व्यावसायिक भूमिका के लिए तैयारी के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- वयस्क होने के बाद, यानी विद्यार्थी जीवन, हर व्यक्ति आजीविका की दृष्टि से स्वतंत्र होना चाहता है; यह एक आवश्यकता भी है, क्योंकि आजीविका मिलने के बाद ही व्यक्ति अपने परिवार को चलाने के लिए सक्षम होता है। बेरोजगार व्यक्ति अपने और अपने परिवार (पत्नी और बच्चों) को क्या खिलाएगा? इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति का जीवन धर्म व्यवसाय या रोजगार है। यहाँ प्रश्न उठता है कि वह क्या करेगा? आजीविका के लिए किस क्षेत्र का चुनाव करे, जहां उसे आसानी से काम मिलेगा? इसके लिए उसे छात्र जीवन में शिक्षण-प्रशिक्षण लेकर कार्यक्षेत्र के लिए तैयार करना होगा और अपनी क्षमता, योग्यता और कौशल का प्रदर्शन करके दिखाना होगा।
वास्तव में, कार्य की दुनिया बहुत विस्तृत है, और दुनिया भर में अनगिनत व्यवसायों और कार्यक्षेत्रों की उपस्थिति है; विद्यालय की तरह, शिक्षक शिक्षक कहलाता है। किन्तु ग्रेडिंग की दृष्टि से इसके कई स्तर हैं-
(i) नर्सरी, प्राथमिक अध्यापक
(ii) प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (टी.जी.टी.)
(iii) स्नातकोत्तर शिक्षक ( पी.जी.टी.)
(iv) प्रवक्ता
(v) रीडर
(vi) प्रोफेसर
प्रायः हर व्यवसाय व कार्यक्षेत्र में कार्य करने वालों का स्तर कनिष्ठ से वरिष्ठता क्रम में बढ़ता है। रोजगार की व्यापकता की दृष्टि से भारत सरकार ने एक रोजगार वर्गीकरण पत्रक भी जारी किया है। इसे व्यवसायों का राष्ट्रीय वर्गीकरण (एन.सी.ओ.) कहा जाता है।
इस पत्रक के आधार पर रोजगारों को नौ वर्गों में विभक्त किया गया है-
1. व्यावसायिक, तकनीकी एवं सम्बन्धित कार्य
2. प्रशासनिक, कार्यपालक एवं प्रबन्धक कर्मचारी
3. क्लर्क तथा सम्बन्धित कर्मचारी
4. विक्रय कर्मचारी
5. कृषक, मछुआरे, शिकारी, लकड़हारे तथा संबंधित कर्मचारी
6. सेवा प्रदान करने वाले कर्मचारी
7. उत्पादक तथा सम्बन्धित कर्मचारी
8. यातायात यंत्र चालक मजदूर
9. इनमें पेशे में वर्गीकृत मजदूरों के अतिरिक्त ऐसे मजदूर जिनका पेशे में वर्गीकरण संभव नहीं है।
इस तरह नौकरी व पेशे की दुनिया को ध्यान से देखने पर अगणित व्यावसायिक क्षेत्र दिखाई पड़ते हैं। कुछ चुनौतीपूर्ण है तो कुछ में धन का आकर्षण होता है। रोजगार का चयन भी शैक्षणिक चयन जैसी ही प्रक्रिया है और योग्यता की दृष्टि से प्रत्येक रोजगार
की कुछ आवश्यक शर्तें (अर्हताएं) होती हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(i) आयु सीमा, (ii) लिंग सम्बन्धी अर्हता, (iii) नागरिकता, iv) शारीरिक (विशेष रूप से सशस्त्र बलों में) अर्हता, ( (v) व्यक्तित्व अर्हता, (vi) शैक्षणिक एवं प्रशिक्षण अर्हता, (vii) अनुभव अर्हता, (viii) कानूनी अर्हता, (vx) लाइसेंसिग अर्हता।
