NIOS Class 10 Social Science Chapter 20 केन्द्रीय स्तर पर शासन

NIOS Class 10 Social Science Chapter 20 केन्द्रीय स्तर पर शासन

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NIOS Class 10 Social Science Chapter 20 Solution – केंद्रीय स्तर पर शासन

प्रश्न 1. भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है? उसको किस प्रकार अपने पद से हटाया जा सकता है ?
उत्तर – लोकसभा और राज्यसभा के दोनों सदनों और राज्यों की विधानसभाओं के सभी निर्वाचित सदस्यों से बना एक निर्वाचक मण्डल राष्ट्रपति को चुनता है। इस निर्वाचक मण्डल में राज्य विधान परिषदों के सदस्य और संसद के मनोनीत सदस्य नहीं होते। एकल संक्रमणीय प्रणाली आनुपातिक प्रतिनिधित्व का उपयोग करता है। गुप्त मत से मतदान होता है। संविधान निर्माताओं ने चाहा था कि सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत समान हों। इसलिए, मतों की समानता सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने एक विधि बनाई, जिससे प्रत्येक निर्वाचित विधायक और सांसद के वोट का मूल्य पता लगाया जा सके। निम्नलिखित सूत्र किसी राज्य की विधानसभा के प्रत्येक विधायक का मत निर्धारित करता है

हम आम तौर पर कह सकते हैं कि राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या को राज्य की कुल जनसंख्या से भागकर, फिर भागफल को 1000 से भाग दिया जाता है।

एकल संक्रमणीय मत प्रणाली – एकमात्र संक्रमणीय मत प्रणाली में आनुपातिक प्रतिनिधित्व का चुनाव होता है। इस प्रणाली में सभी प्रत्याशियों के नाम मतपत्र पर लिखे जाते हैं, और मतदाता अपनी पसंद की संख्या के आगे उनके नाम लिखते हैं। जितने प्रत्याशियों को चुना जाना है, उतनी संदें प्रत्येक मतदाता मतदान पत्र पर लिखता है। वह अपनी पहली पसंद के उम्मीदवारों के नाम के आगे एक लिखता है। उसी तरह, वह अन्य उम्मीदवारों के नाम के आगे अपनी रुचि के अनुसार संख्या 2 से 4 तक लिखता है। मत अवैध घोषित किया जाता है अगर पहली पसंद न लिखी जाए या एक से अधिक प्रत्याशियों के नाम के आगे पहली पसंद लिखी जाए।

मतगणना परिणाम की घोषणा – राज्य विधानसभाओं के सदस्य राज्य की राजधानियों में मतदान करते हैं, जबकि दिल्ली या राज्य की राजधानियों में संसद सदस्य अपना मतदान कर सकते हैं। नई दिल्ली में मतगणना होती है। सभी प्रत्याशियों के मत अलग-अलग करके पहली पसंद से गिन लिए जाते हैं। निर्वाचित घोषित होने के लिए कुल वैध मतों के पचास प्रतिशत से अधिक मत मिलना चाहिए। न्यूनतम आवश्यक अंक या कोटा इसका नाम है। यहाँ केवल राष्ट्रपति का चुनाव होता है, इसलिए कोटा निकालने के लिए कुल वैध मतों को होने वाले प्रत्याशियों की संख्या में एक जोड़कर भाग किया जाता है। इसलिए एक से एक, या दो से भाग दिया जाता है। 50 से अधिक अंकों के लिए भागफल में एक जोड़ दिया जाता है,

यही कारण है कि पहली गणना में केवल पहली पसंदों को गिना जाता है। कोटा पाने वाले प्रत्याशी विजयी होते हैं। यदि कोई प्रत्याशी आवश्यक न्यूनतम कोटा नहीं प्राप्त कर सकता, तो सबसे कम पहली पसंद वाले प्रत्याशी की दूसरी पसंदों के आधार पर उसके मतों को बाकी प्रत्याशियों में बांट दिया जाता है। इससे सबसे कम मतों वाले प्रत्याशी का नाम हटा दिया जाता है। दूसरी गणना में विजयी प्रत्याशी को वांछित मत मिलते हैं। यदि किसी प्रत्याशी को कोटा नहीं मिलता, तो सबसे कम मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी के मत बाकी प्रत्याशियों में हस्तांतरित किए जाते हैं, उसकी तीसरी पसंद के आधार पर। जब तक कि कोई प्रत्याशी वांछित मत प्राप्त करके विजयी घोषित नहीं होता, इस प्रक्रिया खत्म हो जाती है।

