NIOS Class 10 Psychology Chapter 1 मनोविज्ञान से परिचय

NIOS Class 10 Psychology Chapter 1 मनोविज्ञान से परिचय

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NIOS Class 10 Psychology Chapter 1 Solution – मनोविज्ञान से परिचय

प्रश्न 1. मनोविज्ञान को परिभाषित कीजिए। इस परिभाषा के विभिन्न कारकों की उदाहरणों की सहायता से व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – मनोविज्ञान, यानी मन के रहस्यों को जानने-समझने की वैज्ञानिक प्रक्रिया; मानव मन बहुत से भावों और विचारों से भरा हुआ है, जिसे समझना मुश्किल है। व्यक्ति के हाव-भाव और क्रियाकलाप से मन की दशा और उसमें चल रही उथल-पुथल को आसानी से पहचाना जा सकता है। यह एक व्यक्ति की दैनिक क्रियाओं से मिलता है, जैसे किसी पुराने दोस्त या मित्र से बहुत दिनों बाद मिलने पर खुश होना या पुरानी बातों को याद करना। ये साधारण बातें हैं, लेकिन विश्लेषण करने पर पता चलता है कि ये एक घटना कई मानसिक प्रक्रियाओं का परिणाम था। याद, विचार, प्रत्यक्षीकरण आदि इन्हीं क्रियाओं से व्यक्ति के सभी व्यवहार निकलते हैं।

हम कह सकते हैं कि मनोविज्ञान मानव व्यवहार के मस्तिष्क, मन और व्यवहार पर केंद्रित है। मानव द्वारा की गई हर क्रिया इसका अध्ययन है। ये सभी क्रियाएं उपक्रियाओं या प्रक्रियाओं के समन्वय से बनती हैं। जब किसी परस्पर क्रिया को पूरा करने में बाधा आती है, तो पता चलता है कि कितना मानसिक प्रयास करना पड़ता है; व्यापार मनोवैज्ञानिक अध्ययन में यह सार क्रिया, जैसे किसी पुराने मित्र को नहीं पहचान पाना या नाम भूल जाना, याद करने के लिए दिमाग पर जोर डालना।

प्रश्न 2. मानव व्यवहार को प्रभावित करने वाली विभिन्न मानसिक प्रक्रियाओं की व्याख्या कीजिए। उपयुक्त उदाहरणों की सहायता से अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए ।
उत्तर- मनोवैज्ञानिक अपने अध्ययन को वैज्ञानिक बनाते हैं। इसमें वे मस्तिष्क, व्यवहार और मन की परस्पर क्रियाओं का अध्ययन करते हैं। निम्नलिखित मूल प्रक्रियाओं का आधार अपने परिवेश और आसपास का विचार करते हुए बनाते हैं

1. शारीरिक प्रक्रियाएं – इसमें शारीरिक प्रक्रियायें, जैसे- मानव व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं से संबद्ध मस्तिष्क तथा शारीरिक संरचना का अध्ययन किया जाता है।

2. सांवेदिक- प्रत्यक्ष प्रक्रियाएं- ये प्रक्रियाएं इस बात का विश्लेषण करती हैं कि हम वातावरण में वस्तुओं, रंग, गति तथा आकार का किस प्रकार प्रत्यक्षीकरण करते हैं।

3. सीखना और संज्ञानात्मक प्रक्रियाएं – हमारे अनुभवों के अनुसार हम व्यवहार करते हैं। यह बदलाव हमें कई स्तरों और तरीकों से सक्षम बनाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि हम इसे सीख सकते हैं, याद कर सकते हैं और फिर इनका उपयोग समस्या हल करने, भाषा सीखने और दूसरों से बातचीत करने में कर सकते हैं।

4. विकासात्मक प्रक्रियाएं – हम सभी शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित होते हैं। यह परिवर्तन जीवनपर्यन्त चलता है तथा जीवन के विभिन्न चरणों में विभिन्न संरूपों या पैटर्न में होता है।

