प्रश्न 12. नाजीवाद के मुख्य सिद्धांत क्या थे?
उत्तर – नाजीवाद के मुख्य सिद्धांत थे- थे?
1. तानाशाही शासन होना चाहिए और विरोधियों के साथ कठोरता का व्यवहार होना चाहिए ।
2. प्रजातंत्र व अंतर्राष्ट्रीय शांति दिखावा मात्र है ।
3. राष्ट्र की सुरक्षा के लिए उग्र राष्ट्रवाद एवं युद्ध – नीति का पालन करना जरूरी है ।
4. विश्व के यहूदियों के प्रति घृणा का व्यवहार किया जाना चाहिए |
5. जर्मन संसार की सर्वोत्तम जाति है । समस्त विश्व पर उसका प्रभुत्व होना चाहिए ।
प्रश्न 13. नाजी आन्दोलन की प्रमुख विशेषतायें बताइए ।
उत्तर – नाजी आन्दोलन की विशेषताएँ इस प्रकार थीं-
1. नाजी दल को संसद में बहुसंख्यक स्थान न मिलने पर भी हिटलर ने तानाशाही अधिकार प्राप्त किए ।
2. श्रमिक संघों को कुचल दिया गया तथा हजारों समाजवादियों, कम्युनिस्टों तथा नाजी-विरोधी राजनैतिक नेताओं को यंत्रणा शिविरों में भेज दिया गया ।
3. जर्मनी तथा अन्य देशों की सर्वश्रेष्ठ कृतियों को जला दिया गया।
4. समाजवादियों और कम्युनिस्टों के अतिरिक्त यहूदियों को अपमान और हिंसा के संगठित अभियान का शिकार
बनाकर उनके अस्तित्व को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया ।
5. सैन्यीकरण का विशाल कार्यक्रम शुरू करके युद्ध की तैयारियाँ आरंभ की गईं ।
प्रश्न 14. द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख परिणाम क्या
उत्तर- द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख परिणाम थे-
1. जर्मनी, पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी दो भागों में बांट दिया गया ।
2. जापान की शक्ति कमजोर पड़ गई ।
3. इटली के प्रभाव को धक्का लगा ।
4. युद्ध के बाद रूस और अमेरिका महाशक्तियों के रूप में उभरकर सामने आये ।
5. ब्रिटेन और फ्रांस ने युद्ध तो जीत लिया, परंतु उनकी गणना अब बड़ी शक्तियों के रूप में नहीं रही ।
6. बड़े राष्ट्रों के बीच अधिक शक्तिशाली बमों और हथियारों के निर्माण होड़ लग गई ।
7. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई ।
प्रश्न 15. शीत युद्ध का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – शीत युद्ध से हमारा अभिप्राय ऐसी अवस्था से है जब बड़ा उत्तेजित हो, परंतु वास्तविक रूप में कोई युद्ध न हो । द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य विरोध तथा तनाव उभरने लगा था। उनके संबंध बिगड़ने लगे और उनके बीच शीत-युद्ध आरंभ हो गया । धीरे-धीरे शीत युद्ध अधिक तीव्र हो गया और संसार दो प्रमुख गुटों में बंट गया । एक गुट में अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देश थे और दूसरे में सोवियत संघ तथा पूर्वी यूरोप के समाजवादी देश थे ।
थे?
प्रश्न 16. साम्राज्यवाद के उदय के कौन-कौन से कारण थे ?
