NIOS Class 10 Home Science Chapter 17 जीवन का शुभारंभ

NIOS Class 10 Home Science Chapter 17 जीवन का शुभारंभ

NIOS Class 10 Home Science Chapter 17. जीवन का शुभारंभ – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 गृह विज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 गृह विज्ञान अध्याय 17 (जीवन का शुभारंभ) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Home Science Chapter 17 Life Begins दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Home Science Chapter 17. जीवन का शुभारंभ के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Home Science Chapter17 Solution – जीवन का शुभारंभ

प्रश्न 1. एक महिला को कैसे पता चलता है कि वह गर्भवती है?
उत्तर- जब एक महिला गर्भवती है, उसका मासिक चक्र बंद हो जाता है। यह आम तौर पर पहला संकेत है। उसे कमजोरी महसूस होने लगती है, मितली आने लगती है, विशेषकर सुबह उल्टी करने की इच्छा होती है। यह समस्या गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे महीने तक रहती है। बार-बार स्नान करना पड़ सकता है। वक्ष नर्म होते हैं और उनका आकार बढ़ता है। निप्पिल भी बढ़ते हैं और विकसित होते हैं।

प्रश्न 2. आपको क्या लगता है कि जननतंत्र की परिपक्वता से पूर्व महिला के गर्भवती होने के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर- गर्भधारण करने की सही आयु 20 से 35 वर्ष है। जननतंत्र इस उम्र में परिपक्व हो जाते हैं। हमारी जिंदगी में कई उदाहरण हैं जो हमें यह सिद्ध करते हैं कि पुरानी चीजों का पूर्वप्रयोग नकारात्मक परिणाम देता है। कच्चे घड़े में पानी डालना क्या होगा? घड़ा टूट जाएगा। यही प्रकार, यदि एक महिला गर्भ धारण करेगी लेकिन जननतंत्रों की परिपक्वता से पहले, तो उसके जीवन को खतरा हो सकता है, शिशु का विकास सही नहीं होगा या गर्भपात हो सकता है। यही कारण है कि महिलाओं को सही उम्र से पहले गर्भधारण नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 3. गर्भावस्था के पहले से तीसरी तिमाही तक भ्रूण के विकास का अवलोकन करें।
उत्तर- भ्रूण का गर्भाशय में विकास – भ्रूण मां के गर्भ में लगभग नौ महीने रहता है । इन नौ महीनों को तीन तिमाहियों में बांट सकते हैं ।
प्रथम तीन महीने या पहला त्रैमास
• भ्रूण अपने आपको गर्भाशय की दीवार से जोड़ता है ।
• भ्रूण के बचाव और पोषण के लिए एक ढांचे – एमनियोटिक सेक, गर्भनाल (प्लेसेंटा डोर) का निर्माण होता है ।
• कई बाहरी और आंतरिक अंगों का निर्माण होता है ।
• भ्रूण के लिंग को पहचाना जा सकता है ।

तीन से छह महीने या दूसरा त्रैमास
• तेजी से आकार में वृद्धि होती है ।
• भ्रूण हिलने-डुलने लगता है ।
• मस्तिष्क का विकास तेजी से होता है ।
• भ्रूण प्रकाश और ध्वनि पर प्रतिक्रिया करता है ।

• छह से नौ महीने या तीसरा त्रैमास
• आकार में निरंतर वृद्धि होती रहती है।
• यदि भ्रूण इस समय भी पैदा हो जाए, तो भी जीवित रहेगा।
• माता के द्वारा प्रतिपिंड (एंटीबॉडीज) भ्रूण को दी जाती है, ताकि पैदा होते समय वह बीमारियों से बचा रहे ।
• नौ माह के अंत में भ्रूण अधिकतर ऊपर से नीचे हो जाता (सिर माता के पांवों के ओर) यानी पैदा होने के लिए तैयार होता है।

