NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 11 पर्यावरण और स्वास्थ्य
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NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 11 Solution – पर्यावरण और स्वास्थ्य
प्रश्न 1. स्वास्थ्य की परिभाषा बताइए ।
उत्तर– स्वास्थ्य व्यक्ति की कार्यक्षमता और चय-अपचय क्रिया का स्तर से निर्धारित होता है। यदि किसी व्यक्ति को कोई बीमारी, दर्द या चोट नहीं है, तो वह स्वस्थ व्यक्ति है। इस प्रकार, व्यक्ति का स्वास्थ्य कई प्रभावों के अंतर्व्यवहार से प्रभावित होता है।
प्रश्न 2. एक समुदाय को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने से क्या लाभ है?
उत्तर- एक समुदाय को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने से जल जनित रोगों को फैलने से रोका जा सकता है।
प्रश्न 3. झुगी झोंपड़ी क्या है ?
उत्तर- अनियोजित ढंग से बने आवास के झुण्ड झुग्गी-झोंपड़ी होते हैं, जहाँ कोई स्टैण्डर्ड नहीं होता, कोई सुख-सुविधा नहीं तथा देख-भाल या सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं होता । झोंपड़ियां बहुत पास-पास होती हैं, उनमें स्थान बहुत कम होता है तथा सड़कों, पार्क, नालियों के लिए कोई स्थान नहीं होता इसलिए वहाँ बीमारी फैलना बहुत आसान होता है। संक्रामक रोग बहुत जल्दी फैलते हैं।
प्रश्न 4 गाँवों में स्वास्थ्य समस्या के दो कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- ग्रामीण बहुत-सी स्वास्थ्य समस्याओं को झेलते हैं,
जैसे – स्वच्छ पेयजल की कमी, मल का अनुचित विसर्जन, उच्च शिशु मृत्यु दर आदि ।
प्रश्न 5. रोगजनकों द्वारा फैलने वाले एक रोग का उदाहरण दीजिए।
उत्तर – रोगजनकों द्वारा फैलने वाले रोग हैं-मलेरिया, पीत ज्वर, एनसिफिलाइटिस आदि ।
प्रश्न 6. रक्त के साथ या रक्त के बिना डायरिया या मल में म्यूकस, बुखार और पेट में मरोड़ के साथ दर्द एक जलजन्य रोग के लक्षण हैं। रोग का नाम बताइए ।
उत्तर- रक्त के साथ या रक्त के बिना डायरिया, मल में म्यूकस बुखार और पेट में मरोड़ के साथ दर्द जलजन्य रोग जीवाणविक पेचिश के लक्षण हैं।
प्रश्न 7. उस बैक्टीरिया का नाम बताइए, जिसके कारण लैप्टोस्पाइरोसिस होता है।
उत्तर- लैप्टोस्पाइरा बैक्टीरिया के कारण लैप्टोस्पाइरोसिस होता है।
प्रश्न 8. किन उद्योगों से दुर्गंध भरी गैसें निकलती हैं?
उत्तर- शुगर मिल तथा चर्म शोधक उद्योगों से दुर्गन्ध भरी गैसें निकलती हैं।
प्रश्न 9. पत्थर कूटने वाली छोटी खदानों और लोहे की खानों से कौन-सा वायु प्रदूषक निकलता है ?
उत्तर– पत्थर कूटने वाली छोटी खदानों और लोहे की खानों से हवा में निलंबित कणीय तत्व फैल जाते हैं तथा वायु प्रदूषण करते हैं।
प्रश्न 10. भीड़ भरे शहरी क्षेत्र में धूल भरी सड़कों पर ट्रैफिक गाड़ियों के धुएं से उद्योगों से तथा डीज़ल वाहनों से है? हवा में एक विशेष प्रदूषक घुलता है। वह कौन-सा प्रदूषक है?
