NIOS Class 10 Psychology Chapter 2 मनोविज्ञान की पद्धतियां

NIOS Class 10 Psychology Chapter 2 मनोविज्ञान की पद्धतियां

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NIOS Class 10 Psychology Chapter2 Solution – मनोविज्ञान की पद्धतिया

प्रश्न 1. मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझने के लिये मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले तीन मुख्य उपागमों का वर्णन कीजिए। मानव व्यवहार को समझने के लिये हमें कई प्रकार के उपागमों की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर – वास्तव में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि मनोविज्ञान का उद्देश्य विभिन्न मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझाना है। ये प्रक्रियायें भौतिक वस्तुओं की तरह नहीं दिखती हैं। यह तो अनुभव करने वाले व्यक्ति का व्यक्तिगत अनुभव है, इसलिए यह व्यक्तिगत और आत्मगत है और समय के साथ बदलता रहता है। यह सब मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन रोचक और मुश्किल बनाता है। मानव व्यवहार से संबंधित सिद्धान्तों और परिकल्पनाओं को बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने मनोवैज्ञानिक प्रविधियों का उपयोग किया है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए मनोवैज्ञानिक कई तरीकों का उपयोग करता है। अध्ययन की दृष्टि से इन्हें तीन वर्गों में विभाजित करके देखा जा सकता है-

1. अनुभवजन्य उपागम,
2. निरीक्षणात्मक उपागम,
3. प्रयोगात्मक उपागम
1. अनुभवजन्य उपागम – यह उपागम व्यक्ति के अनुभवों को प्रामाणिक और निजी मानता है। यह व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है क्योंकि यह अनुभवजन्य है। क्योंकि वह इन प्रतिक्रियाओं की जांच कर सकता है, व्यक्ति ही अपने अनुभवों को बता सकता है। इस अनुभवजन्य उपागम को आज कार्य के द्वारा सीखने और जोर से बोलते हुए सोचना दोनों में प्रयोग किया जाता है।

2. निरीक्षणात्मक उपागम – हम सभी जानते हैं कि दूसरों ने कुछ हद तक मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं भी निरीक्षित की हैं। निरीक्षण वैज्ञानिक है, जो उपकरणों और हमारी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त आंकड़ों पर निर्भर करता है। अनुभवजन्य उपागम स्वयं की निगरानी पर निर्भर करता है। निरीक्षण के दो मुख्य तरीके हैं-
(क) प्रतिभागी निरीक्षण – इसमें स्वयं प्रक्रिया में भाग लेकर निरीक्षण किया जाता है जैसे किसी गांव या जनजातियों के बीच रहते हुए वहां के जीवन-स्वरूप का अध्ययन ।
(ख) अप्रतिभागी निरीक्षण – इसमें चीजों को दूर से देखा जाता है, न कि भागीदार बनकर। ऐसे निरीक्षण से निष्कर्ष निकलते हैं।

3. प्रयोगात्मक उपागम – इस प्रक्रिया में विवेचित परिचालन परिस्थितियों को बदलता है और व्यवहार में बदलाव को देखता है। यदि कोई मनोवैज्ञानिक मनोदशा का स्मरण पर प्रभाव देखना चाहता है, जानना चाहता है कि खुशी या दुखी होने का सीखने पर क्या प्रभाव पड़ता है, और यह भी मानता है कि सकारात्मक मनोदशा याद रखने और सीखने में हमारी सहायता करती है, तो वह किसी को किसी चीज को याद करने के लिए कहेगा। इसके बाद वह अपनी स्मृति की जांच करेगा। वह इस व्यक्ति को किसी और व्यक्ति से तुलना करेगा जिसकी भावना न खुशी न दुख की होगी। प्रयोगकर्ता यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि सकारात्मक मनोदशा का सीखने पर अच्छा प्रभाव होता है अगर पहला व्यक्ति अच्छी तरह याद कर सकता है।

