NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 29 अलवण जल के संसाधन

NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 29 अलवण जल के संसाधन

NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 29. अलवण जल के संसाधन – आज हम आपको एनआईओएस कक्षा 12 पर्यावरण विज्ञान पाठ 29 अलवण जल के संसाधन के प्रश्न-उत्तर (Fresh Water Resources Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है । जो विद्यार्थी 12th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यह प्रश्न उत्तर बहुत उपयोगी है. यहाँ एनआईओएस कक्षा 12 पर्यावरण विज्ञान अध्याय 29 (अलवण जल के संसाधन) का सलूशन दिया गया है. जिसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 12th Environmental Science 29 अलवण जल के संसाधन के प्रश्न उत्तरोंको ध्यान से पढिए ,यह आपकी परीक्षा के लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 29 Solution – अलवण जल के संसाधन

प्रश्न 1. पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का कितना भाग अलवण जल है ?
उत्तर – पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का लगभग 2.7% भाग अलवण जल है।

प्रश्न 2. पृथ्वी की सतह का करीब तीन चौथाई भाग जल आच्छादित है किन्तु इसका कितना भाग अलवण जल है?
उत्तर – पृथ्वी की सतह का करीब तीन चौथाई भाग जल आच्छन्तु 1400 किमी.’ से अधि अलवण जल है।

प्रश्न 3. अलवण जल के तीन स्रोतों के नाम लिखो ।
उत्तर- अलवण जल के तीन मुख्य स्रोत- झीलें, नदियाँ व भूमिगत जल हैं।

प्रश्न 4. इस्तेमाल किए जाने वाले पानी को संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर- इस्तेमाल किए जाने वाले पानी को संशोधन की आवश्यकता इसलिए पड़ती है क्योंकि जल का प्रयोग पीने, नहाने, कपड़े धोने, सफाई आदि में किया जाता है और समुदाय के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी पानी का संशोधन आवश्यक है।

प्रश्न 5. जल संशोधन के विभिन्न चरणों के नाम बताइए ।
उत्तर – जल संशोधन के विभिन्न चरण निम्न हैं-
(i) विशुद्धिकरण-अवसादन, स्कंदन एवं ऊर्णन
(ii) विसंक्रमण – क्लोरीनेशन, ओजोन

प्रश्न 6. फ्लूरोसिस क्या है?
उत्तर- फ्लूरोसिस एक फ्लोराइड लेने से होने वाला रोग है, जो कि व्यक्ति को अशक्त बनाने वाला एवं कष्टदायी रोग है।

प्रश्न 7. सामुदायिक स्तर पर जल से आयरन को किस प्रकार अलग किया जाता है?
उत्तर – सामुदायिक स्तर पर जल से आयरन को वायु मिश्रण अभिक्रिया सह निःसादन एवं निस्यंदन प्रक्रिया के क्रमबद्ध चरणों का प्रयोग करके अलग किया जाता है।

प्रश्न 8. यदि आर्सेनिक युक्त जल का सेवन किया जाए तो इससे क्या हानियाँ होती हैं?
उत्तर – यदि आर्सेनिक युक्त जल का सेवन किया जाए तो इससे विभिन्न प्रकार के त्वचीय विकार, यहां तक कि कैंसर भी हो सकता है।

प्रश्न 9. ‘जल गुणवत्ता’ का क्या अर्थ है?
उत्तर – जल गुणवत्ता जल की भौतिक, रासायनिक या जैविक विशिष्टताएँ हैं, जिनके द्वारा उपयोग करने वाला जल की स्वीकारात्मकता का मूल्यांकन कर सकता है।

प्रश्न 10. जल गुणवत्ता की अवधारणा, जल के उपयोग के प्रयोजन से अलग है, इसे एक उदाहरण देकर समझाइए |
उत्तर – जल गुणवत्ता का संबंध जल की भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणवत्ता पर आधारित मानव स्वास्थ्य के लिए विषालु पदार्थों को हटाने से है। जल आपूर्ति के लिए पूरी तरह से शुद्ध एवं पीने योग्य पानी को अपशिष्टों को घटाकर पानी को शुद्ध बनाया जा सकता है।

