NIOS Class 10 Psychology Chapter 24 स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन

NIOS Class 10 Psychology Chapter 24 स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन

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NIOS Class 10 Psychology Chapter24 Solution – स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन

प्रश्न 1. योगासन क्या है ? प्रमुख योगासन तथा उनके सम्बन्ध में सामान्य निर्देशों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- योग पूरी तरह से व्यक्ति को स्वस्थ और तनावमुक्त जीवन जीने के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण सहायक होता है। यह एक आरामदायक जीवन जीने के लिए तैयार करता है। योगासन का विषय आम है। यौगिक क्रियाओं में कई प्रकार की मुद्रायें अथवा स्थितियों (आसनों) का उल्लेख है। योगासन हैं ये अलग-अलग मुद्राएं या आसन। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि योगासन क्रियाएं सांस भीतर लेने (कुंभक प्राणायाम) या सांस बाहर लेने (रेचक प्राणायाम अवस्था) से होती हैं।

योगासन शरीर का रक्त संचार बढ़ाता है। शरीर स्वस्थ और चुस्त रहता है। मस्तिष्क की शिराएं, ऊतक और कोशिकाएं भी ठीक रहती हैं। नियमित व्यायाम से कई बीमारियों से बच सकते हैं, जैसे ठंड, ज्वर, सिरदर्द और पेट की बीमारी। योग क्रियाओं या योगासनों से व्यक्ति अपने शरीर को ऐसी स्थिति में लाता है, जहां प्रकृति की शक्तियाँ उसे ठीक-ठाक रखने में अपना काम कर सकती हैं। योग के अनुसार निम्नलिखित मुद्राओं में से प्रत्येक के तीन आसन अवश्य करने चाहिए-

प्रमुख आसन
(1) खड़े होकर : ताड़ आसन, वीरभद्रासन, त्रिकोणासन
(2) बैठकर : वज्रासन, पश्चिमोत्तान आसन. उष्ट्रासन
(3) पीठ के बल लेटकर : पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, हलासन
(4) पेट के बल लेटकर : भुजंगासन,शलभासन, धनुरासन
( 5 ) शवासन या शिथिलासन: इन सभी में शवासन को आसनों का राजा माना जाता है, क्योंकि यह शरीर को आराम देता है। पूरी तरह से आराम की अवस्था में पेशियों में विद्युतीय चालन नहीं होता तथा मस्तिष्क भी आराम की अवस्था में रहता है।
आसनों के गुण – लाभ

(i) ताड़ आसन – रीढ़ की हड्डी मजबूत करने के लिए अच्छा है। इससे सीने का विस्तार होता है तथा रक्त संचार बढ़ता है।
(ii) वीरभद्रासन – यह आपके शरीर को भव्य बनाता है, पैरों की शक्ति बढ़ाता है तथा पेट की पेशियों की मालिश करना है और सीने का विस्तार करता है।

(iii) वज्रासन – इसे खाना खाने के पश्चात् करें। यह पाचन क्रिया में सुधार करता है तथा पीठ, जांघ और पैरों को शक्ति देता है ।
(iv) त्रिकोणासन- रीढ़ की हड्डी को शक्ति प्रदान करता है। शरीर के दोनों तरफ की चर्बी कम करता है व रक्त संचार को
(v) शवासन– श्वासन को आसनों का राजा माना जाता है, क्योंकि यह पूरे शरीर को आराम देता है। पूरी तरह से आराम की अवस्था में पेशियों में विद्युतीय चालन नहीं होता तथा मस्तिष्क भी आराम की अवस्था में रहता है।

