NIOS Class 10 Social Science Chapter 19 राज्य स्तर पर शासन

NIOS Class 10 Social Science Chapter 19 राज्य स्तर पर शासन

NIOS Class 10 Social Science Chapter 19 Governance At The State Level – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 19 (राज्य स्तर पर शासन) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Social Science Chapter 19 Governance At The State Level दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Social Science Chapter 19 राज्य स्तर पर शासन के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Social Science Chapter 19 Solution – राज्य स्तर पर शासन

प्रश्न 1. राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है? राज्यपाल के कौन-कौन से अधिकार एवं कार्य हैं ?
उत्तर- भारत के राष्ट्रपति राज्यपालों को चुनता है। राज्यपाल को उसी राज्य में दोबारा नियुक्त भी किया जा सकता है। इससे स्पष्ट होता है कि राज्यपाल नियुक्त होता है, नहीं चुना जाता है। राज्यपाल निम्नलिखित योग्यताओं को पूरा करना चाहिए:
1. वह भारत का नागरिक हो।
2. उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष हो ।
3. वह अपने कार्यकाल में किसी अन्य लाभ के पद पर कार्यरत न हो।

ऐसा भी होता है कि राज्यपाल नियुक्त किसी व्यक्ति को संसद के किसी सदन, राज्य विधायिका, राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर मंत्रिपरिषद का सदस्य या पदमुक्त माना जाता है। राज्यपाल को पाँच वर्षों के लिए नियुक्त किया जाता है, लेकिन आम तौर पर वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद पर रहता है। वह काम समाप्त होने से पहले भी त्यागपत्र दे सकता है। राष्ट्रपति को समय से पहले हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के परामर्श से ही राज्यपाल को नियुक्त या बर्खास्त करता है।

राजभवन उसे मुफ्त घर देता है। समय-समय पर उसके वेतन, भत्ते तथा अन्य सुविधाओं पर कानून बनाया जाता है, लेकिन किसी भी राज्यपाल के कार्यकाल में उसका वेतन कम नहीं किया जा सकता।राज्यपाल के अधिकार एवं कार्य राज्यपाल की शक्तियों एवं कार्यों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है –
(क) राज्य प्रमुख के रूप में तथा
(ख) केंद्रीय सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए राज्य की कार्यपालिका, विधायी, वित्तीय तथा क्षमा करने की शक्तियाँ शामिल हैं,, जिनका वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-

1. कार्यपालिका सम्बन्धी कार्य – राज्यपाल राज्य की सभी कार्यपालिका की जिम्मेदारी निभाता है। वह मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है, मुख्यमंत्री की सलाह से। विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता या किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर कुछ दलों के गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है, जैसा कि पुरानी परंपरा है।
विभागों को अन्य मंत्रियों को मुख्यमंत्री की सलाह से बाँटता है। राज्यपाल भी राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करता है। उच्च न्यायालय को छोड़कर राज्य के सभी न्यायालयों के न्यायाधीशों को चुनता है। मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद से परामर्श और सहायता लेकर राज्यपाल अपने कर्तव्यों को पूरा करता है।

2. विधायी शक्तियाँ – राज्यपाल बहुत सी विधायी अधिकारों के साथ राज्य व्यवस्थापिका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। राज्य विधानमण्डल की बैठक बुलाने, स्थगित करने और स्थगित करने का अधिकार उसे है। वह मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री के परामर्श पर भी चाहे तो विधानसभा को भंग कर सकता है। वह दोनों सदनों की संयुक्त बैठक और राज्य विधानसभा के सत्र को संबोधित करता है। वह संदेश किसी एक सदन या दोनों सदनों को भेज सकता है।

