प्रश्न 15. चेतना के स्तरों में बदलाव के स्वप्नावस्था के परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – स्वप्नावस्था, निद्रावस्था में होने वाली संज्ञानात्मक घटनाओं के रूप में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। स्वप्न की घटनाएं (स्वप्न में आने वाली घटनाएं सजीव हैं, लेकिन कभी-कभी बहुत जटिल भी होती हैं) उलझी हुई तथा असंगत होती हैं। रैम (REM) नींद में सपने आते हैं। EEG रिकॉर्ड बताते हैं कि सभी लोग नींद में स्वप्न देखते हैं। स्वप्न वास्तव में देखा जाता है, लेकिन नींद टूटने पर अक्सर वे भुला दिए जाते हैं या याद ही नहीं रहते। कुछ लोगों को ये सपने भी याद रहते हैं।
सिगमण्ड फ्रायड का विचार था कि स्वप्न मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं का प्रतीक होते हैं। साथ ही, उन्होंने कहा कि सपने अवचेतन को समझने का एक प्रभावी साधन हैं। जागते हुए व्यक्ति सामाजिक रूप से अस्वीकार्य इच्छाओं को सपनों में देखता है। यदि कोई स्वप्नावस्था में यौन अनुभव या खून बहाने का सपना देखता है, तो यह उसके अवचेतन की अपूर्ण इच्छा है। इसके बावजूद, कुछ मनोवैज्ञानिक इस कारण को स्वीकार नहीं करते।
शारीरिक प्रक्रिया के रूप में स्वप्न की व्याख्या करने पर, कुछ लोगों का कहना है कि स्वप्न मानव मस्तिष्क में होने वाली तंत्रिक गतिविधियों का निजी अनुभव है। तंत्रिकाओं को महसूस करने में ज्ञानात्मक तंत्र का योगदान हो सकता है। शारीरिक दृष्टिकोण ज्ञानात्मक दृष्टिकोण से अलग है।
प्रत्यक्षीकरण और चिन्तन का प्रभाव मानव मस्तिष्क का प्रान्तस्था तंत्र पर होता है। यह प्रान्तस्था तंत्र सपनावस्था में सिर्फ निवेश करता है। जाग्रत अवस्था में प्रत्यक्षीकरण और विचारधारा बाहर से आती है। यही कारण है कि मस्तिष्क की तंत्रिकांए व्यक्ति का स्वरूप बनाती हैं, और सपने ही मस्तिष्क की तंत्रिकांए की क्रियाओं को व्यक्त कर सकते हैं। यही कारण है कि यह व्यक्ति की स्मृति और जाग्रत अनुभवों को प्रतिबिंबित करता है। इसलिए यह कहना सही है कि स्वप्न निरर्थक नहीं होते क्योंकि उनके पीछे एक पूरा तंत्र और व्यवस्था है।
प्रश्न 16. चेतना के सम्मोहन परिवर्तन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर- सम्मोहन भी चेतना के विभिन्न स्तरों में शामिल है। यह प्रभावशीलता का चरमोत्कर्ष है। सम्मोहन का मतलब है मन का एक विशेष बिन्दु पर रहना। ऐसी स्थिति में व्यक्ति मतिभ्रम या गहरी आत्मविस्मृति में चला जाता है। सम्मोहन दरअसल दो लोगों में एक विशिष्ट प्रकार की परस्पर क्रिया है, जिसमें पहला व्यक्ति सम्मोहन का शिकार होता है और दूसरा इसका शिकार होता है। पहला व्यक्ति सम्मोहित है, जबकि दूसरा सम्मोहक है। Nee सम्मोहक इस क्रिया में सम्मोहित व्यक्ति को बताता है,, जैसे
सम्मोहक – क्या नींद आ रही है?
सम्मोहित – हाँ, नींद आ रही है।
सम्मोहक – आराम महसूस कर रहे हो?
सम्मोहित – हाँ, आराम महसूस हो रहा है।
सम्मोहक – आंखें बंद करने को मन कर रहा है?