5. प्रेरणात्मक प्रक्रियाएं- ये प्रक्रियाएं लक्ष्य, जरूरत तथा प्रेरणा से संबंधित हैं जिससे हमारे जीवन में क्रियाकलाप संचालित होते हैं। इसके अतिरिक्त प्रेम, उल्लास, दुःख, रुचि जैसी भावनाएं हमारे जीवन में रंग भरती हैं। कभी-कभी हम लोग द्वंद्व और कुंठा भी महसूस करते हैं।

6. वैयक्तिक विभिन्नता – यह लोगों में पाई जाने वाली विभिन्नता का अध्ययन है । यह एक रोचक तथ्य है कि सभी मनुष्य समान भी हैं और अलग भी; जैसे भौतिक दृष्टि से (क), वजन, त्वचा का रंग इत्यादि, मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ( व्यक्तित्व, बौद्धिक क्षमता, रुचि इत्यादि) मनोवैज्ञानिकों ने इनके मापन के लिए विभिन्न मापनियों का निर्माण किया है।

7. सामाजिक प्रक्रियाएं – दूसरों के साथ हमारे रिश्ते हमारे जीवन को चलाते हैं क्योंकि हम मनुष्य हैं। सामूहिक जीवन में सामूहिक चुनौतियाँ, सहयोग और प्रतियोगिता होती हैं। हम भी नेतृत्व और अनुरूपता जैसे सामाजिक व्यवहार देखते हैं।

प्रश्न 3. मनोविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। मनोविज्ञान का कौन-सा क्षेत्र आपको सबसे अधिक रुचिकर लगा? कारण बताइए ।
उत्तर- मनोविज्ञान मूलतः मानव मन का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। लेकिन सीधे-सीधे मनोविज्ञान की भूमिका या कार्य का कोई सरल जवाब नहीं है। मनोविज्ञानी कई काम करते हैं। इसलिए मनोविज्ञान में कई क्षेत्र हैं। यह भी मानव जीवन पर कई प्रकार से प्रभाव डालता है और कई समस्याओं को हल करके जीवन व्यवस्था में सहयोग करता है। यह सार्वजनिक नीति और कानूनों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मानव प्रवृत्तिगत भेदभाव, मृत्युदण्ड, अश्लील साहित्य जैसे मनोविकारयुक्त विचाराभिव्यक्ति में दायित्व के प्रश्न आदि पर व्यक्ति को कब उत्तरदायी ठहराया जाए और इन दशाओं के बारे में विधि नियम आदि मानव व्यवहार की मनोवैज्ञानिक समझ पर ही निर्भर करता है।

आज केबल प्रसारण की तेज गति के कारण हिंसा और सैक्स दृश्यों की अधिकता ने बच्चों पर अप्राकृतिक प्रभाव डाला है, जो अभिभावकों और मनोवैज्ञानिकों को चिंतित करता है। ऐसे कार्यक्रमों के बुरे प्रभावों के बारे में अध्ययनों के आधार पर ही टीवी कार्यक्रमों को चलाने की नीति बदली गई है। मनोविज्ञान एक शताब्दी से भी अधिक समय से है। इस दिशा में पहल करने वाले सिग्मंड फ्रायड ने मानव मन की पुस्तकों का व्यापक अध्ययन करते हुए मानव क्रिया-व्यवहार और अपराधवृत्ति का विश्लेषण किया था। तब से आज तक, यह विषय अपने व्यापक विस्तार के साथ-साथ एक उपयुक्त विज्ञान के रूप में हमारे सामने है।

संक्षेप में, इसके कार्यक्षेत्र को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-
• मनोविज्ञान हमारे जीवन के लगभग सभी पक्षों से जुड़ा हुआ है। यह स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्योग, खेल, परिवार, कानून तथा पर्यावरण के क्षेत्रों में मानव समस्याओं के समझने और उसके समाधान में सहायक होता है। मनोविज्ञान विषय अनेक दिशाओं में विस्तृत हो रहा है।
• शारीरिक मनोवैज्ञानिक व्यवहार की व्याख्या प्राणी की शरीर में संरचना में ढूंढते हैं।
• संज्ञानात्मक मनोविज्ञान स्मृति चिन्तन तथा समस्या-समाधान का अध्ययन करते हैं।

