NIOS Class 10 Psychology Chapter 3. वैयक्तिक भिन्नताये

NIOS Class 10 Psychology Chapter 3. वैयक्तिक भिन्नताये

NIOS Class 10 Psychology Chapter 3. वैयक्तिक भिन्नताये – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 मनोविज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 मनोविज्ञान अध्याय 3 (वैयक्तिक भिन्नताये) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Psychology Chapter 3 Individual Differences दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Psychology Chapter 3 व्यक्तिगत भिन्नताएँ के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Psychology Chapter3 Solution – वैयक्तिक भिन्नताये

प्रश्न 1. “ वैयक्तिक भिन्नता ” शब्द से आप क्या समझते
उत्तर- हम अक्सर देखते हैं कि हर व्यक्ति में आँख, नाक, कान, हाथ, पैर आदि सभी अंग-प्रत्यंग प्रकृति से दिए गए हैं, लेकिन फिर भी दो लोगों का रूप, रंग या आकार व्यवहार में समान नहीं होता। उनमें कमोबेश अंतर होना चाहिए। कोई मोटा होता है, कोई पतला, कोई लम्बा होता है, कोई नाटा होता है; इतना ही नहीं, दो लोगों की बुद्धि और रुचियां भी अलग होती हैं। महान गायक की बुद्धि, अभिरुचि और व्यक्तित्व में भिन्नता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

भिन्नता की अवधारणा -जब हम लोगों की विशेषताओं का विश्लेषण करते हैं, तो हम पाते हैं कि अधिकांश लोग मध्यम कोटि, यानी औसत दर्जे के होते हैं। लोग बहुत लम्बे या छोटे होते हैं, या बहुत मोटे या पतले होते हैं। यह आम धारणा है कि लोग एक-दूसरे से अलग हैं। साथ ही, मनोवैज्ञानिक विशेषताओं में ये विभिन्नताएं जुड़ी हुई हैं। यानी वे नियमित हैं। इनमें शीघ्र बदलाव नहीं होगा। आनुवंशिक संरचना और वातावरण (जिसमें वह बड़ा हुआ है) व्यक्ति में ये भिन्नताएं पैदा करते हैं। यही सोच (अवधारणा) भिन्नता का मूल कारण है।

प्रश्न 2. बुद्धि को परिभाषित कीजिए । किन्हीं दो बुद्धि परीक्षणों के बारे में बताइये ।
उत्तर- बुद्धि का सामान्य अर्थ है किसी व्यक्ति को बहुपक्षीय क्षमताएं होती हैं और बुद्धिमान व्यक्ति कहलाता है. किसी डिग्री, डिप्लोमा या प्रमाणपत्र से बुद्धि को मान्यता नहीं दी जा सकती। परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करना, डिग्री पाना, इंजीनियर, डॉक्टर या वकील बनना बुद्धिमान नहीं हो सकता। क्योंकि कुछ लोग पढ़ने-लिखने में, कुछ मशीनी काम में, कुछ कला-संगीत, चित्रकला, अभिनय और अन्य क्षेत्रों में अच्छे हैं यह भी देखा जाता है कि कोई व्यक्ति एक विषय में बहुत अच्छा है, लेकिन दूसरे विषयों में उतना अच्छा नहीं है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बुद्धि क्रियाशील है, लेकिन वर्तमान में मनोवैज्ञानिक बहुप्रयोजन बुद्धि पर अधिक जोर दिया जाता है। गार्डनर ने कहा कि बुद्धि आठ प्रकार की होती है और आम तौर पर इसे सिर्फ संज्ञानात्मक क्षेत्र में देखा जाता है। यह मानसिक क्षमता के रूप में देखा जाता है।

