प्रश्न 10. मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक जीवन की विशेषतायें बताइये |
उत्तर- (1) सामन्तवादी अर्थव्यवस्था – मध्यकाल में आर्थिक जीवन सामन्तवादी था। सामन्त शारीरिक श्रम नहीं करते थे। वे किसानों के श्रम पर पलते थे ।
(2) गाँव आत्मनिर्भर थे – प्रारम्भ में आन्तरिक व विदेशी व्यापार बहुत कम होता था तथा सभी गाँव एवं मेनर आत्मनिर्भर होते थे ।
(3) नगरों का तीव्रता से विकास – धर्मयुद्धों के बाद निरन्तर सामन्तवाद का पतन हुआ एवं नगरों का विकास तीव्र गति से हुआ।
(4) श्रेणियाँ-व्यापारियों एवं शिल्पियों की श्रेणियां बनी हुई थीं, जो क्रमशः व्यापरियों के हितों की रक्षा करती थीं ।
प्रश्न 11. मध्यकालीन अरब की सामाजिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर- 1. वर्ग-उच्च वर्ग में खलीफा, व अन्य उच्च राजनीतिक, धार्मिक और सैनिक अधिकारी आते थे । मध्य वर्ग में विद्वान, लेखक, व्यावसायिक जैसे हकीम, काजी और अध्यापक और व्यापारी लोग आते थे । निम्न वर्ग में दस्तकार और किसान आते थे । दास समाज का चौथा और अन्तिम वर्ग था, जिनकी संख्या सबसे अधिक होती थी ।
2. स्त्रियों की दशा – स्त्रियां घर के अन्दर ही रहती थीं । और घर पर ही उनकी शिक्षा का उचित प्रबंध किया जाता था और समाज में उन्हें सम्मान दिया जाता था ।
प्रश्न 12. यूरोपीय समाज में सामन्तीय वर्गों का वर्णन कीजिए। मध्यकाल के अंतिम वर्षों में किस नये वर्ग का उदय हुआ ?
उत्तर – मध्यकालीन युग में पश्चिमी यूरोपीय समाज के सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में सामंतवाद का जन्म हुआ था । यह व्यवस्था क्रमवार व्यवस्था थी । राजा सीधे बैरन अथवा नाइट को आदेश नहीं दे सकता था । राजा ड्यूक अथवा अर्ल बैरन को आदेश देता था । बैरन नाइट को आदेश देते थे । सैनिक सहायता की माँग भी इसी क्रमवारीय तरीके से की जा सकती थी । सामंती व्यवस्था में समाज में दो प्रमुख वर्ग थे – उच्चतर अर्थात सम्पन्न और दूसरा निम्नतर अथवा विपन्न वर्ग ।
(i) उच्चतर वर्ग–इस वर्ग में राजा, ड्यूक अथवा अर्ल, बैरन और नाइट सम्मिलित थे। लोग विलास का जीवन व्यतीत करते थे । ड्यूकों, अर्लो, बैरनों का व्यक्तित्व उनकी सैनिक क्षमता से आंका जाता था। लॉर्ड आपस में लड़ते रहते थे तथा सर्वशक्तिशाली लॉर्ड को सामन्ती समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था ।
(ii) निम्नतर वर्ग – निम्न वर्ग में स्वतन्त्र किसान, कृषिदास, सर्फ सम्मिलित थे । दस्तकारों, शिल्पकारों की गणना भी निम्न वर्ग में की जाती थी । सामंती व्यवस्था में इनकी स्थिति अच्छी नहीं थी तथा यह वर्ग कष्टमय जीवन व्यतीत करता था । यद्यपि इस वर्ग के लोगों की उत्पादन में बहुत बड़ी भूमिका होती थी, परन्तु उन्हें जीवित रहने के लिए थोड़ा-बहुत धन प्राप्त होता था। लॉर्ड किसानों तथा सर्फी का शोषण करते थे । मध्य युग के अन्तिम चरणों में व्यापारी तथा उत्पादक वर्ग का उदय हुआ। मध्यकालीन यूरोपीय समाज में धीरे-धीरे व्यापार में बढ़ोतरी होने लगी। नए-नए नगरों का निर्माण होने लगा । व्यापारी वर्ग तथा उत्पाद वर्ग का समाज में महत्त्व बढ़ने लगा । फलस्वरूप मध् यकालीन युग के अन्तिम चरणों में व्यापारी उत्पादकीय वर्ग का समाज के सामाजिक, आर्थिक और बाद में राजनीतिक जीवन में प्रभाव बढ़ गया ।
प्रश्न 13. मध्यकाल में चर्च के योगदान का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – मध्यकालीन युग में चर्च का योगदान बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण था। चर्च के योगदान का वर्णन हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं-
