NIOS Class 10th Business Studies Chapter 12. क्रय एवं विक्रय
NIOS Class 10th Business Studies Chapter 12 क्रय एवं विक्रय – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 Business Studies विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 व्यवसाय अध्ययन अध्याय 12 (क्रय एवं विक्रय) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Business Studies Chapter 12 Postal and Courier Services दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Business Studies Chapter 12 क्रय एवं विक्रय के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.
NIOS Class 10 Business Studies Chapter 12 Solution – क्रय एवं विक्रय
प्रश्न 1. क्रय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – क्रय वह प्रक्रिया है, जिसमें एक व्यक्ति नकद भुगतान कर कुछ वस्तुओं अथवा संपत्तियों का हस्तांतरण अपने नाम पर करवाता है। इसमें एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति से नकद भुगतान पर सेवाएँ प्राप्त करना सम्मलित है।
प्रश्न 2. किसी उत्पाद के विक्रय में कौन-कौन सी क्रियाएं सम्मिलित हैं ?
उत्तर- व्यवसायी अन्य लोगों के उपयोग के लिए वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन करते हैं। लोग मूल्य देकर इनका क्रय करते हैं और इस प्रकार व्यवसायी लाभ कमाता है। लाभ कमाने के लिए यह आवश्यक है कि इन वस्तुओं के उत्पादन में किये गये व्यय की तुलना में विक्रय मूल्य अधिक हो। इस प्रकार एक व्यवसाय में लाभ कमाया जा सकता है। लाभ वास्तव में व्यवसायी के लिए जोखिम उठाने तथा निवेशित पूँजी का प्रतिफल है इसलिए यह आवश्यक है कि व्यवसायी द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का विक्रय किया जाये। व्यवसाय की निरन्तरता तथा प्रगति के लिए वस्तुओं का विक्रय आवश्यक है।
वस्तुओं व सेवाओं को विक्रय योग्य बनाने के लिए उनके उत्पादन से पूर्व कुछ कार्यवाही करनी आवश्यक है, जो इस प्रकार हैं-
(i) यह आवश्यक है कि लोगों की पसंद व आवश्यकताओं की पहचान की जाए और उसके अनुसार वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन किया जाये।
(ii) यह आवश्यक है कि उपभोक्ता सदैव अपनी क्रय की हुई वस्तु से संतुष्टि प्राप्त करे, इसलिए उत्पाद एवं सेवाओं की गुणवत्ता में निरंतर सुधार की ओर भी उत्पादक को प्रयत्न करते रहना चाहिए।
(iii) उत्पादक को वस्तुओं तथा सेवाओं की सुगम उपलब्धता भी सुनिश्चित करनी चाहिए।
(iv) वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य उपभोक्ता की पहुँच में होना चाहिए।
(v) उपभोक्ता को उत्पाद विशेष के गुणों तथा उपयोगों की जानकारी विक्रय से पूर्व व पश्चात् दोनों समय उपलब्ध करवानी चाहिए।
उपर्युक्त समस्त क्रियाएँ सामूहिक रूप से व्यवसाय का विपणन कार्य कहलाता है। विक्रय एक कार्य के रूप में विपणन से भिन्न है, जबकि यह विपणन का ही एक भाग है।
प्रश्न 3. नीलामी द्वारा बिक्री का क्या अर्थ है?