यदि राज्यपाल को लगे कि आंग्ल भारतीय समुदाय को राज्य विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, तो वह एक सदस्य को विधानसभा में नियुक्त कर सकता है। जिन राज्यों में विधान परिषद है, राज्यपाल विधानपरिषद में कुल सदस्यों का 1/6 सदस्यों को चुनता है। ये मनोनीत सदस्य साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारिता या समाज-सेवा के क्षेत्र में प्रसिद्ध व्यक्ति होंगे। किसी भी विधेयक को कानून बनाने के लिए राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है। इस मामले में, राज्यपाल के पास निम्नलिखित विकल्प हैं:

(क) राज्यपाल विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर दे। ऐसा होने पर विधेयक कानून बन है।
(ख) वह विधेयक को स्वीकृति देने के बजाए उसे अपने पास रख सकता है। ऐसी स्थिति में विधेयक कानून नहीं बन सकता।
(ग) राज्यपाल विधेयक को कुछ संशोधनों के साथ पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है। सदन इस विधेयक को संशोधित करके या मूल रूप से पारित करके राज्यपाल को भेज दे तो वह इसे स्वीकार नहीं कर सकता।
(घ) वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है।

विधानमंडल की अगली बैठक शुरू होने के छह सप्ताह के भीतर राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार मिलता है, जब राज्य विधायिका का अधिवेशन चल रहा है। निर्दिष्ट अवधि में राज्य विधानसभा अध्यादेश की जगह एक नया कानून बना सकती है। विधायी शक्तियों का प्रयोग भी राज्यपाल केवल मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के परामर्श से कर सकता है, जैसे कार्यकारिणी सम्बन्धी शक्तियों का।

3. वित्तीय शक्तियाँ – राज्यपाल को निम्नलिखित वित्तीय शक्तियाँ प्राप्त होती हैं-
(क) राज्य विधानसभा में कोई भी धन विधेयक राज्यपाल की पूर्व अनुमति के बिना प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
(ख) राज्यपाल ही विधानसभा में राज्य का वार्षिक बजट और अनुपूरक बजट प्रस्तुत करता है।
(ग) राज्य की आकस्मिक निधि पर राज्यपाल का नियंत्रण होता है।

4. क्षमादान की शक्ति- राज्यपाल राज्य कानून के सिलसिले में दंडित व्यक्ति की सजा को माफ तथा स्थगित व कम कर सकता है।

प्रश्न 2. राज्य मंत्रिपरिषद का गठन कैसे होता है?
उत्तर – मुख्यमंत्री को राज्यपाल नियुक्त करता है। मुख्यमंत्री पद पर राज्यपाल विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को नियुक्त करता है। बाकी मंत्रियों को भी मुख्यमंत्री की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है। मंत्रियों को मंत्रिपरिषद में शामिल होने के लिए राज्य विधायिका के किसी एक सदन का सदस्य होना चाहिए। मंत्री कोई भी व्यक्ति हो सकता है जो राज्य विधायिका का सदस्य नहीं है, लेकिन उसे छह महीने के अंदर राज्य विधायिका का सदस्य बनना होगा, अन्यथा उसका पद समाप्त हो जाएगा। राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर, मंत्रियों को विभाग देता है।

प्रश्न 3. राज्य विधायिका के संगठन, अधिकार एवं कार्यों का परीक्षण कीजिए ।
उत्तर-विधायिका को कुछ राज्यों में दो सदनों से चुना जाता है। विधायिका ज्यादातर राज्यों में सदनीय है। राज्य विधायिका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा राज्यपाल है। विधानसभा एक सदनीय विधायिका में होती है; द्विसदनीय विधायिका में निम्न सदन (उच्च सदन) और दूसरी विधान परिषद (नीचे सदन) होती है। जिन राज्यों में द्विसदनीय विधायिका है, विधानसभा वास्तविक विधायिका होती है। भारतीय संविधान के अनुसार, राज्य विधानसभा में 500 से अधिक या 60 से कम सदस्य नहीं होंगे, लेकिन गोवा, सिक्किम, मिजोरम जैसे बहुत छोटे राज्यों में 60 से कम सदस्य होते हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को विधानसभा में सीटें मिली हैं।