उत्तर-साम्राज्यवाद के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(i) औद्योगिक क्रांति – औद्योगिक क्रांति के कारण यूरोप में वस्तुओं का उत्पादन तेजी से हुआ और माल बड़ी मात्रा में बनने लगा। अतः उत्पादों की खपत के लिए यूरोप के बाहर बाजारों की तलाश की जाने लगी ।
(ii) उग्र राष्ट्रवाद-19वीं शताब्दी के यूरोप में उग्र राष्ट्रवाद का उदय हुआ, जिससे अपने राष्ट्र की श्रेष्ठता पर बल दिया जाने लगा । अतः शक्ति तथा प्रतिष्ठता की वृद्धि के लिए उपनिवेशों की आवश्यकता पर बल दिया गया ।
(iii) पूंजीवाद – पूंजीवाद का मुख्य लक्ष्य पूंजीपति को अधिक-से-अधिक लाभ पहुंचाना होता है। अविकसित देशों में पूंजी लगाकर अधिक लाभ कमाया जा सकता था । इसलिए पूंजीपतियों ने अपने-अपने देश की सरकारों को ऐसे देशों पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए दबाव डाला, ताकि उनकी पूंजी सुरक्षित रहे ।
(iv) यातायात और संचार के उत्तम साधान – औद्योगिक क्रांति के कारण 19वीं शताब्दी में यूरोपीय देशों में यातायात और संचार के साधनों में बड़ा सुधार हुआ। इन साधनों से वे दूर के देशों में अपना-अपना तैयार माल भेजने लगे और वहां से कच्चा माल मंगवाने लगे । स्पष्ट है कि इससे साम्राज्यवाद को बल मिला ।
प्रश्न 17. साम्राज्यवाद के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – I. साम्राज्यवाद के सकारात्मक प्रभाव-
1. उपनिवेशों के निवासियों को पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति ज्ञान एवं विज्ञान की जानकारी प्राप्त हुई ।
2. सामान्य साम्राज्यवादी कानूनों के कारण लोगों में एकता आ गई ।
3. उपनिवेशों के लोग एकत्रित होकर राजनीतिक संघर्ष के लिए तैयार हो गए तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के आनंद के सपने देखने लगे ।
4. साम्राज्यवादी शासकों ने अपने लाभ तथा आराम के लिए अपने अधीन उपनिवेशों में कई उद्योग चलाए तथा इनकी प्रगति के लिए रेलें, सड़कें, संचार के साधन, पुल और यातायात का अच्छा प्रबंध किया ।
II. साम्राज्यवाद के नकारात्मक प्रभाव-
1. विकास में बाधा – उपनिवेशों से कच्चा माल तथा सस्ता
मानव-श्रम साम्राज्यवादी अपने देश के कारखानों के लिए ले जाते थे,
जिसके कारण यहाँ का विकास कार्य रुक गया । या बहुत कम लगान पर भूमि प्राप्त थी। दूसरे आयात अधिक और
2. दोषपूर्ण आर्थिक नीति- यूरोपीय जमींदारों को बिना कर निर्यात कम करने से अधिकतर देश और अधिक निर्धन हो गये और विकसित साम्राज्यवादी देश इनका शोषण करते रहे ।
3. जातीय भेदभाव – पश्चिमी देश विजयी होने पर अपने आपको श्रेष्ठ और ऊँची जाति का समझकर एशिया तथा अफ्रीका के लोगों को नीच समझते थे । वे अपने होटलों तथा क्लबों में, अपनी बस्तियों में, ऊँचे पदों पर स्थानीय लोगों को नहीं आने देते थे । राज चलाना चाहते थे। इसके लिए वे स्थानीय लोगों में धर्म के नाम
4. वैर वैमनस्य को बढ़ावा – साम्राज्यवादी फूट डालकर
पर, प्रलोभन देकर, झूठे वायदे करके धोखे से उन्हें राष्ट्रीय भावना से दूर रखते थे । कीजिए।
प्रश्न 18. प्रथम विश्व-युद्ध के प्रमुख कारणों की विवेचना
उत्तर- 1. साम्राज्यवादी प्रतिद्वंद्विता – यूरोप के विभिन्न देशों में साम्राज्य विस्तार की होड़ सी लग गयी थी, जिससे तनाव बढ़ता गया और इस तनाव ने युद्ध का रूप धारण कर लिया । ओटोमन शासन के अधीन थे । बीसवीं शताब्दी में इस पतनोन्मुख
