NIOS Class 10th Arthashastra Chapter 4. अर्थव्यवस्था अभिप्राय तथा प्रकार
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NIOS Class 10 Economics Chapter4 Solution – अर्थव्यवस्था अभिप्राय तथा प्रकार
प्रश्न 1. अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है? पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं बताइये ।
उत्तर – अर्थव्यवस्था मानवीय आवश्यकताओं की तुष्टि के लिए गढ़ी गई व्यवस्था या संगठन का नाम है। ए. जे. ब्राउन के अनुसार, “अर्थव्यवस्था वह पद्धति है, जिसके अनुसार कोई समाज अपनी आजीविका कमाता है।” अर्थव्यवस्था वह संरचना है, जिसके अंतर्गत सभी आर्थिक गतिविधियों का संचालन होता है। अर्थव्यवस्था एक मानव-निर्मित संगठन है। इसे समाज की आवश्यकताओं के अनुसार बनाया, बदला और विघटित भी किया जा सकता है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं निम्नलिखित होती हैं।
1. निजी संपत्ति- पूंजीवाद में हर कोई मालिक बन सकता है। व्यक्ति अपनी संपत्ति को प्राप्त करने के बाद उसे अपने परिवार के लिए उपयोग करने का अधिकार रखता है। भूमि, मशीनों की खानों, कारखानों, लाभ कमाने और धन संग्रह करने में कोई बाधा नहीं है। यही नहीं, व्यक्ति की मृत्यु के बाद संपत्ति उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के नाम में हस्तांतरित होती है। इस प्रकार, उत्तराधिकार कानून निजी संपत्ति व्यवस्था को बचाते हैं।
2. उद्यम की स्वतंत्रता – पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार जनता की उत्पादक गतिविधियों में समन्वय नहीं लाने की कोशिश करती है। व्यापार करने का अधिकार हर व्यक्ति को है। व्यवसाय की स्वतंत्रता का मतलब है कि हर फर्म संसाधन प्राप्त कर उन्हें अपनी आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में लगाने के लिए स्वतंत्र है। ये फर्मों को भी अपने निर्धारित बाजारों में अपना उत्पाद बेचने का अधिकार है। इसी तरह, प्रत्येक कर्मचारी अपना काम और मालिक चुनने में स्वतंत्र है।
छोटे उद्यमों में, मालिक स्वयं उत्पादन का जोखिम उठाते हैं और लाभ प्राप्त करते हैं। किन्तु आजकल निगमित व्यवसाय में अंशधारी जोखिम उठाते हैं और वेतनभोगी ‘निदेशक’ व्यवसाय चलाते हैं। यही कारण है कि अब लाभ कमाने के लिए अपने पैसे पर पूरी तरह से नियंत्रण रखना आवश्यक नहीं रह गया है। सरकार या कोई अन्य संस्था कर्मचारियों को किसी उद्योग में शामिल होने या छोड़ने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाती। प्रत्येक कर्मचारी वह काम चुनता है जो उसे सबसे अधिक पैसा दे सकता है।
3. उपभोक्ता की सत्ता – उपभोक्ता पूंजीवादी व्यवस्था का ‘राजा’ है। उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टिदायक वस्तुओं और सेवाओं पर पैसे खर्च करने में पूरी तरह स्वतंत्र हैं। इन व्यवस्थाओं में उपभोक्ताओं द्वारा निर्धारित चयनों के अनुसार सभी उत्पादन कार्य किए जाते हैं। उपभोक्ता की सत्ता को उपभोक्ता की निर्बाध स्वतंत्रता कहते हैं।
4. लाभ का उद्देश्य- पूंजीवाद का ‘वेदवाक्य’ स्वहित पोषण या अपना लाभ अधिकतम करना है। उद्यमी जानते हैं कि उत्पादक साधनों को भुगतान के बाद बची सारी राशि उनकी अपनी होगी। अतः वे सदैव लागत को न्यूनतम और आगम को अधिकतम करने का प्रयास करते रहते हैं, ताकि उनको मिलने वाला (आगम- लागत ) अन्तर अधिकतम हो जाए। इसी से पूंजीवादी व्यवस्था कुशल और स्वयं नियंत्रित अर्थव्यवस्था बन जाती है।
5. प्रतियोगिता – पूंजीवाद में फर्मों के प्रवेश और निकास पर कोई प्रतिबंध नहीं है। प्रत्येक उत्पाद और सेवा के बाजार में कई निर्माता और आपूर्तिकर्ता हैं। इसलिए कोई सामान्य से अधिक लाभ नहीं मिलेगा। यही कारण है कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता उपभोक्ता शोषण से बचाता है। हालाँकि आजकल फर्मों के बड़े आकार और उत्पाद विभेद के कारण बाजार में कुछ एकाधिकारी प्रवृत्तियां पनप रही हैं, फिर भी फर्मों की संख्या और उनके बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा साफ दिखाई पड़ती है।
