NIOS Class 10 Psychology Chapter 23 परिवेशीय तनाव

परिवेशीय तनाव के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- (क) जल प्रदूषण – मानव जीवन के लिए पानी वायु के बराबर महत्वपूर्ण है. सिर्फ मानव नहीं, बल्कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों, वनस्पतियों और शुद्ध पानी के बिना जीवन संभव नहीं है। जीवन अशुद्ध जल से बर्बाद हो जाता है। जल प्रदूषण कहलाता है यदि पानी में ऐसे पदार्थ अधिक मात्रा में मौजूद हों, जो पानी को जीवों और वनस्पतियों के लिए घातक बना दें।
प्रदूषित जल से होने वाली बीमारियां पाचन तंत्र को अधिक प्रभावित करती हैं। इनमें प्रमुख हैं हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, पेचिश और आंतों में कृमी। दस प्रतिशत इन बीमारियों में संक्रामक होते हैं, लेकिन बीस प्रतिशत प्रदूषित जल से होते हैं।

इन बीमारियों के होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(क) घरेलू तथा मनुष्य के मल से युक्त पानी से
(ख) औद्योगिक अपद्रव्यों से प्रदूषित जल से
(ग) खेतों में बहकर आने वाले पानी से

यह अक्सर देखा गया है कि बिना शोधन के सिंचाई के लिए घरेलू तथा मनुष्य के मल से प्रदूषित जल प्रयोग किया जाता है। ऐसे पानी और औद्योगिक अपद्रव्यों को नदियों में बहाया जाता है। इससे नदी का जल संक्रमित होता है।
उद्योग जल में घातक रासायनिक पदार्थ होते हैं। यह नदी के शुद्ध पेय जल को खराब करता है। ऐसे जल का परिशोधन कठिन है। ऐसा जल भूमिगत जल को भी प्रदूषित करता है।

इसका उदाहरण दिल्ली की यमुना है, जिसमें खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा है। लेकिन सरकार इस प्रदूषण को नहीं देख रही है।
हम जानते हैं कि जीवन का आधार जल है। प्राण जीवन है। यदि इसके परिशोधन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया, तो देश में पीने के पानी का गंभीर संकट दूर नहीं है। इसलिए जल प्रदूषण को समय रहते रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

(ख) ध्वनि प्रदूषण – मानव कान आम तौर पर एक निश्चित वेग की ध्वनि तरंगों को सुन सकते हैं, इसलिए अधिक वेग की ध्वनि कानों की सुनने की क्षमता को खराब करती है।
क्या कोई सामान्य परिस्थितियों में ऐसे वातावरण में काम कर पाएगा? उदाहरण के लिए, यदि आप तेज संगीत सुनते हैं जब आप बातचीत नहीं कर सकते हैं या रेल की पटरियों के पास खड़े होकर बातचीत करते हैं, जहां रेल तेजी से दौड़ती है? योग्य नहीं होगा। इसका स्पष्ट कारण है कि ऊंची आवाज में आम बातचीत करना और सुनना असंभव है।

ध्वनि प्रदूषण यही है। ध्वनि प्रदूषण, यानी जिस ध्वनि रूप की तीव्रता भौतिक रूप से मनुष्य की सुनने और काम करने की क्षमता को प्रभावित करती है, उसे परेशानी कहते हैं। रात भर भगवती जागरण या जगराता कार्यक्रम में होने वाले शोर से अधिकांश आम लोग त्रस्त हो जाते हैं, विशेष रूप से बड़े-बड़े नगरों-शहरों में मोटर गाड़ियों, वाहनों, हवाई जहाजों, मिलों और लाउड स्पीकरों के शोर से। चुनाव के दौरान होने वाले शोर भी ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाता है।

