क्लीनर प्रौद्योगिकी के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. ‘क्लीनर टेक्नोलोजी’ को परिभाषित कीजिए । इस तथ्य के प्रबंधन का मुख्य लक्ष्य क्या है?
उत्तर- औद्योगिक अपशिष्टों की मात्रा को कम करके, “क्लीनर तकनीक” पर्यावरण को बचाता है। इस तथ्य के प्रबंधन का मुख्य लक्ष्य औद्योगिक निर्माण प्रक्रियाओं को अधिक स्वच्छ बनाना है। स्वयं प्रकृति को देखकर उसे नए रूप में बदलना है। प्रकृति में, एक प्राणी अपशिष्ट या कूड़ा-करकट को खाता है। इस प्रणाली से पृथ्वी के पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं और पुनः प्रयोग किए जा सकते हैं। क्लीनर तकनीक में साधन की पुनः प्राप्ति, बचे हुए अपशिष्टों का प्रयोग और अपशिष्टों का पुनः प्रयोग शामिल हैं।
प्रश्न 2. मुख्यतः छह प्रकार के अपशिष्टों का उत्पादन होता है, उनके नाम की सूची बनाइए ।
उत्तर- (i) औद्योगिक ठोस अपशिष्ट-लोहे और स्टील के उद्योगों से कोयले की राख, मिट्टी से धातु मल का निर्माण आदि ठोस अपशिष्ट निकलते हैं।
(ii) धातु बहिस्रव के मुख्य उत्पादक- सीमेंट, तापीय धातुएँ निष्कासित होते हैं। बिजलीघर, लोहा व स्टील तथा फर्टिलाइजर बनाने वाले उद्योगों से
(iii) नगरपालिका का अपशिष्ट घरों, सब्जी मंडियों में छोड़ी गई बेकार सब्जी व प्लास्टिक पदार्थ, इमारतों के अपशिष्ट, जैविक औषधीय अपशिष्ट आदि होते हैं। ये ठोस अपशिष्ट होते हैं।
(iv) नगरपालिका का द्रव अपशिष्ट होटलों व घरेलू कॉलोनियों से प्रवाहित मल व कचरा द्रवीय अपशिष्ट होता है।
(iv) औद्योगिक द्रव अपशिष्ट उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषित पानी बिना किसी उपचार प्रक्रिया के नदियों – झरनों में छोड़ दिया जाता है, जिससे यह न केवल जलीय संसाधनों को प्रदूषित करता है बल्कि जलीय जीवन व पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव डालता है।
(vi) गैसीय अपशिष्ट – औद्योगिक संस्थानों द्वारा निकलने वाली गैसों को पूर्ण रूप से प्रयोग में नहीं लाया जाता जो पर्यावरण के लिए एक खतरा है।
(vii) रेडियोएक्टिव अपशिष्ट – नाभिकीय बिजलीघरों से उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट को रेडियोएक्टिव अपशिष्ट कहते हैं। ये संकटदायी और गैर संकटदायी दोनों प्रकार के अपशिष्ट हो सकते हैं।
प्रश्न 3. अपशिष्ट प्रबंधन के तीन ‘R’ का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर- अपशिष्ट प्रबंधन के तीन R का अर्थ है- रिडक्शन (मात्रा कम करना), रियूज-(पुनः प्रयोग) तथा रिसाइकल (पुनर्चक्रण)
(i) रिडक्शन (मात्रा कम करना) – उपभोग मात्रा में कमी व पदार्थों को नए ढाँचे में ढालने की प्रक्रियाएँ अपशिष्टों के उत्पादन को कम करने का तरीका है। उपलब्ध संसाधनों में निम्न प्रकार से कमी लाई जा सकती है-