2. बाल्कन प्रदेश के लिए संघर्ष – यूरोप के बाल्कन प्रायद्वीप प्रदेश पर अधिकार के प्रश्न को लेकर रूस तथा आस्ट्रिया-हंगरी के बीच युद्ध की संभावना बढ़ गई ।
3. जर्मनी तथा फ्रांस में संघर्ष – 1879 ई० में आल्सेस – लॉरेन पर अधिकार के प्रश्न को लेकर छिड़े जर्मनी तथा फ्रांस के युद्ध में फ्रांस को पराजित होना पड़ा। फ्रांस का औद्योगिक विकास इस प्रदेश की लोहे की खानों पर आधारित था, किन्तु जर्मनी भी अपना दावा छोड़ने को तैयार न था ।
4. गुटबंदियाँ तथा समझौते – 1882 ई० में जर्मनी, आस्ट्रिया-हंगरी तथा इटली ने अपना त्रिगुट बना लिया था । इसी तरह 1907 ई० में फ्रांस, रूस तथा ब्रिटेन भी त्रिदेशीय संधि में बंध गए । इन दोनों परस्पर विरोधी शिविरों के उदय के फलस्वरूप युद्ध की आशंका बढ़ गई ।
5. अस्त्र-शस्त्रों की होड़-जर्मनी ने उस समय विश्व के सबसे बड़े जहाज का निर्माण कर लिया था । ब्रिटेन भी अस्त्र-शस्त्रों की दौड़ में पीछे नहीं रहा। सभी राष्ट्र एक-दूसरे को संदेह तथा शत्रुता की नजर से देखने लगे ।
6. युद्ध का तत्कालीन कारण था आस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या–अनेक कारणों से युद्ध के लिए विस्फोटक मसाला तैयार हो चुका था और युद्ध की चिंगारी अन्दर ही अन्दर सुलग रही थी । 28 जून, 1914 ई. को आस्ट्रिया का राजकुमार आर्कड्यूक फर्डिनेण्ड अपनी पत्नी सहित साराजिवो की राजधानी में गया । वहाँ सर्बिया के किसी व्यक्ति ने उसकी हत्या कर दी । आस्ट्रिया और सर्बिया में सर्व- स्लाव आंदोलन के कारण पहले से ही तनाव था। आस्ट्रिया की सरकार ने इस हत्या की जिम्मेवारी सर्बिया की सरकार पर डालकर उसे अल्टीमेटम दे दिया । रूस की शह पर सर्बिया ने अल्टीमेटम की शर्तों को मानने से इन्कार कर दिया । अतः आस्ट्रिया ने 28 जुलाई, 1914 ई. को सर्बिया के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजा दिया, जिसने थोड़े ही समय में विश्व-युद्ध का रूप धारण कर लिया ।
प्रश्न 19. फासिस्ट आंदोलन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- फासिस्ट आंदोलन की विशेषता – फासिस्ट आंदोलन या फासिज्म का आरंभ इटली से हुआ था । सर्वप्रथम बेनितो मुसोलिनी के नेतृत्व में चलाए गए आंदोलन को फासिज्म की संज्ञा दी गई । मुसोलिनी ने समाजवादियों तथा कम्युनिस्टों के विरुद्ध हथियारबंद गिरोह संगठित किए तथा तत्पश्चात मुसोलिनी के नेतृत्व में फासिस्ट इटली में सत्तारूढ़ हो गए। इस आंदोलन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-
1. जनतंत्र तथा समाजवाद के प्रति फासिज्म का शत्रुतापूर्ण लक्ष्य था ।
2. फासिज्म तानाशाही स्थापित रखने में विश्वास रखता था ।
3. इटली में फासिज्म की विजय के बाद जनतंत्र तथा समाजवादी आंदोलन के विनाश के साथ युद्ध की तैयारी आरंभ की गई ।
4. फासिस्टों का विश्वास था कि दो या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच मेल-मिलाप नहीं रह सकता । 5. फासिस्ट युद्ध की महिमा का गुणगान करते थे । उनकी दृष्टि में युद्ध मनुष्य को महान् बनाता है । 6. फासिस्ट खुले आम विस्तारवादी नीति की वकालत करते थे । उनका विश्वास था कि जो राष्ट्र अपना विस्तार नहीं करता, वह बहुत दिन तक जिंदा नहीं रह सकता । कीजिए |
प्रश्न 20. द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों की विवेचना
उत्तर-द्वितीय विश्व-युद्ध 1939 ई. में जर्मनी के पोलैंड पर आक्रमण से आरंभ हुआ और 1945 ई. तक चलता रहा । इस युद्ध के प्रारंभ होने के प्रमुख कारण इस प्रकार थे- जर्मनी की पराजय तथा वर्साय की संधि के साथ हुआ । जर्मनी ने