बुद्धि परीक्षणों के दो प्रकार निम्नलिखित है- (1) वैयक्तिक परीक्षण एवं (2) समूह परीक्षण | वैयक्तिक परीक्षण एक व्यक्ति से सम्बन्धित होता है। यह परीक्षण किसी निश्चित समय पर एक व्यक्ति पर किया जाता है। जबकि समूह परीक्षण में व्यक्ति की अपेक्षा समूह को शामिल किया जाता है। किसी निश्चित समय पर एक से अधिक व्यक्तियों पर किया गया परीक्षण समूह परीक्षण कहलाता है।

प्रश्न 3. बुद्धि, अभिवृत्ति, उपलब्धि के मध्य के अन्तर की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – मनोवैज्ञानिकों ने कई बुद्धिपरीक्षणों का उपयोग करके किसी व्यक्ति का बुद्धि-स्तर मापा है। उन सभी उपयोगों के परीक्षणों से किसी व्यक्ति का बुद्धि स्तर अधिक स्पष्ट होता है। यदि कोई बच्चा स्कूली पाठ्यक्रम में सफल नहीं होता, तो अक्सर उनकी बुद्धि परीक्षण की जाती है। यदि बच्चा सामान्य से कम है, तो वह इस परीक्षण में सही है, लेकिन उसे विशेष प्रशिक्षण की जरूरत होगी। ऐसा ही सामान्य से उच्चतर स्तर के बच्चे के लिए भी विशिष्ट प्रशिक्षण की सिफारिश की जाती है । दोनों स्थितियों को बेहतर या सामान्य बनाने की कोशिश में विशेष ध्यान आवश्यक है।

प्रश्न 4. व्यक्तित्व को समझने के मुख्य पहलू को बताइये ।
उत्तर – व्यक्तित्व शब्द हिन्दी में व्यक्तित्व का अंग्रेजी पर्याय है। मनोविज्ञान में व्यक्तित्व विशेषताओं, गुणों और लक्षणों को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में, व्यक्तित्व किसी व्यक्ति की सापेक्षिक या विशिष्ट व्यवहार प्रवृत्ति है। यानी व्यक्तित्व में उन गुणों की सुसंगतता शामिल है, जो किसी को व्यक्ति के रूप में परिभाषित करते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व पर विचार करते हुए निम्नलिखित दृष्टिकोणों पर विचार किया है-
(i) जैविक दृष्टिकोण
(ii) मनोगतिकी दृष्टिकोण
(iii) सामाजिक-संज्ञानात्मक दृष्टिकोण
(iv) मानववादी दृष्टिकोण
(v) शीलगुण सम्बन्धी दृष्टिकोण

(i) जैविक दृष्टिकोण – जैविक दृष्टिकोण व्यक्ति के आनुवंशिक कारणों को देखता है। इसमें आनुवंशिक, अंतःस्रावी ग्रंथियों और वातावरण का प्रभाव व्यक्तित्व पर महत्वपूर्ण है। यानी का मत है कि व्यक्तित्व वंशानुगत स्वभाव और वातावरण से मिलता है ।

(ii) मनोगति की दृष्टिकोण – इसमें व्यक्ति की अचेतन आवश्यकताओं तथा द्वन्द्व की ओर ध्यान दिलाया जाता है। साथ ही व्यक्ति के जीवन पर उसके प्रारम्भिक चरणों के विकास के प्रभाव पर ध्यान दिया जाता है। फ्रायड ने व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में तीन मूलभूत सम्प्रत्ययों का वर्णन किया है-
• इड (इदम्)
• इगो (अहम् )
• सुपर इगो (परा अहम् )
आनन्द के सिद्धान्त के अनुसार, डड एक अचेतन भाग है। इसमें खुशी मिलनी चाहिए। इगो वास्तव में काम करता है। यह वास्तविक जीवन से संबंधित है। सुपर इगो, यानी परा अहम्, इच्छाओं को सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीके से पूरा करने पर बल देता है। माता-पिता और अन्य महत्वपूर्ण लोगों द्वारा निर्धारित समाज के नैतिक मूल्य सुपर इगो का निर्धारण करते हैं।

