NIOS Class 10 Psychology Chapter 5 संवेदी प्रक्रियाएं : अवधान और प्रत्यक्षीकरण

प्रश्न 4. स्थान का प्रत्यक्षीकरण क्या है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- व्यक्ति के सामने जो दृश्यलोक है, उसके स्थान को समझना भी एक महत्वपूर्ण अन्तःक्रिया है। यहाँ देखने व विचार करने वाली बात यह है कि हम किस प्रकार रेटिना से संबंधित प्रतिमाओं (बिम्ब) में दो विमाओं का प्रत्यक्षीकरण करते हैं? आकार और दूरी दोनों स्थान के प्रत्यक्षीकरण में शामिल हैं। त्रिविमीय वस्तुओं का निम्न रेटिना पर स्थानांतरित करना एक समस्या है। वास्तव में, गहराई दो वस्तुओं के बीच सापेक्ष स्थानगत दूरी को बताती है। जैसा कि निम्नलिखित चित्र में दिखाया गया है। दो वृक्षों के बीच स्थानीय रेखा गहराई को दिखाती है।

प्रेक्षक और वृक्ष के बीच की निरपेक्ष दूरी, या स्थानगत दूरी, दूरी है। भौतिक इकाइयों द्वारा दूरी (डिस्टैंस – डी) नापी जा सकती है। जैसे, लंबाई की इकाई ‘फुट’ है। पुरानी प्रथा के अनुसार, स्थानगत दूरी मील या फर्लांग में नापी जाती थी। एक मील (1760 गज) में 8 फर्लांग, 220 गज प्रति फर्लांग, 3 फीट प्रति गज और 12 इंच प्रति फीट। इसे भौतिक दूरी कहते हैं।

भौतिक दूरी से ही मिलती-जुलती व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्षीकृत दूरी भी होती है, और अक्सर भौतिक इकाइयों से नापी गई दूरी से परिभाषित और प्रत्यक्षीकृत दूरी मेल नहीं खाती। किसी वस्तु का अपना निश्चित आकार स्थानगत दूरी के समान है। व्यक्ति इस भौतिक आकार को प्रत्यक्षीकृत आकार (एस) कहते हैं। इसमें भौतिक आकार (S) और प्रत्यक्षीकृत आकार (S) समान या असमान हो सकते हैं। दोनों प्रायः सामान्य परिस्थितियों में समान हैं। इसे वास्तविकता कहा जाता है।

प्रश्न 5. एक- अक्षीय महत्त्वपूर्ण संकेतों का विवेचन कीजिए।
उत्तर – सामान्यतया एक- अचित्रकार द्विविमीय या त्रिविमीय चित्रों को कैनवास पर दिखाने के लिए अक्षीय संकेतों का उपयोग करते हैं। कलाकार गहराई और दूरी को व्यक्त करने के लिए इन संकेतों का उपयोग करते हैं, जबकि बच्चों में इन संकेतों का विकास पहले से ही होता है। निम्नलिखित अक्षीय संकेत हैं:-

(अ) आच्छादन – जब कोई चीज दूसरी को पूरी तरह ढक ले तो ढकी हुई चीज ढकने वाली चीज की अपेक्षा दूर स्थित लगेगी। इस संकेत का उपयोग गहराई और दूरी को चित्रित करने के लिए किया जाता है। यह क्षमता जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही विकसित हो जाती है। बच्चों द्वारा बनाए गए चित्रों में इसे साफ-साफ देखा जा सकता है।

(ब) वायवीय परिप्रेक्ष्य या स्पष्टता – पास की चीज सामान्यतया दूर की चीज से अपेक्षाकृत साफ दिखाई पड़ती है, जैसे कोहरे में पास के मकान, पेड़-पौधे साफ दिखाई पड़ते हैं जबकि दूर की चीजें कोहरे में साफ नहीं दिखाई पड़तीं यानी धुंधली, स्पष्ट न दिखाई देने वाली चीजें दूर स्थित हैं – यह पता चलता है।

