NIOS Class 10 Psychology Chapter 27 मन का नियंत्रण और अनुशासन

NIOS Class 10 Psychology Chapter 27 मन का नियंत्रण और अनुशासन

NIOS Class 10 Psychology Chapter 27 मन का नियंत्रण और अनुशासन – NIOS कक्षा 10 में पढ़ रहे विद्यार्थियों के लिए यहां NIOS कक्षा 10 का मनोविज्ञान अध्याय 27 (मन का नियंत्रण और अनुशासन) का हल दिया गया है. जो NIOS Class 10 Psychology Solutions Chapter 27. Controlling and Disciplining the Mind दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है .ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए . इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. .इसलिए आप NIOS Class 10 Psychology Chapter 27 मन का नियंत्रण और अनुशासन के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Psychology Chapter 27 Solution – मन का नियंत्रण और अनुशासन

प्रश्न 1. जीवन विज्ञान और जीने की कला आपस में कैसे सम्बन्धित हैं?
उत्तर- व्यक्ति एवं समाज के स्वस्थ विकास के लिए आत्मनियंत्रण एवं अनुशासन अधिक महत्त्वपूर्ण है । जीवन विज्ञान मूल्य आधृत शिक्षा की सामंजस्य पूर्ण एवं प्रायोगिक विधि है। इसमें सोलह प्रकार के मूल्य होते हैं। ये सामाजिक, बौद्धिक, मानसिक, नैतिक एवं आत्मिक मूल्य होते हैं। जीवन विज्ञान मस्तिष्क के दोनों हिस्सों का संतुलित विकास के बारे में बताता है। यह हमें इन्द्रियों और सहज क्रियाओं को नियंत्रित करना सिखाता है। जीवन विज्ञान द्वारा सकारात्मक चिन्तन का विकास कर नकारात्मक विचारों से छुटकारा पाना संभव है ।
जीने की कला तथा जीवन विज्ञान के मूलभूत सिद्धांत एक जैसे हैं।

लगभग 100 वर्ष पूर्व स्वामी योगानन्द जी ने जीने की कला अवधारणा से परिचित कराया था। उनका सार यही है कि अधिक समन्वित मानवीय तथा आध्यात्मिक, जीवन जीने के लिए व्यक्ति को अनुशासन की आवश्यकता है। जीने की कला शरीर, मन व आत्मा के समान विकास के लिए कुछ व्यावहारिक विधियां देती है। इसके कुछ पहलू नीचे प्रस्तुत हैं-

(क) भोजन – दूध-दही से बनी वस्तुएं, ताजे फल, शाक, मांस कम से कम (गौ एवं सूअर के मांस से परहेज ) सप्ताह में एक दिन उपवास ( केवल सन्तरे का रस लें) चिकित्सक की परामर्श से रेचक लिया करे ।
(ख) व्यायाम, सैर, दौड़ नियमित करें।
(ग) स्वाध्याय ( धर्म ग्रन्थों एवं प्रेरणादायी ग्रंथों का ) ।
(घ) सामान्य एवं विशिष्ट ज्ञानानुशासन का अनुशीलन ।
(ङ) सभी धर्मों के प्रति समान आदरभाव ।
(च) प्रातः – सायं नित्यप्रति ध्यान, प्राणायाम, योग आदि तथा सत्संग |
(छ) इंद्रिय निग्रह।
(ज) उच्चशयी शिक्षाप्रद मनोरंजन |
(झ) सत्य आचरण ।
(ञ) सबके प्रति प्रेम भाव ।
(ट) मितव्ययी जीवन-क्रम ।
(ठ) जीवन को उपनिषदीय व्यवस्थानुरूप – ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थ्य, वानप्रस्थ व संन्यास आश्रम की व्यवस्थाक्रम का पालन | ये सभी साधन जीने की कला के माध्यम से जीवन का आचरणगत शोधन करते हैं जबकि जीवन-विज्ञान भावानात्मक, वैचारिक एवं मानसिक स्तर पर शरीर के क्रिया विज्ञान से सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 2. हम अपने संवेगों को किस प्रकार नियंत्रित कर सकते हैं?
उत्तर- भावातीत ध्यान को महर्षि महेश योगी ने बनाया था। ध्यान करने से व्यक्ति के मन में शांति की भावना आती है, जो विचारों को रोकने में मदद करती है। वास्तव में, स्वयं पर नियंत्रण रखना और स्वयं पर नियंत्रण रखना व्यक्ति और समाज के स्वस्थ विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना व्यक्ति में क्रोध, घृणा, अभिमान, लोभ, मोह और अन्य नकारात्मक भावनाएं पनपने लगती हैं। ऐसे में स्वयं पर नियंत्रण रखना स्वास्थ्यकर होता है और व्यक्तित्व को मजबूत आधार देता है।

