NIOS Class 10 Social Science Chapter 27 शांति और सुरक्षा

NIOS Class 10 Social Science Chapter 27 शांति और सुरक्षा

NIOS Class 10 Social Science Chapter 27 शांति और सुरक्षा – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 27 ( शांति और सुरक्षा) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Social Science Chapter 27 Peace and Security दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Social Science Chapter 27 शांति और सुरक्षा के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Social Science Chapter 27 Solution – शांति और सुरक्षा

प्रश्न 1. शांति और सुरक्षा का क्या अर्थ है? इसकी पारम्परिक धारणा नई धारणा से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर- सुरक्षा और शांति हर व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह स्थिति है जब लोग, संस्थाएं, क्षेत्र, देश और विश्व बिना किसी खतरे के आगे बढ़ते हैं। शांति एक सामाजिक तथा राजनीतिक स्थिति है, जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का विकास निर्धारित करती है। पुरानी शांति और सुरक्षा की धारणा बहुत अलग है और सैन्य धमकी के अलावा खतरों का व्यापक क्षेत्र और मानव अस्तित्व के खतरों को भी शामिल करती है। इसमें न केवल देश और भूभाग शामिल हैं, बल्कि व्यक्ति, समुदाय और मानवता की सुरक्षा भी शामिल है। नवीन विचारधारा के अनुसार, सामाजिक-आर्थिक विकास और मानव प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए शांति और सुरक्षा आवश्यक हैं। नवीन विचार में व्यक्ति को आवश्यकताओं, भूख, बीमारी, महामारी, शोषण और अमानवीय व्यवहार से छुटकारा मिलता है।

प्रश्न 2. क्या आप सहमत हैं कि शांति व सुरक्षा तथा लोकतंत्र और विकास में पारस्परिक संबंध है? अपने उत्तर को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- लोकतंत्र और विकास, शांति और सुरक्षा से जुड़े हैं। लोकतंत्र सुरक्षा और शांति के बिना नहीं चल सकता और विकसित नहीं हो सकता। लोकतांत्रिक संस्थाएं शांति के अभाव में काम नहीं कर सकतीं। शांतिपूर्ण वातावरण में ही नागरिकों को विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति मिलती है। विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए शांतिपूर्ण वातावरण आवश्यक है। दूसरी ओर, लोकतंत्र में विकास की कमी होने पर शांति कायम नहीं हो सकती। लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को शासन में भाग लेने का समान अवसर मिलता है। विकास शांति भी लाता है। विकास ही देश की जनता की सामाजिक और आर्थिक प्रगति और जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है। देश में शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता कायम करने में विकास के प्रयासों का योगदान होता है।

प्रश्न 3. राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का शांति और सुरक्षा के खतरे से निपटने के लिए रणनीति और विधि के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर – स्वतंत्रता आंदोलन के समय, विश्व की शांति और सुरक्षा पर विचार आया। शांति कायम रखना विकास का सबसे अच्छा तरीका है। इसलिए स्वाधीनता आंदोलन के नेतृत्व ने सोचा कि स्वतंत्र भारत अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा। उन लोगों ने लोकतंत्र को बढ़ावा दिया और उपनिवेशवाद और जातिभेद विरोधी सभी प्रयासों का खुलकर समर्थन किया। भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने ठीक समझ लिया कि आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था को सफल बनाने के लिए विश्वव्यापी शांति और सुरक्षा की जरूरत है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए समाजवादी उपागम अपनाने पर आम सहमति थी कि शांति के लिए आंतरिक खतरे के विरुद्ध सुरक्षा को बढ़ावा देना चाहिए था।