प्रश्न 2. वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए । प्रदत्त एकत्र करने के लिये अवलोकन के उपयोग की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर– मानव व्यवहार को समझने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक पद्धति की कई महत्त्वपूर्ण विशेषतायें होती हैं-
(1) वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग नियमों एवं सिद्धान्तों के विकास में किया जाता है।
(2) वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग मनुष्य की विभिन्न समस्याओं को सुलझाने में किया जाता है।
(3) वैज्ञानिक अभ्यास से यकीन की समझ विकसित होती है, जो हमारे व्यवहार को निर्धारित करती है।
(4) वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत अवलोकन का प्रयोग नैसर्गिक या स्वाभाविक व प्रयोगशाला व्यवस्था, दोनों में किया जाता है।
(5) अवलोकन को दो भागों में विभाजित किया जाता है- सहभागी और असहभागी ।
(6) विभिन्न व्यवहारों का अध्ययन अवलोकन द्वारा किया जाता है, जो वैज्ञानिक पद्धति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।

प्रदत्त एकत्र करने के लिए अवलोकन का उपयोग – पहले किसी पारिवारिक पार्टी की वीडियो बनाएँ या पुरानी वीडियो देखें। इसके बाद विभिन्न संकेतों को याद करें, जैसे हाथ मिलाना, नमस्कार करना, मुस्कुराना आदि। इसके बाद वीडियो रिकार्डिंग में इन संकेतों का प्रयोग करने की कितनी बार कोशिश की गई है। इस तरह के व्यवहारों का अध्ययन करने के लिए आप एक सूची का उपयोग कर सकते हैं। सारणी आपको बता देगी कि किस प्रकार का व्यवहार सर्वाधिक बार किया गया है। या कौन-सा महत्वपूर्ण संकेत बार-बार प्रयोग किया गया है? लिंग भिन्नता का भी अध्ययन किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, क्या पुरुष महिलाओं की अपेक्षा अधिक हाथ मिलाते हैं? अगर यह सच है, तो क्यों? या क्या पुरुषों की अपेक्षा महिलायें बड़ों के पैर अधिक छूती हैं? इत्यादि ऐसे कई प्रश्न अध्ययन के लिए बनाए जा सकते हैं। इन उदाहरणों में प्रदत्तों को एकत्र करने के लिए अवलोकन विधि का उपयोग किया गया है।

प्रश्न 3. प्रयोगात्मक पद्धति की एक वैज्ञानिक पद्धति के रूप में व्याख्या कीजिये । सुसंगत चरों के नियंत्रण के लिए प्रयोग की जाने वाली प्रविधियों के विषय में भी बताइए ।
उत्तर– प्रयोगात्मक उपागम का प्रयोगकर्ता वैज्ञानिक एक समस्या लेकर काम करता है। अपनी परिकल्पना को संभावित उत्तर से जोड़ता है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित हो सकती है:-
प्रयोगात्मक समूह और नियंत्रित समूह दो स्थितियों हैं जो प्रयोगकर्ता एक साधारण से प्रयोग करते हैं। स्वतंत्र चरों का समूह प्रयोगात्मक समूह है। नियंत्रित समूह ऐसा नहीं करते। दोनों समूहों को निष्पादन करने के लिए कहा जाता है, और उनके निष्पादन में काफी अंतर है, इसलिए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अंतर स्वतंत्र चर के कारण है या इसका कारण है। स्वतंत्र चर के प्रभाव को समझने पर समस्या का समाधान मिलता है। आइए, इसे एक उदाहरण से समझें-

प्रयोगकर्ता पुरस्कार के सीखने पर प्रभाव का पता लगाना चाहता है। वह स्वतंत्र चर और आश्रित चर को पुरस्कार मानेगा। मानते हैं कि पुरस्कार सीखने में सहायक है। प्रयोगकर्ता एक विद्यार्थी समूह चुनता है और फिर उसे दो उपसमूहों में बाँटता है।
1. प्रयोगात्मक समूह – पुरस्कार – सीखना
2. नियंत्रित समूह – कोई पुरस्कार नहीं – सीखना

