पर्यावरणीय प्रदूषण के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. प्रदूषण और प्रदूषक को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर- प्रदूषण – जल, वायु या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन प्रदूषण कहलाता है, जिससे मानव, अन्य जीवों, औद्योगिक प्रक्रियाओं या सांस्कृतिक तत्त्व तथा प्राकृतिक संसाधनों को हानि होने की संभावना रहती है। प्रदूषण किसी भी रासायनिक क्रिया का ऊर्जा का रूप हो सकती है, जैसे- ध्वनि, ताप और प्रकाश ।
प्रदूषक – ऐसे तत्त्व जो अवांछनीय रूप से वस्तुओं के प्रयोग से उत्पन्न होती है, उन्हें प्रदूषक कहते हैं। प्रदूषण मानव प्रयोग में आने वाली त्यक्त सामग्री है, जैसे- कारखानों, वाहनों, नगरीय कचरे, घरेलू कचरे आदि से उत्पन्न होने वाली सामग्री । प्रदूषक दो प्रकार के होते हैं- प्राकृतिक तथा मानव निर्मित ।
प्रश्न 2. गाँवों में घरों के अन्दर रहने वाली गृहिणी की वातावरण संबंधी समस्याओं की सूची बनाइए । उनको कम
उत्तर- गाँवों में रहने वाली गृहिणी को क्या करना चाहिए? लकड़ी और गोबर के ईंधन जलाने से जुड़ी समस्याएं हैं। इन जैविक ढेरों को जलाने से धुआं निकलता है, जिससे श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं। इन समस्याओं को कम करने के लिए लकड़ी और गोबर के उपलों की जगह स्वच्छ ईंधन जैसे बिजली, मिट्टी का तेल, जैविक गैस (बायोगैस) का प्रयोग करें। रसोईघर में शुद्ध हवा का ठीक ढंग से प्रवेश होना चाहिए। बायोगैस और CNG का उपयोग बढ़ाना चाहिए।
प्रश्न 3. दिल्ली जैसे शहर में गाड़ियों के लिए CNG को ईंधन के रूप में प्रयोग में क्यों लाया गया? क्या इससे कोई अन्तर पड़ा ?
उत्तर– दिल्ली जैसे शहरी क्षेत्रों में CNG को गाड़ियों का ईंधन बनाया जा रहा है, जिससे वायु प्रदूषण कम हो सके। CNG एक जीवाश्मीय ईंधन है जो डीजल, पैट्रोल और LPG की जगह लेता है। CNG जलाने से ग्रीन हाऊस गैस निकलती है, लेकिन यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित है और अन्य ईंधनों से भी सुरक्षित है। बायोगैस के साथ CNG को मिश्रित करने से कार्बन सांद्रता कम होती है। CNG सपीड़ित प्राकृतिक गैस है जिसका आयतन वायुमंडलीय दाब पर 1% से भी कम है। 200-248 दाब पर CNG सिलेण्डरों में भरता है। पहले, टेट्राइथाइल लैड को पैट्रोल में मिलाकर ईंजन को हल्का करने और ऑक्टेन स्तर को बढ़ाने के लिए किया गया था। इससे वाहनों से निकलने वाले धुएं में लैड कण मिलते हैं। CNG का उपयोग इस प्रकार का प्रदूषण कम करता है।
प्रश्न 4. ‘मॉण्ट्रियल प्रोटोकॉल’ के अनुसार क्लोरो फ्लोरो कार्बन का उत्पादन बन्द कर दिया जाए। क्यों?