• उपभोग की वस्तु को तभी खरीदें, जब उसकी आवश्यकता हो।
• पदार्थों के निर्माण की प्रक्रियाओं को नई बनावट के ढाँचे में इस प्रकार ढाले कि कम सामग्री व ऊर्जा का प्रयोग हो जैसे कम पैट्रोल में अधिक किलोमीटर चलने
• अपशिष्टों को कम मात्रा में उत्पन्न करने के लिए निर्माण प्रक्रियाओं को नए ढाँचे में ढालना ।
• ऐसे पदार्थों को बनाना, जिनका पुनः प्रयोग व पुनर्चक्रण संभव हो।
• ऐसे पदार्थों का निर्माण करना जो अधिक लंबी अवधि तक कायम रहें।
• पैकिंग सामग्री का कम प्रयोग तथा पुनः प्रयोग होने वाली पैकिंग का प्रयोग ।
(ii) रियूज (पुनः प्रयोग ) – पुनः प्रयोग का अर्थ है सामग्री को बार-बार स्वच्छ करके उसका पुनः प्रयोग करना तथा पदार्थों की जीवन अवधि को लंबा करना। प्रदूषण और अपशिष्ट के स्तर में कमी करने के लिए पदार्थों का पुनः प्रयोग करना चाहिए। इससे संसाधनों के प्रयोग में भी कमी होती है।
• पुनःप्रयोग प्रणाली कम अपशिष्ट पैदा करती है। कच्ची सामग्री और ऊर्जा का प्रयोग और प्रदूषण दर घटते हैं। इससे पैसे भी बचते हैं; उदाहरण के लिए, पुरानी इमारतों से ईंटों का पुनः प्रयोग, पुरानी गाड़ी के अलग-अलग भागों का पुनः प्रयोग, आदि।
• भारत में कपड़े के नैपकीन, गिलास और धातु के बर्तनों का निरंतर प्रयोग होता था । पर आजकल टिश्यू पेपर आदि का उपयोग करके तुरंत फेंक दिया जाता है, जिससे अपशिष्टों की मात्रा बढ़ती है। अपशिष्टों को कम करने के लिए, पुराने जमाने की तरह धातुओं और कपड़े के नैपकीन का पुनः प्रयोग करना चाहिए, साथ ही एल्युमीनियम की पन्नी, प्लास्टिक के बर्तन और टिश्यू पेपर का प्रयोग करना चाहिए।
(iii) रिसाइकल (पुनर्चक्रण) – अपशिष्टों को इकट्ठा करके उन्हें उपयोगी पदार्थों में बदलने की प्रणाली को पुनर्चक्रण कहते हैं, जिन्हें फिर से बेचा जा सकता है व पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है।
• जीवाणु जैविक अपशिष्ट को खाद या कम्पोस्ट में बदल सकते हैं। इस तरह, वे खाद के रूप में फिर से जमीन में डाले जा सकते हैं।
पुराने अखबारों को नए अखबारों की सामग्री में बदलना, पुराने एल्युमीनियम के डिब्बों को नए एल्युमीनियम के डिब्बों में बदलना आदि उदाहरण प्राथमिक पुनर्चक्रण में शामिल हैं।
• द्वितीयक पुनर्चक्रण एक घटना है जिसमें अपशिष्टों को अन्य प्रकार के पदार्थों में बदल दिया जाता है। जैसे गाड़ी के पहियों को काटकर सड़क की ऊपरी सतह में निर्माण सामग्री के रूप में प्रयोग करना।
प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या कीजिए-
(a) थ्रो अवे अर्थव्यवस्था,