प्रश्न 4. ऐसी चार बातों की सूची बनाएँ, जिन्हें सुनिश्चित करके एक महिला तथा उसका परिवार स्वस्थ तथा खुशहाल बच्चे को जन्म दे सके।
उत्तर – गर्भवती महिला को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। इसमें उसके परिवार वालों को न केवल शारीरिक तौर पर बल्कि मानसिक तौर पर तथा भावात्मक तौर पर महिला का विशेष ध्यान रखना चाहिए ।
• गर्भवती महिला को सदा खुश व तनावमुक्त रखकर। गर्भवती महिला की समय-समय पर डॉक्टर से जाँच करवाकर |
• उसे टिटनेस का टीका लगवाकर, ताकि किसी प्रकार का संक्रमण न हो सके।
• संतुलित व पौष्टिक आहार देकर, क्योंकि स्वस्थ महिला ही स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है। माँ के शरीर से ही बच्चे को पोषण मिलता है। अतः यह जरूरी है कि माँ पौष्टिक आहार ले ।

प्रश्न 5. ‘चौथी तिमाही’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – जब एक महिला गर्भवती हो जाती है, उसे ‘चौथी तिमाही’ कहते हैं। डॉक्टरों ने इसे चौथी तिमाही कहा क्योंकि वे प्रसव की अवधि को बढ़ाकर इस महीने को भी उतना ही महत्व देना चाहते हैं, जितना कि प्रसव के पहले महीनों को। प्रसव के बाद भी माँ और शिशु का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।

प्रश्न 6. प्रसव के पश्चात माँ तथा बच्चे की देख-रेख के दो समान कारकों का उल्लेख कीजिए। ये कारक महत्त्वपूर्ण
क्यों हैं?
उत्तर – प्रसव के पश्चात माँ तथा बच्चे दोनों के लिए स्वच्छता तथा पोषण का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।

स्वच्छता – गुनगुने पानी में भीगे हुए स्वच्छ कपड़े से शिशु का शरीर साफ करना चाहिए। शिशु की नाल काटने के बाद उसे सूखा रखना चाहिए, क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। माँ को एक साफ-सुथरे और पर्याप्त प्रकाश वाले कमरे में रखना चाहिए। उसे हर दिन स्नान करना चाहिए और टाँकों को गीला नहीं होने देना चाहिए ताकि संक्रमण न हो।

पोषण – शिशु को माँ का दूध ही पिलाना चाहिए ताकि वह स्वस्थ और पोषित रहे। माँ के दूध में पहले कुछ दिन तक कॉलोस्ट्रोम नामक पीला तरल मिलता है, जो बच्चे को बहुत अच्छा लगता है। उसे उसे पिलाना चाहिए। ताकि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में माँ का दूध मिल सके, माँ को भी संतुलित और पोषक आहार लेना चाहिए।

प्रश्न 7. शिशु को जन्म से ही माँ का दूध पिलाना क्यों महत्त्वपूर्ण है? अपने उत्तर के तर्क में दो कारण बताइए ।
उत्तर – प्रसव के एक घंटे बाद से माँ को अपने बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए। माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार होता है, क्योंकि
• माँ के दूध में प्रतिपिंड होते हैं, जो उसे कुछ बीमारियों से बचाते हैं।

• माँ और बच्चे के बीच विशेष लगाव उत्पन्न होता है, यह बोतल से दूध पिलाने पर नहीं होता। पहले छह महीने बच्चे को केवल स्तनपान ही कराना चाहिए।

• माँ के दूध से संक्रमण होने की कोई संभावना नहीं होती, क्योंकि यह साफ-सुथरा होता है, जबकि अन्य दूध विशेषकर जो बोतल से पिलाये जाते हैं, इनसे बच्चे को दस्त और अन्य बीमारियों से बचाने में कठिनाई आती है।

प्रश्न 8. गर्भवती महिला को विशेष देखरेख प्रदान किए जाने के समर्थन में तथा विरोध में कम से कम दो कारण बताते हुए वर्णन कीजिए ।
उत्तर – गर्भवती महिला को विशेष देखरेख की जरूरत होती है, क्योंकि
• ऐसी स्थिति में महिला के शरीर में एक जान पल रही होती है, जिसका ध्यान रखना जरूरी होता है ।
• ऐसी स्थिति में महिला को किसी प्रकार का रोग या कोई अन्य परेशानी महिला व शिशु दोनों की मृत्यु का कारण बन सकती है।