व्यक्ति को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं और चाहतों पर नियंत्रण पाने के लिए स्वयं को अनुशासन में ढालना पड़ता है, जिसमें भारतीय योग, आसन और प्राणायाम क्रियाओं का सहयोग आवश्यक था। योग जीवन पद्धति व्यक्ति के शरीर क्रिया विज्ञान में महत्वपूर्ण है। योग शारीरिक, भावात्मक और बुद्धिपूर्ण है। यह व्यक्ति के भावों, बुद्धि और मन को संतुलित करने में मदद करता है। आज शिक्षा केवल शरीर और बुद्धि पर बल देती है, मन या भावनाएं नहीं। इसलिए योग शिक्षा महत्वपूर्ण है। योग मन और भावों को शुद्ध करने में मदद करता है।

प्रश्न 3. विपश्यना को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर – विपश्यना मानव मन को शान्ति और निस्तब्धता प्रदान करने की विधि है। यह विधि प्राणायाम से थोड़ी भिन्न होती है । वास्तव में विपश्पना शब्द का अर्थ है वास्तविकताओं को सत्य के रूप में देखना । व्यक्ति को सत्य का निरीक्षण करना चाहिए। विपश्यना में तुम अपने श्वास का वैसा ही निरीक्षण करते हैं। जैसा कि वह है – प्राकृतिक और साधारण श्वास।

मन का नियंत्रण और अनुशासन के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. मन पर नियंत्रण और अनुशासन का व्यक्ति जीवन में महत्त्व प्रतिपादित कीजिए ।
उत्तर – आज हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नगरीकरण के युग में रह रहे हैं, जो बहुत जटिल और तेजी से बदल रहा है। मशीनीकरण ने व्यक्ति के जीवन में अनगिनत परेशानियों और अवरोधों को जन्म दिया है। इसका परिणाम है कि मधुमेह, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप और दिल का दौरा जैसे प्राणघाती रोगों और उनसे होने वाली मृत्यु दरों में वृद्धि हुई है। दवाओं के मादक पदार्थों का सेवन इन रोगों को कम नहीं करता, बल्कि उनका उल्टा असर होता है। मुख्य कारण यह है कि व्यक्ति पहले से ही अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रखता था, जबकि इन समस्याओं का समाधान स्वयं पर नियंत्रण विकसित करने में है।

वास्तव में, स्वयं पर नियंत्रण रखना और स्वयं पर नियंत्रण रखना व्यक्ति और समाज के स्वस्थ विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना व्यक्ति में क्रोध, घृणा, अनधिकार, घमण्ड, लोभ, मोह और अन्य बुरी भावनाएं पनपने लगती हैं। इसलिए स्वयं पर नियंत्रण रखना स्वस्थ रहता है और व्यक्तित्व को मजबूत आधार देता है। लेकिन स्वयं पर अधिक नियंत्रण कैसे पाया जाए, यह भी एक प्रश्न है। नियंत्रण में अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं और इच्छाओं पर नियंत्रण रखने के लिए स्वयं को अनुशासन में डालना पड़ता है और इस नियंत्रण के लिए योग, आसन और प्राणायाम क्रियाओं का विकास हुआ है।

योग व्यक्ति के शरीर क्रिया विज्ञान में जीवन पद्धति में महत्वपूर्ण है। योग एक शारीरिक, भावात्मक और ज्ञानात्मक अनुभव है जो मन, बुद्धि और भावों को संतुलित करने में मदद करता है। आज शिक्षा केवल शरीर और बुद्धि पर बल देती है, मन या भावना नहीं। यही कारण है कि व्यक्ति अपने मन और भावना को नजरअंदाज करने से अनुशासन, संयम, सहनशीलता और चरित्र के स्तर पर स्थिर नहीं रह पाता। इसलिए योग शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। प्रारंभ करें: बच्चा घर से पहले अनुशासन और नियंत्रण सीखता है। इसके बाद घर से बाहर चलने योग्य होने पर स्थानीय समुदाय और पड़ोस का प्रभाव पड़ता है। विद्यालय अनुशासन में तीसरे स्थान पर है। असल में, यह शिक्षण समाजीकरण का एक हिस्सा है। यह समाज को सही ढंग से चलाने के लिए कुछ नियमों और नियमों का पालन करना आवश्यक है।