ध्वनि प्रदूषण के मनोवैज्ञानिक प्रभाव

(i) स्वास्थ्य– यातायात की ध्वनि से फैला प्रदूषण अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, अवसाद तथा दमा को जन्म देता है। भारी कोलाहल से व्यक्ति के कान के परदे फट जाते हैं, जिससे वह जीवन भर के लिए सुनने की क्षमता खो बैठता है। यही नहीं, व्यक्ति अवसाद से भी पीड़ित हो जाता है। कोलाहलपूर्ण स्थानों पर काम करने वाले कर्मचारी अक्सर सांवेगिक तनाव और चिन्ता की शिकायत करते हैं। यह तनाव व्यक्ति को अधिक आक्रामक बनाता है और उसकी परहित भावना कम होती है। यह पारस्परिक सम्बन्धों को भी प्रभावित करता है।

(ii) सम्प्रेषण – तीखी और तेज ध्वनि कर्ण को कटु बनाने के अलावा बातचीत या संप्रेषण में भी बाधा डालती है। इससे कार्यक्षमता में काफी कमी आती है और व्यक्ति अपने काम से काफी संतुष्ट होता है।
जिन कमरों में अधिक शोर होता है, वहां काम की स्पष्टता, ध्यान और कार्य स्तर में बहुत अधिक कमी होती है।

(iii) दुर्घटनाएं- दूसरे अन्य प्रभावों के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण के कारण दुर्घटनाएं भी अधिक होती हैं।

(घ) जन प्रदूषण (भीड़) सभी जगह होता है, चाहे बस, रेलवे स्टेशन, बाजार, गांव या मेला प्रदर्शनी हो। यह भीड़ कई बार आपको घबराहट, क्रोध और क्रोधित करती है। यदि कहीं जरूरी जाना पड़े और बस या रेल से यात्रा करनी पड़े तो बस स्टेशन पर लंबी लाइनें देखकर मन घबरा जाता है। लेकिन भारी भीड़ विवाह, स्कूल के वार्षिकोत्सव या किसी अन्य सार्वजनिक समारोह में भी सुखदायक होती है।
वास्तव में, मनोविज्ञानियों का मानना है कि यह विकास, मनोवेग, अपराध और व्यवहार पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है। भीड़ का असर-ये कुछ उदाहरण व्यक्ति के व्यवहार पर भीड़ का प्रभाव दिखाते हैं-

(i) अपराध-जैसा कि गरीबी, अभाव और अपराध के बीच होता है, भीड़ और अपराध के बीच संबंध स्पष्ट नहीं है।
जेबकतरे अक्सर भीड़ में ही अपने हाथ की सफाई दिखाकर अपराध करते हैं, जैसे पॉकेट काटना या चेन खींचना, और अक्सर भीड़ का गलत फायदा उठाते हैं। सिनेमा हॉल के बाहर, बस स्टैंड पर, बस या रेल में सफर करते समय ऐसी घटनाएं अक्सर देखने को मिलती हैं।

(ii) जेल तथा मनोचिकित्सा संस्थान– जेलों में अक्सर भीड़ होती है। इसके परिणामस्वरूप, जेल अधिकारियों और केदियों के बीच होने वाले झगड़े भीड़ का ही व्यवहार है।

(iii) संवेग तथा व्यवहार– भीड़ से व्यक्ति का व्यवहार और संवेग भी खराब हो जाता है। भीड़ ही व्यक्ति को तनाव और उत्तेजना में डालता है। ऐसे में उच्च रक्तचाप और हृदय गति बढ़ने जैसी बीमारियाँ उसे परेशान करती हैं। इससे व्यक्ति नाराज़ होने या क्रोधित होने लगता है। भीड़ ही व्यक्ति को संवेदनहीन बना देती है। यह स्पष्ट है कि भीड़ एक व्यक्ति का सामान्य व्यवहार प्रभावित करती है।

(ग) ताप प्रदूषण (पादप गृह प्रभाव) बहुत समय से मनुष्य का व्यवहार प्रकृति के खिलाफ है। इसमें विज्ञान प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि विज्ञान सुविधाएं भी देता है लेकिन सावधानियां भी देता है। मनुष्य सुविधाओं को लेने में जितनी जल्दी होता है, उतना ही सावधानियों पर ध्यान नहीं देता। कुल मिलाकर, इसका परिणाम पर्यावरण के विपरीत है।

