औपनिवेशिक भारत में धार्मिक एवं सामाजिक जाग्रति के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. जाति-प्रथा पर आक्रमण सुधार आंदोलन का प्रमुख अंग क्यों था? किस प्रकार अर्थव्यवस्था में परिवर्तन, सामाजिक बदलाव तथा राजनीतिक विकास और सुधार आंदोलनों से जाति-प्रथा कमजोर हुई ?
उत्तर – जाति -प्रथा पर सुधार आंदोलन के आक्रमण के कारण निम्नलिखित थे-
(i) जाति-प्रथा पर आक्रमण समाज- सुधार आंदोलन का प्रमुख अंग था | जाति-व्यवस्था ने हिन्दू समाज को पूर्णतः विघटित करके रख दिया था । हिन्दुओं की जनसंख्या का लगभग 20% हिस्सा अछूत समझा जाता था ।
(ii) जाति-प्रथा एक अलोकतांत्रिक तथा अमानवीय प्रथा थी । यह राजनीतिक जागृति और राष्ट्रीय चेतना में एक प्रमुख बाधा थी। 19वीं शताब्दी में जाति विरोधी कई सुधार आंदोलन हुए, जैसे ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, थियोसोफिकल सोसायटी आदि। इन सभी समाज सुधार आंदोलनों ने छुआछूत को अमानवीय व्यवहार बताया। समाज सुधारकों ने स्पष्ट किया कि हिन्दू समाज में जातिगत समानता नहीं होगी तो राष्ट्रीय एकता और आर्थिक प्रगति असम्भव होगी। मानवतावादी तथा विवेकवादी विचारधारा के आधार पर इन सुधारकों ने मनुष्य का शोषण अमानवीय बताया। वेदिक व्याख्याओं के आधार पर छुआछूत और जाति के आधार पर भेदभाव के सभी रूढ़िवादी सिद्धांतों को दूर करने का प्रयास किया गया। जातिवाद की कमजोरी का कारण
(i) अर्थव्यवस्था में परिवर्तन – ब्रिटिश शासन की आधुनिक अर्थव्यवस्था ने जाति-व्यवस्था को कमजोर कर दिया। संचार और परिवहन के साधनों ने नगरीकरण को प्रोत्साहित किया और सामाजिक दूरी को कम किया। पूरी आर्थिक व्यवस्था औद्योगिक समाज ने बदल दी है। उच्च वर्ग के लोगों ने इस बदलती हुई अर्थव्यवस्था में कई ऐसे व्यवसायों को अपनाया जो पहले निषिद्ध थे। व्यापारिक अवसरवादिता ने आर्थिक रूढ़िवाद को तोड़ना शुरू कर दिया।
(ii) सामाजिक बदलाव – पश्चिमी सभ्यता और आधुनिक शिक्षा ने रूढ़िवादी समाज को बदलने लगा। स्त्री शिक्षा से उनकी सामाजिक स्थिति बदलने लगी। जातिगत समीकरणों को प्रशासकीय क्षेत्र में ‘कानून के सम्मुख समानता’ से गंभीर नुकसान हुआ। सभी को प्रशासकीय सेवाओं में बिना जातिगत भेदभाव के लिया गया। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों ने जाति-पातिवाद का विरोध करना शुरू कर दिया।
(iii) राजनीतिक विकास – राजनीतिक विकास ने धर्म-निरपेक्ष सिद्धांतों और जातिवाद को नियंत्रित करना शुरू कर दिया। राजनीतिक चेतना बढ़ने से ये जातियाँ भी सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगीं। जातिगत चेतना की भावना को कई राष्ट्रीय आंदोलनों में सभी जातियों की आम भागीदारी ने कमजोर कर दिया। राजनीतिक चेतना में उतार-चढ़ाव के परिणामस्वरूप जाति-व्यवस्था कमजोर होने लगी। (iv) विभिन्न सामाजिक सुधार आंदोलन ने जाति-व्यवस्था को कमजोर किया। मानवतावादी, विवेकवादी तथा धर्म-निरपेक्ष मूल्यों का पालन इन सुधार आंदोलनों ने किया, जिससे जाति व्यवस्था की जड़ें टूटने लगीं। महात्मा गांधी ने छुआछूत के खिलाफ एक सामाजिक अभियान शुरू किया था। 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय संघ की स्थापना की। उनका दावा था कि हिंदू धर्म छुआछूत का समर्थन नहीं करता है। 19वीं शताब्दी में ज्योतिबा फुले ने महाराष्ट्र में ब्राह्मणों की धार्मिक सत्ता को चुनौती दी। श्री नरायन गुरु केरल में
प्रश्न 2. इस अवधि के दौरान हुए सुधार आन्दोलनों जाति प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन चलाया गया । में महिलाओं से सम्बन्धित मुद्दे कितने आवश्यक थे ?