उत्तर- क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मीथेन और इथेन के सहसंयोजक के रूप में कार्बन, क्लोरीन, हाइड्रोजन और फ्लोरीन से बना एक कार्बनिक यौगिक है। CFC फ्रिज, एअरोसोल और विलायक में उपयोग किया जाता है। इसके उत्पादन को बंद करना चाहिए क्योंकि CFC ओजोन परत को नुकसान पहुंचाता है। 1987 में CFC को हाइड्रोक्लोरोफ्लोरो कार्बन (HCFC) से बदल दिया गया, जो ओजोन परत को कम ही नुकसान पहुँचाता था ।
प्रश्न 5. एक ऐसी पर्यावरण सहयोगी गतिविधि बताइए जिससे लाभदायक ढंग से मानव निर्मित कूड़ा व अपशिष्ट तथा पशुओं का कूड़ा व अपशिष्ट समाप्त किया जा सके।
उत्तर- मानव अपशिष्ट को उपयोगी कम्पोस्ट में बदलने से बीमारियां रोकी जा सकती हैं। फल उगाने में इस कम्पोस्ट का उपयोग किया जा सकता है। मानव अपशिष्ट को जल्दी से कम्पोस्ट में बदलने में तीन से चार सप्ताह या धीरे-धीरे दो वर्ष लग सकते हैं। कम्पोस्ट भी पशु अपशिष्ट से बनाया जा सकता है। इसके लिए, एक गड्ढा खोदकर गाय का गोबर उसमें डाल देना चाहिए. कुछ समय बाद, यह खाद में बदल जाता है। इस खाद को बगीचों और खेतों में उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। अपशिष्ट सामग्री सीधे जलाशय में नहीं डालनी चाहिए। उन्हें अपचयित करना सबसे अच्छा है। उदाहरण के लिए, घरेलू कूड़े-कचरे को जलाकर निकालना अच्छा है, लेकिन इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है, इसलिए इसे अलग-अलग निकालना चाहिए। जिन दो को जलाना चाहिए, उन्हें ही जलाना चाहिए, और अपशिष्ट से खाद बनाकर उनका पुनर्चक्रण फायदेमंद होता है।
प्रश्न 6. रासायनिक उर्वरक कृषि और फसलों के लिए उपयोगी होते हैं। वे पर्यावरण में प्रदूषण कैसे फैलाते हैं?
उत्तर- रासायनिक उर्वरक पर्यावरण को निम्न प्रकार से प्रदूषित करते हैं-
खेतों से बहने वाले पानी इन जल निकायों में बह जाता है, जिससे जल संकायों, जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में सुपोषण की समस्या होती है। पानी के सुपोषण से पानी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा बढ़ती है, जो शैवाल और अन्य जलीय पौधों को पनपने में मदद करता है। इससे जलीय जीवों का बुरा असर होता है। मृदा के भौतिक गुणों को प्रभावित करने के लिए रासायनिक उर्वरक भूमि को प्रदूषित करते हैं। रासायनिक उर्वरकों का अधिक दिनों तक प्रयोग मृदा को अम्लीय बनाता है। इस तरह, मृदा में कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थों (जैसे Ca++ और Mg++) की मात्रा बढ़ जाती है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। वे फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता पर प्रभाव डालते हैं। मृदा में नाइट्रोजन के आक्साइड और अन्य गैसें, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से वायुमण्डल में प्रवेश करते हैं, जो पर्यावरण को प्रदूषित करता है।
प्रश्न 7. उद्योगों से निकलने वाले कणीय पदार्थों से होने वाले प्रदूषण को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर– उद्योगों से निकलने वाले कणीय पदार्थों से होने वाले प्रदूषण को निम्न विधियों द्वारा रोका जा सकता है-
(अ) ऊर्जा संयंत्रों और फर्टिलाइजर संयंत्रों में स्वच्छ ईंधन का प्रयोग किया जाए, जैसे- LNG, यह सस्ती होने के साथ ही पर्यावरण सहयोगी भी है।
(ब) ऐसे पर्यावरण सहयोगी औद्योगिक प्रक्रियाएं अपनानी चाहिए जिससे कम मात्रा में प्रदूषक व अपशिष्टों का निकास हो ।