उत्तर – भीड़ भरे शहरी क्षेत्र में धूल भरी सड़कों पर ट्रैफिक गाड़ियों के धुएं से, उद्योगों के धुएं से तथा डीजल वाहनों से सल्फर के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, कार्बन मोनोक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड आदि प्रदूषक हवा में घुल जाते हैं।
प्रश्न 11. कृषि क्षेत्र के मुख्य प्रदूषक बताइए ।
उत्तर – कृषि क्षेत्र के मुख्य प्रदूषक अमोनिया, पीड़कनाशक, जलवाष्प तथा धुआं हैं।
प्रश्न 12. उन तीन पीड़कनाशकों के नाम बताइए जिनके कारण चूहों और मूषकों में लिम्फैटिक कैंसर हो जाता है?
उत्तर- पीड़कनाशक, जिनके कारण चूहों और मूषकों में लिम्फैटिक कैंसर हो जाता है – टाक्साफिन, हैक्साक्लोरो साइक्लो हैक्सेन (HCH), BHC, डैलिडून तथा डी. डी. टी. ।
प्रश्न 13. त्वचा के कैंसर की घटनाओं को कम करने के लिए क्या सावधानियां अपनानी चाहिए?
उत्तर – त्वचा के कैंसर की घटनाओं को कम करने के लिए चौड़े और ब्रिम वाले टोप, धूप के चश्मे जो पराबैंगनी किरणों को सोख सकें तथा हाथ-पैरों को ढकने वाले कपड़े पहनने चाहिए।
प्रश्न 14. कीटनाशकों द्वारा होने वाली क्षति कम हो, इसके लिए कौन से कार्यक्रम संभव हैं?
उत्तर- कीटनाशकों द्वारा होने वाली क्षति कार्बनिक खेती और एकीकृत पीड़क प्रबन्धन करके कम की जा सकती है।
प्रश्न 15. ब्लू बेबी रोग का क्या कारण है?
उत्तर- ब्लू बेबी रोग भूमिगत जल में नाइट्रेट का स्तर ऊँचा होने से होती है।
प्रश्न 16. अस्थमा के कोई दो मुख्य लक्षण बताइए ।
उत्तर– अस्थमा में सांस का उखड़ना, सीने में जकड़न, छाती के पास दर्द, निरन्तर खांसी जो कई हफ्ते तक चल सकती है।
प्रश्न 17. भारी धातु विषाक्तता क्या है?
उत्तर- भारी धातुएं जैसे लैड, मरकरी, क्रोमियम, आर्सेनिक कॉपर, मैंगनीज तथा रेडान पर्यावरण में विषाक्तता का कारण होती हैं। ये धातुएं औद्योगिक उत्सर्जन से वातावरण में फैल जाती हैं, जो जैविक कचरा जलाने से यातायात और ऊर्जा उत्पादन से पैदा होती हैं। खाद्य श्रृंखला में जुड़ने के बाद ये स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करती हैं।
प्रश्न 18. आर्सेनिक से प्रदूषित भूजल के प्रयोग से होने वाले आर्सेनिक विषप्रभाव के दो लक्षण बताइए |
उत्तर – आर्सेनिक से प्रदूषित भूजल के प्रयोग से होने वाले आर्सेनिक विषप्रभाव के कारण भूख में कमी, वजन में कमी, डायरिया, जठराग्नि शोध, त्वचा का कैंसर आदि लक्षण सामने आते हैं।
प्रश्न 19. पारद के उस रूप को बताइए, जिसमें पारद (पारा) विषैला प्रभाव छोड़ता है?
उत्तर – मिथाइल मरकरी में पारा विषैला प्रभाव छोड़ता है।
प्रश्न 20. बैटरी स्क्रैप से वातावरण में कौन-सी धातु घुलती है?
उत्तर – बैटरी स्क्रैप वातावरण में सीसा (लेड) ट्रेटा – इथाइल लैड (TEL) छोड़ता है।
प्रश्न 21. भारी शारीरिक श्रम में कौन-से श्रमिक आते हैं?