उत्तर – 19वीं शताब्दी में हुए सुधारवादी आन्दोलनों में महिलाओं की स्थिति शोचनीय और बदतर थी, इसलिए ये मुद्दे भी आवश्यक थे। इसके अलावा, किसी भी समाज की उन्नति के लिए महिलाओं और पुरुषों का एकजुट होना आवश्यक है। महिलाओं के बिना कोई समाज विकसित नहीं हो सकता। इसलिए, महिलाओं की स्थिति को सुधारने और उनके साथ जुड़े मुद्दों को दूर करने के लिए महिलाओं के मुद्दों पर ध्यान देना था। इसलिए आज के अधिकांश सुधारवादी आन्दोलनों ने विभिन्न सामाजिक बुराइयों के अलावा महिलाओं की समस्याओं को भी दूर करने की कोशिश की। 1828 में राममोहन राय द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज ने इस दिशा में बहुत कुछ किया। उस समय सती प्रथा को एक भयंकर और अमानवीय बुराई के रूप में देखा गया था, और इसी संस्था की कोशिशों से 1829 में सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
राजाराम मोहन राय और उनकी संस्था ब्रह्म समाज ने भी महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और अन्याय का विरोध किया। वे महिलाओं की समानता का समर्थन करते थे। इसके अलावा, उन्होंने महिलाओं को शिक्षित होना अनिवार्य बताया। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर भी महिलाओं के मुद्दे पर सुधारक थे। उनका कहना था कि महिलाओं को शिक्षित होना अनिवार्य है। उन्हें महिलाओं की पढ़ाई के लिए कई संस्थान बनाए गए। उन्होंने बाल विवाह और बहुपत्नी प्रथा के खिलाफ भी आवाज उठायी – ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने कहा कि छोटी उम्र की लड़कियों की शिक्षा अनिवार्य है। उनका कहना है कि अशिक्षा ही सभी समस्याओं का मूल है। ईश्वरचन्द्र ने 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बनाया था। इस अधिनियम का उद्देश्य था कि सभी विधवा विवाहों को समाज में वैध करार दिया जाएगा और इसे प्रोत्साहित किया जाएगा। उस समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने ऐसे कई विवाहों को करवाया। उसने अपने पुत्र को भी विधवा से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया। वास्तव में, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने महिलाओं की स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। महिलाओं की स्थिति को सुधारने का मुद्दा प्रमुख सुधारवादी हिंदू आन्दोलनों और मुसलमानों के धार्मिक आन्दोलनों में भी बहुत जोर से उठाया गया। मुस्लिम सुधारवादियों में से एक थे सैयद अहमद खां। उनका कहना था कि मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ महिलाओं को भी पढ़ाना चाहिए। इस प्रकार, 1800 के दशक में धर्म सुधार के कई आन्दोलनों ने महिलाओं के मुद्दों को उठाया। उनकी सामाजिक स्थिति क्या थी? सुधार करने की कोशिश भी की, जो अत्यंत आवश्यक थी।
प्रश्न 3. आर्य समाज द्वारा उठाए गए महत्त्वपूर्ण मुद्दे
उत्तर-19वीं शताब्दी में जितने भी धार्मिक सुधार आन्दोलन हुए, उनमें आर्य समाज का महत्त्वपूर्ण स्थान था। आर्य समाज की स्थापना 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी। इस समाज ने तत्कालीन भारतीय समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। इस समाज द्वारा उठाये गये महत्त्वपूर्ण मुद्दे निम्नलिखित थे-