(iii) सामाजिक संज्ञानात्मक दृष्टिकोण – इसमें शिक्षा, वातावरण और व्यवहार में सुधार लाने की व्यावहारिक नीतियों का महत्व है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, हमारे व्यक्तित्व और व्यवहार की अधिकांश प्रवृत्तियां व्यक्ति के सामाजिक वातावरण, खासकर उनके जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण लोगों के साथ उनके व्यवहार से मिलती हैं। वर्तमान जीवन को पूर्वानुभवों से प्रभावित किया जा सकता है, लेकिन इन अनुभवों से एक व्यक्ति का जीवन निर्धारित नहीं होता; वह उनसे स्वतंत्र भी हो सकता है।

(iv) मानववादी दृष्टिकोण – वास्तव में, मानववादी दृष्टिकोण आशावादी है और जीवन और संभावनाओं पर बल देता है। इसमें अपेक्षा की जाती है कि व्यक्ति के व्यवहार में मनुष्यता का बोध विकसित हो। उसमें करुणा, दया और क्षमा का भाव जागे और अपनी जन्मजात क्षमता को वास्तव में महसूस करे। साथ ही इसमें हर व्यक्ति की व्यापक स्वतंत्रता और विकास की क्षमता पर बल दिया जाता है। इसमें परार्थ भाव बहुत महत्वपूर्ण है।

(v) शीलगुण सम्बन्धी दृष्टिकोण – इस दृष्टिकोण के अन्तर्गत किसी व्यक्तित्व का वर्णन उसके विभिन्न गुणों में परिप्रेक्ष्य में किया जाता है और गुणों को समूहों में वर्गीकृत करके अध्ययन किया जाता है। व्यक्तित्व की पहचान के ये गुण समूह टाइप ( प्रारूप ) कहलाते हैं। सामान्यतः व्यक्तित्व के दो प्रारूप देखे जा सकते हैं-
(क) अन्तर्मुखी व्यक्तित्व, (ख) बहिर्मुखी व्यक्तित्व
भारतीय विचारकों के अनुसार व्यक्तित्व को पांच आवरणों में रखा गया है-
अ- अन्नमय कोश – आहार प्रधान
ब- प्राणमय कोश – चेतन प्रधान
स- मनोमय कोश – मन, बुद्धि प्रधान
द- विज्ञानमय कोश – विचार प्रधान
ई – आनन्दमय कोश – निर्विकार सहजता प्रधान

वस्तुतः व्यक्ति का व्यक्तित्व इन्हीं पांच कोशों के विकास पर निर्भर करता है और व्यक्ति इनमें क्रमशः विचरण करता हुआ अन्ततः आनन्दभाव स्तर पाने में सफल हो पाता है। यही व्यक्तित्व स्तर होता है।

वैयक्तिक भिन्नताये के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. व्यक्तित्व में समायोजन का क्या महत्त्व है?
उत्तर – यह सभी व्यक्तित्व की पहचान के स्तर हैं, जैसे कि वह मिलनसार है या अकेले प्यार करता है, परोपकारी है या स्वार्थी, गम्भीर है या उथला सहयोगी है या अवसरवादी. व्यक्ति के सामान्य व्यवहार से ही उसके व्यक्तित्व की झलक मिलती है। इन्हीं से हम उसके बुद्धिमान, बहिर्मुखी या उथले पक्ष को जानते हैं।

व्यक्तित्व का एक अतिरिक्त पहलू है सहयोग भाव, जो वातावरण की आवश्यकताओं के अनुरूप समायोजन में मदद करता है। यह एक व्यक्ति के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है कि वह संघर्ष या संकट की स्थिति में कैसे व्यवहार करता है। द्वन्द्व और पर्यावरण की आवश्यकताओं को हल करने के लिए अक्सर लोग अनेक तरीके अपनाते हैं। हम भी जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार अनूठा है और उनकी चारित्रिक विशेषताएं अलग हैं।

