प्रश्न 24. निम्न का पूरा-पूरा नाम लिखिए- MNRE, IREDA, CFL
उत्तर- MNRE-The Ministry of New and Renew- able Energy (भारतीय नवीनीकृत होने वाली ऊर्जा का मंत्रालय) IREDA-The Indian Renewable Energy Develop- ment Agency (भारतीय नवीनीकृत ऊर्जा विकास एजेन्सी । ) CFL – काम्पेक्ट फ्लोरिसेन्ट लाइट ।
प्रश्न 25. लोगों ने अपने घरों में CFL का प्रयोग क्यों शुरू कर दिया है?
उत्तर- CFL एक अच्छा प्रकाश स्रोत है, CFL में ऊर्जा का उपयोग कम होता है (लगभग 75% कम ) इसलिए यह बिजली की माँग में कटौती करता है। CFL में बहुत ही कम मात्रा में मरकरी होता है इसलिए बल्ब जलने पर मरकरी उत्सर्जित नहीं होती ।
प्रश्न 26. BEE क्या है? इसके कार्य क्या हैं?
उत्तर – BEE ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी है, जो कि एक सरकारी एजेंसी है। BEE भारत में ऊर्जा संरक्षण में बढ़ोतरी और ऊर्जा के कुशाग्र प्रयोग के लिए कार्यक्रमों का विकास है।
प्रश्न 27. एक स्टार व पाँच स्टार के फ्रिज में क्या अंतर है?
उत्तर – एक स्टार का अर्थ है ऊर्जा की सबसे कम कुशाग्रता और कम पैसों की बचत, जबकि पाँच स्टार का अर्थ है अत्यधिक ऊर्जा कुशाग्रता और अधिकतम पैसों की बचत ।
जल एवं ऊर्जा संरक्षण के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. पानी के अभाव के पीछे जिम्मेदार कारणों को बताएं।
उत्तर- पानी की कमी का कारण बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिक विकास, सिंचाई का विस्तार और बदलती जीवन शैली हैं। भारत की जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है, जो स्वतंत्रता मिलने से अब तक तीन गुना बढ़ी है। वृद्धि हुई जनसंख्या ने पानी की माँग बढ़ा दी है। अधिक जनसंख्या का मतलब है कि अधिक पानी पीने, खाना पकाने, मल या अपशिष्टों को बहाने के लिए घरेलू उपयोग के लिए चाहिए। लोगों की जीवनशैली और दैनिक जीवन में भी बदलाव आया है। कपड़े धोने के उपकरण और कपड़े धोने की मशीनें बहुत अधिक पानी का इस्तेमाल करते हैं। शॉवरों को ऐसा बनाया जाता है कि उन्हें खोलने पर बहुत सारा पानी निकलता है।
मनोरंजन क्षेत्रों, जैसे वाटर पार्क, बहुत अधिक पानी का उपयोग करते हैं। भारत कृषि पर निर्भर है। इसलिए इसे सिंचाई करने के लिए बहुत पानी की आवश्यकता होती है। भारत में सिंचाई की माँग निरंतर बढ़ रही है। यह सब क्षेत्रीय और मौसमी वर्षा वितरण में बदलाव, वर्षा ऋतु की अनिश्चितता, व्यावसायिक फसलों को उगाने के लिए अधिक जल की मांग और फसल उगाने की प्रणाली में बदलाव के कारण हुआ है। बहुत से उद्योगों में पदार्थ बनाने के विभिन्न चरणों में अधिक पानी का प्रयोग होता है।
प्रश्न 2. जल संरक्षण के तरीकों के बारे में बताइए ।
उत्तर – जआम लोगों की आवश्यकताओं को देखते हुए जल संरक्षण करना महत्वपूर्ण है। पानी का सही प्रयोग करने के लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए। वर्षा जल को एकत्रित करके घरेलू कार्यों के लिए उपयोग करना चाहिए; लीक पाइपों और नलों को तुरंत सुधारना चाहिए। जल संरक्षण के विभिन्न तरीके हैं, जैसे- वृक्षारोपण, जल का पुनः चक्रण, पानी का पुनः प्रयोग, जल संग्रहण आदि ।