आसनों का अभ्यास करने से पूर्व आवश्यक निर्देश
1. जहाँ संभव हो, आसन सुबह – सुबह और हवादार कमरे में करने चाहिए।
2. आसन खाली पाँव, किसी सख्त सतह पर चटाई या दरी बिछाकर करना अच्छा होता है। इसके लिए कपड़े भी ढीले होने चाहिए।
3. शुरुआत में आसन 30 सेकण्ड तक करने चाहिए। धीरे-धीरे इनका समय बढ़ाया जा सकता है।
4. इस पूरी अवधि में श्वास सामान्य तरीके से लिया जाना चाहिए ।
5. इस शवासन को अंत में करना चाहिए जिससे कि शरीर को पूरा आराम मिले।
6. आसन के तुरन्त बाद कुछ न खाएं।
7. सभी आसन किसी योग्य शिक्षक के दिशा-निर्देश में करें ।

प्रश्न 2. ज्ञान योग की परिभाषा लिखिये ।
उत्तर- ज्ञान योग एक प्रकार का योग है, जिसमें अज्ञानता जैसे अंधकार को दूर करके आध्यात्मिक ज्ञान की लौ जगायी जाती है। ज्ञान योग के अनुसार, कई लोग अपने बारे में कई प्रकार की गलत धारणायें बना लेते हैं और अपने चेहरे पर नकली आवरण ओढ़ लेते हैं। यह व्यक्ति को अहंकार और कई विवादों में डालता है।

प्रश्न 3. ध्यान के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर– यौगिक जीवन जीने के लिए, आसन-व्यायाम, खान-पान और सोने की आदतें सभी एक स्तर पर ध्यान अवस्था में आने की तैयारी हैं। व्यक्ति का मस्तिष्क एक जल से भरी हुई झील की तरह है। जब झील शांत होती है, पूरे आकाश की छाया उसमें नहीं दिखाई पड़ती, लेकिन जब झील शांत होती है, पूरे आकाश का प्रतिबिम्ब स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ध्यान करने का लक्ष्य व्यक्ति मस्तिष्क के लिए भी शांत होना है। ध्यान की असली भूमिका है, शांति, खुशी और जीवन से अलग होना।

ध्यान अवस्था में आने के लिए, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीध में रखे, छाती को थोड़ा फुलाएँ, अपने श्वास पर ध्यान दे और गहरी सांस लें। इस तरह एक व्यक्ति दो या तीन बार गहरी सांस लेता है। श्वास से निकलने वाली ध्वनि सुनने के लिए मस्तिष्क को इसी प्रक्रिया पर केंद्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। वास्तव में, ध्यान की अवस्था इस ध्वनि को सुनने के दौरान उत्पन्न होने वाले आंतरिक संगीत के साथ एकजुट होना है। यही ब्रह्मांड का स्पन्दन है। जब मन की भावनाएं और चिंताएं शांत हो जाती हैं, तो मस्तिष्क की झील शांत, खुश हो जाती है और सत्य का साक्षात्कार (प्रतिबिम्ब) करने में सक्षम हो जाती है।

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. योग क्या है ? योग में आहार, निद्रा व व्यायाम की भूमिका स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – योग एक कला और एक विज्ञान है। इसे हमारे पूर्वजों ने हमें बहुमूल्य संग्रह दिया है। आज, पूरी दुनिया इसके महत्व को समझते हुए सोचती है। महाशय योगिराज अरविन्द योग को व्यावहारिक मनोविज्ञान कहते हैं। और हम जानते हैं कि आज का युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी से भरा और गतिशील है, लेकिन दुःख की बात यह है कि संसार की जरूरतें पूरी करने के लिए हमें बहुत परिश्रम करना पड़ता है और इस प्रक्रिया में समन्वय की इच्छा होती है।

योगवास्तव में एक विज्ञान है जो हमें दुःख, तनाव और दर्द के कारणों के बारे में बताता है। योग आपको तनाव और दर्द से दूर रहने की आदत सिखाता है। यह हमारी मानसिक और शारीरिक प्रणालियों में उत्पन्न असंतुलन को दूर करता है। योगीराज अरविन्द ने व्यक्ति मनोविज्ञान को चेतना के अधययन के रूप में परिभाषित किया है। ज्ञान क्या है? असल में समझ के सन्दर्भ में चेतना का अर्थ है अपनी शक्तियों और अपने आसपास की चीजों को जानना। एक रचनात्मक और चलने वाली ऊर्जा है जो सिर्फ मनुष्य में है। वास्तव में, जो शब्द “चित्त” कहते हैं, वह व्यक्तिगत चेतना का ही कार्य है। ध्यान का स्तर इस कार्य से भी ऊपर है, जहां योग ही योग्यता है।

