UP TGT Sanskrit की परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्न
Questions asked in UP TGT Sanskrit exams – जो उम्मीदवार UP TGT Sanskrit परीक्षा की तैयारी कर रहे है ,उन्हें अपनी तैयारी प्रैक्टिस सेट मॉक टेस्ट ऑनलाइन टेस्ट और प्रीवियस ईयर पेपर इत्यादि से तैयारी करनी चाहिए है .इससे उम्मीदवार तैयारी भी अछे से हो जाती है और उन्हें पता भी चल जाता है की इसमें किस तरह के प्रश्न आते है.इसलिए इस पोस्ट में UP TGT Sanskrit Solved Paper यूपी टीजीटी में पूछे जाने वाले सवाल से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर दिए गए है .यह प्रश्न पहले भी UP TGT Sanskrit के एग्जाम में आ चुके है और आगे आने वाले एग्जाम में पूछे जा सकते है .इसलिए इन्हें आप अच्छे से याद करे ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे .
‘श्रेयसि केन तृत्यते’-सूक्ति ग्रहण की गई है
(A) शिशुपालवध से(B) किरातार्जुनीयम् से
(C) अभिज्ञानशाकुन्तलम् से
(D) मृच्छकटिकम् से
‘खण्ड काव्य’ कहा जाता है जो
(A) काव्य के एक देश का अनुसरण करता है।(B) खण्डों में विभक्त हो।
(C) खण्डित नायिका के चरित पर आधारित हो।
(D) महाकाव्यम के कुछ सर्गों का निबद्धीकरण हो।
सांख्यदर्शन में महदादि प्रकृति के विचार कहे गये हैं
(A) द्वादश(B) त्रयोदश
(C) षोडश
(D) एकविंशति
‘अन्तवन्त इमे देहाः’ का तात्पर्य है कि
(A) ये शरीर नाशवान है।(B) आत्मा अजर-अमर है।
(C) आत्मा नश्वर है।
(D) शरीर का अन्त हो चुका है।
‘भासते प्रतिभासार रसाभाता हताविभा। भावितात्मा शुभावादे देवाभा बत ते सभा।’ नामक पद्य में चित्रबन्ध है
(A) खड्गबन्ध(B) सर्वतोभद्र
(C) मुरजबन्ध
(D) पद्यबन्ध
‘नास्सतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः’ पंक्ति ली गयी है
(A) तर्क भाषा से(B) वेदान्तसार से
(C) श्रीमद्भगवद्गीता से
(D) सांख्यकारिका से
‘मृच्छकटिकम्’ का शाब्दिक अर्थ है
(A) मिट्टी की गाड़ी(B) मिट्टी का घोड़ा
(C) मृत गन्त्री
(D) कठिन प्रयास
वह धातु से तुमुत्प्रत्यय लगने पर रूप होगा-
(A) बहितुम्(B) बहेतुम्
(C) वोढितुं
(D) वोढुं
गौणीलक्षणा का ज्ञान होता है
(A) समवाय से(B) सादृश्य से
(C) संयोग से
(D) अर्थापत्ति से
‘परस्य हृदये लग्नं न घूर्णयति यच्छिरः’ पंक्ति ग्रहण की गयी है
(A) अभिज्ञान शाकुन्तलम् से(B) मृच्छकटिकम् से
(C) कादम्बरी से
(D) नलचम्पू से
‘ग्रामं गच्छत् तृणं स्पृशति’ में ‘तृण’ द्वितीया विभक्ति होती है
(A) कर्मणि द्वितीया से(B) अकथित च से
(C) तथायुक्तं चानीप्सितम् से
(D) अभिनिविशश्च से
वेदान्तसार के रचयिता हैं
(A) सदानन्द(B) परिब्राजक
(C) बादरायण
(D) विधारण्य
‘मित्रावरुणौ’ में समास होता है
(A) ‘इबृद्धो’ सूत्र से(B) ‘ईदग्नेः सोमवरुण्योः ‘ सूत्र से
(C) ‘अग्नेः स्तुत्स्तोमसोमाः’ सूत्र से
(D) ‘देवता द्वन्द्वेच’ सूत्र से
‘गंङ्गायां घोषः’ में शैत्य तथा पावनत्व की प्रतीति होती है
(A) अभिधा वृत्ति से(B) लक्षणा वृत्ति से
(C) आधारत्व की विवक्षा से
(D) व्यन्जना से
रस सिद्धांत के प्रसंग में चित्रतुरगादिन्याय का समुल्लेख किया है
(A) शंकुक ने(B) भट्टनायक ने
(C) भट्टलोल्लट ने
(D) नान्यदेव ने
अवान्तर प्रयोजन की समाप्ति से कथावस्तु के मुख्य प्रयोजन में विच्छेद प्राप्त हो जाने पर जो उसके अविच्छेद का कारण होता है उसे कहते हैं
(A) बिन्दु(B) बीज
(C) आरम्भ
(D) फलागम
यत्र च गुरुव्यतिक्रमं नक्षत्रराशयः, मात्राकलह लेख-शालिकाः, मित्रोदयद्वेषमुलकाः अपत्यत्यागं कोकिलाः, बन्धुंजीवविधातं ग्रीष्म दिवसाः, कुर्वन्ति न जनाः। इन पंक्तियों में प्रसिद्ध अलंकार है
(A) उपमा(B) परिसंख्या
(C) यमक
(D) वक्रोक्ति
‘नक्तन्दिवम्’ में समास होगा-
(A) कर्मधारय(B) अव्ययीभाव
(C) द्वन्द्व
(D) तत्पुरुष
‘कृ’ धातु से स्त्रीलिंग में शतृ प्रत्यय लगाने पर रूप बनेगा-
(A) कुर्वती(B) कुर्वन्ती
(C) कुर्वती
(D) कुर्वन्ता
‘चारूदत्त’ नायक है
(A) ‘शिशुपालवधम्’ में(B) ‘रघुवंशम्’ में
(C) ‘मृच्छकटिकम्’ में
(D) ‘कादम्बरी’ में
यदि उपमेय की उपमान के साथ सम्भावना व्यक्त की जाए तो अलंकार होता है
(A) उत्प्रेक्षा(B) रूपक
(C) उपमेयोपमा
(D) सन्देह
‘जनान्तिक’ में एक मुद्रा का प्रकाशन होता है उसे कहते हैं
(A) चिन्मुद्रा(B) अंगुष्ठानामिके
(C) मत्तवारणी
(D) त्रिपताकाकर
मम्मट ने विप्रलम्भ शृंगार के भेद स्वीकार किये हैं
(A) चार(B) पाँच
(C) सात
(D) दश
भाषा विज्ञान के अनुसार स्वर के उच्चारण से सम्बद्ध चार प्रकारों में कौन-सा प्रकार नहीं है
(A) पारिशर्वक(B) नासिक्यरंजन
(C) प्रतिवेष्टन
(D) तनन
‘तथा रामायणादीनां भविता दुःखहेतुता’ पंक्ति ग्रहण की गयी है
(A) काव्यप्रकाश से(B) साहित्य दर्पण से
(C) नाट्य शास्त्र से
(D) वेदान्त सार से