प्रश्न 3. कार्य सन्तुष्टि से आप क्या समझते हो ? कार्य सन्तुष्टि को प्रकाशित करने वाले दो प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए |
उत्तर – वास्तव में, कार्य सन्तुष्टि एक धनात्मक भावनात्मक अवस्था है जो किसी भी क्षेत्र में किए जाने वाले कार्य से आत्मिक स्तर पर होने वाले संतोष और सुख की परिचायक है। यह व्यक्ति के काम से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने पर अक्सर होता है। धन की अपेक्षा काम करने की भीतरी रुचि इससे जुड़ी है।
सन्तुष्टि को प्रभावित करने वाले कारक – व्यक्ति की कार्य सन्तुष्टि को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हो सकते हैं-
(i) व्यक्तिगत कारक,
(ii) संगठनात्मक कारक
(i) व्यक्तिगत कारक – व्यक्तिगत कारकों में निम्नलिखित प्रमुख रूप से प्रभावित करते हैं-
रुचि – यह मुख्य रूप से व्यक्तिगत कारक पर असर डालता है। यह जानना स्वाभाविक और आवश्यक भी है कि किसी व्यक्ति की रुचि उस कार्यक्षेत्र में है या नहीं। संतोष की दृष्टि से रुचि एक महत्वपूर्ण प्रभावकारी कारक है। क्योंकि कोई भी काम बिना रुचि के कभी खुश नहीं होता।
स्तर एवं वरिष्ठता– विशेष रूप से, कुछ काम व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनुकूल होते हैं, जबकि दूसरे काम नहीं होते। यदि कोई व्यक्ति अपनी शैक्षिक योग्यता की दृष्टि से एम.ए. या पी.एच.डी. प्राप्त कर स्नातक या स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों को पढ़ाने के लिए पूरी तरह से योग्य है, तो वह माध्यमिक विद्यालय में प्रशिक्षित स्नातक वर्ग के अध्यापक के रूप में काम करने के लिए बाध्य है। नौकरी पाना बेरोजगार रहने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि कोई व्यक्ति रुचि दिखाने पर भी उचित काम नहीं पाता, इसलिए वह रुचि दिखाने के बावजूद भी काम के स्तर से असन्तुष्ट रहता है। स्तर और वरिष्ठता की दृष्टि से अधिकांश संस्थानों में लोगों में काम से असंतोष अधिक है। समय पर प्रगति न करना भी इसका एक बड़ा कारण है।
व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण – कई व्यवसायों में पारस्परिक संबंधों और कुशल व्यवहार की आवश्यकता होती है, और एक व्यक्ति जो ऐसा नहीं करता, तो कार्य में खुश नहीं होगा। इसलिए, कार्यक्षेत्र चुनते समय व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं का ध्यान रखना होगा।
जीवन सन्तोष- यह विचार कि कोई व्यक्ति अपने जीवन में सन्तोष महसूस करता है या नहीं, उसकी रुचि को भी प्रभावित करता है। अक्सर, व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों को पाना या स्थापित करना चाहता है। धन से अलग, इसमें अन्य लक्ष्य प्रमुख हैं। यदि कोई व्यक्ति निःस्वार्थ सामाजिक कार्य करता है, प्रकाशन करता है, अध्ययन करता है या कुछ ऐसा करता है, तो वह अपने जीवन में संतोष महसूस करता है।
(ii) संगठनात्मक कारक – व्यक्ति जिस स्थान पर कार्य करता है, वह अपने कार्य का उचित प्रतिदान भी चाहता है, यह सामान्य पारिश्रमिक (वेतन) से अलग कुछ अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की अपेक्षा भी रखता है। यदि ये अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो भी व्यक्ति में एक सहज असन्तोष उपजने लगता है ।
