ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. 1857 विद्रोह से पहले हुए विद्रोहों का वर्णन कीजिए और उनके परिणाम भी बताइए ।
उत्तर – प्लासी के युद्ध के बाद ही, अंग्रेजी सरकार के खिलाफ भारत के कई हिस्सों में छोटे-छोटे विद्रोह हुए, क्योंकि उसने लूटमार की एक कठोर नीति अपनाई थी। बंगाल में किसानों, संन्यासियों और फकीरों ने पहला विद्रोह किया, जिसे अंग्रेजी सरकार को लगभग ३० वर्ष लगे। फरायजियों, मुसलमानों की एक जाति, अंग्रेजों और जमींदारों के शोषण के खिलाफ एक और विद्रोह हुआ। देश के विभिन्न हिस्सों में, कोलों, गोंडों, कोलियों, मेड़ों, संथालों, सांसियों सहित कई आदिवासी विद्रोह हुए। 1795 से 1805 ई. तक दक्षिण में हुआ क्रांति इतनी भयानक थी कि कुछ इतिहासकारों ने इसे स्वाधीनता का पहला युद्ध कहा है। कंपनी के सैनिकों ने कई विद्रोह किए, जिनमें 1806 ई. का वल्लूर विद्रोह और 1834 ई. का बैरकपुर विद्रोह शामिल हैं। 1830 से 1857 तक, बंगाल और बिहार में वहाबियों ने क्रांति की आवाज उठाई।
प्रश्न 2. डलहौजी को किस सीमा तक 1857 के विद्रोह के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है?
उत्तर – 1857 की घटना के लिए परिस्थितियाँ पैदा करने में निस्सन्देह डलहौजी का बड़ा हाथ था-
1. लॉर्ड डलहौजी ने लैप्स की नीति का इतना कठोर अनुसरण किया कि बहुत से भारतीय शासकों, जैसे रानी लक्ष्मीबाई और पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहिब, उसके विरोध में विद्रोह करते थे।
2. 1849 ई. में पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल करने से वे एक दूसरे से शत्रु बन गए । अंग्रेजों के खिलाफ पंजाबियों, खासकर सिखों ने विद्रोह किया।
3. मुगल सम्राट बहादुरशाह की हत्या के बाद उसके उत्तराधिकारियों को शासक नहीं माना जाएगा और उन्हें लाल किला खाली करना होगा। अंग्रेजों को इस बात से बहुत गुस्सा आया था।
4. लॉर्ड डलहौजी ने रेलवे और तार जैसे सुधारों को जल्दी लाकर लोगों की प्रशंसा जीतने के बजाय उनके मन में शक पैदा कर दिया।
5. अवध के लॉर्ड डलहौजी द्वारा विलय से बंगाल की सेना अंग्रेजों के खिलाफ उठी।
6. लॉर्ड डलहौजी ने बहुत से जागीरदारों और अमीरों को अपने विरुद्ध कर लिया।
7. लॉर्ड डलहौजी के शासनकाल में ईसाई पादरियों द्वारा प्रचारित धर्म ने भारतीयों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बना दिया और विद्रोह की योजना बनाने लगे।
प्रश्न 3. सहायक संधि क्या थी? इससे अंग्रेजों की स्थिति भारत में कैसे मजबूत हुई ?
उत्तर- लॉर्ड वेलेजली ने अनेक राज्यों को जीतने, अंग्रेजी सेना को तैयार करने, फ्रांसीसी नियंत्रण को समाप्त करने और अंग्रेजों को भारत में सर्वोच्च शक्ति बनाने के लिए एक विशिष्ट योजना बनाई, जिसे सहायक संधि कहते हैं। इस समझौते का उद्देश्य निम्नलिखित था-
1. भारतीय शासक अपने प्रदेश में अंग्रेजी सेना रखेंगे, जिसके खर्च के लिए वे धन या कुछ प्रदेश अंग्रेजों को देंगे।
2. अपने दरबार में वे एक अंग्रेज रेजीडेण्ट रखेंगे।
3. यदि सहायक संधि मानने वाले दो शासकों में कोई मतभेद उठ खड़ा होगा, तो अंग्रेजों को पंच मानकर वे उनका निर्णय स्वीकार करेंगे।
4. सहायक सन्धि मानने वाले शासक अंग्रेजों से पूछे बिना न किसी अन्य शक्ति के साथ सन्धि करेंगे और न ही कभी युद्ध की घोषणा करेंगे।
5. वे अंग्रेजों को भारत में सर्वोच्च शक्ति मानेंगे।
6. वे किसी अन्य यूरोपीय देश के लोगों को अपने पास नौकर न रखेंगे और जो पहले से हैं, उन्हें निकाल देंगे।
7. ब्रिटेन कंपनी इन शर्तों को मानने वालों की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की जिम्मेदारी लेगी। इस सहायक संधि ने भारतीय शासकों को आंतरिक और बाह्य खतरों से बचाया, लेकिन इस व्यवस्था से अंग्रेजों को ही लाभ हुआ। भारतीय शासक सहायक सेना को खर्च करते थे, लेकिन अंग्रेजों के इशारों पर यह सेना सब काम करती थी। इस तरह अंग्रेजों ने बिना किसी खर्च के एक बड़ी सेना बनाई।
प्रश्न 4. उन वर्गों का वर्णन कीजिए जिन्होंने 1857 के विद्रोह में भाग नहीं लिया और क्यों ?
