प्रश्न 6. जल-चक्र में महासागरों की क्या भूमिका है? बताइए |
उत्तर – महासागर जल-चक्र में बहुत महत्वपूर्ण हैं। महासागर पृथ्वी का 97% पानी, 78% भूमंडलीय अवक्षेपण और 86% भूमंडलीय वाष्पन का स्रोत हैं। जल का अनुमानित कुल आयतन लगभग 1.384 मिलियन किमी. है जो जल-चक्र में है। अलवण जल में बर्फ, ध्रुवीय शिखरों और हिमशिखरों का अधिकांश हिस्सा भंडारित रहता है। यदि सारी बर्फ पिघल जाए तो उससे निकलने वाले जल से दुनिया भर की नदियाँ हजारों वर्षों तक निरंतर बहती रहेंगी।
ग्रीन हाऊस प्रभाव और बढ़ती हुई कार्बन डाइऑक्साइड के कारण पर्यावरण में होने वाले जलवाष्प भी महासागरों की सतह से वाष्पित होते हैं, जो महासागरों की सतह को ठंडा करते हैं। ठण्डे होकर बादल बन जाते हैं और फिर वर्षा के रूप में भूमि या पृथ्वी की सतह पर गिरते हैं। फिर से यह जल वाष्पित होता है। जब महासागर से उठी ऊष्मीय वाष्प ठंडी हो जाती है, तो लेटेन्ट ऊष्मा निकलती है, जो भूमंडल में एक पर्यावरणीय चक्र बनाती है। लेटेन्ट ऊष्मा का उत्सर्जन जल चक्र को पूरा करने में सहायक है और भूमंडलीय ऊष्मा शेष के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
प्रमुख भौतिक क्रियाएं जो जल चक्र में महत्वपूर्ण हैं: जल का समुद्री तथा पृथ्वी सतह से वाष्पण, जल वाष्पों का पर्यावरण से उठना, जल का समुद्री तथा पृथ्वी सतह से अवक्षेपण तथा जल का पृथ्वी से महासागरों की ओर परिवहन। महासागरों का लवण नीचे ही रहता है क्योंकि यह हल्के जल वाष्पों से उठता है। जल, जो भूमि और अन्य जल स्रोतों तक पहुंचता है, अलवणीय होता है, इन भंडारों के माध्यम से प्रवाहित होता रहता है और जल चक्र में चलता रहता है।
लेकिन जल अलग-अलग भंडारों में अलग-अलग समय पर एकत्र होता है। नदियाँ और वायुमण्डल कम समय तक रहते हैं, जबकि महासागर, हिम शिखर और ग्लेशियर लंबे समय तक रहने वाले भंडार हैं। जल का एक छोटा सा हिस्सा अतिशीघ्रता से पुनः चक्रित होता है, लेकिन अधिकांश जल लंबे समय तक इसी तरह रहता है।
प्रश्न 7. अवक्षेपण क्या होता है? यह कब बनता है ?
उत्तर- जब पानी निम्न वायुमण्डल में प्रवेश करता है, वह उठती हुई वायु धाराओं द्वारा ऊपर की ओर ले जाया जाता है। वायुमण्डल में ऊँचाई पर जाने पर यह वायु ठंडी हो जाती है, जिससे वाष्प द्रव में बदल जाता है और बादल की बूंदें बनती हैं। ये बूँदें आकार में बढ़कर अवक्षेप करती हैं। बूँदा बाँदी, वर्षा, बर्फ और ओले चार प्रमुख अवक्षेपण हैं। अधिकतम जल समुद्र में वापिस आता है और भूमि पर वर्षा, बर्फ एवं ओले आदि के रूप में पुनः लौट आता है।
वर्षा- वर्षा पानी की बूँदें होती हैं जोकि आसमान से नीचे गिरती हैं। बादलों में वर्षा की बूँदें आपस में मिलकर बड़ी होती जाती हैं तथा भारी (जलवाष्प ) होकर भूमि पर गिर पड़ती हैं, जिसे वर्षा कहते हैं।
बर्फीली वर्षा – जब वर्षा बहुत ही ठंडी जगह से गिरती है। परन्तु बहुत ही ठंड के कारण जम जाती है तथा बर्फ के रूप में गिरती है।
ओले – ओले गिरने का अर्थ है, पानी की बूँदों का ठंडे होकर बर्फ में परिवर्तित होना तथा बर्फ के टुकड़ों के रूप में एक तूफान की तरह गिरना ।
हिमपात – रुई की तरह पानी का बर्फ में परिवर्तित होना तथा बर्फ रूप में गिरना हिमपात कहलाता है।
प्रश्न 8. उन तीन कारकों को बताइए जिनके द्वारा उपयोगी जल की कमी होती जा रही है?
उत्तर- मानव प्रक्रियाओं के कारण वैश्विक जल चक्र में कई प्रकार से बदलाव हो सकता है-
(i) वायु प्रदूषण वैश्विक ऊष्मण के कारण महासागरों और महाद्वीपों पर जलवाष्प की गति बदलता है। अवक्षेपण के तरीके बदलते रहते हैं क्योंकि वे तापमान पर निर्भर करते हैं।
(ii) भूमि की निरंतर स्थितियों में बदलाव से उद्वाष्पन दर बदलती रहती है। शहरीकरण और औद्योगिक विकास ने भूमि सतह को बदल दिया है।
(iii) जल प्रदूषण के कारण नदी की लम्बाई तथा गहराई में परिवर्तन हो रहा है, जिससे नदी प्रवाह भी बदल रहा है।
(iv) जलाशय और बाँधों के निर्माण के कारण भूमिगत जल की मात्रा प्रभावित हो रही है।
इस प्रकार वनोन्मूलन, औद्योगीकरण, शहरीकरण आदि के कारण उपयोगी जल की कमी होती जा रही है।
प्रश्न 9. जल के भूमण्डलीय चक्रण का क्या अर्थ है?