(b) बायो- रेमेडियेशन,
(c) इको लेबलिंग,
(d) इको मार्क ।
उत्तर- (a) थ्रो अवे अर्थव्यवस्था ( बाहर फेंको अर्थव्यवस्था) — उपयोग करो और फेंको अर्थव्यवस्था बहुत अधिक अपशिष्ट पैदा करती है, जैसे टिशू पेपर का उपयोग। आजकल हम पुनः प्रयोग में लाए जाने वाले कपड़े के रूमाल की जगह कागज के टिश्यू पेपर का प्रयोग करते हैं और उसे तुरंत फेंक देते हैं। धातु से बने बर्तनों की जगह कपों या पेपर की प्लेटों का इस्तेमाल करते हैं। ये सब कूड़ा जमा करते हैं, जो पर्यावरण को खतरा बनाता है। यदि पदार्थों को नई बनावट से बनाया जाए, जिससे कच्ची सामग्री लंबे समय तक उपलब्ध रहेगी, उनकी मरम्मत आसान होगी, उन्हें पुनः बनाया जा सकेगा और वस्तु अच्छी रहेगी।
(b) बायो रेमिडियेशन ( जैविक प्रतिविधान ) – जैविक प्रतिविधान में, संकटदायी अपशिष्टों और प्रदूषण को कम करने के लिए जीवित जीवों, जैसे पौधे या पशु बैक्टीरिया का उपयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य अपशिष्टों को किसी अन्य उपयोगी वस्तु में बदलना है। जैविक अपशिष्टों को एक गड्ढे में भरकर खाद या कम्पोस्ट बनाया जा सकता है, जो मृदा को उपजाऊ बनाने में प्रयोग किया जा सकता है। जैविक प्रतिविधान स्वयं भी काम करते हैं, जैसे बैक्टीरिया और एंजाइम, जो विषैले पदार्थों को नष्ट करने या एक मिश्रण में बदलने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
(c) इको लेबलिंग (पर्यावरणीय अंकन) – उपभोक्ताओं को सही खरीद करने में दीर्घोपयोगी प्रक्रियाओं द्वारा संसाधनों का निष्कर्षण और पर्यावरण के लिए फायदेमंद पदार्थों का अंकन मिलता है। पदार्थ का अंकन कंपनियों को हर पदार्थ बनाने में मदद करता है, जिससे ग्राहकों को सही पदार्थों का चयन करना आसान होता है। पर्यावरणीय अंकनों का उपयोग करके यह पता लगाया जा सकता है कि खाद्य उत्पादों में संपोषित प्रक्रियाएं हुई हैं या नहीं।
(d) इको मार्क- भारत सरकार की पर्यावरण अंकन नीति अधिक शुद्ध निर्माण प्रथा का समर्थन करती है। पदार्थों में इको-अंकन लेबल प्रदान करने के मापदंड में अधिक साफ-सुथरी निर्माण प्रक्रियाओं पर जोर दिया जा रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक मिट्टी का घड़ा वाले इको लेबल को प्रमाणित किया है। जो दिखाता है कि यह पदार्थ पर्यावरण के लिए किसी भी तरह से घातक नहीं है। वह मिट्टी से निकलता है और मिट्टी में लीन हो जाएगा। वह मिट्टी में ही पैदा होता है और किसी भी प्रकार वातावरण को खराब नहीं करेगा।
प्रश्न 5 तीन ऐसे उदाहरण दीजिए जिनके अनुसार पदार्थों या प्रक्रियाओं को नए तरीके की बनावट द्वारा अपशिष्टों के निर्माण को कम किया जा सकता है?