6. बाजारों और कीमतों का महत्त्व – पूंजीवाद में निजी संपत्ति, चयन की स्वतंत्रता, लाभ का लक्ष्य और प्रतिस्पर्धा जैसे लक्षण बाजार की कीमत प्रणाली के लिए सही वातावरण बनाते हैं। मूलतः पूंजीवाद एक बाजार-आधारित व्यवस्था है, जहां हर चीज की एक कीमत होती है। कीमतें आपूर्ति और मांग पर निर्भर करती हैं। उस निश्चित कीमत पर उत्पादन करने वाली फर्मे ही सामान्य लाभ कमाने में सफल रहती हैं। अन्य लोग उद्योग क्षेत्र से भाग जाते हैं। प्रत्येक उत्पादक उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करेगा, जिनसे उसे सबसे अधिक लाभ मिल सके।
7. सरकारी हस्तक्षेप और केन्द्रीय आयोजन का अभाव– स्वतंत्र बाजार (पूंजीवादी) व्यवस्था में समन्वयकारी संस्था का कार्य कीमत प्रणाली है। सरकारी सहारे और हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं होती। सरकार से बाजार व्यवस्था को स्वतंत्र और सफल बनाए रखने की उम्मीद है।
प्रश्न 2. ‘अर्थव्यवस्था पारस्परिक सहयोग और विनिमय की व्यवस्था है।’ विवेचना कीजिये ।
उत्तर- प्रत्येक अर्थव्यवस्था का लक्ष्य अधिकतम मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करना है, अर्थात दुर्लभ संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करना। सरल शब्दों में, अर्थव्यवस्था वह व्यवस्था है जिसमें सभी आर्थिक कार्य होते हैं । लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था परस्पर निर्भर है। अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे पर निर्भर हैं, यद्यपि विकास के पथ पर कुछ अर्थव्यवस्थाएं तीव्र आर्थिक विकास तथा आर्थिक संवृद्धि के कारण विकसित अर्थव्यवस्थाओं का रूप धारण कर चुकी हैं, जबकि अन्य अर्थव्यवस्थाएं अल्पविकसित या विकासशील मानी जाने लगी हैं।
उदाहरण के लिए, भारत की अर्थव्यवस्था विकासशील मानी जाती है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से वह निरंतर विकास की ओर बढ़ रही है, जिससे दुनिया भर की कई अर्थव्यवस्थाएं वहां निवेश करने को तैयार हैं। इसलिए, आर्थिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए विशाल बाजार विकासशील देशों के परस्पर सहयोग और युक्तिपूर्ण विनिमय ही प्रत्येक विकसित अर्थव्यवस्था को मिल सकता है।
प्रश्न 3. उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व तथा नियंत्रण के आधार पर अर्थव्यवस्था के प्रकार समझाइये |
उत्तर- उत्पादक संसाधनों के स्वामित्व और नियंत्रण के आधार पर अर्थव्यवस्थाएं निम्नलिखित हैं-
(क) पूंजीवादी या स्वतंत्र उद्यम अर्थव्यवस्था
(ख) समाजवादी या केन्द्रीय रूप से प्रायोजित अर्थव्यवस्था
(ग) मिश्रित अर्थव्यवस्था ।
प्रश्न 4. आर्थिक विकास तथा आर्थिक संवृद्धि में भेद कीजिये ।
उत्तर – राष्ट्रीय आय का विस्तार अर्थात पिछली अवधि की तुलना में वर्तमान में राष्ट्रीय आय में वृद्धि आर्थिक संवृद्धि का संकेत है। विपरीत, आर्थिक विकास का क्षेत्र अधिक विस्तृत है। इसमें उत्पादन में वृद्धि के लिए किए गए अतिरिक्त तकनीकी व संस्थागत व्यवस्था में किए गए बदलाव भी शामिल हैं, जो उत्पाद की निर्माण एवं वितरण को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि आर्थिक विकास के बिना आर्थिक संवृद्धि तो सम्भव है, लेकिन आर्थिक विकास के बिना आर्थिक संवृद्धि नहीं हो सकती। जनसंख्या के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए कोई अर्थव्यवस्था अपनी निर्वाह आवश्यकता से अधिक पैदा नहीं कर सकती।
प्रश्न 5. आर्थिक विकास के प्रमुख निर्धारक क्या होते हैं?
