प्रश्न 5. ‘पवित्र गुफाओं’ से क्या अर्थ है ?
उत्तर – पवित्र गुफाएं, या पेड़ में बनी गुफाएं, ऐतिहासिक काल से ही धार्मिक महत्व रखती आई हैं। पवित्र गुफा कहते हैं ऐसे स्थान जो बिना किसी हानि के छोड़ दिए जाते हैं। इस क्षेत्र की एक विशेषता है कि इसमें पादप और जीव-जन्तु की विविधता है। भारत के राजस्थान राज्य में बिश्नोई लोगों ने खेजड़ी वृक्षों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। कुछ पवित्र गुफाओं के भीतर जल निकाय हैं। यह क्षेत्र सुरक्षित रखने के लिए शिकार और पेड़ काटने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
वे प्राकृतिक वनस्पति का चित्रण करते हैं। आकार में कुछ पेड़ों से लेकर घने वृक्षों से ढकी जमीन तक, पवित्र गुफाएं हो सकती हैं। आज के समय में ये गुफाएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे प्रकृति का संरक्षण और जैव विविधता प्रदान करते हैं। इन क्षेत्रों में ऐसी स्पीशीज भी मिलती हैं जो गुफाओं से बाहर नहीं होती।
प्रश्न 6. बच्चों को पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर- यह आम बात है कि हमें बचपन से ही अच्छी आदतों व दृष्टिकोणों को ग्रहण करने की कोशिश करनी चाहिए। बचपन में सिखायी गयी अच्छी बातें जीवन भर काम आती है। प्रत्येक बच्चे को पर्यावरण के प्रति आदर भाव को शुरू से एक आवश्यक कर्त्तव्य के रूप में बताना चाहिए। यदि बच्चों को पर्यावरण के मुद्दों के बारे में बताया जाए, तो वे उनको समझेंगे एवं उनको सुलझाने का प्रयास करेंगे, जब वे बड़े होकर प्रशासक, नीति निर्माता, अध्यापक या फिर राजनेता बनेंगे।
विद्यालयों के पाठ्यक्रम में कुछ क्रियाकलाप जैसे-
(i) पेड़ों को लगाना एवं उनकी देखभाल करना ।
(ii) राष्ट्रीय पार्कों एवं अभयारण्यों को देखने जाना ।
(iii) प्रकृति के संरक्षण से संबंधित कहानी/कविता/नाटक तैयार करना भी शामिल करना चाहिए।
स्कूल और उसके आसपास के क्षेत्रों को हरा-भरा बनाने के लिए हर साल होने वाली प्रतियोगिताओं में शादी के मंडपों, आकर्षक पोस्टरों और पर्यावरण से संबंधित संदेशों को शामिल करना चाहिए। यह बच्चों में प्रकृति का अध्ययन, जीवों के प्रति प्रेम और अपने वातावरण को संभालने की क्षमता विकसित करता है।
प्रश्न 7. व्यावसायिक घराने पर्यावरण नैतिकता के किन तरीकों का उपयोग करते हैं?
