NIOS Class 10 Social Science Chapter 3 आधुनिक विश्व – I

NIOS Class 10 Social Science Chapter 3 आधुनिक विश्व – I

NIOS Class 10 Social Science Chapter 3 Solution – Modern World – I – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 3 (आधुनिक विश्व – I) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOSClass 10 Social Science Chapter 3 Modern World – I दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOS Class 10 Social Science Chapter 3 आधुनिक विश्व – I के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Social Science Solution Chapter 3 आधुनिक विश्व – I

प्रश्न 1. शहरों की वृद्धि और व्यापार के उद्भव ने सामंती प्रथा का किस प्रकार पतन किया?
उत्तर – नगरों की वृद्धि और व्यापार तथा शिल्पकलाओं के उद्भव ने सामंती प्रथा को निम्न प्रकार से पतन की ओर अग्रसर किया-
(1 ) नगरों की प्रगति – 11वीं शताब्दी में व्यापार तथा शिल्पकलाओं के बढ़ने से धीरे-धीरे नगरों की प्रगति हुई । नगर आधुनिक विश्व-11 23 सामन्ती नियंत्रण से मुक्त थे, वे गाँव के लोगों के लिए सामन्ती अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह के प्रेरणा स्थल बन गये ।

(2) शक्तिशाली राजतंत्रों का उदय – मध्यकाल के अन्तिम वर्षों में स्पेन, फ्रांस व इंग्लैंड आदि देशों में कुछ शासकों ने व्यापारी वर्ग की मदद से शक्तिशाली राज्यों का निर्माण किया और सामन्तों को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर किया ।

( 3 ) लगातार युद्ध – प्रायः सामन्त अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए आपस में लड़ा करते थे । अरबों के विरुद्ध धर्म युद्धों में भी सामन्तों ने भाग लिया । इन युद्धों के कारण सामंतों को बहुत बड़ी सैनिक और आर्थिक हानि उठानी पड़ी ।

(4) राष्ट्रीयता की भावना का उदय – व्यापारिक वर्ग व्यापार की प्रगति के लिए बड़े राज्यों और शक्तिशाली शासकों के समर्थक बन गये । राष्ट्रीय भाषाओं और उनके साहित्य ने राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा दिया तथा सामंतवादी व्यवस्था का विरोध किया ।

(5) छापेखाने की खोज के कारण यूरोप के लोग अधिक संख्या में शिक्षा ग्रहण करने लगे। शिक्षा प्राप्ति के साथ-साथ लोगों में अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए जागृति आई और सामन्तवादी व्यवस्था पतन तीव्र गति से हुआ ।

प्रश्न 2. आप क्यों सोचते हैं कि पुनर्जागरण सोच ने अस्तित्व और विचारों के पुराने तरीकों को प्रभावित किया?
उत्तर – सामन्ती संस्कृति का पतन और नवीन विचारों का जन्म पुनर्जागरण या रेनेसां से हुआ। लोगों ने पुराने रूढ़िवादी सिद्धांतों को अपनाना छोड़ दिया, जो लोगों की सांस्कृतिक और मानसिक जीवन पर व्यापक प्रभाव डाला। नई चेतना ने तर्कवाद, मानववाद और प्रश्न करने की प्रवृत्ति को जन्म दिया। मानववाद के आधार पर लोगों ने मानव को महत्व दिया और मानव को भोग के अधिकार और सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने का अधिकार दिया। इसके मध्यकालीन चर्च ने संन्यास, धार्मिक तपस्या और परलोक की धारणा का विरोध किया। मानवतावाद की विचारधारा ने लोगों को भाषा, साहित्य, इतिहास, नीतिशास्त्र, विज्ञान और दर्शनकला की ओर आकर्षित किया । ये बातें मूल विचारों से पूरी तरह अलग थीं।

प्रश्न 3. धर्म सुधार ने किस प्रकार यूरोप और दुनिया को प्रभावित किया ?
उत्तर – पुनर्जागरण के काल में लोगों ने कैथोलिक धर्म की बुराइयों की जमकर आलोचना की और ज्ञान, तर्क तथा जनजागरण की पुरजोर वकालत की । जर्मनी में मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च की शाक्ति को चुनौती दी । मार्टिन लूथर के विचार ने धर्म सुधार आन्दोलन का रूप धारण कर लिया । इस धर्म सुधार ने ईसाई धर्म को प्रोटेस्टेंट और रूढ़िवादी रोमन कैथोलिक चर्च में विभाजित कर दिया ।

प्रश्न 4. नई भूमि की खोजों ने कैसे आधुनिक दुनिया की अर्थव्यवस्था और समाज को बदला है?
उत्तर – व्यापार और खोज की यात्राओं में काफी संबंध था। यूरोपीय औद्योगिक क्रान्ति ने उन्हें कच्चे माल खरीदने और बने हुए माल बेचने के लिए उपनिवेशों की जरूरत महसूस की। इसलिए उन्होंने खोज अभियान चलाया। इस तरह, खोज यात्राएं यूरोपीय व्यापारिक संबंधों के लिए अच्छी थीं लेकिन उनके उपनिवेशों के लिए बुरी थीं। उस समय सोने की संपदा ने किसी भी देश को धनी बनाया। इसलिए यूरोपीय देशों ने इस दौड़ में भाग लिया और नए उपनिवेश खोजने लगे। भौगोलिक खोजों ने व्यापारिक केंद्रों को भी बदल दिया | इससे पूंजीवादी वर्ग बढ़ गया। भूगोलीय खोजों के बिना औद्योगिक क्रान्ति असफल होगी।
आधुनिक युग के प्रारंभ में व्यापार की वृद्धि और नगरों के उदय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पश्चिमी समाज में नवयुग की शुरुआत के साथ व्यापार में भारी वृद्धि हुई थी । व्यापार में वृद्धि ने व्यापारिक मध्यम वर्ग को बहुत तेजी से बढ़ावा दिया। व्यापारिक वर्ग सामंतवादी व्यवस्था के उन्मूलन में और चर्च के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यही लोगों ने राजा को चर्च की शक्ति को कम करने और सामंतवादी व्यवस्था को खत्म करने में मदद की। इससे देश-राज्यों का जन्म हुआ। शहरों के उदय के साथ सामंती व्यवस्था का अंत हुआ, नगरों में रहने वाले लोगों पर सामंती लॉर्डों का नियंत्रण समाप्त हो गया और लोगों को स्वतंत्र विचार करने का अवसर मिला। हम कह सकते हैं कि आधुनिक काल में सामंती लॉर्डों द्वारा लोगों का शोषण समाप्त हो गया था, क्योंकि व्यापार में वृद्धि हुई और नगरों का उदय हुआ। इस प्रकार लोगों को स्वतंत्र जीवन जीना था ।

प्रश्न 5. अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा में दिए गए मुख्य विचारों को लिखें।
उत्तर – अमरीकी क्रान्ति 18वीं शताब्दी की एक सफल क्रान्ति थी । इसलिए इसका इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । अमरीकी क्रान्ति के महत्त्व का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

