NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 3. प्राकृतिक पर्यावरण का अवक्रमण

प्राकृतिक पर्यावरण का अवक्रमण के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. जीवाश्मीय ईंधनों का उपयोग किस प्रकार पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों से संबंधित है? ]
उत्तर – जीवाश्मीय ईंधन (जैसे कोयला, पैट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) भूगर्भीय बलों द्वारा बनाया जाता है और जैविक पदार्थों के अपशिष्टों और प्राचीन जीवों और पौधों के मृत शरीरों से बनाया जाता है। जब इन ईंधनों को बड़ी मात्रा में जलाया जाता है, कई विषैली गैसें, जैसे CO2, बाहर निकलते हैं, जो तापमान को बढ़ाता है और ग्रीन हाऊस पर प्रभाव डालता है। हवा में SO2, सल्फर-डाइ-आक्साइड, NOx (नाइट्रोजन ऑक्साइड), CO (कार्बन मोनो आक्साइड) और हाइड्रोकार्बन मिलते हैं। विभिन्न उद्योगों, विद्युत संयंत्रों, मोटरवाहनों और वायुयानों से भी ये गैसें निकलती हैं। ये विषैली गैसें वायु को प्रदूषित करती हैं, जिससे पौधे और मनुष्य दोनों को खतरा होता है।

प्रश्न 2. मानव जनसंख्या विस्फोट के तीन कारण बताइए ।
उत्तर- मानव जनसंख्या विस्फोट के कारण-
1. आधुनिक कृषि पद्धति के कारण खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ा, जिससे सभी को पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध हुआ।
2. चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति होने के कारण घातक चोटों व महामारियों के कारण होने वाली मृत्यु दर में कमी हुई।
3. आधुनिक चिकित्सा तकनीकों से इलाज होने के कारण हृदय, फेफड़ों, वृक्क आदि की गंभीर बीमारियों का आधुनिक इलाज संभव हुआ जिसके कारण मनुष्य का औसत आयुकाल बढ़ गया है।

प्रश्न 3. उन तीन कारकों को बताइए जिनसे पर्यावरण के अवक्रमण का कारण बढ़ती हुई मानव जनसंख्या है।

उत्तर – बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य पदार्थों और उपयोगी वस्तुओं की आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए। इन सभी वस्तुओं को उपलब्ध कराने से पर्यावरण प्रभावित हुआ-

(i) अत्यधिक मात्रा में खाद्य पदार्थों को उत्पन्न करने के लिए वनों को काटना- प्राकृतिक चरागाहों और वनों को कृषि योग्य भूमि में बदलकर अधिक खाद्यान्न उत्पादन किया गया है। दोनों आर्द्र और खाली मरुभूमि सींचा गया है। इन बदलावों से अत्यधिक मात्रा में खाद्यान्न और कच्चे माल का उत्पादन हुआ, लेकिन इससे प्राकृतिक संसाधन कम हो गए और भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ गया।

(ii) जल की कमी- वर्षा, जो नदियों, झीलों और अन्य जल स्रोतों से होती है, हमें अधिकांश जल देती है। जमीन इस जल को सोख लेती है, जिससे वह भूमिगत जल तक पहुँच जाता है। Water Table, या जल तालिका, मिट्टी की एक निश्चित गहराई तक मृदा के कणों के मध्य सभी स्थानों में जल भराव होता है। यह जल तालिका पानी की गहराई के कारण स्थायी हो सकती है। यदि भूमिगत जल से निकले जल की पुनःपूर्ति हो। वर्षा जल के अवशोषण से यह संभव है। पानी के अत्यधिक निकास से बहुत से क्षेत्रों में भूमिगत जल संसाधन में कमी आई है, जिसके परिणामस्वरूप पानी की मात्रा में बहुत कमी आई है।

