राजनीतिक दल तथा दबाव समूह के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. किसी राजनीतिक दल की आवश्यक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- लोगों ने समूहों और संगठनों में भाग लिया। संगठनों का राजनीतिक दल भी ऐसा ही है। आजकल, किसी-न-किसी प्रतिनिधि संस्था के माध्यम से उत्तम सरकार चलाई जाती है। सभी प्रतिनिधियात्मक संस्थाओं में राजनैतिक दल होना चाहिए। राजनीतिक दल लोगों की एक संगठित संस्था है, जो अपने देश की राजनीतिक व्यवस्था के संबंध में साझा सिद्धांत और लक्ष्य रखते हैं। राजनीतिक दलों का मुख्य लक्ष्य राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करना तथा कायम रखना है; इसे शासक दल कहते हैं। मिली-जुली सरकार में एक से अधिक शासन करने वाले दल होते हैं। विपक्ष में बैठने वाले को विपक्षी दल कहते हैं। किसी भी राजनीतिक दल में निम्नलिखित गुण होने चाहिए
1. यह औपचारिक सदस्यता वाले लोगों की एक संगठित संस्था होनी चाहिए।
2. इसकी नीतियाँ और कार्यक्रम स्पष्ट होने चाहिए ।
3. इसके सदस्यों को इसके सिद्धान्तों, नीतियों और कार्यक्रमों से सहमत होना चाहिए।
4. इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता प्राप्ति होना चाहिए।
5. इसका नेता स्पष्ट और स्वीकार्य होना चाहिए ।
6. इसके मुद्दे विस्तृत होने चाहिए ।
प्रश्न 2. क्षेत्रवाद के रूपों के बारे में चर्चा कीजिए ।
उत्तर – भारत में क्षेत्रवाद ने विभिन्न रूप धारण कर लिए हैं, जिसका वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-
(क) राज्य स्वायत्तता की माँग- क्षेत्रवाद अक्सर राज्यों को केंद्र से अधिक स्वतंत्रता की मांग करता है। केन्द्रीय सरकार के मामले में बढ़ते हस्तक्षेप ने क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काया है। स्वायत्तता की मांग भी भारतीय संघ के कुछ राज्यों में उठी है।
(ख) संघ से अलग होना – यह बहुत खतरनाक रूप है क्षेत्रवाद का। यह तब होता है जब राज्य केंद्र से अलग होने और स्वतंत्र पहचान बनाने की माँग करते हैं।
क्षेत्रवाद भी राज्यों के बीच नदी जल में भागीदारी पर बहस, बहुसंख्यकों की भाषा और नौकरी के अवसरों में अपने ही राज्य के लोगों को प्राथमिकता देने से पैदा हुआ है। विकसित राज्यों में रोजगार के अवसरों के लिए पिछड़े राज्यों से लोगों के स्थानांतरण से स्थानांतरित लोगों को गलत देखा जाता है।
प्रश्न 3. क्षेत्रीय दलों की भूमिका पर चर्चा कीजिए ।
उत्तर – वैसे तो क्षेत्रीय दल सीमित क्षेत्र में काम करते हैं और उनके उद्देश्य भी सीमित हैं, लेकिन उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। क्षेत्रीय राजनैतिक दल ने कई राज्य सरकारें बनाई हैं और अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को ठोस रूप दिया है। तमिलनाडु के डीएमके और AIDK, जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, आंध्र प्रदेश में तेलगु देशम, असम में असम गण परिषद्, गोवा में महाराष्ट्रवादी गोमान्तक पार्टी, मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट, सिक्किम में सिक्किम संग्राम परिषद्, मेघालय में आल पार्टी हिल लीडर्स कांफ्रेंस और हरियाणा में इन्डियन नेशनल लोकदल प्रमुख क्षेत्रीय दल हैं 1967 के चौथे साधारण चुनावों के बाद जो मिली-जुली सरकारें बनीं, उनमें कुछ क्षेत्रीय दल भी शामिल थे।