विधानसभा एक चुना हुआ सदन है। नागरिकों ने सार्वभौम वयस्क मताधिकार के आधार पर इसके सदस्य चुने हैं। विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का है। लेकिन राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर, कार्यकाल के पूर्व भी विधानसभा को भंग कर सकता है। विधान परिषद राज्य विधायिका के दूसरे अर्थात उच्च सदन है। इसके सदस्यों की संख्या चार दशक से कम या राज्य विधानसभा के एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती। विधान परिषद की संरचना निम्न प्रकार होती है-

1. राज्य के स्थानीय निकायों (नगरपालिकाओं, जिला बोर्डों और अन्य) इसके 1/3 निर्वाचित करते हैं।
2. इसके 1/3 सदस्य राज्य विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं।
3. इसके 1/12 सदस्य राज्य क्षेत्र में कम से कम तीन वर्ष के स्नातक होने वाले निर्वाचक मण्डलों द्वारा चुने जाते हैं।
4. इसके 1/12 सदस्यों को राज्य के माध्यमिक स्कूलों में कम-से-कम तीन वर्षों से काम कर रहे निर्वाचक मण्डलों द्वारा चुना जाता है।
5. शेष 1/6 सदस्य राज्य के राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।

विधान परिषद भंग नहीं होती क्योंकि यह एक स्थायी सदन है। इसके सदस्य छह वर्ष के लिए चुने जाते हैं। प्रत्येक दो वर्ष में इसके 1/3 सदस्य निवृत्त होते हैं। राज्यविधायिका की बैठकें कम से कम दो बार प्रति वर्ष होती हैं। लेकिन दो सत्रों के बीच का समय छह महीने से अधिक नहीं हो सकता। राज्य विधानसभा तथा विधान परिषद अपने पदाधिकारियों को चुनती है, जिनमें विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा उपाध्यक्ष, विधान परिषद अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष शामिल हैं ।

राज्य विधायिका निम्न प्रकार के कार्य करती है-
1. विधायी कार्य – विधानसभा को विधि निर्माण का अधिकार है। सभी कानून इसके द्वारा पारित किए जात सकते हैं।

2. कार्यपालिका पर नियंत्रण – राज्य विधायिका कार्यपालिका पर अधिकार है। विधानसभा और मंत्रिपरिषद दोनों के प्रति उत्तरदायी हैं। वह तब तक बनी रहती है जब तक विधानसभा उसे मानती है। इसके अलावा, विधायिका ध्यानाकर्षण सूचनाओं, स्थगन प्रस्तावों और पूरक प्रश्नों से सरकार पर नियंत्रण रखती है।

3. निर्वाचन कार्य – राष्ट्रपति चुनाव के लिए बने निर्वाचक मण्डल में विधानसभा से चुने गए सदस्य शामिल हैं। विधान परिषद के 1/3 सदस्यों और राज्यसभा के सदस्यों को इसके सदस्य चुनते हैं।

4. संविधान संशोधनों से संबंधित कार्य- राज्य विधायिका का सबसे बड़ा काम संविधान संशोधन करना है। संसद के दोनों सदनों में कुछ संविधान संशोधनों को लागू करने के लिए, कम से कम आधे राज्यों के विधानसभाओं के अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4. उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्रों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश के अलावा अन्य न्यायाधीश होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर नामित करता है। प्रत्येक उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या समान नहीं है। राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त करता है राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेते हैं। वह भी संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श ले सकता है। राष्ट्रपति अन्य न्यायाधीशों को नियुक्त करते समय संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श ले सकते हैं।