सम्मोहित – हाँ, आंखें बन्द करने को मन कर रहा है।
सम्मोहित व्यक्ति इस अवस्था में सोता नहीं है, बल्कि उसके अनुकूल सम्मोहक के सुझाव ग्रहण करने लगता है। इस तरह, सम्मोहित व्यक्ति के चेतना के स्तर में सम्मोहक के स्वभाव से संबंधित परिवर्तन स्पष्ट होने लगता है। यह देखा गया है कि सम्मोहित व्यक्ति का EEG सामान्य सभी अवस्था की तरह है।
प्रश्न 17. मानव चेतना स्तर को बदलने वाली औषधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भोजन से प्राप्त ऊर्जा मानव शरीर की जैविकीय क्रियाओं के लिए आवश्यक है। भोजन में पाचक और पोषक तत्त्वों के अवशोषण और विघटन के बाद जैविक क्रियाएं ऊर्जा स्थित होकर कार्य में प्रवृत्त होती हैं। इस प्रक्रिया में कई बार कमी आती है। इसलिए, बाहरी कारक के रूप में भोजन तंत्र की कमी को दूर करने के लिए आवश्यक रासायनिक तत्वों को प्राप्त करने वाले साधन को औषधि कहा जाता है। आप कह सकते हैं कि औषधि रासायनिक पदार्थ हैं जो जैविक क्रिया बदलते हैं। इस प्रकार, ये दवा व्यक्ति की चेतना में परिवर्तन लाने में भी मदद करती है। इसलिए इन्हें चेतना स्तर बदलने वाली दवा कहा जाता है।
यह मनोदशा को बदलने के लिए प्रयोग करने वालों को नशे की लत में कहा जाता है। इस तरह की लत से व्यक्ति पूरी तरह से औषधियों पर निर्भर हो जाता है और व्यवहार और सामाजिक क्रियाकलाप में बाधा डालता है। बहुत सी दवा चेतना को बढ़ाती है इन्हें दुखी, उत्तेजक और भ्रामक देखा जा सकता है।
चेतना परिवर्तन में प्रभावकारी औषधियाँ : अवसादक औषधियाँ – अवसादक औषधियां केंद्रीय तंत्रिका की क्रियाओं और व्यवहार को प्रभावित करती हैं। इसमें मुख्य रूप से शराब और मद्यपान शामिल हैं। कम मात्रा में शराब या मद्यपान आपको उत्तेजित करता है। यह समय व्यक्ति को सक्रिय और उत्तेजित बनाता है, लेकिन अधिक मात्रा में शराब उसे अवसादक बनाता है। इससे संवेदनशीलता कम होती है। पीड़ा या अन्य दुख: और दर्दनाक भावनाएं नहीं होतीं। इंन्द्रियों का कार्य और व्यवहारों का संयोजन भी प्रभावित होता है। इससे व्यक्ति का सामाजिक सम्मान भी कम हो जाता है और वह अवांछनीय व्यवहार से भी बचता नहीं है।
अवसादकों में प्रमुख मादक द्रव्यों में – बारबीट्यूरेट गोलियां दो प्रकार की हैं: नींद लाने वाली (जैसे मैन्ड्रेक्स) और विश्राम देने वाली (जैसे मैन्ड्रेक्स)। मादक गुणों के कारण ये पदार्थ मस्तिष्क के संवेदक भाग, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की क्रिया और मानसिक सजगता पर बुरा प्रभाव डालते हैं। ये औषधियां शुरू में आपको आराम व खुशी देती हैं, लेकिन जब आप इन पर आदी हो जाते हैं, तो वे आपके शरीर पर बुरा प्रभाव डालती हैं। व्यक्ति सब कुछ भूल जाता है। ध्यान कम होने लगता है और इन औषधियों की अधिक मात्रा जानलेवा भी हो सकती है। लेकिन इनमें से कुछ को चिकित्सक अक्सर नींद लाने के लिए देते हैं।