पुरस्कार का सीखने पर सकारात्मक प्रभाव हो सकता है अगर प्रयोगात्मक समूह नियंत्रित समूह से बेहतर प्रदर्शन करता है। सुसंगत चरों को नियंत्रित करने के लिए प्रयोगकर्ता निम्नलिखित तरीकों का प्रयोग करता है-

(1) निरसन – इस प्रविधि के अन्तर्गत प्रयोग में बाहरी चरों को शामिल नहीं किया जाता।

(2) दशाओं की स्थिरता – यह महत्त्वपूर्ण प्रविधि है, जिसका प्रयोग एक प्रयोगकर्त्ता करता है। इस प्रविधि का प्रयोग तब किया जाता है जब बाहरी चरों को प्रयोग की स्थिति से अलग करना संभव नहीं होता। इसमें चर को स्थिर कर दिया जाता है, ताकि अथवा प्रभाव सभी स्थितियों में एक समान पड़े
( 3 ) मिलान – इस प्रावधि के अन्तर्गत चरों को स्थिर कर दिया जाता है।

(4) परिसन्तुलन – यह अनुक्रम के प्रभाव को कम करता है। इस तरह की प्रक्रिया अक्सर दो समूहों में विभाजित करती है। पहला समूह पहला काम करता है, जबकि दूसरा समूह दूसरा काम करता है। समूह A को फिर दूसरा काम करना होगा, जबकि समूह B को पहला काम करना होगा।

( 5 ) यादृच्छिक वितरण – यह भी एक महत्त्वपूर्ण प्रविधि है, जिसका प्रयोग किया जाता है। इसके अन्तर्गत सभी प्रयोज्यों को प्रयोगात्मक समूह तथा नियंत्रित समूह में चयन के समान अवसर प्राप्त होते हैं। यह समूहों के मध्य विभेदों को भी समाप्त कर देता है।

प्रश्न 4. मानव व्यवहार और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझने के लिये मनोवैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग किस प्रकार किया जाता है, चर्चा कीजिए ।
उत्तर– मनोवैज्ञानिक तथ्यों की खोज में वैज्ञानिक अक्सर कुछ उपकरणों तथा विधियों का प्रयोग करते हैं । उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

(क) मनोवैज्ञानिक मापनी– ऐसे परीक्षण मानकीकृत हैं और व्यक्तित्व और अभिवृत्ति क्षमता की जांच में सहायता करते हैं। ये भी व्यक्तिगत भिन्नता की जांच में मदद करते हैं।

(ख) प्रश्नावली – इसे एक विशिष्ट लक्ष्य के लिए बनाया जाता है। विषय से संबंधित कुछ प्रश्न बनाए जाते हैं। प्रश्नोत्तर खुले या बन्द हो सकते हैं।

(ग) साक्षात्कार तालिका– इसमें परस्पर क्रिया होती है। साक्षात्कार करने वाला साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति से प्रश्न पूछता है और प्राप्त उत्तर लिखता है। बाद में इन उत्तरों का विश्लेषण किया जाता है।

(घ) अभिवृत्ति मापन में यह उपकरण प्रकृति में परिमाणात्मक हैं। इसमें एक से अधिक विकल्पों में से एक को अभिवृत्ति मापन में प्रयोग किया जाता है, उदाहरण के लिए, सोनिया गाँधी को विदेशी मूल की होने पर भी जनता प्रधानमंत्री के रूप में कितनी प्यार करती है— यदि सौ लोगों की पसंद पर मूल्य मापनी बनाई जाए, तो परिणाम तीन प्रकार के हो सकते हैं –

पसन्द नापसन्द कोई निश्चित मत नहीं 43% 36% 21% स्पष्ट है कि इस आंकड़े से अभिवृत्ति मापन प्रक्रिया के द्वारा एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है। इस प्रकार पूर्वोक्त उपकरणों व विधियों के प्रयोग छः मनोवैज्ञानिक तथ्यों की खोज की जा सकती है।
इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण हैं- जैसे किसी राजनैतिक विचारधारा को 5 श्रेणियों में से एक में व्यक्त करने के लिए कहा जाता है। ये पांच श्रेणियाँ होंगी पूरी तरह सहमत / सहमत / तटस्थ / असहमत / पूरी तरह असहमत |