उत्तर – भारी शारीरिक श्रम के अन्तर्गत खनिक, लकड़हारे, निर्माण स्थल के मजदूर, किसान, मछुआरे, भंडार गृह के मजदूर और चिकित्सा संबंधी कर्मी आते हैं।
प्रश्न 22. 120dB स्तर के शोर में कुछ घंटे रहने से कौन सी समस्या या विकार उत्पन्न हो जाता है ?
उत्तर- 120 dB स्तर के शोर में कुछ घंटे रहने से चिड़चिड़ापन, अस्थायी बहरापन, अनिद्रा आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
प्रश्न 23. ध्वनि प्रदूषण के दीर्घकालीन संपर्क में होने वाले किन्हीं दो लक्षणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- ध्वनि प्रदूषण के दीर्घकालीन संपर्क में कारण श्रव्य थकान, बाधित श्रवण शक्ति, रक्तचाप, सांस फूलना, पसीना आना, चक्कर आना आदि होते हैं।
पर्यावरण और स्वास्थ्य के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. गाँवों की स्वच्छता संबंधी क्या समस्याएं हैं?
उत्तर – गाँवों में स्वच्छता संबंधी समस्याएं देखी गई हैं। गंदे और दूषित जल का प्रयोग गाँवों में स्वास्थ्य समस्याओं और रोगों का मुख्य कारण है। स्वच्छता संबंधी समस्याएं अनुचित मल विसर्जन और प्रबंधन की कमी से पैदा होती हैं। इससे बच्चों की मृत्यु दर बढ़ती है और जीवन-आयु कम होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कम लागत वाले शौचालयों का निर्माण करना एक उपयोगी कार्यक्रम हो सकता है। इस समस्या को स्वच्छता और स्वास्थ्य विज्ञान और सफाई की अज्ञानता ने और बढ़ा दिया है। ग्रामवासियों को स्वच्छ पेयजल का ज्ञान देना भी महत्वपूर्ण है। ग्रामीण घर हवादार नहीं होते, इसलिए वहाँ प्रकाश और स्वच्छ वायु का अभाव रहता है।
घरेलू ईंधन लकड़ी और उपलों का, खाना बनाने में उपयोग किया जाता है। घरों में कहीं-कहीं एक ही कमरा होता है, जहाँ लकड़ी और उपलों के जलने से घर धुएँ से भर जाता है। प्रकाश की कमी जारी रहती है। गाँवों का जल निकास करने के लिए उपयुक्त नालियाँ भी नहीं हैं, जो भूमिगत जल और अन्य स्रोतों को प्रदूषित करते हैं।
प्रश्न 2. निम्न बीमारियों के फैलने का वर्णन कीजिए- टाइफाइड, फाइलेरिया और अमीबीय पेचिश । प्रत्येक रोग को फैलाने वाले जीव कौन से है ?