प्रश्न 2. भारत के राष्ट्रपति की शक्तियाँ और कार्य क्या हैं ? संविधान द्वारा इतनी अधिक शक्तियाँ देने के बावजूद, यह क्यों कहा जाता है कि राष्ट्रपति शासन नहीं करता, अपितु राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है।
उत्तर – राष्ट्रपति का पद वास्तविक शक्ति का पद नहीं होता, बल्कि बहुत बड़ा सम्मान और गौरव का पद होता है। राष्ट्रपति के नाम से मंत्रिपरिषद उसकी शक्तियों का उपयोग करती है, न कि वह स्वयं। यदि वह मंत्रिपरिषद की इच्छा के खिलाफ काम करता है तो संवैधानिक संकट उत्पन्न होता है। इसके लिए उसे पद से हटाया जा सकता है और महाभियोग तक लगाया जा सकता है। इसलिए राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री को मानना ही चाहिए था। आखिरकार, कार्यपालिका प्रधानमंत्री की है। प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से लगातार संपर्क में रहता है। अविश्वास का प्रस्ताव पारित होने पर ही मंत्रिपरिषद को हटाया जा सकता है, जो लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है।

लेकिन संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति के प्रासाद काल तक मंत्रिपरिषद कायम रह सकता है। राष्ट्रपति को संविधान के 42वें संशोधन के अनुसार मंत्रिपरिषद के परामर्श के अनुसार कार्य करना चाहिए। वह स्वतंत्र काम नहीं कर सकता। राष्ट्रपति के अधिकार औपचारिक हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद ही असली कार्यपालिका है। संविधान के 44वें संशोधन के अनुसार, राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित किसी भी विधेयक को वापिस भेज सकता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति ही आवश्यक है अगर विधेयक पुनः पारित किया जाता है। भारत का राष्ट्रपति सिर्फ रबड़ की मुहर नहीं है।

संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति को भारतीय संविधान की सुरक्षा करनी होती है। वह समय सीमा में नवनियुक्त प्रधानमंत्री को विश्वास का मत हासिल करने के लिए कह सकता है। राष्ट्रपति देश का सारा प्रशासन है। किसी भी मंत्री से वह कोई भी जानकारी ले सकता है। राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद के सभी फैसलों की जानकारी दी जाती है। भी प्रशासन से संबंधित सभी जानकारी दी जाती है। यह बात कि राष्ट्रपति को सरकार को सलाह, प्रेरणा, प्रोत्साहन और चेतावनी देने का अधिकार है, इसी से राष्ट्रपति पद का महत्व समझा जाता है। यहाँ राष्ट्रपति एक मित्र, परामर्शदाता और आलोचक के रूप में सामने आता है।

प्रश्न 3. भारत के प्रधानमंत्री की भूमिका का परीक्षण तथा मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर- प्रधानमंत्री केंद्रीय सरकार का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्यक्ति होता है। वह सरकार और लोकसभा का अध्यक्ष है। वह देश का मुखर वक्ता है और राष्ट्रपति का प्रमुख सलाहकार है। वह बहुत कुछ देता है। वह देश की सरकार को प्रेरित करता है। वह मंत्रिपरिषद अध्यक्ष है और राष्ट्रपति से मंत्री पद की शपथ लेने वाले मंत्रियों को चुनता है। मंत्री प्रधानमंत्री द्वारा चुने जाते हैं और उनके पद पर रहते हैं जब तक प्रधानमंत्री उनमें विश्वास रखता है। प्रधानमंत्री चाहे तो मंत्रियों को अलग-अलग विभागों में विभाजित कर सकता है। प्रधानमंत्री किसी मंत्री को हटा सकता है या त्यागपत्र देने को कह सकता है। प्रधानमंत्री मंत्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करता है और कार्यवाही करता है।