(स) कम प्रदूषक निष्कासित करने वाली मशीनों का उपयोग किया जाए, जैसे- फिल्टर, इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर, इनरशियल कलैक्टर्स, स्क्रबर ग्रेवल बैंड फिल्टर या ड्राई स्क्रबर |
फिल्टर – फिल्टर फैल्ट पैड, बड़ी छलनी या कपड़े से रेत बनाते हैं। ये सिर्फ गैस की धारा से ठोस कणों को बाहर निकालते हैं। इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर (ESP)—ESP बायलर, भट्ठी, थर्मल पावर प्लांट, सीमेंट, फैक्टरी और स्टील प्लांट में उपयोग किया जाता है। ऊपर उठने वाली और उत्पन्न होने वाली धूल में आयन और आयनित कण पदार्थ होते हैं. आयन में परिवर्तित होने वाले कण पदार्थ विपरीत धरातल पर एकत्रित होते हैं, जो कभी-कभी धरातल को हिलाकर झाड़कर धरातल से हटाया जाता है।
जड़त्वीय कलैक्टर्स – गैस में SPM का जड़त्व उसमें विलायक से अधिक होता है और क्योंकि कण रूपी पदार्थ जड़त्व के कारण नीचे आ जाते हैं इसलिए यह उपकरण भारी पदार्थों को कुशलता से एकत्रित कर लेता है।
स्क्रबर – स्क्रबर आर्द्र संचय करते हैं। स्क्रबर ऐरोसॉल कणों को गैस की धारा से निकालते हैं। ये या तो धरातल से आर्द्र कणों को इकट्ठा करके निकाल देते हैं या उन कणों को स्क्रबिंग तरल पदार्थ से गीला कर देते हैं। नम स्क्रबर में गैसीय प्रदूषक सोख लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, SO2 को इसमें घुलने के कारण सल्फर डाईऑक्साइड को निकालने के लिए क्षारीय घोल की आवश्यकता होती है। किसी सक्रिय ठोस धरातल पर ठोस धरातल जैसे सिलिका जैल, एलुमिना या कार्बन को सोखा जा सकता है। कोयला और पैट्रोलियम उत्पादन उद्योगों से निकलने वाले तरल पदार्थों को संघनित करने से कई अतिरिक्त उत्पाद प्राप्त होते हैं। कुछ अन्य उपाय जो अतिरिक्त प्रदूषकों को नियंत्रित कर सकते हैं-
(i) चिमनियों की ऊँचाई में वृद्धि करने से।
(ii) पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले उद्योगों को बंद करके।
(iii) ऐसे उद्योग जो प्रदूषण फैलाते हैं उन्हें शहर और घनी आबादी वाले क्षेत्र से दूर कर दिया जाए।
(iv) उचित चौड़ाई वाली हरित पट्टी को विकसित किया जाए।
प्रश्न 8. PUC प्रमाण पत्र क्या है? क्या यह आवश्यक है और किसके लिए? आपके विचार में क्या यह वास्तव में लाभदायक है ?
उत्तर – PUC का अर्थ है “प्रदूषण नियंत्रण” में है। सभी स्वचालित वाहनों को यह प्रमाण पत्र चाहिए। इससे स्वचालित वाहनों का प्रदूषण कम हो सकता है। वाहनों से निकलने वाले धुएं की मात्रा की जांच करने और उसे सावधानीपूर्वक पालन करने से प्रदूषण कम होगा। वाहनों के उत्सर्जन को कम करने के लिए उत्प्रेरक कंवर्टर की मजबूती का स्तर निर्धारित होना चाहिए। दिल्ली और अन्य शहरी क्षेत्रों में वाहनों को नियंत्रित अंतराल पर प्रदूषण नियंत्रण परीक्षण और प्रमाणपत्र प्राप्त करना अनिवार्य है। इससे पता चलता है कि वाहनों से निकलने वाले प्रदूषक सीमा के अंदर हैं। यह प्रमाणपत्र आवश्यक है क्योंकि यह प्रदूषण को कम करने में मदद करता है। यदि किसी भी स्वचालित वाहन से निकलने वाले धुएं का स्तर निर्धारित स्तर से अधिक है, तो उसे मरम्मत करके पर्यावरण को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 9. चिकित्सकीय कूड़ा क्या है? इसको हानिकारक अपशिष्ट क्यों कहा जाता है ? चिकित्सकीय कूड़े को समाप्त करने का सुरक्षित ढंग क्या है?