उत्तर- नीलामी द्वारा बिक्री का अभिप्राय कुछ वस्तुओं के खुले तौर पर निश्चित तिथि एवं समय पर बेचने से है, जिसमें लोग बोली लगाते हैं। जो सबसे अधिक बोली लगाता है, माल उसी व्यक्ति को बेचा जाता है। नीलामी में वस्तुओं का प्रदर्शन किया जाता है तथा एक आरक्षित मूल्य (Reserve Price) रखा जाता है। इससे कम मूल्य पर माल नहीं बेचा जाता। इन आरक्षित मूल्य को विक्रेता निश्चित करता है तथा जिसे लोगों को बताया जा सकता है अथवा उसे गुप्त रखा जा सकता है। कभी-कभी एक न्यूनतम मूल्य (Minimum Price) भी रखा जाता है, जिससे बोली प्रारंभ की जाती है। इसे वह न्यूनतम मूल्य भी माना जा सकता है, जिससे कम मूल्य पर माल नही बेचा जा सकता। किसी व्यक्ति द्वारा लगाई गई बोली को उसकी ओर से प्रस्ताव माना जाता है और यदि यह सबसे ऊँची बोली है, तो इसे स्वीकार कर लिया जाता है। बोली स्वीकार हो जाने पर बोली लगाने वाला मुकर नहीं सकता। उसे माल क्रय करना ही पड़ेगा तथा मूल्य चुकाना पड़ेगा। विक्रेता यदि चाहे तो अधिकतम बोली पर भी वस्तु न बेचे। आज तो नीलामी द्वारा विक्रय इन्टरनैट के माध्यम से आम होता जा रहा है।
प्रश्न 4. अस्थगित किश्त योजना को भुगतान के माध्यम के रूप में समझाइए।
उत्तर- अस्थगित (विलंबित) किश्त विक्रय-जब वस्तुएं बेच दी जाती है और उनके मूल्य का भुगतान किश्तों (Instalments) द्वारा करने का समझौता किया जाता है तो ऐसे विक्रय को अस्थगित किश्त विक्रय कहते हैं। इस विक्रय में यदि क्रेता किश्त का भगतान करने में असमर्थ हो जाता है तो विक्रेता उसमें वस्तु वापिस नहीं मांग सकता, क्योंकि विक्रय के समय जब पहली किश्त का भुगतान किया जाता है, तभी क्रेता का माल का स्वामित्व (Ownership of Goods ) हस्तांतरित (Transfer) हो जाता है। विक्रेता न्यायालय में क्रेता के विरुद्ध भुगतान की शेष राशि के लिए दावा कर सकता है।
प्रश्न 5. यदि वस्तुओं के प्रेषण अथवा बीजक में कोई गलती हुई है तो उसके निवारण के लिए क्या करेंगे?
उत्तर- व्यावसायिक लेन-देन की प्रक्रिया क्रेता द्वारा क्रय की जाने वाली वस्तुओं के सम्बन्धा में पूछताछ से प्रारम्भ होती है तथा विक्रेता द्वारा अन्तिम भुगतान कर देने पर समाप्त होती है। यद्यपि माल को भेजने एवं बीजक बनाने में विक्रेता पूरी सावधानी से कार्य करता है फिर भी त्रुटि हो जाने की सम्भावना रहती है। इन गलतियों को नाम पत्र (Debit Note) तथा जमा पत्र (Credit Note) द्वारा सुधारा जा सकता है।
1. नामपत्र-बीजक भेजने के बाद जब विक्रेता को पता लगता है कि क्रेता को भेजी गई वस्तुओं का मूल्य कम लगाया गया है, तो इस त्रुटि के सुधार के लिए वह नाम पत्र (Debit Note) बनाता है। नामपत्र दर्शाता है कि क्रेता के खाते नाम (Debit) में रकम लिख दी गई गई है अर्थात् बीजक में लिखी राशि में कुछ और रकम जमा कर दी गई है। इस प्रकार से क्रेता को अतिरिक्त राशि का भुगतान करना होता है। नाम पत्र को क्रेता तभी तैयार करता है, जब वह क्रय की गई वस्तुओं में से कुछ को लौटाता है। इससे विक्रेता की क्रेता से लेनदारी कम हो जाती है।