(iii) मानव बस्तियों की आवश्यकता – जनसंख्या विस्फोट के कारण बहुत से लोगों को रहने के स्थान की जरूरत है। घर बनाने के लिए पत्थर और अन्य भवन निर्माण सामग्री की जरूरत होती है, जिसके लिए खानें खोदना और चट्टानों को निकालना पड़ता है। ये सब भूस्खलन का कारण बनते हैं।

प्रश्न 4. वनोन्मूलन के तीन कारण बताइए ।
उत्तर – वन संसाधन पहले से ही मानवता का एक बड़ा हिस्सा थे। जनसंख्या बढ़ने से आवश्यकताएँ भी बढ़ीं। जंगल विभिन्न कारणों से काटा गया है:
1. विकासीय प्रक्रियाओं के लिए वनों की कटाई की गई। जैसे लोगों की बस्तियाँ, शस्य जमीन, इमारतें, उद्योग, स्कूल, अस्पताल, रेलवे स्टेशनों आदि

2. इमारती लकड़ी और ईंधन के लिए—खाना पकाने और गर्मी प्राप्त करने के लिए लकड़ी को जलाया जाने लगा। इस प्रकार लकड़ी को ईंधन के लिए खरीदने के लिए वनोन्मूलन किया गया। लकड़ी को घरों, फर्नीचर और लोगों के लिए अन्य आवश्यक सामान बनाने में प्रयोग किया जाता है। इन सब कामों में वनोन्मूलन था।

3. चरागाह के लिए पालतू पशुओं को चराने के लिए वनों को काटकर घास उगाकर उन्हें चरागाहों में बदल दिया गया।

4. स्थानांतरित कृषि खेती के लिए जमीन की कमी के कारण जंगलों को साफ करना पड़ा. कुछ सालों तक फसलें उगाई जाती हैं, लेकिन कुछ समय बाद भूमि अपनी उर्वरता खो देती है। भूमि की उर्वरता को बढ़ाने के लिए फसलों को बदल-बदलकर उगाया जाता है। इसे फसल चक्र कहा जाता है। खेती के स्थान को साफ करने के बाद यही चक्र दोहराया जाता है।

प्रश्न 5. वनोन्मूलन के प्रभावों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर- मृदा अपरदन, भूस्खलन, वन्य पर्यावरण की क्षति, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण आदि वनोन्मूलन के भिन्न प्रभाव हैं।

मृदा अपरदन (Soil Erosion ) – पौधे मिट्टी को अपनी जड़ों में रोके रखते हैं और पेड़ों के काटने और पौधों के नष्ट होने से मृदा अपरदन होता है। पौधों की रक्षात्मक परत के समाप्त होने के कारण मृदा की ऊपरी सतह, जो कार्बनिक पदार्थ से भरपूर होती है, वह बह जाती है जिससे मृदा अपनी उर्वरता नष्ट कर देती है ।

भूस्खलन (Landslides) – वनोन्मूलन के कारण मृदा अपरदन के बढ़ने से पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। ढीली हो जाती है, जो वर्षा के जल के साथ बह जाती है तथा जल

गाद का जमाव (Silting) – वनोन्मूलन के कारण मिट्टी स्त्रोतों में पहुँच जाती है और नदियों और झीलों में गाद इकट्ठा होने का कारण बनती है।

वन्य पर्यावरण का नुकसान – जंगलों में वनस्पति रहती हैं। जब जीवों के रहने के स्थान नष्ट हो जाते हैं, तो कुछ जातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।

जलवायु में परिवर्तन- वनोन्मूलन के कारण जलवायु परिवर्तन हुआ है, क्योंकि पेड़ आस-पास के वातावरण को आर्द्र बनाए रखते हैं। पेड़ों की कमी से आर्द्रता की कमी हो जाती है। वनोन्मूलन के कारण वर्षा में कमी आती है, क्योंकि पौधों से होने वाले वाष्पोत्सर्जन से बादल बनते हैं जो कि वर्षा करते हैं।