मनोविज्ञान की पद्धतियां के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के विभिन्न स्तरों में भौतिक व शारीरिक तथा अन्तर्वैयक्तिक व्यवहार पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – बालपन (जन्म लेने के बाद) से लेकर जीवन भर एक व्यक्ति के कई क्रियाकलाप विकसित होते हैं, जो अवधि विशेष के स्तर पर भिन्न होते हैं। विभिन्न स्तरों पर की जाने वाली क्रियाओं के आधार पर इन क्रियाओं का वर्गीकरण किया जाता है। इस दृष्टिकोण से, निम्नलिखित क्रम में विभिन्न स्तरों को देख सकते हैं-

(क) भौतिक तथा शारीरिक क्रियाएं- जैसे सांस लेना, भोजन करना, पानी पीना आदि बाहरी क्रियाएं हैं, लेकिन ये सभी शरीर के भीतर होते हैं, जैसे मस्तिष्क, हृदय, यकृत, गुर्दे आदि। ये सभी क्रियाएं मनुष्य को सही ढंग से काम करने के लिए आवश्यक हैं। इसलिए पाचन, विसर्जन, रक्त प्रवाह और मस्तिष्क की गतिविधियां निरंतर चलती रहती हैं। उन्हीं की मदद से शरीर की अन्य क्रियाएं भी सही तरह से होती हैं।

(ख) अन्तर्वैयक्तिक व्यवहार – हम अक्सर किसी को बहुत पसन्द करते हैं। किसी को पसंद नहीं करते। किसी व्यक्ति के प्रति पूर्वोक्त घटनाओं के आधार पर या सिर्फ किसी से सुनने से कुछ पूर्वाग्रह बन जाते हैं। हम किसी भी तरह से लोगों से भेदभाव कर सकते हैं। जिन लोगों के साथ एक व्यक्ति रहता है, उनका जीवन निश्चित रूप से प्रभावित होगा। यह आम तौर पर देखा जाता है कि व्यक्ति या तो किसी दूसरे की तरह व्यवहार करना चाहता है या उसके अनुरूप कार्य करता है, जैसे कि बड़े-बुजुर्गों की आय पालन. ये व्यवहार स्तर व्यक्तिगत रूप से भिन्न होते हैं और परिवेश से प्रभावित होते हैं, इसलिए कह सकते हैं कि व्यक्ति की अनुकरण की प्रकृति ही उसके अंतरंग व्यवहार को प्रभावित करती है।

प्रश्न 2. मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत पेशीय भाषा-संचार तथा मनोवैज्ञानिक स्तरों की चर्चा कीजिए ।
उत्तरपेशीय स्तर – पेशीय क्रियाकलापों और शाब्दिक प्रक्रियाओं के रूप में दिखाई देने वाला अधिकांश मानव व्यवहार व्यक्त या स्पष्ट है। हमारी चलने, उठने, बैठने, दौड़ने आदि क्रियाओं में विभिन्न पेशीय क्रियाएं होती हैं। यह व्यवहार मनोविज्ञान में प्रतिक्रिया (रेस्पौंस) कहलाता है।

भाषा और संचार – भाषा एक व्यक्ति का वाचिक माध्यम है जिससे वह अपने भावों और विचारों को दूसरे व्यक्ति या समूह से साझा करता है या वैचारिक आदान-प्रदान करता है। हम भाषा या संकेतों से बात करते हैं। भाषा और संचार ही व्यक्ति को अपने वातावरण में उपस्थित लोगों से जुड़ा रहता है और स्वयं को अभिव्यक्त करता है। भाषा का प्रतीकात्मक उपयोग मनुष्य की विशेषता है।