नामपत्र–एक विलेख जिसके द्वारा क्रेता को पता लगता है कि उसके नाम में एक निश्चित रकम लिख दी गई है। जमापत्र कभी-कभी बीजक भेजने के पश्चात, विक्रेता को पता चलता है कि क्रेता को जो माल भेजा गया है उसका मूल्य अधिक लगा लिया गया है। इस त्रुटि को वह जमा पत्र तैयार कर के सुधारेगा। विक्रेता उसे नोट को क्रेता को भेजेगा, जिसमें क्रेता को सूचित करेगा कि उसके खाते में से जमा पत्र में लिखी राशि कम कर दी गई है (जमा कर दी है) जिसमें क्रेता को वास्तविक राशि को घटाकर आई राशि का भुगतान करना होगा। यह पत्र ऐसी स्थिति में भी तैयार किया जाता है जबकि
(अ) क्रेता विक्रेता को कुछ माल लौटाता है
(ब) जब दोषपूर्ण, क्षतिग्रस्त अथवा नापसन्द वस्तुओं के लिए छूट दी जाती है।
जमा पत्र-एक ऐसा प्रपत्र, जिसके द्वारा क्रेता को सूचित किया जाता है कि एक निश्चित राशि उसके खाते में जमा कर दी गई है।
प्रश्न 7. वस्तुओं के क्रय करने पर भुगतान की कौन-कौन सी पद्धतियां है, उन्हें समझाइए ।
उत्तर-वस्तु के क्रय करने पर भुगतान की निम्नलिखित तीन पद्धतियाँ हैं-
1. तुरन्त भुगतान – तुरन्त भुगतान में क्रेता विक्रेता को पूरी राशि का भुगतान नकद करता है। यदि विक्रेता चाहे तो वह भुगतान चैक, ड्राफ्ट अथवा क्रेडिट कार्ड या फिर डेबिट कार्ड द्वारा कर सकता है। विक्रेता चैक द्वारा भुगतान प्राप्त करने के लिए बाध्य नहीं होता जब तक कि इस सम्बन्ध में देने में कोई व्यक्त अथवा अंतर्निहित समझौता न हो। इस प्रकार की लेन-देन फुटकर विक्रय में, जिसमें भुगतान की राशि छोटी होती है, यह साधारण चलन में है । उदाहरण के लिए किराने का सामान, सब्जियां, तैयार कपड़े जैसे प्रतिदिन के उपयोग की वस्तुओं विक्रय हो तो तुरन्त नकद भुगतान किया जाता है।
2. अस्थगित ( विलंबित ) किश्त योजना– इसे ‘आज खरीदे, भुगतान बाद में करें’ योजना कहते हैं। इस पद्धति में क्रेता क्रय के समय विक्रेता को एक नाममात्र की रकम देता है तथा वस्तु की सुपुर्दगी (Delivery) प्राप्त कर लेता है। शेष राशि का भुगतान वह कुछ अवधि के दौरान किश्तों में करता है। यह किश्त एक निर्धारित राशि की होती है, जो विक्रेता को प्रति मास अथवा प्रत्येक तीन मास बाद दी जाती है। कुल भुगतान राशि तथा उस पर ब्याज मिलाकर होती है। कभी-कभी विक्रेता ब्याज मुक्त किश्त भी स्वीकार कर सकता है ।
उदाहरण – रमेश एक स्थानीय दुकान से रंगीन टेलीविजन खरीदने के लिए गया। टी. वी. का मूल्य 25,000/- रुपया था। विलंबित किश्त योजना में कुल मूल्य का 10% प्रारम्भ में भुगतान किया जाना था और शेष दस ब्याज मुक्त मासिक किश्तों में। इस प्रकार उसे प्रारम्भ में 2500/- रु. देने पड़े और वह टीवी को अपने घर ले गया। इसके बाद 2,250/- रु. प्रति मास से दस महीने तक भुगतान करना था । यदि रमेश कोई किश्त का भुगतान नहीं करता है, तो विक्रेता उस पर शेष देय राशि की वसूली के लिए कोर्ट में दावा कर सकता है। यह विक्रय प्रणाली कम टिकाऊ एवं अधिक अवक्षयण (Depreciation) लगने वाली वस्तुओं के लिए उपयोगी रहती है।