(स) पंक्तिगत परिप्रेक्ष्य – समानान्तर रेखाएं दूर जाते हुए एक-दूसरे की ओर झुकती दिखाई पड़ती हैं और क्षितिज पर क बिन्दु पर मिलती दिखाई पड़ती हैं। इसका निकटस्थ एक-अक्षीय आकार भी छोटा हो जाता है।

(द) प्रकाश और छाया – हम सभी जानते हैं कि सूर्य प्रकाश से आता है इसीलिए एक वस्तु की दूसरी वस्तु पर पड़ने वाली छाया से स्पष्ट पता लग जाता है कि कौन-सी वस्तु छोटी है, कौन-सी बड़ी ? कौन-सी पास है कौन-सी दूर? अतः गहरी व उभरी वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण में प्रकाश और छाया के स्वरूप की भूमिका विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण होती है।

(इ) परिचित आकार– यदि हम किसी वस्तु या व्यक्ति के बारे में पहले से जानते हैं कि वह अक्षिपटल की प्रतिमा से कितनी दूर पर स्थित है। इन प्रतिमाओं द्वारा इनकी दूरी का पता लगाना सरल होता है।

(फ) संचरना घनत्व प्रवणता – जुते हुए खेत को पास से देखने पर वह ऊबड़-खाबड़ दिखाई देता है, लेकिन जब इसे ही दूर से देखें, तो मिट्टी की संरचना अच्छी लगने लगती है। यह दूरी का अथवा सामीप्य का ही प्रभाव है।

प्रश्न 6. गति का प्रत्यक्षीकरण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर – भौतिक विज्ञान में गति एक वस्तु का स्थान बदलना है। जब वस्तु गतिशील होती है, तो उसके अक्षिपटल के विभिन्न भागों में उत्तरोत्तर उद्दीपन होता है, जिससे गति का पता चलता है। त्वचा भी वास्तविक गति को देख सकती है। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति अपनी आंखों को बन्द कर ले और उसे अपनी उंगली से हाथ-पैर चलाने के लिए कहे, तो वे गति को महसूस कर सकेंगे। यह भी देखा गया है कि अधिपटल उद्दीपन के स्थान बदलने से गति प्रत्यक्षीकरण नहीं होता, बल्कि स्थिर उद्दीपकों के त्वरित और उत्तरोत्तर प्रस्तुतीकरण से भी होता है। जैसे गतिमान प्रकाश की स्थिति और चित्रों में देखा जाता है। एक प्रकार का आभासी प्रत्यक्षीकरण स्थिर उद्दीपकों का गति प्रत्यक्षीकरण है। इस तरह की आभासी गति का अनुभव व्यक्ति को ऐसे समय में भी हो सकता है जब वास्तव में गति नहीं है, इसलिए इसे चाक्षुष भ्रम कहा जा सकता है।

प्रश्न 7. प्रात्यक्षिक स्थैर्य क्या है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – हम अक्सर देखते हैं कि हमारे अक्षिपटल पर हमारे आस-पास की बाह्य वस्तुओं के बिम्ब बदलते रहते हैं। लेकिन इन सभी चीजों को निरंतर खोजा जाता है। प्रात्यक्षिक स्थैर्य एक लक्षित या घटना है जो प्रत्यक्षीकरण में होती है। उदाहरण के लिए, जब हम एक निश्चित दूरी पर खड़े होकर बात करते हैं, तो हमारे मित्र की प्रतिमा हमेशा हमारे अक्षिपटल पर बड़ी रहती है। मित्र बड़े होते रहते हैं (पास आने वाले मित्र बड़े होते हैं, दूर जाने वाले मित्र छोटे होते हैं), लेकिन मित्र का आकार न बदलना प्रात्यक्षिक स्थैर्य है, जिसमें आकार नहीं बदलता है। यदि प्रात्यक्षिक स्थैर्य का सिद्धान्त काम नहीं करता, तो एक अस्पष्टता और अव्यवस्था की स्थिति आने की संभावना अधिक होगी। वास्तव में, यदि हम कुछ देखेंगे, तो वे हमें हमेशा अलग दिखाई देंगे। हमारे आकार, रूप, रंग, स्थिति और चमक में भी इस गोचर का अनुभव हो सकता है। ये प्रात्यक्षिक स्थैर्य सामान्यतया दो प्रकार के हो सकते हैं-