• तुलनात्मक मनोविज्ञान में पशुओं के व्यवहार को प्रयोगशाला में और उनके नैसर्गिक वातावरण में देखते हैं
• विकासात्मक मनोविज्ञान व्यक्ति के जीवन भर के विकास और विकास से जुड़ा है।
• समाज मनोविज्ञान दूसरों के साथ मानव व्यवहार पर प्रभाव से जुड़ा है।
• व्यक्तित्व मनोविज्ञान व्यक्तित्व विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक खोजता है।
• मानव विकृति नैदानिक मनोविज्ञान का विषय है।
• शिक्षा: मनोवैज्ञानिक बच्चों और युवा लोगों को विद्यालयों, महाविद्यालयों, नर्सरी, विशेष इकाइयों या घरों में मदद दी जाती है।
• औद्योगिक मनोविज्ञान में लोगों का अध्ययन करते हैं, विभिन्न व्यवसायों में और कार्यस्थल पर भी।
• मनोवैज्ञानिक परामर्श मनोविज्ञान व्यक्ति, परिवार, पति-पत्नी तथा समूहों की मनोवैज्ञानिक समस्याओं का विश्लेषण करता है।
• आज मनोविज्ञान हर जगह दिखता है। खेल मनोविज्ञान, सैन्य मनोविज्ञान और सकारात्मक मनोविज्ञान आदि नए क्षेत्र हैं जो विकसित हो रहे हैं।

मनोविज्ञान से परिचय के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. मनोवैज्ञानिक अध्ययन में मानव व्यवहार के मूल निर्धारक दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- मानव व्यवहार, विशेषकर मनोवैज्ञानिकों, हमेशा से बहस का विषय रहा है। कुछ लोगों को लगता है कि यह नकारात्मक और अज्ञानपूर्ण है, जबकि दूसरों को लगता है कि यह सकारात्मक और संज्ञानात्मक है। कुछ लोग मानते हैं कि दोनों ही बातें सकारात्मक और नकारात्मक हो सकती हैं, यानी मध्यमार्ग। मानव व्यवहार पर प्रमुख वैज्ञानिकों का विचार निम्नलिखित है:-

जैविकीय दृष्टिकोण-इसमें तंत्रिका तंत्र और वंशानुगत घटक शामिल हैं, जो व्यवहार को निर्धारित करते हैं। मान्यता है कि मानव व्यवहार जीवों की उत्तरजीविता में मदद करता है। व्यवहार करके अपने वंश और बच्चों को बचाते हैं। DNA अध्ययन ने बताया कि जीव हमारे व्यवहार को नियंत्रित करता है। तुलनात्मक मनोविज्ञान, तंत्रिका मनोविज्ञान और सामाजिक जीव विज्ञान ने मानव व्यवहार को समझने में बहुत मदद की है।

मनोगत्यात्मक दृष्टिकोण – यह दृष्टिकोण शुद्ध रूप से फ्रायड के मनोविश्लेषणात्मक विचारों से प्रभावित है । फ्रायड के मतानुसार व्यक्ति का अचेतन मन उसके व्यवहार को निर्धारित करता है। मानसिक रोगियों के उदाहरण से फ्रायडवादियों ने मनोगत्यात्मक दृष्टिकोण के आधार पर आन्तरिक द्वंद्व, चिन्ता व बचपन के अनुभवों को ही व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व का आधार मान हैं।

व्यवहारवादी दृष्टिकोण – कटसन और स्किनर इस विचारधारा के प्रवर्तक रहे हैं। इनके अनुसार, मानव व्यवहार को यांत्रिक मानने का विचार आया। इसमें सीखने के व्यवहार और वातावरणीय स्थिति को आधार मानने की बात कही गई है। उनका मानना है कि मानव व्यवहार को बदलने के लिए कुछ नियम व शर्त लागू होते हैं।