उत्तर – चिकित्सकीय कूड़ा स्वास्थ्य की रक्षा करने वाले पदार्थों से बना है, जैसे पट्टियां, गॉज, सिरेंज, ग्लूकोज की खाली बोतलें, रबर-प्लास्टिक के दस्ताने, रबर ट्यूब, खून, रसायन, जांज सैम्पल, रेडियो एक्टिव पदार्थ आदि। यह चिकित्सकीय कूड़ा वातावरण को दूषित करता है और कई बीमारियां पैदा करता है, इसलिए यह घातक अपशिष्ट है। ताकि वे संक्रमण से दूसरे प्राणियों को बीमार नहीं कर दें, ऑपरेशन के बाद शरीर के कटे अंगों, मांस के लोथड़े, रंजित चादरें, बिस्तर आदि को सुरक्षित रूप से निकालना चाहिए। चिकित्सकीय कूड़ा एक खतरनाक अलार्म है, जो वहाँ काम करने वालों, आम लोगों और आसपास के सभी जीव-जन्तुओं को बीमार कर सकता है।
चिकित्सकीय कूड़े के निस्तारण के उपाय-
(i) जैव चिकित्सा संबंधी कूड़े को पृथक-पृथक एकत्रित करना चाहिए।
(ii) कूड़े के बर्तनों को एक बार प्रयोग करने के बाद नष्ट करना चाहिए।
(iii) इसे नष्ट करने के लिए खुले में जलाना या फेंकना नहीं चाहिए।
(iv) इसे उचित रूप से जलाने वाले उपकरणों में भस्म कर देना चाहिए।
प्रश्न 10. प्राथमिक उपचार के बाद पानी की गुणवत्ता में वृद्धि करने के तरीके बताइए |
उत्तर- घरेलू और उद्योगों से बहाया जाने वाला बेकार और गंदा पानी तथा कूड़े के ढेरों में गंदे पानी को प्रदूषित जल कहते हैं। इस जल को दो प्रकार से उपचारित किया जाता है- प्रारम्भिक उपचार, द्वितीयक उपचार तथा तृतीयक उपचार इसके अंतर्गत तंत्र में शामिल हैं-
(i) तलछट,
(ii) जमाव या गुच्छा सा बनना,
(iii) निथारना और छानना,
(iv) विसंक्रमण
(v) हल्का बनाना और
(vi) गैसों का मिश्रण |
हाइड्रोजन सल्फाइड दूर होता है तथा CO2 की मात्रा कम होती है। तब वह जल जलीय जीवों और वनस्पतियों के उपयोग के योग्य हो जाता है। प्रदूषित जल का सीवेज और गंदे पानी को उपचारित करने के लिए विशेष रूप से ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाते हैं।
प्रश्न 11. थर्मल प्रदूषण जलीय जीव जैसे मछलियों के जीवन पर क्या प्रभाव डालता है ? थर्मल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे ?
उत्तर– पावर प्लांटस – ऊष्मीय और नाभिकीय, रासायनिक और अन्य – उद्योग ठंडा करने के उद्देश्य के लिए बहुत मात्रा में ल प्रयोग करते हैं (लगभग संपूर्ण प्राप्त जल का 30% जल) और प्रयोग किया हुआ गर्म पानी नदियों, जल धाराओं और समुद्र में छोड़ दिया जाता है। बॉयलर और गर्म पानी करने की प्रक्रिया से निकली बेकार ऊष्मा ठंडा करने वाले जल का तापमान बढ़ा देती है। गर्म पानी जिस जल से मिलता है, उसका तापमान 10°C से 15°C तक से पानी में घुली आक्सीजन कम हो जाती है, जिसके कारण जलीय जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
जलीय निकायों का तापमान अधिकतर स्थिर और स्थायी रहता है, बहुत परिवर्तित नहीं होता इसलिए जलीय जीवन को एक से स्थिर तापमान में रहने का अभ्यास हो जाता है तथा जल के तापमान में थोड़े उतार-चढ़ाव से जलीय वनस्पति और जीवों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्हें तापमान में बहुत परिवर्तन का अनुभव नहीं होता है। इस प्रकार पावर प्लांट से निष्कासित गरम जल जलीय जीवों पर विपरीत प्रभाव डालता है। उष्ण कटिबंधीय जल में रहने वाली जलीय वनस्पति और जीव गरम जल में रहते हैं, वे खतरनाक रूप से तापमान की उच्च सीमा में रहते हैं। विशेषकर भीषण गर्म महीनों के दौरान तापमान की सीमा में हल्का सा परिवर्तन इन जीवों पर तापीय दबाव पैदा कर देता है।
