NIOS Class 10 Psychology Chapter 25. आत्म-विकास और योग

प्रश्न 3. योग के समकालीन उपागम बताइए ।
उत्तर – विज्ञान प्रौद्योगिकी और इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के विकास के कारण आज लोगों को मानसिक शांति और आराम की बहुत जरूरत है। योगतंत्र को प्राचीन काल में योगी, मुनि और ऋषि ने शरीर और मन को आराम देने के लिए बनाया था।
ध्यान-आराधना और प्रार्थना के तरीके हर धर्म में अलग हैं। इस धर्मावलम्बियों को शांति और परम सुख मिलता है क्योंकि प्रार्थना सभी ध्यानस्थितियों का मूल चित्त संयम है। जैन धर्म में ध्यान है, जबकि बौद्ध धर्म में विपश्यना है।

विपश्यना में पहले व्यक्ति को अपने श्वास पर ध्यान देना होता है, फिर शरीर की भावनाओं पर ध्यान देना होता है और अंत में चेतना के बहाव पर ध्यानाकर्षित करना होता है। तिहाड़ जेल की अधीक्षक ने विपश्यना की कक्षाओं को बनाया ताकि कैदियों को योग करना होगा। यह निश्चित रूप से जेल के वातावरण की दृष्टि से पूरी तरह से नया उपाय था, और इसका महत्वपूर्ण फायदा यह था कि अधिकांश शोषण अपराध के सजायफ्ता कैदियों का व्यवहार बदलने लगा। भय, बदले की भावना और क्रोध जैसे उत्तेजक भावों में स्पष्ट कमी आई। कैदी पहले की अपेक्षा अधिक प्रसन्न, खुश और शांत होने लगे। मादक द्रव्यों और शराब आदि के प्रति उनकी रुचि भी बढ़ी। भारत की भक्ति परंपरा बहुत प्राचीन है और कई भक्ति धाराएं यहाँ से प्रवाहित हुई हैं।

यहां अलग-अलग संस्कृति और विचार हैं, इसलिए हर धर्म के लोग ईश्वरीय शक्तियों का नाम लेते हैं। इस नाम का अर्थ है शांति और सुख। महेश योगी ने भावतीत ध्यान ध्यान प्रणाली बनाई। बहुत से लोग इस भावनात्मक ध्यान की खोज कर रहे हैं। बिहार प्रांत में एक विद्यालय योजनाबद्ध योग प्रशिक्षण देता है। पश्चिम में यह धारणा बलवती होती जा रही है कि योग रचनात्मकता और स्वस्थ शरीर का विकास करने का एक प्रभावी साधन है। अमेरिका में, एक कंप्यूटर लोगों को यौगिक क्रियाओं का ज्ञान देता है। हजारों म्यांमार के लेखा कर्मचारियों ने विपश्यना सीख ली है। इससे निश्चित रूप से इन कर्मचारियों की कार्यक्षमता में सुधार हुआ है। प्राचीन योग प्रणाली स्पष्ट रूप से वैज्ञानिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनती जा रही है। इससे कठिन बीमारियों से भी छुटकारा पाया गया है।

महर्षि अरविन्द ने योग को व्यावहारिक मनोविज्ञान बताया, जो न सिर्फ संभावना को बढ़ाता था, बल्कि तनाव को कम करता था। मानव शरीर प्रकृति ने बहुत उपयोगी बनाया है। योग बुद्धिवृद्धि करता है। इससे मन शांत होता है और तनाव दूर होता है। योग के सहयोग से विद्यार्थी, जो अपनी परीक्षाओं, जीवन तथा भविष्य के कार्यों में उत्कृष्टता चाहते हैं, अपना लक्ष्य दृढ़ता से प्राप्त कर सकते हैं। प्रातः या शाम (खाली पेट) सूर्य नमस्कार और योगासन करने से मन और शरीर दोनों स्वस्थ रहेंगे। दैनिक जीवन में आने वाले तनावों और समस्याओं को हराने के लिए दो घंटे तक ध्यान अभ्यास करना संभव है। योग चित्तवृत्तियों को शांत करने वाले व्यक्ति को खुशी और आनन्द देता है।

प्रश्न 4. योग हमें कार्य तथा पढ़ाई में किस प्रकार सहायता पहुँचाता है?

उत्तर – योग ध्यान के माध्यम से हमारे अध्ययन तथा कार्यों में अंतरराष्ट्रीय लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाने में मदद करता है और हमारी कार्यक्षमता भी बढ़ता है। प्राणायाम अभ्यास करने से व्यक्ति लम्बी व गहरी सांस लेने का अभ्यास करता है, जो ध्यान केंद्रित करने के लिए आवश्यक है। इस तरह, पाठ पर ध्यान केंद्रित करने से तथ्यों और विचारों का अच्छा ज्ञान मिलता है। तथ्यों को स्मरण करने में मदद मिलती है।

प्रतियोगिता की जगह सहभागिता का अभ्यास लेता है, जिसमें स्वार्थ की जगह निःस्वार्थता लेती है। दरअसल, व्यक्ति को अपनी महत्वपूर्ण मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग करना चाहिए। यही कारण है कि किसी भी काम को करते समय उसे आत्माभिव्यक्ति और विकास का अवसर मानने से कार्य में उत्कृष्टता आती है और व्यक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ती है।

