जल संचयन के तरीके के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. हमें वर्षा के पानी का संचयन क्यों करना चाहिए?
उत्तर- वर्षा के पानी के संचयन का मतलब है कि उसे एकत्रित करके रखना चाहिए, नहीं तो वह बहकर सीवर में जाएगा। हमारे देश में सूखे की अवधि बहुत लंबी होती है। सूखे मौसम में हमें झील, भूमिगत जल और जलाशयों में संगृहीत पानी चाहिए। पानी की माँग के साथ-साथ ये स्रोत भी अपर्याप्त हो रहे हैं, इसलिए हमें सूखे के मौसम में अधिक से अधिक वर्षा जल को संग्रहीत करने की कोशिश करनी चाहिए। स्थानीय वर्षा जल को भूमिगत जल के पुनर्भरण से या जलाशयों, टैंकों या झीलों में संग्रहीत करके रखना संभव है। ये सरल उपाय पानी की आपूर्ति बढ़ाते हैं। बढ़ती जनसंख्या की जल आपूर्ति के लिए सतही जल कम है, इसलिए वर्षा जल का संचयन महत्वपूर्ण है। हम भूजल पर निर्भर हैं। वर्षा जल के संचयन से जल तालिका और भूजल का स्तर बढ़ता है।
प्रश्न 2. वर्षा जल के संचयन की पारम्परिक विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- वर्षा जल संचयन की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है, और हमारे पूर्वज जल प्रबंधन में कुशल थे। जल संचयन के लिए बहुत सारे उपकरण बनाए गए हैं। पुराने समय में वर्षा जल को सीधे ही संचित किया जाता था, जैसे छत से गिरने वाले पानी को आंगन में बने हौज में एकत्र किया जाता था, जबकि स्थानीय स्तर पर कृत्रिम कुओं में।
पुराने रोम में शहर की पानी की नालियों को घरों और आँगनों से जोड़ने के लिए हौज बनाए गए थे। 3000 ई.पू. के आसपास बलूचिस्तान और कच्छ के कृषक पानी को संगृहीत करके उसका उपयोग सिंचाई के लिए करते थे। अब पानी की माँग बढ़ गई है क्योंकि जनसंख्या बढ़ी है, औद्योगीकरण बढ़ा है और कृषि बढ़ी है। बाँधों, जलाशयों और कुओं के खोदने और निर्माण के माध्यम से जल संग्रहण की कोशिश की जा रही है।
अब जीवनशैली में जल संरक्षण अनिवार्य है। भूमिगत जल पुनर्भरण के लिए जल संग्रहण का विचार समाज में महत्वपूर्ण हो रहा है। जब वन के पेड़-पौधे वर्षा को तितर-बितर करते हैं, पानी धीरे-धीरे जमीन में रिस जाता है, फिर भूमिगत जल कुओं, झीलों और नदियों में जाता है। भारत में नदियों को पूजते हैं। प्राचीन भारत में लोगों का मानना था कि वन नदियों की माताओं हैं, इसलिए वे इन जल स्रोतों को पूजते थे।
प्रश्न 3. प्राचीन भारत में वर्षा के पानी के संचयन की कौन-सी विधियाँ प्रयोग में थीं?