मध्यकालीन युग में चर्च का दायित्व शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार करना था। लोगों को चर्च में लैटिन भाषा के माध्यम से व्याकरण, तर्कशास्त्र, अंकगणित तथा धर्म-दर्शन की शिक्षा दी जाती थी । मध्य युग के प्रारम्भ में अज्ञानता का बोलबाला था । चर्च के इस दायित्व ने ज्ञान दीप को जलाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया । नाटकों के द्वारा चर्च लोगों को सरल, सादा तथा साधारण जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करता था । चमत्कारी नाटकों में धार्मिक सन्तों के जीवन को दर्शाया जाता था और नैतिक नाटकों में पुण्य और पाप के संघर्ष को दिखलाया जाता था । गिरजाघरों में सामूहिक गान का प्रचलन था । पेशेवर गायक तथा विद्यार्थी धर्मेतर गीत गाया करते थे। इस प्रकार लोगों के जीवन को नैतिक दृष्टि से उच्चतर बनाने के लिए नाटकों तथा संगीत की भी सहायता ली जाती थी । मध्यकालीन युग में वास्तुकला चर्च अथवा गिरजाघर तक सीमित थी । गिरजाघर की वास्तुकला सादी, परन्तु प्रभावपूर्ण । गिरजाघर में विस्तृत हॉल थे जिनके दोनों ओर स्तम्भों की पंक्तियाँ थीं । छत गुम्बदाकार तथा दीवारें ठोस और मोटी बनाई जाती थीं। इस प्रकार मध्य युग में चर्च की भूमिका बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण थी ।
प्रश्न 14. मध्यकाल के पश्चिमी देशों ने पूर्व के देशों से किन क्षेत्रों में ज्ञान प्राप्त किया ?
उत्तर – मध्यकालीन युग में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से पूर्वी देशों ने पश्चिमी देशों से बहुत कुछ सीखा था। पश्चिमी देशों ने विभिन्न पूर्वी देशों से निम्नलिखित बातें सीखीं-
(1) अरब द्वारा – पश्चिमी देशों ने अरबों से कई बातें सीखीं। जैसे-
(i) इस्लामी धर्म की शिक्षाएँ ।
(ii) चिकित्सा विज्ञान |
(iii) अरबों ने भारतीयों से अंक- प्रणाली सीखी, जो उन्होंने पश्चिमी देशों को सिखाईं ।
(iv) रसायन मिश्रण जैसे सोडियम, सिल्वर, शोरे तथा गंधक के तेजाब आदि का ज्ञान अरबों ने पश्चिमी देशों को
दिया ।
(v) अरब दर्शन की महत्ता ।
(2) भारत द्वारा –
(i) भारतीय नगर व्यवस्था की यूरोपीय की । देशों ने प्रशंसा की । यूरोपीय देशों ने आगरा तथा दिल्ली की प्रशंसा की ।
(ii) व्यापार तथा उद्योग संचालन की कुशल व्यवस्था भारतीयों द्वारा बनाई गई वस्तुएँ जैसे-सूती, रेशमी तथा ऊनी कपड़े, कागज, लकड़ी तथा धातु की वस्तुएँ विदेशों में काफी लोकप्रिय थीं ।
(3) चीनियों द्वारा –
(i) कागज के नोटों का प्रचलन ।
(ii) कुतुबनुमा बनाने की कला ।
(iii) बारूद का आविष्कार ।
(iv) लोहा तथा इस्पात गलाने की क्रिया ।
(v) छापने की कला का आविष्कार ।
(vi) सिक्के बनाने की क्रिया ।
(vii) ज्योतिष सम्बन्धी प्रेक्षण के औजारों और मशीनी घड़ियों का आविष्कार ।
प्रश्न 15 सिक्ख धर्म के संस्थापक कौन थे? सिक्ख धर्म की प्रमुख शिक्षायें बताइये ।
उत्तर-सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव थे । वे सादा तथा आडम्बरविहीन जीवन में विश्वास करते थे । उनकी प्रमुख शिक्षायें निम्नलिखित थीं-
(1) मनुष्य के सत्कर्म तथा प्रेम एवं शांति महत्त्वपूर्ण हैं |
(2) ईश्वर मनुष्य से उसकी जाति अथवा सम्प्रदाय नहीं, वरन् उसके कार्यों के विषय में पूछेगा ।
(3) कर्मकाण्डी औपचारिकताओं का विरोध करना ।
( 4 ) ईश्वर की एकता में विश्वास करना ।
(5) मूर्तिपूजा तथा जाति-व्यवस्था का विरोध करना ।
प्रश्न 16. धर्म, वास्तुकला तथा कलाओं, चित्रकला के क्षेत्र में मध्यकाल के प्रमुख योगदान क्या – क्या हैं?