उत्तर- आर्थिक विकास के प्रमुख निर्धारक कारक निम्नलिखित हैं-
1. प्राकृतिक संसाधन – प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता से आर्थिक संवृद्धि और विकास में प्ररेणा और सहायता मिलती है । इन साधनों की गुणवत्ता भी संवृद्धि दर को प्रभावित करती है।
2. मानवीय संसाधन- आर्थिक विकास भी समाज के मानवीय संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता पर निर्भर करता है। शेष अन्य चीजें समान रहने पर, शिक्षित और तकनीकी प्रशिक्षित कर्मचारी उच्च वृद्धि दर प्राप्त कर सकते हैं। दूसरी ओर, अशिक्षित और गुणहीन जनसंख्या आर्थिक विकास को रोकती है।
3. पूंजी निर्माण- पूंजीगत संपत्ति के भण्डारण का तीव्र आर्थिक वृद्धि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इस भंडार को बढ़ाने के लिए उच्च दर से बचत की जरूरत है। उनके पास बचत भी होनी चाहिए। संवृद्धि दर पूंजी उत्पाद अनुपात पर निर्भर करेगी, साथ ही बचत और निवेश दरों पर भी। विकासशील देश की सरकार पूंजी निर्माण के लिए विदेशी सहायता भी ले सकती है अगर उसके आन्तरिक बचत दर पर्याप्त नहीं है।
4. प्रौद्योगिकी- आर्थिक विकास में प्रौद्योगिकी का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। यह निरंतर विकास और खोज पर निर्भर है। वर्तमान तकनीक से कोई देश प्राकृतिक संसाधनों की कमी और उत्पादन में कमी को पार कर सकता है। विकासशील देशों ने मानव संसाधनों में भी निवेश किया है। इन आर्थिक कारकों के अतिरिक्त अनेक गैर-आर्थिक कारक भी हैं, जैसे-
1. जाति प्रथा,
2. परिवार रचना,
3. नस्लगत कारक और
4. सरकारी नीतियां ।
इन सबका आर्थिक संवृद्धि और विकास की दर पर प्रभाव पड़ता है।
अर्थव्यवस्था अभिप्राय तथा प्रकार के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. एक अर्थव्यवस्था की क्या विशेषताएं होती
उत्तर- एक अर्थव्यवस्था की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएं होती हैं-
1. अर्थव्यवस्था को मानव ने बनाया है। इसलिए अर्थव्यवस्था हम बनाते हैं।
2. विघटित आर्थिक संस्थाएं बदल सकती हैं। उदाहरण है: 1917 में सोवियत संघ में साम्यवाद ने पूंजीवाद को हराया, और 1989 में आर्थिक सुधारों ने साम्यवाद को खत्म कर दिया। 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत ने जमींदारी व्यवस्था को समाप्त करके भू-सुधार कार्यक्रम शुरू किया।
3. आर्थिक गतिविधियों के स्तर में उच्चावच चलता रहता है।
4. उपभोक्ता और उत्पादक समान व्यक्ति हैं। इसलिए सभी हम दोहरी भूमिका निभा रहे हैं। उपभोक्ता के रूप में हम वस्तुओं और सेवाओं को बनाते हैं और उत्पादक के रूप में उनका उपभोग करते हैं।
5. उत्पादन, उपभोग तथा निवेश किसी अर्थव्यवस्था की आधारभूत गतिविधियां हैं।
6. आज की जटिल अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा को विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है।
7. अब राजकीय हस्तक्षेप अर्थव्यवस्था में अवांछनीय माना जाता है और अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं स्वतंत्र रूप से काम करती हैं।
प्रश्न 2. एक समाजवादी अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – एक समाजवादी अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