प्रश्न 11. हमारे देश के दो मुख्य जल गुणवत्ता के मुद्दे क्या हैं? नाम लिखिए।
उत्तर – हमारे देश में पूरी तरह से शुद्ध एवं पेयजल की कमी है। जल में रोगजनक प्रदूषण, ऑक्सीजन अपक्षय आदि हैं।

प्रश्न 12. सुपोषण क्या है?
उत्तर – जल में पोषक तत्त्वों में फास्फेटों एवं नाइट्रेटों की अधिकता होती है। यह जल निकायों में शैवालों की अधिकतम वृद्धि को बढ़ावा देती है, जिसे सुपोषण कहते हैं।

प्रश्न 13. कुछ विशेष जल क्षेत्रों को विशेष सुरक्षा की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर – कुछ विशेष जल क्षेत्रों को विशेष सुरक्षा की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह प्रजातियों के संरक्षण एवं जलीय पर्यावरण की उत्तरजीविता के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 14. जल का एक-एक उपयोग जल को स्रोत से अलग कर एवं जलधारा के रूप में बताइए ।
उत्तर – जल को स्रोत से कर घरेलू जल आपूर्ति एवं सिंचाई के लिए किया जाता है जबकि जलधारा के रूप में जलविद्युत शक्ति, मात्स्यकी एवं नौ संचालन में किया जाता है।

प्रश्न 15. नदियों पर नहरें और बाँध बना लिए जाते हैं, तो इनका क्या लाभ होता है?
उत्तर – नदियों पर नहरें और बाँध बनाने से पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता तथा जल विद्युत उत्पादन होता है।

प्रश्न 16. हमारी नदियों को होने वाले दूरगामी पारिस्थितिकी नुकसान के दो कारण बताइए ।
उत्तर – नदी धाराओं का दिशा परिवर्तन तथा लम्बे समय तक पर्यावरण बदलाव एवं जल प्रदूषण हमारी नदियों को होने वाले दूरगामी पारिस्थितिकी नुकसान के कारण हैं।

अलवण जल के संसाधन के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. पृथ्वी पर अलवण जल के वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर – जल दो प्रकार का है: अलवणीय और लवणीय। महासागरों में लवणीय जल रहता है। अंतरिक्ष से पृथ्वी नीले रंग की दिखाई देती है, इसलिए इसे नीला ग्रह भी कहते हैं। पृथ्वी पर पानी का बदलाव इस नीले रंग को पैदा करता है। पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई भाग पानी से घिरा है, जिसमें 71% महासागरों में है. जीवन के लिए आवश्यक केवल 2.7% जल, पृथ्वी के कुल जल का एक बहुत छोटा हिस्सा है। प्रायः इसकी अधिकांश मा बादलों, बर्फीली चोटियों और हिमखंडों में छिपी हुई है। झीलों और धरती के नीचे के स्रोतों में इस जल का कुछ हिस्सा जमा रहता है। महासागरों का खारा पानी ही पृथ्वी पर अलवण जल का एकमात्र स्रोत है।

वर्षा का लगभग 85% सीधे समुद्रों में गिरता है और कभी पृथ्वी पर नहीं आता। अवक्षेपण के अंतिम हिस्से में से जो धरती पर गिरता है, वह झीलों और नदियों में भर जाता है और नदियों को बहने देता है। इसलिए अलवणीय जल बहुत दुर्लभ और अमूल्य है। पानी का लगभग तीन चौथाई हिस्सा पृथ्वी पर है। जल का कुल क्षेत्र 1400 km से अधिक है, जो 300 मीटर की गहराई तक पूरी पृथ्वी को ढक सकता है।

