NIOS Class 10 Psychology Chapter 13 समूह और नेतृत्व

NIOS Class 10 Psychology Chapter 13 समूह और नेतृत्व

NIOS Class 10 Psychology Chapter 13 समूह और नेतृत्व – आज हम आपको एनआईओएस कक्षा 10 मनोविज्ञान पाठ 13 समूह और नेतृत्व के प्रश्न-उत्तर (Groups and Leadership Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है । जो विद्यार्थी 10th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यह प्रश्न उत्तर बहुत उपयोगी है. यहाँ एनआईओएस कक्षा 10 मनोविज्ञान अध्याय 13 (समूह और नेतृत्व) का सलूशन दिया गया है. जिसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10th Psychology Chapter 13 समूह और नेतृत्व के प्रश्न उत्तरोंको ध्यान से पढिए ,यह आपकी परीक्षा के लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Psychology Chapter 13 Solution – समूह और नेतृत्व

प्रश्न 1. किसी भी समूह का सदस्य बनने के विभिन्न लाभों का वर्णन करें।
उत्तर समूह – एक समूह में दो या अधिक लोग परस्पर क्रिया करते हैं, एक लक्ष्य रखते हैं, किसी न किसी तरह एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं और लंबे समय तक संबंध बनाए रखते हैं। उन्हें लगता है कि वे एक समूह का हिस्सा हैं। उपर्युक्त परिभाषा निम्नलिखित को समझाती है:-

(i) एक समूह का हिस्सा होने के कारण व्यक्ति एक-दूसरे के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अंतःक्रिया अवश्य करते हैं।
(ii) समूह के सभी सदस्य कुछ साझे के लक्ष्यों को स्वीकार करते हैं।
(iii) उनके संबंध अपेक्षाकृत स्थायी होने चाहिए। यह हमेशा लम्बे समय तक बना रहता है। कुछ ऐसे भी समूह होते हैं, जिनके सदस्य एक दूसरे के साथ स्थायी संबंध रखते हैं।
(iv) वे किसी न किसी तरह परस्पर निर्भर रहते हैं। इसमें जो एक को प्रभावित करता है, वह दूसरों को भी प्रभावित करता है।
(v) समूह के सदस्य यह भी अनुभव करते हैं कि वे एक समूह के सदस्य हैं।

अतः स्पष्ट है कि उपर्युक्त परिस्थितियों की उपस्थिति में लोगों की सामूहिक उपस्थिति को समूह कहना चाहिए। लंबे समय तक साथ काम करने वाले लोगों के कुछ समूह होते हैं, लेकिन कुछ समूहों में सदस्यों के बीच निरंतर संबंध होते हैं, जैसे ट्रेन या बस के सहयात्री, लेकिन साथ रहने तक ही बने रहते हैं।

समूह में शामिल होने के कारण – समूह व्यक्ति की प्रमुख मानसिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। लक्ष्यों को अकेले प्राप्त करने में मदद करते हैं। जब कोई दूसरे लोगों के साथ काम करता है, तो वह कभी अकेले नहीं कर सकता। हम एक समूह के सदस्य के रूप में बहुत सी जानकारी और सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं, जो एक व्यक्ति अकेले या तो नहीं पा सकता है या बहुत मुश्किल से पा सकता है।

समूह अक्सर व्यक्ति को सुरक्षित रखते हैं, इसलिए समूह सुरक्षा की गारण्टी देते हैं। व्यक्ति को समूह की सदस्यता मिलती है। वह व्यक्ति के स्वभाव या दृष्टिकोण का एक हिस्सा बन जाती है।
इन्हीं कारणों से व्यक्ति अक्सर समूह में शामिल होकर अपने को अकेला नहीं, बल्कि समाज के साथ महसूस करता है। इससे वह शक्तिशाली हो जाता है।

प्रश्न 2. समूह गतिशीलता क्या है?
उत्तर – एक लक्ष्य को लेकर चलने वाले व्यक्तियों की एक जगह उपस्थिति ही समूह कहलाता है। यह भी स्पष्ट है कि समूह अपने सदस्यों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है । इस दृष्टि से समूह के प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं-