जल, वायु, ध्वनि तथा जन प्रदूषण के अलावा पृथ्वी पर काफी समय से चल रहे प्रदूषण के कुछ उदाहरण हैं: डीजल और पैट्रोल के दहन, कोयले और वनों के दहन और क्लोरोफ्लोरो कार्बन के दहन, जो वनों के प्रशीतन के लिए किया जाता है। इस तरह की मानवीय गतिविधियों के कारण पृथ्वी और समुद्र के तापमान लगातार बढ़ रहे हैं।

यही नहीं, इस तरह की तापवृद्धि के साथ-साथ समुद्री तूफान, अतिशय गर्मी, सर्दी और उत्तरी-दक्षिणी ध्रुव क्षेत्रों पर बर्फ के पिघलने से समुद्र तल भी ऊंचा उठने लगा है। ऐसा विश्व भर में कई जगह देखा गया है। समुद्र तल हर पाँच वर्ष में एक इंच बढ़ता है। इस समय भारत के दक्षिण-पश्चिम में मालदीव के तीन द्वीप पूरी तरह से डूब चुके हैं।

भूगर्भ विज्ञानी का मानना है कि पादप गृह प्रभाव इस बदलाव का कारण है। ठण्डे क्षेत्रों में पौधों के विकास के लिए धूप की जरूरत को पूरा करने के लिए शीशे के घर बनाए जाते हैं। पादप घर इन्हीं हैं। पादप घर की छत शीशे से बनाई गई है, जो गर्म हवा को रोकती है लेकिन धूप को भीतर आने देती है। सूर्य की गर्मी मीथेन, सी.एफ.सी., कार्बन डाईऑक्साइड और मीथेन को भी गर्म करती है।

इससे धरती पर एक प्रकार का पादप घर बनता है। इससे वातावरण गर्म होता है। इस तरह, 1800 के मध्य में इन तीनों गैसों के स्तर में वृद्धि हुई और आज भी जारी है। मौसम विज्ञानियों का अनुमान है कि आगामी सौ वर्षों में वायुमण्डलीय ताप 3 से 5 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाएगा। 1-2 डिग्री फारेनहाइट ताप ही मौसम को बदल सकता है। इससे दुनिया भर में कृषि उत्पादन पर असर हो सकता है। ध्रुवों पर बर्फ पिघल सकती है, समुद्र तल बढ़ सकता है और तटीय क्षेत्र की बहुत सी भूमि समुद्र में डूब सकती है।
भूमण्डलीय गर्मी की समस्या को कम करने के लिए मानव के व्यवहारों में बदलाव लाया जा सकता है। वनरोपण और प्रशीतन के लिए सी.एफ.सी. के प्रयोग पर रोक लगाकर कार्बनडाई ऑक्साइड की मात्रा को कम करना ही इसका एकमात्र उपाय है।

प्रश्न 2. सम्पोषित विकास क्या है?
उत्तर – सम्पोषित विकास पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए संसाधन जुटाना और समाप्त हुए संसाधनों को बचाना है। इस दिशा में सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि मनुष्य प्रकृति के संसाधनों का उपयोग ही नहीं करता, बल्कि उनका निर्ममता से अपव्यय भी करता है। यह आज की उपभोक्तावादी संस्कृति का परिणाम है। कठिनाई यह है कि आज की उत्पादन तकनीकी जिन संसाधनों का उपयोग कर रही है, उनकी मात्र प्रवृत्ति में सीमित है. बढ़ती जनसंख्या और इसके कारण बढ़ती मांग के कारण प्राकृतिक संसाधनों में कोयला, गैस, पैट्रोलियम आदि के अरूप भण्डार में लगातार कमी हो रही है, और यह प्रक्रिया एकमार्गी है, यानी इन संसाधनों की फिर से भरपाई नहीं हो सकेगी।