उत्तर – मध्यकाल कहते हैं । इस काल में भारत में धर्म, वास्तुकला, कला, साहित्य तथा भाषाओं के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए । धर्म के क्षेत्र में मध्यकाल का प्रमुख योगदान – मध्यकाल में इस्लाम भारत का दूसरा विशाल धर्म बन गया । इस्लाम धर्म के अनुयायी देश के लगभग समस्त भागों में फैले हुए थे । इस्लाम धर्म के प्रादुर्भाव के साथ-साथ दो महान् धार्मिक आंदोलन भी अस्तित्व में आये । भक्ति आंदोलन, जिसके प्रमुख प्रतिनिधि महान् संत कबीर तथा गुरु नानक थे, इन्होंने धार्मिक अंधविश्वासों तथा कर्मकांडों पर घोर प्रहार किया । द्वितीय आंदोलन रहस्यवादी मुस्लिम सूफी संतों का था। इनके द्वारा पारस्परिक बंधुत्व का प्रचार किया गया ।
वास्तुकला का मध्यकाल में योगदान – भारत में तुर्कों के आगमन से भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में एक नये युग का सूत्रपात हुआ । तुर्कों द्वारा ईरान, अरब तथा मध्य एशिया में विकसित वास्तुकला की विद्या को भारत में लाया गया । सल्तनत काल के शासकों द्वारा वास्तुकला को अत्यधिक बढ़ावा दिया गया। मुगलकाल में वास्तुकला में समन्वय शैली के दर्शन होते हैं । कुतुब मीनार, गयासुद्दीन तुगलक का मकबरा, लोधी का मकबरा आदि प्रमुख निर्माण कार्य सल्तनतकाल में हुए । वास्तुकला ‘भांति चित्रकला भी मध्यकाल में अपने चरमोत्कर्ष पर थी । मुगल शासकों के साथ ईरानी चित्रकला भी भारत आयी। मीर सैयद अली, मुकुंद, बासावान, दसवंत, पिस्कीन तथा अब्दुस्समद इस काल के प्रसिद्ध चित्रकार थे। जहाँगीर के समय अनेक प्रसिद्ध चित्रकार जैसे मुराद, नादि, बिशनदास आदि थे । चित्रकला की दो प्रमुख शैलियाँ – राजस्थानी तथा पहाड़ी शैलियाँ थीं ।
प्रश्न 17. महमूद गजनवी का भारत अभियान मोहम्मद गौरी से किस प्रकार भिन्न था ?