विपक्ष में तर्क
• यह कोई रोग या बीमारी नहीं है, बल्कि प्रकृति का नियम है, जो सामान्य तौर पर चला आ रहा है। अतः इसमें किसी विशेष ध्यान की जरूरत नहीं होती ।
• सदियों से यह क्रम निरंतर चला आ रहा है और पहले के समय में जब चिकित्सा इतनी विकसित नहीं थी तब भी स्त्रियाँ बच्चे पैदा किया करती थीं।

प्रश्न 9. एक दंपति को अपने परिवार का नियोजन करना चाहिए, कारण दीजिए ।
उत्तर – यदि एक परिवार में दो बच्चे हैं, तो उनके बीच पर्याप्त दूरी होनी चाहिए। परिवार नियोजन माँ और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। माता-पिता की जिम्मेदारी सिर्फ बच्चे पैदा करना नहीं है, बल्कि उनके जीवन को सुखी बनाना भी है। यदि परिवार को व्यवस्थित नहीं किया जाएगा, तो अधिक बच्चे होंगे और परिवार बड़ा होगा। तेजी से बच्चे पैदा करने से माँ का स्वास्थ्य प्रभावित होगा। दूसरा, वह अपने पहले शिशु पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाएगी। ऐसे में माँ चिड़चिड़ी हो जाती है, जिससे बच्चे असुरक्षित महसूस करते हैं। यदि बच्चे अधिक होंगे, तो माता-पिता सबकी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकेंगे, इसलिए परिवार की योजना बनाना महत्वपूर्ण होगा।

जीवन का शुभारंभ के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. स्त्री कब गर्भवती होती है ?
उत्तर- स्त्री के अंडे तथा पुरुष के शुक्राणु के निषेचित होने पर स्त्री गर्भवती होती है |

प्रश्न 2. स्त्री को गर्भावस्था के आरम्भिक दिनों में अधिक आराम तथा सावधानी की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर- क्योंकि उस समय भ्रूण का विकास हो रहा होता है ।

प्रश्न 3. स्त्री की गर्भाधारण की अवधि को कितनी श्रेणियों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर – गर्भाधारण की अवधि नौ महीने की होती है जिसे तीन त्रैमासों में विभाजित किया जा सकता है ।

प्रश्न 4. गर्भावस्था के दौरान स्त्री को संतुलित आहार क्यों लेना चाहिए ?
उत्तर- गर्भावस्था के दौरान स्त्री जो भी खाती है, वह उसके शरीर में बढ़ रहे भ्रूण को भी प्राप्त होता है । अतः स्वस्थ रहने के लिए तथा बच्चे के विकास के लिए स्त्री को संतुलित भोजन करना चाहिए ।

प्रश्न 5. भ्रूण के विकास के दौरान महिलाओं को शांत क्यों रहना चाहिए ?
उत्तर- क्योंकि यदि महिलाएं विचलित रहेंगी, तो बच्चा भी उत्तेजक स्वभाव का पैदा होगा ।

प्रश्न 6. नवजात शिशु के लिए सर्वोपयुक्त आहार माँ का दूध क्यों है ?
उत्तर– क्योंकि मां का दूध प्रोटीनयुक्त होता है तथा बच्चे को संपूर्ण पोषण तथा बीमारियों लड़ने की क्षमता प्रदान करता है ।

प्रश्न 7. बच्चे के जन्म से पूर्व गर्भवती स्त्री को किस प्रकार की देखभाल की आवश्यकता होती है ?

