NIOS Class 10 Psychology Chapter 12 प्रौढ़ता और बढ़ती आयु
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NIOS Class 10 Psychology Chapter12 Solution – प्रौढ़ता और बढ़ती आयु
प्रश्न 1. स्वस्थ तथा दीर्घायु की कुंजी का वर्णन करें।
उत्तर- स्वस्थ और खुशहाल जीवन के लिए स्वस्थ जीवन-शैली आवश्यक है। भारतीय आयुर्वेद में स्वस्थ जीवन-शैली के चार प्रमुख तत्त्वों की चर्चा की गई है। ये तत्त्व निम्नलिखित हैं-
(क) भोजन (आहार)
(ख) मनोरंजन (विहार)
(ग) दिनचर्या ( आचार)
(घ) चिन्तन (विचार)
(क) भोजन – आहार, सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण भोजन, स्वस्थ जीवन शैली के मूल्यों में से एक है। शाकाहारी भोजन स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा है। इसमें शहद, दही, रेशेदार सब्जियां, ताजे फल और हरी सब्जियां शामिल हैं। जबकि तला-भुना, मसालेदार और चटपटा खाना कई बीमारियाँ पैदा करता है; इसके दुष्परिणामों में रक्तचाप (उच्च व निम्न), मधुमेह, पाचनतंत्र (आमाशय व छोटी आंत) में अल्सर, यकृत रोग और कैंसर शामिल हैं। जब आप भोजन चुनते हैं, तो यह भी ध्यान रखें कि वह किस ऋतु के लिए उपयुक्त है।
ग्रीष्मकाल में हल्का भोजन और अधिक जलीय पदार्थ (तरल पदार्थ) लें। दही की लस्सी और फलों का रस इसे गर्म करता है। शीत ऋतु में नमकीन या मीठे पदार्थ, दूध से बने पदार्थ पाचक होते हैं। वसन्त पर हल्का भोजन भी अच्छा है। वर्षा के मौसम में दही और दूध को खाने से बचें। नमकीन और मीठे पदार्थ ही लें। साथ ही भोज्य पदार्थों को साफ करके ढककर रखें।
(ख) मनोरंजन (विहार) – हंसना, उत्सव, पिकनिक, संगीत कार्यक्रम आदि मनोरंजन के साधन थकान और उदासी में मन को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। यही कारण है कि रोजमर्रा की व्यस्त जीवनशैली में से कभी-कभी स्वतंत्र भोजन के लिए भी समय निकालना फायदेमंद होता है। मनोरंजन के उपायों में शामिल हैं प्रातःकालीन यात्राएं, मित्रों की बैठकें, व्यायाम और खेल आदि।
(ग) दिनचर्या (आचार) – रोजाना उठकर स्नान, कुल्ला दातुन और स्नान करके अपने दिनचर्या को पूरा करना चाहिए। सप्ताह में कम से कम एक बार तेल मालिश भी आवश्यक है। प्रात:काल यात्रा और हल्का-फुलका व्यायाम भी दिनचर्या में शामिल करना फायदेमंद है। हल्का और पुष्टिकारक भोजन करने से जीवन-कार्य में सुधार होता है।
रात्रि भोजन से 2-3 घंटे पहले शयन करना चाहिए, जो समय व मौसम चक्र के अनुरूप हो। 5-6 घंटे की नींद और विश्राम भी स्वस्थ शरीर के लिए अच्छा है।
(घ) चिन्तन (विचार) – व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर उसके विचारों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। सकारात्मक विचार स्वास्थ्य में वृद्धि के द्योतक हैं, तो नकारात्मक विचार अस्वास्थ्य के द्योतक हैं । अतः व्यक्ति क्या है- यह उसके विचारों पर, चिंतन स्तर पर निर्भर करता है। विचारों में आत्मसंतोष, ईमानदारी, धर्मपरायणता, भावनात्मक सदाशयता आदि स्वस्थ सकारात्मक पक्ष दर्शाते हैं जबकि क्रोध, मद, मोह, लोभ आदि नकारात्मक पक्ष दर्शाते हैं। इनसे दूर रहना ही स्वास्थ्यकर है।
विश्वसनीय व्यक्ति से मित्रता करना लाभप्रद है। यह व्यक्ति के सामाजिक संबंधों की प्रगाढ़ता का परिचायक है। भाईचारे की भावना, पारस्परिकता और ईश्वर में विश्वास भी स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न 2. वृद्धावस्था के दबाव तथा समस्याओं का सामना करने के लिए किस प्रकार की सोच सहायक है ?
