एकल स्वामित्व, साझेदारी तथा हिन्दू अविभाजित परिवार के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. कोई दो परिस्थितियां बताएं जिसमें एकल स्वामित्व सबसे अधिक उपयुक्त हो ।
उत्तर – 1. ऐसे व्यवसाय जहां हस्तकौशल की आवश्यकता होती है, जैसे- आभूषण बनाना, कपड़े सिलना आदि ।
2. ऐसे व्यवसाय जिसमें कम पूंजी की जरूरत हो तथा जोखिम कम हो।
प्रश्न 2. साझेदारी और संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय में सदस्य संख्या के आधार पर अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर- 1. संयुक्त हिन्दू परिवार में कितने सदस्य होने की कोई सीमा नहीं है; हालांकि, साझेदारी में 10 और अन्य में 20 तक सदस्य हो सकते हैं।
2. संयुक्त हिन्दू परिवार में सदस्यता जन्म के साथ प्राप्त हो जाती है। साझेदारी व्यापार में सदस्यता समझौते द्वारा मिलती है ।
प्रश्न 3. एकल स्वामित्व व्यावसायिक संगठन की उपयुक्तता के बारे में बताइये |
उत्तर– एकल स्वामित्व की उपयुक्तता के बारे में श्री थॉमस ने लिखा है – ” ऐसे व्यापार में एकल व्यापार ही पूरा साम्राज्य है, जहाँ माँग नियंत्रित है, कम पूँजी की आवश्यकता होती है, प्रतियोगिता और परस्पर संपर्क की कमी होती है और अधिक जोखिम नहीं होता।इस कथन के आधार पर हम कह सकते हैं कि ऐसे उद्यमों में कम धन की आवश्यकता होती है और मानव श्रम की कमी होती है,
जैसे – आभूषण बनाना, जरी का काम, हथकरघा आदि व्यवसायों के लिये एकल स्वामित्व संगठन उपयुक्त है।
प्रश्न 4. साझेदारी की किन्हीं दो सीमाओं की व्याख्या कीजिये ।
उत्तर – साझेदारी फर्म की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) अस्थायी अस्तित्व – जब कोई साझेदार मर जाता है या पागल या दिवालिया हो जाता है, तो साझेदारी का अस्तित्व खतरे में है।
(2) हिस्से के हस्तांतरण पर रोक – बिना अन्य साझेदारों की अनुमति के, कोई साझेदार अपने हिस्से को किसी अन्य व्यक्ति के नाम हस्तांतरित नहीं कर सकता; इससे आपातकालीन निवेश भी वापस नहीं मिल सकता।
प्रश्न 5. एकल स्वामित्व व्यवसाय के चार लाभ और चार सीमाएँ बताइये।
उत्तर – एकल स्वामित्व व्यवसाय के लाभ – एकल स्वामित्व वाला व्यवसाय हमारे देश का सबसे सरल और सबसे ज्यादा प्रचलित व्यावसायिक संगठन है। इसके निम्नलिखित लाभ हैं-
1. सरल स्थापना व अन्त– इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं होती, विपरीत स्थानीय प्रशासन और सरकार के स्वास्थ्य विभाग से लाइसेंस लेने के लिए। आरंभ करने की तरह ही इसे बंद करना भी आसान है। व्यापारी अपनी इच्छा से व्यवसाय शुरू और बंद कर सकता है।
2. सीधी प्रेरणा – एकल स्वामित्व में ‘परिश्रम के अनुसार प्रतिफल’ का सिद्धान्त लागू होता है। स्वामी जितना परिश्रम करता है, उतना फल उसे मिल जाता है। इसलिए वह खूब डटकर काम करता है ताकि उसका व्यवसाय दिन दूना रात चौगुना फले-फूले ।
3. शीघ्र निर्णय तथा समय पर कार्यवाही – संगठन के इस रूप में व्यवसाय सम्बन्धी निर्णय शीघ्र लिये जा सकते हैं, क्योंकि यहां किसी से भी सलाह करना जरूरी नहीं है। निर्णयों के आधार पर शीघ्र कार्यवाही भी की जा सकती है।
4. प्रभावी (बेहतर) नियंत्रण – एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय की सभी गतिविधियों पर स्वामी का पूरा नियंत्रण होता है । व्यवसाय से संबंधित सारी योजनाएं बनाने के साथ-साथ वह इसकी सभी गतिविधियों में समन्वय भी बनाए रखता है, क्योंकि व्यवसाय के सारे अधिकार स्वामी के पास होते है, इसलिए वह सभी गतिविधियों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकता है।
एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय संगठन की सीमाएं