वनारोपण – वनारोपण भूमि के अपरदन से बचाव करके भूमि की उर्वरता को बढ़ाते हैं, बचे हुए पानी को जलाशयों द्वारा समुद्रों तक पहुँचने से बचाती है व बाढ़ से संरक्षण करती है। इस प्रकार वनों का पुन: रोपण जल संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जल का पुनर्चक्रण – नहाने, बर्तन धोने, कपड़े धोने की जगहों व वाशिंग मशीनों से निकले गंदे पानी को उपचारित करके कई प्रकार से प्रयोग में लाया जा सकता है। प्रत्येक कार्य के लिए स्वच्छ पानी की आवश्यकता नहीं होती जैसे नहाने एवं शॉवर के बाद के पानी को पौधों में डाला जा सकता है।
अपशिष्ट पानी का पुनः प्रयोग – अपशिष्ट जल में भी कई पोषक तत्त्व पाए जाते हैं। इस पानी को सिंचाई के लिए प्रयोग में लाया जाए, तो उनमें पाए जाने वाले पोषक तत्त्व पौधों की वृद्धि कर सकते हैं। अपशिष्ट जल का पुनः प्रयोग निज स्थान पर या छोटे पैमाने की साफ-सफाई व्यवस्था पर अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है।
जल संग्रहण – घरों या इमारतों के इर्द-गिर्द बारिश के पानी को इकट्ठा कर उसे प्रयोग में लाने की क्रिया को जल संग्रहण कहते हैं। इससे बारिश के पानी को भूमि की निचली तहों तक पहुँचाकर उस स्तर के पानी की मात्रा में वृद्धि की जा सकती है।
जल का पुनः भरण- सतही जल की तुलना में भूमि के अंदर के पानी की मात्रा 13 से 20 गुना अधिक है । भूमिगत जल में मृदा में पानी एकत्रित रहता है।
प्रश्न 3. जल संग्रहण क्या है? इसको किन तरीकों से किया जा सकता है?
उत्तर- घरों या इमारतों के इर्द-गिर्द वर्षा के पानी को इकट्ठा कर उसे प्रयोग में लाने की क्रिया को जल संग्रहण कहते हैं। इस पानी को भूमि की निचली तहों तक पहुँचाकर उस स्तर के पानी की मात्रा में वृद्धि की जा सकती है।
जल संग्रहण निम्न तरीकों से किया जा सकता है-
(i) बाढ़ के पानी को गहरे गड्ढों या खाइयों के माध्यम से जमीन के नीचे तक पहुँचाया जा सकता है।
(ii) भूमिगत जल का पुनः भरण करके, वर्षा के जल को एकत्रित करके व उपयोग करके किया जा सकता है।
(iii) नालों का पानी, प्रयोग हुआ पानी आदि जमीन के अंदर के पानी को छानने व प्ररिस्रवण के लिए गड्ढों, खाई, खोदकर, व गहरे गड्ढ़ों में भरा जा सकता है।
(iv) टैंकों व नहरों की सफाई नियमित रूप से होनी चाहिए।
(v) खेतों में जुताई मानसून पूर्व करनी चाहिए जिससे भूमि वाष्प के संरक्षण में सहायता मिलती है।
प्रश्न 4. संक्षिप्त नोट लिखिए- गंगा एक्शन प्लान और यमुना एक्शन प्लान ।
उत्तर – गंगा एक्शन प्लान ( GAP ) – भारत की सबसे बड़ी नदी गंगा है। 2,525 किलोमीटर लंबी नदी है। यह नदी दस भारतीय राज्यों में बहती है। नदी के किनारे स्थित उद्योगों और शहरों द्वारा निष्कासित अनौपचारिक मल जल, अपशिष्ट और उद्योगों से निकलने वाले बहि:पदार्थ सबसे अधिक प्रदूषण करते हैं। गंगा एक्शन प्लान पहली ऐसी योजना है। भारत सरकार ने गंगा को साफ करने के लिए गंगा एक्शन प्लान शुरू किया है। योजना का पहला चरण 1993 में कार्य 993 में समाप्त हुआ था।