मंत्रीमंडल का अध्यक्ष होने के कारण वह काफी हद तक इसके निर्णयों को प्रभावित कर सकता है। वह विरोधाभासों को दूर करता है और मंत्रियों के कामों में समन्वय बनाता है। प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और मंत्रिमण्डल को जोड़ता है। मंत्रिमण्डल की निर्णयों को राष्ट्रपति सुनता है। राष्ट्रपति सरकार की हर नीति से परिचित है। प्रधानमंत्री की अनुमति के बिना कोई मंत्री राष्ट्रपति से मिल सकता है। राष्ट्रपति को सभी महत्वपूर्ण फैसले प्रधानमंत्री देते हैं। उसकी सलाह पर राष्ट्रपति संसद का अधिवेशन बुला सकता है, उसे स्थगित कर सकता है और यहाँ तक कि उसे भंग कर सकता है। संसद में प्रधानमंत्री सरकार का मुखिया और उसके निर्णयों का प्रतिनिधि होता है। जब कोई मंत्री संसद में या बाहर अपने कार्यों को बचाने में असमर्थ होता है, तो प्रधानमंत्री उनकी सहायता करता है। राष्ट्रपति है। वह देश का नेतृत्व करेगा।

आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री ही मतदान करने के लिए कहता है। प्रधानमंत्री देश की आंतरिक और बाह्य नीतियों का निर्धारण करते हैं। वह निर्गुट देशों की बैठकों, सार्क और संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरे देशों के साथ होने वाले अन्तर्राष्ट्रीय समझौते और संधियाँ प्रधानमंत्री की सहमति से होते हैं। वह देश की नीतियों को प्रभावित करता है। सरकार और संसद में प्रधानमंत्री का अलग स्थान है। इसलिए वह एक बहुत प्रभावशाली अधिकारी बन जाता है। उसके पद और अधिकार भी उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करते हैं।

जवाहरलाल नेहरू या इंदिरा गांधी की तरह, कोई भी प्रधानमंत्री होगा, लेकिन एक प्रधानमंत्री जो दूरदर्शिता नहीं करता या अपने दल से बाहर के लोगों पर निर्भर करता है, वह निश्चित रूप से कमजोर होगा। संसद और देश दोनों का नेता प्रधानमंत्री है। प्रधानमंत्री को अपने दल के हर सदस्य से स्वैच्छिक सहयोग चाहिए। यदि अल्पसंख्यक सरकार में उसे बाहर से समर्थन चाहिए तो प्रधानमंत्री की प्रभावशाली भूमिका कमजोर हो सकती है।

प्रश्न 4. क्या यह कहना उचित है कि ‘राज्यसभा न केवल दूसरा सदन है, बल्कि इसकी स्थिति भी दूसरे दर्जे की है ?’ अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए ।
उत्तर – किसी संसदीय प्रणाली में सदन प्रायः प्रमुख भूमिका निभाता है। हमारे देश में लोकसभा ज्यादा शक्तिशाली है। दोनों सदनों की तुलनात्मक स्थिति को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-

राज्यसभा परोक्ष निर्वाचित तथा आंशिक रूप से मनोनीत सदन है, जबकि लोकसभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचित सदन है। लोकसभा पांच वर्षों की अवधि के लिए बनाई जाती है, लेकिन यह सदन अस्थायी है क्योंकि इसे राष्ट्रपति के आदेश के पहले भी विघटित किया जा सकता है। राज्यसभा, इसके विपरीत, एक स्थायी सदन है जो किसी भी समय विघटित नहीं हो सकता है। साधारण विधेयक के मामले में दोनों को लगभग समान अधिकार हैं, लेकिन अंततः राज्यसभा लोकसभा से अधिक शक्तिशाली होती है। जबकि राज्यसभा केवल औपचारिक अधिकार रखती है, लोकसभा धन विधेयक के संबंध में सर्वोच्च अधिकार रखती है।

क्योंकि मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी रहती है और लोकसभा के बहुमत के समर्थन पर निर्भर रहती है, लोकसभा वास्तव में कार्यपालिका (संघीय मंत्रिपरिषद्) पर नियंत्रण रखती है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करने का अधिकार राज्यसभा और लोकसभा दोनों को मिलता है। दोनों को उच्चतम न्यायाधीश, उच्चतम न्यायाधीश, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति के पदों पर भी समान अधिकार हैं । दोनों सदनों की संविधान संशोधन की शक्ति भी समान है। राज्यसभा को दो विशिष्ट शक्तियाँ प्राप्त हैं-

