NIOS Class 10 Psychology Chapter 22 संगठन का जगत

संगठन का जगत के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. संगठनात्मक वातावरण पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर- यहां, “संगठनात्मक वातावरण” का अर्थ है किसी भी संगठन में काम करने वाले वातावरण, और किसी भी संगठन को स्थायित्व देने वाली शक्ति उसके आंतरिक स्वस्थ वातावरण में निहित है। यदि किसी संगठन में काम करने के लिए एक स्वस्थ वातावरण है, तो कर्मचारी इसे अपना सर्वश्रेष्ठ गुण मानते हैं। इससे सदस्यों का पारस्परिक व्यवहार काम के प्रति दायित्व का भाव भी जगाता है, साथ ही संगठन के बारे में उनका अनुभव कैसा है। यानी प्रशासनिक घटक द्वारा संगठनात्मक नियमों को समान रूप से लागू करना। इसमें संगठन के सदस्यों की राय भी शामिल है। संगठ वातावरण का खुलासा करने वाली विशेषताओं को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जा सकता है-

(क) ये विशेषताएं एक संगठन को दूसरे से अलग करती हैं ।
(ख) एक समय विशेष तक अपेक्षाकृत स्थायी रहती हैं।
(ग) संगठन के लोगों को प्रभावित करती हैं।

इस पूरी प्रक्रिया में व्यक्तिगत कार्यों को संगठन में देखना महत्वपूर्ण है। ये सामूहिक कार्य वातावरण की कार्यप्रणाली और स्थायित्व (स्थिरता) पर कुल प्रभाव निर्धारित करने में सहायक हैं। स्पष्ट है कि संस्थागत वातावरण को पूरी तरह से देखना चाहिए।
संगठन के वातावरण को देखते हुए, यह भी देखना होगा कि सदस्यों का पारस्परिक व्यवहार और आपसी सहयोग संतोषजनक स्तर का हो। संगठन की प्रभावकारिता इन बातों से निर्धारित होती है। इसके लिए स्वस्थ स्थिति निम्नवत् होनी चाहिए-
1. संगठन में परस्पर संवाद की स्थिति ।
2. कर्मचारी परस्पर सहयोग भावना वera
3. संगठन के प्रति कर्मचारियों की निष्ठा भावना हो ।

इन परिस्थितियों से ऐसा संगठन अधिकांश में कामयाब और सफल होगा। ऐसे वातावरण में काम करने वाले लोग सबसे अधिक खुश होंगे। कर्मचारियों को संगठन के प्रति लगाव होगा। नतीजतन, आशा के अनुरूप और उत्साहवर्धक उत्पादकता होगी।
अतः स्पष्ट है कि इस प्रकार संगठन के वातावरण से कर्मचारी अत्यधिक सन्तुष्ट होंगे तथा उत्पादकता बढ़ेगी।

प्रश्न 2. किसी कार्य – स्थल पर अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों के महत्त्व का प्रतिपादन कीजिए ।
उत्तर – स्वयं कार्य एक सामाजिक गतिविधि है। कोई भी काम अपने स्वरूप, प्रासंगिकता, प्रभाव तथा परिणामों में अकेला नहीं होता; इसके बजाय, उसमें दूसरों के साथ सामाजिक सरोकार वार्तालाप या संपर्क होना चाहिए। व्यापारी अपने ग्राहकों, डॉक्टर अपने मरीजों, शिक्षक अपने विद्यार्थियों और सुपरवाइजर अपने अधीनस्थों के साथ संपर्क बनाए रखते हैं। ठीक उसी तरह, कोई भी काम एक वर्ग, समूह की अन्तःक्रिया और अंतःसम्बन्ध पर निर्भर करता है। इसे मानवीय गुण के रूप में स्वीकार किया जाता है कि आपसी संबंधों में सन्तुष्टि पाने की प्रवृत्ति मनुष्य के जन्म से ही है।

वास्तव में, यह एक दोस्ती है। परस्पर व्यवहार का एक अदृश्य समझौता है कि व्यक्ति कार्य में प्रवृत्त होता हुआ परिवेश से जुड़ता है, संपर्क करता है, संबंध बनाता है, और यह भी सच्चाई है कि संबंध तभी बनता है जब व्यक्ति से उचित व्यवहार की उम्मीद की जाती है।

काम करते समय कर्मचारियों को अपने आसपास के साथ कई प्रकार के संबंध बनाने पड़ते हैं। इन संबंधों का कारण दो बातें हैं। काम के प्रति व्यक्ति की औपचारिक भूमिका और संगठन की श्रेणीबद्धता में कार्याधिकारी प्रमुख, सहयोगी श्रमिकों और अपने बराबर के साथियों के साथ काम करना इसकी व्याख्या निम्नलिखित हो सकती है:

वरिष्ठ अधिकारी– अधीनस्थ संबंधकर्मचारियों को अपने कार्यक्षेत्र में निकटस्थ प्रमुख के साथ संपर्क-सम्बन्ध बनाना पड़ता है और यह विभाग (संस्थान) प्रमुख पर निर्भर करता है कि वह अपने अधीनस्थ सहयोगियों की सहभागिता को कार्यों, कार्यक्षमता, मूल्यांकन, वेतन वृद्धि और पदोन्नति का निर्णय करने में महत्त्व देता है या नहीं। प्रमुख के साथ सहयोगियों के संबंध बॉस पर निर्भर करते हैं।

नेतृत्व शैली– कर्मचारियों के साथ संबंधों का स्वरूप
निरंकुश– प्रबन्ध समिति आदेश देती है और उन्हें लागू कराने तथा अधीनस्थों से कार्य पूरा कराने के लिए धमकियों और दंड का सहारा लेती है। संचार एकतरफा ऊपर से नीचे की ओर होता है। वितृकल्पीय नेतृत्व-मूल रूप से निरंकुश किन्तु अधीनस्थों के कुछ प्रभाव की अनुमति बॉस देता है। बॉस और अधीनस्थ के बीच दो तरफा संचार होता है-आदेश मनवाने के लिए पुरस्कारों और सजाओं का प्रावधान।

परामर्शकारी-कर्मचारियों से सलाह-मशविरा करके लक्ष्य तय किए जाते हैं और आदेश दिए जाते हैं। कुछ हद तक टीम कार्य को प्रोत्साहित किया जाता है।

भागीदारी- लक्ष्य तय करने में कर्मचारियों की पूर्ण भागीदारी और दोतरफा संचार का मानदंड होता है।
अक्सर देखा यह गया है कि यदि कार्य प्रमुख अपने अधीनस्थों की आवश्यकताओं, भावनाओं तथा उनके फैसलों के दृष्टिकोण को महत्त्व देता है, तो अनुपात की दृष्टि से जितनी अधिक यह भागीदारी होती है, उतनी ही अधिक कर्मचारियों में कार्य सन्तुष्टि होती है और जाहिर है कि उत्पादकता भी उतनी ही बढ़ती है। साथ ही यह बात भी स्पष्ट है कि कर्मचारियों में कामचोरी या गैर- हाजिरी भी उसी अनुपात में कम हो जाती है।

सहकर्मियों व साथी समूहों के साथ सम्बन्ध- कार्यस्थल पर एक व्यक्ति का अधिकांश समय अपने साथियों और सहकर्मियों के साथ बिताता है, जिससे उनका अनुभव प्रभावित होता है। यह भी सच है कि कई बार औपचारिक संगठनों का ढांचा ऐसा होता है कि उनके नियमों के कारण कर्मचारियों में परस्पर संबंध विकसित नहीं हो पाते। रुचि, पसन्द और नापसन्द जोड़ीदार समूह के साथ जुड़ने पर बहुत बड़ा असर पड़ता है और उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।

कुछ सहकर्मी साथ-साथ काम करते हैं, एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं या एक-दूसरे के आसपास काम करते हैं। इससे उन्हें आपस में बात करने, एक दूसरे का हाल जानने, घर-परिवार के बारे में जानने का अवसर मिलता है। आपस में विश्वास पैदा होता है। जब इन संबंधों का दायरा इतना मजबूत और पक्का हो जाता है, तो नया आया हुआ व्यक्ति भी अपने जोड़ीदार समूह के काम से नए अनुभव प्राप्त करने लगता है। उसे नए स्थान पर कामकाज, व्यवहार और अपनी सीमाओं का पता चलता है। वह अपने समूह में अपनी सारी शंकाएँ दूर कर सकता है और खुलकर अपनी बात कह सकता है, लेकिन अधिकारियों और अपने मालिक के सामने कैसे व्यवहार करना है, यह भी उसे अपने वरिष्ठ साथियों से सीखने का अवसर मिलता है। ऐसे वातावरण में काम करने वाले व्यक्ति काम से खुश होते हैं।

