NIOS Class 10th Business Studies Chapter 4 सहकारी समितियाँ तथा संयुक्त पूँजी कंपनियाँ
NIOS Class 10th Business Studies Chapter 4 सहकारी समितियाँ तथा संयुक्त पूँजी कंपनियाँ – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 Business Studies विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 व्यवसाय अध्ययन अध्याय 4 (सहकारी समितियाँ तथा संयुक्त पूँजी कंपनियाँ) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Business Studies Chapter 4 Cooperative Societies and Joint Stock Companies दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Business Studies Chapter 4 व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.
NIOS Class 10 Business Studies Chapter 4 Solution – सहकारी समितियाँ तथा संयुक्त पूँजी कंपनियाँ
प्रश्न 1. सहकारी समिति का क्या अर्थ होता है?
उत्तर – सहकारी शब्द का अर्थ है एक साथ काम करना। इसलिए, जो लोग एक ही आर्थिक लक्ष्य के लिए सहयोग करना चाहते हैं, वे एक समिति बना सकते हैं। यह ‘सहकारी समिति’ है। यह लोगों की स्वयंसेवी संस्था है जो अपने पैसे के लिए काम करते हैं। यह दोनों स्वयं सहायता और परस्पर सहायता के सिद्धांत पर काम करता है। “एक सब के लिए और सब एक के लिए” सहकारी समिति का मूल सिद्धान्त है। इनका मुख्य लक्ष्य अपने सदस्यों की मदद करना है। सहकारी समिति के सदस्यों में से कोई भी व्यक्ति व्यक्तिगत लाभ के लिए काम नहीं करता है। इसके सभी सदस्यों को अपने-अपने संसाधनों को एकत्र करने और उनका अधिकतम उपयोग करने से कुछ लाभ मिलता है, जिसे वे आपस में बाँटते हैं।
प्रश्न 2. उपभोक्ता सहकारी समिति की क्या गतिविधियां होती हैं?
उत्तर – उपभोक्ता सहकारी समितियाँ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करते हैं और उनके लिए उचित मूल्य पर उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुएं प्रदान करती हैं। उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर सामान मिलता है क्योंकि ये समितियाँ मध्यस्थों को मार डालती हैं। सुपर बाजार, अपना बाजार और केंद्रीय भंडार इसके कुछ उदाहरण हैं।
प्रश्न 3. उपभोक्ता सहकरी समिति और उत्पादक सहकारी समिति के दो-दो उदाहरण दीजिए । हैं?
उत्तर – उपभोक्ता सहकारी समिति –
(i) केन्द्रीय भंडार,
(ii) अपना बाजार ।
उत्पादक सहकारी समिति –
(i) हरियाणा हैंडलूम,
(ii) एपको (APPCO)।
प्रश्न 4. मितव्ययिता एवं ऋण समिति का क्या अभिप्राय
उत्तर – ऋण समिति और मितव्ययिता वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं। इस तरह की समितियाँ सदस्यों से निवेश करके आवश्यक ब्याज पर ऋण देती हैं। यह छोटे उद्यमों को बढ़ावा देता है। ये समितियाँ ग्रामीण कुटीर उद्योगों को बहुत फायदेमंद हैं। शहरी सहकारी बैंक और ग्राम सेवा सहकारी समिति सहकारी ऋण समिति के उदाहरण हैं ।
प्रश्न 5. सहकारी समिति के सदस्यों के बीच मतभेद होने तथा प्रेरणा के अभाव के क्या कारण हैं?