(क) नवीन अखिल भारतीय सेना के सृजन की तथा महत्त्व का घोषित करने की ।
(ख) राज्य सूची में उल्लिखित किसी विषय को राष्ट्रीय उपर्युक्त तुलना के आधार पर निश्चित रूप से लोकसभा राज्यसभा से ज्यादा शक्तिशाली है, लेकिन यह कहना उचित नहीं भी दूसरा है। होगा कि राज्यसभा न केवल दूसरा सदन है,

प्रश्न 5. सर्वोच्च न्यायालय के गठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारतीय न्याय व्यवस्था की एक विशेषता यह है कि यह पूरे देश में एकीकृत और एकीकृत है। एकमात्र न्यायपालिका श्रेणीबद्ध न्यायालयों को दर्शाती है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय एकल न्याय प्रणाली के शीर्ष पर है और राज्यों के स्तर पर उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालयों के नीचे कई अधीनस्थ न्यायालय होते हैं, जैसे जिला न्यायालय और सैशन जज का न्यायालय, जो क्रमशः दीवानी तथा फौजदारी मुकदमों की सुनवाई करते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय भारत का सर्वोच्च न्यायालय है, जिसमें 25 अन्य न्यायाधीश हैं, मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त। संसद चाहे तो न्यायाधीशों की संख्या बढ़ा सकती है। न्यायाधीशों की संख्या भी बदली गई है। 2005 से, मुख्य न्यायाधीश के अलावा 25 अन्य न्यायाधीश भी हैं। सर्वोच्च न्यायालय में वर्तमान में एक मुख्य न्यायाधीश और 25 अन्य न्यायाधीश कार्यरत हैं। मुख्य न्यायाधीश सहित अन्य चार वरिष्ठ न्यायाधीश कई नामों पर चर्चा करके नामों की सिफारिश करते हैं,

जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है, जब सर्वोच्च न्यायालय में कोई पद रिक्त होता है या होने की संभावना है। 1993 और 1999 में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने यह व्यवस्था बनाई थी। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति अभी भी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त कर सकता है, लेकिन 1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह को मानना चाहिए। कर दी गई है। कालीजियम नामक न्यायाधीशों का समूह अब यह अधिकार रखता है। सर्वोच्च न्यायालय के मुकदमों को सुनने और फैसला करने का अधिकार राष्ट्रपति को न्यायिक अधिकार कहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय को तीन प्रकार के महत्त्वपूर्ण अधिकार प्राप्त हैं-

1. प्रारम्भिक अथवा मूल अधिकार क्षेत्र,
2. अपील सम्बन्धी अधिकार
3. मंत्रणा सम्बन्धी अधिकार क्षेत्र ।

1. प्रारम्भिक अथवा मूल अधिकार क्षेत्र – कुछ मुकदमे सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में ही आते हैं। इसका मतलब यह है कि ऐसे मुकदमे सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय से शुरू होते हैं; वे पहली बार सर्वोच्च न्यायालय में ही दाखिल किए जा सकते हैं, किसी अन्य न्यायालय में नहीं। मूल न्यायाधिकार में निम्नलिखित मुकदमें आते हैं-

(i) (क) ऐसे मुकदमे जिनके एक ओर केन्द्रीय सरकार तथा दूसरी ओर एक या एक से अधिक राज्य सरकारें ।

(ख) ऐसे मुकदमे जिनमें केंद्रीय सरकार के अलावा एक या अधिक राज्य सरकारें और एक या अधिक राज्य सरकारें दूसरी ओर हों।

(ग) ऐसे मुकदमे जिनमें दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवाद हो ।

(ii) सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों को बचाने और लागू करने के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं, इसलिए उसे निर्देश या आदेश देने का अधिकार है।

(iii) जनहित याचिकाएँ भी सीधे सर्वोच्च न्यायालय में ही जा सकती हैं। सुनी

2. अपील सम्बन्धी अधिकार – किसी भी निचली अदालत द्वारा किए गए निर्णय के विरुद्ध की गई अपील को किसी उच्च अदालत द्वारा सुनने की शक्ति को अपील सम्बन्धी न्यायाधिकार कहा जाता है। सर्वोच्च न्यायालय का अपील सम्बन्धी अधिकार क्षेत्र बहुत विशाल है। यह उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुन सकता है। अतः सर्वोच्च न्यायालय में की गई अपील अंतिम अपील होती है। यदि किसी मुकदमें में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय से कोई एक पक्ष संतुष्ट नहीं है तो सर्वोच्च न्यायालय में निर्णय के विरुद्ध अपील कर सकता है। यह अपीलें दीवानी, फौजदारी तथा संवैधानिक मामलों से सम्बन्धित हो सकती हैं।

