उत्तर- जब किसी आदमी के पास कोई काम नहीं होता है तो इसे बेरोजगारी कहते हैं। जब कोई आदमी काम तो कर रहा होता है लेकिन अपनी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर पाता है तो इसे प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं। लेकिन जब किसी आदमी को काम बिल्कुल भी नहीं मिलता तो इसे खुली बेरोजगारी कहते हैं।
उत्तर- यह कथन आंशिक रूप से सही है। जब हम 1973 से 2000 तक तृतीय सेक्टर की वृद्धि को देखते हैं तो कह सकते हैं कि इस सेक्टर में वृद्धि हुई है। 2003 के जीडीपी में तृतीयक सेक्टर की हिस्सेदारी सबसे अधिक है; जो इस सेक्टर के अच्छे पहलू को दिखाता है। लेकिन जब हम रोजगार के अवसरों के आँकड़े देखते हैं तो पता चलता है कि तृतीयक सेक्टर ने रोजगार के उतने अवसर नहीं बनाए जो जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी से मैच कर पाये। इसलिए हम कह सकते हैं कि रोजगार मुहैया कराने के मामले में तृतीयक सेक्टर में कोई वृद्धि नहीं हुई है।
उत्तर- सर्विस सेक्टर में दो प्रकार के श्रमिक काम करते हैं: नियमित और अनियमित। नियमित श्रमिकों में वैसे लोग होते हैं जो अपने हुनर और मानसिक क्षमताओं का प्रयोग करते हैं तो सीधे रूप से नियोजित होते हैं। अनियमित श्रमिकों में अक्सर ऐसे काम करने वाले होते हैं जिनमें मानसिक क्षमताओं की खास भूमिका नहीं होती है। कुछ अंशकालीन रूप से नियोजित श्रमिक भी अनियमित श्रमिक की श्रेणी में आते हैं।
उत्तर- यह सही है कि असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है। असंगठत क्षेत्रक में काम करने वालों को कम मेहनताना मिलता है और उन्हें लंबे समय के लिये काम करना पड़ता है। उन्हें छुट्टियाँ शायद ही मिलती हैं। उन्हें सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिलती है।
उत्तर- रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को संगठित और असंगठित क्षेत्रक में बाँटा गया है।
उत्तर- संगठित और असंगठित क्षेत्रकों की रोज़गार-परिस्थितियों की तुलना निम्नलिखित है
संगठित क्षेत्रक | असंगठित क्षेत्रक |
इस सेक्टर में काम एक सिस्टम से होता है और नियमों की सीमा रेखा के अंदर होता है। | इस सेक्टर में कोई सिस्टम नहीं होता और ज्यादातर नियमों का उल्लंघन होता है। |
इस सेक्टर में दिया जाने वाला पारिश्रमिक सरकार के नियमों के अनुसार होता है। | इस सेक्टर में दिया जाने वाला पारिश्रमिक सरकार द्वारा तय पारिश्रमिक से कम होता है। |
श्रमिकों को नियम के हिसाब से सामाजिक सुरक्षा मिलती है। | सामाजिक सुरक्षा का अभाव होता है। |
नौकरी सामान्यत: सुरक्षित होती है। | नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं होती है। |
अथवा
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 की कोई तीन विशेषताएं लिखिए।
उत्तर- काम के अधिकार’ के लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से नरेगा 2005 को लागू किया गया था। इस प्रोग्राम के तहत ग्रामीण क्षेत्र के हर परिवार के एक व्यक्ति को साल में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है। यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन के लिये प्रतिबद्ध है। इस कार्यक्रम का एक और उद्देश्य है गाँवों से महानगरों की ओर होने वाले भारी पलायन को रोकना।
उत्तर- इसे समझने के लिए भारत के किसी भी छोटे शहर की ट्रांसपोर्ट सेक्टर की बात करते हैं। ज्यादातर राज्यों में लंबी दूरी की बसों का परिचालन स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन द्वारा किया जाता है जो एक पब्लिक सेक्टर ऑर्गेनाइजेशन है। इसके अलावा कई प्राइवेट ऑपरेटर भी बस चलवाते हैं। स्टेट ट्रांसपोर्ट के श्रमिकों को सही वेतन और अन्य सुविधाएँ मिलती हैं। लेकिन प्राइवेट ट्रांसपोर्ट में काम करने वाले लोगों को ये सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं। कई राज्यों में स्टेट ट्रांसपोर्ट की सेवा बड़ी खराब होती है इसलिए लोग प्राइवेट बसों में यात्रा करना पसंद करते हैं।
उत्तर-
सुव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन | अव्यवस्थित प्रबंध वाले संगठन | |
सार्वजनिक क्षेत्रक | एन.टी.पी.सी. | बी.एस.एन.एल. |
निजी क्षेत्रक | टाटा पावर | स्वादिष्ट ब्रेड कम्पनी |
उत्तर- सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियों के उदाहरण हैं; सड़कों, पुलों, रेलवे, बिजली आदि का निर्माण और बाँध आदि से सिंचाई की करना पड़ता है। इन गतिविधियों का इस्तेमाल करने वाले हज़ारों लोगों से मुद्रा एकत्र करना भी आसान नहीं है। फिर यदि वे इन गतिविधियों को निजी क्षेत्रक उपलब्ध करवाते हैं तो वे इसकी ऊँची कीमत वसूलते हैं। इसलिए सरकार इनमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
उत्तर- किसी भी देश के आर्थिक विकास में पब्लिक सेक्टर का अहम योगदान होता है। जब भारत एक गरीब देश हुआ करता था तो यहाँ की अर्थव्यवस्था को शुरुआती गति प्रदान करने में पब्लिक सेक्टर ने अहम भूमिका निभाई थी। पब्लिक सेक्टर ने आधारभूत उद्योग और आधारभूत संरचना तैयार की जिसके कारण प्राइवेट सेक्ट फल फूल सका। इस तरह से भारत के आर्थिक विकास में पब्लिक सेक्टर ने एक उत्प्रेरक का काम किया।
उत्तर- सरकार द्वारा समय समय पर न्यूनतम मजदूरी घोषित की जाती है। किसी भी व्यक्ति के लिए जीवन के न्यूनतम स्तर पर जीने के लिये कम से कम इतनी आय की जरूरत पड़ती है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कई मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पाती है इसलिए वे हमेशा गरीबी के बोझ से दबे होते हैं। काम के दौरान सुरक्षा एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू होता है। सुरक्षा के अभाव में कोई विकलांग हो सकता है या उसकी मृत्यु भी हो सकती है। एक स्वस्थ मजदूर ही अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे सकता है। इसलिए एक नियोक्ता को चाहिए कि अपने मजदूरों को स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराए। मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी, सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधा दिलवाने के लिये हर किसी के पहल की आवश्यकता है।