(क) आकार स्थैर्य
(ख) प्रारूप स्थैर्य

(क) आकार स्थैर्य- जब हम किसी वस्तु से दूर जाते हैं, उसकी अक्षिपटल पर बनी प्रतिमा छोटी होती जाती है, यानी दूरी बढ़ने के साथ-साथ प्रति कम होती जाती है। इसके विपरीत, बनने वाली प्रतिमा दूरी बढ़ती जाती है जैसे-जैसे वस्तु हमारे पास आती है या हम वस्तु के पास जाते हैं। यह स्पष्ट है कि प्रात्यक्षिक आकार (प्रतिमा घटने या बढ़ने की स्थिति में) दोनों ही परिस्थितियों में स्थिर रहता है, यानी आकार का प्रत्यक्षीकरण अपरिवर्तित रहता है। इसे आकार स्थैर्य कहते हैं। इसलिए हम परिवर्तित होती अक्षिपटलीय प्रतिमा की व्याख्या प्रत्यक्षीकृत दूरी के माध्यम से कर सकते हैं। यह भी कि प्रत्यक्षीकृत दूरी का विवरण अक्षिपटलीय प्रतिमा (परिवर्तनशील) की व्याख्या देता है। प्रत्यक्षीकृत दूरी और गहराई दोनों इसकी पहचान करते हैं।

(ख) प्रारूप स्थैर्य – प्रात्यक्षिक प्रारूप स्थैर्य कहलाता है जब किसी चीज को अलग-अलग कोणों या परिस्थितियों से देखते हुए अक्षिपटल पर बनने वाली प्रतिमा बदल जाती है और रेटिना पर अलग-अलग प्रतिमाएं प्रक्षेपित की जाती हैं। रेटिना पर प्रक्षे प्रति एक दीर्घ वृत्त का आकार होगा, जैसे कि कोई व्यक्ति एक ढाल में एक वृत्ताकार देखता है। इसके बावजूद, एक वृत्ताकार चक्र घूम चुका है, जो रेटिना पर एक विस्तृत वृत्त बनाता है। जब प्रेक्षणकर्त्ता जानता है कि चक्का गहराई में घूम चुका है, तो यह संभव होगा। इस परिस्थिति में, प्रेक्षणकर्त्ता इसे दीर्घ वृत्त के स्थान पर वृत्ताकार चक्र के रूप में प्रत्यक्षित करता है। यह रूप स्थिरता है। आकार के प्रत्यक्षीकरण में परिचित वस्तु के आकार और वास्तविक दूरी का पता लगाना आसान होता है। ठीक उसी तरह, परिचित वस्तु प्रारूप स्थैर्य में मदद करती है।

प्रश्न 11. प्रत्यक्षीकरण में अवधानात्मक प्रक्रम की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – प्रायोगिक रूप से, यह स्पष्ट हो चुका है कि व्यक्तिगत रूप से बदलने वाली बातें, जैसे आवश्यकताएं, संवेग, मूल्य और व्यक्तित्व, हमारे प्रत्यक्षीकरण पर प्रभाव डालती हैं। जैसे दो आदमी, एक भूखा और दूसरा प्यासा, एक होटल में एक साथ पहुंचते हैं। भूखा सीधा मेज पर आता है, खाने के लिए कुछ देखता है और ऑर्डर देता है, जबकि प्यासा पानी पीने बैठता है। लेकिन नवीनतम मनोवैज्ञानिक अध्ययन ने दिखाया कि अवधान के प्रक्रम अभिप्रेरण का प्रभाव डालते हैं।