पुरस्कार – इस श्रेणी में सभी प्रकार के पुरस्कार शामिल हैं, जैसे पदोन्नति, वार्षिक वेतन वृद्धि या काम के लिए विशिष्ट पुरस्कार; काम से खुश होने का मुख्य कारक व्यक्ति की पदोन्नति है। लंबे समय तक अपनी पूरी क्षमता और ईमानदारी से काम करने पर नियमित रूप से पदोन्नति नहीं मिलने पर कर्मचारी काम से असहज हो जाता है। शिक्षण व्यवसाय की तरह, एक व्यक्ति अपनी उम्र के प्रारंभिक दौर में किसी शिक्षण संस्थान में प्रवक्ता पद पर नियुक्ति पाता है और पूरी लगन और ईमानदारी से अपना काम करता है, लेकिन 10-15 वर्ष शिक्षण करके भी पदोन्नति नहीं पाता और अंततः प्रवक्ता ही रहता है, जिससे उसके मन में काम के प्रति असंतोष का भाव जागता है।
विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध विश्वविद्यालयों में प्रवक्ता से वरिष्ठ प्रवक्ता या रीडर ग्रेड में प्रोन्नति हासिल की जा सकती है, लेकिन उनका काम प्रवक्ता की तरह ही है। उसे अभी भी पीरियड सिखाना होगा, ठीक उतना ही जितना कि एक शिक्षक को सिखाना होगा। यह व्यवस्था निश्चय ही महाविद्यालयी शिक्षकों में असंतोष का एक बड़ा कारण है।
कार्य की भौतिक दशाएं- यदि कोई व्यक्ति अपनी कार्यक्षमता पर असंतोष महसूस करता है, तो उसके कार्यक्षेत्र में बैठने का स्थान, प्रकाश की व्यवस्था और गर्मी और गर्मी के लिए उचित व्यवस्था नहीं है। सहायता-सहयोगियों की अभिवृत्ति, सहयोग और सहयोग भी व्यक्ति की कार्य के प्रति सन्तुष्टि में महत्वपूर्ण कारक होते हैं ।
जिस संस्था में एक व्यक्ति काम करता है और जिन सहकर्मियों के साथ वह काम करता है, उनमें तालमेल, भावनात्मक एकरूपता, सामजस्य और समायोजन का अभाव अक्सर असंतोष का कारण बनता है, इसलिए सहयोग भी कार्य सन्तुष्टि का एक महत्वपूर्ण कारक है।
प्रश्न 4. कार्य सन्तुष्टि का महत्त्व बताइए ।
उत्तर – कार्य के प्रति सन्तुष्टि भाव का व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्त्व होता है और इससे व्यक्ति के जीवन में निम्नलिखित रूप से प्रभाव पड़ता है-
(i) मानसिक पक्ष, (ii) शारीरिक पक्ष, (iii) उत्पादन वृद्धि पक्ष
(i) मानसिक पक्ष – यदि कोई व्यक्ति अपने काम से हमेशा संतुष्ट है, तो वह प्रसन्न, तनावमुक्त और प्रसन्न रहता है, लेकिन कोई व्यक्ति अपने काम से हमेशा संतुष्ट नहीं है, तो वह निरंतर तनावग्रस्त और अवसादग्रस्त रहता है। इसलिए वह भी कुण्ठा का शिकार हो जाता है। वह भी समान व्यवहार को सही ढंग से समायोजित नहीं कर पाता है। इससे ऐसा व्यक्ति निरंतर मानसिक तनाव और असहज रहता है।
(ii) शारीरिक स्वास्थ्य -कार्य से सन्तुष्ट व्यक्ति शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहता है, मानसिक रूप से खुश रहता है और तनाव से दूर रहता है। लेकिन काम से असंतुष्ट व्यक्ति उत्तेजित, असहज, कुण्ठित और तनावग्रस्त होने के कारण कई शारीरिक समस्याओं से घिर जाता है। सामान्य दुष्परिणामों में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, श्वास विकार और उदर पीड़ा शामिल हैं और इससे व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य बुरा होता है।
(iii) उत्पादन वृद्धि पक्ष – काम से खुश व्यक्ति मानसिक रूप से संतुलित रहता है और पूरा ध्यान अपने काम पर देता है। इससे वह काम में लगातार सफलता प्राप्त करता है, लेकिन जो व्यक्ति अपने काम से खुश नहीं होता, वह मानसिक रूप से विक्षिप्त, असंतुलित और असहज रहता है। इसलिए वह काम में पूरा समय नहीं दे पाता और न ही पूरी तरह सफल हो पाता है। इससे वह निराश हो जाता है। वह हर तरह से हारा हुआ महसूस करते हुए भी व्यापार में जम नहीं पाता। उसकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है, जिसके परिणामस्वरूप लाभ के स्थान पर हानि होने लगती है।