संज्ञानात्मक दृष्टिकोण – यह मनोविज्ञान में विश्लेषण का एक नवीन विचार है। वास्तव में, यह व्यवहारवादी दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया है। कम्प्यूटर मॉडल इसमें सूचना प्रक्रिया का उपयोग करता है। इसमें भंडारण और कोडीकरण का खेल और स्मृति चिन्तन और निर्णयात्मकता का निवेश प्रस्तुत किया जाता है। इसमें भावनात्मक और प्रेरणात्मक प्रक्रियाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता और यह कुछ सीमा तक मानव ज्ञान को समझाता है, लेकिन इसमें सृजनात्मकता का गुण नहीं होता। असल में, यह निर्देशों और आंकड़ों पर काम करता है जो पहले से प्रमाणित हैं।

मानवतावादी दृष्टिकोण – यह पूरी तरह से मानवता पर आधारित है। इसमें मूल रूप से विवेकशीलता, परोपकारिता और कल्याणकारिता को मानव स्वभाव के अंग मानते हैं । इस विचार के अनुसार, आशावादी दृष्टिकोण मानता है कि मनुष्य अपने भाग्य को स्वयं बनाता है क्योंकि मनुष्य में काम करने की असीम ऊर्जा है। यह मत तर्क पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि मनुष्य में अपने बंधनों से मुक्त होने की क्षमता है। वह अपने जीवन के प्रति स्वयं जिम्मेदार है। लोगों का मानना है कि यह दृष्टिकोण मनुष्य की आत्मनियंत्रण क्षमता पर बल देता है।

सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण – पिछले कुछ समय से एक महत्वपूर्ण विचार उभर रहा है कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक विभिन्नता का भी व्यक्ति के मन पर काफी प्रभाव पड़ता है, और इस दृष्टि से भी मानव व्यवहार में बदलाव स्पष्ट हैं। इस विचार से भी व्यक्ति की अध्ययन की प्रवृत्ति विकसित होती है। हम सभी जानते हैं कि सामाजिक और सांस्कृतिक कारक हमारे दैनिक जीवन पर प्रभाव डालते हैं। ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को समझने में यह दृष्टिकोण भी काफी सहायक है।

प्रश्न 2. समग्र व्यक्ति की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- मनुष्य सिर्फ शरीर का एक टुकड़ा नहीं है; वह भावनाओं और विचारों का निरंतर चक्कर है। इसलिए मनुष्य केवल एक जैविक मशीन नहीं है, जो किसी भी उत्तेजना या उत्तेजना पर प्रतिक्रिया देता है, कभी-कभी इसके विपरीत भी। इसका संकेत प्रतिक्रिया की स्थिति में शांत रहना और अनुकूल परिस्थिति में भी शांत रहना है। वास्तव में, मनुष्य का जीवन बहुत महत्वपूर्ण है और कुछ मूल्यों का पालन करता है। स्थापित करना चाहता है। समग्र दृष्टिकोण का मतलब है कि एक व्यक्ति अपने वातावरण, अन्य लोगों, जीव-जन्तुओं और पूरी प्रकृति से मिलकर काम करता है।

इस दृष्टिकोण के अनुसार, मानव जीवन का उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है जब वह पर्यावरण और अन्य जीवों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए। मानव को समाज और पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए। व्यक्ति सिर्फ भोजन और सुख प्राप्त करने वाला जीव ही नहीं है; वह भी संवेदनशील है, इसलिए उसे अपने समाज, अन्य जीवों और पर्यावरण के प्रति कुछ कर्तव्य होते हैं. इसके परिणामस्वरूप, एक व्यक्ति का दृष्टिकोण जीवन के संज्ञानात्मक, आध्यात्मिक, भावात्मक और सामाजिक सभी क्षेत्रों में समन्वय बनाना होता है। इसमें स्नेह, क्षमाशीलता, बुद्धि, परोपकारी आदि सकारात्मक मूल्यों की भावना है, क्योंकि यह जीवन के हर रूप में निरंतरता को देखता है।