महासागर इस जल का 97.3% है। 2.14% अलवण जल में से ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के रूप में जमा रहता है, जो 2.7% अलवण जल में से है। झीलों और नदियों का पूरा जल वायुमण्डल में मिट्टी, पेड़-पौधे, पृथ्वी के नीचे स्थित जल और जलीय वाष्प का सिर्फ 0.5% है।
यह उल्लेखनीय है कि महासागरों से वाष्पित जल बादल बनाता है, जो अवक्षेपण के रूप में पृथ्वी पर आता है, इसलिए महासागरों का खारा पानी अलवणीय जल का मुख्य स्रोत है।

प्रश्न 2. भारत में जल स्रोतों के विभाजन के बारे में संक्षेप में बताइए ।
उत्तर- भारत बहुत से पानी के स्रोतों में से एक है मानसून वर्षा, देश के समुद्र तथा नदियों, झीलों और भूमिगत जल। भारत में 1170 मिमी वार्षिक वर्षा होती है। भारत का आकार इससे अधिक है। भारत केवल इस वर्षा (हिमपात सहित) से 400 बिलियन क्यूबक मीटर BCM जल प्राप्त करता है। तीन चौथाई भाग इसमें मानसून से आता है। पेड़-पौधों की वाष्पोत्सर्जन क्रिया और वाष्पीकरण से जल का बहुत बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाता है, जिससे पृथ्वी पर हमारे द्वारा उपयोग करने के लिए बस आधा जल बचता है।

उद्वाष्पन द्वारा जल क्षय के बाद देश की सतह पर कुल जल प्रवाह का अनुमान है 1800BCM। यह अनुमान लगाया गया है कि भौगोलिक, हाइड्रोलॉजिकल और अन्य बाधाओं के कारण केवल 700 BCM सतह से ऊपर के जल को उपयोग में लाया जा सकता है। भूजल स्रोतों में लगभग 600 BCM जल है, जिसमें से 420 BCM वार्षिक रूप से इस्तेमाल होने वाले संसाधनों में खर्च होता है। यहाँ अलवणीय जल के तीन मुख्य स्रोत हैं: झीलें, नदियाँ और भूमिगत जल। नदियों का बहना मौसम से बदलता रहता है

प्रश्न 3. पीने के लिए पानी को किस प्रकार शुद्ध किया जाता है?
उत्तर- जल का शुद्धिकरण प्रदूषित जल से घुले हुए ठोस और गैसों, अवांछित रसायन और जैविक विशुद्धियों को निकालना है। पानी को शुद्ध करने का उद्देश्य संक्रमण से बचाना और उसे पीने योग्य बनाना है। पानी का शुद्धिकरण अन्य उद्देश्यों के लिए भी आवश्यक है, जैसे मेडिकल क्षेत्र में, दवा बनाने के लिए, रसायनिक तथा औद्योगिक कार्यों के लिए और इतना ही। जल को शुद्ध करने के कुछ आम तरीके हैं छानना, सैंड फिल्ट्रेशन और उबालना, साथ ही क्लोरीन का उपयोग विसंक्रमण के लिए किया जाता है। कभी-कभी जल में प्राकृतिक संदूषक जैसे फ्लोराइड आयरन और आर्सेनिक भी होते हैं। फ्लोराइड लगभग हर प्राकृतिक जल में होता है। थोड़ी सार्द्रता घातक नहीं होती, लेकिन हड्डियों को खतरा होता है। इससे हड्डियाँ टूटने लगती हैं, जिससे फ्लूरोसिस होता है।