उत्तर- यह एक कड़वा सच है कि हर व्यक्ति जन्म लेने के बाद प्रौढ़ता, वृद्धावस्था और विकास की गिरावट का सामना करना पड़ेगा। वृद्धावस्था को टालना असंभव है क्योंकि कोई व्यक्ति पूरे जीवन युवा नहीं रह सकता। जैसा कि हम जानते हैं, वृद्धि एक अवस्था और जैविक प्रक्रिया का परिणाम है। यह उत्तर-प्रौढ़ावस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के कई कारण हैं, जिनमें संघर्ष, तनाव, आदतें, जीवन में अनुशासन की कमी, संयम-नियम की कमी, खराब सेहत और कार्यक्षमता में गिरावट शामिल हैं। अनुशासित जीवन इसे कम दर्दनाक बना सकता है।
अनुशासित जीवन जीने का अर्थ है शरीर को पर्याप्त आराम देना। कार्य की नियमित तथा सही आदतें, तनाव में कमी, उचित पौष्टिक भोजन आदि के द्वारा वृद्धावस्था के नकारात्मक प्रभावों को टाला या कम किया जा सकता है। लेकिन बुढ़ापे को आने से रोका नहीं जा सकता। विकास का ग्राफ तो नीचे की ओर आएगा ही । अतः जीवन की इन ह्रासात्मक चुनौतियों का सामना करने के लिए लोग विभिन्न योजनाएं बनाते हैं, विविध तरीके अपनाते हैं। इससे निपटने के लिए कुछ प्रभावकारी तौर-तरीके यहां प्रस्तुत हैं-
1. लचीलेपन की प्रवृत्ति अपनाएं, ताकि जीवन के दबावों तथा वृद्धावस्था की समस्याओं के अनुसार स्वयं को ढाला जा सके।
2. जीवन की घटनाओं से निपटने के लिए नवीन विधियों की खोज करनी पड़ती है – यह स्वीकार करें।
3.समस्याओं से भागने अथवा इनसे अलग होने की अपेक्षा जानकारी की खोज तथा समस्याओं के समाधान हेतु योजनाओं का अधिक उपयोग।
4. अपनी शक्तियों एवं कमजोरियों के संबंध में स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास तथा आत्मविश्वास एवं आत्म- निर्भरता बढ़ाना।
5. समस्याओं को हल करने का प्रभावी तरीका सीखना और पर्यावरण को क्रियाशील रूप से देखना। वृद्धावस्था में स्वस्थ समायोजन बनाने के लिए समस्याओं से निपटने की उपर्युक्त रणनीतियाँ प्रभावी होती हैं। हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें कई महान लोगों ने नियम-संयम से अपनी वृद्धावस्था का सही ढंग से सामना करते हुए जीवन को सार्थकता दी और समाज में अपनी उपस्थिति को उचित ढंग से प्रकट किया। इनमें महात्मा गांधी का नाम सबसे अधिक उद्धृत किया गया है। 77 वर्ष की उम्र में उसने स्वाधीनता संग्राम की अगुवाई की। इसी तरह, बाबा आम्टे कुष्ठरोगियों के प्रति समर्पित हैं और जीवन भर संघर्ष करते हैं।
हमारे आदर्श श्रीरामकृष्ण परमहंस, मदर टेरेसा और रवीन्द्रनाथ टैगोर हैं। अटलबिहारी वाजपेयी भी सक्रिय हैं। यह जीवनेच्छा ही व्यक्ति को सक्रिय रखती है, इसलिए सामाजिक संबंधों को बढ़ाकर जीवन की मुश्किलों से निपटा जा सकता है। नियम-संयम भी इसमें बहुत महत्वपूर्ण है। टहलना, व्यायाम करना, प्राणायाम करने वाले क्लबों में जाना, अनौपचारिक सामाजिक विचार-विनिमय के लिए कुछ विशिष्ट संगठनों में जाना, विभिन्न सामूहिक गतिविधियों में भाग लेना आदि इस स्थिति में तेल के समान महत्वपूर्ण हैं।
हम अक्सर देखते हैं कि पड़ोस में या अन्य किसी भी स्थान पर समवयस्कों (अवकाशप्राप्त) लोगों के सामाजिक समूहों की स्थापना से वृद्ध लोगों को अपने जीवन की परिस्थितियों को एक दूसरे के साथ साझा करने, अपनी बात कहने और दूसरे की बात सुनने का सुनहरा मौका मिलता है. उनकी भावनात्मक अभिव्यक्ति। इन संबंधों से व्यक्ति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त करता है। नए अनुभवों का सामना करने से भीतर कुछ जमा नहीं होता, इसलिए व्यक्ति सामान्यतया तरोताजा रहता है। स्त्रियां परिवार में दादी-नानी की कहानियों के बहाने भाग लेती हैं। इस तरह, व्यक्ति अपनी व्यस्तता और उम्र के दबाव से काफी कुछ उबरने लगता है और आराम से बुढ़ापा कटने लगता है।
प्रश्न 3. आज के समय में समाज की समस्याओं के क्या मुख्य कारण हैं?