उत्तर- 1857 की क्रान्ति के विरुद्ध कुछ भारतीय वर्ग थे, जैसे राजा, बड़े-बड़े जमींदार और कुछ पश्चिमी शिक्षित लोग। राजा अपना सिंहासन बचाना चाहते थे, जमींदार अपनी बड़ी-बड़ी जागीरों को बचाना चाहते थे और कुछ शिक्षित विद्रोह से सहानुभूति नहीं रखते थे। पश्चिमी शिक्षा प्राप्त भारतीय अपनी नौकरियों के कारण 1857 की क्रान्ति के विरुद्ध थे, लेकिन यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि सभी भारतीय राजा, बड़े-बड़े जमींदार और पश्चिमी शिक्षा प्राप्त लोग 1857 की क्रान्ति के विरुद्ध थे। 1857 की क्रान्ति से सहानुभूति रखने वाले लोगों में बहादुरशाह, नाना साहिब, रानी झाँसी, कुँवर सिंह, बहादुर खाँ, बड़े जमींदार और बहुत से पढ़े-लिखे लोग भी शामिल थे और इसमें भाग लेकर अपनी जान दे दी। राजाओं को 1857 के विद्रोह में कुछ वर्गों में बांटा जा सकता है। राजा एक वर्ग में थे, जो अंग्रेजों के प्रति वफादार दिखाना चाहते थे, लेकिन यह भी जानते थे कि अंग्रेजों के पाँव उखड़ने पर उनका अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। दूसरे वर्ग में असंतुष्ट शासक थे, जो अंग्रेजों की नीतियों, जैसे लैप्स की नीति, से असंतुष्ट थे और मौके पर अंग्रेजों से बदला लेने की कोशिश कर रहे थे।
प्रश्न 5. अनेक स्थानों पर पुराने शासकों से विद्रोह का नेतृत्व संभालने का आग्रह करने के पीछे कौन-से कारण थे?
उत्तर- बहुत से स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए अपदस्थ पुराने शासकों से आग्रह किया. वे जानते थे कि विद्रोह को हराया नहीं जा सकता था, साथ ही संगठन और नेतृत्व के बा अंग्रेजों को भी। सिपाही को पता था कि राजनीतिक नेतृत्व सफलता का मूलमंत्र है। इसलिए सैनिक मेरठ में विद्रोह के तुरंत बाद दिल्ली पहुंचे। वहाँ उन्होंने बहादुरशाह को अपना प्रधान बनाया। वह वृद्ध हो गया था और बादशाह सिर्फ नाम था। वह विद्रोह की खबर सुनकर स्वाभाविक रूप से डर गया। वह अंग्रेजों की नीतियों से परेशान था, लेकिन जब कुछ सैनिक दरबार तक आए और शाही शिष्टाचार को तोड़ डाले, तो वह विद्रोह करने को तैयार हो गया। सिपाहियों से घिरे हुए बादशाह को उनकी बात मानने के लिए और कोई चारा नहीं था। अन्य जगहों पर भी सिपाहियों ने पहले विद्रोह किया और फिर नवाबों और राजाओं को नेतृत्व करने के लिए विवश किया।
प्रश्न 6. 1857 के विद्रोह को फैलाने में अफवाहों की क्या भूमिका रही?