जल निकायों में गर्म पानी का विसर्जन मछलियों के भोजन, उपापचय और वृद्धि पर प्रभाव डालता है। उनकी तैरने की क्षमता कम हो गई है। उन्हें जीवन भक्षी पशुओं से बचना और उनके शिकार का पीछा करना कठिन हो जाता है।
(i) आयोनाइजिंग (आयनों में परिवर्तित होने वाले ) ।
(ii) नॉन आयोनाइजिंग (आयनों में परिवर्तित नहीं होने वाले ) ।
आयोनाइजिंग – यह रेडिएशन के माध्यम से गुजरते हुए उसके परमाणुओं और अणुओं को आयनों में बदल देता है। नाभिकीय प्रक्रिया में विद्युत चुंबकीय रेडिएशन (ऊर्जा से भरे कण), पराबैंगनी विकिरण (एक्स-रे, गामा-रे) और लघु तरंगदैर्ध्य एल्फा और बीटा कण रेडियोएक्टिव विखण्डन से बनते हैं, जबकि न्यूट्रॉन नाभिकीय विखण्डन से बनते हैं। ये सभी जीवों को घातक हैं। आयन नाभिकीय प्रक्रिया से उत्पादित होते हैं, जिसमें विद्युतीय कण माध्यम के परमाणु या अणु से इलेक्ट्रोनों को तोड़ने की पर्याप्त क्षमता रखते हैं। उदाहरण के लिए, जल अणुओं में आयनों से ऐसी प्रतिक्रिया हो सकती है, जो प्रोटीन और अन्य आवश्यक अणुओं के बंधनों को तोड़ सकती है। इसके अलावा, DNA के पास जलीय अणु आयनों में बदल सकते हैं अगर गामा किरण कोशिका में प्रवेश करती है। और आयनों की DNA से प्रतिक्रिया उन्हें विभाजित कर सकती है। जब रासायनिक बंधन टूटते हैं, तो इनमें रासायनिक बदलाव भी हो सकते हैं, जो जीवधारियों के ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकता है। क्योंकि इनसे जैविक संरचना को नुकसान पहुँचता है, आयोनाइजिंग रेडिएशन प्रदूषकों की श्रेणी में आते हैं।
नॉन-विद्युत चुंबकीय तरंगों से निर्मित आयोनाइजिंग रेडिएशन स्पेक्ट्रम की लंबी तरंगदैर्ध्य पर परास रेडियो तरंगों से अल्ट्रावॉयलेट किरणों तक जाती है। ये तरंगे बहुत तेज हैं। ये रास्ते के परमाणुओं और अणुओं को उत्तेजित करती हैं। जो उनके कंपन को बढ़ाता है, लेकिन उन्हें आयनों में नहीं बदल सकता। उदाहरण के लिए, भोजन माइक्रोवेव अवन में गर्म होता है क्योंकि अवन रेडिएशन से जल के परमाणुओं में कंपन की गति बढ़ जाती है। इस तरह, माइक्रोवेव गैर-आयोनाइजिंग रेडिएशन और एक्स-रे और गामा-रे आयोनाइजिंग रेडिएशन हैं।
प्रश्न 13. नाभिकीय प्रदूषण से होने वाले संभावित खतरों की सूची बनाइए ।
उत्तर– विकिरण हानि एक जैविक क्षति है जो आयोनाइजिंग विकिरण से होती है। अधिक मात्रा में विकिरण कोशिका को समाप्त कर देता है और उसके संपर्क में आने वाले जीवन, पीढ़ी-दर-पीढ़ी भी प्रभावित हो सकता है। प्रभावित कोशिका में उत्परिवर्तन हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप कैंसर भी हो सकता है, और विकिरण की अत्यधिक मात्रा किसी जीव को मार भी सकती है।
विकिरण से दो प्रकार की हानि होती है- शारीरिक हानि व आनुवंशिक हानि। शारीरिक हानि, जो प्रजनन से संबंधित नहीं होती, श्वेत रुधिर कणिकाओं की कमी, मोतियाबिंद, त्वचा का लाल होना, बालों का झड़ना, अल्सर, फेफड़ों में फाइब्रोसिस, छिद्रों का बनना आदि हैं। जबकि आनुवंशिक हानि प्रजनन से संबंधित कोशिकाओं की हानि है, इससे कैंसर और मृत्यु भी हो सकती है। इससे प्रजनन विकास होता है। जीन में बदलाव असामान्य विकार पैदा करता है, जो अगली पीढ़ी में भी फैलता है।
प्रश्न 14. विकिरण द्वारा कैंसर कैसे संभव है?