ऐसे में हम कल्पना कर सकते हैं कि जब प्रकृति का अनंत कोश रिस जाएगा, तो मानव जाति और विश्व सृष्टि का क्या होगा? मानव ने वन संपदा, जल और अन्य संसाधनों का इतना बड़ा उपयोग किया है कि जल्दी ही इन विपुल संसाधनों में कमी आ जाएगी। लेकिन प्रकृति में आत्मसात करने की क्षमता है, और इसका अपना समय है। आमदनी कम खर्च ज्यादा वाली कहावत अगर चरितार्थ होती रही तो कोश खाली होगा ही क्योंकि संसाधन का उपयोग और उनका फिर से पुनर्नवीकरण नहीं हुआ है। साथ ही, जल, वायु और भीड़ के स्तरों पर निरंतर प्रदूषण का स्तर भी बढ़ रहा है, जो एक और खतरनाक प्रवृत्ति है।

प्रकृति के संसाधन इससे और भी जल्दी खत्म हो जाएंगे। तब शुद्ध जल और वायु नहीं मिलेंगे। आने वाली पीढ़ी उन्हें इस्तेमाल कर सकेगी। वास्तव में, पर्यावरण प्राकृतिक सीमा से नहीं जुड़ा है, इसलिए पूरे विश्व में कहीं भी पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाली कोशिश या व्यवहार पूरे पर्यावरण के लिए घातक हो सकता है। यही कारण है कि विकसित और विकासशील सभी देशों का दायित्व है कि वैश्विक पर्यावरण पर होने वाले नकारात्मक और दोषपूर्ण व्यवहारों पर कठोर प्रतिबन्ध लगाया जाए। क्योंकि विश्व का सही अर्थ में विकास सम्पोषित विकास से ही होगा। यदि यह संभव है, तो यह आज की पीढ़ी का एक असली उपहार होगा, अगर नहीं तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।

प्रश्न 3. पर्यावरण सम्पोषण की दृष्टि से प्रमुख सकारात्मक व्यवहारों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – विश्व स्वास्थ्य एवं क्रमिक विकास की दृष्टि से पर्यावरण सम्पोषण का महत्त्व समझते हुए मानव मात्र को कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना होगा। ये प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-
1. जल संरक्षण करें। इसका अनावश्यक उपयोग रोके ।
2. सार्वजनिक यातायात का उपयोग करें।
3. सामान ले जाने-लाने हेतु कागज या कपड़े के थैले का उपयोग करें। कम उपयोग करें।
4. ऊर्जा का कम पास बगीचा है, तो सब्जियों के कचरे का
5. यदि आपके कम्पोस्ट बनायें।
6. आप जिन चीजों का उपयोग करते हैं अथवा बाजार से खरीदते हैं, उनमें कमी लाएं।
7. पुनः निर्मित कागज को प्राप्त करने का प्रयास करें।
8. अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें।
9. उन्हीं उपकरणों को खरीदें, जो ऊर्जा का उपयोग ठीक से कर सकें।
10. अनावश्यक बिजली उपयोग कम करके बिजली की बचत करें।
11. जमीन के जल को नुकसान पहुँचाने वाले तत्त्वों का उपयोग अपने घर में न करें। जैसे ऐसा डिटरजेंट उपयोग में लाए। जो फास्फेट मुक्त हो तथा अवांछित रसायनों को नाली में न गिराएं।

यह चेतावनी व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर उपलब्ध है। सामाजिक अपराधों की दृष्टि से दंडविधान कठोर होने के कारण, ऐसा न करने वाले के विरुद्ध लक्ष्य प्राप्ति कुछ सरल हो सकती है।
हम सभी जानते हैं कि “बूंद-बूंद से घट भरे”, इसलिए हम सभी का कर्तव्य है कि अपने-अपने स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण के तरीकों पर गंभीरता से विचार करते हुए पर्यावरण संरक्षण पर विचार करें।

यह उदाहरण इस मामले में आसानी से समझा जा सकता है:ग्रीक दार्शनिक प्लेटो एक बार अपने शिष्यों के साथ एथेन्स की सड़क पर घूमता था। उनके शिष्य की दुकान पास में थी।
जब शिष्य ने अपने गुरु को दुकान के पास से गुजरते देखा, तो वह दौड़ कर उनके पास गया और उनसे दुकान पर चलने की विनती करने लगा।Om, शिष्य के सम्मान से मुग्ध होकर प्लेटो उसकी दुकान पर चला गया। विद्यार्थी ने अपने गुरु से कहा, “सर! आप जो चाहें ले लें।”