उत्तर – भारतीय समाज में बड़े-बुजुर्गों को हमेशा सम्मान से देखा जाता है और बहु पीढ़ी-उन्मुखी दृष्टिकोण, जो एक ही परिवार में कई पीढ़ियों का मिलकर रहना, भारतीय समाज के विकास का एक बड़ा कारण है। इसे संयुक्त परिवार व्यवस्था भी कहते हैं। हमारे यहां बड़े-बूढ़ों को ऐसे लोगों के रूप में देखा जाता है, जिनके पास बहुत सारा ज्ञान और अनुभव है, जो किसी को अपने व्यक्तित्व को विकसित करने में मदद करता है।
एक कहावत भी है – जो वृद्धों का नित्य सम्मान करते हैं तथा उनकी सेवा करते हैं वे आयु, विद्या, यश, बल आदि सभी दिशाओं में वृद्धि प्राप्त करते हैं।
पारिवारिक कलह का ही परिणाम है, चाहे वह पारिवारिक समस्याएं हों या वर्तमान समाज में पाई जाने वाली अन्य समस्याएं हों। आज के युवा दम्पति निषेधों से बचने के लिए और व्यक्तिगत स्वाधीनता के कारण अलग रहना चाहते हैं. हालांकि, इस नई व्यवस्था का बुरा प्रभाव नई पीढ़ी पर साफ दिखाई देता है। परिवार में सांस्कृतिक प्रचार हमेशा बड़े-बूढ़े से होता है। इस सांस्कृतिक फलक का प्रसार दादा-दादी, नाना-नानी की कहानियों और आदर्शों से हुआ है।
ये सांस्कृतिक रिवाज एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में विरासत में चले गए हैं। पिछली एकल परिवार व्यवस्था ने हमारी आज की युवा पीढ़ी को इस विविध सांस्कृतिक संप्रेषण से वंचित कर दिया है। वास्तव में, आज की पीढ़ी में बड़े-बूढ़ों की परिवार में अनुपस्थिति ने उच्छृंखलता पैदा की है और भावनात्मक अभिव्यक्ति और नैतिक मूल्यों पर इसका बुरा असर पड़ा है। इससे बड़े-बूढ़ों का परिवार में महत्व झलकता है।
प्रश्न 4. वृद्धावस्था में व्यक्ति कैसे स्वस्थ रह सकता है?
उत्तर – वृद्धावस्था में व्यक्ति निम्नलिखित उपायों को अपनाकर स्वस्थ रह सकता है-
(1) रहन-सहन के तरीके में बदलाव करके – वृद्धावस्था में एक व्यक्ति अपने जीवनशैली में बदलाव करके स्वस्थ रह सकता है। इस तरह की आदतों को अपनाने से शारीरिक और मानसिक तनाव कम होगा।
(2) व्यायाम द्वारा- वृद्धावस्था में व्यक्ति व्यायाम द्वारा एक स्वस्थ जीवन जी सकता है। व्यायाम वृद्ध व्यक्ति को अनेक प्रकार की परेशानियों से बचाता है।
(3) खान-पान पर नियंत्रण करके – वृद्धावस्था में व्यक्ति को अपने खान-पान पर नियंत्रण रखना चाहिए। उसे हल्का एवं पौष्टिक भोजन लेना चाहिए। उसे इस प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिए, जो उसकी शारीरिक परेशानियों को बढ़ाये ।
(4) तनाव कम करके – एक वृद्ध व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए तनाव कम लेना चाहिए। उसे उन बातों पर अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए, जो उसके मानसिक तनाव को बढ़ायें ।
(5) नियमित स्वास्थ्य परीक्षण – वृद्धावस्था में व्यक्ति को नियमित रूप से अपने स्वास्थ्य का परीक्षण कराना चाहिए ।
(6) सकारात्मक सोच अपनाकर – वृद्धावस्था में व्यक्ति को सकारात्मक सोच अपनानी चाहिए, जो उसको स्वस्थ रहने में सहायक सिद्ध होगी।