उत्तर – व्यवसाय प्रबंधन में नैतिकता बहुत महत्वपूर्ण है। पिछली सदी ने सिखाया कि अर्थव्यवस्था और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर हैं। पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखना कर्मचारियों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। उद्योगों से एक बहुत बड़ी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ बनाए जाते हैं, और अपशिष्टों का निपटान या प्रदूषण को कम करने के लिए कुछ करना पड़ता है। कम्पनी को अपशिष्ट पदार्थों के नियंत्रण की लागत से लाभ मिलता है। उद्योगों से निकले अपशिष्ट पदार्थों को किसी नदी में फेंक देना, उन पदार्थों को अपशिष्ट जल संशोधन सुविधा द्वारा उपयोगी बना देना महंगा है।
हवा में निष्कासित अपशिष्टों में आने वाली कीमत फिल्टर द्वारा अवशोषित किए गए पदार्थों की तुलना में कम है। इस तरह प्रदूषण फैलना अनैतिक है और कभी नष्ट नहीं होगा। इस तरह की प्रणालियों को लागत कम करने और लाभ कमाने के लिए कार्पोरेट जगत को अपनाना चाहिए क्योंकि ये निर्णय लंबे समय तक समाज के हित में काम करेंगे। व्यापारिक समुदायों ने पर्यावरणीय मूल्यों को समझने के लिए पर्यावरणीय आंदोलनों का उपयोग किया है।
औद्योगिक घराने अब हरी और स्वच्छ तकनीकों का उपयोग करने में काफी उत्सुक हैं। आज कम कार्बन युक्त फुट प्रिंट बनाने के लिए सौर कार और नवीनतम तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। कुछ महानगरों में कार्पोरेट घरानों ने अपनी निगरानी में स्थानीय हरियाली और शहर के ‘फेफड़ों’ की तरह काम करने वाले पार्कों का विकास किया है। व्यावसायिक घराने स्कूली बच्चों और कॉलेज की युवा पीढ़ी के लिए पर्यावरण संबंधी प्रतियोगिताओं और पुरस्कारों का आयोजन करते हैं।
प्रश्न 8. गाँधी जी के कथन का अर्थ क्या है, “प्रकृति माँ हमारी जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन हमारे लालच को पूरा नहीं कर सकती है।”
उत्तर- गाँधी जी ने मितव्ययता और साधारण जीवन जीने पर जोर दिया था, जो अपनी खुशियों के लिए पर्यावरणीय मूल्यों का सम्मान करना शामिल है। लेकिन व्यर्थ उपयोग करने में कोई खुशी नहीं है, ऐसा माना जाता है। खुशियाँ प्रकृति से मिलती हैं और एक दूसरे के साथ सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार करते हैं। जीवों का शोषण खुशियों का आधार नहीं होना चाहिए। पृथ्वी को इससे कोई नुकसान नहीं होना चाहिए; इसके बजाय, कुछ क्रियाशील कार्यों और क्रियाओं और आपसी सहयोग से ऐसा होना चाहिए।
प्रकृति और उसकी उदारता के प्रति सौहार्दपूर्ण व्यवहार करने का पाठ पर्यावरणीय नैतिकता हमें सिखाता है। मनुष्य के विकास ने प्रकृति को हिला दिया है। इस प्रश्न के जवाब में मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति को सबसे अधिक क्षति पहुंचाई है। James Mc Hall कहते हैं कि मनुष्य दुनिया में सबसे खतरनाक प्राणी है।
1950 से, लोगों को पर्यावरणीय नुकसान और उन्मूलन की चिंता होने लगी है। आज की पीढ़ी पुस्तकों और सम्मेलनों से ज्ञान प्राप्त करती है। गाँधी जी की बातें लोगों को शक्ति देती थीं। उनका कहना है कि मनुष्य को न तो जीवन नष्ट करने का अधिकार है और न ही नए जीवन बनाने का अधिकार है। भारत की वृद्धि एवं विकास की सभी योजनाओं में पर्यावरणीय सिद्धांतों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। “प्रकृति माँ हमारी जरूरतों को पूरा कर सकती है, परंतु हमारे लालच को पूरा नहीं कर सकती”, गाँधी ने कहा था। ”
प्रश्न 9. पर्यावरण नैतिकता के उदाहरण के रूप में तीन पारम्परिक प्रथाओं में संबंध स्थापित कीजिए ।
उत्तर- भारतीय उत्सवों, मान्यताओं और व्यवहार में पर्यावरणीय नैतिकता है। देश भर में लोग अलग-अलग जीवों और पौधों की पूजा करते हैं। हिंदूओं के कई देवताओं के वाहन हैं, अर्थात् वे उन पर सवारी करते हैं; उदाहरण के लिए, धन की देवी लक्ष्मी वाहन पर सवारी करती है, और सरस्वती का वाहन हंस है, जो मनुष्यों और भगवान के बीच एक संबंध प्रकट करता है।