उत्तर- टाइफाइड बीमारी बैक्टीरिया से फैलती है। इस बीमारी का कारण साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया है। मक्खियाँ, खराब भोजन, जल, दूध और कच्ची सब्जियाँ इस बीमारी को फैलाते हैं। इस बीमारी के लक्षणों में शामिल हैं लगातार बढ़ने और रहने वाला बुखार, शाम को अपेक्षाकृत तेज बुखार, सिर दर्द, शरीर में दर्द, कब्ज, भूख न लगना और छोटी आंत में अल्सर के कारण रक्तस्राव। फाइलेरिया रोग में पैर और शरीर के अंग बढ़ जाते हैं, त्वचा मोटी हो जाती है और ऊतकों के नीचे रेखाएं बनती हैं। नर का अंडकोश बढ़ता है। यह बीमारी फाइलेरिया जीवाणु से फैलती है। यह हाथी पांव रोग भी कहलाता है, जिसमें शरीर के निचले हिस्से में सूजन होती है। धागे की तरह का परजीवी जीवाणु (बुचरेरिया, क्यूलेक्स फटीगंस) मच्छरों में फैलता है।
एंटअमीबा हिस्टोलिटिका, एक कोशिकीय जीव प्रोटोजोआ, अमीबीय पेचिश फैलाता है। यह बीमारी जल और भोजन में सिस्ट (गांठ) के कारण होती है। संक्रमित व्यक्ति की आंत में अमीबा मिलकर एक सिस्ट बनाते हैं, जिसके चारों ओर एक पतली दीवार बनती है, जिससे सिस्ट सुरक्षित रहता है। ये प्रक्रियाएं संक्रमित व्यक्ति के मल से निकलती हैं। यदि मल अपशिष्ट को सही ढंग से नहीं निकाला जाता है, तो आसपास के भोजन और जल प्रदूषित होते हैं। जब कोई दूषित जल भोजन खाता है, तो उसे संक्रमण होता है। इस बीमारी के लक्षणों में पेट में दर्द, डायरिया, मल में रक्त और म्यूकस, बुखार, ठंड लगना और पेट में मरोड़ वाला दर्द शामिल हैं।
प्रश्न 3. कोयले की खदानों में श्रमिकों को होने वाली विशेष बीमारी का उल्लेख कीजिए। इसकी रोकथाम के उपाय बताइए |
उत्तर – खनिज खदानों में हर दिन खनिक कोयले की धूल से मिलते हैं, जो वायु प्रदूषक है। कोयले की धूल के जमाव से खनिकों के फेफड़े काले दिखाई देते हैं, जिससे उनका सामान्य गुलाबी रंग काला हो जाता है। यही कारण है कि इसे कृष्ण फुफ्फुस न्यूमोकॉनियोसि (CWP) नाम दिया गया है, या काले फुफ्फुस रोग। एन्थ्राकोसिस भी इसका नाम है। यह बीमारी वर्षों से कोयले की खदानों में काम करने वालों को होती है क्योंकि वे कोयले की धूल की प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, जो उनके फेफड़ों पर जम जाती है। इस धूल की मात्रा श्रमिकों के फेफड़ों से अधिक होती है, हालांकि यह स्थानीय निवासियों के फेफड़ों पर भी जम जाती है।
फेफड़ों पर चोट लगने और कालिका जमने से ऑक्सीजन को रक्त में प्रवाहित करने की फेफड़ों की क्षमता कम हो जाती है क्योंकि कोयले के बारीक कण न तो नष्ट किए जा सकते हैं और न ही हटाए जा सकते हैं। इस तरह के फेफड़ों में बीमारी बढ़ती जाती है, सांस की क्षमता घटती जाती है, जो कभी-कभी हार्टफेल भी हो सकता है। कुछ लोगों में फाइब्रोसिस नामक लगातार बढ़ने वाले तंतुओं की एक गांठ होती है, जिससे उनके ऊपरी हिस्से में लगातार क्षति होती रहती है। कुछ लोगों में CWP बीमारी का एक विकृत रूप, एम्फीसेमा (सांस उखड़ना) होता है। इस बीमारी से कम आयु में पीड़ित लोगों में लंबे समय तक बढ़ने वाले तंतुओं की गांठ बनने का खतरा अधिक होता है।