उत्तर – सेवा भाव से सहकारी समिति बनाई जाती है। इनका लक्ष्य पैसा कमाना नहीं है, बल्कि दूसरों को मदद करना है। लाभ का उद्देश्य नहीं होने से समिति के सदस्य उत्साहित नहीं हैं। वे काम को समर्पित नहीं करते, बल्कि निपटाने के लिए करते हैं। निष्ठा उनके कार्यों में हमेशा कम होती है, जिससे सदस्यों के बीच मतभेद भी रहते हैं। सहकारी समितियों में अधिकांश सदस्य स्वार्थी हैं, जो समितियों को खराब करते हैं।
प्रश्न 6. उत्पादक सहकारी समिति और विपणन सहकारी समिति में अंतर्भेद कीजिए ।
उत्तर- उत्पादक सहकारी समिति-ये समितियां छोटे उत्पादकों को उत्पादन के लिए कच्चा माल, मशीन, औजार, उपकरण आदि की आपूर्ति करके उनके हितों की रक्षा के लिए बनाई जाती है। हरियाणा हैंडलूम, बायानिका, एपको (APPCO) सहकारी समितियों के उदाहरण हैं।
विपणन सहकारी समिति – ये समितियां उन छोटे उत्पादकों और निर्माताओं द्वारा बनाई जाती हैं, जो अपने माल को स्वयं नहीं बेच सकते। समिति सभी सदस्यों से माल इकट्ठा करके उसे बाजार में बेचने का दायित्व लेती है। अमूल दुग्ध पदार्थों का वितरण करने वाली गुजरात सहकारी दुग्ध वितरण संघ लिमिटेड ऐसी ही सहकारी विपणन समिति है।
प्रश्न 7. संयुक्त पूँजी कंपनी से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – यह कुछ लोगों का एक स्वैच्छिक संगठन है, जो इसमें पैसा लगाकर एक विशिष्ट प्रकार का व्यवसाय शुरू करता है. इसकी स्थापना और समाप्ति केवल कानून द्वारा हो सकते हैं। कंपनी के सदस्य हैं जो इसमें पैसा लगाते हैं। कंपनी अपने सदस्यों से अलग कानूनी अस्तित्व रखती है। अर्थात्, कंपनी के किसी भी सदस्य की मृत्यु होने पर भी वह चलती रहेगी। व्यवसाय के इस रूप में बहुत बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है, जो कंपनी के सदस्यों द्वारा पूरी की जाती है। शेयर पूंजी एक कंपनी की कुल पूंजी है, जिसे संयुक्त पूंजी कहते हैं। तथा इसे शेयर इकाइयों में विभाजित किया जाता है। इस प्रकार, प्रत्येक सदस्य के पास अपने निवेश के हिसाब से कुछ शेयर होते हैं, इसलिए इन्हें शेयरधारक भी कहते हैं।
भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 भारत में कंपनियों को चलाता है। कम्पनी अधिनियम के अनुसार, कंपनी का अर्थ है, विधि द्वारा निर्मित, स्वतंत्र अस्तित्व, निरंतर अनुक्रम और सार्वजनिक मुद्रा।
प्रश्न 8. संयुक्त पूँजी कंपनी के लाभ बातइए ।
उत्तर – संयुक्त पूंजी कम्पनी के लाभ –
1. विस्तृत वित्तीय साधन,
2. सीमित दायित्व,
3. पेशेवर प्रबन्ध,
4. बड़े पैमाने पर उत्पादन के लाभ,
5. सामाजिक योगदान,
6. विकास एवं अनुसंधान,
7. स्थायी अस्तित्व |
प्रश्न 9. बहुराष्ट्रीय कंपनी का अर्थ बताइए ।
उत्तर – एक बहुराष्ट्रीय कंपनी एक देश में पंजीकृत होती है, लेकिन कई देशों में फैक्ट्रियां स्थापित करके, शाखाएं खोलकर अथवा सहायक इकाइयां खोलकर व्यवसाय करती है। इस तरह की कंपनियां उत्पादों और सेवाओं को एक या अधिक देशों में बनाते हैं और उन्हें इन देशों में बेचते हैं। भारत में काम करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां में फिलिप्स, सीमेंस, हुंडई, कोका कोला, नेस्टले, सोनी, मैक डोनाल्डस, सिटी बैंक, गुड ईयर आदि शामिल हैं।
प्रश्न 10. संयुक्त पूँजी कंपनी के किन्हीं चार लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- संयुक्त पूंजी कम्पनी के लक्षण अथवा विशेषताएँ-