मनोवैज्ञानिक स्तर – किसी भी कार्य को करते समय व्यक्ति में अलग-अलग मानसिक प्रक्रियाएं होती हैं। इनमें विचार, स्मृति, तर्क, समस्या समाधान आदि क्रियाएं शामिल हैं। और व्यक्ति चाहे कुछ भी करे, ये क्रियाएं अक्सर उसके मन को तादातम्य करती हैं। हर क्षण व्यक्ति का मन एक अलग जगह में घूमता है, जब वे नहाते हैं, खाते हैं, घूमते हैं या किसी से बात करते हैं। असल में, ये क्रियाएं व्यक्ति के मन की अचेतनावस्था से होती हैं। इनका विश्लेषण मनोविज्ञान की शाखा है।

प्रश्न 3. मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया का सीधा अर्थ है व्यक्ति के मन, मस्तिष्क, शरीर और जिस समाज या वातावरण में वह रहता है, उन सभी से संबंधित प्रक्रियाओं का संयोजन। मुख्य मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं में शामिल हैं प्रत्यक्षीकरण, सीखना, स्मरण, सोचना, विचारना, चिन्तन-मनन, प्रेरणा और संवेग। क्रिया का सीधा अर्थ है व्यक्तिगत क्रिया। इन प्रक्रियाओं का स्वरूप भौतिक तौर पर स्थिर नहीं होता और एक से दूसरी प्रक्रियाओं से जुड़ा होता है, जैसे प्रत्यक्षीकरण (एक व्यक्ति से बात करते समय किसी सूचना को याद करना), स्मरण (प्रेम और स्नेह की स्थिति में साथ बनाए रखने की प्रेरणा)

इसी तरह प्रत्येक प्रक्रिया का विश्लेषण किया जाता है। सभी मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का स्वरूप अस्थायी है और व्यक्ति और उसके वातावरण की पारस्परिक क्रियाओं से पैदा होता है। मनोवैज्ञानिक जादूगर नहीं है; वह वैज्ञानिक है और विभिन्न तरीकों और उपायों का उपयोग करके निष्कर्षों तक पहुंचता है। इससे इन प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता स्पष्ट होती है। उन्हें लगता है कि इनसे ही मानव व्यवहार का वर्णन और भविष्यवाणी करने वाले सिद्धान्तों का विकास संभव है।

प्रश्न 4. व्यवहार में समानता और भिन्नता को किस प्रकार समझेंगे ?
उत्तर – हमारे समाज में सब लोग समान और भिन्न हैं, यह स्पष्ट है जब हम अपने आस-पास के लोगों को देखते हैं। देखने में सभी शरीर के अंग समान हैं, लेकिन सभी एक-दूसरे से अलग हैं। मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं में भी समानता और भिन्नता देख सकते हैं। ये सभी क्रियाएं, जैसे विचार करना, याद रखना और समस्याओं का समाधान करना, समान हैं, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति इन क्रियाओं को पूरा करने के लिए अलग-अलग तरीकों का उपयोग करता है। सभी लोग दैनिक जीवन में इन परिस्थितियों से अपने-अपने तरीके से निपटते हैं।

मनोविज्ञान व्यवहार की समानता और भिन्नता की समस्याओं पर विचार प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, सामाजिक मनोविज्ञान और संज्ञानात्मक मनोविज्ञान दोनों ने सार्वजनिक सिद्धांत को समानता के रूप में अध्ययन किया है। जबकि अनुप्रयोगात्मक मनोविज्ञान (परामर्श, निदान तथा मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन) में चरों को व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामान्य रूप से प्रयोग किया जाता है। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान व्यक्ति में समानता जानने की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, और भिन्नता मनोविज्ञान (डिफरेंशियल साइकोलॉजी) का क्षेत्र है।

