विधिशास्त्र क्या होता है Jurisprudence In Hindi
आज हम आपको एक बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी इस पोस्ट में बताएंगे हमने आपको पहले भी हमारी वेबसाइट के ऊपर बहुत अच्छी अच्छी अच्छी जानकारी दी है और इससे पहले हमने आपको छंद अलंकार और जैव विविधता के बारे में बताया है तो आज हम आपको इस पोस्ट में विधिशास्त्र के बारे में बताएंगे विधिशास्त्र क्या होता है. और विधिशास्त्र अध्ययन क्या होता है. विधिशास्त्र का अध्ययन करना इसलिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कई एग्जाम्स में आता है.जैसे नेट के एग्जाम में भी आता है. और कई प्रतियोगिताओं में भी विधिशास्त्र में से प्रश्न पूछे जाते हैं. इन सभी चीजों के बारे में हम आपको इस पोस्ट में बताएंगे तो आप इस पोस्ट को अच्छी तरह से और ध्यानपूर्वक पढ़िए यह जानकारी आपके लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगी तो देखिए.
विधिशास्त्र क्या होता है
Jurisprudence In Hindi? विधिशास्त्र को समझने से पहले हमें विधि के बारे में जानकारी लेना आवश्यक है. विधि का अध्ययन करना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. विधि एक ऐसा माध्यम है. जिसके द्वारा राज्य अपने नागरिकों के व्यवहार और आचरण गतिविधि पर नियंत्रण रखता है. किसी भी आदमी के आचरण पर नियंत्रण रखना विधि के द्वारा और उस विधि के नियमों द्वारा किया जाता है. पुराने समय में यह नियंत्रण सरकार के हाथ में नहीं होता था. बल्कि उस समय में राजा के हाथ में होता था. और राजाओं के हाथ में यह पावर होने के कारण और उन राजाओं की बुद्धि या दिमाग पर निर्भर करता था. यानी कि किस अपराध के लिए कौन सी सजा या कौन सा दंड देना चाहिए. यह उस राजा के हाथ में होता था और वही राजा उसको निर्धारित करता था. और अपनी प्रजा के ऊपर और अपने राज्य में लागू करता था.
और राजा कैसे अपनी प्रजा के आचरणों को नियंत्रण में रखता है या नियंत्रण करता है. यह खुद राजा के ऊपर निर्भर होता था. कई राजा दंड प्रधान होते थे. क्योंकि कई बार राजाओं के द्वारा इतना भयानक दंड दिया जाता था. लोग अपराधों को करने से डरते थे. और कई राजा ऐसे भी थे जिन्होंने अपने शासनकाल को बहुत ही अच्छे तरीके से चलाया जैसे कि माना जाता है कि राम जब राजा थे तो उन्होंने बहुत ही शांति पूर्वक अपना शासन किया तो अब हम बात करेंगे आज के समय की आज के समय में किस तरह से नागरिकों को राज्य सरकार नियंत्रण करती हैं.
आज के समय में हमारी सत्ता के ऊपर पूरा नियंत्रण राज्य सरकार और केंद्र सरकार का होता है. इन दोनों सरकारों के बीच में शक्तियां का वितरण है. कई विषय ऐसे होते .हैं जहां पर केंद्र सरकार नियम बनाती है. और कई चीजें ऐसी होती हैं. जिनके ऊपर राज्य सरकार नियम बनाती है. या विधि बनाती है. और कई विषय ऐसे होते हैं. जिन पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारें मिलकर नियम बनाती है. तो आज के समय में अगर हम अपनी जनता के व्यवहार या उसके आचरण पर नियंत्रण करना चाहते हैं. तो यह सभी शक्तियां केंद्र में होती है. विधि एक ऐसा माध्यम है. जिसके द्वारा हम अपनी प्रजा के व्यवहार या उसके आचरण को नियंत्रित करते हैं.