(i) अमरीका में 1776 ई. की क्रान्ति के फलस्वरूप ब्रिटिश उपनिवेशवाद अमरीका में समाप्त हो गया । अमरीका ब्रिटिश शासन स्वतन्त्र हो गया ।

(ii) अमरीकी क्रान्ति ने संयुक्त राज्य अमरीका को जन्म दिया और एक स्वतंत्र गणतंत्र देश की नींव डाली। संयुक्त राज्य अमरीका बाद में विश्व का एक महत्त्वपूर्ण देश बन गया ।

(iii) प्रथम लिखित संविधान का आरंभ भी संयुक्त राज्य अमरीका ने किया । बाद में अनेक देशों ने संयुक्त राज्य अमरीका की तरह लिखित संविधान को अपनाया ।

(iv) संविधान ने अमरीकी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता तथा जीवन से संबंधित अधिकार प्रदान किये ।

(v) अमरीकी क्रांति से प्रेरणा पाकर अन्य अनेक देशों ने भी अपने-अपने देशों में आंदोलन किए ।

प्रश्न 6. फ्रांसीसी क्रांति के किन विचारों ने विश्व पर प्रभाव डाला?
उत्तर – फ्रांसीसी क्रान्ति की पृष्ठभूमि में निम्नलिखित दो मुख्य विचार कार्य कर रहे थे-
(i) सभी मनुष्य समान हैं और उन्हें सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए मानवीय अधिकार प्राप्त होते हैं, इसलिए उनके सहयोग के बिना कोई भी राजनीतिक पद्धति सफल नहीं हो सकती ।
(ii) शासन प्रबन्ध का स्रोत सम्राट न होकर जनता होती है, इसलिए सम्राट की तानाशाही नहीं चलनी चाहिए ।

प्रश्न 7. जर्मन और इतालवी नेताओं द्वारा इस्तेमाल की गई एकीकरण की रणनीतियों पर चर्चा कीजिए ।
उत्तर – जर्मनी के राष्ट्रीय एकीकरण की रणनीति-

I. जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया का प्रारम्भ फ्रेंकफर्ट की सभा से हुआ, जिसमें जर्मनी के एकीकरण का प्रस्ताव रखा गया था। इस प्रस्ताव के अनुसार जर्मनी में प्रशा के राजा के अधीन संवैधानिक राजतंत्र की व्यवस्था थी। लेकिन प्रशा के राजा ने जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा ताज ग्रहण करना स्वीकार नहीं किया। इसके साथ ही दमनचक्र शुरू हो गया और जर्मनी की क्रान्ति असफल रही ।

II. दूसरा चरण या बिस्मार्क के प्रयत्न – बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण का दूसरा चरण शुरू किया। उसने प्रशा राजघराने को जर्मनी का एकीकरण करने का विचार प्रस्तुत किया। उसने जर्मनी को एक करने के लिए “blood and steel policy” लागू की। इसका मतलब युद्ध है। उसने छह वर्षों में तीन युद्ध जीतकर डेनमार्क, ऑस्ट्रिया और फ्रांस को जर्मनी से बाहर निकाल दिया। अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया को जर्मनी संघ से निकाल दिया, फिर ऑस्ट्रिया का पक्ष लेकर डेनमार्क पर आक्रमण किया। डेनमार्क हारी। इसके बाद उसने इटली का पक्ष लेकर ऑस्ट्रिया पर हमला करके जर्मनी संघ को ही समाप्त कर दिया। उसने प्राग की जगह ऑस्ट्रिया से संधि की, जो ऑस्ट्रिया को जर्मनी से अलग करती थी और उससे दोस्ती करती थी। उसने जर्मनी के २२ राज्यों को मिलाकर उत्तर जर्मन संघ बनाया। एक रात में उसने इस संघ का संविधान बनाया और प्रशा के राजा को इसका प्रमुख बनाया। उसने स्पेन के उत्तराधिकार के मुद्दे पर फ्रांस के साथ युद्ध किया और संयुक्त जर्मनी में जर्मनी के बचे हुए राज्यों को शामिल किया। संयुक्त जर्मन सेनाओं ने फ्रांस को पराजित कर दिया, और शेष जर्मन राज्य संयुक्त जर्मनी में शामिल हो गए। जर्मनी एकीकरण के बाद जल्दी ही एक शक्तिशाली राज्य बन गया जब प्रशा का राजा विलियम जर्मनी का प्रथम शासक बन गया।

इटली की राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया – इटली की स्वाधीनता और एकीकरण का कार्य मेजिनी और गैरीबाल्डी के नेतृत्व
में हुआ। उन्होंने जिस आंदोलन को चलाया, उसे इतिहास में ‘यंग इटली आंदोलन’ कहते हैं। इस आन्दोलन के तीन उद्देश्य थे- स्वतंत्रता, एकीकरण व गणतंत्र की स्थापना । तदुपरांत सार्डिनिया राज्य के प्रधानमंत्री केंवर ने जर्मन के बिस्मार्क की नीति के अनुरूप इटली के एकीकरण कार्य को तीव्र किया ।

(1) आगे चलकर उसने रूस के विरुद्ध क्रीमिया का युद्ध छेड़ दिया, ताकि उसे रूस के शत्रु ब्रिटेन और फ्रांस का समर्थन मिल सके ।

(2) फ्रांस के शासक लुई बोनापार्ट से सन्धि करके उसनेऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध शुरू किया और वह लोम्बार्डो से ऑस्ट्रिया को हटाने में सफल हो गया ।

(3) उसने गुप्त रूप से टस्कनी, मॉडेना, पर्मा और उत्तर के पोप राज्यों में जन विद्रोह को भड़काया और बड़ी कूटनीति से इन राज्यों को सार्डिनिया में मिला लिया ।

(4) इसके बाद सिसली और नेपल्स के लोगों ने अपने शासकों के विरुद्ध विद्रोह किये, तो गैरीबाल्डी ने क्रान्तिकारियों की मदद की और इन दोनों राज्यों को भी वह सार्डिनिया में मिलाने में सफल रहा ।

(5) जब प्रशा के बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ा, तो सार्डिनिया राज्य ने बिस्मार्क का साथ दिया । इस युद्ध में विजय पाने के बाद बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया से वेनेशिया लेकर सार्डिनिया को दे दिया ।

(6) सार्डिनिया के राजा विक्टर एमेन्यूल ने इटली के एकीकरण के कार्य को पूरा किया | उसने जब फ्रांस और प्रशा में लड़ाई छिड़ी हुई थी, रोम के नगर पर कब्जा कर लिया और रोम को इटली की राजधानी बना दिया । स्वाधीनता और एकीकरण के बाद जर्मनी की भाँति इटली भी राजतंत्र बन गया ।