1. वैधानिक स्वरूप – कोई भी एक व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह व्यवसाय आरम्भ कर उसे संयुक्त पूंजी कंपनी नहीं कह सकता। भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 की सभी शर्तों का पालन करते हुए तथा पंजीकृत होने के पश्चात ही एक संयुक्त पूंजी कंपनी अस्तित्व में आती है।
2. कृत्रिम व्यक्ति – कम्पनी को कानून द्वारा निर्मित कृत्रिम अदृश्य एवं अमूर्त व्यक्ति के रूप में माना गया है। यह वास्तविक व्यक्ति नहीं है क्योंकि व्यापारिक व्यक्ति के समान कार्य करते हुए भी इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता अर्थात् इसमें सामान्य व्यक्ति की तरह शारीरिक विशेषताएं नहीं होतीं। इसका निर्माण एवं अन्त केवल कानून द्वारा ही हो सकता है।
3. स्वतन्त्र वैधानिक अस्तित्व– कानून के अनुसार कम्पनी का अस्तित्व इसके सदस्यों के अस्तित्व से बिल्कुल अलग होता है। अतः कम्पनी अपने अंशधारियों के साथ किसी भी प्रकार का अनुबन्ध कर सकती है। कम्पनी अपने अंशधारियों के विरुद्ध तथा अंशधारी कम्पनी के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। कम्पनी अपने नाम से सम्पत्ति का क्रय-विक्रय कर सकती है। कम्पनी के दायित्वों के लिए अंशधारियों को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
4. सार्वमुद्रा – कम्पनी की अपनी एक सार्वमुद्रा (Common Seal) अथवा मुहर होती है, जिस पर कम्पनी का नाम खुदा होता है। चूंकि कोई एक व्यक्ति विशेष कम्पनी का स्थान नहीं ले सकता, इसलिए सार्व- मुद्रा ही कम्पनी के हस्ताक्षरों का प्रतिनिधित्व करती है। सार्वमुद्रा पर अधिकृत अधिकारियों के हस्ताक्षर होना आवश्यक है।
5. शाश्वत् जीवन – कम्पनी का जीवन व्यावसायिक संगठन के अन्य प्रारूपों की अपेक्षा अधिक स्थायी व दीर्घजीवी होता है । एक कम्पनी तब तक बनी रहती है जब तक वह वैधानिक शर्तों का पालन करती है। कम्पनी के अस्तित्व पर उसके किसी अंशधारी या संचालक की मृत्यु, दिवालियेपन आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
6. सीमित दायित्व – कम्पनी के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है। सीमित दायित्व से तात्पर्य यह है कि प्रत्येक सदस्य का दायित्व केवल उस सीमा तक ही होता है, जितने उसने अंश क्रय किये हैं।
प्रश्न 11. निजी कंपनी की विशेषताएं क्या हैं? यह सार्वजनिक कंपनी से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर – निजी कम्पनी की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
1. सदस्य संख्या पर प्रतिबन्ध – एक निजी सदस्यों (अंशधरियों) की संख्या 50 से अधिक नहीं हो सकती है। निजी कम्पनी के लिए न्यूनतम सदस्य संख्या मात्र 2 है।
2. अंश (Shares) हस्तातरण पर प्रतिबन्ध – निजी कम्पनी के अंशधारी अपने अंशों का हस्तान्तरण स्वतन्त्रतापूर्वक (सार्वजनिक कम्पनी की तरह) नहीं कर सकते हैं।
3. जन नियंत्रण पर निषेध – प्रत्येक निजी कम्पनी को पूंजी का प्रबन्ध स्वयं करना होता है। वह अंशों तथा ऋणपत्रों को खरीदने के लिए जनता को आमंत्रित नहीं कर सकती है।
4. सीमित दायित्व – निजी कम्पनी के सदस्यों का दायित्व सीमित या असीमित हो सकता है। प्रायः दायित्व सीमित ही होता
5. निजी कम्पनी को अपनी नाम के आगे ‘प्राइवेट लिमिटेड’ शब्द का प्रयोग करना अनिवार्य है ।
6. निजी कम्पनी में कम से कम 1 लाख रु. की दत्त पूंजी का निवेश किया जा सकता है।