विधिशास्त्र
विधिशास्त्र से ही सभी विधियां उत्पन्न हुई है. विधि विधि का विधान है विधि क्या होती है. विधि की परिभाषा क्या होती है. इन सभी चीजों के बारे में अध्ययन विधिशास्त्र में किया जाता है. विधिशास्त्र तो एक माध्यम है. जैसा की हमने आपको पहले ऊपर बताया भी है लेकिन विधिशास्त्र इन माध्यम को परिभाषित करने का व्याख्या करने का एक साधन है. विधिशास्त्र में हम जो ज्यादातर पढ़ते हैं. वह विचार होते है. जो विभिन्न प्रकार के विधि शास्त्रियों ने दी है. या विभिन्न दार्शनिकों ने दी है. उनके द्वारा विधि क्या है. उन्होंने अपने अपने तरीके से विधि को परिभाषित किया है. लेकिन सभी की एक जैसी परिभाषा नहीं है. थोड़ी बहुत परिभाषा मिलती-जुलती हो सकती है. इसको पढ़ना मुश्किल हो जाता है.
इसीलिए विधिशास्त्र मैं हम किसी और के विचारों को प्राथमिकता देते हैं अगर उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो विधिशास्त्र यानी Jurisprudentia यह दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है. यह दोनों ही शब्द लैटिन के शब्द हैं. Juris का अर्थ होता विधि है. और Pudentia का अर्थ ज्ञान होता है. तो Jurisprudentia का पूर्ण अर्थ हुआ विधि का ज्ञान लेकिन सच में यह विधि का ज्ञान नहीं है यह विधि का विधान होता है. बहुत सारी विधियां किस तरह से प्रयुक्त की जाती है .उन सभी का अध्ययन हम इसमें करते हैं. विधियों का मतलब क्या होता है. उनकी व्याख्या कैसे होती है. उनके बारे में हम अध्ययन करते हैं. लोगों ने विधिशास्त्र के बारे में अलग-अलग परिभाषा दी है.
जिनके बारे में हम आगे बात करेंगे लेकिन सबसे पहली परिभाषा अगर हम देखें तो वह दी है. अल्पीअन ने इसे उचित और अनुचित का विज्ञान कहा है. क्या चीज उचित है. कौनसी अनुचित है. उसका विज्ञान ही विधिशास्त्र है. यह परिभाषा अल्पीअन ने दी है. अल्पीअन की परिभाषा हम इस तरह से याद रखेंगे उचित और अनुचित क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए. दूसरी परिभाषा देखी जाए तो सामंड की परिभाषा है. सामंड ने इस परिभाषा को एक विज्ञान के तौर पर लिया है. यह नागरिकों का विज्ञान है. यह नागरिकों की सुविधा है. यह नागरिकों के लिए बनाया गया है. यह नागरिकों पर लागू किया जाता है. यह सभी चीजें नागरिकों के ऊपर लगाई जाती है. तो कुछ इस तरह की परिभाषा सामंड दी है. इन परिभाषा के बारे में आगे हम आपको पूरी जानकारी भी देंगे और तीसरी जो परिभाषा विधिशास्त्र के बारे में दी है. वह अमेरिका के रोस्को पाउंड ने दी है.जिसने विधिशास्त्र को Social Engineering कहा है.तो इस तरह से अलग-अलग विधि शास्त्रियों की अलग-अलग परिभाषा विधिशास्त्र के बारे में दी गई है. और बहुत सारे विधिशास्त्र की स्कूल भी है तो इन सभी के बारे में हम आगे आपको पूरी और विस्तार से जानकारी देंगे तो आप इसको ध्यान से पढ़िए.
तो जैसा की हमने आपको ऊपर बताया था विधिशास्त्र के बारे में बहुत से लोगों ने अपनी अलग-अलग राय दी है. बहुत से विधि शास्त्रियों ने बहुत से प्रोफेसर ने बहुत से दार्शनिकों ने विधिशास्त्र के बारे में अलग अलग परिभाषा दी है. तो हमने ऊपर आपको तीन परिभाषा के बारे में बताया था. तो अब हम आपको अल्पीअन द्वारा दी गई विधिशास्त्र के बारे में परिभाषा को विस्तार से बताएंगे.