यहाँ प्रश्न उठता है कि अधिकांश लोगों में विशिष्ट चारित्रिक गुण हैं या नहीं। प्रत्येक व्यक्ति के चारित्रिक गुणों में विनम्रता, उग्रता, संयम, सहनशीलता, सहिष्णुता, व्यग्रता, बेकली, घबराहट, स्वतंत्रता, आत्मसमर्पण और दृढ़ता शामिल हैं, हालांकि इनमें अक्सर भिन्नता भी होती है। साथ ही, प्रत्येक व्यक्ति इन गुणों का अपना समीकरण बनाता है। व्यक्ति को दूसरे से अलग करने का एकमात्र तरीका उनके समीकरण और गुणमात्र है।

प्रश्न 2. व्यक्तिगत भिन्नताओं को निर्धारित करने वाले आनुवंशिक कारणों तथा वातावरण की परस्पर प्रक्रिया बताइए
उत्तर – मनोवैज्ञानिकों और जीवविज्ञानियों के अध्ययन से पता चलता है कि व्यक्तिगत भिन्नताएँ आनुवांशिक कारणों और वातावरण के कारकों की परस्पर क्रिया से होती हैं। आनुवंशिक कोड माता-पिता के व्यक्तित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए कुछ गुण उनसे विरासत में मिलते हैं। व्यक्ति को आनुवंशिक प्रकार या जीनोटाइप सिर्फ इन आनुवंशिक कोड से मिलता है। व्यक्ति अपने माता-पिता की तरह नहीं होता क्योंकि उनका बाहरी रूप उनके सामाजिक परिवेश से बनता है। लेकिन व्यक्ति का रंग, कद-काठी, आंख, नाक, कान, हाथ, पैर आदि माता-पिता के समान होता है।

इसके साथ ही व्यक्ति को कुछ बौद्धिक, भावात्मक और संज्ञानात्मक क्षमता, प्रेम, खेल और कलात्मक अभिरुचियां भी विरासत में मिलती हैं। लेकिन बचपन का वातावरण अधिकतर इसके व्यक्तिगत गुण विकास पर प्रभाव डालता है। हम सभी जानते हैं कि घर के वातावरण में एक व्यक्ति का लालन-पालन होता है, और यह वातावरण उदार है या कठोर है? मिलने वाले ज्ञान का स्तर क्या है? आस-पास क्या है? पुस्तकें, समाज, शिक्षक, मीडिया और मित्र अपने-अपने तरीके से प्रभावित करते हैं। ये सभी चीजें हमारा वातावरण बनाती हैं, यानी वह जगह, जिसमें व्यक्ति रहता है। व्यक्ति को आदर्श मॉडल और अन्य अवसर वातावरण से मिलते हैं। व्यक्ति को इससे कई गुणों और कौशल विकसित करने में सहायता मिलती है।

असल में, हमारे वंशानुक्रम, या आनुवंशिक कोड, हमें हर तरह की संभावनाएं दे सकते हैं, लेकिन किसी व्यक्ति का बड़ा होना क्या होगा, वह उसके आसपास के वातावरण पर निर्भर करेगा। उदाहरण के लिए, कबीर एक गरीब विधवा ब्राह्मणी के घर पैदा हुआ और फिर त्याग दिया गया और नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पत्ति के यहां पला। यहां उन्हें जीवन के रूप में जुलाहे की ही जगह मिली, जिससे कबीर सन्तों की संगति में जुलाहा होकर भी एक सन्त कवि की ख्याति पा सकें। डॉ. भीमराव अम्बेडकर भी ऐसे ही थे; वे बहुत गरीब परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन उच्च शिक्षा और उनके परिवेश ने उन्हें एक महान विधिवेत्ता और भारत के संविधान निर्माता बनाया। हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम भी इसी तरह थे। ये भी साधारण परिवार में पैदा हुए, लेकिन शिक्षा प्राप्त करके बड़े वैज्ञानिक और देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए। ऐसे कई उदाहरण दिए जा सकते हैं, जिनका व्यक्तित्व वंशानुक्रम से अधिक वातावरण का प्रभाव है।