भारत में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार लाभ (फल) मानते हैं। समाज की धरोहर ये लक्ष्य हैं। मनुष्य का अनिवार्य लक्ष्य इनकी प्राप्ति करना है, और ऐसा होना चाहिए। इसका मतलब स्पष्ट है कि आपको अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सुविधा मिलनी चाहिए, लेकिन यह सब अपनी सीमा के भीतर होना चाहिए। मुक्तिमार्ग की ओर बढ़ते हुए, सांसारिक वस्तुओं के प्रति अत्यधिक मोह से बचना चाहिए। ऐसी स्थिति में व्यक्ति परमात्मा से एकाकार हो जाता है, यानी समग्र व्यक्ति अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वाह करता है, भौतिक और मनोवैज्ञानिक जीवन स्तरों को समझता है और उनसे पारस्परिक रूप से जुड़ा रहता है।

प्रश्न 3. मनोविज्ञान की प्रकृति के बारे में बताइये ।
उत्तर – हम जानते हैं कि मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं और व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है. यह मानव व्यवहार के विभिन्न पहलुओं को जानने में मदद करता है जो मन, मस्तिष्क और व्यवहार पर केंद्रित हैं। हम अपने किसी पुराने दोस्त से बहुत दिनों बाद मिलने पर बहुत खुश होते हैं। पुरानी यादें चली जाती हैं। यों देखा जाए तो किसी से मिलना आम है, लेकिन विश्लेषण करने पर पता चलता है कि यह एकमात्र घटना कई मानसिक प्रक्रियाओं (जैसे याद करना, सोचना, प्रत्यक्षीकरण आदि) का परिणाम था। इन्हीं प्रक्रियाओं से यानी व्यक्ति के सारे व्यापार और व्यवहार पैदा होते हैं।

प्रश्न 4. विज्ञान के रूप में मनोविज्ञान के लक्ष्य क्या हैं?
उत्तर – असल में, मानसिक प्रक्रियाओं और व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन कठिन और दिलचस्प है। मनोवैज्ञानिकों ने अपनी ऊर्जा और स्रोत को व्यवहार का वर्णन बदलने और भविष्यवाणी करने में लगाया है। यही काम मनोविज्ञान को घेरता है।
• वर्णन का अर्थ है व्यवहार के विवरण को लिपिबद्ध करना।
• व्याख्या का अर्थ है घटना के कारणों का विवरण देना ।
• परिवर्तन का अर्थ है व्यवहार को इच्छित दिशा में ढालना ।
• भविष्यवाणी का अर्थ है भविष्य में होने वाली घटना का पूर्वज्ञान |
यही चार लक्ष्य मनोवैज्ञानिक व्यवहार के विभिन्न पक्षों का कार्य करते हैं।

प्रश्न 5. समग्र मानव के सम्प्रत्यय को बताइये ।
उत्तर – समग्र मानव एक ऐसा व्यक्ति है जो अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से निभाता है। क्योंकि मनुष्य सिर्फ एक जैविक यंत्र नहीं है, जो किसी भी प्रकाश के प्रति प्रतिक्रिया करता है, भौतिक, मनोवैज्ञानिक स्तरों के जीवन को पहचानता है और उनसे पारस्परिक रूप से जुड़ा भी है। वास्तव में, मनुष्य का जीवन महत्वपूर्ण है और कुछ मूल्यों से जुड़ा है। समग्र मानव सम्प्रत्यय के दृष्टिकोण में, व्यक्ति का अपने वातावरण, अन्य लोगों, जीव-जन्तुओं और पूरी प्रकृति से पारस्परिक पूरकता का भाव महत्वपूर्ण है। इसके समर्थकों का मानना है कि मानव जीवन का उद्देश्य तभी प्राप्त हो सकता है जब इसका अन्य जीवों और पर्यावरण के साथ आत्मीय संबंध होता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को समाज और पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरी तरह से समझना चाहिए।