1. सीमित पूंजी- एकाकी व्यापार में पूंजी सीमित होती है, अतः बड़े पैमाने पर व्यापार नहीं किया जा सकता। पूंजी की कमी के एकल स्वामित्व, साझेदारी तथा हिन्दू अविभाजित परिवार / 29 कारण कभी-कभी व्यवसाय अलाभकारी बन जाता है तथा उसका अस्तित्त्व भी समाप्त हो जाता है।
2. असीमित देनदारी – स्वामी व्यवसाय शुरू करने और उसे बढ़ाने के बारे में बहुत सावधानी से सोचता है क्योंकि वह डरता है कि उसकी संपत्ति को इन देनदारियों को भुगतान करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है यदि वह ऋण चुकाने में असफल हो जाता है।
3. निरन्तरता का अभाव – इस क्षेत्र में स्थिरता बहुत कम है। यदि मालिक को कोई दुर्घटना, असमर्थता या अस्वस्थता होती है, तो व्यवसाय को कुछ समय के लिए बंद करना पड़ता है। व्यवसाय अक्सर एकदम बंद हो जाता है अगर मालिक मर जाता है। अब व्यापारी के उत्तराधिकारी पर उसका भविष्य निर्भर करेगा।
4. सीमित आधार – एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय में एक सीमा से आगे व्यवसाय का विस्तार करना कठिन होता है। यदि व्यापार एक निश्चित सीमा से आगे बढ़ जाएगा तो एक अकेले व्यक्ति के लिए उसकी देखभाल करना और प्रबंध करना हमेशा संभव नहीं होता।
प्रश्न 6. व्यवसाय का एकल स्वामित्व रूप किन स्थितियों है?
उत्तर – एकल स्वामित्व वाला व्यवसाय संगठन ऐसे व्यवसायों के लिए उपयुक्त है जहां कि
(i) उत्पाद का बाजार स्थानीय होता है । उदाहरणस्वरूप किराने की वस्तुओं, पुस्तके, लेखन सामग्री, सब्जियों आदि की बिक्री |
(ii) ग्राहकों पर व्यक्तिगत ध्यान दिया जाता है और उनकी पसंद-नापसंद व रुचियों का विशेष धयान रखा जाता है। उदाहरणस्वरूप, विशेष प्रकार के फर्नीचर, कपड़ों की डिजाइनिंग ।
(iii) व्यवसाय का स्वरूप सरल हो। उदाहरणस्वरूप किराना, परिधानों की बिक्री, टेलीफोन बूथ आदि ।
(iv) कम पूंजी की आवश्यकता होती है और जोखिम भी कम होती है। उदाहरणस्वरूप सब्जियों और फलों का व्यवसाय, चाय की दुकान आदि ।
(v) जहाँ हस्तकौशल की आवश्यकता हो । उदाहरण के लिए आभूषण निर्माण, कपड़ों की सिलाई आदि ।
प्रश्न 7. साझेदारी फर्म की सीमाओं के रूप में असीमित देनदारी ( दायित्व ) और अनिश्चित अस्तित्व की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – असीमित देनदारी- साझेदारों की देनदारी असीमित दायित्व मानी जाती है अर्थात फर्म के ऋणों को चुकाने के लिए उनकी निजी सम्पत्ति भी दांव पर लग जाती है। फलस्वरूप, साझेदार हर कदम को फूंक-फूंक कर उठाते हैं तथा कभी बड़ा जोखिम नहीं लेते। फलस्वरूप, व्यवसाय ज्यादा विकास नहीं कर पाता ।
अनिश्चित अस्तित्व – कम्पनी की तुलना में साझेदारी व्यवसाय का जीवन ज्यादा अस्थिर है, क्योंकि न मालूम कब किसी साझेदार की मृत्यु हो जाये, किस साझेदार का मन बदल जाये या कौन साझेदार बेईमान हो जायें और साझेदारी व्यवसाय बन्द करना पड़े। यदि कोई साझेदार अलग होना चाहता है, तो साझेदारी का विघटन हो जाता है।
प्रश्न 8. साझेदारों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – साझेदारों के प्रकार (Kinds of Partners)
1. सक्रिय साझेदार – व्यवसाय के दिन-प्रतिदिन के कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल होने वाले साझेदारों को सक्रिय या कार्यकारी साझेदार कहते हैं। वे व्यवसाय में पैसा लगाते हैं और लाभ में भी भागीदार होते हैं। साथ ही उन पर फर्म का ऋण भी देना होगा।
2. निष्क्रिय साझेदार – ऐसे साझेदार जो फर्म के दिन-प्रतिदिन के कार्य में भाग नहीं लेते, उन्हें सुस्त या निष्क्रिय साझेदार कहा जाता है। निष्क्रिय साझेदार केवल व्यवसाय में पूंजी लगाते हैं और इसके लाभ और हानि में हिस्सेदार होते हैं।