(i) आयु सम्बन्धी अर्हता– बहुत से कार्यक्षेत्रों में एक आयु सीमा है। जैसे लोक सेवा आयोग में 21 से 28 वर्ष, आईएएस, पीसीएस, आईपीएस और आईएफएस में। 18 से 24 वर्ष के पुलिस कांस्टेबल सही आयु में नौकरी मिलने पर आगे बढ़ने के पर्याप्त अवसर हैं। 18-19 से 24-25 वर्ष, शारीरिक क्षमता की दृष्टि से युवावस्था में सामान्य आयु सीमा मानी जाती है। शक्ति कम होती है। अधिक आयु का व्यक्ति काम की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता।
(ii) लिंग अर्हताएं- आज महिलाएं लगभग हर क्षेत्र में शामिल हैं। महिलाओं को अभी भी सशस्त्र सेना में भर्ती नहीं किया जाता, पुलिस, यातायात, बस, रेल और वायुयान में भी पर्याप्त सेवा के अवसर मिल रहे हैं, लेकिन विशेष सुरक्षा व्यवस्थाओं में उन्हें नहीं लिया जाता। नर्सिंग और महाविद्यालयों में भी पुरुष नहीं आते हैं।
(iii) नागरिकता – अधिकांश सरकारी प्रतिष्ठानों में सेवाओं में केवल देश के विधिवत नागरिकों को प्रवेश मिलता है; जैसे संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए मान्यता प्राप्त नागरिक, यानी देश का मूल निवासी, ही योग्य है। भारतीय नागरिकता भारत में सरकारी पदों पर सेवा करने के लिए एक महत्वपूर्ण शर्त है।
(iv) शारीरिक योग्यताएं– पुलिस, सेना आदि में शारीरिक बल की बहुत जरूरत होती है। इसमें अभ्यार्थी को कुछ मानदंडों (जैसे लम्बाई, भार, सीने की चौड़ाई, दृष्टि कुशलता) में फिट होना चाहिए; अगर ऐसा नहीं है, तो अभ्यार्थी को सेवा के लिए अनफिट कर दिया जाएगा।
(v) व्यक्तिगत अर्हताएं- अधिकांश गैर-सरकारी संस्थाओं में सेवा योग्यता भी शरीर की बाहरी बनावट, सुंदरता आदि पर निर्भर करती है। किसी कार्यालय की रिसैप्शनिस्ट या वायुयान सेवा में एयर हॉस्टेस आदि में नियुक्ति का मानदण्ड महिलाओं की सुंदरता है। विज्ञापन में शरीर सौन्दर्य (बॉडी लैंग्वेज) का ही ध्यान दिया जाता है। कई क्षेत्रों में युवा होना, अच्छी भाषा बोलना और प्रभावी बातचीत करना बहुत अच्छा होता है।
(vi) शैक्षणिक तथा प्रशिक्षण अर्हताएँ- विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग शैक्षणिक योग्यताएं आवश्यक हैं, और विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग शिक्षा विधाओं और विषयों की उपलब्धता है। जैसे, चिकित्सा सेवा के लिए स्नातक अथवा स्नातकोत्तर डिग्री होनी चाहिए। यांत्रिक सेवा (अभियन्ता) के लिए इंजीनियरिंग स्नातक अथवा स्नातकोत्तर।
एल.एल.बी. या एल.एल.एम. विधि सेवा प्राप्त करने के लिए शिक्षा विभाग में उच्चतर माध्यमिक स्तर के लिए विषय सम्बन्धी स्नातक या स्नातकोत्तर उपाधि (बी.एड., एम.एड.) चाहिए। इसी तरह, कई अन्य सेवाओं के लिए नियत योग्यता आवश्यक है। इसी तरह, किसी भी क्षेत्र विशेष में संबंधित कार्य के लिए प्रशिक्षण सुविधा भी उपलब्ध है। इनकी विशेषताएं भी अलग-अलग हैं।
(vii) अनुभव– किसी भी सेवा विशेष के लिए अपेक्षित अनुभव भी आवश्यक सेवा शर्त होती है। विशेषकर वरिष्ठ सेवाओं के लिए इसकी अपेक्षा अधिक होती है, ताकि चयनित व्यक्ति स्वतंत्र रूप से कार्य-स्थिति के अनुरूप निर्णय ले सकें। इसमें कार्य निपुणता महत्त्वपूर्ण होती है।
