बाल्यकाल के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. संज्ञानात्मक विकास क्या है? इसकी अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- पियाजे बालक में संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन करने में सर्वाधिक सफल रहा है। हम जानते हैं कि बच्चे दुनिया को जानने और समझने के लिए जिन प्रक्रमों या संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं, वे बचपन से ही विकसित होने लगते हैं। इसलिए पियाजे ने अपने बच्चों को देखा और पाया कि वे बड़ों की भाति नहीं सोचते थे। इस संदर्भ में, पियाजे का मानना था कि कुछ अवस्थाओं में व्यक्ति की चिन्तन प्रक्रिया व्यवस्थित रूप से विकसित होती है। जैसे-जैसे बच्चे इन परिस्थितियों से गुजरते हैं और वातावरण में मौजूद लोगों और वस्तुओं से जुड़ते हैं, उनका ज्ञान और सोच अपनी क्रियाओं (इंटरैक्शन) से बदलता है। दृष्टिकोण बदल जाता है। इन अंतःक्रियाओं से बच्चों के मन में दुनिया के बारे में एक चित्र बनाया जाता है। इस मानसिक चित्रण को अनुकूलन कहते हैं।
अपनी परिवेशगत स्थिति के साथ अनुकूल के लिए बच्चे को अपनी संज्ञानात्मक संरचना में परिवर्तन लाना होता है और इसमें वह सक्षम होता जाता है। इस अनुकूलन की प्रक्रिया में दो तत्त्व शामिल होते हैं-
(i) आत्मसातीकरण,
(ii) समायोजन
(i) आत्मसातीकरण- नए अनुभव से गुजरते हुए वह मानसिक संप्रत्यय या वर्तमान चिंतन के तरीके व योजना के संदर्भ को समझ सकता है। इस प्रकार नई सूचना को वर्तमान मानसिक ढांचे में व्यवस्थित करने की प्रवृत्ति आत्मसातीकरण कहलाती है।
(ii) समायोजन– उसे अपनी सोच, विचार प्रक्रम और संप्रत्ययों में परिवर्तन करना होगा ताकि वह नई जानकारी ग्रहण कर सके। समायोजन नए अनुभवों की प्रतिक्रिया के प्रति वर्तमान मानसिक संरचना, संप्रत्यय और विचारों में बदलाव का प्रक्रम है। आप इसे इस तरह समझ सकते हैं:जब कोई शहर में पहली बार आता है, तो वह उसकी वर्तमान मानसिकता और मान्यताओं को जानना चाहता है। यही आत्मसातीकरण है और शहर के वर्तमान ढांचे के अनुरूप अपने मानसिक अनुभवों को न पाकर शहर के बारे में विचारों और चित्रण दोनों में परिवर्तन आता है। इसलिए समायोजन शहर की मानसिक संरचना या संप्रत्यय में बदलाव है।
वाचक वस्तु और उसके शब्द में जो संबंध है, उसे समझने लगता है। वह हवा की आवाज से दौड़ने लगता है। दूध के लिए पुकारे जाने पर सोने लगता है। भाषा में शब्दों के रूप में वाचिक संकेत दुनिया को दर्शाते हैं और बच्चा इस आयु तक तोड़-तोड़ कर बोलने लगता है। भाषा सीखने के बाद, वह अपने अनुभवों को व्यक्त करने की कोशिश करने लगता है। इस तरह का विकास पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था की शुरुआत है।
पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (2 से 7 वर्ष तक) का मतलब है कि बच्चे का मस्तिष्क अब कार्य करने के लिए तैयार हो गया है। उन्होंने वस्तुओं को बदलने (जोड़ने, तोड़ने) की क्षमता हासिल की है, लेकिन सोच के स्तर पर वह अनेक अर्थों में अतार्किक और अपरिपक्व है। उसकी सोच अभी भी आत्मकेंद्रित है। वह वस्तुओं को क्रमानुसार व्यवस्थित करने के लिए पूरी तरह से योग्य नहीं है। यही कारण है कि पूर्व-सक्रियात्मक संज्ञान का दूसरा पक्ष है।