3. नाममात्र के साझेदार – वह साझेदार जिसे नाममात्र का साझेदार कहते हैं, वह फर्म को अपने नाम और साख का उपयोग करने देता है, न कि फर्म के व्यवसाय में पूंजी लगाता है या लाभ में भाग लेता है। ये साझेदार भी अन्य पक्षों के प्रति उत्तरदायी हैं, जैसे अन्य साझेदारों।
4. अवयस्क साझेदार – 18 वर्ष से कम आयु का कोई व्यक्ति साझेदार नहीं बन सकता। परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में अवयस्क व्यक्ति को कुछ शर्तों के साथ साझेदार बनाया जा सकता है। वयस्क साझेदार केवल लाभ ले सकता है। नुकसान होने पर उसकी देनदारी व्यवसाय में लगाई गई रकम तक सीमित रहती है।
5. दिखावे का साझेदार (Partner by Estoppels) – यदि कोई व्यक्ति झूठ बोलकर फर्म में साझेदार दिखाता है या उसके व्यवहार या आचरण से किसी तीसरे पक्ष को लगता है कि वह फर्म में साझेदार है, तो तीसरा पक्ष फर्म के साथ लेनदेन करते समय इस व्यक्ति के प्रति फर्म के सभी कार्यों की उत्तरदायी है। विबंधन (Estoppels) ऐसे व्यक्ति को साझेदार कहते हैं जो फर्म का झूठा प्रतिनिधित्व करते हैं। कल्पना कीजिए कि राममोहन एंड कंपनी में दो साझेदार हैं: गिरि (एक बाहरी व्यक्ति) राम मोहन एंड कंपनी में साझेदार है और मधु (एक व्यक्ति) के साथ व्यापार करता है. गिरि को फर्म से हुई किसी हानि का दोष देना चाहिए। गिरि विबंधन इसमें साझेदार है।
प्रश्न 9. ‘साझेदारी के लाभों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा
सकल स्वामित्व की अपेक्षा साझेदारी के लाभों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – साझेदारी व्यवसाय के लाभ-साझेदारी व्यवसाय के कुछ लाभ हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. सरल स्थापना – एकल स्वामित्व की तरह साझेदारी भी बनाना आसान है क्योंकि इसके लिए कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है। साझेदारी फर्म भी पंजीकृत नहीं है। साझेदार मौखिक या लिखित अनुबंध के आधार पर एक साझेदारी फर्म बना सकते हैं।
2. अधिक वित्तीय साधन – साझेदारी व्यवसाय दो या अधिक लोगों से शुरू होता है, इसलिए एकल स्वामित्व की तुलना में अधिक धन लगाया जा सकता है। साझेदार अधिक धन लगा सकते हैं और अधिक समय और श्रम व्यवसाय में लगा सकते हैं।
3. बेहतर निर्णय – व्यवसाय का स्वामी साझेदार हैं। उनमें से प्रत्येक को कम्पनी का प्रबंधन करने का समान अधिकार है। वे आपस में बैठकर विवाद को टाल सकते हैं। इस व्यापार व्यवस्था में सभी भागीदार आपस में मिलकर निर्णय लेते हैं। इसलिए जल्दबाजी में बिना सोचे समझे निर्णय लेने की संभावना कम होती है।
4. शीघ्र निर्णय – साझेदारी संगठन में साझेदार परस्पर मिलते रहते हैं। अतः निर्णय शीघ्र लिये जा सकते हैं। इसमें लाभप्रद व्यावसायिक अवसरों का तुरन्त लाभ उठाया जा सकता है।
5. कामकाज में लचीलापन – साझेदारी फर्म बहुत लचीला है। जब चाहें, साझेदार आपस में चर्चा करके व्यवसाय का आकार, आकार और स्थान बदल सकते हैं। इसके लिए कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। सभी सदस्यों की सहमति चाहिए।
6. बराबर जोखिम – जिस प्रकार फर्म का लाभ सब साझेदार परस्पर बांटते हैं, इसी प्रकार फर्म की हानि भी उनमें परस्पर बटती है।
7. साझेदारों के हितों की सुरक्षा- सभी साझेदारों को साझेदारी फर्म में किसी भी निर्णय में समान हिस्सा मिलता है। किसी साझेदार निर्णय को रोक सकता है अगर वह उसके हितों के खिलाफ है। अगर फर्म के फैसले पर किसी साझेदार को आपत्ति है इसलिए, वह व्यवसाय को तोड़ सकता है।