अल्पीअन में विधिशास्त्र के बारे में जो परिभाषा दी है. वह उसने अपनी बुक डाइजेस्ट में लिखा है. डाइजेस्ट बुक में विधिशास्त्र के बारे में डाइजेस्ट बुक कहा है. यह उचित और अनुचित का विज्ञान है. जैसा की हमने आपको बताया भी था. तो इसमें आपको यह दो बातें याद रखनी है कि क्या उचित है और क्या अनुचित है और यह इन दोनों चीजों का विज्ञान जानी विधिशास्त्र उचित और अनुचित का ज्ञान होता है तो अल्पीअन जब भी नाम यहां पर आता है. तो हमें उसकी परिभाषा उचित और अनुचित के नाम से याद है.
दूसरी परिभाषा की हम बात करते हैं. तो दूसरी परिभाषा Cicero ने दी है. इसरो एक दार्शनिक थे. जहां भी दर्शनशास्र की बात आती है. तो इसमें दर्शनशास्र को जरूर शामिल करेंगे. Cicero की परिभाषा के अनुसार विधिवत ज्ञान का दार्शनिक पक्ष विधिशास्त्र है.बात तो हम विधि की कर रहे हैं. लेकिन विधि के पीछे दर्शनशास्त्र क्या है. जब हम किसी भी चीज के पीछे की बात करते हैं. यानी उसके इतिहास की बात करते हैं. वह क्यों उत्पन्न हुई उसे क्यों लिखा गया उन सभी चीजों को करने के बाद जब उसके इतिहास में जाते हैं और सोचते हैं कि यह चीज क्यों अस्तित्व में आई.यह विचार क्यों आया और उनके पीछे के विचारों को उसके पीछे का विधिशास्त्र कहा जाता है.यही चीज Cicero ने कही कि विधि ज्ञान का दार्शनिक पक्ष वह विधिशास्त्र कहलाता है.
तीसरी परिभाषा सामंड के द्वारा दी गई है. तो साउंड की परिभाषा को याद रखने के लिए हमें उनकी एक चीज को याद रखना पड़ेगा कि सामंड व्यवहारिक या सिविल कानून की बातें करते हैं. साउंड सिविल कानून या मूलभूत सिद्धांतों पर ज्यादा ध्यान देते हैं. इसका मतलब जो व्यवहारिक विधि के प्राथमिक सिद्धांत का विज्ञान ही विधिशास्त्र है. याद करने में थोड़ा मुश्किल है लेकिन आसान तरीके से याद करने के लिए हम बताते हैं. सामंड ने विधिशास्त्र को तीन भागों में परिभाषित किया है पहला विश्लेषणात्मक दूसरा ऐतिहासिक और तीसरा नैतिकइन तीन भागों में विधिशास्त्र को परिभाषित किया है.
विधिशास्त्र के बारे में छोटी परिभाषा जॉन ऑस्टिन ने दी है. ऑस्टिन के नाम के साथ आपको विधिशास्त्र की परिभाषा को याद रखने के लिए दो चीजों को याद रखना है. जॉन ऑस्टिन सकारात्मक थे और वह एक बहुत अच्छे दार्शनिक थे और जो परिभाषा जॉन ऑस्टिन के द्वारा दी गई है. वह वास्तविक विधि का जो दर्शन है. ही विधिशास्त्र है ऐसा जोन होस्टिंग ने विधिशास्त्र के बारे में बताया है. और उन्होंने विधिशास्त्र को दो भागों में बांटा है.होलेंड ने एक अपनी परिभाषा विधिशास्त्र के बारे में दी है. उन्हें विधिशास्त्र को वास्तविक विधि का विज्ञान कहा है. यह परिभाषा फुल हैंड ने विधिशास्त्र के बारे में दी है.