प्रश्न 8. औद्योगिक श्रमिकों की उस स्थिति का वर्णन करें जिसने क्रांति को प्रभावित किया।
उत्तर- मजदूर वर्ग के रहने और काम करने की परिस्थितियाँ- मजदूर निर्धन वर्ग से जुड़े थे। उनकी स्वतंत्रता अब समाप्त हो गई थी। जब वे जीवित रहे, कंपनियों और पूँजीपतियों ने उनका अधिकार प्राप्त किया। उन्हें चुपचाप मालिक द्वारा दी गई मजदूरी स्वीकार करनी पड़ती थी। बड़ी-बड़ी खानों में महिलाओं और बच्चों को 15 से 18 घण्टे प्रतिदिन काम करना पड़ता था। उन्हें काम करते समय आराम करने के लिए छुट्टी नहीं मिली। उनमें से कोई भी गलती से काम करते समय सो जाता था, तो उसे कोड़ों से पीटा जाता था। काम की हालत बहुत बुरी थी। उनके घर बहुत बुरा था। उन्हें घनी बसी हुई बस्तियों में रहना पड़ा। मालिक कर्मचारी को जब चाहे निकाल सकता था। इससे समाज में दो वर्ग बन गए: धनी और गरीब; शोषक और शोषित; और दोनों में संघर्ष शुरू हो गया। श्रम संघों और पूँजीवाद के खिलाफ आन्दोलन हुए।

आधुनिक विश्व – I के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. रूस की क्रान्ति के महत्त्व की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रूसी क्रान्ति का महत्त्व –
(i) रूस में जार के शासन का अन्त हो गया और साम्यवादी शासन की स्थापना हुई ।
(ii) रूस में श्रमिकों एवं किसानों ने सरकार की स्थापना की।
(iii) रूस के साथ विभिन्न देशों में मजदूरों का आदर-सम्मान बढ़ गया ।
(iv) रूस में शिक्षा का कार्य सरकार ने अपने हाथों में ले लिया ।

प्रश्न 2. मानवतावाद क्या है?
उत्तर-मानवतावाद वह विचारधारा है, जो मानव को महत्त्व देती है और मानव के सुखी जीवन के अधिकारों एवं आवश्यकताओं का समर्थन करती है ।

प्रश्न 3. समुद्री यात्राओं द्वारा नए देशों की खोज और उपनिवेश ने किस प्रकार विश्व को शताब्दियों तक प्रभावित किया?
उत्तर – 1. समुद्री यात्राओं के कारण लोगों को नये-नये देशों और संसार का ज्ञान प्राप्त हुआ ।
2. नये व्यापारिक और समुद्री मार्गों का ज्ञान लोगों को प्राप्त हुआ ।
3. इन खोजों के कारण व्यापार तथा ज्ञान के आदान-प्रदान में बहुत वृद्धि हुई ।
4. यूरोपीय ज्ञान एवं संस्कृति का प्रसार कई देशों में हुआ ।
5. इन खोजों के बाद ही उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद की भावना का प्रसार हुआ ।
6. पुराने मानचित्रों को जो गलत और अपूर्ण थे, फिर से बनाया गया ।

प्रश्न 4. सामन्तवाद के विघटन के कारण बताइए ।
उत्तर- (1) नगरों का विकास – व्यापार की उन्नति के कारण नगरों का विकास हुआ | ये नगर सामन्ती प्रणाली के मुख्य केन्द्र थे । ये गाँव के लोगों के लिए सामन्ती अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह करने के प्रेरणा स्थल बन गये ।
(2) आपसी युद्ध – सामन्त आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। इससे उनकी शक्ति क्षीण हो गयी । धर्मयुद्धों के कारण वे बहुत कमजोर हो गये ।
(3) शक्तिशाली राजाओं का आगमन – स्पेन, फ्रांस तथा इंग्लैंड के शक्तिशाली राजाओं ने अपने पांव जमा लिये इसलिए सामन्त इनके आगे नहीं टिक सके ।

प्रश्न 5. भौगोलिक खोजों में क्या परिणाम निकले ?
उत्तर- भौगोलिक खोजों के निम्नलिखित परिणाम निकले –
(i) औद्योगिक क्रान्ति की सफलता भौगालिक खोजों के कारण ही हुई थी। औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात यूरोपीय देशों ने कच्चा माल खरीदने के लिए तथा तैयार माल बेचने के लिए भौगोलिक खोजें आरंभ की।
(ii) भौगोलिक खोजों ने यूरोपीय देशों को अत्यधिक उन्नत बना दिया ।
(iii) भौगोलिक खोजों के पश्चात व्यापारिक केन्द्र भी बदल गए। नए केन्द्र समुद्री तटों पर बनने लग गए ।
(iv) उत्तराशा अंतरीप के फलस्वरूप भूमि मार्ग का स्थान समुद्री मार्ग ने ले लिया ।
(v) भौगोलिक खोजों ने दास प्रथा आरंभ कर दी । बड़ी संख्या अफ्रीका निवासियों को दास बनाकर अमरीका भेजा गया ।
(vi) यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप पूँजीपति वर्ग का उत्थान हुआ । पूँजीपति वर्गों ने एक-दूसरे से संघर्ष किए और यूरोपीय देशों ने अमरीका, अफ्रीका और एशिया को अपना उपनिवेश बना लिया।
(vii) नौ सेना शक्ति को प्रोत्साहन मिला ।
(viii) भौगोलिक खोजों के फलस्वरूप एक देश की सभ्यता, संस्कृति, धर्म का प्रसार तथा प्रचार दूसरे देशों में होने शुरू हुआ । लगा । दूसरे शब्दों में, संस्कृति, धर्म आदि का विकास

प्रश्न 6. गैलिलियो के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – गैलिलियो इटली का एक महान वैज्ञानिक था । उसका जन्म इटली के पीसा नगर में हुआ था। वह एक उच्च कोटि का गणितज्ञ भी था । उसका जन्म कोपरनिकस के चालीस वर्ष पश्चात हुआ था । वह कोपरनिकस के सिद्धान्त को सही मानता था इसलिए उसने एक दूरबीन तैयार की थी और उससे सूर्य, तारों और ग्रहों को देखा था । इससे समुद्री यात्राएँ सरल हो गईं। वह पहले व्यक्तियों में से था, जिन्होंने बताया था कि पृथ्वी एक ग्रह है और सूर्य के चारों ओर घूमती है | उसने डायनॉमिक्स के अध्ययन की नींव डाली तथा थर्मामीटर का आविष्कार किया ।

प्रश्न 7. फ्रांसिस बेकन तथा कॉपरनिकस के विषय में जानकारी दीजिए।
उत्तर–फ्रांसिस बेकन इंग्लैंड का निवासी था। वह पुनर्जागरण काल का एक महान साहित्यकार था । उसने अनेक विषयों पर विद्वत्तापूर्ण निबंध लिखे थे। उसने अपने जीवनकाल के अधिकतर वर्ष कारावास में गुजारे, क्योंकि उसके विचार विवेकपूर्ण थे । वह कहता था कि वास्तविक ज्ञान वह होता है जो तर्क की कसौटी पर ठीक उतरता हो । कॉपरनिकस पोलैंड का एक महान वैज्ञानिक था जिसने कई वर्ष इटली में गुजारे थे । वह प्रथम यूरोपीय था जो कहता था कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है । धार्मिक विद्वान उसके विरोधी थे परंतु गैलिलियों ने बाद में कॉपरनिकस के सिद्धान्तों की पुष्टि की थी ।