इसके अलावा, बच्चा अभी संरक्षण के सिद्धांत को पूरी तरह से नहीं समझ पाया है। यदि आप छोटे गिलास में दूध देते हैं, तो बच्चे को लगता है कि उसे भी बड़े भाई की तरह बड़े गिलास में दूध चाहिए। बच्चे को बड़े गिलास में दूध देकर पी लेता है। वह यह नहीं समझ पाता कि गिलास बदलने से दूध की मात्रा स्थिर रहती है।
पियाजे बताते हैं कि बच्चा पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में बच्चा संरक्षण को समझ नहीं पाता, हालांकि वह इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। बच्चे की जिद भी तार्किक नहीं है। ठोस संक्रियात्मक अवस्था: पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में बच्चा अपनी गतिविधियों में धीरे-धीरे संरक्षण को समझने लगा है और उसे दिखाता है।
ठोस संक्रियात्मक अवस्था लगभग (7–11) वर्ष तक रहती है। इस समय तक बच्चा स्वयं भार, वजन, आयतन, क्षेत्र आदि संरक्षण करता है। औपचारिक शिक्षा भी उसे काफी कुछ सिखाती है। वह यह मानने लगता है कि ये गुण वस्तुओं में हमेशा रहते हैं।
वास्तव में, समझ और तार्किकता ठोस संक्रियात्मक अवस्था से जुड़ी हुई हैं। इसमें बच्चा किसी चीज को क्रम में व्यवस्थित करना सीखता है, यानी क्रमिक स्थिति में वस्तुओं को व्यवस्थित करता है। वह वस्तु को विभिन्न आकारों, रंगों आदि में वर्गीकृत करके देखने लगता है, लेकिन यह उसकी मध्य बाल्यावस्था ही होती है, इसलिए उसका विचार अभी ठोस स्थितियों तक ही सीमित है। अमूर्त या परिकल्पनात्मक परिस्थितियों में वह अपनी तार्किक क्षमता का उपयोग नहीं कर सकता।
औपचारिक संक्रियात्मक वातावरण—11 वर्ष तक के बालक अक्सर औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (संज्ञानात्मक विकास की अंतिम अवस्था) में पहुंच जाते हैं। वयस्कों की सोच इस उम्र के बच्चों की तरह हो जाती है। अब वे दृश्य ठोस परिस्थितियों में ही नहीं सोचते, बल्कि अमूर्त और परिकल्पनात्मक परिस्थितियों में भी अधिक तार्किक रूप से सोचते हैं। इस आयु में बच्चे सभी संभावित कारकों को व्यवस्थित रूप से विचार करते हुए विस्तृत परिकल्पना बनाते हैं। बच्चे वैज्ञानिकों की तरह निगमात्मक और परिकल्पनात्मक तर्क कर सकते हैं। इसके बावजूद, इस प्रक्रिया में कभी-कभी सामान्यीकरण के लिए पीछे मुड़कर देखते हैं क्योंकि अनुभव और परिस्थिति के संभावित पक्षों को पूरी तरह से समझने या उन पर ध्यान देने की क्षमता नहीं है। विश्लेषणवादी मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पियाजे का सिद्धांत बच्चों के विकास का अध्ययन करने में महत्वपूर्ण है।
विकास स्तर को मापने की विभिन्न विधियों से प्राप्त तात्कालिक प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि छोटे बच्चों में वस्तु स्थायित्व और संरक्षण जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं का चिन्तन पक्ष पियाजे के सिद्धांत में वर्णित आयु से पहले ही होता है। इसके अलावा, पियाजे ने भाषा और वयस्कों द्वारा समाजीकरण की भूमिका को बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमता में कम आंकते हुए पूरा महत्त्व नहीं दिया।OOKS.com ने एक नवीनतम अध्ययन प्रकाशित किया है जिसके अनुसार बच्चों की सूचना संसाधनों, भंडारण, पुनरुद्धार और जोड़ने-तोड़ने की क्षमता में क्रमिक बदलाव को उनके संज्ञानात्मक विकास में देखा जाना चाहिए। ऐसा होने से हम विकास अध्ययन में सही निष्कर्ष प्राप्त कर सकेंगे।