(अ) भूमिका समूह में कार्यों का विशिष्टीकरण – एक समूह में विभिन्न व्यक्ति अलग-अलग कार्य करते हैं और विभिन्न लक्ष्यों को पाने की प्रत्याशा रखते हैं। संक्षेप में, वे भिन्न-भिन्न भूमिकायें अदा करते हैं। कभी-कभी भूमिकायें उन्हें सौंपी जाती हैं। उदाहरणार्थ, एक समूह विभिन्न सदस्यों को नेता, कोषाध्यक्ष तथा सचिव के कार्यों के लिए चुन सकते हैं।

(ब) संस्थिति – विभिन्न भूमिकाओं की प्रतिष्ठा – संस्थिति का तात्पर्य है व्यक्ति की समूह के अंदर पदस्थिति या जगह । समूह में विभिन्न भूमिकायें या पद प्रायः भिन्न-भिन्न संस्थितियों से जुड़ी होती हैं, क्योंकि संस्थिति अक्सर व्यापक वांछित परिणामों से जुड़ी होती है, जैसे- वेतन तथा अन्य लाभ।

(स) संसक्ति – सबको बांधने वाली शक्ति- समूह के सदस्यों को समूह में रहने के लिए आवश्यक सभी शक्तियों को संसक्ति बताती है। अन्य सदस्यों की पसंदें भी शामिल हैं। इसमें समूह में रहने की इच्छा या समूह में रहने की इच्छा शामिल है।

प्रश्न 3. नेतृत्व की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर – नेताओं की जरूरत होती है जब एक समूह लोगों को एक साझा लक्ष्य हासिल करना चाहता है। ऐसे में नेता ही समूह को लक्ष्य तक पहुंचाता है। नेतृत्व का अर्थ है कि एक व्यक्ति शेष समूह को एक व्यवस्था और अनुशासन में लक्ष्य तक ले जाता है। लगभग सभी औपचारिक और अनौपचारिक परिस्थितियों में नेतृत्व का व्यवहार होता है। अनौपचारिक उदाहरण के लिए, आप कह सकते हैं कि मित्रों के एक समूह में भी कुछ प्रकार का नेतृत्व है। स्थिति बदलने पर समूह में अक्सर एक नया नेता आता है।

दूसरी तरफ, हम जानते हैं कि नेतृत्व का व्यवहार संगठनात्मक और राजनीतिक व्यवस्थाओं में भी होता है। नेताओं को भी औपचारिक अधिकार मिलते हैं। कई बार ऐसा होता है कि औपचारिक अधिकार नहीं होते, लेकिन साझे का लक्ष्य या उद्देश्य पूर्ति के लिये लोगों को काम करने में प्रेरित करने में नेतृत्व की व्यावहारिक अपेक्षा की जाती है।नेतृत्व की दृष्टि से नेताओं की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) स्थितियों के प्रति अनुकूलशीलता
(ii) सामाजिक स्थिति के प्रति सतर्कता
(iii) सहयोगी भाव
(iv) कृतसंकल्प
(v) भरोसेमंद
(vi) आग्रही
(vii) आत्मविश्वासी और अध्यवसायी
(viii) जानकार (योग्य)

वास्तव में, नेतृत्व प्रभावित करना है- इसमें एक व्यक्ति दूसरे लोगों का विश्वास और प्रतिबद्धता हासिल करता है और एक या अधिक कार्यों को पूरा करने के लिए समूह को सक्रिय करता है, चाहे वे औपचारिक पद या अधिकार प्राप्त करें या नहीं। हम किसी नेतृत्व पद पर निम्नलिखित मूल्यों को देख सकते हैं:-

(क) नेतृत्व एक गतिविधि या प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में प्रभाव अनुकरणीय व्यवहार अपनी बात मनवा लेना जैसी विशेषताएं होती हैं।

(ख) नेतृत्व में नेता व समर्थक दोनों शामिल होते हैं, क्योंकि समर्थक नहीं होंगे, तो नेतृत्व किसका ? और नेता नहीं होगा, तो समर्थन किसका?