फ्लोरीन मिले जल को एक बाल्टी में लेकर उपयुक्त मात्रा में सोडियम कार्बोनेट, एलुमीनियम सल्फेट का घोल, चूना तथा ब्लीचिंग पाऊडर मिलाएं. इससे फ्लोराइड को जल से अलग करें। पहले फिटकरी घोल मिलाया जाता है। पानी को बीस मिनट तक हिलाकर चूना या सोडियम कार्बोनेट का घोल डाल दें. फिर पानी को एक घंटे तक स्थिर होने के लिए छोड़ दें। इसके बाद पीने के लिए पानी को नल से निकाला जा सकता है। नीचे गंदगी फेंक दी जाती है। 40 लीटर पानी में, जिसमें फ्लोराइड की मात्रा 2 से 9 मिलिग्राम प्रति लीटर होती है, को आमतौर पर 100 से 600 मिलीग्राम एलुमीनियम सल्फेट का घोल मिलाया जाता है। आयरन को पानी से अलग करने के लिए कच्चे पानी पर कोक, मार्बल या कैल्साइट की परतों के ऊपर वायु मिश्रण डालकर धीरे-धीरे सैंड फिल्ट्रेशन किया जाता है।

पानी में उपस्थित आर्सेनिक बहुत विषाक्त होता है, जिससे कैंसर और कई त्वचा विकार हो सकते हैं। पानी से आर्सेनिक को अलग करने के लिए ऑक्सीकरण, स्कंदन, ऊर्णन, अवसादन और निस्पंदन जैसे प्रक्रियाएं होनी चाहिए। आर्सेनिक को अलग करने के लिए ऐलम और ब्लीचिंग पाऊडर दोनों प्रयोग किए जाते हैं। इसमें तीन चैम्बर हैं। पहले चैंबर में रसायन मिलाया जाता है, फिर मिश्रण को अगले चैंबर, जिसे निःसादन टैंक कहा जाता है, में डाल दिया जाता है, जहां यह दो घंटे तक स्थिर रहता है। धीरे-धीरे एक सैंड फिल्टर स्थिर स्वच्छ पानी को छाता है आर्सेनिक फिल्टर किए गए पानी में बहुत कम होता है।

प्रश्न 4. पानी को पीने के लिए शुद्ध करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर – पानी स्वाभाविक रूप से एक बहुमूल्य संसाधन है। औद्योगिकीकरण और बढ़ती आबादी ने पानी की जरूरत का क्षेत्र काफी बढ़ाया है। पानी का बहुत सारा उपयोग होता है, जैसे पेयजल, स्नान और मनोरंजन, सिंचाई और अन्य कृषि उपयोग, औद्योगिक कार्य, मत्स्य पालन और वन्य पशुपालन, पावर संयंत्रों में शीतलता, कचरे का निपटान और नौकायन। पीने का पानी सबसे शुद्ध होना चाहिए, लेकिन कचरा निपटाने के लिए किसी भी प्रकार का पानी उपयोग किया जा सकता है। पानी की उपलब्धता कम है और मांग अधिक है, इसलिए विश्व भर में पानी की गुणवत्ता प्रबंधन अनिवार्य है।

2007 की WHO की रिपोर्ट के अनुसार 1.1 करोड़ लोगों को स्वच्छ पानी की आवश्यकता है; 4 करोड़ में से 88% लोगों को अस्वच्छ जल पीने के कारण डायरिया की शिकायत है और 1.8 लाख लोग डायरिया से मर जाते हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार स्वच्छ जल पीने से डायरिया के 94% रोगी ठीक हो सकते हैं। पानी को घर में स्वच्छ करने के कई सामान्य तरीके हैं, जैसे उबालकर पीना, क्लोरीन की गोली डालकर, फिल्टर करके, तथा एक बर्तन में एकत्रित करके। स्वच्छ पानी की सप्लाई और उसका सही उपयोग करना विकासशील देशों में जलजनित रोगों से होने वाली मौतों को रोक सकता है। सबके लिए पानी को संशोधित करना होगा।

प्रश्न 5. भूमिगत जल पीने के लिए सुरक्षित क्यों है?
उत्तर- भूमिगत जल पीने योग्य है क्योंकि यह पृथ्वी के भीतर होता है और आसानी से प्रदूषित नहीं किया जा सकता। मृदा एक प्राकृतिक फिल्टर का काम करती है, इसलिए भूजल मुख्यतया जीवों और जल में मिले ठोस प्रदूषकों से मुक्त है। हालाँकि, चट्टानों और मृदा से होकर गुजरने से भूजल में धात्विक पदार्थ घुले हुए हैं।