केंद्र में भी कुछ दिनों से सरकार गठित करने में सहायता करने में सफल रहे हैं। 1969 में कांग्रेस में विभाजन हुआ तब एक क्षेत्रीय दल, DMKC, ने श्रीमती इन्दिरा गांधी की सरकार को समर्थन दिया और संसद में बहुमत समाप्त होने के बाद भी सरकार चलाने की क्षमता दी। तेलगु देशम संयुक्त मोर्चा और बाद में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का बलस्थान बन गया। क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधि संसद में अपने क्षेत्र के मुद्दों पर चर्चा करते हैं और सरकार की नीतियों को अपने हितों की वृद्धि के लिए प्रभावित करते हैं।
क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने दूरदराज के क्षेत्रों के लोगों का ध्यान केंद्रित किया है और उनकी राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई है। राष्ट्रीय दल को यह बताने में क्षेत्रीय दल सफल रहे हैं, जो सबसे महत्वपूर्ण है। कि वे क्षेत्रीय समस्याओं को हल करने में गहरी रुचि लेने के लिए मजबूर हो गए हैं और इसके प्रति उदासीन हो गए हैं। इसलिए हम देखते हैं कि न केवल क्षेत्रीय राजनीति बल्कि राष्ट्रीय राजनीति भी क्षेत्रीय राजनैतिक दलों से प्रभावित हुई है।
प्रश्न 4. किस आधार पर हम भारत में दबाव समूहों का वर्गीकरण करते हैं?
उत्तर – भारत सहित दुनिया भर में दबाव समूह हैं, जो अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकारी निर्णयों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इन्हें उनके उद्देश्यों और लक्ष्यों के अनुसार मुख्य रूप से चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।-
1. व्यावसायिक दबाव समूह – इस वर्ग में ऐसे दबाव समूह आते हैं, जो अपने हितों की रक्षा करते हैं। संसाधनों की बहुतायत वाले बड़े व्यावसायिक घराने, जिनके पास तकनीकी और प्रबन्धन क्षेत्र में कर्मचारी हैं, मीडिया, प्रशासन और विरोधी दलों से अच्छी जान पहचान और संबंध हैं, उनके नियंत्रण में सबसे संगठित और शक्तिशाली दबाव समूह हैं।
2. सामाजिक- सांस्कृतिक दबाव समूह – बहुत से सामाजिक-सांस्कृतिक दबाव समूह सामुदायिक सेवाओं के लिए काम करते हैं और संपूर्ण समुदाय के हितों को बढ़ावा देते हैं। इनके अलावा, कुछ और दबाव समूह अपनी भाषा और धर्म के हितों के लिए काम करते हैं। इसी तरह के दबाव समूहों में आर्य प्रतिनिधि सभा, जनसेवा संघ, रामकृष्ण मिशन, आर्य समाज, जमात-ए-इस्लामी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद्, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी, पारसी अन्ययास, युवा ईसाई संगठन, बजरंग दल, संस्कृत साहित्य अकादमी, पंजाबी अकादमी, मराठी संघ, भारतीय आदिम जाति संघ और शरणार्थी लोक समिति शामिल हैं।
3. संस्थागत दबाव समूह सरकारी संरचना में भी कुछ दबाव समूह काम करते हैं। दबाव समूह सरकार की नीतियों को अपने हितों के लिए बदलते हैं, राजनीतिक पद्धति में शामिल होने के बिना ही। इसी तरह के दबाव समूहों में सिविल सर्विस एसोसिएशन, पुलिस स्वास्थ्य संस्थान, गेजेटिड ऑफिसर यूनियन, डिफेंस पर्सनल एसोसिएशन, आर्मी ऑफिसर्स आर्गेनाइजेशन और रेडक्रास सोसाइटी शामिल हैं। इन दबाव समूहों से स्थानांतरण, अवकाश नियम, मुद्रास्फीति के कारण पर्याप्त डीए, ड्यूटी निर्धारण आदि मामले प्रभावित होते हैं। वे सार्वजनिक काम करते हैं, लेकिन सरकारी तंत्र में रहकर ही सक्रिय रहते हैं।