उत्तर- भारत में पानी का संग्रहण बहुत प्राचीन काल से होता आ रहा है। हमारे पूर्वजों ने जल प्रबंधन में माहिर थे। विभिन्न संस्कृतियों के लिए अलग-अलग जल संचयन प्रणालियों का निर्माण किया गया है। ढोलावीरास, गुजरात के रणक्षेत्र में खादीर बेट नामक एक उथले पठार पर स्थित है, पानी संग्रहण का एक अच्छा उदाहरण है। नानेघाट, पुणे से 130 किलोमीटर की दूरी पर, पश्चिमी घाट के निकट सबसे प्राचीन जल-संचयन प्रणाली में से एक है।
व्यापारियों को पेय जल देने के लिए इन पहाड़ों के पत्थर में कई जलाशय खोदे गए थे। प्रत्येक क्षेत्र में जल संग्रहण और संचयन का एक अलग ढांचा था। उन्हें हौजों, तालाबों और कुओं की तरह पत्थर से बनाया जाता था। ये अभी भी काम करते हैं। रायगढ़ सहित कई किले पानी के लिए जलाशय थे। पश्चिमी राजस्थान के कुछ हिस्सों में पुराने घरों में जल संग्रहण के लिए छत थीं। वर्षा जल इन छतों से भूमिगत टैंकों में भेजा जाता था। इस क्षेत्र के सभी किलों, महलों और घरों में अभी भी यह व्यवस्था देखने को मिलती है।
पुराने लोग सीधे वर्षा जल संग्रहण करते थे। अपने-अपने आँगनों में बने जलाशयों में पानी को संग्रहीत करके छतों से बचाकर रखते थे। वर्षा के पानी को खुले क्षेत्रों से एकत्रित करके कृत्रिम कुओं में संग्रहित करके रखते थे। नदियों और झरनों से बाढ़ की स्थिति में आने वाले पानी को एकत्रित करके, वे मानसून के व्यर्थ जाते पानी को एकत्रित करते थे और उसे गैर मानसूनी मौसम में कई प्रकार के जलाशयों में संग्रहीत करते थे।
प्रश्न 4. वर्षा जल का संचयन किस प्रकार जल के अभाव की पूर्ति करने में सहायक होता है?
उत्तर- वर्षा जल का संचयन निम्न प्रकार से जल के अभाव की पूर्ति करने में सहायक होता है-
(i) जल की उपलब्धता में वृद्धि,
(ii) जल तालिका पर नियंत्रण,
(iii) फ्लोराइड, नाइट्रेट और खारेपन के तनुकरण के माध्यम से भूमिगत जल के स्तर में बढ़ोतरी,
(iv) शहरी क्षेत्रों में भूमि के कटाव और बाढ़ों से बचाव,
(v) भूजल स्तर में वृद्धि।
जल पौधों और फसलों के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए कृषि क्षेत्र में जल का संरक्षण भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सिंचाई और जल तालिका की कमी से खारेपन में वृद्धि एक समस्या है। जल पुनर्भरण और संचयन इस समस्या का सही समाधान है। वर्षा जल-चक्र का मुख्य स्रोत है। पानी के दूसरे स्रोत भूजल, झीलें और नदियाँ हैं। ये सब बारिश पर निर्भर हैं। आज, हर व्यक्ति इसी द्वितीयक स्रोत पर निर्भर है।
भारत के मरुस्थलीय और अर्ध-मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण के लिए टैंक बनाए जाते हैं, जो भूमि में खुदाई करके बनाए जाते हैं। राजस्थान में लोग वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए बड़े-बड़े जलाशय (खादीन), बाँध (जोहड़) और अन्य उपायों का उपयोग करते हैं। मानसून मौसम के अंत में इन जलाशयों का पानी पौधों को सींचने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार वर्षा जल संचयन जल की कमी को पूरा करता है।
प्रश्न 5. छतों के ऊपर किए गए वर्षा के पानी के संचयन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-छतों के ऊपर से वर्षा के पानी का संचयन जलाशयों या टैंकों में संग्रहित करता है। कृत्रिम आवेश तकनीक में संचित वर्षा जल को सतह पर बनाए गए टैंकों में एकत्रित किया जाता है। इस जल को घरेलू आवश्यकताओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। पानी की भविष्य की उपलब्धता वर्षा जल संचयन का मुख्य लक्ष्य है। मानसून के बाद संचित जल से काम चलाया जा सकता है। मुख्यतः मरुस्थलीय क्षेत्रों, पहाड़ी क्षेत्रों, तटीय क्षेत्रों और शहरों में जल संचयन महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित कारणों से छतों के ऊपर से वर्षा का पानी निकाला जाता है:-
(i) जल की उपलब्धता में वृद्धि,
(ii) सड़कों शहरों क्षेत्रों में बाढ़ से बचाव व भूमि का कटाव,
(iii) बहने वाले स्रोतों के अवरोध को कम करना,
(iv) भूजल के प्रदूषण में कमी,
(v) घटती हुई जल-तालिका पर नियंत्रण,
(vi) भूजल की गुणवत्ता में सुधार,
(vii) मृदा अपरदन में कमी,
(viii) गर्मियों में घरेलू कार्यों के लिए पानी के अभाव को कम करना।
प्रश्न 6. भूमिगत जल का कृत्रिम पुनर्भरण कैसे होता हैं?