यह भी याद रखना चाहिए कि एक सीप में दो मोती जुदा-जुदा हैं: एक खरल में घुट रहा है, दूसरा ताज में मढ़ा है। यानी एक ही जन्म आधार पाकर भी, जैसे एक मोती चिकित्सक के पास जाकर खरल में घुटकर जीवनदायिनी औषधि बन जाता है, तो दूसरा बादशाह के ताज में मढ़ जाता है। यानी परिवेशगत भिन्नता: अलग-अलग अवसर प्रदान करना व्यक्तिगत भिन्नता का मुख्य कारण है। एक श्रेणी को परिभाषित करता है या सीमाएं तय करता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि हर व्यक्ति का विकास अलग है। वातावरण व्यक्ति को बनाता है। वह बहुत कुछ में समान है और बहुत कुछ में भिन्न है।

प्रश्न 3. व्यक्तिगत भिन्नताओं का मूल्यांकन कैसे करेंगे ?
उत्तर- यहाँ व्यक्तिगत भिन्नताओं के मूल्यांकन का अर्थ है व्यक्तिगत क्षमताओं, व्यवहारों और क्षमताओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण. मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का आधार प्रक्रियाएं हैं। किस तरह एक व्यक्ति दूसरे से अलग है और समान है, यह इन मूल्यांकन प्रक्रियाओं से निर्धारित होता है। हम अक्सर किसी व्यक्ति के बारे में टिप्पणी करते हैं कि वह अच्छा, अच्छा, बुरा, आकर्षक, बेतुका, भद्दा, प्रतिभाशाली या मूर्ख है. इन टिप्पणियों का अक्सर कोई स्पष्ट आधार नहीं होता, बल्कि भ्रांति पर आधारित होता है। मनोवैज्ञानिकों ने इन प्रक्रियाओं को ध्यान में रखकर उन्हें व्यवस्था देने का प्रयास किया है, ताकि मूल्यांकन यथासंभव सही हो सके।

इसके लिए परीक्षण बनाए गए हैं, ताकि व्यक्ति के गुणों का आकलन किया जा सके। वास्तव में, मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक विकसित प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य व्यक्ति के व्यवहार के बड़े पैमाने पर विश्लेषण करना है। इसमें होता यह है कि परीक्षण को वैध, विश्वसनीय, स्तरीय तथा मानकों पर आधारित बनाया जाता है ताकि व्यक्ति के बारे में उचित अनुमान लगाया जा सके। परीक्षण केवल वैध होते हैं जब एक विशिष्ट गुण का सटीक विश्लेषण किया जाता है। इसमें किसी लक्षण का मूल्यांकन करते हुए अलग-अलग परिस्थितियों पर समान परिणाम होने चाहिए। जैसे, आज परीक्षण में एक व्यक्ति का परिणाम औसत बुद्धि वाला है, तो पन्द्रह दिन बाद भी उसका परिणाम औसत बुद्धि वाला ही होगा।

और यदि परीक्षण के परिणाम अलग-अलग समय पर आते हैं, जैसे औसत बुद्धि का परिणाम एक बार आता है और तेज बुद्धि का परिणाम दूसरी बार आता है, तो परीक्षण विश्वसनीय नहीं है। यही कारण है कि एक अच्छी परीक्षा के समान परिणाम और विश्वसनीयता होते हैं। किसी परीक्षण की वैधता का अर्थ है कि वह अपेक्षित गुणों को किस सीमा तक माप सकता है? यह वैध परीक्षण व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हुए व्यक्तित्व के संबंधित पक्षों पर केंद्रित है। यह भी सही मूल्यांकन के लिए मानकीकृत होना महत्वपूर्ण है। इसमें सभी लोगों को समान परिस्थितियों में समान प्रक्रिया से मापा जाता है। यह मानदण्ड भी स्थापित करता है क्योंकि हम जानते हैं कि परीक्षण का सापेक्षिक परिणाम भी होता है, हालांकि भौतिक मूल्यांकन के समान यहां पूर्ण मूल्यांकन संभव नहीं है।