विधिशास्त्र के बारे में अगली परिभाषा बिल्कुल अलग दी गई है.विधिशास्त्र के बारे में अगली परिभाषा professor Julia stone ने दी है.professor Julia stone इन पीछे दी गई हुई सभी परिभाषाओं से अलग परिभाषा दी है.उनकी परिभाषा अलग इसलिए थी क्योंकि वह एक प्रोफेसर थे. और प्रोफेसर की परिभाषा तो अलग ही मिलेगी यह बात आप भी जानते होंगे. तो professor Julia stone ने विधि शास्त्र के बारे में परिभाषा दी है. उसमें उन्होंने कहा है. कि विधिशास्त्र एक अधिवक्ताओं की बहिर्मुखता ही ही विधिशास्त्र है. यानी जो वकील होते हैं. इन सभी चीजों के को इस्तेमाल में लेते हैं. इसमें बहुत सारी चीजों को उपयोग में लिया जाता है. यानी वह विधि के ज्ञान को उपयोग में लेते हैं. उसका विश्लेषण कर सकते हैं. न्याय के सिद्धांत अलग होते हैं. जब उनको काम में लेते हैं. तब वह अलग होते हैं. इसलिए उन्होंने इस विधिशास्त्र को लॉयर एक्स्ट्रा वर्जन के नाम से परिभाषित किया है. और professor Julia stone ने इस को तीन भागों में बांटा है. पहला विश्लेषणात्मक दूसरा क्रियात्मक और तीसरा न्याय के सिद्धांत इन तीन भागों में professor Julia stone ने विधिशास्त्र की परिभाषा के अध्ययन को बांटा है.
इन सभी के अलावा और भी बहुत से दार्शनिकों ने विधि शास्त्रियों ने विधिशास्त्र के बारे में अपनी अलग अलग परिभाषा दी है.इसके अलावा और रोस्को पाउंड विधिशास्त्र के बारे में अपनी परिभाषा दी है. और उसके बारे में कुछ बातें हमने आपको ऊपर भी बताई थी रोस्को पाउंड समाज की बातें ज्यादा करते थे और उन्होंने सामाजिक पहलू पर ज्यादा ध्यान दिया तो.और रोस्को पाउंड की परिभाषा को हमेशा आपको समाज के साथ जोड़ कर देखना होगा.इसके अलावा विधिशास्त्र के बारे में एलेन ने परिभाषा दी है. उनके अनुसार विधि के मूलभूत सिद्धांत है. उनका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है. यदि हम उनको वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण करते हैं तो उसे विधिशास्त्र कहा जाता है.
अंतिम परिभाषा विधिशास्त्र के बारे में विधि शास्त्री LEE ने दी है. उन्होंने जो परिभाषा दी है. उनके अनुसार विधिशास्त्र एक ऐसा विधान है जो मौलिक सिद्धांतों को अभीनिश्चित करने का प्रयास करता है. यह परिभाषा LEE के अनुसार विधिशास्त्र के बारे में दी गई है.यह सभी परिभाषाएं अलग-अलग लोगों के द्वारा विधिशास्त्र के बारे में दी गई है. अलग-अलग विधि शास्त्रियों के द्वारा दी गई है. अलग-अलग प्रोफेसर के द्वारा दी गई है. अलग-अलग दार्शनिकों के द्वारा दी गई है. तो अब हमने आपको इनके द्वारा दी गई परिभाषाएं बता दी है. अब आगे हम आपको इसके अलावा दूसरे विचारों पर बातें करेगे जिस को पढ़ने के बाद आप को विधिशास्त्र के बारे में थोड़ी और जानकारी मिलेगी और आपको विधिशास्त्र के बारे में जानने में आसानी होगी. तो इसके लिए आप नीचे इस पोस्ट को पूरा पढ़ें.