उत्तर- भूमिगत जल का कृत्रिम पुनर्भरण करने के लिए भूमिगत गड्ढे या पिट्स को उथले जलमृत के लिए बनाया जाता है-
जलमृत- यह रेत, पथरीली या चट्टानों की बनी मिट्टी की छिद्रनीय परतें हैं जिनसे प्रचुर मात्रा में जल को उपयोग करने के लिए निकाला जा सकता है। इनका निर्माण एक से दो मीटर की चौड़ाई में और एक से डेढ़ मीटर की गहराई में किया जाता है और जिनको रेत, मिट्टी, कंकड़ों से भी भर दिया जाता है।
खाइयाँ – खाइयाँ जब पारगम्य चट्टानें उथली गहराई पर उपलब्ध होती हैं, बनाई जाती हैं। इसकी चौड़ाई, लम्बाई और गहराई जल की उपलब्धता पर निर्भर करती है।
खुदे हुए कुएं– कुओं का पुनर्भरण ढाँचे के रूप में उपयोग किया जा सकता है। पानी को कुएं में डालने से पहले उसको फिल्टर करना आवश्यक होता है।
हैंडपम्प – यदि जल की उपलब्धता सीमित है, तो हैंडपंपों को उथले/गहरे जलमृतों को पुनर्भरण करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
पुनर्भरण कुएं- अधिक गहरे जलकोषों के पुनर्भरण के लिए 100 से 300mm व्यास के पुनर्भरण कुओं का निर्माण किया जाता है।
पुनर्भरण शाफ्ट– उथले जलकोषों के लिए इनका निर्माण किया जाता है। ये शाफ्ट पत्थरों और मोटी रेत से भरे होते हैं, जिनसे भूजल का पुनर्भरण होता है।
बोर कुओं के पार्श्व शाफ्ट – पार्श्व शाफ्टों का निर्माण एक या दो बार कुओं के साथ होता है। पाश्वं शाफ्ट के पीछे पत्थर और मोटी रेत बिछी होती है।
प्रश्न 7. भारत में वर्षा के पानी के संचयन की सफलता भरी कहानी का विवरण कीजिए।
उत्तर- वर्षा के पानी का संचयन होता है, जिस स्थान पर वर्षा होती है, उसे भविष्य में उपयोग करने के लिए सुरक्षित रखना। वर्षा जल को घरेलू उपयोग और भू-जल के पुनर्भरण के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। वर्षा का बहुत बड़ा हिस्सा बहकर सतही स्रोतों, जैसे नदियों के झीलों में जाता है और वहाँ से समुद्र तक पहुंचता है। वर्षा जल का बहुत सारा जल सतही स्त्रोतों से वाष्पीकरण के रूप में बर्बाद हो जाता है, जिसमें से केवल 8–10% भूजल को पुनर्भरण में उपयोग किया जाता है। वर्षा जल संचयन विधि पर्वतीय ढलानों से सीधे संचय स्रोतों में और छतों के ऊपर से प्राप्त होता है। वर्षा जल को लंबे समय तक खोदे गए गड्ढों, तालाबों, टैंकों और हौजों में रखा जाता है।
राजस्थान में रूपारेल नदी के आसपास का क्षेत्र जल संचयन का एक अच्छा उदाहरण है। यद्यपि इस स्थान पर कम वर्षा होती है, बड़े पैमाने पर वनों के काटे जाने और कृषि क्रियाओं के कारण नदी का जल स्तर गिरने लगा और 1980 के दशक में सूखे की स्थिति होने लगी। तब स्थानीय लोगों ने महिलाओं को वर्षा जल को संग्रहीत करने के लिए जोहड़ और बाँध बनाने के लिए प्रेरित किया। पानी धीरे-धीरे वापिस आने लगा क्योंकि जल संरक्षण और संचयन के सही उपायों का पालन किया गया था। नदी का पुनर्जागरण हुआ, जिससे उसके तट पर रहने वालों का जीवन बदल गया। इससे पता चला कि हमारे द्वारा ही किए गए क्षय को कम किया जा सकता है अगर मानव जाति को कोशिश करनी चाहिए।