प्रश्न 4. भारत में शांति और सुरक्षा के कौन-से गंभीर खतरे हैं? इनसे निपटने के लिए भारत कौन-सी महत्त्वपूर्ण रणनीति और तरीके अपनाता रहा है?
उत्तर – आक्रामक विरोध और प्रदर्शन या हिंसक गतिविधियां शांति और सुरक्षा को खतरा पैदा करती हैं। लेकिन पुलिस प्रशासन ऐसी कई घटनाओं को स्थानीय स्तर पर हल करता है। आतंकवाद हमारे देश की शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इससे भय पैदा होता है और राजनीतिक और मानसिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आम लोगों पर घातक हमला किया जाता है। भारत सरकार आतंकवाद से लड़ने के लिए सभी देशों के प्रयासों का समर्थन करती रही है और किसी आतंकवादी हमले की स्थिति में उनका समर्थन लेती रही है।

राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विद्रोही गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार कूटनीतिक प्रयास करती है। विश्व शांति का लक्ष्य भारत की विदेश नीति है। भारत विश्वव्यापी मुद्दों पर दूसरे देशों की मदद करता है। देश की विदेश नीति के लक्ष्य निम्नलिखित हैं: उपनिवेशवाद से स्वतन्त्रता; रंगभेद विरोधी नीति; भुखमरी और बीमारी को दूर करना; और संयुक्त राष्ट्र संघ सहित क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी। दूसरे, भारत का शांति नीति का दृष्टिकोण युद्ध विरोधी नहीं है; हालांकि, हम यह मानते हैं कि युद्ध के कारणों को दूर करके विश्व में स्थायी शांति नहीं मिल सकती। यही कारण है कि भारत की शांति की भावना व्यापक है।

प्रश्न 5. शांति और सुरक्षा के संदर्भ में भारत की विदेश नीति का परीक्षण कीजिए ।
उत्तर– भारत भी विश्व शांति और सुरक्षा से चिंतित है। भारत की विदेश नीति, अन्य देशों की तरह, राष्ट्रीय हित पर आधारित है। भारत ने अपनी विदेश नीति में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को प्राथमिकता दी है, खासकर अपने पड़ोसों और क्षेत्रों में। भारत की विदेश नीति के लक्ष्य निम्नलिखित हैं: उपनिवेशवाद से स्वतंत्रता; रंगभेद विरोधी नीति; बीमारी और भुखमरी को खत्म करना; और संयुक्त राष्ट्र संघ सहित क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी। हमारे हित में पड़ोसी क्षेत्र को किसी बड़ी बहस से बचाया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध विश्व शांति और देश की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। हम भी अपने पूर्व-उपनिवेशी शासक ग्रेट ब्रिटेन से मित्रतापूर्ण संबंध रखते हैं। इसलिए भारतीय नीति विश्व-शांति को देश की सुरक्षा के लिए अनिवार्य मानती है।

प्रश्न 6. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की बदलती प्रकृति के संदर्भ में गुटनिरपेक्षता की नीति कैसे प्रासंगिक है?
उत्तर – भारत की विदेश नीति में सबसे महत्वपूर्ण गुण गुटनिरपेक्षता है। भारत ने गुटनिरपेक्षता की अवधारणा का विकास करने का नेतृत्व किया जब विश्व दो भागों में विभाजित हुआ। गुटनिरपेक्षता का उद्देश्य विदेश नीति में स्वतंत्र रहना था, जो अमेरिका तथा सोवियत संघ की दो सैन्य संधियों में नहीं था। गुटनिरपेक्षता एक तटस्थ या अलगाववादी नहीं है। यह एक सक्रिय, निरंतर अवधारणा थी जिसका अर्थ था किसी सैन्य गुट से प्रतिबद्ध होने के बिना प्रत्येक मामले के गुण-दोष के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय पहलुओं पर अपनी स्वतंत्र राय रखना।

गुटनिरपेक्षता की नीति ने विकासशील देशों को अपनी प्रभुसत्ता को सुरक्षित रखने का अवसर दिया, इसलिए इसके कई समर्थक थे। साथ ही इसने तनावपूर्ण परिस्थितियों में स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति दी। इसके विकास में भारत, गुटनिरपेक्षता के प्रमुख सदस्य, ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के रूप और महत्व को नजरअंदाज करते हुए, सभी सदस्य देशों को विश्व राजनीति और निर्णय निर्धारण में भाग लेने का अवसर मिलता है।