मानकीकरण व्यवस्था में एकरूपता, वस्तुनिष्ठता और परिणाम की स्पष्ट व्याख्या सुनिश्चित करता है। मूल्यांकन के लिए परीक्षणों का विकास इस पूरी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण है। स्कूलों में विद्यार्थियों का उपलब्धि परीक्षण किया जाता है। अपने अध्ययन कार्य में मनोवैज्ञानिक क्षमता और व्यक्तित्व परीक्षण अक्सर करते हैं। योग्यता परीक्षण में किसी व्यक्ति की कार्यकुशलता का पता चलता है जब वह उत्कृष्टता की स्थिति में है। उसमें संभावना से अधिक उपलब्धि का मूल्यांकन किया जाता है। अभिक्षमता परीक्षण और बुद्धि परीक्षण दोनों एक ही कोटि में आते हैं।

प्रश्न 4. व्यक्तित्व की अवधारणा के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों के भिन्न दृष्टिकोण क्या हैं?
उत्तर – मनोविज्ञान में व्यक्तित्व को किसी व्यक्ति की अपेक्षाकृत अलग व्यवहार प्रवृत्ति कहा जाता है। जै दृष्टिकोण व्यक्तित्व पर वंशानुगत प्रभावों का अध्ययन करता है। मनोगतिकी दृष्टिकोण हमारे जीवन पर प्रारंभिक चरणों के विकास के प्रभाव और अचेतन आवश्यकताओं और द्वंद्व की ओर ध्यान दिलाता है। सामाजिक-संज्ञानात्मक दृष्टिकोण मानता है कि शिक्षा, वातावरण और हमारे व्यवहार को बेहतर बनाने की व्यावहारिक नीतियों का महत्व है। मानववादी विचारधारा प्रत्येक व्यक्ति में स्वतंत्रता और विकास की व्यापक क्षमता पर बल देती है। शील गुण वाले दृष्टिकोण में व्यक्तित्व को विभिन्न गुणों से देखा जाता है। व्यक्तित्व की एक और भूमिका यह है कि यह हमें परिवेश की आवश्यकताओं के साथ समायोजन में मदद करता है। हमारे व्यक्तित्व की विशेषताएं भी चुनौतियों का सामना करने के तरीकों को निर्धारित करती हैं।

प्रश्न 5. मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन व्यक्तिगत क्षमताओं, व्यवहारों और क्षमताओं का आकलन करने के लिए विशिष्ट प्रक्रियाओं का उपयोग करता है। परीक्षण की वैधता का अर्थ है कि वह मूल्यांकन के लिए आवश्यक विशेषताओं को किस सीमा तक परीक्षण करता है। मानकीकरण का अर्थ है कि समान परिस्थितियों में सभी लोगों का समान तरीके से परीक्षण किया जा सके।

प्रश्न 6. व्यक्तिगत भिन्नता के क्या कारण हैं?
उत्तर – व्यक्तिगत अंतर आनुवांशिक और वातावरणीय कारकों से होते हैं। हमारे घर का वातावरण और खाना जिम्मेदार है। आदर्श (मॉडल) और अन्य तरीकों से हमें वातावरण प्रभावित करता है, जो हमें कई गुणों और कौशलों को विकसित करने में मदद करता है। हमारा वातावरण हमें क्या बनना चाहिए निर्धारित करता है, लेकिन हमारा वंशानुक्रम नहीं। बुद्धि कई तरह से व्यक्त ‘लोगों की बहुपक्षीय क्षमताएं’ है। भविष्य में कुछ करने की क्षमता अभिक्षमता है। विभिन्न क्षेत्रों में काम करने के लिए आवश्यक कौशल सीखने की क्षमता का मूल्यांकन अभिक्षमता परीक्षण से किया जा सकता है।

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