उत्तर- जबकि सूर्य की ऊष्मीय ऊर्जा पूरी पृथ्वी को गर्म करती है, भूमि की सतह पूरी तरह से गर्म नहीं होती। भूमण्डलीय रेखा के पास और ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बफीले क्षेत्रों से अधिक उष्मा है। भूमण्डलीय चक्रण संतुलित नहीं होता क्योंकि कटिबंधों से उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा बर्फीले क्षेत्रों की ओर नहीं जाती, इसलिए कटिबंध बहुत गर्म होते हैं और बर्फीले क्षेत्र ठंडे रहते हैं। लगभग 60% ऊष्मीय ऊर्जा ग्रह पर फैलती है, जबकि 40% महासागरों में फैलती है। इस निरंतर जल-चक्र में वायुमंडल, भूमि और महासागरों के अलग-अलग प्रक्रियाएं होती रहती हैं। ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज वायु गतियाँ वायुमंडल में वाष्प को हवा द्वारा स्थानांतरित करती हैं, जबकि बड़े पैमाने पर धाराओं द्वारा महासागरों में पानी का स्थानांतरण होता है।
इसलिए कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती रहती है और अपने मुख्य अक्ष पर झुकी हुई है, उत्तरी भाग में दक्षिणी भाग से अधिक भूमि है। मानव और पारितंत्र में निरंतर चलने वाली प्रक्रियाओं के लिए अलवण जल का तंत्र सभी जल अवस्थाओं को प्रदान करता है। यह जल को भूमंडलीय स्तर पर ले जाता है।
प्रश्न 10. जल चक्र में प्रयुक्त विभिन्न पदों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर- जल चक्र में तीन प्रमुख प्रक्रम सम्मिलित किए जाते हैं-
(i) उद्वाष्पन एवं उद्वाष्पण-वाष्पोत्सर्जन
(ii) अवक्षेपण तथा
(iii) सतही प्रवाह
उद्वाष्पन एवं उद्वाष्पन वाष्पोत्सर्जन – महासागर पृथ्वी की सतह पर जल के सबसे बड़े भंडार हैं। दैनिक उद्वाष्पन से लगभग 90% वाष्म महासागरों, सागरों, नदियों, झीलों, तालाबों और जलधाराओं से वायुमंडल में प्रवेश करता है। द्वाष्पन गर्म होने पर द्रवीय जल का वापस आना या गैस बनना है। सूर्य यह ऊष्मा उत्पन्न करता है। ऊर्ध्वपातन एक प्रक्रिया है जिसमें पानी ठोस (बर्फ) अवस्था में सीधे वाष्पोत्सर्जन द्वारा जलवाष्प में बदल जाता है, बिना द्रवीय अवस्था ग्रहण किए. इस प्रक्रिया में, कुछ जलवाष्प वायुमण्डल में प्रवेश करता है।
पौधों से वायुमंडल में पानी की लगभग 10% क्षति होती है। वाष्पोत्सर्जन के दौरान पानी को दो चरणों में ले जाया जाता है: पहला, पौधों की जड़ों द्वारा मृदा से परासरण, दूसरा, पत्तियों द्वारा। जबकि उद्द्वाष्पन और वाष्पोत्सर्जन प्रक्रियाओं को अलग करना बहुत मुश्किल है। उद्वाप्पन और चाप्पोत्सर्जन और कष्पोत्सर्जन एक साथ द्वाष्पन और वाच्योरसर्जन हैं। इन तीनों प्रक्रियाओं के एक साथ होने से वायुमण्डल में पूरा जल मिलता है।
अवक्षेषण- जब पानी निम्न वायुमण्डल में प्रवेश करता है, तो वह उठती हुई वायु धाराओं के ऊपर चढ़ जाता है। यह वायु ऊँचाई पर जाने पर ठंडी हो जाती है और जलवाष्प को पकड़े रखने की उसकी क्षमता कम हो जाती है। इससे वाष्प द्रव में बदल जाता है और बूंदें बनती हैं। अवक्षेपण होता है जब ये बूंदें आकार में बढ़ती हैं। बूंदाबांदी, वर्षा, बर्फ और ओले चार प्रमुख अवक्षेपण हैं। इस तरह अधिकांश जल समुद्र में वापस आता है, जबकि भूमि पर वर्षा बर्फ, ओले और अन्य रूपों में वापस आती है।
सतही प्रवाह- जच अवक्षेपण जब वह जमीन पर गिरने लगता है, तो वह कई चरणों से गुजरता है। इसमें से कुछ वाष्प बनकर वायुमंडल में फिर से प्रवेश करता है। भूमिगत जल जमीन में जम जाता है। भूमिगत जल मृदा में दो पते पाए जाते हैं
वातन क्षेत्र – जहाँ पर खाली स्थान पानी से पूरी तरह भर जाते है।
संतृप्ति क्षेत्र- जहाँ हवा और पानी मिलकर खाली स्थान भरते हैं जल तालिका, जो कभी बढ़ती है कभी घटती है, इन दोनों क्षेत्रों के बीच है। जैसे भूमिगत जल स्तर की कमी या बढ़ोतरी इस जल का विकास समुद्र में नदियों और जलधाराओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से होता है। शेष जल सतही बहाव से नदियों और धाराओं में जाता है, फिर समुद्र में मिलता है या फिर अन्य जल स्रोतों में जाता है, जहां से फिर से यह जल चक्र शुरू होता है।
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