प्रश्न 6. जल से अतिरिक्त फ्लोराइड को किस प्रकार हटाया जा सकता है?
उत्तर- हमारे देश के कई हिस्सों में जल में पाया गया फ्लोराइड जमीन में पाया जाता है। भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार, पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.0 मिलीग्राम से 1.5 मिलीग्राम तक सीमित है, लेकिन इससे अधिक होने पर शरीर को नुकसान होता है। फ्लूरोसिस नामक एक रोग, जो शरीर की हड्डियों को कमजोर बना देता है, जिससे हड्डियाँ टूटने लगती हैं, फ्लोराइडयुक्त जल पीने से होता है। यदि किसी जल में बहुत अधिक फ्लोराइड है, तो इसे हटाकर घरेलू फ्राइडिंग को सुरक्षित रखना होगा। फ्लोराइड को घरेलू रूप से और सामुदायिक रूप से जल से निकाला जा सकता है।

घरेलू डीफ्लोरीडेशन- घरेलू डीफ्लोरीडेशन प्रक्रिया के लिए 60 लीटर की एक बाल्टी लो. साफ पानी निकालने के लिए नीचे से 3-4 सेमी. ऊपर एक नल लगा हो। बाल्टी में फ्लोरिन मिलाकर जल डालें, फिर उचित मात्रा में फिटकरी-एलुमीनियम सल्फेट का घोल, सोडियम कार्बोनेट या चूना और ब्लीचिंग पाऊडर मिलाएं। फिटकरी घोल को पानी में डालने से पहले, इसे अच्छी तरह मिलाया जाना चाहिए। पानी को दो घंटे तक हिलाकर सोडियम कार्बोनेट या चूने का घोल डाल दें। इसके बाद पीने के लिए पानी को नल में निकाला जा सकता है। नीचे गंदगी फेंक दी जाती है।

सामुदायिक स्तर पर डीफ्लोरीडेशन- नीलगोंडा तकनीक सामुदायिक डीफ्लोरीडेशन के लिए लागू होती है। यह तकनीक नागपुर के नेशनल एनवायरॉनमेंडल रिसर्च इनस्टीट्यूट (NEERI) में विकसित की गई है। रिएक्टर, संप वेल और स्लज ड्राइंग बेड इसमें शामिल हैं।इस तकनीक से जल को कम से कम 200 लोगों के समुदाय में सामूहिक उपायों से संशोधित किया जा सकता है। एक मैकेनिकल एजिटेटर, जो एक इलेक्ट्रिक मोटर या हाथ से चलाया जा सकता है, एक टैंक में लगा हुआ है।

टैंक या पंप में पानी डाला जाता है, फिर आवश्यक मात्रा में ब्लीचिंग पाऊडर, ऐलम, लाइम या सोडियम बाइकार्बोनेट जोड़ा जाता है और लगातार हिलाया जाता है। उन्हें दस मिनट तक धीरे-धीरे हिलाकर दो घंटे तक स्थिर रहने दें। इसके बाद, डीफ्लोरीनेटेड जल को इस प्रकार निकालकर घरों में भेजा जाता है। टैंक के नीचे जमे हुए कचरे या स्लज को निकाला जाता है।

प्रश्न 7. जलधारा में रहते हुए जल के उपयोग से जल की गुणवत्ता किस प्रकार प्रभावित होती है?
उत्तर- शहरीकरण, औद्योगीकरण और बढ़ती जनसंख्या ने जल की मांग को बढ़ा दिया है। इससे जलस्रोतों में जल का स्तर और गुणवत्ता क्रमशः कम हो रहे हैं। विकास, सिंचाई, औद्योगीकरण और बढ़ती जनसंख्या जल की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। जल की गुणवत्ता पर अप्रत्यक्ष तथा अवांछनीय प्रभाव डालने वाली मानव गतिविधियाँ इन निश्चित उपयोगों के अलावा अनेक हैं।