जब आप एक परिवार में हैं, जहां प्रत्येक सदस्य अपने निर्णय करने का अधिकार रखता है, तो सोचिए। कोई नहीं सुनता; हर व्यक्ति अपनी इच्छा से चलता है। ऐसा घर अवश्य अव्यवस्थित होगा। समय पड़ने पर समूह के सभी सदस्य एक लक्ष्य के लिए एकत्रित नहीं होंगे। परिवार का विचार यहां आकर अधूरा रह जाता है। यह स्पष्ट है कि इन अस्थिर परिस्थितियों में किसी भी व्यक्ति का सुख एक साथ संतुलित नहीं हो सकता। तब वह घर छत के नीचे रहकर भी एक सराय नहीं कहा जा सकता।

इस अराजकता से बचने के लिए ही मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। शिक्षा वास्तव में हमारी बुद्धि बढ़ाती है। हम कारण जानते हैं और तर्क करते हैं, लेकिन सारा व्यवहार हमें स्वार्थी और आत्मकेंद्रित व्यवहार तक सीमित करता है. मानवीय दृष्टि से, हमें अपने आप और दूसरों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए. इसके लिए हमें अपनी मन की संकीर्ण वृत्तियों को नियंत्रण में रखना चाहिए और एक निश्चित अनुशासन का पालन करना चाहिए। यही कारण है कि योग बहुत फायदेमंद है। यह आपके मन को बलवान और मजबूत बनाता है।

प्रश्न 2. जीवन विज्ञान की पद्धति की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – जीवन की गहरी पहचान का साधन है जीवन विज्ञान और यह मूल्य आधारित शिक्षा की एक सुसंगत तथा व्यावहारि पद्धति है। पूरा जीवन विज्ञान की पद्धति में सोलह मूल्यों का विचार किया गया है। ये मूल्य निम्नलिखित हैं-
(i) सामाजिक मूल्य- कर्त्तव्य, अनुशासन
(ii) बौद्धिक व आध्यात्मिक मूल्य – सत्य, मैत्री, सभी व्यक्ति में समान बंधन सूत्र का अनुभव, समान व्यवहार
(iii) मानसिक मूल्य-मानसिक सन्तुलन, धैर्य
(iv) नैतिक मूल्य – निष्ठा, सहानुभूति, सह अस्तित्व
(v) आध्यात्मिक मूल्य – मोह का अभाव, सहनशीलता, सौम्यता, मिठास, निर्भीकता, आत्मानुशासन।

वस्तुतः जीवन विज्ञान व्यक्ति व समाज दोनों पर ही बल देता है । स्वामी विवेकानन्द ने लगभग सौ वर्ष पहले कहा था – विज्ञान व अध्यात्म में सम्मति होनी चाहिए। विनोबा भावे ने भी इसी विचार का समर्थन किया है।
आचार्य महा प्राज्ञ ने भी छोटे बच्चों के लिए संरचित्व श्रेणीबद्ध व्यावहारिक अभ्यास की प्रस्तावना की है। उसमें निम्नलिखित लक्ष्यों की प्राप्ति संभव है-
1. बौद्धिक तथा भावात्मक विकास के बीच संतुलन
2. विभेदीकरण की योग्यता के बीच सामंजस्य
3. व्यक्ति तथा समाज के बीच सामंजस्य
4. मानव संबंधों में परिवर्तन
5. नैतिक मूल्यों का विकास
6. आत्मानुशासन के लिए क्षमताओं का विकास
7. मानव समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता का विकास

इस तरह, यह स्पष्ट हो जाता है कि एक व्यक्ति का व्यवहार भी नियंत्रित हो सकता है अगर उसका मन और विचार नियंत्रित हैं।
मनुष्य के तंत्रिका तंत्र, साथ ही कुछ ग्रंथियों और उनके स्रावों, व्यवहार का नियंत्रण करते हैं। सजग रहकर बदलाव कर सकते हैं। भावशुद्धि, भावों का मानव शरीर है, व्यवहार में परिवर्तन लाने की आध्यात्मिक विधि है। जैव विज्ञान के अनुसार, मानव शरीर के हर भाग में रासायनिक पदार्थ बनाए जाते हैं। जैव ऊर्जा, या जैव रसायन, व्यक्ति की चिन्तन प्रक्रिया का प्रकट स्रोत है, जो मानव व्यवहार की व्याख्या करती है।