(ग) नेतृत्व के कई परिणाम हैं। लक्ष्य प्राप्ति सबसे स्वाभाविक परिणाम है क्योंकि किसी लक्ष्य को निर्धारित करके उसे प्राप्त करने के लिए ही नेतृत्व किया जाता है। जैसे संसद में बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री होता है। वह ही देश की सरकार चलाता है।

(घ) ऐसे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों की प्रतिबद्धता आवश्यक है।

परिस्थिति और उसमें सम्मिलित व्यक्तियों के अनुसार उपर्युक्त घटकों में प्रत्येक घटक की भूमिका भिन्न-भिन्न हो सकती है। उदाहरणार्थ-युद्ध की स्थिति में सेना के कमाण्डर को पूर्णतया अलग तरह का नेतृत्व व्यवहार अपनाना पड़ता है और ऐसी दशा में सैनिकों को भी सामान्य नागरिक जीवन की स्थिति की तुलना अलग तरह के अनुशासन में बंधकर कार्य करना होगा। कमाण्डर को लक्ष्य-केंद्रित होना होगा। एक समय सीमा में उसे एक निश्चित लक्ष्य पूरा करना होगा । दृढ़तापूर्वक काम कराने वाला व्यक्ति ही इस दायित्व का भली प्रकार निर्वाह कर सकता है। कमाण्डर की फौज को भी निर्देश पाने और उसके अनुरूप कार्य करना होगा। फौज के सिपाहियों में विपरीत परिस्थितियों में भी स्थितियों से निपटने की क्षमता होनी चाहिए।

राजनीतिक स्थिति और लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेताओं से उम्मीद की जाने वाली क्षमता और अनुयायियों का रूप बहुत अलग होगा। भारत में लोकतंत्र का ही उदाहरण ग्रामीण क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले राजनीतिज्ञ से पूरी तरह अलग होगा। मेलजोल और भाषण क्षमता की आवश्यकता होगी। राजनेता को हर किसी को खुश रखने की कला, सबको खुश रखने की कला और समय की नब्ज को समझकर निर्णय लेने वाला होना चाहिए। स्कूलों-कॉलेजों में नेतृत्व क्षमता और रूप से सेना और राज्य प्रशासन से अलग होना चाहिए। यहां काम और जिम्मेदारी की सीमा होती है।

टीम का कप्तान बेहतर खिलाड़ी के साथ-साथ अपनी टीम के सदस्यों के परस्पर तालमेल से लक्ष्य प्राप्त करने की क्षमता में निहित है। हम कह सकते हैं कि सन्दर्भजन्य और परिस्थितिजन्य घटक महत्वपूर्ण हैं। असल में, एक कुशल नेता का व्यक्तित्व विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग होगा, साथ ही साथ उसके अनुयायियों का व्यक्तित्व और उसके नेतृत्व की सफलता के विशिष्ट नियमों पर भी निर्भर करेगा। विशेष परिस्थितियों और समय के अनुसार, ये विशिष्ट मापदंडों को परिभाषित किया जाएगा. यह एक सामान्य सिद्धांत है, जो किसी भी आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक संस्थाओं के नेतृत्व पर लागू होता है।

प्रश्न 4. अगर आप किसी कम्पनी के नए अध्यक्ष हैं, तो आप अपने नेतृत्व का प्रदर्शन किस प्रकार करेंगे?
उत्तर – मनोवैज्ञानिकों ने नेतृत्व प्रक्रिया और स्वरूप के विभिन्न संकेतक और परस्पर संबंधित विशेषताओं के समूह का निर्धारण करते हुए नेतृत्व का विशेष अध्ययन किया. कुछ मनोवैज्ञानिक शोधाकर्त्ताओं ने दो प्रवृत्तियों को प्रमुखता से पहचाना-
(i) कर्मचारी-उन्मुख प्रवृत्ति
(ii) उत्पादन-उन्मुख प्रवृत्ति

(i) कर्मचारी- उन्मुख प्रवृत्ति – इस प्रवृत्ति के समर्थकों का मानना है कि किसी भी संस्थान या इकाई में हर कर्मचारी महत्वपूर्ण है, इसलिए प्रमुखों ने कर्मचारियों के काम से जुड़े मुद्दों पर जोर देते हुए प्रत्येक कर्मचारी की विशेषताओं और जरूरतों को समझा।