CO2 सिंक में कमी – पौधे उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषकों और मनुष्य की श्वसन क्रिया से निष्कासित CO2 को सोख लेते हैं, जिससे भोजन बनता है। जब पौधे CO2 को सोख नहीं सकते, तब CO2 सिंक कम हो जाता है और CO2 पर्यावरण में एकत्रित होता है।

प्रदूषण – वनों से प्राप्त लकड़ी से फर्नीचर, कागज और अन्य सामग्री बनाने में मिलों से निकला अपशिष्ट वातावरण व जल में मिलता है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है।

उपयोगी पौधों का नुकसान-कुछ उपयोगी पौधे वनों में उत्पन्न होते हैं जैसे औषधीय पौधे । वनोन्मूलन के कारण वे नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 6. आधुनिक कृषि वायु और जल प्रदूषण करने के लिये क्यों उत्तरदायी हैं?
उत्तर – वनों को फसल उगाने के लिए खेती योग्य भूमि में बदल दिया गया था। आवश्यकता से अधिक पौधे नष्ट होने से मृदा अपरदन हुआ, और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण हुआ, क्योंकि अनुपयोगी उर्वरक पानी के साथ झीलों और नदियों में बह गया। ये सब प्रदूषण पैदा करते हैं। भूमिगत जल उर्वरकों से प्रदूषित होता है क्योंकि कुछ रासायनिक पदार्थ मिट्टी में सोख लिए जाते हैं। पोषक तत्त्वों की अधिक मात्रा के कारण जलस्रोतों में सुपोषण (Entrophication) बढ़ जाता है, जिससे हरे शैवाल बढ़ते हैं और जलीय जीव मर जाते हैं।

कीटनाशकों का इस्तेमाल करने से फसल को नष्ट करने वाले कीटों के अलावा बहुत से महत्वपूर्ण कीट भी मर जाते हैं। उदाहरण के लिए, परागण करने वाले जीवों, पक्षियों और पादपों के बीजों को फैलाने वाले जीवों कीटनाशक एक स्थान पर जम जाते हैं। और खाद्य श्रृंखला उनकी सांद्रता को बढ़ाती है, जिससे वे अंडों, दूध और अन्य वस्तुओं में विषालु हो जाते हैं। धान, ज्वार, चने का भूसा, कपास का भूसा, गन्ने का कचरा, नारियल के खोल और अन्य फसल अपशिष्ट हैं जो पर्यावरण को खराब करते हैं। इनमें से प्रत्येक को जलाने से वायु प्रदूषण होता है।

प्रश्न 7. मनुष्य का आधुनिक आगमन, गाँवों से शहरों की और आना शहरी योजनाकर्त्ताओं के लिए गंभीर मुद्दा क्यों बन रहा है?
उत्तर- शहरी योजनाकर्त्ताओं के लिए आज का आधुनिक आगमन गाँवों से शहरों की ओर आना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि अधिक संख्या में लोगों के आने से रहने के लिये निवास स्थान की कमी हो जाती है, जिससे लोग झुग्गी-झोंपड़ी डालकर घर बनाते हैं। इन सबके परिणामस्वरूप अधिक लोगों को मूलभूत सुविधाओं की अधिक आवश्यकता महसूस होती है, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, बिजली और पानी। झुग्गी झोपड़ियों में अपर्याप्त सुविधाओं और मूलभूत सुविधाओं की कमी से अस्वच्छ परिस्थितियाँ, सामाजिक विकृतियाँ और अपराध बढ़ते हैं। झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले लोगों को त्वचा रोग और अन्य छूत की बीमारियाँ घेरती हैं, जिससे शहरी लोग भी डरते हैं।