(i) दीवानी मामले – दीवानी मुकदमे धन, संपत्ति, विवाह, समझौते या किसी सेवा से जुड़े झगड़े को कहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है यदि किसी दीवानी मामले में कोई महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु है जिसकी व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय ने की है। 1972 में संविधान में किए गए 30 वें संशोधन के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय में दीवानी अपील के लिए कोई निम्नतम राशि नहीं है. हालांकि, पहले ऐसे दीवानी मामलों में 20,000 रुपये की कमी थी।

(ii) फौजदारी मामले – फौजदारी मामलों में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है. ऐसा कई बार होता है। निचली अदालत द्वारा दोषमुक्त किए गए व्यक्ति को मृत्युदंड देने पर किसी व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार है। ऐसे मामलों में भी सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है यदि उच्च न्यायालय किसी निचली अदालत से किसी मुकदमें को अपने यहाँ मंगा ले और उस व्यक्ति को दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड सुना दे।

ऐसी स्थिति में बिना किसी प्रमाण-पत्र के भी अपील दायर की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है, सिवाय उपर्युक्त दोनों स्थितियों के। अगर कोई उच्च न्यायालय बता दे कि मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने योग्य है यदि किसी मामले में उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करने से इनकार कर दे कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील के योग्य नहीं है, तो संबंधित व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की संभावना कम होती है। इसलिए, सर्वोच्च न्यायालय ही विशेष अनुमति दे सकता है।

(iii) संवैधानिक मामले – संवैधानिक मामले फौजदारी अपराध या दीवानी झगड़े नहीं होते। यह मुकदमा है जिसके परिणामस्वरूप संविधान की व्याख्या करनी होती है, खासकर मौलिक अधिकारों से संबंधित व्याख्या या अर्थ निकालना। सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे मामलों की सुनवाई केवल तभी हो सकती है जब उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करे कि मामला संवैधानिक मुद्दों से संबंधित है। सर्वोच्च न्यायालय, यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करने से मना कर दे, ऐसे किसी मामले में, जो उसे योग्य लगता है, अपील के लिए विशेष अनुमति दे सकता है।

केंद्रीय स्तर पर शासन के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर– भारत के राष्ट्रपति के पास विधायक अधिकार हैं: निम्नलिखित भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ हैं:

I) उन्हें संसद को बुलाने, सत्रावसान करने और संसद को भंग करने का अधिकार है।
iii) वह भी संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुला सकता है, जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करते हैं।
iii) वह संसद को हर बार आम चुनावों के बाद पहले सत्र की शुरुआत में संबोधित करने का अधिकार रखता है।
iv) संसद के सदनों को संदेश भेजने का अधिकार है, चाहे वह संसद में लंबित विधेयक से संबंधित हो या अन्यथा। विधानसभा के किसी भी सदस्य को कार्यवाही की अध्यक्षता करने के लिए नियुक्त करने का अधिकार उपाध्यक्ष और अध्यक्ष दोनों को होता है।

प्रश्न 2. सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को कैसे अपदस्थ किया जा सकता है?
उत्तर- मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर रहते हैं। न्यायाधीश कार्यकाल पूरा होने से पहले रिटायर हो सकते हैं। विशेष परिस्थितियों में, न्यायाधीश को सेवानिवृत्ति की आयु पूरी होने से पहले निर्धारित प्रक्रिया से अपदस्थ किया जा सकता है। यदि संसद के दोनों सदन अलग-अलग प्रस्ताव पारित करते हैं, तो राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को अयोग्यता या कदाचार के आधार पर हटाता है। इसके लिए सत्र में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों की कुल संख्या का दो प्रतिशत होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की ऐसी कोशिश अभी तक सिर्फ एक बार हुई है। लेकिन संसद उस प्रस्ताव को पारित नहीं कर सकी, इसलिए यह हटाया नहीं जा सकता। इससे स्पष्ट होता है कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल सुरक्षित है और कार्यपालिका उन्हें चाहे तो नहीं हटा सकती।