रोकथाम के उपाय
(i) CWP रोग से बचने का मुख्य उपाय है कि कोयले की धूल के दीर्घकालीन संपर्क में रहने से बचें।
(ii) कोयले की खानों में कोयले की धूल का स्तर कम रखना चाहिए।
(iii) श्रमिकों को कोयले की धूल से बचने के लिए सुरक्षात्मक कपड़े पहनने के लिए देने चाहिए।
प्रश्न 4. थर्मल पॉवर प्लांट से निकलने वाले मुख्य प्रदूषक क्या हैं? उनको कम करने के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर- कोयले के जलने या थर्मल पॉवर प्लांट से पॉवर प्लांट को बचाने का एकमात्र उपाय है। थर्मल पावर प्लांट में कोयले की राख जलती है। यह राख वायु और जल को प्रदूषित करती है। ये विषैले पदार्थ जीवन काल को कम करते हैं और पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। थर्मल पावर प्लांट लगभग 85% भू-ताप के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं। निम्नलिखित प्रदूषक थर्मल पॉवर प्लांट से निकलते हैं-
कार्बन डाई-ऑक्साइड (CO2 ) – कोयले के जलने से बिजली – पॉवर प्लांट संसार में अकेले CO2 उत्सर्जन का सबसे बड़ा साधन है। जीवाश्मीय ईंधन जलने से CO2 उत्सर्जित होती है, जो कि ग्रीन हाऊस प्रभाव का सबसे बड़ा स्रोत है। औद्योगिक विकास के बाद पर्यावरण में 30% CO2 अधिक हो गई है और यदि इसी प्रकार का विकास चला तो शताब्दी के अन्त तक CO2 की मात्रा पर्यावरण में दुगुनी हो जाएगी।
ओजोन स्मॉग- ओजोन स्मॉग बनता है जब सूर्य की किरणें पर्यावरण में नाइट्रोजन आक्साइड और हाइड्रोकार्बन वाष्प से मिलती हैं. ये वाष्प उद्योगों, पॉवर प्लांटों और वाहनों से उत्सर्जित होते हैं। इससे खांसी, अस्थमा, अटैक, जलन और प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2): कोयला और तेल जलने से SO2 निकलता है, जो पर्यावरण में मिलकर अम्लीय गैसें और एसिड, जैसे सल्फ्यूरिक एसिड, बनाता है। इससे खांसी, त्वचा में जलन, दिल की धड़कन, अस्थमा अटैक आदि होते हैं।
नाइट्रोजन ऑक्साइड – कोयला, तेल, गैसोलीन व प्राकृतिक गैस के जलने से नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनते हैं जो कि अम्लीय वर्ण व ओजोन स्मॉग के लिए जिम्मेदार हैं।
कणीय पदार्थ- पॉवर प्लांट, वाहन व उद्योग पर्यावरण में छोटे-छोटे कण व धुआं छोड़ते हैं, जो कि मनुष्य के फेफड़ों में पहुँच जाते हैं। और हार्ट अटैक व असमय मृत्यु, फेफड़ों की बीमारियाँ व कैंसर आदि के लिए जिम्मेदार हैं।
कोयले की राख – कोयला जलाकर बिजली बनाई जाती है। बिजली बनाने के लिए कोयला जलने से पहले बारीक पाऊडर बन जाता है। पावर प्लांट के पंख इससे निकलने वाली गैस को इकट्ठा करते हैं। कोयले की राख एलुमिना, लोहा और सिलिका से बना कांच का पाउडर है। यही कारण है कि कोयला जलाने से चलने वाले पावर प्लांट आदमी के लिए खतरनाक हैं। इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर का उपयोग करके उनकी मात्रा को कम किया जा सकता है। वायु ऊर्जा, सौर ऊर्जा, आदि कोयला बदल सकते हैं।
प्रश्न 5. प्रदूषित भूमिगत जल पीने से उत्पन्न आर्सेनिक विष प्रभाव के लक्षण बताइए। शरीर के किस अंग में एकत्रित आर्सेनिक को पहचान सकते हैं?