उत्तर – वास्तव में, अफवाह सिर्फ तब फैलती है जब लोगों के मन में गहरे दबे संदेह और भय की आवाज सुनाई दे। Британी नीतियों ने भी लोगों को बहुत डराया, इसलिए अफवाहें तेजी से फैलीं। इन अफवाहों के पीछे निम्नलिखित नीतियां थीं:
1. लॉर्ड विलियम बैंटिक की ब्रिटिश सरकार ने कुरीतियों को दूर करने की कोशिश की। अंग्रेजों ने हिंदू विधवा विवाह को मान्यता देने और सती प्रथा को खत्म करने के लिए कानून बनाए।
2. उन्होंने अंग्रेजी भाषी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों की स्थापना में भारतीय समाज के कुछ वर्गों की सहायता की।
3. ईसाई मिशनरियों ने भारत में ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार किया।
4. कारतूसों पर सुअर या गाय की चर्बी होना इन कारतूसों को इस्तेमाल करने से पहले सिपाहियों को अपने दांतों से काटना पड़ता था।
5. क्या दत्तक पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनाने की अनुमति नहीं प्रकट की?
प्रश्न 7. 1857 के विद्रोह ने हिंदू-मुस्लिम एकता को किस प्रकार उजागर किया ?
उत्तर- वास्तव में, इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि धार्मिक विश्वास ने 1857 के घटनाचक्र को निर्धारित किया था। हिन्दू-मुस्लिम एकता ने इस विद्रोह में बहुत काम किया क्योंकि सेना में दिए जाने वाले कारतूस पर सुअर और गाय की चर्बी लगी हुई थी, जिसे दाँतों से छीलना पड़ता था । इस तरह हिंदू-मुस्लिम सेना में एक मंच पर आ गए। दोनों संप्रदायों के नेता और आम लोग भी मिल गए। उन्हें एक स्वर में अंग्रेजों को शत्रु बताया और उनके खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाया। विद्रोहियों ने बहादुरशाह जफर को राजा बनाया। यह प्रस्ताव हिंदू और मुसलमान दोनों के लिए था, इसलिए दिल्ली की ओर एक सैनिक टुकड़ी चली गई। इसी तरह अफगान सरदारों ने महारानी लक्ष्मीबाई को बचाया। फैजाबाद में मौलवी अहमदुल्ला ने भी सफल नेतृत्व किया। हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने के लिए मुसलमानों ने गौ-हत्या को बंद कर दिया जिन मुस्लिम क्षेत्रों में विद्रोह सफल रहा। हिन्दू-मुस्लिम नेतृत्व काफी हद तक समान रहे। यहाँ आकर अंग्रेजों को अपनी नीति ‘फूट डालो और शासन करो’ भी असफल होने लगी।
प्रश्न 8. बहादुरशाह जफर का 1857 की क्रान्ति में क्या योगदान है ?
उत्तर – बहादुरशाह जफर मुगल साम्राज्य का अंतिम शासक था। वास्तव में, वह सिर्फ एक उपासक था। सितंबर 1857 में अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा कर लिया, तो वह लखनऊ चला गया और वहीं से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी। इस विद्रोह में उसके साथ उसके बेटे और बेगम जीनत महल भी थे। अंततः उसके दो पुत्र भी अन्य विद्रोहियों के साथ गिरफ्तार किए गए। बहादुरशाह जफर के दोनों पुत्रों और एक पोते को उसके सामने ही मारा गया। बाद में उन्हें दिल्ली के खूनी दरवाजे पर लटका दिया गया, ताकि हर विद्रोही इस भय से शिक्षा ले सके। बहादुरशाह रंगून चला गया। इस बदनसीब बादशाह की मजार रंगून में आज भी देख सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि बहादुरशाह जफर आजादी की लड़ाई में एक कमजोर पक्ष बन गया। वह नेतृत्व नहीं कर सकता था, लेकिन 1857 की क्रान्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह अंत तक हिंदुओं और मुसलमानों की एकता का प्रतीक बना रहा।
प्रश्न 9. 1857 में सैनिकों ने विद्रोह क्यों किया?