इन दोनों को देखते हुए, कार्य सन्तुष्टि एक व्यक्ति को मानसिक रूप से स्वस्थ रखती है और शरीर से भी स्वस्थ रहता हुआ काम करने में उन्नति करती है। इसके विपरीत, मानसिक अशांति से शरीर और व्यापार-व्यवसाय दोनों प्रभावित होते हैं।
अतः कहा जा सकता है कि कार्य सन्तुष्टि का व्यक्ति के जीवन और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि असन्तुष्टि का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 5. एक मूल्य के रूप में कार्य का विवेचन कीजिए ।
उत्तर- हम जानते हैं कि कार्य के चयन में अभिक्षमता और दिलचस्पी का बहुत महत्व होता है। यह भी याद रखना चाहिए कि व्यक्ति चाहे किसी भी क्षेत्र में काम करे, वह अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभाने का हकदार है। कार्य करना एक सामाजिक प्रक्रिया है जो सुचारु कार्यप्रणाली बनाए रखने और समाज व्यवस्था को बनाए रखता है। कोई भी कार्यक्षेत्र इसका उदाहरण हो सकता है। चाहे कोई चिकित्सक, इंजीनियर, पोस्टमैन, बिजली विभाग का लाइनमैन हो या किसान, दुकानदार, लुहार, बढ़ई, मजदूर, रिक्शा वाला, कुली, रेल, बस, कन्डक्टर या गार्ड हो, कार्य हीनता एक बड़े क्षेत्र को प्रभावित करती है।
चिकित्सा व्यवसाय में डॉक्टरों की गैर जिम्मेदारी कितनी ही मरीजों को मार डालेगी। पूरा शहर अंधेरे में डूब जाएगा अगर बिजली विभाग के अभियन्ता और कर्मचारी ईमानदारी से काम नहीं करेंगे। जल विभाग की लापरवाही से पूरा शहर बाढ़ में फंस जाएगा। यह स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए, वरना किसी भी गड़बड़ी से पूरी व्यवस्था बर्बाद हो सकती है। यह एक बड़ी समस्या हो सकती है जो सिर्फ एक व्यक्ति नहीं बल्कि समाज को भी सामना करना पड़ा है।
कर्तव्य समझकर कार्य करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्तित्व विकसित होता है। विशेषज्ञों, चाहे वे वैज्ञानिक, चिकित्सक या शिक्षक हों, उन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में अपने काम को अपना धर्म और कर्तव्य मानकर काम किया है। महान लोगों, जैसे ईश्वरचंद विद्यासागर, स्वामी विवेकानन्द, आइन्स्टीन और पंडित जवाहर लाल नेहरू, ने अपना काम लगन से किया है।
स्पष्ट है कि हर काम में एक मूल्य है। जैसे आत्मविश्वास व्यक्तिगत मूल्य है, समाज दृष्टि सामाजिक मूल्य है।
प्रश्न 6. कार्य सन्तुष्टि को प्रभावित करने वाले संगठन में पुरस्कार की क्या भूमिका है?
उत्तर- कार्य सन्तुष्टि एक भावनात्मक स्थिति है। व्यक्ति का अधिकांश समय काम की जगह बिताता है, यानी किसी संस्था या संगठन में काम करते हुए खुश या बेखुश होने के भावों से गुजरता है। प्रशंसा और पुरस्कार, कार्य-अनुभव की इस अवधि में, एक स्तर तक व्यक्ति के कार्य सरोकार को प्रभावित करते हैं और उसे सन्तोष देते हैं। मानसिक सन्तोष पुरस्कार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें वेतन वृद्धि, बोनस, पदोन्नति और कई अन्य सुविधाएं शामिल हैं। वास्तव में, काम से खुशी का सबसे बड़ा हिस्सा पदोन्नति है।
जब कोई व्यक्ति किसी प्रतिष्ठान, संस्था, संगठन या इकाई में काम करता है, तो उसे लगता है कि उसकी कार्य-कुशलता और लगन को पहचान मिल रही है, तो यह स्वाभाविक रूप से पहला कारक है जो उसकी कार्य-सन्तुष्टि को प्रभावित करता है। ऐसे में, वह पुरस्कार-प्रशंसा में अपनी विशिष्टता का प्रदर्शन कर सकता है, जो उसकी कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
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