परमशक्ति के साथ एकजुट होना योग है। इस अवस्था तक पहुंचने के लिए मन और भावनाओं को शांत रखना चाहिए। योग चित्तवृत्ति को नियंत्रित करता है, ऐसा महर्षि पंतजलि ने कहा है। यहां चेतना का अर्थ मन है। वृत्ति, भावना, विचार, चेतना सागर शांत होने पर ही परमानन्द की अनुभूति होती है, जो शरीर और मस्तिष्क को स्फूर्ति देती है। वास्तव में, योग जीवन की कला और खुशी का साधन है।
योग के सामान्यतः दो पहलू हैं-
(i) बाह्य पहलू, (ii) आन्तरिक पहलू।

मुद्राएं (आसन) और श्वसन व्यायाम (प्राणायाम) दो बाह्य पक्षों का हिस्सा हैं। इसमें प्रकृति से जुड़े मुद्दे, व्यक्ति का आहार और व्यवहार शामिल हैं। ध्यान और एकाग्रता की अवस्था, जो व्यक्ति को उच्च स्तर की चेतना तक ले जाती है, योग का मूल हिस्सा है। फ्रायड के सिद्धान्त के अनुसार, यह उच्च स्तर की चेतना एक व्यक्ति की अवचेतनता है, जहां वह बाहरी जगत से हटकर अपने भीतर झांकता है और अंततः रहस्यों को समझता है। चेतना के इस उच्च स्तर पर पहुंचने पर ही व्यक्ति परमानन्द का अनुभव करता है। योग का सर्वोच्च लक्ष्य है जीवनानन्द से परमानन्द तक की यात्रा करना। योग के सिद्धान्त को समझकर यौगिक क्रियाओं द्वारा साधना करते हुए, अधिकांश लोग सुखी और सन्तुलित जीवन जीते हैं।

हम जानते हैं कि हमारे ऋषि-मुनि सौ वर्ष से भी अधिक समय तक स्वस्थ और लंबे जीवन जीते थे। ये सब योगाश्रित थे। सुखदायक जीवन भोजन – व्यक्तिगत योग सेयोग में भोजन को शुद्ध सत्व शुद्धि कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति जो खाता है, वह भोजन की प्रकृति को निर्धारित करता है और उपभोग करने का साधन बनाता है। योग का अर्थ है भोजन, सोना और व्यायाम। गीता में तीन प्रकार के भोजन की चर्चा आई है-
(i) सात्विक, (ii) राजसिक, (iii) तामसिक

सात्विक आहार सर्वोत्तम माना गया है। यह पोषक, अहानिकर तथा सुपाच्य होता है जैसे दूध, फल। राजसिक आहार गरिष्ठ, मसालेदार, देर से पाच्य होता है। यह मध्यम कोटि का माना गया है। तामसिक आहार, सूखा, बासी तथा हानिकारक होता है। यह व्यक्ति को आलसी बनाता है।

हम सब जानते हैं कि खनिज लवणों के कारण हमारा रक्त माध्यम क्षारीय होता है। जब यह रक्त सन्तुलन अम्लीय विषाक्त के कारण बिगड़ जाता है, तो व्यक्ति बीमार हो जाता है। संसाधित भोजन में अधिक अम्लीय तत्व हैं। ताजे फल और कच्ची सब्जियां खनिजों और लवणों से भरपूर हैं, जो रक्त की क्षारीयता को बढ़ाते हैं। एक व्यक्ति को आधा पेट खाना चाहिए, चौथाई पानी लेना चाहिए, और शेष चौथाई हवा में खाली रहना चाहिए।