उत्तर – सैनिक विद्रोह के कारण-
(1) सर्विस एनलिस्टमेंट एक्ट का विरोध – लॉर्ड केनिंग के शासनकाल में ‘सर्विस एनलिस्टमेंट एक्ट’ नामक अधिनियम पारित किया गया था, जिसमें भारतीयों को युद्ध की स्थिति में बाहर भेजे जाने की व्यवस्था थी। इस एकट का विरोध इसलिये हुआ कि भारतीय सैनिक समुद्र पार जाना धर्म के विरुद्ध समझते थे। 1857 ई. की क्रान्ति में उन सैनिकों का विशेष योगदान था, जिन्होंने
(2) भारतीय सैनिकों के प्रति अपमानजनक व्यवहार- अंग्रेजों का अपमान सहा था।
(3) सेना में अनुशासनहीनता – सन 1857 ई. की क्रान्ति में ब्रिटिश सेना में अनुशासहीनता आ गयी थी, क्योंकि सभी सैनिक अफसरों को प्रशासकीय विभाग में स्थानान्तरित कर दिया गया था । थी कि ‘जो एनफील्ड राइफल उनको दिया गया है, उसमें हड्डी का
(4) अफवाहों का प्रभाव – इस सम्बन्ध में एक अफवाह यह चूर्ण मिला है।’ दूसरी अफवाह यह थी कि ‘कारतूसों में गाय तथा सूअर की चर्बी लगी रहती है। ‘
(5) भेदपूर्ण नीति – भारतीयों को अंग्रेजों की अपेक्षा कम
( 6 ) अपदस्थ सैनिकों का रोष-जिन सैनिकों को ब्रिटिश वेतन तथा सुविधाएं दी जाती थीं। सेना से तथा भारतीय शासकों की सेना से अपदस्थ कर दिया गया था, उनमें रोष उत्पन्न हो गया तथा उन्होंने क्रान्ति को जन्म दिया। से अपमानित हुए, उन्होंने इस क्रान्ति का प्रचार किया। झांसी की रानी
(7) देशी राजाओं का विरोध – जो देशी राजा ब्रिटिश सरकार लक्ष्मीबाई, नाना साहेब अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए संगठित हो गए।
प्रश्न 10. सन 1857 के विद्रोह के असफल होने के क्या कारण थे? थे-
उत्तर- 1857 के विद्रोह की असफलता के निम्नलिखित कारण
1. विद्रोही आसाधारण वीरता से लड़े, परन्तु वे विजित प्रदेशों को संगठित नहीं कर सके ।
2. विद्रोहियों के पास युद्ध के आधुनिक हथियार और सामग्री का अभाव था।
3. उनकी नीति व्यापारियों पर हमला करने की रही, जिसके फलस्वरूप वे भी उनसे घृणा करने लगे।
4. विद्रोही अंग्रेजों से छीनी गई युद्ध-सामग्री पर निर्भर थे, जो अधिक समय तक चल नहीं सकती थी ।
5. नागरिकों को कुल्हाड़ियों, भालों, तीर-कमान और लाठियों से लड़ना पड़ा था। इसके विपरीत ब्रिटिश सेना के पास आधुनिक हथियार थे।
6. उस समय ब्रिटिश साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।
7. ब्रिटिश सरकार अपने भारतीय उपनिवेश पर अपना अधिकार जमाए रखने के लिए दृढ़ संकल्पित थी । इसलिए उसने विद्रोह को कुचलने के लिए जन, धन और हथियार अधिक मात्रा में लगा दिए। विद्रोहियों की वीरता अंग्रेजों की शक्ति का अधिक समय तक सामना नहीं कर सकी।
प्रश्न 11. विद्रोह के बाद भारत में प्रशासन में किए गए परिवर्तनों, विशेषकर प्रशासनिक ढांचे और सेना का वर्णन कीजिये ।
उत्तर – विद्रोह के पश्चात अंग्रेजों ने भारत में कई क्षेत्रों में परिवर्तन किये गए। उन क्षेत्रों का वर्णन इस प्रकार है-
1. 1858 में संसद द्वारा पारित एक्ट के अनुसार, ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत पर शासन करने का अधिकार ब्रिटिश ताज (राजतंत्र) को दिया गया था। सत्ता कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टरों से निकलकर भारत मंत्री के हाथ में आ गई।
2. भारत मंत्री की सहायता के लिए एक परिषद बनाई गई। ब्रिटिश मंत्रिमंडल में भारत मंत्री था। इस तरह वह संसद के प्रति जिम्मेदार था।
3. 1870 ई. में इंग्लैंड और भारत के बीच लाल सागर के माध्यम से समुद्री तार बनाया गया, जिससे भारत मंत्री भारतीय मामलों पर नज़र रख सकता था और तुरंत आदेश दे सकता था।
4. लेजिस्लेटिव काउंसिल बनाई गई, जिसमें कुछ भारतीय सदस्य भी थे। काउंसिल को कानून बनाने का अधिकार था, लेकिन वास्तव में यह केवल सलाहकार संस्था बन गई थी। भारतीयों को ही काउंसिल में मनोनीत किया जाता था। भारतीय शासकों, सरदारों, बड़े जमींदारों और व्यापारियों को ही देखना पड़ा।