उत्तर – महमूद गजनवी और मोहम्मद गौरी के भारत अभियानों में अन्तर-
1. दोनों के उद्देश्य – मोहम्मद गौरी और महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण का उद्देश्य अलग था। महमूद गजनवी का लक्ष्य था पंजाब और भारत के बड़े पैमाने पर धन प्राप्त करना। उसकी मुख्य इच्छा थी अपनी राजधानी गजनी को विश्व का सबसे सुंदर शहर बनाना, जिसके लिए उसे भारत की संपत्ति मिलनी पड़ी। दूसरी ओर, मोहम्मद गौरी की इच्छा थी कि भारत पर एक साम्राज्य बनाया जाए। वह मध्य एशिया भी जाना चाहता था, लेकिन ख्वाजनी सेनाओं ने उसका साहस कम कर दिया, तो वह भारत चला गया। महमूद गजनवी ने भारतीय राज्यों पर आक्रमण करने के दौरान बहुत कम मुश्किलों का सामना किया, इसलिए वे कमजोर और ध्वस्त हो गए।
2. सैनिक सफलताएँ – एक सैनिक और योद्धा की दृष्टि से महमूद गजनवी अधिक सफल रहा । मोहम्मद गौरी की तुलना में 1001 से 1026 ई. के बीच उसने भारत पर लगभग हर वर्ष आक्रमण किया और भारत और मध्य एशिया में एक युद्ध भी नहीं हारा । उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर, देहली और अजमेर की संयुक्त सेना भी उसे पराजित नहीं कर सकी । वह विशाल शक्ति और बेमिसाल सफलता के साथ आगे बढ़ा, परन्तु गौरी के आक्रमण असफल भी होते रहे ।
3. राजनीतिक सफलताएँ – मोहम्मद गौरी की सफलताएँ गजनवी की सफलताओं से अधिक थीं। इसलिए मुहम्मद गोरी ने तुर्की का साम्राज्य भारत में बनाया। उसकी जीत अपने विस्तार से भी अधिक थी। उसने एशिया से यमुना तक अपना देश बनाया। यद्यपि वह दो बार हार गया। लेकिन मुहम्मद गौरी ने अपने साहस और वीरता की बदौलत उत्तरी भारत में राज्य बनाया। उसने अपने अनुकूल गुलाम और जनरल कुतुबुद्दीन ऐबक को छोड़ दिया क्योंकि वह भारतीय अधिकारों को ज्यों-का-त्यों बचाना चाहता था। इस अभियान का उद्देश्य राजनीतिक लक्ष्य प्राप्त करना था और धन जुटाना था। इन दोनों में से किसी ने भी भारत में इस्लाम को प्रोत्साहित करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की।
प्रश्न 18. सल्तनतकालीन वास्तुकला की मुख्य विशेषताओं का वर्णन दीजिए।
उत्तर- सल्तनतकाल में वास्तुकला की मुख्य विशेषतायें-
1. इस काल के भवनों की प्रमुख विशेषता हिन्दू और मुस्लिम कला का मिश्रण है | आरम्भ के भवनों में तो स्पष्ट रूप से हिन्दू का दिखाई देती है, परन्तु धीरे-धीरे इन पर मुस्लिम कला ( ईरानी ) की छाप पड़ने लगी ।
2. इस काल के भवनों में विभिन्न रंगों के पत्थर और संगमरमर का प्रयोग किया गया है। इस काल के भवनों मे स्तम्भों का कम प्रयोग किया गया है। अच्छे किस्म के चूने से छतों का निर्माण हुआ ।
3. सल्तनतकाल में भवनों का निर्माण वैज्ञानिक ढंग से किया गया । इसके पूर्व भवनों का निर्माण सीधा-सादा होता था । उ के कलाकारों ने रोम से सीखी गई कला का प्रयोग इन भवनों में किया । इस काल में सर्वप्रथम गुम्बदाकार और मेहराबदार भवन बनाने की प्रथा आरम्भ हुई । अधिकांश भवनों में गुम्बदों और मेहराबों का प्रयोग किया गया है । इसके कारण भवनों के सौन्दर्य में चार चाँद लग गए ।
4. इस्लाम धर्म के अनुयायी होने के कारण सुल्तानों ने अपने भवनों को पशुओं को आकृतियों से सजाने का प्रयास नहीं किया । सजावट के लिए फूल, पत्तियों, रेखावृत्तियों और कुरान की आयतों आदि को अपनाया है ।
5. सल्तनतकालीन कलाकारों ने भवनों में नुकीले मेहराबों, संकरी और ऊँची मीनारों तथा गुम्बदों का प्रयोग किया । अनेक मेहराबें नुकीले आकार की हैं । इनके लिए किसी आधार या डाट का प्रयोग नहीं किया गया है, बल्कि पत्थरों को ही आपस में जोड़ दिया है । कहीं-कहीं मेहराब अर्ध गोलाकार हैं। मीनारें अत्यधिक ऊँची बनायी गयी हैं। कुतुबमीनार इसका जीता-जागता उदाहरण है ।
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