प्रश्न 8. प्रतिधर्म सुधार आन्दोलन का क्या अर्थ है ?
उत्तर- “प्रति धर्म सुधार” रोम में आरंभ हुआ था । यह आंदोलन उस समय हुआ जब यूरोप के देशों में प्रोटेस्टेंट धर्म तेजी से फैलने लग गया था । “प्रति धर्म सुधार” आन्दोलन उस आन्दोलन को कहते हैं जिसके अंतर्गत रोम में कैथोलिक चर्च की आपत्तिजनक प्रथाओं को बदलने का प्रयास किया गया था । यह आन्दोलन स्वयं कैथोलिक धार्मिक नेताओं द्वारा हुआ था। इस आन्दोलन के फलस्वरूप कैथोलिक धर्म में सुधार हुआ । केवल शिक्षित और योग्य व्यक्ति ही पादरी बनाए जाने लगे । उन्होंने पैसे बटोरने के तरीके छोड़ दिए तथा वे सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करने लगे । मुक्ति-पत्र बेचने बंद कर दिए गए । इस आन्दोलन द्वारा चर्च की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त हुई तथा प्रोटेस्टेंट धर्म के बढ़ते प्रभाव को रोका गया ।

प्रश्न 9. औद्योगिक क्रान्ति को साम्राज्यवाद की जननी क्यों कहा जाता है?
उत्तर- औद्योगिक क्रान्ति ने साम्राज्यवाद को जन्म दिया था । जब यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति आयी थी, तब 18वीं शताब्दी के आस-पास यूरोप में उत्पादन कार्य मशीनों से होने लग गया था । फलस्वरूप अतिरिक्त माल को बेचने के लिए अन्य महाद्वीपों में माल बेचा जाने लगा तथा वहाँ मण्डियाँ बनायी जाने लगीं। इस प्रकार उपनिवेशों की स्थापना हुई। यह साम्राज्यवाद का आरंभ था ।

प्रश्न 10. औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक परिणाम बताइए |
उत्तर- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप मशीनों द्वारा उत्पादन तीव्र गति से होने लगा । इसके सामाजिक परिणाम निम्नलिखित थे-
(i) औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप नए औद्योगिक नगरों तथा केन्द्रों की स्थापना हुई ।
(ii) नगरों की स्थापना के कारण शहरी जनसंख्या में वृद्धि होने लगी ।
(iii) शहरी जनसंख्या की वृद्धि के कारण आवास और सफाई जैसी समस्याएँ उत्पन्न होने लगीं ।
(iv) कारखानों की स्थापना के कारण मजदूर एक जगह एकत्रित हुए, जिससे मजदूर संगठन स्थापित होने लगे ।

प्रश्न 11. पूँजीवाद की प्रमुख विशेषतायें बताइए |
उत्तर – पूँजीवाद उस व्यवस्था को कहा जाता है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं को खरीदना तथा बेचना असीमित लाभ के लिए किया जाता है, तथा असीमित लाभ निजी होता है न कि सार्वजनिक । पूँजीवाद में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(i) पूँजीवाद में उत्पादन का उद्देश्य असीमित लाभ की प्राप्ति होती है ।
(ii) उत्पादन यहाँ पर बड़े-बड़े कारखानों में मशीनों द्वारा अधिक मात्रा में होता है ।
(iii) असीमित लाभ के लिए उन वस्तुओं का उत्पादन अधिकमात्रा में अधिक होता है, जो अधिक से अधिक लाभ दे सकें ।
(iv) पूँजीवाद में कारखानों, मशीनों आदि पर निजी स्वामित्व होता है ।
(v) पूँजीवादी समाज की प्रमुख विशेषता पारस्परिक प्रतियोगिता होती है ।
(vii) पूँजीवाद में खुली प्रतियोगिता के कारण आर्थिक संकट, श्रमिकों का शोषण आदि बुराइयाँ पाई जाती हैं ।
(vii) पूँजीवाद समाज स्वतंत्रता – प्रेमी अधिक होता है, समानता-प्रेमी कम ।
(viii) पूँजीवाद में श्रमिक क्रान्ति की संभावना होती है ।
(ix) पूँजीवाद व्यक्ति को व्यक्ति से अलग करता है, क्योंकि वहाँ पर हमेशा पारस्परिक प्रतियोगिता का वातावरण होता है ।
(x) पूँजीवाद समाज में विकास कार्य तीव्र गति से होता है ।

प्रश्न 12. मानवाधिकारों के घोषणा-पत्र के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – नागरिकों के अधिकारों के घोषणा पत्र रूपी दस्तावेज को फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान स्वीकार किया गया था। इस दस्तावेज द्वारा कुछ मानवीय अधिकारों की मांग की थी; जैसे कानून के अनुसार सभी व्यक्ति समान हैं; बिना कारण दंड देने अथवा बंदी बनाए जाने से मुक्ति का अधिकार; सार्वजनिक पदों पर सभी नागरिकों की नियुक्ति का अधिकार; भाषण व प्रकाशन की सुविधा का अधिकार; निजी सम्पत्ति का अधिकार आदि । नागरिकों के अधिकारों की घोषणा पत्र के अन्तर्गत जिन मानवीय अधिकारों की घोषणा की गई थी, वह उस समय के क्रान्तिकारी प्रकार के अधिकार थे ।

प्रश्न 13. बिस्मार्क की उपलब्धियां बताइए ।
उत्तर- बिस्मार्क प्रशा का लौह-पुरुष था । जब उसे जर्मनी का प्रधानमंत्री बनाया गया था, तभी से उसने युद्ध की नीति का अनुसरण किया। उसने क्रमशः डेनमार्क को, आस्ट्रिया को तथा फ्रांस को हराकर अनेक प्रदेशों को जर्मनी में मिलाया तथा शेष बचे जर्मन राज्य भी जर्मन संघ में सम्मिलित हो गए। उसकी इस नीति को “रक्त तथा लौह” की नीति कहा जाता है । इस प्रकार बावेरिया, हैनोवर, लक्समबर्ग, कैसेल, आल्सेन, लॉरेन, शैल्सविंग आदि सभी राज्य प्रशा से आ मिले और अन्त में जर्मनी का एकीकरण हो गया, जिसमें बिस्मार्क की विशेष भूमिका थी ।

