NIOS Class 12 Biology Chapter 1 जीवन की उत्पत्ति एवं विकास और वर्गीकरण से परिचय

प्रश्न 31. संरचना की दृष्टि से विषाणुभ किस प्रकार विषाणु से भिन्न होते हैं?
उत्तर- विषाणु एक सरल संरचना है, जिसका आनुवांशिक पदार्थ डी.एन.ए. या आर. एन. ए. से बना है और यह प्रोटीन के आवरण से घिरा होता है, जबकि विषाणुभ वर्तुलाकार कई सौ न्यूक्लिओटाइड से मिलकर बने होते हैं। इनका आनुवांशिक पदार्थ केवल आर. एन. ए. से बना होता है ।

प्रश्न 32. विषाणुभ आक्रमिक होने वाले पौधों के लिए खतरनाक समझे जाते हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर- विषाणुभ पौधों के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं, क्योंकि पौधों में एंजाइमों के प्रयोग द्वारा पादप कोशिकाओं की प्रतिकृति बनाने लगते हैं और इनकी संख्या में वृद्धि होने के पश्चात पौधों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है, और परिवर्धन असामान्य हो जाता है।

प्रश्न 33. पृथ्वी में जीवन की उत्पत्ति के विषय में सबसे प्रामाणिक सिद्धान्त कौन-सा है ? मिलर व यूरे ने किस प्रकार रसायनी -संश्लेषण को सत्यापित किया?
उत्तर – ए.आई. ओपेरिनने जीवन की उत्पत्ति का रसायन संश्लेषी सिद्धांत प्रस्तावित किया। रासायनिक पदार्थों के क्रमबद्ध संयोजन से जल में जीवन की उत्पत्ति हुई। 1953 में मिलर और यूरे ने एक वायुरोधी उपकरण की सहायता से इसका प्रयोग किया। इस प्रयोग से उन्होंने दिखाया कि पराबैंगनी किरणों और ऊष्मा के संयोजन से सरल कार्बनिक पदार्थ जटिल कार्बनिक पदार्थों में बदल जाते हैं, जैसे अमोनिया (NH3), मीथेन (CH4), हाइड्रोजन (H2) तथा जल (H2O)।

प्रश्न 34. डार्विनवाद व नव- डार्विनवाद में भेद कीजिए ।
उत्तर- डार्विनवाद – अंग्रेज वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन (1809- 1882) ने विकास की प्रक्रिया को अपने प्राकृतिक वरण के आधार पर स्पष्ट किया, जिसमें छः आधारभूत बातें थीं-
(i) संतान की अति उत्पत्ति (ii) विभिन्नता
(iii) अस्तित्व के लिए संघर्ष
(iv) प्राकृतिक वरण
(v) वांछित विशिष्टता की वंशागति
(vi) नई स्पीशीज का उद्भव

अस्तित्व के लिए संघर्ष के दौरान जिन जीवों में लाभकारी विभिन्नताएँ पाई जाती हैं, वे सुरक्षित बच जाते हैं तथा आगे संतान उत्पन्न कर सकते हैं, जबकि अलाभकारी विभिन्नता वाले जीव प्रकृति में से समाप्त होते जाते हैं। इसे ही डार्विन का प्राकृतिक वरण (Natural Selection) कहते हैं।

नव- डॉर्विनवाद – इस मत के अनुसार,
(i) वंशागत आनुवंशिक परिवर्तन ही विकास के आधार हैं।
(ii) प्राणियों में मुख्य भूमिका जनन- पृथक्करण की होती है।
(iii) प्रकट होने वाले छोटे परिवर्तनों द्वारा तथा उनके संयोजनों से जीवों में अथवा क्रोमोसोमों में विभिन्नताएँ आती हैं।
(iv) किसी समष्टि (Population) की आनुवंशिक संरचना में परिवर्तन के कारण ही नई स्पीशीज का विकास होता है।
इस मत को आधुनिक संश्लेषी मत (Modern Synthetic Theory) कहा जाता है।

प्रश्न 35. विकास के संश्लेषी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – जैव विकास का अर्थ है भू-वैज्ञानिक काल के दौरान सरल पूर्वज प्रकार के जीवों से सम्मिश्र प्रकार के जीवों की उत्पत्ति। जैव विकास एक समान पूर्वज से रूपांतरण के परिणामस्वरूप धीमी एवं क्रमिक परिवर्तन की प्रक्रिया है।