(ii) उत्पादन- उन्मुख प्रवृत्ति – इस प्रवृत्ति वाले नेताओं ने उत्पादन व तकनीकी पहलुओं पर बल दिया तथा कर्मचारियों को संगठन के लक्ष्य को पूरा करने के साधनों के रूप में देखा। उत्पादन (कार्य) और सहकर्मियों (संबंध) पर ध्यान केंद्रित करते हुए नेतृत्व की पाँच शैलियों की पहचान की गयी है-

1. निरुपाय – इस शैली के अंतर्गत अपेक्षित कार्य पूरा करने के लिए न्यूनतम उपाय करने पर बल दिया गया है। संगठन की सदस्यता बनाये रखने के लिए यह उचित है।

2. कंट्री क्लब – इसके अंतर्गत संबंधों का निर्वाह करने के लिए लोगों की जरूरतों पर विचारपूर्वक ध्यान दिया जाता है। इससे संतोषजनक मैत्रीपूर्ण माहौल और काम की गति को बढ़ावा मिलता है।

3. कार्य – नेतृत्व की इस शैली में कार्य की स्थितियों को इस तरह व्यवस्थित करने की क्षमता पर बल दिया जाता है, ताकि उसमें मानव तत्त्वों का हस्तक्षेप कम से कम हो ।

4. मध्यमार्गी- इस तरह के नेतृत्व में यह माना जाता है लोगों के मनोबल को संतोषजनक स्तर तक बनाये रखते हु कार्य पूरा करने की अनिवार्यता के साथ संतुलन के जरिये समुचित संगठनात्मक कार्यक्षमता संभव है।

5. टीम – इसके अंतर्गत काम को प्रतिबद्ध लोगों से करवाया जाता है। इसमें परस्पर निर्भरता और संगठन में ‘समान भागीदारी’ का प्रावधान शामिल है। आदर और विश्वास के रिश्ते बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन प्रवृत्तिगत शैलियों पर विचार करते हुए स्पष्टतः यह प्रश्न उठता है कि क्या कोई नेतृत्व प्रणाली है जो हर स्थिति में उत्पादकता, संतुष्टि और विकास को अधिकतम कर सकती है? नहीं है। सफल और प्रभावशाली नेता वास्तव में परिस्थितियों के अनुरूप अपनी शैली चुन सकते हैं। नौका चालन नेतृत्व से मिलता-जुलता है। नाविक को जल बहाव और हवाओं को नियंत्रित करने के लिए कई निर्णय लेने पड़ते हैं और कई फैसले लेने पड़ते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि नेतृत्व का प्रभाव स्थिति पर निर्भर करता है।

समूह और नेतृत्व के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. सामाजिक मानक क्या हैं? इनके विकास की व्याख्या कीजिए |
उत्तर- मानक एक समाज या समूह के प्रतिनिधि व्यवहार को व्यक्त करता है। यह संरूप व्यवहार इतनी बार होता है कि वह समाज को विशेष रूप से प्रतिबिंबित करता है और उस समाज या समूह के सदस्यों द्वारा स्वीकृत होता है। किसी भी सामाजिक परिस्थिति में कुछ व्यक्त और कुछ अव्यक्त नियम होते हैं, जो हमारे व्यवहार को नियंत्रित, निर्देशित और सटीक बनाते हैं।

सामाजिक मानक ही इन नियमों का निर्माण करते हैं हम जानते हैं कि लिखित कानून और संविधान सरकार को चलाते हैं। खेल भी लिखित नियमों से चलता है। राष्ट्रीय राजमार्ग, हवाई अड्डा आदि में अपेक्षित व्यवहार को बताने वाले कई सार्वजनिक स्थानों पर कुछ संकेत या चिह्न हैं। यहां पार्किंग नहीं कर सकते, फूल तोड़ना मना है, सावधानी हटी, दुर्घटना घटी, ध्यान रहे घर पर आपका कोई इंतजार कर रहा है, हम दो हमारे दो, छोटा परिवार सुखी परिवार आदि। इसके विपरीत, बहुत से मानक अज्ञात या अस्पष्ट हैं; जैसे, अपरिचित लोगों से मेलजोल न बनाएं, सुबह टहलना अच्छा है।