प्रश्न 8. वर्षा जल के संचयन के मुख्य लाभों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर- वर्षा एक बहुमूल्य साधन है। जल संचयन से समुदाय की भूमिगत जल पर निर्भरता कम होती है और बाढ़ों की संभावना भी कम होती है। वर्षा जल सिंचाई, वाष्पीकरण, कूलरों, कपड़े धोने और बहुत कुछ करने के लिए अच्छा है क्योंकि भूमिगत जल में कोई कृत्रिम तत्व या खारापन नहीं होता। इससे सख्त तत्वों की गंदगी नहीं जमती और साबुन का प्रयोग भी आसान होता है।
(i) वर्षा जल भूजल को संरक्षित करता है तथा पानी के बिल का व्यय कम करता है।
(ii) स्थानीय बाड़े और सीवेज व्यवस्था आदि से संबंधित समस्याओं को कम करता है।
(iii) भूमि में लवणीय पदार्थों की वृद्धि को बहा देता है और इसका प्रभाव पौधों के बेहतर स्वास्थ्य पर दिखता है।
(iv) भूमि के प्रयोग और सम्पत्ति के रखरखाव की आवश्यकताओं को कम करता है।
(v) विभिन्न कार्यों के लिए अत्यन्त उच्चतम स्तर के पानी को प्रदान करता है।
प्रश्न 9. वर्षा जल के संचयन में काम आए चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- वर्षा जल के संचायन में निम्न चरण होते हैं-
(क) वर्षा के जल को एकत्रित करना- वर्षा जल को घर की छत से, गाड़ी पार्क करने के स्थान से या किसी भी अपारगम्य सतह से इकट्ठा कर संग्रहीत किया जा सकता है। संगृहीत जल घर की नींव से तीन फीट से अधिक दूर नहीं होना चाहिए। इकट्ठा किए गए क्षेत्र पर जल की मात्रा निर्भर करती है।
(ख) संग्रहण- वर्षा जल को संगृहीत करने से पहले उसे छानना या फिल्टर करना जरूरी है। शैवाल वृद्धि या मच्छरों के पैदा होने की संभावना को कम करने के लिए टैंकों और हौजों में रखे पानी को ढककर रखना आवश्यक होता है।
(ग) वितरण – संगृहीत वर्षा जल को सीधे भूमि में या बागों/पार्कों के पौधों तक वितरित किया जा सकता है। बहुत से
लोग पहले वर्षा जल को संचयित करते हैं और फिर नियमित ड्रिप सिंचाई व्यवस्था के माध्यम से वितरित कर देते हैं।
(घ) व्यवस्था का रखरखाव – जल संचयन व्यवस्थाओं को कभी-कभी रखरखाव की आवश्यकता भी पड़ती है। संग्रहण में आने वाले टैंकों व तालाबों को समय-समय पर साफ करना चाहिए।
प्रश्न 10. भारत में वर्षा के पानी के संचयन पर सरकार द्वारा की गई पहल का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर- भारत सरकार ने वर्षा जल संचयन का महत्व समझा और इसके लिए कुछ उपाय करने की सोची। भारत में वर्षा जल का संग्रहण करने को सरकार, कई राज्य सरकारें, गैर सरकारी संगठन और अन्य संस्थान प्रोत्साहित कर रहे हैं। दिल्ली और भारत के कई अन्य शहर जल संचयन करने के लिए कई सरकारी निकायों को निर्देश दिए गए हैं। अब शहरी योजनाकर्त्ता और शहरी अधिकारी जल संचयन को हर नई इमारत में अनिवार्य करेंगे। नई इमारतों को वर्षा के पानी का संचयन करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, तो वे पानी या सीवेज से नहीं जुड़ेंगे। ऐसे नियमों को सभी अन्य शहरों में लागू किया जाना चाहिए ताकि भूमिगत जल के स्तर को बढ़ाया जा सके।
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