1. वर्साय की अन्यायपूर्ण संधि – प्रथम विश्व-युद्ध का अंत स्वेच्छा से यह संधि स्वीकार नहीं की, बल्कि यह संधि उस पर थोपी गई थी । इसके द्वारा जर्मनी, आस्ट्रिया, हंगरी एवं तुर्की से जो दुर्व्यवहार किया गया, वह सरासर अनुचित और बदले की भावना से ओत-प्रोत था । इसलिए ऐसी अन्यायपूर्ण संधि के विरुद्ध प्रतिरोध हो स्वाभाविक ही था ।
2. फासिस्ट आक्रमण की शुरुआत – इस शताब्दी के चौथे दशक में फासिस्ट शक्तियों ने अपने विजय युद्ध आरंभ किए। जर्मनी, इटली और जापान ने इस शताब्दी के चौथे दशक के दौरान आक्रमणों का एक सिलसिला चालू किया । उनका दावा था कि वे कम्युनिज्म से लड़ रहे हैं । हिटलर ने बार-बार यह घोषणा की कि उसकी महत्त्वाकांक्षा सोवियत संघ के अपार संसाधनों और क्षेत्रों को जीतने की है ।
3. तुष्टीकरण की नीति – पश्चिमी देशों ने फासिस्ट शक्तियों को खुश रखने के लिए तुष्टीकरण की नीति अपनाई, जिससे इन आक्रामक शक्तियों का साहस निरंतर बढ़ता चला गया ।
4. लीग ऑफ नेशन्स की असफलता – लीग ऑफ नेशन्स अपने कार्य में सफल नहीं हो सकी। वह इटली, जापान और जर्मनी के बढ़ते हुए साम्राज्य प्रसार को रोकने में असमर्थ रही । दूसरे संयुक्त राज्य अमेरिका इसमें शामिल नहीं हुआ । जापान, जर्मनी और इटली ने इससे संबंध तोड़ लिया। इस कारण उसको असफलता मिली ।
5. हिटलर की साम्राज्यवादी नीति –हिटलर अपनी शक्ति का विस्तार करना चाहता था। वह जर्मनी – भाषी सब लोगों को जर्मन राज्य में शामिल करना चाहता था । उसने वर्साय की संधि की धज्जियां उड़ा दीं । हिटलर के पोलैंड पर आक्रमण करने से स्थिति गंभीर हो गई ।
6. रूस और जर्मनी में समझौता – रूस और जर्मनी में समझौता हो गया । इससे जर्मनी का साहस बढ़ गया ।
7. चीन पर जापान का हमला- 1931 में चीन पर जापान ने हमला कर दिया। चीन ‘लीग ऑफ नेशन्स’ का सदस्य था । उसने सदस्य देशों से आक्रमण रोकने के लिए जापान के खिलाफ अनुशासन लगाने को कहा ।
8. जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण – 1939 ई. में जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया । इसी के साथ द्वितीय विश्व-युद्ध आरंभ हो गया । मित्र राष्ट्रों – इंग्लैंड, फ्रांस और सोवियत रूस आदि ने युद्ध की घोषणा कर दी ।
प्रश्न 21. संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख संगठन कौन-से हैं ? किन्हीं दो संगठनों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख छः इस प्रकार हैं-
1. महासभा
2. सुरक्षा परिषद
3. आर्थिक तथा सामाजिक परिषद
4. न्यास अथवा संरक्षण परिषद
5. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
6. सचिवालय
(1) महासभा – यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख अंग है । इसमें सब सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं । प्रत्येक सदस्य राष्ट्र 5 प्रतिनिधि भेज सकता है, किन्तु उनका वोट एक ही होता है। इसका अधिवेशन वर्ष में एक बार होता है । इसके निम्नलिखित कार्य हैं-
(i) यह सभा शांति तथा सुरक्षा विषयक कार्यों पर विचार करती है।
(ii) यह संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को नियुक्त करती है ।
(iii) यह संयुक्त राष्ट्र का बजट पास करती है |
(iv) यह नए सदस्यों को बनाने तथा पुराने सदस्यों को हटाने का निर्णय करती है ।
(v) सुरक्षा परिषद् के 10 अस्थायी सदस्यों का चुनाव करती है ।