प्रश्न 36. आणविक प्रमाण द्वारा विकास के मत को प्रमाणित कीजिए।
उत्तर– सभी प्राणियों में कोशिकाएं जीवन की मूलभूत इकाइयाँ होती हैं। कोशिका जैव अणुओं से निर्मित होती हैं, जो सभी प्राणियों में सर्वनिष्ठ है।
(i) राइबोसोम सभी जीवों में पाई जाती है।
(ii) DNA सभी जीवों का आनुवंशिक पदार्थ है।
(iii) ATP जैव प्रक्रियाओं के लिए ऊर्जा संग्रह करने व निःसृत करने वाला अणु है।
(iv) लगभग सभी जीवों में समान 22 अमीनो अम्ल प्रोटीनों के अवयव होते हैं।
(iv) जीव क्रोड सार्वत्रिक है।
(vi) जीव संबंधी सूचना – स्थानांतरण का केंद्रीय सिद्धान्त सभी में समान है।
(vii) सभी जीवों में प्रोटीन संश्लेषण के लिए प्रतिलेखन व स्थानांतरण के मूलभूत सोपान एक समान हैं।
(viii) न्यूक्लिओटाइडो का अनुक्रम जैसा कि उत्प्रेरक जीव में होता है, सभी जीवों में सर्वनिष्ठ होता है।

प्रश्न 37. वाइरसों की संख्या में कैसे वृद्धि होती है? केवल याख्या करने वाले आरेख द्वारा दर्शाएं।
उत्तर- वायरस को निर्जीव कहा जाता है। यह अकेले उत्पन्न हो सकता है। वाइरस को किसी परपोषी कोशिका में घुसकर जीवित होना चाहिए। केंद्रक, जिसमें DNA या RNA आनुवंशिक पदार्थ होता है, वाइरस की कोशिका में पाया गया है। वार रपोषी कोशिका ऊर्जा, अमीनो अम्ल और एंजाइम का उपयोग करके अपना DNA बनाता और बढ़ाता है। इस प्रकार, कई वाइरस परपोषी कोशिका में बनते हैं।

प्रश्न 38. पाँच जगतों के वर्गीकरण का योजनाबद्ध आरेख दें।
उत्तर- प्रदत्त तालिका में जीवों का पाँच जगत वर्गीकरण इस प्रकार है-

जगत का नामकेंद्रक की प्रकृतिएककोशीय या बहुकोशीयपोषण के प्रकार
1. मोनेरा नील हरित शैवाल व बैक्टीरियासभी जीवाणु प्राक्केंद्रकीय हैं।ये एककोशिकीय होते हैं।विविध प्रकार का पोषण
2. प्रोटिस्टा (Protista)सभी जीवाणु सुकेंद्रकीय (Eukaryotic) हैं।एककोशिकीय होते हैं।विविध प्रकार का पोषण
3. फंजाई (Fungi)सभी सुकेंद्रकीय हैं।ये बहुकोशिकीय होते हैं। मृतपोषी (मृत, सड़े-गले पदार्थ से पोषण

प्राप्त करते हैं) तथा सहजीवी होते हैं।

4. प्लांटी (Plantae)सभी पौधे सुकेंद्रकीय हैं। बहुकोशिकीय होते हैं। ये स्वपोषी होते है अर्थात प्रकाश-संश्लेषण

द्वारा आहार का संश्लेषण करते हैं।

5. एनिमेली (Animalae)सभी जीव सुकेंद्रकीय हैं।ये बहुकोशिकीय होते हैं। आहार के लिए अन्य पर अर्थात पौधों तथा

अन्य जीवों पर आश्रित होते हैं।

प्रश्न 39 . पाँच जगतों के वर्गीकरण की आधारभूत कसौटियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
जिन कसौटियों पर पांच जगतों का वर्गीकरण आधारित है, उनका वर्णन करें।
उत्तर – वर्गीकरण का उद्देश्य है, विभिन्न प्रकार के जीवों के बीच संबंधों और विविधताओं का विश्लेषण करना, फिर एक प्रकार के जीवों को एक समूह में रखना और दूसरे प्रकार के जीवों को अलग-अलग समूहों में रखना। विकास संबंधों की स्थापना करने के लिए, जैविक वर्गीकरण में आकृतिपरक, जैव-रासायनिक और DNA और RNA अणुओं की समानता का अध्ययन किया जाता है। एक जीव को वर्गीकरण करते समय, इसे उन श्रेणियों में रखा जाता है जो इसके विकास संबंधों को अन्य समूहों के जीवों से बताती हैं। प्रत्येक श्रेणी को “टेक्सॉन” कहते हैं। सबसे छोटा स्पीशीज है। ये इस प्रकार हैं-