(viii) कानूनी अर्हता- अभ्यार्थी को किसी सेवा के लिए योग्य होना चाहिए और न्यायपालिका द्वारा किसी आपराधिक कार्य के लिए दंडित नहीं किया गया हो। जैसे अब चुनाव आयोग ने किसी भी जनप्रतिनिधि को चुनाव लड़ने के लिए यह शर्त लगा दी है कि वह किसी भी आपराधिक अपराध में न्यायपालिका द्वारा दंडित नहीं हुआ हो। ऐसा होने पर वह चुनाव में भाग नहीं ले सकेगा। सरकारी पदों पर भी यह शर्त लागू होती है।
(ix) लाइसेंसिंग अर्हता- लाइसेंस कुछ कामों को करने की सरकारी (वैधानिक) अनुमति है, जैसे ड्राइवर की नौकरी, जहां अभ्यर्थी को संबंधित वाहन चलाने का लाइसेंस होना चाहिए। इसके बिना कोई ड्राइवर बन सकता है। यह रोडवेज, ट्रक और कार चालकों की विधिवत जरूरत है।
इसी तरह, वायुयान चालकों को कमर्शियल पायलेट लाइसैंस की आवश्यकता होती है. यह विधिवत प्रशिक्षण के बाद एवियेशन स्कूल ऑफ अथॉरिटी (Aviation School Authority) से प्राप्त होता है और बार-बार परीक्षण किया जाता है। लाइसेंस एक निश्चित अवधि के लिए दी गई कानूनन अनुमति है, जो समय रहते पुनर्नवीनीकरण न होने पर रद्द मान ली जाती है। इसके बाद, इस योग्यता को प्राप्त करने के लिए पूरी प्रक्रिया फिर से पूरी करनी पड़ती है।
प्रश्न 2. शैक्षिक एवं व्यावसायिक नियोजन क्या है?
उत्तर- किसी भी क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए अपेक्षित योग्यता चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को उच्च शिक्षा नहीं मिली है और वह सिर्फ बुनियादी शिक्षा प्राप्त कर सका है, तो वह केवल कुछ शारीरिक मेहनत और श्रम की नौकरी पा सकता है; जैसे कक्षा 8 या 10 में पढ़ रहे लोगों को केवल चपरासी या चौकीदार का पद मिल सकता है।
वास्तव में, नौकरी पाने के लिए कुछ विशिष्ट क्षेत्रीय योग्यताएं होनी चाहिए। प्रकृति आपको कुछ प्रतिभाएं देती है। अनुभव और शिक्षा कुछ क्षमता देते हैं। संगीत के क्षेत्र में वाद्ययंत्रों का संचालन अभ्यास और प्रशिक्षण से सीखा जा सकता है, लेकिन अच्छा गायक बनने के लिए अभ्यर्थी में गायन की प्रतिभा होनी चाहिए।
इसी प्रकार, किसी व्यवसाय में वस्तु-विक्रेता की नौकरी करने के लिए शर्मीला या झेंपू नहीं होना चाहिए। इसके लिए ग्राहक को वस्तु के लाभों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की कला में निपुण होना चाहिए। इसमें कुशलतापूर्वक बातचीत, मधुर भाषण और स्वागत सत्कार होना चाहिए। व्यक्ति को भी दूसरों की बात सुनने की क्षमता होनी चाहिए। स्कूल में सिर्फ आम लोगों को पढ़ने-लिखने और गणित का ज्ञान मिलता है। कुछ समाज, राजनीति, इतिहास और भूगोल के बारे में पता चलता है। इससे व्यक्ति मूल्यों, अभिवृत्तियों और संस्कृति तथा समाज की मान्यताओं के अनुसार चीजों को समझने की क्षमता मिलती है और कुछ हद तक उनकी अभिवृत्तियों और मूल्यों का भी ज्ञान मिलता है। इसलिए हमारे स्कूलों और कॉलेजों में दी जाने वाली शिक्षा को अक्सर सामान्य शिक्षा कहा जाता है,