उत्तर – शरीर में अधिक आर्सेनिक होने पर आर्सेनिक विष का प्रभाव दिखाई देता है। जलने और जीवाश्मी ईंधन आर्सेनिक को बाहर निकालते हैं। भूमिगत जल और उर्वरक संयंत्रों से निकले तरल पदार्थ दोनों में आर्सेनिक होता है। लोग जो इसी भूमिगत जल पर निर्भर हैं, इस प्रदूषक को ग्रहण कर इसके संपर्क में आते हैं। लंबे समय तक आर्सेनिक के संपर्क में रहने से भूख में कमी, वजन में कमी, डायरिया, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं और त्वचा का कैंसर हो सकता है। फेफड़े, त्वचा, गुर्दे और यकृत शरीर में आर्सेनिक विष से प्रभावित हैं। आर्सेनिक भी व्यक्ति को कोमा में ले जा सकता है।
आर्सेनिक हृदय रोग, श्वसन रोग, डायबिटीज और कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं। लंबे समय तक आर्सेनिक के संपर्क में रहने से विटामिन A की अभि कम हो जाती है। आर्सेनिक विषयुक्त कुएं का जल लंबे समय तक पीने से आर्सेनिक विष का प्रभाव पड़ता है। आर्सेनिक अकार्बनिक उद्योगों से आता है, जैसे धातु अयस्क, सेमी कंडक्टर, कोक ओवन और कांच बनाने वाले। आर्सेनिक: चाँदी, तांबा, लैड और लोहा के अयस्क। इसे पीड़कनाशकों और आर्सेनिक कीटनाशकों में भी पाया जाता है। पीने या भोजन बनाने के लिए आर्सेनिक जल स्रोतों का पानी नहीं प्रयोग किया जाना चाहिए। आर्सेनिक को शरीर के रक्त, नाखूनों और बालों से जाँचते हैं।
प्रश्न 6. पेयजल में नाइट्रेट के उच्च स्तर पर होने से शिशुओं को कौन-सी समस्या हो सकती है?
उत्तर- पेयजल में उच्च नाइट्रेट से शिशुओं का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। भूमिगत जल में नाइट्रेट का उच्च स्तर ब्लु बेबी रोग को जन्म देता है, जो शिशु के हीमोग्लोबिन में ऑक्सीजन की कमी को जन्म देता है और शिशु को मार भी सकता है। कृषि में आज बहुत से नाइट्रोजनयुक्त खाद और उर्वरक उपयोग किए जाते हैं। नाइट्रेट पानी में घुल जाता है। इससे भूमिगत जल में नाइट्रेट का स्तर बढ़ता है और मिट्टी में घुल जाता है। 10 पीएम तक भूमि और जल में नाइट्रेट का स्तर घातक है। मैं थाइमोग्लोबिनेमिया से पीड़ित हूँ जब भूमिगत जल ही पेयजल है। यह रोग दूध पीने वाले शिशुओं को अधिक होता है क्योंकि उनकी संवेदनशीलता इस प्रदूषक से अधिक है। बच्चे जूस को पानी में मिलाकर अधिक पीते हैं।
इससे उनमें और अधिक पानी मिलता है। नाइट्रेट से भरा जल आंतों में जाता है, जहां आंतीय बैक्टीरिया इसे नाइट्राइटस में बदलते हैं। मैथाइमोग्लोबिन बनता है जब नाइट्राइट आयन हीमोग्लोबिन से मिलता है; इससे शरीर की ऑक्सीजन लेने की क्षमता कम हो जाती है, जो मैथाइमोग्लोब्रिनेमिया का कारण बनता है। इसलिए, हीमोग्लोबिन का अणु फेरस से फेरिक में बदल जाता है, जिससे मीथेग्लोबिनेमिया होता है। रक्त में ऑक्सीजन की कमी से बच्चे का शरीर धीरे-धीरे नीला होने लगता है, जिसे “ब्लू बेबी रोग” कहा जाता है। शिशु के लक्षणों में अधिक सोना, कम दूध पीना, कम ऊर्जा और कमजोरी शामिल हैं। नाइट्रेट को पानी से निकालने के लिए इलैक्ट्रोडायलिसिस या विपरीत परासरण विधि का उपयोग किया जा सकता है। पानी में ओजोन जैसे ऑक्सीकारक मिलकर नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदल देता है।