6. इण्डिन कांउसिल एक्ट, 1861 द्वारा केन्द्रीकरण की नीति समाप्त कर दी गई।
7. प्रान्तों को अधिकाधिक अधिकार प्रदान किए गए।
8. मद्रास, बम्बई, बंगाल तथा अन्य प्रान्तों में लेजिस्लेटिव स्थापित की गई।
9. वित्त पर केन्द्र का अधिकार रहा।
10. सन 1870 ई. में लॉर्ड मेयो ने केन्द्र और प्रान्तीय आधार पर वित्त विभाजन के लिए कदम उठाए । प्रान्तीय सरकार को शिक्षा, पुलिस, जेल, स्वास्थ्य सेवा और सड़क जैसी सेवा के लिए एक निश्चित राशि दे दी जाती थी। इस राशि को खर्च करने की योजना प्रान्त स्वयं बनाते थे।
(1) ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना ब्रिटिश ताज की सेना में मिला दी गई।
(2) सेना का पुनर्गठन किया गया। सेना में यूरोपीय भारतीय लोगों के परस्पर अनुपात को बढ़ाया गया। बंगाल की फौज में इसे 1:2 और मद्रास तथा बम्बई की फौज में 2:5 निश्चित किया ।
(3) जिन सैनिकों ने विद्रोह में भाग लिया था, उन्हें ‘गैर-सैनिक’ घोषित कर दिया गया । गोरखा, पठान और सिक्खों को ‘सैनिक’ घोषित किया गया, क्योंकि इन्होंने विद्रोह के दमन में अंग्रेजों की सहायता की थी। फौज के भारतीय भाग का संगठन “सन्तुलन और प्रतिसंतुलन ” या “फूट डालो और शासन करो” नीति के आधार पर किया गया।
(4) एक ही रेजीमेंट में देश के विभिन्न भागों और धर्मों के सैनिक थे। ऐसा करने से उनमें राष्ट्रीयता की भावना पनपने की संभावना कम हो गई।
प्रश्न 12. 1857 ई. के विद्रोह को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी?
उत्तर- 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में सैनिकों ने विद्रोह किया। भारतीय सैनिकों की पैदल सेना ने विद्रोह की शुरुआत की, जो बाद में घुड़सवार सेना और फिर शहर तक फैल गई। शहर और आसपास के क्षेत्रों से सैनिक आए। सिपाहियों ने शस्त्रागार, जहाँ हथियार और गोला-बारूद रखे हुए थे, पर कब्जा कर लिया। तब उन्होंने गोरों को लक्ष्य किया और उनके सामान और बंगलों को जला दिया। सरकारी इमारतों, जैसे रिकॉर्ड, दफ्तर, जेल, अदालत, डाकखाने और सरकारी खजाने, को लूटकर ध्वस्त किया जाने लगा। दिल्ली से शहर को जोड़ने वाली टेलीग्राफ लाइन टूट गई। अंधेरा होते ही घोड़ों पर सवार सिपाहियों का जत्था दिल्ली की ओर चल पड़ा। धार्मिक विश्वासों ने भी इस आंदोलन को जन्म दिया। ईसाई धर्म प्रचारक लोगों को धर्म बदलने के लिए प्रेरित करते थे। जेलों में भी ईसाई शिक्षा दी जाती थी। 1850 ई. में एक कानून बनाया गया था कि ईसाई बनने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उनके पिता की संपत्ति में समान हिस्सा मिलना चाहिए था। अंग्रेजों ने मस्जिदों और मंदिरों की जमीन पर कर लगाया। तब धर्मगुरुओं ने गुस्सा निकालकर लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ जागृत करना शुरू कर दिया।
इस पोस्ट में आपको Nios class 10 social science chapter 7 solutions Nios class 10 social science chapter 7 questions and answers Nios class 10 social science chapter 7 pdf download Nios class 10 social science chapter 7 notes nios social science class 10 chapter 7 british shasan ke viruddh lokpriya jan pratirodh एनआईओएस कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान समाधान अध्याय 7 ब्रिटिश शासन का लोकप्रिय प्रतिरोध से संबंधित काफी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है यह जानकारी फायदेमंद लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और इसके बारे में आप कुछ जानना यह पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट करके अवश्य पूछे.