3. साख की अवधि के अन्त पर अस्थगित ( विलंबित ) भुगतान – वस्तुओं के उधार विक्रय होने पर क्रेता को साख की अवधि, माना एक महीने की समाप्ति पर भुगतान करना होता है। यदि उससे पहले भुगतान करना है तो विक्रेता विशेष छूट दे सकता है। इसे वह बीजक में देय तिथि से पहले तुरन्त भुगतान के लिए शुद्ध राशि के रूप में दिखाता है।
प्रश्न 8. निविदा (Tender) द्वारा विक्रय को समझाइए ।
उत्तर – विक्रय की यह प्रणाली साधारण और बड़े संगठनों और सरकारी कार्यालयों में लागू होती है, जहाँ बहुत सी वस्तुएं खरीदी जाती हैं और बहुत सी धन खर्च होता है। निविदा में माल की लिखित शर्तों के अनुसार आपूर्ति करने का वचन दिया जाता है। विक्रय प्रणाली में विक्रेता एक निविदा चाहता है। विभिन्न आपूर्तिकर्ता इसके उत्तर में अपनी आपूर्ति शर्तों को भेजते हैं। अनुकूल परिस्थितियों और सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी चुना जाता है। निविदा को आमंत्रित करने के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन या सूचना प्रकाशित की जाती है, जिसमें माल से संबंधित विस्तृत विवरण दिया जाता है। विज्ञापन के प्रत्युत्तर में अभिरुचि रखने वाले लोगों की प्रार्थना पर निविदा भेजी जाती है। निविदा भेजने वाले से कभी-कभी पेशगी के तौर पर कुछ धन भी जमा कराया जाता है। इससे आपूर्तिकर्त्ता इसे कितनी गंभीरता से ले रहा है पता चलता है। निविदा गुप्त रहने के लिए सील किए हुए लिफाफों में मंगाई जाती है। बंद लिफाफों को अधिकारी की उपस्थिति में खोला जाता है और सबसे अच्छी निविदा स्वीकार की जाती है। इसके बाद, निविदा की शर्तों के अनुसार विक्रय का अनुबंध कर लिया जाता है
प्रश्न 9. किसी वस्तु को क्रय करने की विभिन्न पद्धतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-वस्तु को क्रय करने की विभिक्त पद्धतियाँ इस प्रकार हैं-
1. निरीक्षण द्वारा क्रय-यदि क्रेता क्रय से पूर्व स्वयं क्रय की जाने वाली वस्तु का स्वयं निरीक्षण करता है, उसे निरीक्षण द्वारा क्रय कहते हैं। इसमें क्रेता स्वयं दुकान पर जाकर उस वस्तु विशेष या उसकी मात्रा की जांच करता है, जिसे वह खरीदने की योजना बनाता है। क्रय की यह पद्धति फुटकर क्रय में सर्वाधिक प्रयोग में आती है।
2. नमूना परीक्षण द्वारा क्रय-बड़ी मात्रा में वस्तुएँ खरीदते समय क्रेता के लिए यह सम्भव नहीं होता कि वह सभी वस्तुओं का निरीक्षण करें। ऐसे में वस्तु के किसी भाग या नमूने या प्रतिरूप की जांच कर क्रय का निर्णय लिया जाता हैं। एक नमूना वस्तु विशेष की प्रतिकृति ही होता है विशेष रूप कच्चे माल, भोज्य पदार्थों आदि की। वह प्रतिकृति पूरे उत्पाद का प्रतिनिधित्व करती है। उसकी गुणवत्ता उसकी पूरी खेप की गुणवत्ता बताती है। इसी प्रकार से प्रतिमान निर्मित मानक वस्तुओं जैसे- कपड़ा, नारियल के गद्दे आदि का नमूना होता है । यह उस पूरी उत्पाद के रंगों, बनावट आदि को बताता है। इस पर कोड नम्बर भी होता है। इन कोड नम्बरों को आर्डर देते समय उद्धृत किया जा सकता है क्योकि दोनों पक्ष उस नमूने या पैटर्न की गुणवत्ता वाली वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए सहमति देते हैं।