प्रश्न 7. बहुत अधिक शोर से होने वाली श्रव्य और अश्रव्य समस्याओं को बताइए ।
उत्तर- 80 से 90 डिबीएस (डेसिबल) से अधिक शोर कानों के लिए बहुत खतरनाक है। जैसे मिक्सी का शोर, इससे श्रव्य थकान होती है। अत्यधिक शोर से स्थायी या अस्थायी बहरापन भी हो सकता है। निरंतर शोर में रहने से अस्थायी बहरापन होता है, जैसे टेलिफोन आपरेटर, जो कुछ समय के बाद 24 घंटे में ठीक हो जाता है। 90 dB से उच्च स्तर के शोर में लंबे समय तक रहने के कारण स्थायी बहरापन होता है। कान की बीमारी या तकलीफ से पीड़ित व्यक्ति की स्थिति चिंताजनक हो सकती है। उन्हें व्यस्त कार्यस्थल और व्यस्त वातावरण से दूर रहना चाहिए। अश्रव्य प्रभाव में शारीरिक परिवर्तन शामिल हैं, जैसे चिड़चिड़ापन, बोलने और वार्तालाप में बाधा, कम कार्यकुशलता या क्षमता, तथा बोलने और वार्तालाप में बाधा।
(i) बोलने और वार्तालाप में बाधा – बोलने की योग्यता यह होती है कि आप अपनी बातों को स्पष्ट रूप से कह सकें। शोर होने से बोलना और सुनना मुश्किल होता है। यह माइक्रोफोन से बोलने, आमने-सामने बात करने या टेलिफोन से बात करने में किसी भी जगह हो सकता है। उच्च शोर में अपनी बात सुनाने के लिए आवाज को ऊँचा करना चाहिए। ऐसे में बहरेपन से अनजान लोगों के लिए सुनना बहुत मुश्किल हो जाता है। 78dB से ऊँचे शोर स्तर के लगभग 1 मीटर की दूरी पर खड़ा व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति की आवाज नहीं सुन पाता, इसलिए लंबी बातचीत करने के लिए शोर का स्तर 78dB से नीचे होना आवश्यक है। सामान बेचने वाले दुकानदार लगातार चिल्लाते हैं, ऊँची आवाज में, ताकि दूसरों को सुनाई दे। इससे आवाज के विकार हो सकते हैं।
चिड़चिड़ापन – तेज शोर चिड़चिड़ापन पैदा करता है। शोर वाले वातावरण में मनुष्य आवाज को कम करने को कोशिश करता है, वहाँ से चला जाता है। बहुत से लोग तेज शोर से चिड़चिड़े हो जाते हैं व मनोरोगी भी हो सकते हैं।
कार्यकुशलता – कार्यस्थल पर उच्च स्तर का शोर कार्य कुशलता में विघ्न डालता है तथा मनुष्य की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। शांत वातावरण कुशलता और क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है।
अन्य शारीरिक परिवर्तन- अत्यधिक शोर मनुष्य का रक्तचाप बढ़ाता है। नाड़ी की गति, श्वास की गति और पसीना भी अधिक होता है। सिरदर्द, चक्कर, मितली, थकान, अनिद्रा, रंग पहचानने में बाधा, रात्रि दृष्टि में कमी आदि अत्यधिक शोर के कारण होते हैं। रात्रि में काम करने वाले व्यक्ति व उच्च रक्तचाप के रोगी व्यक्तियों में शोर का प्रभाव अन्यों से अधिक होता है।
प्रश्न 8. पैट्रोल में टेट्राइथाइल लैड मिलाने का क्या मतलब है? लैड युक्त पैट्रोल का प्रयोग क्यों बंद किया गया?