इसी तरह, बार-बार बदलने वाली वेशभूषा, बोली, विकास और खानपान हमारे जीवन पर काफी प्रभाव डालते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि मानक चाहे प्रत्यक्ष हों (कृपया शोर न करें, आगे संकरी पुलिया है आदि) या परोक्ष हों— माता-पिता का कहना मानना चाहिए कि छोटे बच्चों को बीच में नहीं बोलना चाहिए जब बड़े बोल रहे हैं, इनका पालन करना आम है। समूह के स्तर पर ये सामाजिक मानक हैं, जैसे किसी से कुछ लेकर धन्यवाद दें, रेस्त्रां छोड़ते समय वेटर को ‘टिप’ दें, राष्ट्रगान के समय सावधान खड़े हों, आदि।

सामाजिक मानकों के प्रकार– यानी हमें क्या करना चाहिए या हम वस्तुतः क्या करते हैं? स्पष्ट है कि सामाजिक मानक औपचारिक व अनौपचारिक दोनों प्रकार के होते हैं-

(क) औपचारिक मानक-जैसे सड़क के आस-पास या सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा यहां डालिए, गंदगी न फैलाएं, अपना शहर स्वच्छ रखिए, आदि ।
(ख) अनौपचारिक मानक-क्रोध न करें, सहिष्णु बनें, संकट में धैर्य से काम लें, असफलता ही सफलता की सीढ़ी है, आदि ।
मानक को देखने-समझने का एक स्तर दूसरा भी है-

(अ) वर्णनात्मक मानक जो मात्र यह बताते हैं कि अधिकांश लोग परिस्थिति विशेष में क्या करते हैं? खास दशा में कैसा व्यवहार किया जाए, इसकी सूचना देकर व्यक्ति व्यवहार को प्रभावित करते हैं।

(ब) बाधक मानक ये बताते हैं कि क्या करना चाहिए? एक परिस्थिति विशेष में स्वीकृत या अस्वीकृत मानक क्या हैं? दोनों प्रकार के ही मानक व्यक्ति के व्यवहार को गहरे से प्रभावित करते हैं।

जब समाज-विरोधी व्यवहार दिखाई देता है, तो बाधक प्रकार के मानक बहुत प्रभावी होते हैं। दृष्टि से लोगों के व्यवहार को बदलने की कोशिश करने के लिए समाज को उन मानकों को सक्रिय करने की दिशा में ध्यान देना चाहिए, जो सफल हो सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, जब अधिकांश लोग समाजोन्मुख व्यवहार करते हैं, एक वर्णनात्मक मानक को सक्रिय करना ज्यादा फायदेमंद होगा कि लोगों को याद दिलाया जाए कि वे किस तरह व्यवहार करते हैं।

प्रश्न 2. मानकों के विकास पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर – समूह कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए समूह के सभी सदस्य एक सीमित क्षेत्र में निर्णय लेते हैं। इसलिए समूहों में लोग धीरे-धीरे कुछ मानकों बनाते हैं। इस प्रकार, प्रत्येक समूह में व्यक्तिगत मानक लगभग समान हैं। लेकिन ये दर-मानक समूह अलग हैं।
व्यक्ति अपने जीवन में ऐसे मानकों को बनाता रहता है। निर्दोष भौगोलिक परिस्थितियों में रहने वाले लोग आसानी से जानते हैं कि कोई चोटी 30, 40 या 50 मील की दूरी पर कितनी ऊँची है, जबकि ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले लोग बताते हैं कि चोटियां 6, 8 या 10 मील दूर हैं। सभी मानक इस तरह नहीं हैं।

यह भी सीखता है कि चीजें कैसी हैं। कभी-कभी हम सामाजिक व्यवहार को केवल स्वार्थ के आधार पर नहीं देखते, बल्कि नैतिक मूल्यों पर। इन मानकों का समूह मानकों पर लागू होना केवल इस बात पर नहीं निर्भर करता कि हम किन चीजों की बात कर रहे हैं, बल्कि इसके प्रति हम कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। इस तरह, समूह मानक किसी समूह की कार्यक्षमता में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

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