प्रश्न 7. भारत संयुक्त राष्ट्र को किस प्रकार समर्थन देता रहा है? भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य क्यों बनाया जाना चाहिए?
उत्तर – भारत ने सदैव संयुक्त राष्ट्र को विश्व राजनीति में शांति और सुरक्षा तथा शांतिपूर्ण बदलाव के वाहक के रूप में देखा है। भारत संयुक्त राष्ट्र की शांति बहाली कार्रवाई को तथा निरस्त्रीकरण जैसे अन्य प्रयासों में अपना पूर्ण समर्थन देता रहा है। भारत यह संभावना व्यक्त करता है कि संयुक्त राष्ट्र वार्ता द्वारा देशों के मध्य मतभेद को कम करने के लिए प्रयास करता रहेगा। साथ ही भारत विकासशील देशों के विकास प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र की सक्रिय भूमिका की वकालत करता है।

भारत का मानना है कि गुटनिरपेक्ष देश अपनी संख्या के आधार पर महाशक्तियों को अपने हित में इस विश्व संस्था का प्रयोग करने से रोककर संयुक्त राष्ट्र में एक सकारात्मक तथा अर्थपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारतीय दूसरी सबसे तीव्रता से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है, इसका सभी अंतर्राष्ट्रीय विवादों में शांति बहाली तथा विकासशील देशों के हितों को प्रोत्साहित करने का रिकॉर्ड रहा है, इसलिए भारत का सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने का सशक्त दावा है।

शांति और सुरक्षा के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. शांति बहाली क्या होती है? ऐसे अभियान क्यों भेजे जाते हैं?
उत्तर – सैन्य शासन की तुलना में विश्वव्यापी शांति कायम रखना संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा योगदान है। यह महत्वपूर्ण कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के समय भी नहीं विचारी गई थी। 1948 में, पहले अरब-इजरायल युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने शांति कायम रखने के लिए सैन्य निरीक्षकों का एक छोटा-सा दल भेजा। तबसे अब तक, चार महादेशों अफ्रीका, एशिया, यूरोप और दक्षिण अमेरिका में शांति की पुनःस्थापना या सुनिश्चित करने के लिए 60 शांति बहाली अभियान हुए हैं। इन दो अभियानों ने भारत और पाकिस्तान को एकजुट किया।

प्रश्न 2. संयुक्त राष्ट्र द्वारा निरस्त्रीकरण के लिए किए गए प्रयासों के कुछ पहलुओं का चर्चा करें।
उत्तर– ऐसी मान्यता थी कि जनसंहार के हथियारों का उत्पादन और भंडारण विरोधी पक्ष के लिए शांति का प्रबंध करेगा। लेकिन शांति और सुरक्षा की बात तो दूर, इन हथियारों ने पूरी दुनिया को खतरनाक बना दिया। नाभिकीय और अन्य घातक हथियारों ने मानवता को ही खतरा बना दिया। विश्वव्यापी नाभिकीय युद्ध से न सिर्फ युद्धरत देशों की आबादी मर जाएगी, बल्कि सभी लोग मर जाएंगे. जो बच जाएंगे, वे भी मर जाएंगे। इसलिए पृथ्वी पर जीवन को बचाना निशस्त्रीकरण के लिए सबसे पहले होना चाहिए। यह भी महत्वपूर्ण है कि हथियार उत्पादन में खर्च होने वाले बड़े पैमाने पर धन को दुनिया के गरीब और असहाय लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में लगाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र ने अपने स्थापना से ही निरस्त्रीकरण में दिलचस्पी दिखाई है, जिससे कई निरस्त्रीकरण संधियाँ हुई हैं।