स्पीशीज (Species) — एक प्रकार के जीवों का समूह जो अंतःप्रजनन द्वारा उर्वर संतति पैदा कर सकते हैं।
जीनस (Genus)—स्पीशीजों में एक-दूसरे से कई प्रकार की समानता रखने वाले समूह, जो एक साझे पूर्वज की ओर संकेत करते हैं।
फैमिली (Family) — इसमें समान अभिलक्षणों वाली फैमिली आती है।
क्लास (Class) – ये परस्पर संबंधित क्रम है।
फाइलम (Phylum) – इसमें परस्पर संबंधित क्लास आते हैं।

जीवन की उत्पत्ति एवं विकास और वर्गीकरण से परिचय के परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. वर्गीकरण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर – जीव विज्ञान के अध्ययन को सरल बनाने के लिए उन्हें समानताओं तथा विभिन्नताओं के आधार पर अलग-अलग समूहों में रखना वर्गीकरण कहलाता है।

प्रश्न 2. वाइरस से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर – वाइरस अति सूक्ष्म कण होते हैं। इन्हें हम नंगी आंखों से नहीं देख सकते। वाइरस केवल इलैक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप (Electronic Microscope) द्वारा ही देखे जा सकते हैं। इनका आकार नैनोमीटर (nm) में व्यक्त किया जाता है, जो 10- 2 (m) के बराबर है।

प्रश्न 3. वाइरस सजीव हैं या निर्जीव हैं?
उत्तर– वाइरस में सजीव (living) तथा निर्जीव (Non-living) दोनों के गुण पाए जाते हैं। निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर वाइरसों को सजीव कहा जा सकता है-
(i) वाइरस में आनुवंशिक पदार्थ के रूप में न्यूक्लिक अम्ल (Nuclic Acid) पाया जाता है।
(ii) ये अपने जैसी प्रतिकृतियां बना सकते हैं।
(iii) ये सूक्ष्मजीवों की तरह रोग पैदा करते हैं।
निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर वाइरस को निर्जीव कहा जा सकता है-
(i) ये अकोशिकीय होते हैं।
(ii) इन्हें क्रिस्टल के रूप में रखा जा सकता है।
(iii) ये स्वयं जनन नहीं कर सकते ।
उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर वाइरस को सजीव तथा निर्जीव के बीच की सीमा पर रखा गया है।

प्रश्न 4. कैंसर क्या वाइरस द्वारा होने वाला रोग है ?
उत्तर- कुछ कैंसर वाइरसों के द्वारा भी होते हैं। इन वाइरसों में आनुवंशिक पदार्थ RNA होता है तथा इन्हें रेट्रोवाइरस (Retroviruses) कहते हैं।

प्रश्न 5. जाति उद्भवन के बारे में समझाइए | वर्गीकृत किया जा सकता है।
उत्तर– जाति उद्भवन नई स्पीशीज का विकास है। यह विस्थानिक (एलोपेट्रिक) और समस्थानिक (सिमपेट्रिक) विस्थानिक जाति उद्भवन से संबंधित है, जिसमें समष्टि के एक हिस्से का मूल जनसंख्या से भौगोलिक रूप से अलग होना शामिल है। उदाहरण के लिए, पक्षियों के एक समूह के कुछ सदस्यों को पहाड़ की तलहटी से ऊँचे स्थानों पर स्थानांतरित करने पर विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के कारण शनैः शनैः आनुवांशिक बदलाव होते हैं। कुछ बाधा; बहुगुणिता के कारण एक ही स्पीशीज समष्टि के एक भाग के सदस्यों का दूसरे भाग से परस्पर जनन नहीं होता, जिससे एक नई स्पीशीज बनती है। समस्थानिक जाति उद्भवन इसका नाम है।

दो मॉडल जाति उद्भवन को समझाते हैं। दो मॉडल हैं: जातिवृत्तीय क्रमिकता (फाइलेटिक गतिशीलता) और विरामित साम्यावस्था (पुंकटेड)। जातिवृत्तीय क्रमिकता मॉडल के अनुसार, एक समष्टि की दो प्रजातियां धीरे-धीरे संरचनात्मक रूप से अधिक भिन्न होती जाती हैं, जबकि विरामित साम्यावस्था मॉडल के अनुसार, स्पीशीज में बदलाव एक विशिष्ट पर्यावरणीय प्रभाव के बाद ही होता है और यह बदलाव अक्सर एक लंबी अवधि के लिए होता है।

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