नारियल को पूजा में लाते हैं, जैसे बरगद, केला, तुलसी और श्रीफल। हिंदू, इस्लाम और बौद्ध धर्मों में हल्दी का प्रयोग कई धार्मिक एवं पवित्र कार्यों में किया जाता है। पूर्वी हिमालय में बाँस से लेकर हिमाचल प्रदेश के जंगलों तक जंगलों की एक श्रृंखला या भाग को भगवान या पूर्वजों की आत्माएँ रहती हैं। इन क्षेत्रों में पादप, जन्तु और जैव विविधता कायम है।
प्रश्न 10. विषय – सामग्री एकत्र करके टिप्पणी लिखिए-
(i) चिपको आंदोलन,
(ii) नर्मदा बचाओ आन्दोलन, जो अनैतिक पर्यावरण के बारे में बताता है और उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन आंदोलन पर प्रकाश डालता है।
उत्तर- (i) चिपको आंदोलन – चिपको आंदोलन अहिंसावादी था और गाँधीजी के सत्याग्रह की तरह था। पेड़ों को काटने से बचाने का यह अभियान था। 1970 में, हिमालय क्षेत्र में इमारती लकड़ी के ठेकेदारों के हाथों वनों का विनाश रोकने के लिए स्थानीय स्त्रियों ने एक आम आंदोलन शुरू किया, जिससे चिपको आंदोलन शुरू हुआ। सुंदरलाल बहुगुणा और चंडीप्रसाद भट्ट ने उनका समर्थन किया। पेड़ों पर चढ़कर जीवित रह गया।
यह आंदोलन देने की घटना की याद में गढ़वाल उत्तरांचल के पहाड़ों में स्थानीय महिलाओं द्वारा आरंभ किया गया था। वहाँ की स्त्रियों ने महसूस किया कि इमारती लकड़ी की व्यापारिक कटाई से ईंधन और चारा जैसे संसाधन उनकी बस्तियों के निकट स्थित संसाधन उपयोग के क्षेत्रों से दूर हट रहे हैं। इससे भारी बाढ़ आ गई और महंगी मिट्टी बर्बाद हो गई। इस आंदोलन ने विश्व को दिखाया कि पहाड़ों के जंगल स्थानीय समुदायों का जीवन हैं।
स्थानीय पैदावारों के लिए वे महत्वपूर्ण हैं, और वन भले ही छोटे हैं, लेकिन बहुत अधिक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय लाभ देते हैं, जैसे मृदा संरक्षण और पूरे क्षेत्र की प्राकृतिक जल प्रणाली का संरक्षण। हिमालय की तलहटी में स्थानीय स्त्रियों का एकजुट होना आजादी से पहले का है, जब गाँधी की शिष्या मीराबेन जैसी महिलाएं इस क्षेत्र में आईं। वे समझ गए कि वनों का विनाश वादी के गाँवों और नीचे गंगा के मैदान में बाढ़ों और नुकसान का कारण है। यह आंदोलन शुरू हुआ जब पर्यावरण जागरूकता कम थी।
(ii) नर्मदा बचाओ आन्दोलन – सरदार सरोवर बांध, जो भारत के गुजरात राज्य में एक नर्मदा नदी के ऊपर बनाया जा रहा था, इस सामाजिक आंदोलन में किसान, आदिवासी, जनजातियाँ, पर्यावरणविद् और मानव अधिकारी शामिल थे। नर्मदा नदी के मित्र वेबसाइट पर गैर-आधिकारिक NBA के सदस्य थे। भारत में न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज का संघर्ष नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर कई बाँधों के निर्माण की योजना पर बहस है।
इन बाधों ने कई गरीब और कमजोर समुदायों को बाहर निकाला है। उसकी अर्थव्यवस्था और संस्कृति, जो अपेक्षाकृत आत्मनिर्भर थी और पर्यावरण के लिए घातक थी, ध्वस्त हो रही है, और स्वाभिमानी लोगों को शरणार्थी या गंदी बस्तियों में स्थानांतरित किया जा रहा है। राष्ट्रीय हित के नाम पर अपने घरों, जीविका और जीवन शैली से वंचित किए जा रहे साधनहीन लोगों के अधिकारों के बारे में सबसे गतिशील जन-आंदोलनों में से एक है ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’।
सरदार सरोवर बाँध नर्मदा नदी पर बनने पर 37,000 हेक्टेयर उपजाऊ जमीन को डुबो देगा, दो लाख आदिवासियों को विस्थापित करेगा और पारितंत्र को भारी क्षति होगी। अभिनेता आमिर खान ने भी नर्मदा बचाओ आंदोलन में भूख हड़ताल किया था। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से होते हुए नर्मदा नदी अरब सागर में मिलती है, इसलिए 6 अक्टूबर 1969 को पानी बँटवारा कानून बनाया गया।
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