जो माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक, स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा को शामिल करता है। इससे अलग, नियत शिक्षा को व्यावसायिक तकनीकी या रोजगारपरक शिक्षा कहा जाता है, जिसमें शेष तथा कार्य विशेष को ध्यान में रखना शामिल है। इसमें विषय की विशिष्ट योग्यता मिलती है। यहां कुछ विकल्प कार्य चुनाव को ध्यान में रखते हुए दिए गए हैं। यही कारण है कि आप अपनी रुचि के अनुसार कार्यक्षेत्र चुन सकते हैं।
सुविधा की दृष्टि से यहां पर प्रमुख दस व्यवसायों या पेशों की सूची दी गई है। व्यक्ति अपनी रुचियों को देखते हुए इन पेशों को चुन सकता है। ध्यान रहे कि दोनों व्यवसायों में आय और सम्मान में कोई अंतर नहीं है, जब आप सभी के साथ तुलना कर रहे हैं। प्रत्येक सेट (A से B) में दो व्यापार दिए गए हैं। दोनों की तुलना कीजिए और अपनी रुचि के अनुसार 0 से 4 तक अंक दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर (A) (B) से अधिक चाहता है, तो A को 3 अंक और B को 1 अंक दे सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति दोनों को समान रूप से चाहता है, तो वह दोनों को समान अंक दे सकता है।
यदि कोई एक को बहुत अधिक पसंद करता है और दूसरे को बिल्कुल नहीं, तो वह चार और दस दे सकता है। यदि कोई व्यक्ति दोनों को बिल्कुल नापसंद करता है, तो वह दोनों को शून्य दे सकता है। प्रत्येक सेट में कम से कम चार अंक और सबसे अधिक चार अंक मिलेंगे। प्रत्येक व्यक्ति दो अंक दे सकता है। निम्नलिखित प्रकार से प्रत्येक उद्यम के जोड़े दिखाए जा सकते हैं।
अगर आप इंजीनियरिंग (A) को फाइनेंशियल मैनेजमेंट (B) की अपेक्षा अधिक चाहते हैं, तो B को 1 अंक दीजिए ।
A . इंजीनियरिंग (कैमिकल, इलैक्ट्रॉनिक, कम्प्यूटर आदि)
B. वित्तीय प्रबंध (एकाउंटेंट, टैक्स विशेषज्ञ, बैंकर आदि)
C. प्रशासनिक सेवाएं (प्रशासनिक अधिकारी, आई.ए.एस., आई.एफ.एस., आई.पी.एस. आदि)
D. चिकित्सा (चिकित्सक, मनोचिकित्सक, शल्य चिकित्सक, नैदानिक मनोविज्ञानी)
E. प्रबंध (संगठनों में प्रबंधक, विक्रय, होटल)
F. कलात्मक (पेंटिंग, संगीत, मूर्तिकला, पुरातत्त्व)
G. साहित्यिक (उपन्यासकार, इतिहासकार, अध्यापक/प्रोफेसर, पत्रकार आदि)
H. सैन्य सेवा (स्थल सेना, जल सेना, वायु सेना)
I. वैज्ञानिक (भौतिकशास्त्री, रसायनशास्त्री, जीव वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक)
J . व्यापार (उद्योग, दुग्धोत्पादन, खेती)
ध्यान दें ये सब नमूने के पद हैं और उपचार या चिकित्सा मूल्यांकन के लिए इनका उपयोग वर्जित है।