प्रश्न 5. मनुष्य के तंत्रीय दृष्टिकोण पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – मनोविज्ञान प्रायः मनुष्य के व्यवहार में शामिल मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। किसी साधारण व्यवहार पर ध्यान देने से पता चलता है कि इसमें किसी वस्तु को देखने या पहचानने में की गई प्रक्रियाएं शामिल हैं, इसमें देखे जाने वाले वस्तु का संबंध व्यक्ति की आंखों से होता है और इसका भौतिक प्रभाव व्यक्ति के नेत्रों पर होता है। इसलिए, व्यक्ति उस पर ध्यान देते हुए अपने पुराने अनुभवों को जोड़ सकता है, जिससे वह एक विशिष्ट वस्तु बन जाता है। ये अन्य कार्य हैं। मनोविज्ञान यह खोजता है कि संवेदना, स्मृति, प्रेरणा और व्यक्तित्व जैसी प्रक्रियाएं किस तरह काम करती हैं। मानव-जीवन को बेहतर बनाने में इस ज्ञान का बहुत महत्व है, क्योंकि मनुष्य जीवित प्राणी के रूप में मानव-पर्यावरण व्यवस्था (तंत्र) का एक हिस्सा है।

इस जीवित तंत्र में कुछ गुण हैं। विकास प्रक्रिया की वजह से व्यक्ति एक सत्ता है, जो उसकी गतिशीलता को व्यक्त करती है। व्यक्ति का पर्यावरण से संबंध है। व्यक्ति पर्यावरण से ऊर्जा लेकर उसे सेवाएं, सहकारिता और सहायता देता है। पुनर्निवेशन तंत्र परिस्थितियों को स्वचालित ढंग से बदलने की क्षमता है। मानव और पर्यावरण व्यवस्थाएं एक-दूसरे पर निर्भर हैं। शरीर केवल स्वस्थ वातावरण में स्वस्थ रह सकता है। किन्तु व्यक्ति मशीन नहीं है क्योंकि वह रचनात्मक, गतिशील और जानकार है। इसका कम्प्यूटर जैसे मशीनों में पूरी तरह से अभाव है। स्पष्ट है कि मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का अध्ययन तंत्रीय दृष्टिकोण को जन्म देता है। व्यवस्थित तंत्र पूरे कार्य को संचालित करता है। इसी के आधार पर मनोविज्ञान ने व्यक्तिगत अध्ययन प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 6. मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के स्तरों को समझाइए ।
उत्तर – व्यक्ति एक परिवार में जन्म लेता है, यानी परिवार उससे पहले था। परिवार एक स्वरूप है और कुछ सामाजिक नियमों के अनुसार काम करता है। नवजात शिशु प्रारंभ में माँ पर निर्भर रहता है। धीरे-धीरे आंगिक विकास के साथ-साथ संवेदना, सीखना, प्रेरणा, सोचना, समझना और अन्य क्षमताओं का विकास करता है । इस तरह, एक निर्भर जीव से स्वतंत्रता और स्वतंत्रता की ओर बढ़ने लगता है। मानव व्यवहार और प्रक्रियाएं स्वरूप, जटिलता और अवधि में भिन्न होते हैं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को वातावरण के समर्थन के अनुपात पर निर्भर करता है। ये प्रक्रियाएं दैहिक, पेशीय, मनोवैज्ञानिक, भाषा-संचार, अन्तर्वैयक्तिक व्यवहार और समूह और अन्तःसमूह स्तर के व्यवहार से जुड़ी हैं। संक्षेप में, ये स्तर निम्नलिखित हैं-

भौतिक तथा शारीरिक प्रक्रियाएँ – इसमें सभी आन्तरिक व बाह्य क्रियाओं (जैसे साँस लेना, भोजन करना, पानी पीना, चलना, हाथ से काम करना आदि) और हृदय का रक्त संचार, पाचन, विसर्जन, देखना, सुनना, संवेदना आदि शामिल हैं। यह सभी क्रियाओं को संतुलित रूप से और सही रूप में करना स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है।

पेशीय व्यवहार – व्यक्ति का अधिकांश कार्य-व्यवहार पेशीय क्रियाकलाप व शाब्दिक प्रक्रियाओं के रूप में होता है। चलना, दौड़ना, कूदना, बैठना आदि मनोविज्ञान की भाषा में इसे प्रतिक्रिया कहा जाता है। यही पेशीय व्यवहार है।

मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं – किसी भी क्रिया को करने में सोचना, सीखना, याद करना, समस्या समाधान, तर्क आदि मानसिक क्रियाएं साथ-साथ चलती रहती हैं। व्यक्ति इनके बारे में सचेत नहीं रहता, फिर भी ये होती रहती हैं।

भाषा-संचार- व्यक्ति अपनी भावनाओं को एक-दूसरे पर व्यक्त करने के लिए मौखिक, हावभावपूर्ण भावाचिक माध्यम का प्रयोग करता है। भाषा, जो स्वभाव से प्रतीकात्मक है, मनुष्य की प्रमुख विशेषता है। प्रत्येक भाषा में ध्वनि के संकेत या प्रतीक हैं। इन्हीं का उपयोग करके व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति करता है।

अन्तर्वैयक्तिक व्यवहार – व्यक्ति कई लोगों से मिलता है। इस प्रक्रिया के कुछ हिस्से आपको पसंद आते हैं, कुछ नहीं। कुछ के प्रति पूर्वाग्रह और कुछ के साथ सहयोग भाव। अन्तर्वैयक्तिक व्यवहार यह सारा व्यापारिक कार्य है। व्यक्ति के विचार, दृष्टि, अनुभव और मानसिकता इसमें बहुत महत्वपूर्ण हैं।

समूह एवं अंतर्समूह स्तर का व्यवहार – क्योंकि मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं, सामाजिक जीवन महत्वपूर्ण है। मानव के साथ बालयपन से ही समूह का व्यवहार जुड़ता है और उसके क्रियाकलाप का हिस्सा बन जाता है। बालपन से घर-आंगन तक, उसकी दुनिया घर से बाहर, पड़ोस, स्कूल, व्यावसायिक समूह और समाज के स्तर पर होती है। इससे व्यक्ति का वैयक्तिक और सामूहिक व्यवहार प्रभावित होता है, साथ ही सहकारिता और प्रतियोगिता भी।

प्रश्न 7. व्यवहार में समानता एवं भिन्नता को समझने के लिए कौन-सी विधि प्रयोग में लाई जाती है?
उत्तर – मनोविज्ञान व्यवहार की समानता और भिन्नता की समस्या पर विचार करता है। उदाहरण के लिए, दोनों क्षेत्रों (संज्ञानात्मक मनोविज्ञान और सामाजिक मनोविज्ञान) समानता का अध्ययन करते हैं। वह चरों को बिना किसी के ध्यान में रखकर प्रयोग करते हैं। अनुप्रयोगात्मक मनोविज्ञान (जैसे परामर्श, नैदानिक मनोविज्ञान तथा मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन) व्यक्ति को नहीं देखता। विभिन्नता मनोविज्ञान (डिफरेंशियल सायकॉलोजी) मनोविज्ञान की एक शाखा है, जबकि समानता जानने की शाखा ‘प्रयोगात्मक मनोविज्ञान’ है।

प्रश्न 8. मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया में मुख्य रूप से किन क्रियाओं का योगदान रहता है?
उत्तर- मानसिक, भौतिक और सामाजिक क्रियाएं अक्सर मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं में भाग लेती हैं। मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं में मूल क्रियाओं में संवेदना, प्रत्यक्षीकरण, सीखना, स्मरण, सोचना, प्रेरणा तथा संवेग आदि शामिल हैं। ये भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रायः सभी प्रक्रियाओं में अन्य प्रक्रियाएं जुड़ी रहती हैं और इनमें बदलाव, परिमार्जन भी होता रहता है। उदाहरण के लिए, प्रत्यक्षीकरण और स्मरण दोनों एक-दूसरे से जुड़ते हैं जब किसी से बात करते समय किसी अन्य व्यक्ति का स्मरण होता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भौतिक, मानसिक और सामाजिक तीनों ही प्रक्रियाओं में कई क्रियाएं सहयोगी होती हैं ।

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