संगठनात्मक समाजीकरण – यह एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने नए कार्यस्थल में स्थान पाने के लिए आवश्यक समाजिक ज्ञान और कौशल प्राप्त करता है। यह प्रक्रिया शुरू होती है जब व्यक्ति के माता-पिता या अन्य संबंधी ही उसे समाज की प्रकृति, व्यवहार, बर्ताव और अपेक्षित समझ से परिचित कराते रहते हैं। वह अपने माता-पिता की देखभाल में घर-परिवार से अपनी प्रारंभिक सामाजिक शिक्षा प्राप्त करता है. फिर, जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता जाता है, उसका सामाजिक दायरा बढ़ता जाता है और उसे जीवन के हर चरण में होने वाले बदलाव का सामना करना पड़ता है।

उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने कार्यक्षेत्र में प्रवेश करता है। इस समय उसे एक नई व्यवस्था, नई प्रणाली और नया अनुशासन में काम करना होगा। उसके पास एक निर्धारित समय है जिसमें उसे अपेक्षित काम पूरा करना होगा। ऐसे में उसे अपने आप को पूरी तरह से नए परिवेश में ढालने में कुछ समय लगता है। एक तरफ, उसे अपनी पात्रता, क्षमता और अभिक्षमता को सीधे अपने अधिकारी वर्ग के सामने दिखाना होगा, कसौटी पर खरा उतरना होगा।

दूसरा, उसे अपने कार्यस्थल पर सौहार्द, सहज आत्मीयता और अपनापन का वातावरण बनाने में सहयोग लेना और देना होगा। यानी दोनों ही स्तरों पर, कर्मचारी वर्ग और अधिकारी वर्ग के बीच समायोजन करना होता है, तभी कोई व्यक्ति नई जगह पर काम करके खुश हो सकता है। व्यक्ति को दूसरों के साथ सहयोग करना और व्यवहार करना सीखना चाहिए। अंतवैयक्तिक संबंध बनाने के तरीके सीखने पड़ते हैं। यह संबंध ही व्यक्ति को संगठन में स्वीकार्य बनाते हैं और अभिवृत्तियों को बताते हैं। हम कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति का किसी संगठन में शामिल होना उसके समाजीकरण में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

यही कारण है कि समाजीकरण एक अनवरत प्रक्रिया है। यह एकमात्र घटना नहीं है। और इसमें व्यक्ति और संस्था दोनों को स्थिति के अनुसार एक-दूसरे के साथ समायोजन करना होगा। यही कारण है कि यह एक दोतरफा प्रक्रिया है। इससे संगठन न केवल अपने मूल्यों, लक्ष्यों और उद्देश्यों को बदलता है, बल्कि महिलाओं और अल्पसंख्यक कर्मचारियों की आवश्यकताओं को भी पूरा करता है।

इस संगठनात्मक समाजीकरण की प्रक्रिया में संचार की भी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि सभी परस्पर सम्बन्धों की संचार प्रभावी है। व्यक्ति दूसरों से विचारों, भावनाओं तथा अनुभवों का संचार कर सकता है। यह भी सच है कि किसी संस्था की सुचारु कार्यप्रणाली के लिए उसके सदस्यों को आपस में संपर्क करने की क्षमता होनी चाहिए। संचार वास्तव में प्रेषक और प्राप्तकर्ता के बीच अभिव्यक्ति या सूचना का प्रसार है और इसका उद्देश्य लोगों के बीच आपसी समझ बनाने के लिए एक साझा मंच बनाना है।

यह सही है कि सभी जीवों में एक बुनियादी संचार होता है। लेकिन मनुष्य को प्रतीकों के माध्यम से जानकारी देने की अद्भुत क्षमता है। इसके लिए लोग शब्द प्रतीकों का उपयोग करते हैं। यह शब्द है। नई तकनीक के कारण आज कम्प्यूटर एक बहुत ही प्रभावी संचार उपकरण बन गया है।

प्रश्न 3. संगठन क्या है ?
उत्तर- संगठन एक सामाजिक संस्था है, जो एक निश्चित लक्ष्य के लिए बनाई जाती है। संगठन को बेहतर ढंग से समझने के लिए इसे एक सिस्टम या प्रणाली के रूप में देखना चाहिए। संगठनों में विशिष्टताएं, क्षमताएं और संबंध हैं, जो प्रणालीगत दृष्टिकोण से देखे जाते हैं। व्यवस्था या सिस्टम बंद या खुला हो सकता है।

प्रश्न 4. संगठनात्मक वातावरण की विशेषताएं परिभाषित कीजिए।
उत्तर- संगठनात्मक वातावरण को उन विशेषताओं के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो संगठन का खुलासा करती हैं, (क) एक संगठन को दूसरे संगठन से अलग दर्शाती हैं,
(ख) एक समयावधि तक अपेक्षाकृत टिकाऊ रहती हैं और
(ग) संगठन के लोगों के व्यवहार को प्रभावित करती हैं।

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