NIOS Class 10 Social Science Chapter 16 मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्त्तव्य
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NIOS Class 10 Social Science Chapter 16 Solution – मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्त्तव्य
प्रश्न 1. हमारे दैनिक जीवन में मूलाधिकारों के महत्त्व की व्याख्या कीजिए। किस मूल अधिकार को आप अपने जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण समझते हैं तथा क्यों ?
उत्तर- हमारे दैनिक जीवन में मूल अधिकारों का अतिक्रमण और उल्लंघन एक चिंता का विषय बन गया है। यही कारण है कि हमारा संविधान विधायिका और कार्यपालिका को इन अधिकारों को प्रतिबंधित करने की अनुमति नहीं देता है। यह अधिकार हमारे मूल अधिकारों को बचाता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 उसे संवैधानिक उपचारों का अधिकार बताता है। हम न्याय की मांग कर सकते हैं अगर हमारे किसी मूलाधिकार का उल्लंघन होता है। हम सीधे उच्चतम न्यायालय में जा सकते हैं, जो इन मूलाधिकारों को लागू करने के लिए आदेश, आदेश या रिट जारी कर सकता है।
प्रश्न 2. संविधान द्वारा हमें प्रत्याभूत छह मूल अधिकारों को लिखिए।
उत्तर – भारतीय संविधान नागरिकों को छह मौलिक अधिकार प्रदान करता है। जो निम्न प्रकार हैं-
(1) समानता का अधिकार ।
(2) स्वतंत्रता का अधिकार ।
(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार ।
(4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ।
(5) सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार ।
(6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।
प्रश्न 3. शिक्षा का अधिकार भारत में निरक्षरता को दूर करने में कहां तक सक्षम होगा? व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन ने शिक्षा का अधिकार मूलाधिकारों के अध्याय में एक नया अनुच्छेद 211 जोड़ा। इसमें छह से चौदह वर्ष के सभी बच्चे अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का दावा करने का अधिकार है। निरक्षरता से देश को मुक्त करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन 2009 में संसद ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया था। इस अधिनियम का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को जो भारत में स्कूलों से बाहर हैं, उन्हें फिर से स्कूलों तक लाना है और उन्हें उनका अधिकारप्राप्त गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलना सुनिश्चित करना है।
प्रश्न 4. धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के मुख्य प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारत में बहुत से धर्म हैं। भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। लेकिन किसी भी धर्म को दूसरे धर्मों से अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना गया है। धर्मों में समानता है। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत, प्रत्येक नागरिक को अपने मनपसंद धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है। अर्थात् राजकीय धर्म नहीं है। धर्म कोई निर्णय नहीं बनाएगा। राजनीति और धर्म अलग होंगे, लेकिन धार्मिक समुदाय शांतिपूर्वक अपने धर्म का प्रचार और प्रसार करने के लिए परोपकारी संस्थाएँ बना सकते हैं। अल्पसंख्यक समुदायों के पास कुछ विशेषाधिकार हैं।
प्रश्न 5. स्वतंत्रता के अधिकार पर लगाए गए किन्हीं तीन प्रतिबंधों पर प्रकाश डालिए। आपके मत में क्या ये प्रतिबंध न्यायसंगत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए ।
उत्तर- स्वतंत्रताओं का उद्देश्य लोकतंत्र के लिए समुचित वातावरण बनाए रखना है। हालांकि संविधान राज्य को कुछ युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने का अधिकार देता है-
1. भारत की प्रभुता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या अपराध उद्दीपन पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
2: संघों और संस्थाओं की स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाया जा सकता है, क्योंकि यह भारत की प्रभुता, अखण्डता, लोक व्यवस्था और सदाचार के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है।
3. शांतिपूर्ण तरीके से शांतिपूर्ण बैठक करने की
4. भारत की प्रभुता, अखण्डता और लोक व्यवस्था के हितों में स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। भारत के राज्य क्षेत्र में बस जाने की स्वतंत्रता और आम जनता के हितों या किसी विशिष्ट जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए आवश्यक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
5. आम जनता के हितों के लिए कोई वृत्ति, आजीविका, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता पर ठीक से प्रतिबंध लगाया जा सकता है। राज्य कोई वृत्ति, आजीविका, व्यापार या कारोबार करने के लिए आवश्यक व्यावसायिक या तकनीकी क्षमता दे सकता है।
प्रश्न 6. क्या आप सहमत हैं कि भारत के संविधान में मूलाधिकार परिलक्षित होते हैं ?