उत्तर – पुनर्चक्रण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें अपशिष्टों को एकत्रित कर उन्हें उपयोगी पदार्थों में बदला जा सकता है, उन्हें फिर से बेचा जा सकता है या पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है। जैसे-
• ईंधन कुशल कार का प्रयोग कर पैट्रोल व पैसे की बचत की जा सकती है।
• क्लोरीन रंजक के स्थान पर हाइड्रोजन पेरोक्साइड का पेपर बनाने में उपयोग करके अपशिष्टों की मात्रा कम की जा सकती है।
• जीवाणु जैविक अपशिष्टों को गड्ढे में डालकर कम्पोस्ट बना सकते हैं। इस प्रकार, वे फिर से जमीन में खाद बन सकते हैं।
• खराब सामग्री को नए उपयोगी पदार्थों में बदल सकते हैं, जैसे पुनर्चक्रित कागज शीशा, प्लास्टिक, स्टील आदि।
प्रश्न 6. प्राथमिक पुनर्चक्रण और द्वितीय पुनर्चक्रण शब्दों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- प्राथमिक पुनर्चक्रण में अपशिष्टों को नए पदार्थों में बदल दिया जाता है. उदाहरणों में, पुराने रद्दी अखबारों को नए अखबारों की सामग्री में बदल देना, पुराने एल्युमीनियम के डिब्बों को नए एल्युमीनियम के डिब्बों में बदल देना या कूड़े को पुराने प्लास्टिक के लिफाफों में बदल देना शामिल है। द्वितीयक पुनर्चक्रण में अपशिष्ट को सड़क की ऊपरी सतह की निर्माण सामग्री में बदल दिया जाता है। कागज के बोर्ड का उत्पादन कागज की लुगदी उद्योग से निकले छोटे-छोटे रेशों से होता है।
प्रश्न 7. ईंधन चक्र के चरणों का उल्लेख कीजिए तथा यह भी बताइए कि वे कैसे खतरों का कारण बनते हैं?
उत्तर- खनन क्रिया, यातायात, नाभिकीय शक्ति तथा ऊर्जा उत्पादन ईंधन चक्र का हिस्सा हैं। यूरेनियम की कच्ची धातु भूमि में नीचे की खानों से खनन करके निकाली जाती है। यह कच्ची धातु रेत से चकनाचूर हो जाती है और एक विलायक के साथ उसका सांद्र बनाया जाता है। फिर उसे फैक्टरी में भेजा जाता है, जहाँ उसे ईंधन के गोलों में बदलकर छड़ों में बदल दिया जाता है। विस्फोट के खतरे को कम करने के लिए, इन छड़ों को फिर से रिएक्टर के केंद्र में लगाया जाता है। इस अभिक्रिया में बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जो पानी को वाष्प बनाने के लिए उबालती है। यही वाष्प टर्बाइन को हिलाकर बिजली बनाती है।
इस क्रिया में ऊष्मा के अलावा कई नए रेडियोएक्टिव तत्त्व भी बनाए जाते हैं। ये रेडियोएक्टिव पदार्थ घातक हैं। यूरेनियम की कच्ची धातु और उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट मरुस्थलों में पड़े रहते हैं क्योंकि उनका कोई सुरक्षित स्थान नहीं है। वे वायु के साथ उड़ते हैं और वर्षा के साथ मिलकर हजारों वर्षों तक रेडियोएक्टिव गैस को बाहर निकालते हैं। नाभिकीय ईंधन के चक्रण के कई केन्द्रों पर नाभिकीय प्रदूषण हो सकता है और नाभिकीय उद्योगों से विकिरण की किरणें निकल सकती हैं।
प्रश्न 8. सन् 1979 व 1986 में हुई दो नाभिकीय दुर्घटनाओं का संक्षेप उल्लेख कीजिए, जिसमें उसके कारण, प्रभाव व बचाव की विधियाँ भी हों।