उत्तेजक औषधियां – शक्ति और सक्रियता के लिए लोग अक्सर उत्तेजक पदार्थ लेते हैं। एमफटमाइन और कोकीन इस श्रेणी के दवा हैं। इन औषधियों की तंत्रिकाएं सक्रिय रहती हैं। इनके कारण रक्तचाप, दिल की धड़कन और श्वसन दर बढ़ जाती है। ये पदार्थ कुछ समय तक संवेदना उत्पन्न करते हैं, जो फायदेमंद है। किन्तु वे शीघ्र ही खत्म हो जाते हैं, और व्यक्ति को थकान, अवसाद और चिंता का सामना करना पड़ता है। कोकीन को सूंघकर लिया जाता है, जो नाक के माध्यम से सीधे फेफड़ों में जाकर रक्त में घुल जाता है। तथा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालकर व्यक्ति को इस पर निर्भर बनाता है।
निकोटीन भी एक प्रकार का उत्तेजक पदार्थ है। यह तम्बाकू में पाया जाता है। यही कारण है कि लोग पान में, सुरती के रूप में तथा बीड़ी-सिगरेट आदि के रूप में इसे प्रयोग करते हैं। यह एक ऐसी लत है जो एक बार अभ्यास में आने पर छूट नहीं पाती। इसे छोड़ने के लिए आदमी में बहुत बड़ी इच्छाशक्ति की जरूरत में होती है, जो सामान्य आदमी में प्रायः नहीं होती। ये उत्तेजक पदार्थ धीरे-धीरे शरीर में कैंसर जैसे रोग पैदा करके व्यक्ति के लिए मृत्यु का कारण भी बन जाते हैं।
अफीम – यह सबसे आम पदार्थ है, लेकिन सबसे घातक है। मारफीन और हेरोइन इस श्रेणी में आते हैं। मारफीन और हेरोइन दोनों अफीम से बनाए जाते हैं। अफीम का उत्पादन होता है। इससे व्यक्ति स्वप्नावस्था (पीनक) में आ जाता है, जिससे शरीर और शारीरिक क्रियाओं में एक प्रकार की शिथिलता आती है। अफीम की लत आसानी से नहीं छूटती, और अधिक मात्रा में यह जानलेवा हो सकता है।
भ्रामक मादक पदार्थ – भ्रामक मादक पदार्थ व्यक्ति में प्रत्यक्षीकरण की क्रिया को सीधे प्रभावित करते हैं, जिससे भ्रम उत्पन्न होता है। इस श्रेणी में मारीजुआना प्रमुख है। इसका उपयोग हृदय गति को बढ़ाता है (लगभग 160 धड़कन प्रति मिनट) और रक्तचाप को बदलता है। थोड़ी देर के लिए कान और आंखों की भावना बढ़ जाती है। इसके प्रभाव से कुछ लोगों को आराम मिलता है और वे यौन उत्तेजित होते हैं। हाँ, मारीजुआना का प्रभाव प्रयोगकर्ता की अपेक्षा के अनुसार होता है। मारीजुआना दुनिया भर में लोकप्रिय है। LSD इसमें सबसे खतरनाक है। यह लाइसरजिक एसिड डाइइथाइल एमाइड है।
इसे लेने के बाद प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया बहुत अधिक प्रभावित होती है। सांवेदिक अनुभवों का एक अजीब तरह का प्रभाव होता है। जैसे रंगों से गर्मी या ठंड का अनुभव करना, अपने शरीर का कोई हिस्सा नहीं देखना, बहुत अवसाद की मनोदशा में जाना आदि। यह भी एक बहुत खतरनाक मादक द्रव्य है, जो मस्तिष्क को धीरे-धीरे बंद कर देता है। इन परिवर्तनकारी औषधियों का मन पर स्पष्ट रूप से विपरीत असर होता है। क्षण भर का मनोवैज्ञानिक आनंद सबसे बड़ा सुख है, लेकिन इसके बाद उससे कहीं अधिक दुःख और अशक्तता अंततः घातक ही होती है।