उत्तर- भारतीय संविधान में नागरिकों को छह मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(1) समानता का अधिकार – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में समानता का अधिकार बताया गया है। भारतीय संविधान का चौथा अनुच्छेद कहता है कि राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के सामने समता या सुरक्षा से वंचित नहीं करेगा। भारतीय संघ का संविधान कहता है कि सभी नागरिक समान होंगे। धर्म, जाति, वर्ग, रंग तथा लिंग के आधार पर कोई भी नागरिक भेदभाव नहीं करेगा। समानता अधिनियम के तहत नागरिकों को निम्नलिखित सुविधाएं दी गई हैं:
(i) भेदभाव की समाप्ति – नागरिकों में धर्म, जाति, वर्ग, रंग तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा । सभी वयस्क नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है ।
(ii) सरकारी पद प्राप्त करने की समानता – सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सरकारी पद पाने का अवसर मिलेगा। संविधान का अनुच्छेद 16(1) कहता है कि सभी नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के समान अवसर मिलेंगे। अनुच्छेद 16 ( 2) कहता है कि केवल वंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर किसी नागरिक को अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा या विभेद किया जाएगा।
(iii) अस्पृश्यता की समाप्ति – भारतीय संविधान द्वारा अस्पृश्यता का अन्त कर दिया गया है। किसी भी रूप में अस्पृश्यता को मानना कानूनी अपराध है।
(iv) उपाधियों की समाप्ति – संविधान ने सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया है। किसी विदेशी सरकार को कोई भारतीय नागरिक पुरस्कार नहीं मिलेगा। राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिये ही उपाधियां दी जाएंगी।
(v) सार्वजनिक स्थानों का सभी के लिये खुला होना – प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भी प्रकार का भेदभाव के सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग कर सकता है।
(2) स्वतंत्रता का अधिकार – स्वतंत्रता नागरिकों के कर्त्तव्यों के समुचित विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 में बताया गया है। संविधान नागरिकों को निम्नलिखित स्वतंत्रतायें देता है:
(i) भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – प्रत्येक नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने, भाषण देने तथा लेखन की स्वतंत्रता है ।
(ii) बिना अस्त्र-शस्त्र के शांतिपूर्वक सभा करने की स्वतंत्रता – संविधान द्वारा नागरिकों को बिना अस्त्र-शस्त्र के शांतिपूर्वक सभा आयोजित करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
(iii) समुदाय तथा संघ बनाने की स्वतंत्रता – प्रत्येक नागरिक को समुदाय अथवा संघ बनाने अथवा उनकी सदस्यता ग्रहण करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
(iv) भारत संघ के किसी भी क्षेत्र में घूमने की स्वतंत्रता – प्रत्येक नागरिक को भारत संघ के किसी भी क्षेत्र में घूमने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
(v) भारत संघ के किसी भी क्षेत्र में निवास करने की स्वतंत्रता – प्रत्येक नागरिक को भारत संघ के किसी भी क्षेत्र में निवास करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
(vi) सम्पत्ति अर्जित करने तथा व्यय करने की स्वतंत्रता – भारत संघ के प्रत्येक नागरिक को सम्पत्ति अर्जित करने तथा उसे व्यय करने की स्वतंत्रता प्राप्त है।
(vii) किसी भी व्यक्ति को कानून का उल्लघंन किए बिना दण्डित नहीं किया जायेगा।
(viii) किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्वीकृत दण्ड से अधिक दण्ड नहीं दिया जायेगा ।
(ix) किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिये एक से अधिक बार दंडित नहीं किया जायेगा ।
(x) बंद करने के बाद किसी को 24 घंटे के अन्दर न्यायाधीश के सामने पेश करना अनिवार्य होगा। स्वतंत्रता के अधिकार पर अंकुश: संविधान ने राज्य को यह अधिकार दिया है कि उल्लेखित स्वतंत्रताओं को देश की एकता और जनता के कल्याण के लिए नियंत्रित कर सकता है।
(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार का उल्लेख किया गया है। शोषण के विरुद्ध अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है-
(i) व्यक्तियों से बेगार नहीं ली जा सकती ।