यमुना एक्शन प्लान (YAP ) – यह अप्रैल सन् 1993 में लागू किया गया था। यमुना गंगा नदी से निकली हुई एक मुख्य उपनदी है। YAP का मुख्य उद्देश्य यमुना नदी से प्रदूषकों का पृथक्करण करके उसकी सफाई व सरंक्षण करना है। YAP के लिए एक नारा दिया गया- ” यमुना को स्वच्छ बनाना है। हम सबको हाथ बंटाना है।”
प्रश्न 5. परंपरागत और गैर-परंपरागत ऊर्जा के स्रोत क्या हैं? उदाहरण सहित समझाइए |
उत्तर- जीवाश्मीय ईंधन ऊर्जा का पुराना स्रोत हैं। जीवाश्मीय ईंधन को नवीनीकरण नहीं किया जा सकता क्योंकि वे लाखों-हजारों वर्षों से बनाए जाते हैं। जीवाश्म ईंधन पौधे हैं जो पृथ्वी के नीचे दब गए और पत्थरों में बदल गए थे, जबकि जीवाश्म जीवों के अवशेष हैं जो बहुत पहले जीवित थे। जीवाश्मीय ईंधनों को खानों से निकालना होगा। अधिकांश जीवाश्मीय ईंधन ऊष्मा के रूप में ऊर्जा को निष्कासित करते हैं। तीन प्रकार के जीवाश्म ईंधन हैं: प्राकृतिक गैस, पैट्रोलियम और कोयला। कोयला ठोस है। उसे खनन करने के बाद ट्रकों और रेलगाड़ियों में रखा जाता है। हमारे देश में धनबाद, रानीगंज और झरिया में कोयले की खानें हैं।
पैट्रोलियम या तेल एक द्रव है, जिसको जमीन में कुआं खोदने के पश्चात् बाहर खींचा जाता है। इसे दूर-दराज में तेल के टैंकरों व तेल की पाइप लाइनों के माध्यम से भेजा जाता है। तेल का गाड़ियों और हवाई जहाजों को चलाने में प्रयोग होता है। भारत में तेल पश्चिमी तट तथा आसाम के डिगबोई क्षेत्रों में पाया जाता है।
प्राकृतिक गैस – इसमें अलग-अलग गैसों का मिश्रण है। LPG (द्रव पैट्रोलियम गैस) सिलेण्डरों में भरकर प्रयोग की जाती है। सार्वजनिक वाहनों में संपीड़ित प्राकृतिक गैस (LNG) प्रयोग की जाती है। तेल और प्राकृतिक गैस के जीवाश्म करोड़ों वर्ष पहले समुद्र के नीचे दब गए थे। ऊष्मा और दबाव के कारण वे वर्षों बाद समुद्र की निचली सतह के नीचे पेट्रोलियम बन गए।
लगभग पाँच दशक पहले, लोगों को जीवाश्मीय ईंधन के समाप्त होने की चिंता नहीं थी. लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी और जीवाश्मीय ईंधन का उपयोग बढ़ता गया, पर्यावरण विशेषज्ञों ने जीवाश्मीय ईंधन को सीमित करने और अन्य ऊर्जा स्रोतों पर विचार करने लगे। अभी तक इन वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग बहुत सीमित था।
गैर-परंपरागत ऊर्जा के कुछ स्रोत हैं: सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, जल ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा और बायोमास। ये सामग्री निरंतर विकसित होती रहती हैं। सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा, या सौर ऊर्जा, सबसे महत्वपूर्ण है। यह प्रकृति में आसानी से पाया जाता है, प्रदूषण नहीं करता है और मुक्त रूप से उपयोग किया जा सकता है। सौर पैनल अब सीधे सूर्य की किरणों से घरों को गर्म करते हैं। सौर टी.वी. सौर फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग करते हैं और सौर तापीय ऊर्जा से खाना बनाया जाता है। उद्योग भी सूर्य ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
प्रश्न 6. जैविक ईंधन (Bio-Fuel) क्या है ?