प्रश्न 18. सूचना एकत्रित करने की प्रक्रिया स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हमारे संवेदी तंत्र को सूचना एकत्रित करने वाला भी कहते हैं क्योंकि सभी जानकारी व्यक्ति के संवेदी अंगों से मिलती है। ये दस संवेदी अंग बाह्य और आंतरिक संवेदनाओं को एकत्रित करने में हमें मदद करते हैं। बाह्य संवेदी अंगों में आठ हैं: स्वाद, देखना, सुनना, सूंघना, छूना, गर्मी, शीत और पीड़ा। दो भीतरी संवेदनाएं हैं: गति और संतुलन। संवेदी अंग-संवेदी अंग ही बाहरी दुनिया के साथ संक्रिया करते हैं। कान सुनने, आंख देखने, त्वचा स्पर्श करने और नासिका सूंघने में सबसे पहले काम करती है। इसमें उद्दीपक संवेदी अंगों को आकर्षित करते हैं, जैसे रोशनी आंख को तथा आवाज कान को। स्नायविक आवेग में ये सभी संवेदी अंग भौतिक ऊर्जा (प्रकाश, ध्वनि, ताप आदि) को लेकर रासायनिक रूप में बदलते हैं। आँख की संवेदना, या दृष्टि-देखना, पूर्वोक्त बाह्य संवेदी अंगों में सबसे महत्त्वपूर्ण और जटिल है। दृष्टि बाहरी अन्तःक्रिया में 80 प्रतिशत योगदान देती है। इसके बाद सुनने का उपयोग होता है। निम्नलिखित सारणी मानव संवेदनाओं को चित्रित करती है-
यह भी स्पष्ट है कि इस बहुआयामी जगत में रहते हुए व्यक्ति की अधिकांश संवेदनाएं बाहरी जगत से आती हैं। ये अनुभव बाहरी जगत से संबंधित होने के कारण अधिकांश सही होते हैं, यानी व्यक्ति बाहरी जगत या वातावरण से संपर्क में आने पर अनुभूत परिवर्तन या अंतः क्रिया में जो प्रभाव या दबाव अनुभव करता है, वही उसके लिए सूचना के रूप में सामने आती है। वह बैठे-बैठे आंगन की टीन पर टप टप की आवाज से वर्षा हो रही है। ऐसे ही अंधकार में दिया जलाने पर सामने की वस्तु को साक्षात देखा जा सकता है। जिस प्रक्रिया में ये जानकारी गृहीत की जाती है, उसमें संवेदी अंगों की अत: क्रियाएं शामिल हैं।
प्रश्न 19. सूचना के संसाधन क्या हैं?
उत्तर – कम्प्यूटर संगणकों की खोज ने मनोवैज्ञानिकों को इस मॉडल का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया है। इस मॉडल से पता चलता है कि मनुष्य एक सूचना इकट्ठा करने वाला प्राणी है। मानव मस्तिष्क भी संगणक की तरह विभिन्न चरणों में सूचना संसाधित करता है। व्यक्ति बाहरी दुनिया से जानकारी प्राप्त करता है और फिर परिस्थितियों के अनुसार प्रतिक्रिया करता है, यह एक सरल प्रक्रिया है। दृष्टि सबसे अच्छा सूचना संसाधन है। हम सब जानते हैं कि 400 से 700 नेनोमीटर की दूरी पर आंखों के लिए सबसे अच्छा प्रकाश है। किसी भी स्रोत (जैसे सूर्य) से निकलने वाली किरणें एक वस्तु (जैसे एक ऑब्जेक्ट-किताब या डायरी) पर आपतित होती हैं।
यहाँ से परावर्तित किरणें (किरणें) लैंस और कोर्निया से गुजरती हुई रेटिना पर टकराती हैं, जिससे वस्तु का उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है। रेटिना बाह्य जगत को चित्रित करता है। इस रेटिना में कई अलग-अलग प्रकार की कोशिकाएं हैं: रॉड (दंड) और कोन (शंकु)। कोडीकरण (प्रकाशीय उद्दीपक को स्नायु आवेग में बदलना) इस दण्ड और शंकु का कार्य है। पश्च कपालीय भाग में मैगलियन कोशिकाओं द्वारा कोडीकृत संदेश भेजे जाते हैं। सन्देश मस्तिष्क के अन्य हिस्सों में स्नायु आवेग के माध्यम से भेजे जाते हैं। विभिन्न परिस्थितियों से गुजरने के बाद सूचना का प्रत्यक्षीकरण (पुस्तक, डायरी या वस्तु को देखना) होता है, और इसके बाद प्रक्रिया यानी प्रतिक्रिया शुरू होती है।
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