प्रश्न 14. फ्रांस की क्रांति में “तीसरे वर्ग” का क्या अर्थ था?
उत्तर- फ्रांस की क्रान्ति में “तीसरे वर्ग” से अभिप्राय सम्पन्नताहीन वर्ग से था । फ्रांस की लगभग 95% जनसंख्या इसी वर्ग में आती थी। इस वर्ग में किसान, काश्तकार, बटाईदार तथा मध्य वर्ग आते थे। किसान तीसरे वर्ग का 80% भाग था । अधिकांश किसान भूमिहीन थे। किसानों, काश्तकारों तथा बटाईदारों की स्थिति बहुत अधिक शोचनीय थी । मध्य वर्ग में शिल्पी, मजदूर, डॉक्टर, अध्यापक, जज आदि आते थे । इस वर्ग को कोई अधिकार प्राप्त नहीं थे और उन्हें अपमानजनक स्थिति जीनी पड़ती थी ।

प्रश्न 15. कम्युनिस्ट घोषणा-पत्र के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर–कम्युनिस्ट घोषणा-पत्र मार्क्स तथा एंग्लेस द्वारा जारी घोषणापत्र था । इसके अन्तर्गत मार्क्स तथा एंग्लेस ने यह बताने का प्रयास किया था कि इतिहास वास्तव में, वर्गों के संघर्ष का दूसरा नाम है । साथ ही, इस घोषणापत्र में सर्वहारा को क्रान्ति करने के लिए उत्तेजित किया गया था ।

प्रश्न 16. समाजवाद की प्रमुख विशेषतायें बताइए ।
उत्तर- समाजवाद उस अर्थव्यवस्था को कहते हैं, जिसके अन्तर्गत उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व न होकर सार्वजनिक स्वामित्व होता है । उत्पादन असीमित लाभ के लिए न होकर जन सेवा के लिए किया जाता है । समाजवाद में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं-
(i) समाजवाद में वस्तुओं का उत्पादन सेवाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है ।
(ii) समाजवाद में उन वस्तुओं का उत्पादन अधिक होता है, जो लोगों के जीवन के लिए आवश्यक होती हैं।
(iii) समाजवाद में उत्पादन बड़े-बड़े कारखानों में मशीनों द्वारा होता है ।
(iv) समाजवाद में उत्पादन के साधनों पर समाज का नियंत्रण होता है ।
(vi) समाजवाद में उत्पादन योजनाबद्ध तरीके से होता है ।
(vi) समाजवाद पर पारस्परिक प्रतियोगिता का नियम न अपनाकर पारस्परिक सहयोग का नियम अपनाया जाता है
(vii) समाजवाद में श्रमिकों के शोषण जैसी बुराइयाँ नहीं पाई जातीं ।
(viii) समाजवाद पारस्परिक सहयोग पर आधारित होता है । इसलिए यह व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ता है ।

(ix) समाजवाद में विकास कार्य तीव्र गति से होता है ।

प्रश्न 17. मानवतावाद के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – पुनर्जागरण काल की महत्त्वपूर्ण देन मानवतावादथी । इसका अर्थ था- मनुष्य, उसकी समस्याओं तथा विकास में रुचि लेना । विस्तार में यह कहा जा सकता है कि मानवतावाद मनुष्य के वर्तमान जीवन में रुचि, उसके ज्ञान-प्राप्ति पर बल, उनकी समस्याओं के समाधान, व्यक्तित्व के आदर आदि का दूसरा नाम था । मानववाद के अन्तर्गत मानव तथा उसके क्रियाकलापों पर बल दिया जाता था । मनुष्य की इच्छाओं के दायरे में उसकी समस्याओं को समझना तथा विकास हेतु कार्य करना ही मानवतावाद कहलाता है ।

प्रश्न 18. राष्ट्र-राज्य के विकास की परिस्थितियाँ क्या हैं?
उत्तर – राष्ट्र राज्य के विकास की परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं-
(i) राष्ट्र-राज्य के विकास में सामन्तवाद के पतन ने प्रमुख भूमिका निभाई ।
(ii) व्यापार और वाणिज्य की उन्नति के कारण मध्यम वर्ग ने राष्ट्र-राज्यों के उदय तथा विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
(iii) पुनर्जागरण तथा धर्म-सुधार आन्दोलनों ने भी राष्ट्र-राज्यों के उदय तथा विकास में पूरा साथ दिया ।
(iv) न्यायालयों की स्थापना तथा बारूद के आविष्कार ने भी राष्ट्र-राज्यों के विकास में विशेष भूमिका निभाई ।

प्रश्न 19. अमेरिकी क्रान्ति में फ्रांस ने किस प्रकार सहायता की ?
उत्तर- अमेरिकी क्रान्ति में फ्रांस ने क्रांतिकारी शक्तियों की मदद निम्नलिखित कारणों से की थी-
(i) अमेरिकी क्रांति में फ्रांस की मदद का मुख्य कारण इंग्लैंड से बदला लेना था । अमरीकी क्रांति इंग्लैंड के विरुद्ध थी। फ्रांस और इंग्लैंड में काफी लंबे समय से शत्रुता चली आ रही थी । अमेरिकी क्रान्ति में इंग्लैंड की हार में फ्रांस को अपनी जीत महसूस हुई ।
(ii) सात-वर्षीय युद्ध (1756-1763 ई.) में इंग्लैंड ने फ्रांस को हराया था । अपनी हार का बदला लेने के लिए भी फ्रांस ने अमेरिकी क्रान्ति में क्रान्तिकारी शक्तियों की मदद की।
(iii) फ्रांस इंग्लैंड को कमजोर बनाना चाहता था, ताकि भविष् में होने वाले युद्धों में वह इंग्लैंड को हरा सके । अमेरिकी क्रान्ति में इंग्लैंड यदि हार गया, तो भी वह कमजोर हो सकता था ।
इन सभी कारणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि फ्रांस को हालाँकि अमेरिकी क्रान्ति में कोई भी दिलचस्पी नहीं थीं, फिर भी उसने अमेरिका की मदद की ताकि इंग्लैंड फ्रांस के समक्ष कमजोर पड़
जाए ।

प्रश्न 20. धर्म-सुधारकों ने कैथोलिक चर्च की किन बुराइयों का विरोध किया?
उत्तर – पंद्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी में धर्म-सुधारकों ने रोमन कैथोलिक चर्च तथा पादरियों की निम्नलिखित रीतियों और प्रथाओं के विरुद्ध आपत्ति व्यक्त की थी-
(i) धर्म-सुधारकों ने पोप तथा पादरियों के अनैतिक तथा विलासी जीवन और गलत तरीकों से धन एकत्रित करने के विरुद्ध आपत्ति की थी।
(ii) वे पादरियों की नियुक्ति करते समय धन बटोरने के फलस्वरूप अयोग्य लोगों की नियुक्ति के विरुद्ध थे ।
(iii) उन्होनें चर्च के पदों को बेचने का विरोध किया था ।
(iv) वे मुक्ति-पत्र को बेचने की प्रथा का विरोध करते थे ।
(iv) वे अनुचित करों के भी विरुद्ध थे ।
(vi) वे लैटिन भाषा द्वारा चर्च विद्यालयों में दी जाने वाली संकीर्ण शिक्षा का विरोध करते थे ।
(vii) रोमन चर्च द्वारा प्रचलित अंधविश्वासी मान्यताओं का भी उन्होंने विरोध किया था ।