इनमें से कुछ संधियाँ बेशक विवादास्पद हैं, जैसे 1968 की अप्रसार संधि। इस संधि में यह प्रावधान है कि देशों को जो परमाणु हथियार नहीं रखते हैं, वे उन्हें नहीं खरीदेंगे, जबकि जिन देशों के पास पहले से परमाणु हथियार हैं, वे अपने भंडारों को और भी बढ़ा सकते हैं। भारत ने इस भेदभाव का विरोध करने के लिए इस पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया। संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने निरस्त्रीकरण की जरूरत पर दुनिया का ध्यान खींचने के लिए तीन अलग-अलग सत्र बुलाए. इन सत्रों में पारंपरिक और नाभिकीय हथियारों में कटौती करने के दबाव पर एक साझा विचार बनाने की कोशिश की गई, लेकिन शीत युद्ध के तनाव के कारण कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद, जनसंहारक हथियारों की कटौती और नियंत्रण पर व्यापक प्रयास की उम्मीद होगी। सितंबर 1996 में सीटीबीटी के प्रभाव में आने की संभावना बहुत कम है क्योंकि भारत सहित कई अन्य देशों ने इस संधि पर दस्तखत नहीं किए, जिसमें शर्त थी कि पहले उन पाँच देशों को नाभिकीय हथियारों से मुक्त किया जाएगा।

इसका एक सकारात्मक पहलू यह है कि संयुक्त राष्ट्र की निरस्त्रीकरण की कोशिशों ने 1997 में बारूदी सुरंगों पर प्रतिबंध लगाने में मदद की और 1993 में रासायनिक हथियारों के मौजूदा भंडारों पर अंतर्राष्ट्रीय निगरानी को समाप्त करने में मदद की। वास्तव में, संयुक्त राष्ट्र ने लाखों बारूदी सुरंगों को अफ्रीका, एशिया और अन्य क्षेत्रों में हटवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, साथ ही रासायनिक हथियारों के मौजूदा भंडार को समाप्त करने की प्रक्रिया का निरीक्षण भी किया। नब्बे के दशक में संयुक्त राष्ट्र ने ईराक में रासायनिक और जैविक हथियारों का विनाश भी किया था।

प्रश्न 3. भारतीय विदेश नीति पर स्वतंत्रता संग्राम के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर – महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़े गए स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भारत की विदेश नीति में शांति की प्रतिबद्धता का उदाहरण है। शांति और अहिंसा का प्रतीक विदेशी साम्राज्य के खिलाफ सफल संघर्ष था। इस योजना ने एशिया और अफ्रीका में स्वतंत्रतावादी लोगों को उत्साहित किया। गांधी के विचारों ने स्वतंत्र भारत में हमारे नेताओं को भारत की नीति और विदेश मामलों की दिशा देने में प्रेरणा दी। इनमें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम प्रमुख था। भारत को विश्व शांति का दूत बनाने के लिए हमारी विदेश नीति के लक्ष्यों और मूल्यों को उन्होंने साकार किया। अंतरराष्ट्रीय शांति कायम रखना भारत की विदेश नीति का मूल लक्ष्य रहा है, भले ही देश की सरकारें बदल गईं।

प्रश्न 4. प्रतिस्पर्द्धियों में शीत युद्ध को कम करने के लिए भारत का दृष्टिकोण क्या था ?
उत्तर- पश्चिमी देशों ने एक-दूसरे के साथ अच्छे और मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की इच्छा व्यक्त की। भारत की इच्छा बातचीत करने की थी, क्योंकि यह शीतकाल था। हमारे नेताओं ने हथियारों और वाक्युद्ध का उपयोग किए बिना दोनों पक्षों के मतभेदों को सीधी, स्वतंत्र बातचीत से हल करने की कोशिश की। भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति की खोज की। इस नीति का उद्देश्य तटस्थता नहीं है (तटस्थता का अर्थ है दो शत्रुओं के बीच युद्ध में समान दूरी रखना)। इसका अर्थ है विश्वव्यापी मुद्दों से संबंधित सभी मामलों पर स्वतंत्र निर्णय लेना।
इस नीति ने युद्ध को बढ़ावा देने की जगह शांतिपूर्ण उपायों को अपनाया।