45 सेटों को पूरा करने के बाद, हर एक को A, B, C, और इसी तरह की श्रेणियों में अलग-अलग अंकों को जोड़कर सबसे अधिक अंकों को प्राप्त करना है। ये तीन प्रमुख उद्यम हैं। इनमें उच्च क्षमता वाले व्यक्ति अधिक सफल हो सकते हैं। व्यवसाय में कोई भी व्यक्ति उच्च सफलता प्राप्त कर सकता है यदि उनकी रुचि सकारात्मक और अभिक्षम है। ये लोग कैरियर चुन सकते हैं-
इस तरह, कोई भी व्यक्ति अपनी रुचि का विषय चुन सकता है। व्यवसायिक चयन में भी रुचि होना बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी काम को अच्छी तरह से करने के लिए रुचि होना बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक और पक्ष यह है कि रुचि से ही काम करने से खुशी मिलती है।
ज्यादातर लोग अपनी रुचि जानते हैं, लेकिन कभी-कभी यह स्पष्ट नहीं होता। मनोवैज्ञानिकों ने रुचि को मापन करने के लिए कई तरीके खोज निकाले हैं। कई तरह बनाया है। व्यक्ति को अपनी रुचि के कार्यों के बारे में बताने के लिए कुछ परीक्षण बनाए गए हैं। यही कारण है कि मनोविश्लेषक (व्यावसायिक परामर्शदाता) व्यक्ति की रुचि का स्पष्ट चित्र बनाता है। यही कारण है कि किसी भी नौकरी का चयन करते समय उसके लिए उपयुक्त शैक्षिक योग्यता, व्यक्तिगत गुण, क्षमता और रुचि की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
इसलिए, व्यवसाय की योजना बहुत सावधानीपूर्वक बनानी चाहिए। व्यवसाय की योजना के अनुसार, आवश्यक शैक्षिक योग्यता प्राप्त करना जरूरी है, जो व्यवसाय को चलाने में मदद कर सकती है। इसमें व्यक्ति आवश्यकतानुसार मनोवैज्ञानिक या व्यावसायिक परामर्शदाता से सहायता ले सकता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि हमारी व्यक्तिगत विशेषताएं और योग्यताएं पूरी तरह से निर्धारित या स्थिर नहीं होतीं। उन्हें प्रयास, प्रशिक्षण और अभ्यास से विकसित और परिवर्तित किया जा सकता है और यह भी एक तथ्य है कि रुचि समय के साथ-साथ बदलती है और कभी-कभी जिन कार्यों में रुचि बिल्कुल नहीं होती, बाद में गुणवत्ता और कौशल विकसित होने पर स्वतः रुचि पैदा होने लगती है। शिक्षा क्षेत्र की तरह, व्यावसायिक क्षेत्र में भी चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 3. कैरियर विकास के लिए विशेष प्रावधानों को बताइए ।
उत्तर – व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन हो या व्यावसायिक जीवन कैरियर की दृष्टि से शिक्षा का तो महत्त्वपूर्ण स्थान है ही, कैरियर विकास के अवसर जीवन की प्रत्येक अवस्था में उपलब्ध है। इसमें निरन्तर शिक्षा तथा कार्यकालीन प्रशिक्षण इसी प्रकार के कैरियर विकास के अवसर में शामिल हैं। शिक्षा का महत्त्व सर्वोपरि है, क्योंकि प्राप्त ज्ञान कभी अकारथ नहीं जाता।