प्राकृतिक विधि सिद्धांत
जब हम प्राकृतिक सिद्धांतों की बात करते हैं. तो सबसे पहले यह चीज़ जानने की जरूरी होती है. की प्राकृतिक विधि सिद्धांत में प्रकृति को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है. उदाहरण के लिए जैसे जो चीजें प्राकृतिक रूप से होती हैं जो सभी प्राणियों पर समान रुप से लागू होती हैं. वह सभी नियम प्राकृतिक विधि सिद्धांत में शामिल किए गए हैं. दार्शनिकों ने विधि शास्त्रियों ने इसके लिए अलग-अलग बातें कही हैं. इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बातें जिसने कही है वह फ्रीडमैन ने कही फ्रीडमैन के अनुसार प्राकृतिक विधि का इतिहास है वह वास्तविक में जो इंसान है. उसके द्वारा एक शुद्ध न्याय की खोज है. न्याय को सर्च करने के लिए किस किस तरीके से खोजा गया है. किन-किन चीजों में हमने न्याय को देखा है. और उस खोज को करने में मनुष्य असफल रहा है. उसके बारे में पूरी कहानी है. इस तरीके से प्राकृतिक सिद्धांत को हम कह सकते हैं.
जिस तरह से कोई शासक पूरे देश पर या किसी राज्य पर शासन करते थे. वैसे ही ईश्वर यानी भगवान का शासन पूरे ब्रह्मांड पर है. भगवान अपनी सभी विधियां खुद बनाते हैं और ब्रह्मांड पर लागू करते हैं. तो इस प्रकार ईश्वर द्वारा दिए गए सिद्धांतों को देवी सिद्धांत भी कह सकते हैं. लेकिन वह थोड़ी अलग बात है. लेकिन आज हम विधि सिद्धांत के बारे में बात करेंगे. यह एक वास्तविक न्याय का सिद्धांत है. यह न्याय की खोज है. और यह माना गया है. कि यह खोज भगवान पर जाकर समाप्त होती है. तो पहली बात इसमें फ्रीडमैन ने कही है. जैसा की हमने आपको ऊपर भी बताया है. और इस न्याय की खोज में मनुष्य को सफलता मिली है.
अगर देखा जाए तो इस सिद्धांत का विकास 6 चरणों या युगों में हुआ है.और 6 युगों है. उनको हम किस तरह से याद कर सकते हैं. जैसे सबसे पहले U S R A M P तो हमें US याद रह सकता है. U से यूनानी काल और S से Stoic काल R रोमन काल और A से अंध युग उसके बाद M मध्ययुग काल उसके बाद P पुनर्जागरण युग तो आप इन 6 चरणों को इस तरह से यादें कर सकते हैं. इसमें सबसे पहले यूनानी काल में हैरत लीटस उसने इसमें प्रकृति के तीन नियम बताए हैं. पहले उन्होंने कहा पहला Destiny दूसरा ऑर्डर तीसरा रीजन जब हम प्राकृतिक विधि की बात करते हैं. तो उसमें तीन चीजें होती.अंतिम लक्ष्य उस विधि का अंतिम लक्ष्य क्या है. दूसरा देखा जाएगा कि हमेशा जो उसका उद्देश्य होता है.
वह व्यवस्था बनाए रखना होगा. और तीसरा उसमें कोई ना कोई रीजन जरुर मिलेगा कोई ना कोई युक्ति होगी कोई ना कोई तर्क जरूर शामिल होगा. यह समान रूप से सभी पर लागू होगा. तो हम ब्रह्मांड में अपने आसपास देखेंगे. बहुत सी चीजें बिखरी हुई है आपको बहुत सारे पेड़ पौधे मिलेंगे बहुत सारे पशु पक्षी जानवर बहुत सारे हमारे जैसे दूसरे इंसान मिलेंगे यह सभी चीजें ऐसी ही नहीं बिखरी है. उसके पीछे कोई रीजन है कोई कारण है. और उसके पीछे कोई व्यवस्था है इसके पीछे कोई ना कोई अंतिम लक्ष्य है. इसीलिए हमारे पास पास उपलब्ध है. जो चीज इस व्यवस्था को बिगाड़ने का काम करती है. उसको प्राकृतिक विधि द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है. यानी कोई चीज गलत हो रही है. तो उसे ठीक करने के लिए हमें ऑर्डर की जरूरत होती है. और वह भी प्राकृतिक विधि हो सकती है.