8. विशेषज्ञता के लाभ – व्यावसायिक कार्यों के साझेदार के बीच उनकी योग्यतानुसार बांटा जा सकता है।
प्रश्न 10. साझेदारी व्यवसाय की सीमाओं ( दोषों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर – साझेदारी व्यवसाय की सीमाएं – साझेदारी व्यवसाय की निम्नलिखित सीमाएं हैं-
1. असीमित देनदारी – साझेदारों की देनदारी असीमित मानी जाती है अर्थात फर्म के ऋणों को चुकाने के लिए उनकी घरेलू सम्पत्ति भी दांव पर लग जाती है। फलस्वरूप साझेदार प्रत्येक कदम फूंक-फूंक कर उठाते हैं तथा कभी बड़ा जोखिम नहीं लेते। फलस्वरूप, व्यवसाय ज्यादा विकास नहीं कर पाता ।
2. अनिश्चित अस्तित्व – साझेदारी व्यवसाय का अपने साझेदारों से अलग कोई कानूनी अस्तित्व नहीं होता। साझेदारी फर्म मृत्यु, दिवालियापन, अक्षमता या सेवानिवृत्ति से समाप्त होती है। इसके अलावा, कोई भी असंतुष्ट पार्टनर चाहे तो पार्टनरशिप को खत्म करने का नोटिस दे सकता है।
3. समरसता का अभाव (Lack of Harmony) — अक्सर साझेदारी फर्म के कुछ दिन चलने के बाद ही साझेदारों में मतभेद होने शुरू हो जाते हैं। कभी-कभी इन छोटे-छोटे मतभेदों व विवाद के कारण फर्म को बन्द करने की नौबत आ जाती है।
4. सीमित पूंजी – चूंकि साझेदारी व्यवसाय में साझेदारों की संख्या 20 से अधिक नहीं हो सकती, इसलिए इसमें ज्यादा पूंजी की व्यवस्था कर पाना कठिन है। साझेदारी में कोई बड़ा व्यवसाय नहीं किया जा सकता ।
5. हित हस्तांतरण पर प्रतिबन्ध – अन्य साझेदारों के पूर्व अनुमति के बिना साझेदार किसी बाहरी पक्ष को अपना हिस्सा हस्तांतरित नहीं कर सकते। ऐसे में उस साझेदार को असुविधा होती है, जो कर्म से अलग होना चाहता है या अपना शेयर (भाग) दूसरों को बेचना चाहता है।
प्रश्न 11. ‘संयुक्त हिन्दू परिवार’ व्यावसायिक संगठन के विभिन्न लाभों की व्याख्या कीजिये ।
उत्तर – ‘ संयुक्त हिन्दू परिवार’ व्यवसाय के निम्नलिखित लाभ हैं-
1. आरंभ व अंत में वैधानिक प्रतिबंध नहीं – संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय की स्थापना करना व अंत करना दोनों सरल है, क्योंकि इसके लिये कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है।
2. निश्चित लाभांश- इसमें किसी सदस्य को अपने लाभ के लिए चिंतित होने की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि वह अपने समभाग के लिए आश्वस्त है ।
3. ज्ञान और अनुभव को बाँटना – इस व्यापार प्रणाली में युवा सदस्यों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्ञान व अनुभव प्राप्त होता रहता है तथा पैतृक ख्याति का लाभ भी मिलता है।
4. व्यवसाय की स्वतंत्रता – एकल व्यवसाय की भाँति संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय भी अपनी इच्छा से सुविधानुसार किसी भी व्यवसाय का चुनाव कर सकता है। परिवार का कर्ता इस संबंध में निर्णय लेता है। इसमें किसी दूसरे व्यक्ति की सलाह या स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।
5. कर्त्ता का असीमित तथा सदस्यों का सीमित दायित्व – कर्त्ता का दायित्व असीमित है, लेकिन सभी सह-समांशियों का दायित्व उनकी पूँजी के अंशदान तक सीमित है। इसलिए वह अपनी निजी संपत्ति को भी आवश्यकतानुसार उपयोग कर सकता है।
6. निरंतर अस्तित्व – इसका अस्तित्व लंबे समय के लिये होता है, क्योंकि किसी सदस्य की मृत्यु या दिवालिया होने से व्यवसाय में कोई व्यवधान नहीं आता।
7. कर लाभ – हिन्दू अविभाजित परिवार स्वतंत्र करदाता है। सह- समांशियों को व्यवसाय से प्राप्त होने वाली आय को निजी आय में कर के लिये सम्मिलित नहीं किया जाता।
प्रश्न 12. एकल स्वामित्व व्यवसाय की परिभाषा दीजिये । एकल स्वामित्व व्यवसाय के क्या अवरोधक हैं?