(ii) मानव-व्यापार के समस्त रूपों का अन्त कर दिया गया।
(iii) 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को ऐसे किसी कार्य में नहीं लगाया जा सकता, जिससे उनके जीवन अथवा स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता हो ।
(4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – संविधान के अनुच्छेद 25-28 में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लेख है। नागरिकों को धार्मिक अभ्यास करने की स्वतंत्रता संविधान द्वारा दी गई है। व्यक्ति अपनी धर्म का प्रचार, प्रसार और पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। अनुच्छेद 25 कहता है, “सभी व्यक्तियों को, चाहे वे नागरिक हों या विदेशी, अन्तःकरण की स्वतंत्रता तथा किसी भी धर्म को स्वीकार करने, आचरण करने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता प्राप्त है।
(5) सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी अधिकार– शिक्षा और सांस्कृतिक अधिकार संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 में हैं । इस अधिकार के तहत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संस्कृति का संरक्षण करने, अपनी मातृभाषा बोलने, शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करने और साहित्य लिखने का अधिकार है।
(6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार – संवैधानिक सुरक्षा के अभाव में बुनियादी अधिकार बेकार हो जाते हैं। जी. एन. जोशी ने कहा कि मौलिक अधिकारों की केवल घोषणा करने तथा उन्हें संविधान में सन्निहित करने से कोई लाभ नहीं है, जब तक कि उनकी सुरक्षा की प्रभावी तथा सरल व्यवस्था नहीं की जाती। मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्त्तव्य / 139 इसलिए, राज्य या नागरिक द्वारा संविधान में प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर उनकी रक्षा करने के लिए बनाई गई व्यवस्था को संवैधानिक उपचारों का अधिकार कहा जाता है। नागरिक अपने मूल अधिकारों को बचाने के लिए उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में जा सकते हैं। न्यायालय संवैधानिक उपचार के तहत निम्नलिखित लेखों को प्रकाशित कर सकता है:
(i) बन्दी प्रत्यक्षीकरण – इस लेख का अर्थ है, ‘बन्दी के शरीर को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करो।’ यह अवैध रूप से बंदी किये गये व्यक्तियों की सुरक्षा करता है।
(ii) परमादेश – इस लेख के अन्तर्गत न्यायालय द्वारा किसी भी अधिकारी या संस्था को अपने कर्त्तव्य पालन करने का आदेश दिया जा सकता है।
(iii) प्रतिषेध – इस लेख के अन्तर्गत न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति अथवा संस्था को उस कार्य को रोकने का आदेश दिया जा सकता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत न हो ।
(iv) उत्प्रेषण लेख – इसका अर्थ है- पूर्णरूप से सूचित करना । इस लेख के अन्तर्गत उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय से कोई भी रिकॉर्ड मांग सकते हैं।
(v) अधिकार पृच्छा – अधिकार पृच्छा लेख किसी व्यक्ति को किसी पद पर रहने का अधिकार देता है। इसके लिए उससे अधिकार की पेशकश की जाती है, जो उसे पदाधिकारियों का पद देता है।
प्रश्न 7. संविधान में उल्लिखित मूल कर्त्तव्य क्या हैं? आपके मत में इनमें से कौन-से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं और क्यों ?
उत्तर – राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने से संबंधित मौलिक कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं
1. संविधान का पालन करना तथा इसके राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्रगान का सम्मान करना।
2. राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को मानना और उनका अनुकरण करना ।
3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना ।
4. देश की रक्षा करना ।
5. भारत के सभी लोगों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना।
6. हमारी साझा संस्कृति की समृद्ध धरोहर की सुरक्षा करना ।
7. राष्ट्रीय पर्यावरण का संरक्षण तथा इसमें सुधार करना ।
8. वैज्ञानिक मनोवृत्ति तथा जिज्ञासा की भावना को विकसित करना ।
9. सार्वजनिक संपत्ति का बचाव करना ।
10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठता के लिए प्रयास करना ।