उत्तर- प्रकाश-संश्लेषण से उत्पन्न पादप सामग्री को बायोमास कहा जाता है। जैसे लकड़ी, कृषि अपशिष्ट को जलाकर ऊष्मा बनाया जा सकता है। बायोमास ऊर्जा उत्पादन में भी उपयोग किया जा सकता है। Biomass (जैव-ईंधन) पौधों से बनाया जाता है और एल्कोहल (द्रव ईंधन) से बनाया जाता है। ईंधन की लकड़ी बनाने के लिए तेजी से उगने वाले तैलीय पाम वृक्ष और जट्रोफा जैसे विशेष पौधों को बायोमास कहा जाता है। बायोमास को ईंधन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है, जिसका उत्पादन पशु खाद और कृषि अपशिष्ट फसल के अवशेषों से किया जाता है। बैक्टीरिया जैविक अपशिष्ट, मल जल और ठोस बायोमास को बायोगैस बना सकते हैं। बायोगैस को खाना बनाने या गर्म करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। बायोगैस कार्बन डाइ आक्साइड और मीथेन का एक मिश्रण है।
प्रश्न 7. इन पर एक लेख लिखिए-
(i) बायोगैस डाइजेस्टर
(ii) बायोडीजल
(iii) खनन ईंधन
उत्तर- (i) बायोगैस डाइजेस्टर – बायोगैस डाइजेस्टर बड़े-बड़े बर्तन हैं जो बैक्टीरिया के किण्वन से जैविक अपशिष्ट (जैसे पौधों और पशुओं) बनाते हैं। यह गैस खाना बनाने या गर्म करने में इस्तेमाल की जाती है। बायोगैस कार्बन डाइआक्साइड और मीथेन से बना है। खाद के अवायवीय पाचन और उनसे जुड़े अवायवीय बैक्टीरिया से मल जल उपचार में मीथेन होता है।
(ii) बायोडीजल- इथेनाल कार ईंधन हो सकता है। गन्ने, सोरथम, मक्का और चुकन्दर को किण्वन करके इथेनाल बनाया जाता है। तैलीय पौधों की बहुत सी किस्में भारत में पाई जाती हैं। वनस्पति तेलों से बायोडीजल निकाला जा सकता है। रतनजोत या जट्रोफा कूरकस, नागचंपा या कैलोफिलम, आयोनोफिलम, रबर के बीच आदि। Biodiesel में पैट्रोलियम पदार्थ नहीं होते हैं, लेकिन यह आम इंजनों में पैट्रोलियम की जगह लेता है।
(iii) खनन ईंधन – ऊर्जा का परंपरागत स्रोत जीवाश्मीय ईंधन है। जीवाश्मीय ईंधन नवीनीकरण नहीं हो सकते क्योंकि उनके उत्पादन में लाखों वर्ष लगते हैं। जीवाश्म ईंधन पेड़-पौधे हैं जो पृथ्वी के नीचे दबकर पत्थरों के रूप में बदल गए, जबकि जीवाश्म जीवों के अवशेष हैं। जीवाश्मीय ईंधन खानों से निकाला जाता है। जीवाश्मीय ईंधन के पेड़-पौधे पृथ्वी पर दबकर पत्थर बन गए। ऊर्जा जीवाश्मीय ईंधन से बनाई जाती है। मुख्य जीवाश्मीय ईंधन ठोस कोयला (या कोयला), पैट्रोलियम या तेल द्रव (जो कुएं खोदकर पम्पों द्वारा निकाला जाता है) और प्राकृतिक गैस (या प्राकृतिक गैस) पाइप लाइनों द्वारा प्रवाहित किया जाता है।
प्रश्न 8. व्यक्तिगत स्तर पर आप ऊर्जा का संरक्षण कैसे कर सकते हैं?
उत्तर – ऊर्जा व्यक्तिगत रूप से बचाने के कई उपाय हैं। ऊर्जा संरक्षण के लिए हमें उच्च गुणवत्ता वाले ऊर्जा उपकरणों का उपयोग करना चाहिए। बिजली व्यर्थ में खर्च नहीं होनी चाहिए। पंखों या बत्ती को बंद कर देना चाहिए जब वे प्रयोग में नहीं हैं। साथ-साथ बैठकर काम करने से भी ऊर्जा बचती है। ऊर्जा बचाने के लिए खाना गैस चूल्हों या कुकर में पकाना चाहिए। सौर ऊर्जा से संचालित कुकरों का प्रयोग करना चाहिए और खाना धीमी आँच पर बनाना चाहिए। बर्तन धोने की मशीनों और कपड़े धोने की मशीनों को थोड़े गर्म या ठंडे तापमान पर रखना चाहिए। कपड़े को धूप में सुखाना चाहिए, मशीन नहीं।
CFL प्रकाश में प्रयोग करना चाहिए। ऑफिस तक पहुंचने के लिए कार पूल व्यवस्था का उपयोग करना चाहिए। अतिरिक्त पंखों और बत्तियों को बंद कर देना चाहिए। जब आप कम्प्यूटर नहीं प्रयोग करते हैं, तो उसे बंद कर दें। सार्वजनिक वाहनों को निजी वाहनों से अलग करना चाहिए। गाड़ी की गति पचास से छह सौ किमी प्रति घंटा होनी चाहिए। ट्रैफिक सिग्नल पर रुकने पर गाड़ी का इंजन बंद कर देना चाहिए।
प्रश्न 9. बिजली के उपकरणों/यंत्रों को सितारों की रेटिंग के साथ प्रदर्शित करने की जरूरत क्यों है?
