारण उसकी अन्य जीवों से मित्रता नहीं हो पाई थी।

प्रश्न 7. नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया? इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

एक दिन खरगोश के बच्चे को साँप ने पकड़ लिया था। साँप ने खरगोश के बच्चे का आधा शरीर अपने मुख में दबा लिया था। उसकी चीख सुनकर नीलकंठ वहाँ तुरंत पहुँच गया और उसने अपने पंजों और तेज़ चोंच से साँप के फन पर प्रहार किया। जब वह अधमरा हो गया तो उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और खरगोश का बच्चा साँप के मुख से निकल गया। इस प्रकार नीलकंठ ने अपनी बहादुरी से साँप को मारकर खरगोश के बच्चे को बचा लिया था। इस घटना के आधार पर नीलकंठ के जीवन की निम्नलिखित विशेषताओं का बोध होता है

1. चौकन्ना – नीलकंठ बहुत चौकन्ना पक्षी था। उसने खरगोश के बच्चे की चीं-चीं की आवाज़ सुनते ही समझ लिया था कि खरगोश का बच्चा खतरे में है। वह तुरंत घटनास्थल पर पहुँच गया था।

2. वीर – नीलकंठ निश्चय ही वीर पक्षी था। उसने अकेले ही साँप जैसे भयंकर प्राणी को मारकर खरगोश के बच्चे को बचा लिया था। उसका यह कार्य ही उसकी वीरता को दर्शाता है।

3. कुशल संरक्षक-नीलकंठ सभी पक्षियों व जानवरों की रक्षा का काम करता था। किन्तु खरगोश के बच्चे को मौत के मुँह से निकालकर उसने यह सिद्ध कर दिया कि वह एक कुशल संरक्षक है।

4. बुद्धिमान-नीलकंठ एक बुद्धिमान पक्षी था। जब उसने यह देखा कि साँप खरगोश के बच्चे को निगल रहा है, तो उसने बुद्धिमानी से काम लिया और साँप के फन पर प्रहार किया जिससे साँप अधमरा हो गया और खरगोश के बच्चे के प्राण बच गए। इससे सिद्ध होता है कि नीलकंठ बुद्धिमान पक्षी था।

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