प्रश्न 21. पुनर्जागरण एवं धर्म सुधार आंदोलन में अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – पुनर्जागरण आन्दोलन ने समस्त यूरोप में सांस्कृतिक क्रान्ति ला दी । कला, साहित्य, विज्ञान आदि में इसके कारण अत्यधिक परिवर्तन हुए । पुनर्जागरण ने विवेक अथवा तर्क के काल को जन्म दिया । यह आन्दोलन मानवतावाद तथा मानव आस्था में विश्वास रखता था । पुनर्जागरण आन्दोलन ने विज्ञान की प्रगति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । इस आन्दोलन ने धर्म अथवा चर्च की गलत मान्यताओं को चुनौती दी । पुनर्जागरण के फलस्वरूप यूरोप में राष्ट्र-राज्यों का उदय हुआ तथा स्वतंत्रता की भावना के उदय में भी इसने सहायक भूमिका निभाई ।
धर्म सुधार आंदोलन का आरंभ मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च की कुरीतियों के विरुद्ध किया इस आन्दोलन ने ईसाई जनता को दो भागों में विभाजित कर दिया- कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट । इसके द्वारा धर्म सुधार आन्दोलन और धर्म संघर्ष का दौर आरंभ हो गया । पो और चर्च का प्रभाव कम हो गया तथा स्वतंत्रता और स्वतंत्र विचार की नई लहर चल पड़ी। राष्ट्र-राज्यों के उदय में इसने भी सहायक भूमिका निभाई ।

प्रश्न 22. पुनर्जागरण काल की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- पुनर्जागरण काल की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

(1) राष्ट्रीय राज्यों का काल – सामन्तवाद का पतन तीव्रता से होने लगा और राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ। ऐसे राज्य पूर्णतया स्वतंत्र थे ।

(2) नगरों की प्रगति का काल – नये-नये नगरों का उत्थान हुआ। वहाँ व्यापार – वाणिज्य की प्रगति हुई ।

(3) मानववाद का काल – इस काल के लोगों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल गया । अब वे भावी जीवन, उच्च वर्ग तथा धर्म के स्थान पर वर्तमान जीवन, विज्ञान तथा सर्वसाधारण की समस्याओं को अधिक महत्त्व देने लगे ।

(4) धर्म सुधार का काल – पुनर्जागरण काल धर्म सुधार आन्दोलन का युग था । रोमन कैथोलिक चर्च की बुराइयों का विरोध हुआ और लोगों ने धर्म में सुधार करने पर बल दिया ।

(5) स्वतंत्र विचारों का काल – पुनर्जागरण काल में लोगों ने साहित्य एवं कलाकृतियों द्वारा अपने स्वतंत्र विचारों को व्यक्त करके नये युग को शुरू किया । उन्होंने उन प्राचीन विचारों की खुलकर निन्दा की, जो तर्कों एवं प्रयोगों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते थे ।

( 6 ) भौगोलिक खोजों का काल – इस काल में स्पेन, पुर्तगाल आदि देशों के नाविकों ने नये-नये भौगोलिक मार्गों तथा देशों की खोज की।

(7) प्राचीन रोमन एवं यूनानी कला तथा में साहित्य में इस काल में रुचि ली गई और उनका विस्तृत पैमाने पर अध्ययन किया गया। हुई?

प्रश्न 23. इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति सबसे पहले क्यों
उत्तर- इंग्लैंड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति के कारण-

(1) पूँजी की उपलब्धता – इंग्लैंड के व्यापारियों ने दास व्यापार एवं अन्य विदेशी व्यापार के माध्यम से भारी लाभ कमा कर बड़ी मात्रा में पूँजी इकट्ठी कर ली थी ।

(2) उद्यम या साहस – इंग्लैंड के व्यापारी एवं पूंजीपति बड़ी से बड़ी जोखिम उठाने के लिए तैयार थे ।

(3) लोहा एवं कोयला – इंग्लैंड में लोहा एवं कोयला परस्पर प्राप्त थे । इन दोनों खनिज पदार्थों के उनके पास बहुत बड़े भंडार थे ।

(4) कच्चे माल की आपूर्ति- इंग्लैंड ने औद्योगिक क्रांति से पहले ही कई देशों में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए थे, जहाँ से कच्चा माल उसे आसानी से मिल सकता था ।

(5) विस्तृत बाजार – इंग्लैंड अपने बनाये हुए तैयार माल एवं वस्तुओं को उपनिवेशों में आसानी से बेच सकता था ।

(6) शक्ति के साधन – इंग्लैंड ने सर्वप्रथम भाप की शक्ति का पता लगाया और उसके पास भाप की शक्ति उत्पन्न करने के लिए कोयला पर्याप्त मात्रा में था ।

(7) सस्ते मजदूर – इंग्लैंड में काफी संख्या में कम मजदूरी पर काम करने के लिए सस्ते मजदूर उपलब्ध थे, क्योंकि वहाँ कृषि क्रांति तथा चकबंदी या बाड़ा आंदोलन के कारण भूमिहीन किसानों के रूप में काफी लोग बेकार हो चुके थे ।

(8) विकसित जहाजी बेड़ा – इंग्लैंड का जहाजी उद्योग उस समय विश्व में सबसे बड़ा और शक्तिशाली था । इससे उसे कच्चा माल लाने एवं फैक्टरी में बने माल को बाजारों तक पहुँचाने में कोई कठिनाई नहीं हुई ।

(9) अनुकूल राजनीतिक अवस्था – इंग्लैंड की संसद पर व्यापारी एवं पूंजीपति वर्ग का प्रभाव भी बहुत बढ़ चुका था। इस वर्ग को सरकार के औद्योगिक क्षेत्र में हस्तक्षेप का कोई डर नहीं था ।

प्रश्न 24. औद्योगिक क्रांति के प्रभावों की विवेचना कीजिए ।
उत्तर –. औद्योगिक क्रांति के लाभकारी प्रभाव

(1) मशीनों का प्रयोग – उद्योगों में मशीनों का अधिक से अधिक प्रयोग संभव हो सका, जिससे मानव को कई नीरस एवं उबा देने वाले तथा भारी कामों से छुटकारा मिल गया ।
(2) अधिक उत्पादन – मशीनों के उपयोग के कारण शीघ्र एवं कम समय में उत्पादन अधिक मात्रा में होना संभव हो सका ।