4. अनिश्चित दबाव समूह – कुछ दबाव समूह सरकार पर दबाव डालने के उद्देश्य से कुछ समय तक रहते हैं। ये दबाव समूह अपने लक्ष्य को पूरा करने के बाद समाप्त हो जाते हैं। ये दबाव समूह आवश्यकता होने पर या प्राकृतिक आपदा या प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने हितों की रक्षा करने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं। ऐसे दबाव समूहों में उड़ीसा साइक्लोन रिलीफ ऑर्गेनाइजेशन, भूदान अनुयोजना, कावेरी-वाटर डिस्ट्रीब्यूशन एसोसिएशन और गुजरात रिलीफ ऑर्गेनाइजेशन शामिल हैं ।
प्रश्न 4. दबाव समूहों की भूमिका पर चर्चा करें।
उत्तर – दबाव समूहों को लॉबी कहा जाता है। लॉबी एक अमेरिकी शब्द है, लेकिन आज जापान सहित विश्व के कई देशों में इसका प्रयोग किया जाता है। इससे सदन के भीतर लॉबी की ओर संकेत मिलता है, जहाँ विधायक और सदस्य मिलकर सदन के कार्यों पर चर्चा करते हैं। भारत की राजनीतिक व्यवस्था दबाव समूहों से प्रभावित है। ये लोग संचार के साधन के रूप में काम करते हैं और जनता और राजनीतिक दलों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करते हैं; वे लोगों को कई सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के प्रति भी संवेदनशील बनाते हैं और उन्हें राजनीतिक शिक्षा भी देते हैं।
प्रभावी नेतृत्व बनाते हैं और भविष्य के नेताओं को प्रशिक्षण देते हैं। ये भी समाज के कई परंपरागत मूल्यों को एकजुट करने की कोशिश करते हैं। दबाव समूहों की कार्रवाई भी एकता और अखंडता का निर्माण करती है। इसलिए यह स्पष्ट है कि दबाव समूह सरकार और प्रशासन की नीतियों पर प्रभाव डालता है। दबाव समूहों का काम और उनके मुख्य लक्ष्य देश के राजनैतिक संस्थानों द्वारा देखे जाते हैं। USA, France और अन्य लोकतांत्रिक देशों में दबाव समूहों के पास सरकारी निर्णयों को प्रभावित करने के और अधिक अवसर हैं। ब्रिटेन में पहले के मुकाबले दूसरे तक पहुँच बनाना फायदेमंद हो गया है जबसे कैबिनेट और सिविल सर्विसेस (लोक सेवा) संसद सदस्यों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली हो गए हैं।
कैबिनेट और लोकसेवा के सदस्यों की ओर ध्यान देना हाउस ऑफ कॉमन्स लॉबी से अधिक फायदेमंद है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कांग्रेस सम्बन्धी समिति व्यवस्था और उसके प्रभावशाली चैयरमेन पर ध्यान केंद्रित करना फायदेमंद है। संयुक्त राज्य अमेरिका में विनिर्माण संगठन और चैंबर ऑफ कॉमर्स दोनों बहुत शक्तिशाली मानते हैं। अमेरिका में कई दबाव समूह और लॉबियाँ राजनीतिक दलों से जुड़ना नहीं चाहते, लेकिन शक्तिशाली ट्रेड यूनियनों, जैसे अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर, कांग्रेस ऑफ इंडस्ट्रियल आर्गेनाइजेशन का डेमोक्रेटिक पार्टी, ब्रिटिश यूनियन का लेबर पार्टी और रोमन कैथोलिक चर्च का क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टिस ऑफ जर्मनी और इटली, राजनीतिक दलों से जुड़
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