3. उत्पाद का ब्रांड या विक्रय द्वारा क्रय-विक्रेता के लिए कुछ परिस्थितियों में संभावित क्रेता को नमूना दिखाना सम्भव नहीं होता। उदाहरणार्थ फर्नीचर का निर्माता अपने उत्पाद के नमूने को लेकर संभावित क्रेता की खोज में घूम नहीं सकता। वह अपने उत्पाद को प्रदर्शित करने वाला एक सूचीपत्र व मूल्य विवरणिका, जो कि उसके द्वारा बनाए गए फर्नीचर का पूरा विवरण विस्तार से देते हैं, संभावित क्रेता को भेजता या दिखाता है। कभी-कभी उत्पाद मानक उत्पाद होते हैं, जिनकी गुणवत्ता तथा मूल्य निर्धारित होते हैं। उन्हें उत्पाद संख्या या नाम दे दिए जाते हैं और वह उन्हीं नामों से प्रसिद्ध हो जाते हैं जैसे- टाटा नमक, धारा, लाइफबॉय, फेविकोल आदि । यहाँ क्रेता को केवल ब्राण्ड का नाम या उत्पाद का प्रसिद्ध विवरण देना ही पर्याप्त होता है ।
प्रश्न 10. किसी वस्तु के विक्रय करने की विभिन्न पद्धतियों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – किसी वस्तु के विक्रय की विभिन्न पद्धतियाँ इस प्रकार हैं-
1. किराया क्रय पद्धति – किराया क्रय पद्धति विक्रय में क्रय मूल्य का भुगतान किश्तों में किया जाता है। लेकिन वस्तुओं के पूरे मूल्य के भुगतान तक वस्तु को किराए पर ही माना जाता है। अन्य शब्दों इसके स्वामित्व का अधिकार विक्रेता के पास ही रहता है और जो मूल्य उपभोक्ता द्वारा चुकाया जाता है, उसे किराया माना जाता है । में, चाहे वस्तु की सुपुर्दगी क्रेता को दे दी जाती है, लेकिन यदि कोई क्रेता किसी किश्त के भुगतान में चूक जाता है, तो विक्रेता अपनी वस्तु की वापसी की मांग कर सकता है। ऐसे चूककर्ता के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा कर सकती है। इस पद्धति में क्रेता को यह पूरा अधिकार है कि वह किश्त भुगतान की अवधि के बीच में भी जब चाहे वस्तु के पूरे मूल्य का भुगतान कर वस्तु का स्वामित्व ले सकता है। क्रय की यह पद्धति टिकाऊ व बहुमूल्य वस्तुओं जैसे – घर, जमीन एवं मशीनों इत्यादि के क्रय में प्रयोग की जाती है।
2. अस्थगित ( विलंबित ) किश्त विक्रय- जब वस्तु बेच दी जाती है और उसके मूल्य का भुगतान किश्तों द्वारा करने का समझौता हो जाता है तो ऐसे विक्रय को अस्थगित किश्त विक्रय कहते हैं। इस क्रय में यदि क्रेता किश्त का भुगतान नहीं कर पाता तो विक्रेता उससे वस्तु वापिस नहीं मांग सकता, क्योंकि विक्रय के समय जब पहली किश्त का भुगतान होता है तभी स्वामित्व का हस्तांतरण हो जाता है। विक्रेता के वल न्यायालय में क्रेता के विरुद्ध भुगतान की बची हुई राशि के लिए दावा कर सकता है।
3. अनुमोदन पर विक्रय ( Sale on Approval) — अनुमोदन पर विक्रय वास्तव में सशर्त बिक्री होती है। इस विक्रय में क्रेता मूल्य देकर वस्तु का क्रय इस शर्त पर करता है कि यदि उसकी आवश्यकता नहीं सिद्ध हई तो वह वस्तु को वापस कर मूल्य को वापस ले लेगा। इसके लिए एक समय निश्चित होती है तथा पूरा माल अथवा उसका कोई भाग लौटाया जा सकता है। यदि निर्धारित समय में क्रेता विक्रेता को अपना निर्णय नहीं बताता है तो यह माना जाएगा कि वस्तु का विक्रय हो गया है। कभी-कभी विक्रय की इस पद्धति में कुछ परिवर्तन भी किया जाता है। वस्तु को क्रेता के पास पसन्द करने के उद्देश्य से भेज दिया जाता है। यदि वह उन्हें पसन्द कर लेता है तो उनके मूल्य का भुगतान कर देता है अन्यथा वस्तु को लौटा देता है।