जैसे अनियंत्रित भूमि उपयोग, जंगलों की कटाई, खेतों में कीटनाशकों और पीड़कनाशकों का प्रयोग, ठोस कचरे से विषाक्त तरल पदार्थों का पानी में घुल जाना या बिना संशोधन या आंशिक संशोधन के कचरे का डालना भूमिगत और सतही जल स्रोतों पर भी अनियंत्रित या आवश्यकता से अधिक उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तेमाल दूरगामी प्रभाव छोड़ता है। नहरों और बाँधों के निर्माण से प्राकृतिक जल चक्र में संरचनात्मक हस्तक्षेप होता है, जिससे नदियों से पानी काट लिया जाता है और जलमृतों की अधिक मात्रा मिलती है, जो वातावरण और जल की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाता है।

प्रश्न 8. भारत में जल गुणवत्ता के मुख्य मुद्दे क्या हैं?
उत्तर – भारत में जल गुणवत्ता के मुख्य मुद्दे जल की कमी, रोगजनक प्रदूषण, आक्सीजन का अभाव, सुपोषण, लवणता, विषाक्त प्रदूषण तथा पारिस्थितिक स्वास्थ्य हैं।

जल की कमी– अलग-अलग समय में अलग-अलग जगहों पर वर्षा का असमान वितरण कृषि, औद्योगिक तथा घरेलू गतिवधियों के लिए उपलब्धता से अधिक जल की माँग, जल की कमी का मुख्य कारण है। इसके परिणामस्वरूप कई जल स्रोत साल के अधिकांश समय में सूखे या सिकुड़े रहते हैं।

रोगजनक प्रदूषण – भारत में जल गुणवत्ता का सबसे बड़ा मुद्दा जल संक्रमण है। मुख्य कारण यह है कि बेकार रहने वाले जल में पर्याप्त परिवहन और संशोधन प्रणाली नहीं होती, इसलिए मानव आवासों से निकलने वाले बेकार पानी या गंदे पानी का अधिकांश हिस्सा प्राकृतिक जल में मिलने से पहले किसी भी तरह से परिवर्तित या संशोधित नहीं होता। इससे सतही जल और भूजल दोनों खराब हो जाते हैं। विसरित स्रोतों से रोगजनित रोगाणुओं का योगदान भी महत्वपूर्ण है, इसलिए अधिकांश सतही जल भंडार तथा कई भूमिगत जल स्रोत अशुद्धियों से भर जाते हैं और बीमारियां फैलाने वाले रोगजनकों को जन्म देते हैं।

ऑक्सीजन का अभाव- गंदे जल का एक बड़ा हिस्सा घरेलू स्रोतों से आता है और जल स्रोतों में सीधे डाला जाता है। इस गंदे जल में बहुत सारे जैविक पदार्थ हैं। कृषि आधारित उद्योगों और कई उद्योगों से काफी मात्रा में जैविक पदार्थ निकलता है। पानी में ऑक्सीजन की उपलब्धता काफी सीमित है, इसलिए यह जैविक पदार्थ सूक्ष्मजीवीय प्रक्रियाओं द्वारा ऑक्सीकृत होने पर घुलनशील ऑक्सीजन को ग्रहण कर लेता है. ऑक्सीजन की कमी होने पर जलीय जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।

जीवाणुओं की अधिक संख्या, उनकी कठिन, असहनीय गंध आदि लक्षणों का संकेत ऑक्सीजन की कमी है। ऐसा कीचड़ अक्सर पानी की सतह पर तैरता दिखाई देता है। मानसून में बाढ़ आने पर, नदियों या धाराओं की तह में जमा कीचड़ बहकर ऊपर आता है और तैरने लगता है, जिससे पानी से ऑक्सीजन निकलता है। ऑक्सीजन की कमी के कारण मानसून शुरू होते ही पहली बाढ़ के बाद बहुत सारी मछलियाँ मर जाती हैं।