सभी वस्तुओं पर नज़र डालने के बाद शिष्य ने सहजता से कहा, वत्स! मुझे लगता है कि यहां कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसकी मुझे तुरंत आवश्यकता है। मैं आपके प्रस्ताव का सम्मान करता हूँ, लेकिन कुछ नहीं चाहिए यह सरल है। क्योंकि इच्छा और आवश्यकता में भेद होना चाहिए, बाजार या कोई और जगह अनावश्यक रूप से किसी वस्तु के प्रति आसक्ति या मोह निरर्थक है। यह विभेद बहुत मुश्किल नहीं है। बस कुछ बातों का सदैव ध्यान रखना चाहिए-

1. व्यक्ति की इच्छा इसमें आवश्यकता का कोई संबंध नहीं है, इसलिए इच्छा से अधिक आवश्यकता पर विचार करना चाहिए।
2. जीवन आवश्यकता के बिना संभव नहीं है। हमारी शारीरिक आवश्यकताओं में जल, वायु, घर, कपड़ा, भोजन, औषधियां शामिल हैं। कुछ मांग व्यावहारिक हैं। लिखने के लिए पैन, डैस्क और कारीगर को उनके उपकरण चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के पास सीमित आवश्यकताएं हैं।

3. यही कारण है कि किसी भी वस्तु को खरीदते या लेते समय विचार करना चाहिए कि क्या वह हमारी आवश्यकता है या हमारी इच्छा है। इच्छा की जगह आवश्यकता की पूर्ति चाहिए। क्योंकि इच्छा का कोई अंत नहीं होता, परित्याग ही श्रेयष्कर है।
4. आवश्यकता न होने पर चाहकर खरीदी या ग्रहीत वस्तु धन की बर्बादी को भी बढ़ाती है। इनसे बचना होगा।
5. कम से कम इच्छा के साथ एक व्यक्ति को अपना जीवन जीना चाहिए।

इस प्रकार व्यवहार धर्म पालन से निश्चय ही हम स्वयं को पर्यावरण संसाधनों के दुरुपयोग से उनके प्रदूषित होने से बचा सकते हैं और इस तरह सामूहिक रूप से किया जाने वाला यह व्यवहार सकारात्मक उपाय के रूप में राष्ट्र ही नहीं, विश्व के विकास में सहायक होगा।

प्रश्न 4. प्रदूषक क्या है ?
उत्तर – हवा तथा पानी में उपस्थित अन्य हानिकारक तथा प्रदूषण के कारक पदार्थ प्रदूषक कहलाते हैं। इनसे मनुष्य तथा पशुओं के समझ अनेक तरह की समस्याएं आती हैं।

प्रश्न 5. सम्पोषित विकास क्या है?
उत्तर – संसाधनों का संरक्षण, विशेष रूप से पर्यावरणीय संसाधनों का, संपोषित विकास का लक्ष्य है। इसमें मनुष्य का उपयोग और अपव्यय करने वाली जीवन-शैली सम्पोषित विकास का विषय है। यह अक्षय भण्डार कभी भी खत्म हो सकता है क्योंकि आज उत्पादक तकनीक का किस प्रकार उपयोग कर रहे हैं। इसके लिए पर्यावरण की सुरक्षा के साथ सम्पोषित विकास को अपनाने से विकास की ओर बढ़ा जा सकता है। वृक्षारोपण और मितव्ययिता से यह कार्य संभव है।

इस पोस्ट में आपको Nios class 10 psychology chapter 23 question answer Nios class 10 psychology chapter 23 solutions Nios class 10 psychology chapter 23 pdf Nios class 10 psychology chapter 23 pdf download nios class 10 psychology book pdf Nios class 10 psychology chapter 23 notes Nios class 10 psychology chapter 23 environmental stress questions एनआईओएस कक्षा 10 मनोविज्ञान अध्याय 23 परिवेशीय तनाव से संबंधित काफी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर दिए गए है यह प्रश्न उत्तर फायदेमंद लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और इसके बारे में आप कुछ जानना यह पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट करके अवश्य पूछे.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top