स्पष्ट है कि विचारों को नियंत्रित करना सीखने पर ही व्यवहारगत शुद्धता प्रकट होने लगती है। व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वह प्रकृति और दूसरे जीवों पर भी निर्भर है। शिक्षा वास्तव में परस्पर निर्भरता की समझ बनाने और विकसित करने का एक प्रभावी माध्यम है। और जीवन-विज्ञान एक व्यक्ति की भावनाओं को नियंत्रित करने का एक उपाय है। जैसे एक मछली पूरे तालाब को गन्दा करती है, एक बच्चे का क्रोध पूरे परिवार को विभाजित कर सकता है। चाणक्य ने अपनी नीतिपुस्तक में कहा, “एक नेता जो अपने भावों पर नियंत्रण रख सकता है, वह पूरे देश पर शासन कर सकता है।” यह समझने की बात है कि जीव विज्ञान मस्तिष्क को शिक्षित करता है, जबकि आधुनिक शिक्षा केवल बुद्धि और ज्ञान का विकास कर सकती है (बाएं भाग देखें)। दाएं भाग की पूर्णत: उपेक्षा करती है

जो व्यक्ति की आध्यात्मिकता, आन्तरिक सजगता और मानसिक अभिवृत्ति का निर्धारण करती है। शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है जीवन विज्ञान। क्योंकि यह मस्तिष्क का संतुलित विकास करता है जीवन विज्ञान ही एक व्यक्ति को अपने ज्ञानेन्द्रियों पर नियंत्रण करने की विद्या सिखाता है। इससे व्यक्ति को सकारात्मक विचारों पर नियंत्रण मिलता है और सकारात्मक वृत्तियां विकसित होती हैं। इसलिए कह सकते हैं कि जीवन विज्ञान एक व्यक्ति के नियंत्रित और सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास करता है। यही समाज को स्वस्थ बनाने का उपाय है।

प्रश्न 3. क्रिया योग क्या है ?
उत्तर- क्रिया योग पद्धति में व्यक्ति बाह्य शरीर से आंतरिक शरीर की ओर व्यवस्थित ढंग से चलता है।
हठयोग, या योगासन, व्यक्ति के बाहरी शरीर के विकास और क्रियाओं को नियंत्रित करता है, लेकिन आंतरिक शरीर को साफ और सहज रखने के लिए कई क्रियाओं का विधान बताया गया है:

(i) दंत धौती (दांतों या मुंह की देखभाल) नेत्र, नासिका मार्ग, कान और कपाल की मालिश से इन्द्रियां सक्रिय और चुस्त रहती हैं।

(ii) ध्यान से हृदय शुद्ध, पवित्र व क्रियाशील रहता है।

(iii) पाचन तंत्र (आमाशय और आंतों) को शुद्ध, सक्रिय और स्वस्थ रखने के लिए वस्त्र धौती क्रिया अच्छी है। इसमें पानी में मलमल की एक लम्बी पट्टी भिगो दी जाती है, फिर उसे निचोड़कर मुंह से निगला जाता है। उसे आमाशय के काफी भीतर ले जाकर धीरे-धीरे निकाला जाता है। यह कपड़ा धौती है। इससे झाडू की तरह भोजन को निगलने वाली नली, आमाशय और आंतें साफ हो जाती हैं।

(iv) प्राणायाम शरीर से दूषित वायु को बाहर निकालने का अभ्यास है। श्वास करने से मुख बहुत सारी वायु को शरीर में ले जाता है। यह शरीर के भीतर फेफड़ों में कुछ समय तक रखा जाता है (कुम्भक नामक प्रक्रिया), फिर श्वांस के माध्यम से धीरे-धीरे बाहर निकाला जाता है।

इसी तरह, पूरी वायु को नासिका से बाहर निकालकर (रेचक) धीरे-धीरे श्वास लेते हैं। नियमित रूप से इस तरह की शुद्धि क्रियाएं करने से व्यक्ति बहुत स्वस्थ, सफल और निरोगी जीवन जी सकता है। इससे व्यक्ति का जीवनकाल भी बढ़ता है, लेकिन ये क्रियाएं सिर्फ एक योग शिक्षक की देखरेख में की जानी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है।

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