प्रश्न 12. संयुक्त पूँजी कंपनी के लाभों की गणना कीजिए ।
उत्तर – संयुक्त पूंजी कम्पनी के लाभ – 1. विस्तृत वित्तीय साधन, 2. सीमित दायित्व, 3. पेशेवर प्रबन्ध, 4. बड़े पैमाने पर उत्पादन के लाभ, 5. सामाजिक योगदान, 6. विकास एवं अनुसंधान, 7. स्थायी अस्तित्व ।
प्रश्न 13. संयुक्त पूँजी कंपनी की सीमाएँ बताइए ।
उत्तर – संयुक्त पूँजी कंपनी की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) गठन में कठिनाई – कंपनी का गठन करना मुश्किल व अधिक खर्चीला होता है। इसकी कार्यवाही थोड़ी पेचीदा है।
(ii) अधिक सरकारी नियंत्रण – एक कंपनी पर सरकारी नियंत्रण अधिक होता है जिसके अर्न्तगत उसे सामयिक है? रिपोर्ट अंकेक्षण तथा लेखों के प्रकाशन जैसे अनिवार्य नियमों को निभाना पड़ता है।
(iii) अल्पजनाधिपत्य प्रबंध – ऐसा प्रतीत होता है जैसे कंपनी का प्रबंध लोकतांत्रिक हो किंतु वास्तविकता में कंपनी का प्रबंध अल्पजनाधिपत्य होता है।
(iv) देरी से निर्णय लेना – कंपनी में प्रबंध के कई स्तर होते हैं जिससे कोई भी निर्णय लेने के लिए सभाएँ बुलाने, प्रस्ताव पारित कराने में काफी समय व्यर्थ होता है।
(v) गोपनीयता का अभाव – कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार कंपनी को विभिन्न सूचनाएँ जनता के समक्ष
प्रस्तुत करनी होती हैं जिससे इसमें गोपनीयता का अभाव रहता है।
सहकारी समितियाँ तथा संयुक्त पूँजी कंपनियाँ के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. आवासीय सहकारी समिति की क्या गतिवधियां
उत्तर – आवासीय सहकारी समिति (Co-operative Housing Society) – इस प्रकार की समितियां सदस्यों को आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए बनाई जाती है। ये समितियां भूमि खरीदकर उसका विकास करती हैं और मकान या फ्लैट बनाकर अपने सदस्यों को आबंटित करती हैं। कुछ समितियां घर बनाने के लिए सदस्यों को कम ब्याज पर ऋण भी उपलब्ध कराती हैं। कर्मचारी आवास समिति और महानगर आवास सहकारी समिति ऐसी ही समितियां हैं।
प्रश्न 2. सहकारी समितियों के लोकतांत्रिक प्रबन्धन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – सहकारी समितियों का प्रबंधन लोकतांत्रिक होता है। समिति का प्रबंधन कुछ व्यक्तियों का समूह करता है जिसे ‘निदेशक मंडल’ कहते हैं। इसके सदस्य समिति के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। समिति के प्रत्येक सदस्य का, चाहे उसके पास कितने शेयर हों, एक ही मत होता है। उदाहरण के लिए, ग्राम सहकारी समिति में एक सदस्य जिसके पास एक शेयर है और दूसरा सदस्य जिसके पास 30 शेयर होते हैं, को केवल एक-एक मताधिकार ही मिलेगा। उनके शेयरों की संख्या का उनके मताधिकार पर कोई प्रभाव नहीं होगा । सहकारी समितियों में ‘एक व्यक्ति, एक मत’ (One man, one vote) का सिद्धांत लागू होता है ।
प्रश्न 3. सहकारी ऋण समितियों के कार्य बताइए । सहकारी ऋण समितियों के प्रकारों का परिचय दीजिए और प्रत्येक प्रकार का एक उदाहरण दीजिए ।
उत्तर – सहकारी ऋण समिति – इस प्रकार की समितियों का उद्देश्य सदस्यों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है। समिति सदस्यों से धन इकट्ठा करके जरूरत के समय उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराती है। ये समितियां ऊंची दर पर ब्याज देने वाले महाजनों के चंगुल से अपने सदस्यों को बचाती है। ग्राम सेवा सहकारी समिति और शहरी सहकारी बैंक, सहकारी ऋण समिति के उदाहरण हैं।