प्रश्न 8. ग्रीन हाऊस गैसों को खतरनाक क्यों माना जाता है?
उत्तर- ग्रीन हाऊस गैसों का मानना है कि वे भूमण्डलीय तापन को बढ़ाते हैं और वर्षा चक्र को बदलते हैं, जो दोनों खतरनाक हैं। भूमंडलीय तापन से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और बर्फ की चोटी पिघल रही है। वायुमण्डल में CO2 के बढ़ते सांद्रण के कारण ऊष्मीय विकिरणों को पृथ्वी से बाहर निकलने से रोकते हैं। पृथ्वी का तापमान बढ़ने से ध्रुवीय बर्फ की चोटियाँ समुद्र के स्तर को भी बढ़ा रही हैं। अति गर्मी से पानी बढ़ रहा है। समुद्र का स्तर बढ़ने से समुद्र तट पर बसे शहरों में बाढ़ आने और तटीय पारिस्थितिक तंत्र जैसे दलदल और मार्श नष्ट होने का खतरा है। भूमण्डलीय तापन से फसलों का पूर्व परिपक्वन बढ़ा है और अनाज के आकार और फसल की मात्रा में कमी आई है।

प्रश्न 9. पर्यावरणविद ऐसा क्यों सोचते हैं कि समुद्री मछलियाँ कम हो जाएंगी, यदि हम इसके प्रति सावधान नहीं हुए ?
उत्तर- भूमण्डलीय तापन, अम्लीय वर्षा और बहुत सारे अपशिष्टों को समुद्र में फेंकने से समुद्री जीवों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, यदि हम सावधान नहीं रहेंगे तो समुद्री मछलियाँ कम हो जाएंगी। अम्लीय वर्षा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाती है। भूमण्डलीय तापन के कारण समुद्री मछलियाँ पृथ्वी के उत्तरी ठंडे भागों की तरफ चली जाती हैं, जिससे दूसरी मछलियाँ तैरते हुए महासागरों में सबसे गहरे स्थानों में जाती हैं। पृथ्वी के उत्तरी ठंडे क्षेत्रों में मछलियों की कुछ प्रजातियाँ बस गई हैं।

छोटी मछलियाँ स्थान बदलने में अधिक सक्षम हैं, लेकिन बड़ी मछलियाँ ऐसा नहीं कर सकतीं; इनमें से कुछ मर चुके हैं, और कुछ और भी मरने के कगार पर हैं। समुद्री मछलियाँ समुद्र किनारे रहने वालों द्वारा कूड़ा-करकट और अपशिष्टों को फेंकने के कारण भी खत्म होने वाली हैं। नदियों द्वारा कृषि क्षेत्रों से बहने वाला पानी, जिसमें कीटनाशक और उर्वरक होते हैं, और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा उत्पादित कूड़ा-करकट समुद्र में फेंके जाने वाले अपशिष्टों में शामिल हैं। उर्वरक, जो शैवाल और अन्य जीवों को देते हैं, समुद्री जीवन को खतरे में डालते हैं। तेल रिसाव और तेल की पर्त बनने से समुद्री जीवन भी नष्ट होता है।

प्रश्न 10. टिप्पणी लिखिए-
(i) खनन और पर्यावरणीय अवक्रमण
(ii) अम्लीय वर्षा
(iii) भूमण्डलीय तापन और ग्रीन हाऊस प्रभाव
(iv) जैव विविधता की क्षति

उत्तर- (i) खनन और पर्यावरणीय अवक्रमण – खनन फसलों को नुकसान पहुंचाता है, प्राकृतिक संसाधन कम होते हैं, कूड़ा इकट्ठा होता है और भूमि अवतलन को बढ़ावा देता है। खनन मृदा अपरदन करता है। इससे उस क्षेत्र के जीव-जंतु समाप्त हो जाते हैं। खनन से प्राप्त धातुओं और खनिजों को प्राकृतिक संसाधनों से सीमित क्रिया से बाहर निकालना चाहिए, नहीं तो वे समाप्त हो जाएंगे। भारत खनिज संपत्ति से संपन्न है। मिल जाएँ। ऐसा लगता है। क्योंकि लैड, एलुमीनियम, ताँबा तथा लोहे के अयस्क, साथ ही चाँदी, टिन, जिंक और प्रचुर मात्रा में यहाँ मौजूद हैं, पूरी तरह से खत्म हो रहे हैं। खनिज निष्कर्षण के दौरान खोदकर निकाले गए खुले हुए अवशिष्ट पदाथों को पास की जमीन पर डालकर छोड़ दिया जाता है। खनिज अपशिष्टों के ढेर से भूमि का एक बड़ा हिस्सा घिर जाता है, और अपशिष्टों के मलबे से मृदा अपरदन होता है। अतिरिक्त खनन भी भूस्खलन का कारण बनता है।