1. उत्पादक संसाधनों का सामूहिक स्वामित्व- समाजवादी व्यवस्था का अर्थ है जनता की ओर से सरकार का उत्पादक संसाधनों पर स्वामित्व। यहां निजी संपत्ति का अधिकार समाप्त हो जाता है। कोई व्यक्ति किसी उत्पादक इकाई का स्वामी नहीं हो सकता। वह धन संग्रह करके उसे अपने कानूनी उत्तराधिकारियों को भी नहीं सौंप सकता। हालांकि उन्हें व्यक्तिगत प्रयोग के लिए कुछ दीर्घोपयोगी उपभोक्ता पदार्थ अपने पास रखने की छूट होती है।
2. क्षेम का ध्येय – सरकार समष्टि स्तर पर सभी निर्णय निजी लाभ के लिए नहीं, बल्कि अधिकतम सामाजिक क्षेम या कल्याण की प्राप्ति के उद्देश्य से करती है। समाजवादी अर्थव्यवस्था हैं। में मांग और आपूर्ति की शक्तियों की भूमिका इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं होती। सभी निर्णय क्षेम के उद्देश्य से प्रेरित होकर लिए जाते
3. केन्द्रीय आयोजन – केन्द्रीय रूप से योजनाबद्ध कार्य करना समाजवादी व्यवस्था की एक मूलभूत विशेषता है। यहां पर केन्द्रीय योजना प्राधिकरण संसाधनों की उपलब्धता का आकलन करके उन्हें राष्ट्रीय वरीयताओं के अनुसार आबंटित करता है। सरकार ही वर्तमान और भावी आवश्यकताओं का आकलन करके उत्पादन, उपभोग और निवेश संबंधी आर्थिक निर्णय करती है। योजना अधिकारी प्रत्येक क्षेत्रक के लक्ष्यों का निर्धारण करते हैं और संसाधनों का कुशल प्रयोग सुनिश्चित करते हैं।
4. विषमताओं में कमी – पूंजीवादी व्यवस्थाओं में आय और संपत्ति की विषमताओं का मूल कारण निजी संपत्ति और उत्ताधिकार की व्यवस्थाएं हैं। समाजवाद इन दोनों व्यवस्थाओं को समाप्त करके अनार्जित आय के अन्तर को ‘न्यूनतम’ कर देता है ।
5. वर्ग- संघर्ष की समाप्ति-पूंजीवादी व्यवस्थाओं में प्रबंधकों और कर्मचारियों के हितों में लगातार संघर्ष होता है। ये दोनों वर्ग अपनी कमाई और लाभ को बढ़ाना चाहेंगे। इसलिए पूंजीवाद में वर्ग संघर्ष है। किंतु समाजवाद में हर व्यक्ति श्रमिक है। इसलिए यहां वर्ग संघर्ष नहीं होगा। यहाँ लोग सहकर्मी होते हैं।
प्रश्न 3. मिश्रित अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – मिश्रित अर्थव्यवस्था की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
1. सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों का सहअस्तित्व- निजी क्षेत्र की इकाइयां व्यक्तिगत लाभों के लिए संचालित होती हैं। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की उत्पादक इकाइयों को चलाती है और उन्हें सामाजिक लाभ के लिए चलाती है। दोनों क्षेत्रकों के आर्थिक कार्यक्षेत्रों में आम तौर पर स्पष्ट अंतर है। सरकार अपनी लाइसेंस, करारोपण, कीमत, मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों द्वारा निजी क्षेत्रक का नियंत्रण और नियमन करती है।
2. वैयक्तिक स्वतंत्रता –व्यक्ति अपनी बुद्धि और धन को उच्चतम स्तर तक ले जाते हैं। वे भी स्वतंत्र होते हैं कि वे क्या खरीदते हैं और क्या नहीं खरीदते। लेकिन उत्पादकों को कर्मचारियों और ग्राहकों का शोषण करने की छूट नहीं है। जनकल्याण के लिए सरकार उन पर कुछ नियंत्रण लगाती है। उदाहरण: सरकार हानिकारक उत्पादों का उत्पादन और उपभोग रोक सकती है। सरकारी कानूनों और प्रतिबंधों के दायरे में रहते हुए निजी क्षेत्र अपनी पूरी स्वतंत्रता का आनंद ले सकता है।