मानव मात्र एक उपभोक्ता और सुख प्राप्त करने वाला प्राणी नहीं है; वह पर्यावरण और अन्य जीवों के प्रति भी जिम्मेदार है। यह दृष्टिकोण जैविक, मनोगत्यात्मक, संज्ञानात्मक, आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, भावात्मक और मानवतावादी प्रत्ययों से उत्पन्न होता है, और इन सभी प्रत्ययों में परस्पर तालमेल का मूल्य है। इसमें जीवन के सभी रूपों में निरंतरता है। इस तरह की दृष्टि सकारात्मक मूल्यों को मानती है; जैसे परोपकार, स्नेह, क्षमाशीलता, दया, सहिष्णुता और बुद्धि आदि। ये सभी लोगों के मूल गुण हैं।

ये समाज के लिए धरोहर हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष भारतीय परम्परा में चार फलों (लक्ष्यों) की प्राप्ति अनिवार्य है। इसका अर्थ है कि मनुष्य को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सुख-सुविधाओं को प्राप्त करना चाहिए, लेकिन यह सारा व्यवहार और व्यवहार धर्म पर आधारित होना चाहिए। मानव धर्म में अपनी पैठ बनाने के लिए व्यक्ति को सांसारिक वस्तुओं के प्रति अनासक्त भाव से आगे बढ़ना चाहिए। ऐसा व्यक्ति ही परमशक्ति को मोह-माया से दूर कर सकता है। वास्तव में, यही पूरी व्यक्ति होती है। इन्हीं गुणों के आधार पर उसे भगवान ने सर्वश्रेष्ठ रचना का स्तर दिया है।

प्रश्न 6. किसी व्यक्ति के व्यवहार के बारे में मनोवैज्ञानिक किस प्रकार कार्य करता है?
उत्तर- मनोवैज्ञानिकों का काम है किसी व्यक्ति के व्यवहार को इस तरह से जानें कि वह रहस्य नहीं रह जाता। ज्ञान की प्रक्रिया को लिपिबद्ध किया जाता है ताकि कोई इसकी जांच करना चाहे। मनोवैज्ञानिक ज्ञान निम्नलिखित लक्षणों से मेल खाता है-
• वह निरीक्षण पर आधारित हो ।
• उसे दुबारा करके दिखाया जा सके।
• उसे अन्य लोगों के साथ बांटा जा सके।
एक वैज्ञानिक मनोविज्ञान व्यवहार के सिद्धांतों को बनाता है। मान्यताओं को लागू किया जाता है। आज इनका बहुत उपयोग किया जाता है, जैसे स्कूलों में परामर्शदाता, चिकित्सालयों में नैदानिक मनोवैज्ञानिक, उद्योगों में मानव संबद्ध परामर्शदाता आदि।

प्रश्न 7. मानव व्यवहार के दृष्टिकोणों में आशावादी दृष्टिकोण कौन-सा है ?
उत्तर- मानवता दृष्टिकोण सबसे आशावादी है। यह मानता है कि मानव मूलतः विवेकशील, दयालु और कल्याणकारी हैं । यह आशावादी दृष्टिकोण कहलाता है क्योंकि मनुष्यों में कार्य करने की क्षमता है।

प्रश्न 8. मनोविज्ञान से जुड़े हुए वे प्रश्न कौन-से हैं, जो हमारे सामाजिक एवं वैयक्तिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं? कोई पांच प्रश्न लिखिए।
उत्तर – हमारे जीवन के कई प्रश्न मनोविज्ञान सीधे जुड़े होते हैं और उनका समाधान मनोविज्ञान से सीधा निकाला जा सकता है। इनमें कुछ निम्नलिखित हो सकते हैं-
(1) लोगों की मौजूदगी से किसी व्यक्ति की कार्यक्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(2) किसी पाठ को याद करने पर व्यक्ति की मनोदशा या मूड पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(3) भीड़ का मानव व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(4) किसी वस्तु के प्रत्यक्षीकरण में मस्तिष्क की क्या भूमिका होती है ?
(5) वातावरण को बनाने के लिए लोगों को किस तरह प्रेरित किया जा सकता है?

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