सुपोषण – कृषि में उर्वरक से बहने वाला पानी, औद्योगिक बहिःस्राव, घरेलू गंदे पानी में जैविक पदार्थ और फॉस्फेट और नाइट्रेट शामिल हैं। इन पोषक तत्त्वों से जल स्रोतों में शैवालों की वृद्धि होती है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है।

लवणता – सतही जल तथा भूमिगत जल दोनों में लवणीयता बढ़ती जा रही है। लवणता से पानी की योग्यता पीने या सिंचाई के लिए कम हो जाती है। यह जल में पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है। सिंचाई वाले कृषि क्षेत्रों में बने हुए नमक का रिसाव औद्योगिक गतिविधियों से बहिःस्राव में उच्च मात्रा में घुलनशील ठोस पदार्थ होते हैं जो पानी की लवणीयता को बढ़ाते हैं।

विषाक्त प्रदूषण – औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले विषाक्त बहि:स्राव एवं कृषि में बढ़ते रसायनों के प्रयोग से जलस्रोतों में विषाक्त पदार्थ मिलते रहते हैं जिसके कारण जल प्रदूषित होता है। विषाक्त पदार्थों की उपस्थिति से पानी की गुणवत्ता में कमी हो जाती है, जिससे यह जलन मानव उपयोग, जलीय जीव-जन्तु तथा सिंचाई के लिए अनुपयोगी हो जाता है।

पारिस्थितिक स्वास्थ्य – जलीय पर्यावरण में कई ऐसे क्षेत्र हैं जो जलीय एवं उभयचर पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं की दुर्लभ प्रजातियों को सहारा देते हैं तथा ये क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से बहुत संवेदनशील होते हैं।

प्रश्न 9. एक कृषि क्षेत्र की गतिविधि जल की गुणवत्ता किस तरह प्रभावित करती है?
उत्तर – कृषि एकमात्र साधन है, जो हर जगह उपलब्ध है, और यह सतही जल और भूजल दोनों को पोषण देने वाला बड़ा स्रोत है। खेती में प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशक जैसे डीडीटी और अन्य सामग्री के उपभोग से जल निकाय प्रदूषित होता है। खेत के उर्वरक और कृषि रसायन, जो पूरी तरह से नहीं प्रयोग किए जाते हैं, मिट्टी के साथ मिलकर जल निकायों में प्रवेश करते हैं। पानी से उन कीटनाशकों को लेकर जलीय जीव खाद्य श्रृंखला से जुड़ते हैं, उनकीटनाशकों से प्रभावित होते हैं और खाद्य श्रृंखला के अंतिम हिस्से तक पहुँच जाते हैं।

प्रश्न 10. जल की गुणवत्ता को कचरा फेंककर किस प्रकार बदला जा सकता है?
उत्तर- औद्योगीकरण, विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका अधिक खर्च वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण होता है। जलस्रोत उद्योगों से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं क्योंकि उद्योगों का गंदा पानी, जिसमें घातक रसायन और जैविक पदार्थ होते हैं, सीधे जलस्रोतों में छोड़ दिया जाता है और जलस्रोतों को प्रदूषित करता है। जल प्रदूषण उद्योगों के बढ़ने के साथ बढ़ता जा रहा है। अपशिष्ट और कचरा जल में ठोस या द्रव रूप में हो सकता है।

जब घरों से निकलने वाला गंदा पानी सतही जल स्रोतों में सीधे मिलता है, तो वह भी प्रदूषित हो जाता है। यह अपशिष्ट पानी को विषाक्त रसायनों और हानिकारक रसायनों से भर देते हैं, जिससे पानी पीने योग्य नहीं रहता और सिंचाई के लिए भी अच्छा नहीं होता। यह जलीय जीवों को मार डालता है। इस प्रकार, अपशिष्ट या कचरा जल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।

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