3. आर्थिक आयोजन – सरकार दीर्घकालिक योजनाओं का निर्माण करके अर्थव्यवस्था के विकास में निजी एवं सार्वजनिक उद्यमों के कार्य क्षेत्रों व दायित्वों का निर्धारण करती है। सार्वजनिक क्षेत्र पर तो सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण रहता है। अतः वही उनके उत्पादन लक्ष्यों और योजनाओं का निर्धारण भी करती है। निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन, समर्थन, सहायता आदि के माध्यम से राष्ट्रीय वरीयताओं के अनुसार कार्य करने के लिए
4. कीमत प्रणाली – मिश्रित अर्थव्यवस्था में कीमतें साधन से प्रेरित हैं। आबंटन में महत्वपूर्ण हैं। प्रशासकीय शुल्क भी कुछ क्षेत्रकों में लागू होते हैं। लक्षित समूहों को भी सरकार कीमत सहायता प्रदान करती है। जनता की सुरक्षा सरकार की पहली प्राथमिकता है। सरकार बाजार कीमतों पर आवश्यक उपभोग सामग्री खरीदने की स्थिति में नहीं होने वाले लोगों या समुदायों को इन वस्तुओं को कम कीमत पर या पूरी तरह से मुफ्त देने की कोशिश करती है।
प्रश्न 4 विकसित और विकासशील देशों में भेद कीजिए ।
उत्तर- वास्तविक राष्ट्रीय आय, जनसंख्या की प्रतिव्यक्ति आय और जीवन निर्वाह स्तर के आधार पर किसी देश को विकसित या अमीर देश कहा जाता है । विकसित देशों में प्रतिव्यक्ति आय (बचत और निवेश) और राष्ट्रीय आय का पूंजी निर्माण अधिक होता है। मानव पूंजी शिक्षित होती है। वहां जन सुविधाएँ, चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएँ बेहतर हैं और मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर कम हैं। साथ ही वहां औद्योगिक और सामाजिक ऊपरिसंरचनाएं और पूंजी और वित्त बाजार भी विकसित होते हैं। कुल मिलाकर, जीवन-स्तर विकसित देशों में अधिक सुविधाजनक है।
विकासशील, अल्पविकसित या पिछड़े देश विकास की सीढ़ी पर काफी नीचे होते हैं। इन देशों में प्रति व्यक्ति और राष्ट्रीय आय कम है। इन देशों की कृषि और उद्योग क्षेत्र पिछड़े हैं। निवेश, बचत और पूंजी निर्माण का स्तर निम्नलिखित है। इनके पूंजी बाजार भी कमजोर हैं। ये देश भी निर्यात करते हैं, लेकिन अधिकांशतः खाद्य और कृषि उत्पाद ही निर्यात करते हैं। शिशु मृत्यु दर कम रहने वाले देशों में अधिक होती है।
विकसित देश | विकासशील देश |
(1) राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय तथा पूंजी निर्माण का उच्च स्तर । | (1) राष्ट्रीय आय और प्रतिव्यक्ति आय पूंजी निर्माण का स्तर सामान्यत: विकसित देशों से कम। |
(2) मृत्यु दर तथा जन्म दर का निम्न स्तर । | (2) जन्म-दर तथा मृत्यु दर में अधिक अन्तर । |
( 3 ) निम्न स्तर मानवीय संसाधन, अधिक विकसित, शिक्षित और कुशल होते हैं। | ( 3 ) मानवीय संसाधनों का अकुशल तथा अक्षम स्वरूप । |
(4) बचत / निवेश और पूंजी निर्माण का उच्च स्तर | | (4) बचत, निवेश और पूंजी निर्माण का निम्न स्तर । |
(5) कृषि तथा औद्योगिकी क्षेत्र पूर्ण रूप से विकसित तथा उन्नत होते हैं। | (5) कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र पिछड़े होते हैं। |
( 6 ) उच्च जीवन स्तर और बेहतर मूलभूत मानवीय सुविधाएँ | (6) निम्न जीवन स्तर और धीमी आधारिक संरचना | |
(7) आर्थिक विकास और आर्थिक संवृद्धि की तीव्र गति | (7) आर्थिक विकास और आर्थिक संवृद्धि की धीमी गति । |
( 8 ) उदाहरण – अमेरिका इग्लैंड, आस्ट्रेलिया, (U.S.A. U.K) आदि । | (8) उदाहरण, भारत, बांग्लादेश, नेपाल, चीन आदि । |
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