(ii) अम्लीय वर्षा –H2SO4 तथा HNO3 की उपस्थिति से अम्लीय वर्षा होती है। उद्योगों में तेल और कोयला जलाने से SO2 (सल्फर डाइआक्साइड) और मोटर वाहनों से NOx (नाइट्रोजन के आक्साइड) उत्सर्जित होते हैं। ये हवा में मिलकर अम्ल बनाते हैं। पानी की वाष्प में घुलकर अम्लीय वर्षा H2SO4 तथा HNO3 बनाते हैं, इसलिए उनका pH 20 तक पहुँच जाता है। pH शुद्ध वर्षा 5.6 है। जब अम्लीय बर्फ पिघलती है, पानी जल स्रोतों में प्रवेश करता है और उन्हें अम्लीय बनाता है। अम्लीय जल जलीय पौधों को मार डालता है। अम्लीय वर्षा भी पौधों के लिए घातक होती है और भवनों, संगमरमर के सामान और पुरातत्त्वीय इमारतों को खराब करती है।

(iii) भूमण्डलीय तापन और ग्रीन हाऊस प्रभाव – भूमण्डलीय तापन की वजह से समुद्री स्तर बढ़ा है। औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से बड़ी मात्रा में कार्बन डाई आक्साइड वायुमंडल में मिलती जा रही है, जो जीवाश्मीय ईंधनों के जलने से होता है। ग्रीन हाऊस प्रभाव में इन्फ्रारेड किरणों का अवशोषण और उत्सर्जन होता है, जिससे वायुमण्डल में CO2 के बढ़ते सांद्रण ऊष्मीय विकिरणों को पृथ्वी से बाहर जाने से रोकते हैं। भूमण्डलीय तापमान बढ़ता है क्योंकि वायुमण्डलीय CO2 सांद्रण बढ़ता है। भूमण्डलीय तापन के कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और बर्फ की चोटी पिघल रही है। ध्रुवीय बर्फ की चोटियाँ भी पृथ्वी का तापमान बढ़ा रही हैं। अति गर्मी से पानी बढ़ रहा है। समुद्र का स्तर बढ़ने से समुद्र तट पर बसे शहरों में बाढ़ आने और तटीय पारिस्थितिक तंत्र, जैसे मार्श और दलदल, नष्ट होने का खतरा है। भूमण्डलीय तापन से फसलों का पूर्व परिपक्वन बढ़ा है और अनाज के आकार और फसल की मात्रा में कमी आई है। औद्योगिकीकरण और जीवाश्मीय ईंधन जलाने से वातावरण में ग्रीन हाऊस गैस की मात्रा बढ़ी है। जैसे – CO2 मीथेन, CFC तथा नाइट्रस ऑक्साइड आदि ।

(iv) जैव विविधता की क्षति – कई पौधे और जंतु नष्ट हो गए हैं क्योंकि वन उनके आवास थे, और बहुत से महत्वपूर्ण पेड़-पौधे हमेशा के लिए समाप्त हो गए हैं। कुछ जीव मरने के कगार पर हैं। बढ़ती जनसंख्या, वनोन्मूलन, प्रदूषण और ग्रीन हाऊस प्रभाव जैव विविधता को नुकसान पहुंचाते हैं।

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