4. निविदा के माध्यम से विक्रय – यह प्रणाली बड़े संगठनों में अपनाई जाती है, जहाँ बड़ी मात्रा में वस्तुओं का क्रय किया जाता है। निविदा में लिखित शर्तों के अनुसार माल की आपूर्ति करने का वचन होता है। सर्वाधिक प्रतियोगी एवं अनूकुल शर्तों वाले आपूर्तिकर्ता का चयन किया जाता है।
5. नीलामी द्वारा विक्रय – संकेत: देखें प्रश्न 3 का उत्तर ।
6. निकासी (क्लीअरेंस सेल) विक्रय – प्रायः ऐसे विज्ञापन देखे जाते हैं भारी निकासी (क्लीअरेंस) बिक्री 50% तक की छूट अथवा ग्रीष्मकालीन विक्रय अथवा वार्षिक विक्रय आदि । बिक्री की यह व्यवस्था अधिक अथवा अनावश्यक माल को निकालने के लिए की जाती है। कुछ विक्रेता इस प्रकार की बिक्री की व्यवस्था समय-समय पर करते रहते हैं। अधिकांश विक्रेता भारी छूट देते हैं।
प्रश्न 11. किसी वस्तु के विक्रय की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – वस्तुओं के विक्रय की एक सामान्य प्रक्रिया, जिसे विक्रय रूटीन कहते हैं, में निम्नलिखित चरण शामिल हैं-
1. पूछताछ- विक्रय प्रक्रिया का प्रारम्भ उपलब्ध सर्वाधिक उपयुक्त विक्रेता से क्रेता द्वारा आपूर्ति, मूल्य एवं की गुणवत्ता से सम्बन्धित शर्तों के बारे में पूछताछ से होता है। यह पूछताछ द्वितीयक सूचना के स्रोत जैसे समाचार पत्रों में विज्ञापन, बाजार की रिपोर्ट, मूल्य सूची, कोटेशन आदि से की जा सकती है। वैसे साधारणतया पूछताछ से अभिप्राय सीधे विक्रेता अथवा विनिर्माताओं ‘सूचना एकत्रित कर श्रेष्ठतम आपूर्ति के स्रोत का निर्णय लेने से है। व्यवसायों में जहाँ नियमित रूप से क्रय होता रहता है, पूछताछ छपे हुए फार्म होते हैं।
2. निर्ख – सम्भावित क्रेता से पूछताछ पर विक्रेता आवश्यक सूचना प्रदान करता है। इसे निर्ख (कोटेशन) कहते हैं। निर्ख में लिखित विक्रय की शर्तें एवं मूल्य के बारे में आगे मोल-भाव हो सकता है। विक्रेता छपे हुए निर्ख फार्म का भी प्रयोग कर सकता हैं।
3. आदेश – इच्छुक क्रेता यदि निर्ख में दी गई विक्रय की शर्तों से संतुष्ट है तो वह विक्रेता को औपचारिक रूप से माल का आदेश भेजेगा । क्रेता छपे हुए आदेश प्रपत्र भी प्रयोग करते हैं।
4. आदेश की पूर्ति – आदेश प्राप्ति के बाद विक्रेता इसकी प्राप्ति की सूचना भेजता है तथा इस पर अपनी स्वीकृति प्रदान करता है | आदेश पर प्राप्ति की तिथि सहित, मोहर लगा दी जाती है। इसे एक संदर्भ नम्बर दे दिया जाता है तथा आदेश प्राप्ति पर रजिस्टर में इसकी प्रविष्टि कर दी जाती है। यदि क्रेता नया है तो विक्रेता उसकी साख एवं वित्तीय स्थिति की जाँच करेगा। यदि विक्रेता, क्रेता की साख के सम्बन्ध में संतुष्ट है तो वह उसको वस्तु के विक्रय का निर्णय ले सकता है। अन्यथा उसे एक क्षमा पत्र भेज सकता है जिसमें वह आदेश स्वीकार करने में अपनी असमर्थता बता सकता है।