उत्तर– गर्भावस्था– गर्भावस्था के पहले आठ महीनों में, एक महीने में कम से कम एक बार, और प्रथम तीन महीनों में सप्ताह में एक बार, गर्भवती महिला को चिकित्सक से मिलना चाहिए। बच्चे के जन्म से पहले गर्भवती महिला को निम्नलिखित देखभाल की जरूरत होती है-

1. पोषण –एक स्वस्थ माता ही एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है और उसे स्वस्थ रहने के लिए उचित भोजन चाहिए।
पहले तीन महीनों में गर्भावस्था में मितली और उल्टी होना आम है। इस बीमारी से बचने के लिए उसे सुबह उठने से पहले एक बिस्कुट या एक डबलरोटी खाना चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान कब्ज होना एक और आम समस्या है, इसलिए उसे बहुत सारे फल और कच्चा सलाद खाने और तरल पदार्थ पीने चाहिए। पपीते और केले भी अच्छे हैं।

महिला को नियमित और संतुलित आहार लेना चाहिए ।

मसालेदार, तले हुए और बासी भोजन से पाचन संबंधी गड़बड़ी बढ़ती है, इसलिए इनसे बचना चाहिए ।

एक साथ भरपेट भोजन खाने की अपेक्षा गर्भवती महिला को थोड़ी-थोड़ी देर बाद थोड़ा-थोड़ा आहार लेना सर्वोत्तम रहता है । उसे सोने से दो से तीन घंटे पहले दिन का आखिरी आहार ले लेना चाहिए।

2. वजन – गर्भवती महिला का वजन भ्रूण के विकास के साथ बढ़ता है। वह गर्भावस्था के नौ महीनों में आठ से दस किलो बढ़ना चाहिए। डॉक्टर के पास जाने पर हर बार अपना वजन देखना चाहिए यदि संभव हो। वह घर पर छोटे-छोटे तराजू बना सकती है। वजन बढ़ना बंद होना एक खराब संकेत है। ठीक उसी तरह, आखिरी महीने में अचानक वजन बढ़ना भी खतरे का संकेत है। इन दोनों स्थितियों में महिला को एक चिकित्सक से मिलना चाहिए।

3. औषधियां- गर्भवती महिला को जहां तक संभव हो अनावश्यक दवाइयां नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि ये दवाइयां गर्भनाल के माध्यम से भ्रूण तक पहुंच सकती हैं और गर्भ में पल रहे शिशु को खराब कर सकती हैं। गर्भवती महिला को छठे, सातवें और आठवें महीने में टिटनेस टीका लगवाना चाहिए ताकि नवजात शिशु को बीमार होने से बचाया जा सके।

4. कपड़े – गर्भवती महिलाओं को आरामदायक और ढीले कपड़े पहनना चाहिए। पेट पर कसे कपड़े भ्रूण को विकसित करने में बाधा डालते हैं। गर्भवती महिला को अपना सामान्य काम करते रहना चाहिए और चुस्त रहना चाहिए। महिलाएं इस अवस्था में जल्दी थक जाती हैं, इसलिए उसे पर्याप्त आराम भी लेना चाहिए।

प्रश्न 8. भ्रूण के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए ?
उत्तर- बढ़ता हुआ भ्रूण हालांकि बच्चेदानी में सुरक्षित रहता है, परंतु कुछ कारकों से प्रभावित होता है ।

1. माता की भावनाएं भ्रूण को प्रभावत करती हैं- कारण चाहे जो भी हो, गर्भावस्था के दौरान माता की नाड़ियों से खून में रसायन प्रवेश करते हैं। ये रसायन भ्रूण को विकसित करते हैं। ऐसा बच्चा जन्म के बाद उत्तेजित होगा। इसलिए माताओं को लगातार तनाव से बचना चाहिए। गर्भकाल के दौरान कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं यदि माता निरंतर विचलित रहती है।

2. माँ के आहार का बच्चे के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है – माँ को अच्छी खुराक लेनी चाहिए, जिससे कि बच्चे को बढ़ने के लिए सही पोषण मिले । यदि माता की खुराक पर्याप्त नहीं है या पोषक नहीं है, तो बच्चा भी कमजोर पैदा होगा । ऐसा बच्चा जल्दी बीमार पड़ेगा और जल्दी संक्रमित होगा ।

3. प्रजनन के लिए 20 से 35 वर्ष की अवस्था सर्वोत्त्म होती है – प्रजनन की सही उम्र 20 से 35 वर्ष की है। 20 वर्ष की उम्र के पहले महिलाओं का प्रजनन तंत्र ठीक से विकसित नहीं होता । 35 वर्ष बाद यह कमजोर हो जाता है । एक माता जो कि 20 वर्ष से कम या 35 वर्ष से अधिक होती है, उसमें गर्भाधान के दौरान कई जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं ।