यह नीति बहुत लोकप्रिय हुई क्योंकि नए स्वतंत्र देशों ने शीत युद्ध के गुटों का सदस्य बनने की अपेक्षा गुटनिरपेक्ष नीति को अपनाने का अधिक महत्व दिया। 1960 में, जवाहरलाल नेहरू, युगोस्लाविया के मार्शल टीटो और मिस्र के नासिर ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया । शांति का विश्वव्यापी अभियान चलाने वाले सबसे बड़े अभियान के रूप में इस आन्दोलन का स्वागत किया गया। भारत शीत युद्ध में अपने विरोधियों को स्वतंत्र देशों के बीच संघर्ष करने नहीं देना चाहता था।

प्रश्न 5. उन दो तरीकों का वर्णन कीजिए जिनसे भारत संसार में शांतिपूर्ण वातावरण पैदा कर सकता है।
उत्तर – निम्नलिखित दो तरीकों का प्रयोग करके भारत सरकार में शांतिपूर्ण वातावरण पैदा कर सकता है-
1. हम पड़ोसी देशों को मित्रता तथा शांतिपूर्व सहअस्तित्व में सहयोग के लाभ का प्रस्ताव दे सकते हैं ।
2. महाशक्तियों को ध्यान में रखते हुए विशेषकर अपने तथा विश्व शांति के हित के लिए भी बिना किसी के नजदीक आए । मजबूत राजनीतिक और आर्थिक संबंधों की स्थापना करना गुट-निरपेक्षता है । भारत गुटनिरपेक्षता की नीति स्वयं अपनाकर तथा उसका विश्व में प्रसार कर विश्व शांति की स्थापना कर सकता है

प्रश्न 6. भारत के लिए विश्व शांति का क्या अर्थ है ?
उत्तर- भारत की शांति नीति द्वेषपूर्ण या युद्धविरोधी नहीं है। हम पूरी तरह से मानते हैं कि स्थायी शांति केवल तब तक रह सकती है, जब तक युद्ध के मूल कारणों को दूर नहीं किया जाता। इसलिए, भारतीय विदेश नीति रंगभेद को खत्म करने में लगी है। तथा सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने की प्रतिज्ञा करता है। भारत के लिए शांति का मतलब सिर्फ युद्ध नहीं है, बल्कि विश्व में समानता, न्याय, प्रगति और सुरक्षा की स्थापना है।

प्रश्न 7. शीत युद्ध की समाप्ति के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर- शीत-युद्ध समाप्त होने पर कई बदलाव हुए। बर्लिन की दीवार, जो पूर्व और पश्चिम को अलग करती थी, गिरा दी गई, जर्मनी का एकीकरण हुआ, और सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में समाजवाद विफल हुआ। सोवियत संघ का पतन और उसका प्रभाव दो प्रमुख परिणामों में से एक था। पहला सोवियत संघ टूट गया और चौबीस स्वतंत्र गणराज्यों में बंट गया। सोवियत संघ का पतन संयुक्त राष्ट्र को सैनिक और आर्थिक रूप से सबसे शक्तिशाली देश बनाया।

प्रश्न 8. भारत को एक पंथ निरपेक्ष, गुट निरपेक्ष तथा सहिष्णु राष्ट्र बनाने में किन कारणों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है ?
उत्तर- भारत को एक पंथ निरपेक्ष, गुट निरपेक्ष तथा सहिष्णु राष्ट्र बनाने में निम्नलिखित कारणों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है –

(क) युगों से विश्व में शांति का मूल मुद्दा रहा है। भारत की सभ्यता हमेशा संपर्क से जुड़ी रही है। भारत ने ग्रीक, फारस, चीन और अन्य देशों के संपर्क में आने से बहुत लाभ उठाया है। धर्मों ने प्राचीन भारत में विश्व एकता की भावना को जन्म दिया। इन धर्मों के प्रवर्तकों ने अहिंसा, सहनशीलता और भाईचारे के नियमों को प्रोत्साहित किया। इस बात से कि बौद्ध धर्म का प्रसार दूर-दूर तक और पूरे विश्व में हुआ, इन शिक्षाओं की स्वीकृति और रुचि दिखाई देती है। वास्तव में, स्वतंत्रता मिलने के बाद हमारे देश की बाह्य दुनिया को देखने का दृष्टिकोण इन संस्कृतियों से प्रभावित हुआ।