5. बीजक – बीज में पूरे क्रय-विक्रय लेन-देन का विस्तृत ब्यौरा एवं विक्रेता द्वारा क्रेता से प्राप्त की जाने वाली राशि दी हुई होती है। विक्रेता इसे वस्तुओं के साथ क्रेता को भेज देता है। इसकी एक प्रति विक्रेता के पास होती है। इसकी एक-एक प्रति उत्पादन विभाग अथवा भंडारगृह तथा लेखा-जोखा विभाग को भी भेज दी जाती है।
6. ग्राहक का खाता खोलना – लेखा विभाग (Account Section) में जैसे ही बीजक की प्रति प्राप्त होती है, खाता-बही में ग्राहक का खाता खोल दिया जाता है। इस खाते में बेचे गए माल के बीजक मूल्य, साख, उधार अवधि की छूट एवं ग्राहक द्वारा किए गए भुगतान का ब्यौरा लिखा जाता है। यदि पहले से ही उसका खाता खुला हुआ है, तो उसमें आवश्यक प्रविष्टियां की जाती हैं।
7. प्रेषण एवं सुपुर्दगी – गोदाम अथवा उत्पादन विभाग को माल की निकासी के लिए, लेखा विभाग से प्राप्त बीजक की प्रति अथवा सुपुर्दगी नोट अथवा दोनों की आवश्यकता होती है। इन वस्तुओं को पैकेजिंग विभाग में ले जाया जाता है, जहाँ अंतिम रूप से जाँच कर यह निश्चित किया जाता है कि वस्तुएं आदेश के अनुसार हैं। वस्तुओं पर लेबल लगाकर उन्हें प्रेषण खण्ड (Despatch Section) में भेज दिया जाता है। वस्तुओं के प्रेषित कि जाने के बाद प्रेषण नोट की एक प्रति क्रेता को भेज दी जाती है। इसे नोट सूचना कहते है इसमें भेजे गये माल का पूरा ब्यौरा होता है। इसमें यह भी स्पष्ट किया जाता है कि क्रेता माल को कैसे प्राप्त कर सकता है। यदि माल को रेल या ट्रक द्वारा भेजा जाता है, तो परिवहन अधिकारी की प्राप्ति रसीद की प्रति प्रेषण नोट के साथ नत्थी कर दी जाती है।
8. माल की सुपुर्दगी लेना – विक्रेता से रेलवे रसीद अथवा ट्रांसपोर्ट रसीद प्राप्त करने के बाद क्रेता अथवा उसके एजेंट के माल की पूरी जांच कर लेनी चाहिए। यदि माल क्षतिग्रस्त हुआ है, तो इसकी सूचना ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी को देनी चाहिए एवं तुरन्त क्षतिपूर्ति का दावा कर देना चाहिए ।
9. भुगतान – विक्रय प्रक्रिया का अंतिम चरण वस्तुओं (माल) का भुगतान है। भुगतान पहले से ही तय शर्तों के अनुसार किया भुगतान मनीऑर्डर, चैक, ड्राफ्ट, विनिमय पत्र, प्रतिज्ञा पत्र आदि के माध्यम से किया जाता है। जाता है। आन्तरिक व्यापार ( Internal Trade) में साधारणतया
यदि ग्राहक नियमित है, तो उनकी देय राशि निर्धारित कर ली जाती है तथा ग्राहक नियमित अन्तराल पर भुगतान करता रहता है, ताकि प्रत्येक लेन-देन का हिसाब हो सके । पूरा भुगतान प्राप्त हो आती है उसकी प्राप्ति की रसीद क्रेता को दी जाती है। कभी-कभी जाने पर हिसाब चुकता माना जाएगा। समय-समय पर जो भी विक्रेता आवधिक खाता विवरण ( Account Statement) भेजता है। इसमें निम्नलिखित मदें दी होती हैं-
(i) क्रय की गई वस्तुओं की राशि
(ii) क्रेता से प्राप्त भुगतान
(iii) क्रय एवं भुगतान की तिथि
(iv) क्रेता की ओर शेष राशि
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि विक्रय प्रक्रिया के कई चरण हैं। इसे निम्न चार्ट से स्पष्ट किया जा सकता है-
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