NIOS Class 10 Social Science Chapter 24 राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथनिरपेक्षता
NIOS Class 10 Social Science Chapter 24 National Integration and Secularism – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 24 (राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथनिरपेक्षता) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Social Science Chapter 24 National Integration and Secularism दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Social Science Chapter 24 राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथनिरपेक्षता के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.
NIOS Class 10 Social Science Chapter 24 Solution – राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथनिरपेक्षता
प्रश्न 1. राष्ट्रीय समाकलन को परिभाषित करिए तथा राष्ट्रीय समाकलन के आविर्भाव में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के योगदान की चर्चा कीजिए ।
उत्तर – राष्ट्रीय एकता को भारतीय संविधान ने बहुत बल दिया है। राष्ट्रीय अखण्डता और एकता का मूल उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में है। यह भी कहा गया है कि भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता को सुरक्षित रखना हर नागरिक का कर्तव्य है। भारतीय संविधान ने एक मजबूत केंद्र वाली संघीय व्यवस्था दी है। राष्ट्रीय एकता की जरूरत और राष्ट्रवाद की भावना पहली बार राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में व्यक्त हुईं। इस आंदोलन में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, समुदायों, जातियों, पंथों और क्षेत्रों के लोग एकजुट होकर ब्रिटिश शासन को भारत से बाहर निकाल सकते थे। 1885 में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झण्डे के नीचे देश भर के लोगों ने मिलकर अंग्रेजों को भारत छोड़ दिया। राष्ट्रीय आंदोलनों ने देशवासी को एकजुट करने का प्रयास किया। इन आंदोलनकर्ताओं ने समानता, स्वतंत्रता, पंथनिरपेक्षता और आर्थिक और सामाजिक सुधार पर अधिक जोर दिया।
प्रश्न 2. भारतीय संविधान राष्ट्रीय समाकलन को किस प्रकार प्रतिबिम्बित करता है तथा उसे बढ़ावा देता है ?
उत्तर- भारतीय संविधान देश को एकजुट करने पर बहुत जोर देता है। राष्ट्रीय अखण्डता और एकता को संविधान की प्रस्तावना में सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। यह भी कहा गया है कि भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करना और उन्हें सुरक्षित रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान करते हुए, संविधान देश की अखण्डता और एकता को बचाने की भी कोशिश करता है। इसलिए भारतीय संविधान ने एक मजबूत केंद्र वाली संघीय व्यवस्था बनाई है।
प्रश्न 3. भारत में राष्ट्रीय समाकलन की कौन-कौन सी प्रमुख चुनौतियां हैं?
उत्तर– राष्ट्रीय समाकलन को कायम रखने और मजबूत बना के प्रयास में भारत ने अनेक चुनौतियों का सामना करता आया है। उनमें सबसे प्रमुख चुनौतियां हैं- साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयवाद, भाषावाद तथा उग्रवाद ।
1. साम्प्रदायिकता – भारत ने वर्षों से सामना करने वाली सबसे कठिन चुनौतियों में से एक सामने किया है, वह है साम्प्रदायिकता। भारतीय राजनीति हमेशा धर्म से प्रभावित हुई है। धर्म पर आधारित विकृत विचारधारा और सोच ने देश में बार-बार सांप्रदायिक संघर्षों को जन्म दिया है। धर्म की वजह से देश का विभाजन हुआ। आज भी सांप्रदायिक दंगों की दु:खद खबरें सुनने और पढ़ने को मिलती हैं।
2. क्षेत्रीयवाद – क्षेत्रवाद शब्द के दो अर्थ हैं-
(i) नकारात्मक और (ii) सकारात्मक ।
नकारात्मक रूप से, इसका अर्थ है कि आप अपने क्षेत्र को देश या राज्य से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। सकारात्मक रूप से, यह एक राजनीतिक गुण है जो अपने क्षेत्र, संस्कृति, भाषा आदि से जुड़े लोगों को अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए प्यार करता है। यदि सकारात्मक क्षेत्रवाद भाषा, धर्म और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के आधार पर भाईचारे और समानता को बढ़ाता है, तो वह सही है। नकारात्मक रूप से, क्षेत्रवाद देश की अखण्डता और एकता को खतरा है। क्षेत्रवाद को भारत में अक्सर नकारात्मक रूप से देखा जाता है। क्षेत्रवाद का जन्म या तो पिछड़े क्षेत्रों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ने से हो सकता है या शासन करने वाले अधिकारियों द्वारा एक क्षेत्र विशेष की निरंतर अवहेलना से हो सकता है।
3. भाषावाद – भारत एक बहुभाषी देश है। भारत के लोग अनेक भाषाएं तथा अनेक बोलियां बोलते हैं। इस बहुलवादिया का कई अवसरों पर विशेष रूप से स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती दशकों में नकारात्मक उपयोग हुआ है। प्रत्येक देश को एक सामान्य राजभाषा की आवश्यकता होती है।
4. उग्रवाद – देश भर में चल रहे हिंसक आंदोलनों ने देश को एक बड़ी चुनौती दी है। ये आंदोलन अक्सर हिंसा का प्रयोग करते हैं, भय पैदा करते हैं, नागरिकों और सरकारी कर्मचारियों को मार डालते हैं और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करते हैं।
प्रश्न 4. ऐसे कौन-कौन से कारक हैं जो राष्ट्रीय समाकलन को बढ़ावा देते हैं तथा मजबूत बनाते हैं?