(2) सुरक्षा परिषद – यह परिषद संयुक्त राष्ट्र की कार्यकारिणी है । इसमें कुल 15 सदस्य होते हैं, जिसमें 5 स्थायी सदस्य हैं और 10 अस्थायी सदस्य । इसके पांच स्थायी सदस्य हैं-
1. अमेरिका
2. सोवियत रूस
3. इंग्लैंड
4. फ्रांस
5. राष्ट्रवादी चीन ।
अस्थायी सदस्यों का चुनाव साधारण सभा द्वारा 2 वर्ष के लिए किया जाता है । सुरक्षा परिषद के मुख्य कार्य-
1. इस परिषद पर विश्व शांति स्थापित करने का उत्तरदायित्व है । कोई भी देश अपनी शिकायत इसके सामने रख सकता है ।
2. यह झगड़ों का निर्णय करती है और यदि उचित समझे, तोकिसी भी देश के विरुद्ध सैनिक शक्ति का प्रयोग कर सकती है ।
प्रश्न 22. द्वितीय विश्व-युद्ध के प्रमुख परिणाम बताइए ।
उत्तर- द्वितीय विश्व-युद्ध के राजनैतिक परिणाम-
1. द्वितीय विश्व-युद्ध के पश्चात् जर्मनी को पूर्वी जर्मनी एवं पश्चिमी जर्मनी में विभाजित कर दिया गया ।
2. यूरोप के पश्चिमी राष्ट्रों के अफ्रीका तथा एशिया के उपनिवेश धीरे-धीरे समाप्त हो गए तथा वहाँ स्वतंत्र राष्ट्रों का उदय हुआ ।
3. सोवियत संघ ने संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़कर शीत युद्ध शुरू किया। सोवियत संघ से बचने के लिए यूरोप में कई सैन्य संगठन बनाए गए। नाटो या उत्तर अटलांटिक संधि संगठन बनाया गया था। नाटो सेना भी गठित की गई थी। सीटो दक्षिणी पूर्व एशिया संधि संगठन है। केंद्रीय संधि संगठन (सेटो) बगदाद समझौते से बन गया। उधर, सोवियत संघ ने भी मैत्री और पारस्परिक सहायता की संधियाँ चीन और जर्मन जनतांत्रिक गणतंत्र के साथ कीं।
4. युद्ध के कारण बिगड़ी हुई आर्थिक स्थिति ने साम्यवाद और समाजवाद के प्रभाव को कई देशों में बढ़ाने में मदद की। पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, अल्बानिया, हंगरी और अन्य देशों में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था ।
द्वितीय विश्व युद्ध के आर्थिक परिणाम-
1. पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देशों में वहाँ की अर्थव्यवस्था को युद्ध से गहरा धक्का लगा, जिसके परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय स्थिति भी प्रभावित हुई । अपने प्रयासों और भारी अमेरिकी सहायता के जरिए उन्होंने धीरे-धीरे अपनी अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्निर्माण कर लिया ।
2. विकसित और समृद्ध देश नये विकासशील राष्ट्रों को आर्थिक व तकनीकी सहायता तथा ऋण देकर उन्हें अपने प्रभाव क्षेत्र में लाने में जुट गये ।
द्वितीय विश्व युद्ध के सामाजिक परिणाम-
1. द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान अनेक स्थानों पर शत्रु सेनाओं संभवतः अवसर का फायदा उठाकर महिलाओं से दुर्व्यवहार किया ।
2. बड़ी संख्या में लोग इस युद्ध में मारे गये ।
3. लाखों लोगों को अपंग होकर भिखारी बनकर रोजी-रोटी कमानी पड़ी । भीख माँगना एक भयंकर सामाजिक बुराई है ।
4. अनेक पुरुषों के मरने के कारण अनेक देशों में महिलाओं को विधवाओं का जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ा ।
5. विश्व को अनेक सामाजिक बुराइयों से छुटकारा दिलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र को अपनी विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से शिक्षा प्रसार, स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रसार, पौष्टिक व संतुलित भोजन के लिए गरीब और पिछड़े देशों की जनता को साधन जुटाने आदि के कार्यों में लगना पड़ा ।
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