उत्तर – विकिरण की अधिक मात्रा कोशिकाओं को मार सकती है, प्रभावित व्यक्ति को भी प्रभावित करती है और प्रभावित कोशिकाएं उत्परिवर्तित होती हैं, जिससे कैंसर होता है। दैनिक बैंक ग्राउण्ड रेडिएशन से कम मात्रा में कोशिकाएं क्षति को ठीक करती हैं 100 Rem तक की अधिक मात्रा में कोशिकाओं में हानि को ठीक करने की क्षमता नहीं होती और ये कोशिकाएँ असामान्य कोशिकाओं को बनाती हैं जो या तो मर जाती हैं या स्थायी रूप से बदल जाती हैं। विभाजन कैंसर का कारण बनता है। ऊतकों में अधिक मात्रा में भी कोशिकाएं तीव्र गति से प्रतिस्थापित नहीं होतीं, जिससे वे कार्य नहीं कर सकते हैं। जैसे विकिरण सिकनेस, जिसमें यह स्थिति पूरे शरीर को उच्च मात्रा देती है
प्रश्न 15. मृदा प्रदूषण, इसके कारण और नियंत्रण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर – मृदा प्रदूषण भूमि में किसी भी पदार्थ का मिलना है जो मृदा की उर्वरक क्षमता और गुणवत्ता को खराब करता है। मृदा भी प्रदूषित होती है जब जल प्रदूषित होता है। मृदा प्रदूषण को सीवेज, सीवेज गाद, घर निर्माण का मलबा, व्यावसायिक और औद्योगिक संस्थानों से निकला कूड़ा और ठोस कूड़ा (प्लास्टिक, कपड़ा, काँच, धातु और जैव पदार्थ) बढ़ाता है। मृदा प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत राख, लोहा और औद्योगिक और चिकित्सकीय कूड़ा है। मृदा प्रदूषण भी खेती में प्रयोग किए गए कीटनाशक और उर्वरक से होता है और शहर के कूड़े-करकट से गड्ढों को भरता है। मृदा प्रदूषण भी प्रदूषकों और अम्लीय वर्षा से बढ़ा जाता है।
मृदा प्रदूषण के कारण-
1. प्लास्टिक थैलियाँ– प्लास्टिक थैलियां कम घनत्व वाली पोलिथीन से बनाई जाती हैं, जो कभी भी नष्ट नहीं होतीं, जिससे पर्यावरण को खतरा है। प्लास्टिक की फेंकी गई थैलियाँ नालियों और सीवेज सिस्टम को बंद कर देती हैं। थैलियों में खाना या सब्जी के छिलके फेंकने से कुत्ते और गाय प्लास्टिक के कारण दम घुटने से मर जाते हैं। प्लास्टिक एक अजैव निम्नकरणीय पदार्थ है, जो कूड़े के ढेर में जलने पर कार्बन मोनो आक्साइड, CO2 फॉस्जीन डायोक्सिन और अन्य जहरीले क्लोरीनीकृत यौगिक बनाता है।
2. औद्योगिक स्रोत – इसमें धूल, राख, रासायनिक अवशिष्ट, धातु और नाभिकीय कचरा सम्मिलित हैं। काफी मात्रा में औद्योगिक रसायन, रंजन, एसिड किसी न किसी प्रकार से मिट्टी में मिल जाते हैं तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसे कैंसर का भी कारण बन जाते हैं।
3. कृषि स्रोत – कृषि रसायन, जैसे कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक, भूमि को खराब करते हैं। खेतों से बहने वाले पानी के साथ बहकर आने वाले उर्वरक जल निकायों में मिल जाते हैं, जिससे जल निकायों में सुपोषण की समस्या पैदा होती है। कीटनाशक दवाइयां बहुत विषाक्त हैं, जो लोगों और पशुओं पर बुरा प्रभाव डालती हैं, जिससे श्वास संबंधी समस्याएं, कैंसर और मृत्यु भी हो सकती है।
4. मृदा प्रदूषण का नियंत्रण – मृदा प्रदूषण को कम करने के लिए प्लास्टिक थैलियों का उपयोग बंद कर देना चाहिए। इसकी जगह कपड़े या निम्न स्तर की सामग्री, जैसे कागज, लेना चाहिए। उर्वरक या भराव करने से पहले सीवेज को अच्छी तरह से धोना चाहिए। जब घरों से खेतों से निकलने वाले जैविक पदार्थों को अलग-अलग छांटना चाहिए, इससे वर्मीकम्पोस्टिंग किया जा सकता है, जो उप-उत्पाद के रूप में एक उपयोगी उर्वरक बनाता है। औद्योगिक कचरे को फेंकने से पहले उनमें से हानिकारक पदार्थों को हटाने के लिए उचित रूप से उपचारित करना चाहिए। जैव चिकित्सीय कूड़े को अलग-अलग लेकर उचित रूप से जलाने वाले उपकरणों में भस्म करना चाहिए।
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