अवधानात्मक प्रक्रम– हम जानते हैं कि हमारी खिड़कियां सांवेदिक अंग हैं। इन्हीं से हम बाहर से जानकारी प्राप्त करते हैं। हम भी जानते हैं कि मस्तिष्क सांवेदिक अंगों से मिली जानकारी को संसाधित करता है। लेकिन संवेदी अंग बाहरी सूचनाओं को नहीं ग्रहण करते, क्योंकि ऐसा करने से मस्तिष्क पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा और विक्षिप्तावस्था का कारण बनेगा। यह सही है कि ये संवेदी अंग सिर्फ आवश्यक जानकारी प्राप्त करते हैं यही कारण है कि हम कह सकते हैं कि हमारा (मानव का) प्रत्यक्षीकरण मुख्य रूप से निर्णायक है। इसका मतलब साफ है कि हम वही अनुभव करते हैं, जो हम चाहते हैं। अवधानात्मक प्रक्रियाओं द्वारा ही ऐसा संभव है।

हमारी अवधानात्मक प्रक्रिया हमारे संवेदी अंगों को बाह्य जगत से चुने जाने वाली सूचनाओं को ही ग्रहण करने का निर्देश देती है, अनावश्यक और अवांछित सूचनाएं बाहर कर दी जाती हैं। एक आम उदाहरण इसे समझा सकता है:अपने टी.वी. एन्टिना को छत पर रखें। यह कार्यक्रम कई चैनलों से सूचना प्राप्त कर सकता है। लेकिन टीवी ट्यूनर सिर्फ एक चैनल (जो भी आप लगाएं) देखने देता है, शेष नहीं। रिमोट द्वारा दूसरे चैनल का बटन दबाने पर ही अन्य कार्यक्रम देखे जा सकते हैं। – इसी प्रकार, हमारी अवधानात्मक प्रक्रिया के कारण संवेदी अंगों को बाह्य जगत की कुछ विशिष्ट जानकारी प्राप्त होती है। इसलिए यह अवधानात्मक प्रक्रिया बाहर से आती है

अभिप्रेरणा का दायित्व – किसी मित्र के जन्मदिवस पर भेंट खरीदने के लिए हम बाजार जाते हैं-वहां कितनी ही चीजें हमें आकर्षित करती हैं किन्तु अवसर (जन्मदिवस के उपलक्ष्य में) और मूल्य दोनों ही हमारी सीमा बन जाते हैं। ऐसे में हम समुचित दा में एक भेंट योग्य वस्तु ही खरीदते हैं। उसके लिए सुयोग्य चीज का चयन करते हैं, ऐसे ही कुछ भी नहीं खरीद लेते। यानी, 60-70 या 100 रुपए तक की भेंट के लिए पैन, स्कार्फ, सैण्ट, शेविंग किट या शर्ट / पैट आदि (कुछ महंगे लेना चाहें तो ) ले सकते हैं, लेकिन प्लास्टिक टब, पानी का जग या ऐसी ही रसोई के इस्तेमाल की चीज नहीं खरीदेंगे।

इसका सीधा-सा तात्पर्य है कि मित्र के लिए उपयोगी और सही मूल्य की (बजट की सीमा में ) चीज ही खरीदने के लिए अभिप्रेरित हैं और इस अभिप्रेरणा ने हमारे अवधानात्मक प्रक्रम को व्यवस्थित किया है, यानी स्पष्ट है कि अभिप्रेरणा अवधानात्मक प्रक्रम को नियंत्रित करती है और अवधानात्मक प्रक्रम हमारे प्रत्यक्षीकरण को नियंत्रित करता है।

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