प्रश्न 4. सहकारी समिति की विशेषताओं की व्याख्या करें।
उत्तर – सहकारी समिति की विशेषताएं – सहकारी समिति एक विशेष प्रकार का व्यावसायिक संगठन है, जो ऐसे अन्य व्यवसायिक संगठनों से भिन्न हैं। इस संगठन की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-
(i) खुली सदस्यता – सहकारी समिति की सदस्यता समान हितों वाले सभी व्यक्तियों के लिए खुली होती है । सहकारी समिति के गठन के लिए कम से कम 10 व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। सहकारी समिति अधिनियम में सदस्यों की अधिकतम संख्या की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है, परन्तु समिति के सदस्य गठन के बाद सदस्यों की अधिकतम संख्या को निश्चित कर सकते हैं।
(ii) स्वैच्छिक संस्था – सहकारी समिति व्यक्तियों का ऐच्छिक संगठन है। सदस्य स्वेच्छा से सहकारी समिति की सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति किसी भी समय सहकारी समिति का सदस्य बन सकता है, जब तक चाहे उसका सदस्य बना रह सकता है और जब चाहे सदस्यता छोड़ सकता है।
(iii) सरकारी नियंत्रण – सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए सहकारी समितियों को पंजीकरण के द्वारा सहकारी नियंत्रण के पंजीकरण के समय समिति को अपने कार्यों के बारे में जानकारी प्रस्तुत करनी होती है। समिति के लिए बही-खाते रखना भी आवश्यक है, जिनकी जांच सरकार द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षक करते हैं।
(iv) वित्तीय स्रोत–सहकारी समिति में पूंजी सभी सदस्यों द्वारा लगाई जाती है। इसके अलावा, पंजीकरण के बाद समिति ऋण ले सकती है। सरकार से अनुदान भी प्राप्त कर सकती है ।
(v) लोकतांत्रिक प्रबन्ध- संगठन में सदस्य अपने प्रतिनिधियों (अध्यक्ष, कार्यकारी सदस्य आदि) का चुनाव करते हैं जो कि सहकारी समिति का प्रबन्ध करते हैं। इन समितियों में मताधिकार भी सबको समान आधार पर प्राप्त होता है। जहां एक व्यक्ति, एक मत’ (One man, One vote) का सिद्धान्त लागू होता है। इ अर्थ है कि यदि एक सदस्य के पास एक से अधिक अंश (Shares) हैं, परन्तु फिर भी उसे मतदान के समय एक ही मत देने का अधिकार होगा।
(vi) सेवा ही उद्देश्य – सहकारी समिति का गठन अपने सदस्यों से लाभ कमाने के उद्देश्य से नहीं किया जाता। इसका मुख्य उद्देश्य यह होता है कि यह किसी विशिष्ट क्षेत्र में अपने सदस्यों को अधिक से अधिक सुविधाएं सुलभ कराये।
(vii) पृथक् वैधानिक इकाई – सहकारी समिति का पंजीकरण (Registration) सहकारी समिति अधिनियम के अधीन किया जाता है। अधिनियम के अधीन पंजीकरण के बाद, कम्पनी की
तरह इसे एक अलग कानूनी अस्तित्व प्राप्त हो जाता है। किसी सदस्य की मृत्यु, उसके दिवालिया या पागल होने की स्थिति में समिति के अस्तित्त्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । यह अन्य समितियों या व्यापार संगठनों के साथ समझौता कर सकती है या अपने नाम पर सम्पत्ति खरीद या बेच सकती है।
(viii) लाभ का वितरण प्रत्येक सहकारी समिति अपने सदस्यों को सेवाएं प्रदान करने के साथ-साथ लाभ भी कमाती है । सदस्यों के बीच इस लाभ को समिति के कारोबार में उनकी भागीदारी के आधार पर बांटा जाता है।
(iv) परस्पर सहयोग से स्वयं सहायता – यह सहकारिता का आधारभूत बिन्दु है। ” एक सबके लिए तथा सब एक के लिए ” इसका आधार है।