उत्तर- सन् 1979 की थ्री माइल आइलैंड (अमरीका) – यह घटना अमरीका के थ्री माइल आइलैंड में 14 मार्च 1979 को हुई थी। इससे रेडियोएक्टिव गैसें उत्सर्जित हुईं, जिसमें रेडियोएक्टिव आयोडीन वातावरण में मिल गईं। यह एक पानी का रिएक्टर था जिसमें मुख्य पम्प टूट गया था। इसके साथ-साथ अन्य पम्प भी बन्द हो गए तथा बिजली का उत्पादन करने वाली टरबाइन रुक गई। आपातकालीन वातानुकूलित रिएक्टर पर कार्य करके ऊष्मा को नीचे किया जा सकता था। वातानुकूलन चालू तो हो गया परंतु रिएक्टर को ठंडा न कर पाया क्योंकि बिजली का मीटर खराब था । इस उच्च तापमान ने केन्द्र को पिघला दिया और नाभिकीय संबंधी बड़ी दुर्घटना घट गई।
सन् 1986 में चेरनोबिल ( यूक्रेन) – 25 अप्रैल 1986 को चेरनोबिल (यूक्रेन) में यह घटना हुई। यह घटना एक परीक्षण के दौरान हुई, जिसका उद्देश्य था पता लगाना कि वाष्प को बंद करने से कितनी बिजली का उत्पादन होगा। इस स्थिति में भी टरबाइन चलती रहेगी, ऐसा लगता था। वाष्प उत्पादन को कम करने के लिए वातानुकूल व्यवस्था को हाथों से बंद किया गया। परीक्षण के साथ-साथ रिएक्टरों में ऊर्जा का स्तर दो हजार गुना बढ़ा। ईंधन के छड़ टूट गए, जिससे वाष्प बन गया और रिएक्टर की छत पूरी तरह नष्ट हो गई। यह एक नाभिकीय दुर्घटना थी, जो कैंसर का खतरा बढ़ाती थी। नियंत्रण और प्रतिरक्षा—इन रिएक्टरों से नाभिकीय रिसाव से बचने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
रिएक्टर मशीनों का डिजाइन ऐसा होना चाहिए कि खतरे की स्थिति में ये मशीन अपने आप चलने बंद हो जाएँ। इन नाभिकीय तापीय संयंत्रों में बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिसमें से दो तिहाई व्यर्थ ऊष्मा बन जाती है। महँगे वातानुकूलक उपकरणों का निर्माण और संचालन व्यर्थ ऊष्मा के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए होता है। नाभिकीय तापीय संयंत्रों के निर्माणघरों को गंभीर परिस्थितियों में उन्हें ठंडा करने के लिए तुरंत पानी मिलने के लिए अधिकतर तालाबों, नदियों और समुद्रों के आसपास बनाया जाना चाहिए।
प्रश्न 9. नाभिकीय अपशिष्टों का निपटान करने के लिए पाँच प्रकार के स्थलों का नाम बताइए ।
उत्तर – नाभिकीय अपशिष्टों के निपटान के लिए उन्हें गहरी पानी तालिका के नीचे दबा देना चाहिए, धीरे बहते हुए भूमिगत जल के नीचे, ऐसे क्षेत्रों में जहाँ कुछ भी नुकसान का खतरा न हो, अंतरिक्ष में सूर्य की ओर फेंक देना चाहिए, बर्फीले प्रदेशों में बर्फ की तह के नीचे आदि ।
प्रश्न 10. एक पदार्थ की जीवन-चक्र समीक्षा के तथ्य की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – LCA और जीवन-चक्र समीक्षा एक ऐसा तथ्य है, जो किसी पदार्थ का संपूर्ण जीवन-चक्र समझने का प्रयत्न करता है । पदार्थ के जीवन-चक्र के सब चरणों का रूप है-कच्चे पदार्थ को निकालना, पदार्थों का परिवहन, उत्पादन में पदार्थ का प्रयोग तथा काम में आने वाले पदार्थ का निपटारा आदि। जीवन-चक्र समीक्षा एक व्यवस्थित विधि से की जाती है-
(i) लक्ष्य या मंजिल,
(ii) सूचिका का विश्लेषण,
(iii) प्रभाव की समीक्षा.
(iv) सही मानक निकालना।
जीवन-चक्र समीक्षा निर्णायकों को उन पदार्थों या प्रक्रियाओं जिनका पर्यावरण पर का चयन करने के लिए प्रोत्साहित करती है जिनका पर्यावरण पर तक हुए पर्यावरणीय प्रभावों के स्थानांतरण की पहचान करते हैं ।
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