( 3 ) कारखाना पद्धति का उदय – औद्योगिक क्रांति के कारण कारखाना पद्धति को जन्म मिला, जिससे उत्पादन बड़े पैमाने पर संभव हुआ।
(4) नगर विकास – कारखाना पद्धति ने नगरों का भी विकास किया ।
(5) यातायात में प्रगति – औद्योगिक क्रांति के कारण यातायात में सुधार हुआ, जिससे मानव ने समय एवं दूरी पर विजय प्राप्त की ।
(6) कृषि में क्रांति- औद्योगिक क्रांति के कारण बढ़ी हुई कुछ वस्तुओं के कच्चे माल की माँग को पूरी करने के लिए कृषि में भी क्रांतिकारी सुधार किए गए ।
(7) व्यापार का विकास – औद्योगिक क्रांति के कारण व्यापार एवं वाणिज्य में तीव्रता से विकास हुआ ।
( 8 ) सांस्कृतिक प्रगति – औद्योगिक क्रांति के कारण मनुष्य को पर्याप्त फालतू या खाली समय मिल सका, जिसका प्रयोग वह कला-साहित्य आदि की प्रगति के लिए कर सका ।

II. औद्योगिक क्रांति के हानिकारक प्रभाव
(1) औद्योगिक शहरों में समस्याएँ – क्रांति के कारण शहरों मे लोगों की बहुत भीड़ हो गई, जिसके कारण आवास, यातायात, स्वास्थ्य और सफाई की समस्याएँ बहुत जटिल हो गईं । चिमनियों के धुएँ के कारण वातावरण दूषित हो गया

(2) औद्योगिक क्रांति के कारण ही ग्रामीण जीवन नीरस हो गया, क्योंकि लोग गांव छोड़कर शहरों में आकर बस गये ।
(3) समाज दो वर्गों में बंट गया- एक वर्ग दिन-प्रतिदिन धनी होता चला गया तथा दूसरा वर्ग दिन-प्रतिदिन निर्धन होता चला गया, जिससे वर्ग संघर्ष ने जन्म लिया ।

(4) मजदूरों पर औद्योगिक क्रांति के सबसे बुरे प्रभाव पड़े । मजदूरों को लंबे घंटों गन्दे वातावरण में उद्योगपतियों का दास बनकर काम करना पड़ता था ।

(5) औद्योगिक क्रांति के कारण उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को बढ़ावा मिला, जिससे विश्व में तनाव व अशांति बढ़ती चली गई और मानव को प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्धों के विनाश को भुगतना पड़ा

(6) बेकारी – औद्योगिक क्रांति के कारण उद्योगों में मशीनों का प्रयोग निरन्तर बढ़ता चला गया, जिससे मानव संसाधन निरंतर बेकार होता चला गया ।

प्रश्न 25. अमरीका की क्रांति (1776 ई.) के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए ।
उत्तर- अमरीकी क्रांति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(i) ब्रिटेन की औपनिवेशिक नीति ने अमरीका क्रांति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था । अंग्रेजों की वाणिज्यवादी नीति के अंतर्गत अमेरिका के उपनिवेशों को गैर-ब्रिटिश जहाजों को प्रयोग करने की मनाही थी । यह उपनिवेश केवल इंग्लैंड से ही कुछ वस्तुओं जैसे तंबाकू, कपास तथा चीनी का निर्यात करते थे । ये उपनिवेश लोहा और सूती कपड़े जैसे उद्योग आरंभ नहीं कर सकते थे । इसलिए इन उपनिवेशों तथा अंग्रेजी सरकार के मध्य झगड़े आरंभ हो गए । के स्टांप एक्ट ने इन झगड़ों को क्रांति का रूप दे दिया ।

(ii) स्टांप एक्ट ने भी अमेरिका में क्रांति को आरंभ करने में पर्याप्त योगदान दिया । इस कानून के अंतर्गत उपनिवेशवासियों को सभी व्यापारिक सौदों पर कर देना पड़ता था । स्टांप एक्ट ने उपनिवेशवासियों को एक कर दिया तथा उन्होंने इस कानून का विरोध

(iii) ब्रिटिश सरकार के अहंकार के व्यवहार ने भी अमरीकी क्रांति को हवा दी । यद्यपि सरकार ने स्टांप एक्ट वापस ले लिया था । परंतु फिर भी उपभोक्ता वस्तुओं जैसे – कागज, शीशे, चाय आदि पर कर लगा दिया था । सरकार ने चाय पर ‘कर’ लगाकर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि वह उपनिवेशों पर कर लगा सकती है । बोस्टन की चाय पार्टी अमेरिकी क्रांति का एक रूप थी।

(iv) अमेरिकी क्रांति के प्रमुख कारणों में अंग्रेजी सरकार की उपनिवेशवासियों पर दमन की नीति एक प्रमुख कारण मानी जाती है। अनेक कुलीन अंग्रेजों ने अमेरिका में भूमि खरीद ली थी और वे किसानों से लगान वसूल करते थे । अंग्रेज उपनिवेशवासियों को अपने काश्तकारों के रूप में ही रखना चाहते थे ।

(v) उपनिवेशों में दोषपूर्ण शासन प्रणाली पाई जाती थी । उपनिवेशों में अंग्रेजी सरकार गवर्नरों की नियुक्ति करती थी, जो उसी के प्रति उत्तरदायी होते थे। उपनिवेशों की विधानसभाओं का निर्माण उपनिवेशवासियों द्वारा ही होता था । इन विधानसभाओं तथा गवर्नरों में परस्पर संघर्ष चलता रहता था इसलिए प्रशासन व्यवस्था विकृत होती जा रही थी ।

(vi) अमेरिकी क्रांति को इंग्लैंड के क्रांतिकारी दार्शनिकों के विचारों से भी प्रेरणा मिली थी । लॉर्ड हैसिंगटन, मिल्टन आदि दार्शनिकों का यह मत था कि मनुष्य को कुछ मौलिक अधिकार प्राप्त हों जिनकी अवहेलना सरकार भी न कर सके। फ्रांसीसी दार्शनिकों से अमेरिका के जैफर्सन काफी प्रभावित हुए थे।

प्रश्न 26. समाजवादी आंदोलन का उदय किस प्रकार हुआ ?
उत्तर- पूंजीवादी समाज की कमियों को दूर करने का लक्ष्य समाजवादी आन्दोलन का जन्म था। समाजवादी आंदोलन का लक्ष्य समाज को नियंत्रित करना था। समाजवादी आंदोलन ने कार्ल मार्क्स को जन्म दिया है। इस आंदोलन का मानना है कि भौतिक संबंध मानवीय संबंधों का आधार हैं और भौतिक संबंधों द्वारा ही अन्य संबंध बनाए जाते हैं। निजी संपत्ति के आधार पर समाज दो वर्गों में विभाजित होता है: अमीर और गरीब। इसलिए उत्पादन के साधनों पर सार्वजनिक अधिकार होना चाहिए निजी संपत्ति शब्द समाजवादी आंदोलन में मायने नहीं रखता। वर्गों में हमेशा संघर्ष होंगे, इसलिए समाज में विरोधी वर्गों को खत्म करना चाहिए। वर्गीय समाज ने राज्य को जन्म दिया। राज्य संपन्न वर्ग का शोषण करता है। समाजवादी समाज में पारस्परिक विरोधी वर्ग नहीं होंगे; केवल श्रमिकों की तानाशाही होगी, जो पूँजीवाद को समाप्त करके समाजवादी की स्थापना करेगी। श्रम राज्य समाप्त हो जाएगा जैसे ही समाजवाद चरम पर पहुंच जाएगा। मानवीय स्वतंत्रता को पूंजीवाद रोकता है। मनुष्य की असली स्वतंत्रता समाजवादी और साम्यवादी व्यवस्थाओं में ही शुरू होती है । भौतिक कारणों से समाज बदलता है। सामाजिक क्रांति भौतिक कारणों से होती है। सामाजिक क्रांति समाज को विकास की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है।