उत्तर– बिजली उपकरण की स्टार रेटिंग बताती है कि वह उपकरण ऊर्जा बचत में कितना प्रभावी है। ऊर्जा मंत्रालय ने ऊर्जा संरक्षण विधेयक के तहत मार्च 2002 में ऊर्जा संचालन ब्यूरो का गठन किया। भारत सरकार की एक एजेंसी है जो कार्यक्रम बनाती है जो ऊर्जा को बचाने और सही तरह से इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करती हैं। BEE स्टार ऊर्जा कुशग्रता के प्रतीक बनाए गए हैं ताकि वे विभिन्न विद्युत उपकरणों को एकीकृत मापदंड स्थापित कर सकें और एकीकृत मापदंड परीक्षण की स्थितियों में ऊर्जा का उपयोग कर सकें। लेबल पर ऊर्जा कुशग्रता के स्तरों को ये प्रतीक रंगीन तारों की संख्या के रूप में दिखाते हैं। यह स्टार रेटिंग प्रणाली एक से पांच स्टार देती है, जो उपकरण की ऊर्जा बचत का मूल्य बताती है।
प्रश्न 10. यातायात के वाहनों को ऊर्जा कुशाग्र कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर –हाइब्रिज संकरित गैस विद्युत इंजन और हाइड्रोजन से चलने वाले फ्यूलसेल से बनाई गई बिजली से चलने वाले वाहनों को ऊर्जा कुशाग्र बनाने के लिए विकसित किया जा सकता है। फ्यूलसेल आंतरिक दहन इंजनों से बेहतर हैं क्योंकि उनमें कोई चलते पुर्जे नहीं हैं, कम देखभाल की जरूरत है और कोई प्रदूषण नहीं करते हैं। भारत सरकार भी पैट्रोलियम ईंधनों की जगह जैव ईंधनों का प्रयोग करने पर बहुत ध्यान दे रही है। वाहनों को ऊर्जा देने में गैर परंपरागत स्रोतों का उपयोग भी महत्वपूर्ण है.
इनमें बायोडीजल, बायो एल्कोहल (जैसे मिथेनाल, इथेनाल, ब्यूटेनॉल), रासायनिक बैटरी हाइड्रोजन, मीथेन गैस, वनस्पति तेल और जैविक ईंधन शामिल हैं। लघु आकार और कम वजन वाले वाहनों और दुपहिया स्कूटरों का प्रयोग काफी हद तक ऊर्जा की बचत कर सकता है। गैसोलिन को बचाने में सड़क के साथ घर्षण कम होने वाले अधिक विकसित टायर का योगदान होता है। सही दाब पर टायरों को रखने से ईंधन को 3.3% तक आर्थिक रूप से बचाया जा सकता है।
प्रश्न 11. सौर ऊर्जा को एक ऊर्जा के संसाधन में प्रयोग करने की तीन विधियाँ बताइए ।
उत्तर – कृषि क्षेत्र में पवन ऊर्जा से संचालित पवन जल पम्पों का उपयोग सिंचाई और पीने के पानी के लिए किया जाता है। यह सूर्य ऊर्जा से संचालित ड्रायरों को बचाने के लिए पूर्व फसलों को सुखाता है। सौर ऊर्जा के सौर कुकरों का उपयोग अस्पतालों, होटलों और बड़ी रसोइयों में गर्म पानी की सप्लाई के लिए किया जाता है, जिससे बिजली की समस्या हल होती है। भारत, एक बहुसंख्यक देश, सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ा रहा है।
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