सतत शिक्षा- शिक्षा एक व्यक्ति के जीवन में निरंतर चलने वाला प्रक्रम है, जिससे एक व्यक्ति अपने ज्ञान के क्षेत्र में उन्नति कर सकता है। इससे ज्ञान क्षेत्र का विस्तार, सूचना का विस्तार और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। वास्तव में, निरंतर शिक्षा हर किसी को महत्वपूर्ण है, चाहे वह व्यावसायिक, तकनीकी या किसी दूसरे क्षेत्र (शिक्षा या नौकरी)। व्यक्तिगत साक्षरता के क्षेत्र में, या प्रकार्यात्मक साक्षरता में निरंतर शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा प्राप्त करने में कोई देरी नहीं होती। सतत शिक्षा केन्द्रों की सहायता से कोई भी साक्षर हो सकता है। मुक्त विद्यालय और विश्वविद्यालय निरंतर शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कर रहे हैं। इनमें प्रवेश करने से कोई भी व्यक्ति अपने शिक्षा कार्य का स्तर बढ़ा सकता है।
कार्यकाल में किसी विशेष उद्देश्य में दीक्षित होने के लिए उपलब्ध प्रशिक्षण को कार्यकालीन प्रशिक्षण कहते हैं। मान लीजिए कोई व्यक्ति एक संस्थान में न्यूनतम योग्यता प्राप्त करके काम करता है। बाद में, संस्था अपने काम की गुणवत्ता और विशिष्टता के आधार पर संबंधित व्यक्ति को विशिष्ट प्रशिक्षण के लिए अन्य संस्थानों में भेजती है। इसे कार्यकालीन प्रशिक्षण कहेंगे। शिक्षण-प्रशिक्षण भी सेवाकाल में इसी कोटि में आता है। यह एक व्यक्ति व्यवसाय में शामिल होने के बाद लेता है, और यह आवश्यक भी है क्योंकि ज्ञान आज बहुत तेजी से फैलता है।
राजकीय विभागों में कंप्यूटर तकनीक का प्रवेश जिस प्रकार बढ़ रहा है, वे अपने कर्मचारियों को स्वयं कंप्यूटर प्रशिक्षण के लिए भेजते हैं, ताकि वे प्रशिक्षित होकर संस्थान के कार्यों को और अधिक कुशलता से कर सकें।
कैरियर पुनर्गठन – जब कोई अपनी वर्तमान नौकरी, नौकरी का स्वरूप या नौकरी का स्थान अपनी रुचि के अनुरूप नहीं पाता, तो उसे अपना कैरियर बदलना चाहिए। इससे व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में बदलाव चाहता है। इससे क्षेत्र और पद भी बदल सकते हैं।
प्रश्न 4. कार्य की दुनिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर- वास्तव में काम का क्षेत्र बहुत बड़ा है। दुनिया भर में कई व्यवसाय और कार्यक्षेत्र हैं, जैसे स्कूल में शिक्षण, कार्यालय में लिपिक और हर व्यवसाय में कर्मचारियों का स्तर कनिष्ठता से वरिष्ठता की ओर बढ़ता है। भारत सरकार ने भी एक रोजगार वर्गीकरण पत्रक जारी किया है जिसका उद्देश्य रोजगार की व्यापकता को देखना है। यह राष्ट्रीय व्यापार वर्गीकरण (NCO) कहलाता है।इस पत्रक के आधार पर रोजगार को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया गया है-
(i) व्यावसायिक, तकनीकी एवं संबंधित कार्य
(ii) प्रशासनिक, कार्यपालक एवं प्रबन्ध कर्मचारी
(iii) क्लर्क तथा सम्बन्धित कर्मचारी
(iv) विक्रय कर्मचारी
(v) कृषक, मछुआरे, लकड़हारे, शिकारी तथा सम्बन्धित कर्मचारी
(vi) सेवा प्रदान करने वाले कर्मचारी
(vii) उत्पादन तथा सम्बन्धित कर्मचारी
(viii) यातायात सम्बन्धी कर्मचारी, यंत्र चालक एक ऐसे मजदूर जिनका पेशे में वर्गीकरण संभव नहीं है (रक्षा)
(x) शिक्षक, अनुसंधाता, वैधानिक आदि ।
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