प्रश्न 27. समाजवादी आंदोलन में कार्ल मार्क्स की भूमिका का विवेचन कीजिए ।
उत्तर – जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स थे । Marx को समाजवाद का जनक भी कहा जाता है, इसलिए उसकी भूमिका समाजवादी आंदोलन के इतिहास में महत्वपूर्ण है। उसका मानना था कि भौतिक संबंध ही मानवीय संबंधों को बनाए रखते हैं। भौतिक संबंधों के कारण समाज दो वर्गों में बंट जाता है: संपन्न और विपन्न। कार्ल मार्क्स ने कहा कि वर्ग-मुक्त समाज पूंजीवाद के बाद बनेगा। वर्गहीन और राज्यहीन साम्यवादी समाज समाजवादी समाज के बाद आएगा। Марк्स का मानना था कि समाजवादी समाज में विरोधी वर्ग खत्म हो जाएगा। इससे शोषण समाप्त होगा। कार्ल मार्क्स ने कहा कि वर्गीय समाज ने राज्य को बनाया है। राज्य संपन्न वर्गों की सुरक्षा करता है। साम्यवादी समाज में वर्ग और राज्य दोनों समाप्त हो जाएंगे, लेकिन समाजवादी समाज में श्रमिक वर्ग की तानाशाही होगी। वर्तमान समाज ने कार्ल मार्क्स को गलत साबित कर दिया क्योंकि पूर्ववर्ती सोवियत संघ समाजवाद पर था और आज रूस में कुछ निजी स्वामित्व है। यह भी गलत है कि मानवीय संबंध केवल भौतिक संबंधों पर आधारित हैं।

प्रश्न 28. समाजवादी आंदोलन के विकास में प्रथम इंटरनेशनल का क्या योगदान है ?
उत्तर- समाजवादी आंदोलन के विकास में प्रथम इंटरनेशनल का प्रमुख हाथ रहा है। इसमें यह घोषणा की गई कि मजदूर वर्ग का कल्याण और किसी के पास नहीं, बल्कि स्वयं उन्हीं के हाथों में हैं । मजदूर वर्ग के संघर्ष को समूचे विश्व में फैलाने के लिए जोर दिया गया और कहा गया कि “सब देशों के मजदूर एक हो जाओ। ” प्रथम इंटरनेशनल ने यूरोप और अमरीका के मजदूर आंदोलनों को बहुत प्रभावित किया । जब किसी देश के मजदूर अपने हितों की रक्षा के लिए कोई संघर्ष करते, तो यह संस्था उनकी सहायता के लिए सबसे आगे आती ।

उदाहरण के लिए-
1. जब पेरिस में कांसे का काम करने वाले 5 हजार मजदूरों को नौकरी से निकालने के लिए धमकी दी गई तो इस संस्था ने उन मजदूरों की आर्थिक सहायता की ।

2. इसी प्रकार जब फ्रांस और एशिया के बीच युद्ध आरंभ हुआ, तो दोनों देशों के मजदूरों ने युद्ध की निंदा की ।

3. इसी संस्था की प्रेरणा से ‘पेरिस कम्यून’ बना, परंतु ‘पेरिस कम्यून’ को जब नष्ट किया गया, तो इस संस्था में फूट पड़ गई और अन्त में इस संस्था को समानान्तर दिया गया । इस प्रकार प्रथम इंटरनेशनल ने मजदूर वर्ग के अंतर्राष्ट्रीय रूप को निखारने में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । फ्रांस की क्रांति की शताब्दी मनाने के लिए पेरिस में भिन्न-भिन्न देशों के समाजवादी दलों की ओर से एक समारोह का आयोजन किया गया । इस समारोह में द्वितीय इंटरनेशनल की स्थापना की गई,

जिसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-
1. संसार के सभी मजदूरों में एकता स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों के समाजवादी दलों को एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन में बांधा जाए ।

2. एक मई को हर वर्ष ‘मजदूरों की एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाए ।

3. मजदूरों के लिए काम के आठ घंटे की सीमा निर्धारित की जाए ।

4. सैन्यवाद और युद्धों का विरोध किया जाए और युद्ध छिड़ भी जाए, तो समाजवादियों का यह सबसे बड़ा कर्त्तव्य है कि वह उसे जल्द से जल्द समाप्त करायें ।

5. पूंजीवाद, साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध किया
जाए, क्योंकि ये विश्व-शांति के लिए सबसे बड़े खतरे हैं । 6. समानता और स्वतंत्रता के अधिकार पर अधिक बल दिया जाए ।

प्रश्न 29. क्या आप सहमत हैं कि 18वीं व 19वीं शताब्दियों की क्रांतियों ने मानव समाज को आगे बढ़ाया है ?
उत्तर – 18वीं तथा 19वीं शताब्दियों की क्रांतियाँ यूरोप और उत्तरी अमरीका में हुई थीं । परंतु उन्होंने न केवल इन्हीं देशों को प्रभावित किया, बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया था । यदि यह कहा जाए कि अगर ये क्रांतियाँ न होतीं तो मानव समाज आगे नहीं बढ़ सकता था, तो गलत नहीं होगा । मानव समाज की प्रगति में इन क्रांतियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभायी हैं । मानव समाज को आगे बढ़ाने के लिए इन क्रांतियों ने उन बाधाओं को भी दूर किया, जो उनकी राह में रोड़े अटका रही थीं । ये बाधाएँ थीं-

(i) शासकों की तानाशाही
(ii) अनावश्यक अंकुश
(iii) धार्मिक प्रतिबंध
(iv) दमनकारी शासन
(v) विदेशी हस्तक्षेप आदि ।

इन बाधाओं को दूर करके कुछ आदर्श स्थापित किए गये थे । जैसे – स्वतंत्रता, समानता, राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद आदि । इन बाधाओं को दूर करने तथा आदर्शों को स्थापित करने में कुछ राजनीतिक नेताओं महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभायी थीं । वाशिंगटन तथा जैफर्सन जैसे राजनीतिक नेताओं ने अंग्रेजी साम्राज्य का सामना किया और दूसरी ओर वाल्टेयर तथा रूसो जैसे फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने असमानता और अंधविश्वासों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी । इस प्रकार मनुष्य ने राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में उन्नति की है । राष्ट्र एक-दूसरे के करीब आए हैं । पारस्परिक सहयोग के कारण मानवीय सहयोग में भी प्रगति हुई है ।

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