4. दवाइयां गर्भनाल (प्लेसेंटा) के द्वारा निकल जाती हैं और बच्चे पर प्रभाव डालती हैं – कुछ दवाइयां पतली और कमजोर प्लेसेंटा (गर्भनाल) से निकलकर बच्चे के शरीर में प्रवेश करती हैं। यही कारण है कि गर्भवती महिला को कोई भी दवा लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए। गर्भवती महिला को एक्सरे से बचना चाहिए और किसी भी दवा से परहेज करना चाहिए। यह भ्रूण की वृद्धि को रोक सकता है, लेकिन कभी-कभी बच्चे की बीमारी का निदान करने के लिए एक्सरे की जरूरत होती है।

5. रोग के कीटाणु भी बच्चे को हानि पहुंचा सकते हैं- यदि माता को एड्स, चिकनपॉक्स या जर्मन मीजल्स छोटी माता की बीमारी है, तो उसके कीटाणु प्लेसेंटा पतली दीवार से बाहर निकलकर विकसित हो रहे भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकते हैं। गर्भाधान के दौरान माता-पिता को सावधान रहना चाहिए और ऐसी बीमारियों से बचना चाहिए।

प्रश्न 9. नवजात बच्चे को किस प्रकार की देखभाल की आवश्यकता होती है ?
उत्तर – नवजात बच्चे की देखभाल – जब बच्चे पैदा होते हैं, वे 17 से 18 इंच लंबा होते हैं और 2 किग्रा वजन करते हैं, हालांकि हर बच्चा अलग होता है। बच्चे की एक त्वचा अक्सर सिकुड़ी हुई-सी होती है और एक सफेद पदार्थ (पनीर) से ढकी होती है। बाद में यह उसके गर्भाशय में गिर जाता है। नवजात शिशु अक्सर रोता है और बहुत देर सोता है (करीब 16 घंटे)। उसे अधिक बार खुराक की जरूरत पड़ती है, और उसे सोने और जागने के लिए कुछ समय लगता है। इसलिए, माता-पिता को पहले दो महीने में कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बच्चे पैदा होने के बाद बहुत देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि वह बहुत नाजुक होता है। जब भी नवजात की देखभाल करनी हो, तो निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखें-

1. कटे हुए नाल की देखभाल – ताजे कटे हुए नाल को संक्रमण से बचाने के लिए उसे सूखा रखना सबसे महत्वपूर्ण है। इसे सूखा रखने के लिए हवा लगानी चाहिए। यदि घर बहुत साफ-सुथरा है और मक्खियों की कमी नहीं है, तो कटे हुए नाल को खुला रखें, ताकि हवा आती रहे। यदि घर में धूल या मक्खियां हैं, तो नाल को हल्के से ढक दें।

2. नवजात शिशु की साफ-सफाई – बच्चा सफेद मोम जैसी वस्तु से ढका होता है, जो रोग रोधक / ऐंटीसैप्टिक होती है और इसे जबरदस्ती नहीं उतारना चाहिए । यह दो-तीन दिन में अपने आप झड़ जाती है ।

3. नवजात शिशु को स्नान कराना – बच्चे को प्रतिदिन गुनगुने पानी से हल्के साबुन से स्नान कराना चाहिए । नाल को सूखा रखने का प्रयास करना चाहिए, ताकि कोई संक्रमण न हो ।

4. बच्चे को दूध पिलाना – बच्चे को जन्म से पहले माँ का दूध पिलाना चाहिए। पहले दिन माँ का दूध हल्का और शुद्ध होता है। माताओं का मानना है कि यह दूध अच्छा नहीं होता, इसलिए वे बच्चे को इसे नहीं पिलातीं। बच्चे को संक्रमण से बचाने के लिए यह दूध, जिसे “खीस” कॉलस्ट्रम कहते हैं, बहुत से एंटीबॉडी (प्रतिपिंड) होते हैं। इसमें बहुत अधिक प्रोटीन है।

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