दूसरा जो Stoic काल आया था उसमें सुकरात ने अपनी परिभाषा दी है. उन्होंने प्राकृतिक विधिक सिद्धांत को दो भागों में बांटा है.उन्होंने प्राकृतिक न्याय और विधि न्याय इन दो भागों में प्राकृतिक विधि सिद्धांत को बांटा है.पहला जो प्राकृतिक न्याय है. वह सभी जीवो के लिए समान है. जबकि विधिक न्याय में समय और परिस्थिति के साथ यह चीजें बदल जाती है. तो यह परिभाषा सुकरात द्वारा दी गई है. इस परिभाषा को याद रखने के लिए यह 2 नियम आपको याद रखने होंगे कि प्राकृतिक न्याय में जीवो पर एक समान लागू है. और विधिक न्याय में यह चीजें समय और परिस्थिति के साथ बदलती रहती है. उसके बाद अरस्तु अपनी परिभाषा दी.अरस्तु की परिभाषा में कहा गया है कि मनुष्य प्राकृतिक अंग होने का कारण अन्य प्राणियों की भांति प्राकृतिक नियमों का अनुसरण करता है. जब प्राकृतिक नियम दिए गए हैं. तो मनुष्य प्राकृतिक नियमों का अनुसरण करेगा. क्योंकि वह प्रकृति से अलग नहीं है. क्योंकि वह प्रकृति का भाग है. इसलिए में वह इस नियम का अनुसरण करेगा दूसरी बात अगर वह किसी नियम का अनुसरण कर रहा है. तो वह नियम सही है या गलत है. वह उसका औचित्य जरूर परख कर देखेगा.तो इस प्रकार से इन को दो भागों में बांटा गया है.
तीसरा कल रोमन काम था.रोमन काल में न्याय व्यवस्था है. दो भाग में बांटी गई थी. नागरिक विधि और दूसरा सार्वजनिक विधि नागरिक विधि सभी नागरिकों पर लागू होती है. और सार्वजनिक विधि उनके साथ साथ विदेशियों पर भी लागू होती है. जो उस राज्य में निवास कर रहे हैं. उन पर भी है. समान रुप से लागू होती है. उसके बाद चौथा अंध युग आया था.अंध युग में कुछ विशेष तो नहीं था लेकिन जो प्रकृति को नियम ऐसे ही रखा गया इसमें जो मुख्य विधि शास्त्री थे. एंब्रोस,सेंट अगस्टीन और ग्रेगोरी उन्होंने प्राकृतिक विधि के नियमों को बदला नहीं बल्कि उन्हें नियमों के विकास में आगे कुछ बातें कही हैं.
फिर उसके बाद मध्यकाल आया तो मध्यकाल में 12 शताब्दी से लेकर 14 शताब्दी तक चला इसमें कुछ विधि शास्त्रियों ने जैसे Cicero ,Saint thomas जैसे और भी बहुत सी विधि शास्त्रियों ने प्राकृतिक विधि सिद्धांतों के बारे में परिभाषाएं दी. इन सभी ने मध्यकाल में अपनी अलग-अलग परिभाषाएं दी. उसके बाद अंत में पुनर्जागरण काल आया. तो ह्यूगो ग्रोटियस पुनर्जागरण काल के जो प्रमुख विधि शास्त्री थे. ईश्वरी विधि की जो जगह थी वह तर्क ने ले ली. आज अगर हम बात करें तो बहुत से ऐसे वकील है जो प्राकृतिक विधि से प्रेरित है. बहुत सारे जो नियम है. जो हमारे कोर्ट ने बनाए हैं. जो हमारी सरकार ने इन कानून को पास किया है. वह बहुत सारे नियम प्राकृतिक विधि से प्रेरित है. अगर हम बात करते हैं. मानवाधिकार कानूनों की तो वह भी प्राकृतिक विधि से प्रेरित है. जैसे पंजाब राज्य का केस है ओल्गा टेलिस यह जो विवाद है.जिनका निर्णय दिया गया है. इन का नियम कहीं ना कहीं प्राकृतिक विधि से प्रेरित है. तो इन सब में हम धारा 14 और 21 की बात करते हैं. वह वास्तविकता में प्राकृतिक विधि का ही सिद्धांत है जिसे हमने अपने कानून में जगह दी है.
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