1. हिन्दू धर्म के आडम्बरों का विरोध – आर्य समाज ने हिन्दू धर्म के धार्मिक कर्मकाण्डों एवं आडम्बरों का विरोध किया। उन्होंने वेदों का समर्थन किया एवं वेदों लोगों से के अनुसार चलने का अनुरोध किया। उन्होंने एकेश्वरवाद के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हुए बहुदेववाद, मूर्तिपूजा की निन्दा की। इसके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दू रूढ़िवादिता का विरोध करते हुए अवतार, पशुबलि, झूठे कर्मकाण्डों एवं अंधविश्वासों का भी घोर विरोध किया। उन्होंने लोगों से धर्म की सहजता एवं सरलता को अपनाकर वेदों की ओर लौटने का निर्देश दिया।
2. जाति प्रथा का विरोध-तत्कालीन भारतीय समाज में जाति प्रथा का आर्य समाज ने तीव्र विरोध किया। उन्होंने छुआछूत और जातीय प्रतिबंधों को समाज से दूर करने की कोशिश की। इस बुराई के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की कोशिश की।
3. बाल विवाह का विरोध – आर्य समाज ने बाल- विवाह का भी घोर विरोध किया। उस समय समाज में कन्याओं का विवाह छोटी उम्र में कर दिया जाता था, जिससे उनका पारिवारिक जीवन कष्टमय हो जाता था ।
4. स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन – आर्य समाज ने स्त्रियों की शिक्षा का समर्थन किया। उनके अनुसार भारतीय समाज को रूढ़िवादिता एवं अंधविश्वासों के गर्त से निकालने के लिए पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी शिक्षित होने की आवश्यकता है।
5. विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन – आर्य समाज ने भी विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन किया। तत्कालीन समाज में विधवाओं का दर्जा बहुत बुरा था। या तो पति के साथ उन्हें चिता पर जलाकर सती कर दिया जाता था। या विधवा रहना पड़ा। समुदाय ने इसके खिलाफ आवाज उठाने का प्रयास किया और विधवाओं को पुनर्विवाह करने की सलाह दी।
6. गो रक्षा एवं अछूतों के उद्धार के लिए प्रयास – आर्य समाज ने गोरक्षा के मुद्दे को भी उठाया। इसके अतिरिक्त उसने अछूतों के उद्धार करने के लिए भी प्रयास किया इसके लिए दयानंद सरस्वती ने हिन्दू समाज के दलित लोगों, हिन्दू समाज से बहिष्कृत लोगों एवं अन्य गैर हिन्दुओं को हिन्दू धर्म में वापस आने के लिए शुद्धि आन्दोलन का सूत्रपात किया, ताकि अधिक-से-अधिक लोगों को धर्म के लिए उपयुक्त बनाकर सामाजिक सौहार्द की स्थापना की जा सके।
7. भारतीय शिक्षा प्रणाली का समर्थन– आर्य समाज ने भारतीय शिक्षा प्रणाली का जोरदार समर्थन किया। उन्होंने शिक्षा में पश्चिमी शिक्षा एवं अंग्रेजी भाषा को कम महत्त्व प्रदान किया। उनके अनुसार भारत में शिक्षा वैदिक शिक्षा पर आधारित होनी चाहिए एवं वह पूर्ण रूप से भारतीय होनी चाहिए न पश्चिमी शिक्षा |
प्रश्न 4. भारतीय नारी की दशा सुधारने के लिये आधुनिक सुधारकों ने क्या कार्य किया?
उत्तर –
- सती प्रथा का अन्त-सती प्रथा स्त्री जाति के उत्थान में बहुत बड़ी बाधा थी। आधुनिक समाजसुधारकों के अथक प्रयत्नों से इस अमानवीय प्रथा का अन्त हो गया।
- विधवा विवाह की आज्ञा-समाज में विधवाओं की दशा बड़ी खराब थी। उन्हें पुनः विवाह करने की आज्ञा नहीं थी। इस कारण कई विधवाएं पथ-भ्रष्ट हो जाती थीं। आधुनिक समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से उन्हें दोबारा विवाह करने की आज्ञा मिल गई।
- पर्दा-प्रथा का विरोध आधुनिक सुधारकों का विश्वास था कि पर्दे में रहकर नारी कभी उन्नति नहीं कर सकती। इसलिए उन्होंने स्त्रियों को पर्दा न करने के लिए प्रेरित किया।
- स्त्री-शिक्षा पर बल-स्त्रियों के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए समाज सुधारकों ने स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल दिया। स्त्रियों की शिक्षा के लिए अनेक स्कूल भी खोले गए।
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