प्रश्न 5. योग से हमारी सोच को कैसे दिशा मिलती है?
उत्तर- वास्तव में, योग मनोविज्ञान व्यावहारिक है योग जीवन का हर क्षेत्र है। योग व्यक्ति का कार्य को देखने का तरीका बदलता है। चुनौतियों की अनदेखी से बचाता है। व्यक्ति की कल्पनाशक्ति को बढ़ाता है। परस्पर संबंधों को मजबूत करता है।
योग और प्राणायाम के दौरान गहरी सांस लेने से ध्यान एक बिंदु पर केंद्रित होने लगता है। एकाग्र मन से व्यक्ति ध्यान अवस्था में आ जाता है ध्यानपूर्वक अध्ययन करने से तथ्यों और विचारों का व्यापक ज्ञान मिलता है योग स्मृति विकसित करता है। योगाभ्यास से ही प्रतियोगिता की जगह सहभागिता का भाव जागता है। शांत होते हैं क्रोध, ईर्ष्या, प्रतिद्वन्द्विता, आक्रामकता और उग्रता। व्यक्ति अधिक व्यवहारी हो जाता है जब वह तनाव से मुक्त हो जाता है।

प्रश्न 6. महर्षि पतंजलि का योग सूत्र क्या है?
उत्तर- योग क्या है? योग से व्यक्ति को जीवन में क्या मिलता है? मन पर नियंत्रण कैसे प्राप्त करें? आदि अनेक प्रश्नों पर विचार करते हुए महर्षि पतंजलि ने अपने ग्रंथ में योग के 196 सूत्र दिए हैं। S.com नामक यह योग सूत्र मूलतः चार भागों में विभाजित है। योग को परिभाषित करने के लिए पहले भाग में मन को नियंत्रित करने के तरीके बताए गए हैं। योग के आठ सोपानों का मार्ग दूसरे खंड में बताया गया है। साथ ही योग मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए उपायों का भी वर्णन किया गया है।
तीसरे खंड में परमसत्ता का स्वरूप और योग का मनुष्य शरीर, मन और बुद्धि पर प्रभाव बताया गया है। योग का पूरा ज्ञान रखने वाले व्यक्ति का विवरण चौथे खंड में मिलता है। ईश्वर के साथ अकेले रहने का भी स्पष्ट उल्लेख है।
इन चार खंडों में सूत्र हैं। सूत्र शब्द का अर्थ है किसी चीज को कम से कम शब्दों में सूत्र और संकेत रूप में व्यक्त करना। गणित में सूत्रों का उपयोग आम है। पतंजलि ने योग को भी सरल गणितीय सूत्रों के रूप में बताया है। योग के बारे में पूर्वजों के विचारों और ज्ञान को महर्षि पतंजलि ने सूत्र रूप में प्रस्तुत किया है। यह पतंजलि योग सूत्र विश्व भर में योग ज्ञान के भंडार के रूप में प्रसिद्ध है क्योंकि यह सूत्रात्मक है।

प्रश्न 7. समाधि अवस्था कैसे प्राप्त करेंगे?
उत्तर- योग सूत्र के दूसरे खंड में महर्षि पतंजलि ने योग के सोपानों का वर्णन किया है। इसमें पहले दो चरणों की चर्चा की गई है, जिस पर चलकर जीवन में कुछ आदतों और नियमों को अपनाकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, आपको पता होना चाहिए कि एक बर्तन में छेद होने पर दूध रखने से कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि सारा दूध रिसकर बह जाएगा। ऋषियों द्वारा बताए गए विधि निषेध को एकाग्रता से धारण न करके उन पर अमल न करने पर योग का कोई अर्थ नहीं रहता। इस प्रकार योग का महत्व सिद्ध किया गया है।

महर्षि ने दूसरे तीन चरणों में प्राण ऊर्जा (प्राणायाम) को बचाने और इंद्रियों से वापिस लेने (प्रत्याहार) की प्रक्रियाओं को शामिल किया है।
इस प्राणायाम प्रक्रिया से पूर्व ध्यान की स्थिति मिलती है। यह विचार अवस्था है। Neeraj इस स्थिति को प्राप्त करके ईश्वर के साथ एकात्म हो जाता है। इस समय व्यक्ति की चेतना ब्रह्म में लीन हो जाती है।
योग के सोपानों को पार करते हुए यह स्थिति समाधि कहलाती है।

प्रश्न 8. अन्तःकरण क्या है?
उत्तर- महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र में व्यक्ति की मानसिक क्षमताओं को उनके कार्यानुसार चार खण्डों में विभक्त किया है-
(i) मानस खण्ड,
(ii) बुद्धि खण्ड,
(iv) चित्त खण्ड।
(iii) अहंकार खण्ड,

इन चार भागों (खण्डों) से ही मिलकर अन्तःकरण बनता है। मानस द्वारा संकल्प और विकल्प किए जाते हैं यानी
मैं इस काम को करूंगा (संकल्प)
अगर यह नहीं हुआ तो क्या होगा? (विकल्प)
बुद्धि-पूर्व ज्ञान तथा विवेक के आधार पर निर्णय लेती है।
अहंकार-सभी भाव, विचार तथा स्मृतियों को संगठित करता हौ चित्त-यह वह चेतना है जिस पर विभिन्न प्रतिक्रियाओं की
तरंगें तथा लहरें पैदा होती हैं।
योग शास्त्र में मानस के दो ही प्रमुख व उल्लेखनीय कार्य संकल्प-विकल्प बताए गए हैं और चित्त या सभी मानसिक प्रतिक्रियाओं का उद्गम स्थल बताया गया है।

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