उत्तर- गैसोलीन या पैट्रोल, लैडयुक्त कार्बनिक यौगिक और टेट्राइथाइल लैड मिलाकर बनाया जाता है। टैट्राइथाइल लैड (एक एंटीलॉक) को पैट्रोल में मिलाकर गाड़ी का इंजन अधिक आसानी से चलाया जाता था। वाहनों से निकलने वाले धुएं से लैड, या सीसा, वातावरण में फैलता है, इसलिए तेल को एंटीलॉक मिश्रण से बदला जाता है, जिससे वाहनों से लैड का उत्सर्जन कम होता है। अब लैड पैट्रोल नहीं चाहिए। लैड, जो इस प्रदूषक को बाहर निकालता है, अभी भी बहुत सी औद्योगिक इकाइयों में प्रयोग किया जाता है। बैटरी की छीलन में भी लैड होता है, जो पानी और भोजन में मिलकर दोगुना विष बनाता है। लैड स्नायु की हानि, छोटे बच्चों और शिशुओं में अन्य विकास संबंधी समस्याएं और ठीक न होने वाले या लाइलाज व्यावहारिक रोगों को जन्म देती है। लैड भी गुर्दे और फेफड़ों में कैंसर का कारण बन सकता है।
प्रश्न 9. एक कैंसर ट्यूमर बिना कैंसर ट्यूमर से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर– कैंसर शरीर की कोशिकाओं से जुड़े कुछ क्षेत्रों का समूह है। शरीर के विकास, वृद्धि और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को ठीक करने के लिए एक कोशिका एक से अधिक कोशिकाएँ बना सकती है। मानव शरीर कोशिकाओं की निरंतर वृद्धि और विभाजन से सामान्य और स्वस्थ रखता है, लेकिन कभी-कभी आवश्यकता के बिना भी ये कोशिकाएं विभाजित होती रहती हैं और एक समूह बना लेती हैं, जिसे टूयूमर कहते हैं, जो सुर्दम्य (Benign) या दुर्दम्य (Malignant) होते हैं। यह सुर्दम्य ट्यूमर शरीर के अंगों में भी नहीं फैलता, इसलिए इसे सर्जरी के माध्यम से निकाला जाता है। सुर्दम्य ट्यूमर जीवन को खतरा नहीं बनाता है।
जबकि कमजोर ट्यूमर कैंसर पैदा कर सकते हैं। इन ट्यूमर की कोशिकाएं असामान्य हैं और लगातार विभाजित होती रहती हैं बिना किसी नियंत्रण के। ये आसपास के अंगों और ऊतकों को नुकसान पहुंचाते हैं। इस ट्यूमर की कोशिकाएं विभाजित होकर रक्त की धारा में या लसिका संबंधी तंत्र में जाती हैं और वहाँ से अन्य अंगों में जाकर नए ट्यूमर बनाने लगती हैं। ज्यादातर कैंसर के नाम अंगों पर आधारित होते हैं; उदाहरण के लिए, फेफड़े में होने वाले कैंसर को फेफड़े का कैंसर कहते हैं। रोगाणुओं को कासिनोजन कहते हैं, जो कैंसर फैलाते हैं; पर्यावरणीय कार्सिनोजन रोगजनक वातावरण में होता है।
प्रश्न 10. तंबाकू को पीने और चबाने से क्या मुख्य दुष्प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ते हैं?
उत्तर- तंबाकू पीने, चबाने और तंबाकू के धुएं के निरंतर संपर्क में रहने से कैंसर से होने वाली सभी मौतों का 85% तंबाकू है। बीड़ी-सिगरेट पीने से पेट, यकृत, प्रोस्टेट, कोलन और मलद्वार का कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। बिना धुएं वाले तंबाकू भी खतरनाक है। तंबाकू को सूंघने या चबाने से गले और मुख में कैंसर हो सकता है। धूम्रपान न करने वालों के लिए फेफड़ों का कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि वे सक्रिय धूम्रपान या तंबाकू के धुएं के वातावरण में रहते हैं। धूम्रपान छोड़ने से कैंसर का खतरा कम हो जाता है और यह खतरा धीरे-धीरे कम होता जाता है। तंबाकू का अधिकतम असर हृदय, यकृत और फेफड़ों पर होता है। इसका उपयोग रक्तचाप बढ़ाता है। यह प्रभाव व्यक्ति के तंबाकू सेवन के समय पर निर्भर करता है।
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