(ख) भारत की भौगोलिक स्थिति ने भी शांति का रास्ता बनाया है। प्रकृति ने भारत को सुरक्षित रखा है। इसके उत्तर में हिमालय है और चारों ओर समुद्र है। प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता हमें दूसरे देशों की जमीन पर बसने के लिए कभी नहीं प्रेरित करती। दूसरे देशों के साथ व्यापारिक संबंधों, सांस्कृतिक विनिमय और संबंधों का विकास हुआ । भारत ने अपनी भूमि और बाजार पर कब्जा करने के लिए युद्धों का कोई इतिहास नहीं बनाया है।

(ग) लगभग 2000 वर्षों से भारत विदेशी हमलों का शिकार रहा । इन विदेशी हमलावरों में अनेक इस देश में ही बस गए और भारत की सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रकृति के अंग बन गए। 200 वर्षों के उपनिवेशी शासन काल के पश्चात् अनेक अंग्रेज भारत में रह गए। बदले में हमने अंग्रेजी भाषा को समृद्ध किया और भारत विश्व में अंग्रेजी बोलने वाला विश्व का सबसे बड़ा राष्ट्र बन गया ।

प्रश्न 9. विश्व – शांति की स्थापना में भारत के योगदान का ब्यौरा दीजिए ।
उत्तर- 1. जब भी राष्ट्रों के बीच शत्रुता पनपी, भारत ने तत्काल झगड़े को समाप्त करने को प्राथमिकता दी और उन्हें बातचीत के रास्ते पर लाया । भारत उस देश के एकदम खिलाफ है, जो शक्ति का इस्तेमाल कर दूसरे देशों की भूमि पर कब्जा कर लेते हैं ।
2. भारत ने पश्चिमी एशिया, कांगो तथा दूसरे क्षेत्रों में, संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति स्थापना के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभाई है ।

3. भारत ने शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का सिद्धान्त अपनाया है। 1954 में, भारत और चीन ने मिलकर पंचशील की नीति बनाई। यह पाँच आदर्श सिद्धान्तों पर आधारित है। वे एकमत हुए कि वे एक दूसरे की समस्याओं को हल नहीं करेंगे। भारत चीन के साथ 1962 के युद्ध में सीमा विवाद को सुलझाने की शर्त के बिना आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहा है। भारत का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध पाकिस्तान से बहुत मिलता है, लेकिन दुर्भाग्यवश, पाकिस्तान ने हमारे विचारों पर शक करना शुरू किया, जिससे कई बार युद्ध हुए। 1972 में शिमला समझौते के अनुसार, दोनों देशों ने शांतिपूर्ण तथा बातचीत से अपने विवादों को हल करेंगे। पुनः 1999 में भारत-पाकिस्तान ने लाहौर घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करके उपमहाद्वीप में शांति की जरूरत पर जोर दिया।

4. विश्व शांति की दिशा में भारत निशस्त्रीकरण का समर्थक रहा है । भारत का हथियारों की होड़, उत्पादन और परमाणु या परम्परागत हथियारों के हस्तांतरण को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल है, विशेष रूप से भारत ने परमाणु हथियारों की अनंत शक्ति से होने वाली भीषण तबाही को प्रचारित किया तथा तभी से लगातार परमाणु हथियारों के निशस्त्रीकरण की मांग कर रहा है ।

5. भारत ने शांति कायम करने और करोड़ों वंचित लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास किया है। भारत संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद्, संयुक्त राष्ट्र के विकास कार्यक्रमों और अन्य आर्थिक और वित्तीय संस्थाओं के साथ इस विचार से काम करता है। भारत एक समान विश्व आर्थिक व्यवस्था की आवश्यकता का समर्थन करता है। भारत कई गरीब देशों को धन और तकनीक देता है।

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