सप्ताह में एक दिन उपवास करना पाचन को बेहतर बनाता है। रक्त में जमा अम्ल को हटाने में यह उपवास मदद करता है।
निद्रा भी अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सामान्य व्यक्ति को कम से कम आठ घण्टे की नींद चाहिए। देर से खाना खाने से नींद खराब होती है। विशेष रूप से मध्य रात्रि से पहले सो जाना अधिक आरामदायक होता है। ताजी हवा, विश्राम और व्यायाम दोनों आवश्यक हैं। व्यक्ति के शरीर की जरूरतें इससे पूरी होती हैं।

व्यायाम शरीर में रक्त संचार को बेहतर बनाता है। शरीर हल्का होता है या व्यक्ति काफी समय तक युवा रहता है। वसा या अतिरिक्त मोटापा नहीं बढ़ाता। व्यायाम नहीं करने से शरीर के अंग-प्रत्यंग थक जाते हैं। शरीर की लचीलापन कम होने लगती है, जिससे व्यक्ति पहले से ही बूढ़ा होने लगता है। शरीर भारी होता है और चीं और अम्लता जमने लगती है।

प्रश्न 2. योग के विभिन्न सोपान कौन से हैं?
उत्तर – योग साधना की दृष्टि से योग के आठ सोपान बताए गए हैं।
(1) यम – सामाजिक संदर्भ में योग-जीवन के लिए अभिवृत्तियां और नियम ।
(2) नियम – व्यक्तिगत शुद्धता के लिए अभिवृत्तियां और नियम |
(3) आसन – ध्यान के लिए सही मुद्रा ।
(4) प्राणायाम – श्वसन के जरिए अन्दर जाने वाली और बाहर जोड़ी जाने वाली प्राणवायु पर नियंत्रण |
(5) प्रत्याहार – इन्द्रियों का बाहरी सम्पर्क समाप्त करके उन्हें अन्तर्जगत से जोड़ना ।
(6) धारणा – विशेष वस्तु में ध्यान केन्द्रित करना ।
(7) ध्यान – दीर्घावधि तक ध्यान केन्द्रित रखना ।
(8) समाधि – चिन्तन की वस्तु के साथ एकात्म होना ।

प्रश्न 3. सूर्य नमस्कार क्या है ? इसके अभ्यास के समय कौन-से मंत्र बोले जाते हैं ?
उत्तर – सूर्य नमस्कार वास्तव में कई यौगिक मुद्राओं का मिश्रित एक समग्र आसन है। इससे हमारे शरीर के सभी अंगों का विधिवत व्यायाम हो जाता है। यही कारण है कि अकेला सूर्य नमस्कार एक पूर्ण व्यायाम है। इसके दौरान व्यक्ति सूर्य अर्थात रोशनी के देवता पर ध्यान देता है। यह सूर्य हमारे शरीर को ऊर्जा देता है। सूर्य नमस्कार में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सभी मुद्राओं के लिए 13 मंत्र बोले जाते हैं। ये मंत्र निम्नलिखित हैं-

ॐ मित्राय नमः |
ॐ सूर्याय नमः।
ॐ खगाय नमः ।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ।
ॐ आदित्याय नमः ।
ॐ अर्काय नमः।
ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः ।
ॐ रवये नमः ।
ॐ भानवे नमः ।
ॐ पूष्णे नमः ।
ॐ मरीचये नमः |
ॐ सावित्रे नमः ।
ॐ भास्कराय नमः ।

प्रश्न 4. प्राणायाम क्या है? प्राणायाम के कुछ प्रकारों एवं भेदों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- प्राणायाम- योग का मत है कि प्राण सिर्फ श्वास लेना नहीं है; यह ब्रह्मांड की ऊर्जा का स्रोत है। वास्तव में, यह सब जगह उपलब्ध है और जीवन का मूल सिद्धान्त है। सब जीव-अजीव में जीवन का हर रूप झलकता है। श्वास के अभ्यास, यानी प्राणायाम, प्राण संचालन को बढ़ा सकते हैं। यह देखा जा सकता है कि अधिकांश लोग सांस लेने की सही तरह से क्रिया को हर समय करते रहते हैं। हां, बच्चे सांस लेते हैं।