इस उपागम में मानव मस्तिष्क को सूचना संसाधन की व्यवस्था मान सकते हैं। सूचना संसाधन उपागम के अनुसार, बच्चों की संवेदनात्मक, स्मृति, ध्यान और दूसरी क्षमताओं में सुधार के साथ सूचना संसाधन की क्षमता भी बढ़ती है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, उनकी संज्ञानात्मक समझ और योजनाबद्ध नियमन क्षमता भी बढ़ती जाती है। यहां यह कहना अतार्किक नहीं होगा कि पियाजे के सक्रियात्मक विकास की अवस्थाएं एकांगी हैं। इसमें भाषा और वयस्कों द्वारा समाजीकरण की प्रक्रियाओं को भी जोड़कर देखना होगा, ताकि सही निष्कर्ष निकाले जा सकें।
प्रश्न 4. बच्चे की शारीरिक विकास प्रक्रिया संक्षेप में बताइए।
उत्तर- जैसे बच्चे का वजन और लम्बाई बढ़ता है उसकी मांसपेशियां और अस्थि भी बदल जाती हैं। अस्थियाँ कड़ी, लम्बी, मोटी होती हैं, और मांसपेशियां बड़ी होती हैं और प्रधान होती हैं। शरीर का ऊपरी और केंद्रीय हिस्सा निचले और परिधीय हिस्सों की अपेक्षा जल्दी परिपक्व होता है। विकास की शुरुआत में मस्तिष्क का विकास बहुत तेजी से होता है।
मस्तिष्क के दोनों गोलाधर्थों- दाएं व बाएं गोलाधर्थों का शरीर की गति पर पार्श्व तिर्यक नियंत्रण होता है यानी बायां गोलार्ध शरीर के दाएं भाग का नियंत्रण करता है तथा दायां गोलार्ध शरीर के बाएं भाग का नियंत्रण करता है।
प्रश्न 5. समाजीकरण क्या है?
उत्तर- समाज में महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले व्यवहारों मानकों, मूल्यों तथा विश्वासों को सीखने का प्रक्रम समाजीकरण कहलाता हैं समाजीकरण के अंतर्गत बच्चे के व्यवहारों का नियमन एवं उनके अवांछनीय तथा अनुचित अनुपयुक्त व्यवहारों में प्रवृत्तियों को अनुशासित करना सम्मिलित है। अतः जैसे-जैसे बच्चा विकास करता है, वह सामाजिक बंधनों को बनाता है और अपनी विशिष्ट विशेषताओं, अंतक्रियाओं के तरीकों संवेगों एवं मूल्यों के द्वारा जाने जाते हैं।
प्रश्न 6. बच्चों के सामाजिक विकास में माता-पिता व निकट संबंधियों की भूमिका पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर- बच्चों का सामाजिक विकास उनके माता-पिता और देख-रेख करने वाले निकट स्थित अन्य लोगों के साथ बच्चों के लगाव तथा स्नेह द्वारा प्रभावित होता है। बच्चों के सामाजिक विकास में संवेगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जो बच्चे अपने संरक्षको के साथ लगाव को अत्यधिक सुरक्षित मानते हैं। वे असुरक्षित बच्चों की तुलना में सामान्य रूप से अधिक उत्सुकता के साथ सहयोग देने वाले तथा मित्रवत होते हैं तथा कठोर अनुशासन व आदेश के अधीन पलने वाले बच्चे अपेक्षाकृत कम सामाजिक होते हैं।
इस पोस्ट में आपको Nios class 10 psychology chapter 10 solutions Nios class 10 psychology chapter 10 pdf Nios class 10 psychology chapter 10 notes Nios class 10 psychology chapter 10 question answer Nios class 10 psychology chapter 10 childhood solutions Nios class 10 psychology chapter 10 childhood notes एनआईओएस कक्षा 10 मनोविज्ञान अध्याय 10. बाल्यकाल समाधान से संबंधित काफी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर दिए गए है यह प्रश्न उत्तर फायदेमंद लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और इसके बारे में आप कुछ जानना यह पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट करके अवश्य पूछे.