प्रश्न 3. “ सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक तथा मौलिक अधिकारों का रक्षक है।” व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और सर्वोच्च न्यायालय इसका पालन करता है। यह संसद या कार्यपालिका को इसके किसी भी नियम को तोड़ने नहीं देता। यह सरकार की किसी भी कार्रवाई का न्यायिक पुनरावलोकन कर सकता है जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। न्यायिक पुनरावलोकन सर्वोच्च न्यायालय की यह शक्ति है। सर्वोच्च न्यायालय संबंधित कानून को असंवैधानिक या अवैध घोषित कर सकता है अगर उसे लगता है कि संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन हो रहा है। यह संविधान का संरक्षक भी कहा जा सकता है, क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार देता है। यह लोकतंत्र और संविधान को भी बचाता है। सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका इस मामले में महत्वपूर्ण है।

उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों को निर्देश, आदेश और संवैधानिक उपचार का अधिकार है। इसमें बंदी प्रत्यक्षीकण, परमादेश प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण लेख शामिल हैं। इन्हीं अधिकारों के कारण सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों का प्रहरी और संरक्षक कहा जाता है। इसका अर्थ है कि न्यायालय संविधानिक नियमों का पालन करने का आदेश दे सकता है यदि किसी कानून का उल्लंघन होता है या अधिकार का हनन होता है। ऐसे में भारत के नागरिक मौलिक अधिकारों से सुरक्षित हैं। सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों का हनन करने वाले विधायिका द्वारा पारित कोई भी कानून रद्द करने का अधिकार है। इसने मौलिक अधिकारों को हनन करने वाले कई कानूनों को रद्द कर दिया है। इससे स्पष्ट होता है कि सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।

प्रश्न 4. हमारे दैनिक जीवन में जनहित याचिकाओं के महत्त्व की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – पहले, सर्वोच्च न्यायालय सहित न्यायपालिका केवल ऐसे मुकदमें सुनती थी, जो किसी तरह से प्रभावित होते थे। यह केवल मूल तथा अपील अधिकार क्षेत्र के मुकदमें सुनकर फैसला देता था। लेकिन बाद में जनहित याचिकाओं पर आधारित मुकदमें भी न्यायपालिका ने सुनने लगे। इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति जिसका किसी मामले से सीधा संबंध नहीं है, न्यायालय की जानकारी में कोई जनहित का मामला प्रस्तुत कर सकता है। यह जनहित याचिक को स्वीकार करना या अस्वीकार करना न्यायालय का विशेषाधिकार है। न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती ने जनहित याचिका की अवधारणा की शुरुआत की। अब जनहित याचिका महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि इससे समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को आसानी से न्याय मिलने लगा है। निम्नलिखित उदाहरण पत्रकारों, वकीलों, समाज सेवकों और समाचार पत्रों की रिपोर्टों पर भी आधारित हैं:

बहुत सी जनहित याचिकाएँ न्यायालय ने स्वीकार की हैं। इसके कुछ जनहित याचिकाओं ने अवैध रूप से बंदी बनाए गए लोगों को कई अधिकार दिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कई कैदियों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आधार पर रिहा करने का आदेश दिया है, न कि मुकदमा चलाकर, क्योंकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता किसी न्यायिक व्यवस्था या नौकरशाही की अक्षमता या अयोग्यता से कम नहीं की जा सकती। सर्वोच्च न्यायालय ने बंधुआ मजदूरों, वनवासियों, गंदी बस्तियों के निवासियों, नारी उद्धार गृहों में रहने वाली महिलाओं, बाल सुधार गृहों के बच्चों और बाल मजदूरों को मुक्त करने के लिए बहुत कुछ किया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण प्रदूषण के मामले में कानपुर, दिल्ली और अन्य जगहों पर कुछ कारखानों को बंद करने का आदेश दिया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अधिकाधिक फैसले लेने से जनहित याचिकाओं का क्षेत्र बढ़ गया है। अब कोई भी व्यक्ति सिर्फ एक पत्र लिखकर न्यायालय तक पहुँच सकता है. यदि सर्वोच्च न्यायालय को लगता है कि मामला जनहित का है, तो वह पत्र को याचिका मान सकता है और सुनवाई कर सकता है ताकि जनहित की रक्षा की जा सके। न्यायिक सक्रियतावाद ने जनहित याचिकाओं को बढ़ावा दिया है।

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