उत्तर – राष्ट्रीय समाकलन को निम्नलिखित कारक को बढ़ावा देते हैं-
1. सांविधानिक प्रावधान – भारतीय संविधान ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के उद्देश्यों में समाजवाद, पंथनिरपेक्षता, लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व को शामिल करके राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया है। राज्य को न्यायपूर्ण आर्थिक विकास, सामाजिक भेदभाव दूर करने और विश्व शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए नीति निर्देशक तत्व से निर्देश प्राप्त होते हैं।
2. सरकारी पहल – सरकारों ने राष्ट्रीय समाकलन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने और सही उपायों की सिफारिश करने के लिए एक राष्ट्रीय एकता परिषद बनाई है।
3. राष्ट्रीय त्योहार एवं प्रतीक स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती जैसे राष्ट्रीय त्योहार सभी भारतीयों द्वारा देश के सभी भागों में मनाए जाते हैं, चाहे उनकी भाषा, उनका धर्म या उनकी संस्कृति कुछ भी हो। इन सबसे राष्ट्रीय समाकलन को बढ़ावा मिलता है।
4. अखिल भारतीय सेवाएं तथा अन्य कारक – भारत की एकता और अखण्डता को अखिल भारतीय सेवाओं, डाक और रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट जैसे संचार माध्यमों से बढ़ावा मिलता है।
प्रश्न 5. पंथनिरपेक्षता को परिभाषित कीजिए तथा भारतीय राजनीतिक पद्धति के लिए इसके महत्त्व की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- हमारे संविधान ने भारत को एक पंथ निरपेक्ष देश घोषित किया है, जहां लोगों को किसी भी धर्म या पंथ का पालन करने की पूरी स्वतंत्रता है। राजनीति और धर्म पूरी तरह से अलग हैं। लेकिन हालात उतने अच्छे नहीं लगते। आजाद भारत के इतिहास में कई बार दो समुदायों का संघर्ष हुआ है। हमारे देश में कई साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं। स्वतंत्रता के बाद भारत ने पंथ निरपेक्षता की नीति लागू की और अपने संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। लेकिन स्वतंत्रता मिलने के बाद हमारे देश में कई जातीय संघर्ष हुए हैं। हमारे संविधान का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य पंथ निरपेक्षता है। इसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों को समान आदर देगा। हम किसी भी पंथ को मानते हों, राज्य हम सभी को बराबरी का दर्जा देता है। हम किसी भी धर्म या विचारधारा को मानने, स्वीकार करने या फैलाने के लिए स्वतंत्र हैं।
प्रश्न 6. नीचे दो सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों के कथन दिए गए हैं-
महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, “मैं एक हिन्दू हूँ तथा उस पर मैं अत्यधिक भरोसा करता हूं। मैं इसके लिए मर सकता हूं। लेकिन यह मेरा व्यक्तिगत मामला है। राज्य का इससे कोई संबंध नहीं। राज्य आपके पंथनिरपेक्ष कल्याण, स्वास्थ्य, संचार, विदेशी संबंधों, मुद्रा आदि की देखभाल करेगा, लेकिन आपके तथा मेरे धर्म का नहीं। वह प्रत्येक व्यक्ति का वैयक्तिक सरोकार है।
” महात्मा गांधी के एक निकटतम सहयोगी, मौलाना आजाद ने कहा था- ” मैं एक मुसलमान हूं तथा इस तथ्य के प्रति गंभीर रूप से चैतन्य हूं कि मुझे इस्लाम के पिछले तेरह सौ सालों की गौरवमयी परंपराएं विरासत में मिली हैं, मैं इस विरासत के छोटे से छोटे भाग को खोने के लिए तैयार हूं।…. मुझे इस तथ्य के संबंध में भी उतना ही गर्व है कि मैं एक भारतीय हूं, भारतीय राष्ट्रत्व की अविभाज्य एकता का अनिवार्य हूं, इसके संपूर्ण ढांचे में एक महत्त्वपूर्ण घटक हूं, जिसके बिना यह भव्य इमारत अपूर्ण रहेगी । ” उपर्युक्त दोनों कथनों के संदर्भ में भारत में पंथनिरपेक्षता और राष्ट्रीय समाकलन को मजबूत बनाने के लिए भारतीय नागरिकों की भूमिका का विश्लेषण कीजिए ।
उत्तर – हम सभी नागरिकों को सभी धर्मों का वैसा ही आदर करना चाहिए जैसा वे अपने धर्म का करते हैं। कोई भी धर्म व्यक्ति को दूसरों की अवहेलना करने या उनसे घृणा करने की आज्ञा नहीं देता । कोई भी नागरिक जब अपने आसपास देखेगा तो पाएगा कि उसका मित्र पड़ोसी तथा अन्य उससे अलग धर्म में विश्वास रखते हैं तथा उसका अनुसरण करते हैं। वे अलग-अलग जाति के हैं। यदि नागरिक दूसरों धर्मों का आदर नहीं करें तो वे अपने मित्र या पड़ोसी के सच्चे मित्र कैसे बने रह सकते हैं। यह जरूरी है कि सभी लोग एक-दूसरों का आदर करें तथा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का आचरण करें।
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