भारत के मुख्य न्यायाधीश को दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर सकते हैं। भारत में अब राज्य से बाहर के व्यक्ति को ही उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया जाता है। संबंधित राज्य, राज्यों या संघ शासित क्षेत्रों की प्रादेशिक सीमा तक किसी उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार होगा। उच्च न्यायालय को अपील और प्रारंभिक सुनवाई का अधिकार है। कुछ मुकदमें प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अधीन सीधे उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए जा सकते हैं। अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय के समक्ष अपील की जाती है, जो अपीलीय क्षेत्राधिकार में आता है। मौलिक अधिकारों और उच्च वैधानिक अधिकारों को प्रवर्तित करने का अधिकार उच्च न्यायालय को है। इस मामले में उच्च न्यायालय को ‘रिट’ जारी करने का अधिकार है।

संसद तथा राज्य विधानमण्डल के चुनावों से संबंधित याचिकाओं पर भी उच्च न्यायालय अपने प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अधीन सुनवाई कर सकता है। यदि उच्च न्यायालय को लगता है कि उसके अधीनस्थ किसी न्यायालय में चल रहे किसी मामले से कानून का कोई महत्त्वपूर्ण प्रश्न जुड़ा हुआ है, तो वह उस मामले को अपने पास मंगा सकता है। वह स्वयं निपटारा कर सकता है या मामले को पुनः संबंधित अधीनस्थ न्यायालय के पास निपटारे के लिए भेज सकता है। उच्च न्यायालय भी एक अपीलीय न्यायालय है। उच्च न्यायालय को जिला स्तर पर स्थित सभी अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनने का अधिकार है। दीवानी मामलों में जिला न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

सूत्र न्यायालय ने सात वर्ष या इससे अधिक की सजा दी हो तो उसके फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। मृत्युदण्ड को उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि करना अनिवार्य है। उच्च न्यायालय के अधीन आने वाले सभी अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण और अधीक्षक का अधिकार है। उच्च न्यायालय भी राज्य का अभिलेख न्यायालय है। उच्च न्यायालय के फैसलों को सभी अधीनस्थ न्यायालय मानते हैं | उच्च न्यायालय किसी को भी बदनाम या अपमानित कर सकता है।

प्रश्न 5. अधीनस्थ न्यायालयों के द्वारा किन प्रकार के मामलों की सुनवाई होती है ?
उत्तर- भारत में एकीकृत न्यायपालिका है । जिला और अनुमंडल स्तरों पर अधीनस्थ न्यायालय उच्च न्यायालय के अधीन हैं। देश भर में अधीनस्थ न्यायालयों की प्रणाली और कार्य प्रणाली में काफी समानता है। अधीनस्थ न्यायालयों के दो प्रमुख प्रकार हैं-

(i) दीवानी न्यायालय – ऐसे न्यायालयों में सम्पत्ति, संपत्ति का अंतरण, मुद्रा लेन-देन, अनुबंध, किरायेदारी अधिकार, विवाह संबंधी विवाद, तलाक आदि से संबंधित वादों का निपटारा किया जाता है । प्रत्येक जिले में जिला न्यायाधीश, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, वरीय अधीनस्थ न्यायाधीश, अधीनस्थ न्यायाधीश तथा मुन्सिफ के न्यायालय हैं । जिला न्यायाधीश जिला न्यायालय का अध्यक्ष होता है। जिले की निचली न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ जिला न्यायालय में अपील की जा सकती है। राज्यपाल उच्च न्यायालय के साथ चर्चा करके जिला न्यायाधीश और अतिरिक्त जिला न्यायाधीश नियुक्त करता है। राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा न्यायिक सेवा के लिए आयोजित प्रतियोगी परीक्षा से अन्य सभी अधीनस्थ न्यायाधीश चुने जाते हैं।

(ii) फौजदारी न्यायालय – इन न्यायालयों में चोरी, डकैती, लूट, मार-पीट, अपहरण आदि मामलों की सुनवाई होती है, जो सत्र न्यायाधीश के रूप में जिला न्यायाधीश फौजदारी मामलों की सुनवाई करता है। आपराधिक मामलों में जिला स्तर पर सर्वोच्च न्यायालय सत्र न्यायाधीश का न्यायालय होता है।

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