सांस लेते समय नाभि और पेट का हिस्सा बाहर निकलता है और सांस छोड़ते समय यह भीतर दब जाता है। दैनिक 60 बार से अधिक गहरी सांस लेना चाहिए, अगर वह स्वस्थ है। इससे उसे मानसिक बीमारियां, खांसी-जुकाम आदि तंत्रिका संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिलेगा। किसी व्यक्ति के मस्तिष्क को सामान्य से तीन गुनी अधिक शुद्ध वायु, या ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, ताकि वह पूरी तरह से कार्य करे। वह शरीर से उसे खींच लेता है अगर वह उसे नहीं पाती। यही कारण है कि मानसिक कार्य करने वाले लोग सामान्य व्यक्ति से कमजोर होते हैं।

e प्राणायाम अभ्यास में गहरी सांस लेने से पूरा शरीर स्वच्छ होता है। यह गहरी सांस लेना स्वास्थ्यकर है क्योंकि शरीर को पूरी हवा मिलती है। श्वास व्यक्ति के मस्तिष्क को प्रभावित करता है। चिन्ता में व्यक्ति तेजी से सांस लेता है, जबकि शांति में वह धीरे-धीरे सांस लेता है। जब कोई गहरी सांस लेता है, तो उसका मस्तिष्क भी शांत हो जाता है।

सामान्य रूप से एक व्यक्ति प्रति मिनट 13-14 बार सांस लेता है। कछुआ जैसे पशु एक मिनट में 5-8 बार सांस लेते हैं, इसीलिए मनुष्य से ज्यादा दिन तक जीवित रहते हैं जबकि जो लोग ज्यादा सिगरेट या शराब पीते हैं, न उसकी श्वास दर अधिक होती है। दौड़ते समय की श्वास दर अधिक होती है, किन्तु व्यायाम व प्राणायाम व्यक्ति की पेशियों को स्वस्थ करते हैं, उनमें रक्त संचालन को बढ़ाते हैं। इससे व्यक्ति का स्वाभाविक सांस लेना धीरे-धीरे गहरा हो जाता है, जो उसकी आयु में वृद्धि करता है। प्राणायाम के कुछ और प्रकार

(1) पूरक : गहरी सांस लेना।
(2) रेचक : गहरी सांस छोड़ना।
(3) कुम्भक : सांस लेने को कुछ सेकण्ड तक रोकना या फिर सांस छोड़ने के बाद कुछ सेकेण्ड रुककर पुनः सांस लेना।
(4) कपालभाति : आप जल्दी-जल्दी सांस छोड़ते हैं। यह पेट की पेशियों की हल्की मालिश करता है।
(5) भासस्तिका : यह जल्दी-जल्दी सांस लेना और छोड़ना है।
(6) शीतली : जीभ को नली जैसा बनाकर मुंह से सांस लेते हैं और नाक से सांस छोड़ते हैं। गरमी में यह शरीर को ठंडा रखता है।
(7) सीतकारी : सीतकारी में हम मुँह के द्वारा धीरे-धीरे सांस लेते हैं और मुँह से ही छोड़ते हैं।

प्रश्न 5. व्यक्ति के जीवन में योग का महत्त्व बताइए ।
उत्तर – योग में भोजन का बहुत महत्व है क्योंकि हमारा खाना हमारी प्रकृति को प्रभावित करता है। हमारे शरीर को आराम, ताजी हवा और व्यायाम चाहिए। योग में कई मुद्राएं या आसन हैं, जो शरीर में रक्त-संचार को बढ़ाते हैं और शरीर को चुस्त रखते हैं। यह भी मस्तिष्क, ग्रंथियों, शिराओं, ऊतकों और कोशिकाओं को सुरक्षित रखता है। नियमित व्यायाम करने से कई बीमारियों से बच सकते हैं, जैसे ठंड, बुखार, सिरदर्द और पेट की बीमारी।

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