उत्तर – चार्ल्स डब्ल्यू गर्स्टनबर्ग के अनुसार, ‘ “एकल व्यापार वह व्यापार है, जो एक व्यक्ति द्वारा ही आरम्भ किया जाता है। तथा वही व्यक्ति व्यापार के कार्य संचालन एवं लाभ-हानि का पूर्ण उत्तरदायी होता है।” एकल स्वामित्व में व्यापार का स्वामी ही पूँजी का प्रबंध करता है, व्यापार का संचालन करता है तथा व्यापार में होने वाले जोखिमों को स्वयं ही वहन करता है। व्यवसाय का यह स्वरूप सबसे प्राचीन है।
जेम्स स्टीफेन्सन के अनुसार, “एकल स्वामित्व से अभिप्राय उस व्यक्ति से है, जो व्यवसाय को नितांत स्वयं और अपने लिये ही करता है। इस प्रकार के व्यवसाय का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि वह व्यक्ति व्यवसाय को चलाने का पूर्ण उत्तरदायित्व तथा उससे संबंधित समस्त जोखिम अपने ऊपर लेता है। वह संस्था की कुल पूँजी का केवल स्वामी ही नहीं होता, वरन उसका संगठनकर्त्ता और प्रबंधक भी होता है। वह संस्था के कुल लाभ को प्राप्त करने और हानि को सहन करने के लिये भी उत्तरदायी होता है। “एकल स्वामित्व व्यवसाय के निम्नलिखित अवरोधक हैं-
1. जब एकमात्र मालिक होता है, तो उसके पास धन और संसाधन जुटाने की क्षमता भी सीमित होती है।
2. व्यवसाय स्वामी के जीवन, स्वास्थ्य या हालात पर निर्भर करता है। व्यवसाय भी समाप्त हो जाता है अगर मालिक मर जाता है या दिवालिया हो जाता है।
3. व्यवसाय एकल स्वामित्व में अपने मालिक से अलग नहीं होता। इसलिए उसकी क्षमता असीमित है। इसलिए स्वामी की निजी संपत्ति भी व्यावसायिक देनदारियों का भुगतान कर सकती है।
4.बड़े व्यवसाय एकल स्वामित्व नहीं चाहते हैं। इसमें अकेले व्यक्ति होने से संसाधनों और धन की मात्रा सीमित है।
5. इसमें व्यापार का आकार छोटा होता है अतः इस प्रकार के संगठनों के लिये कुशल प्रबंधकों की सेवाएँ नहीं ली जा सकतीं, जबकि अकेले व्यक्ति में सभी गुण होना मुमकिन नहीं है इसलिये व्यवसाय में प्रबंध कुशलता का अभाव रहता है।
प्रश्न 13. साझेदारी व्यापार के क्या लाभ हैं?
उत्तर – साझेदारी व्यापार के निम्नलिखित लाभ हैं-
(क) साझेदारी व्यवसाय की स्थापना के लिये किसी कानूनी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती, न ही इसका पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है। इसकी स्थापना के लिये केवल एक समझौता पर्याप्त होता है।
(ख) साझेदारी व्यवसाय में दो या उससे अधिक व्यक्ति होते हैं अतः इसमें अधिक संसाधन एकत्र किये जा सकते हैं।
(ग) साझेदारी व्यवसाय में साझेदार आपसी सहमति से इसके आकार, प्रकृति तथा कार्यक्षेत्र में परिवर्तन कर सकते हैं।
(घ) इसमें सभी साझेदारों को अपने प्रस्ताव रखने व निर्णय लेने का पूरा अधिकार होता है। प्रबंधन के बड़े निर्णय सभी साझेदारों की सलाह से लिये जाते हैं, इसलिये सामूहिक ज्ञान के प्रभाव के कारण निर्णयों में लापरवाही की संभावना कम होती है।
(ङ) एकल व्यवसाय में अकेले स्वामी को जोखिम उठाना पड़ता है। लेकिन साझेदारी व्यापार में सभी साझेदार मिलकर व्यवसाय के जोखिम को वहन करते हैं।
(च) साझेदारी व्यवसाय के लाभ-हानि में बराबर के हिस्सेदार होते हैं अतः वे व्यवसाय के क्रियाकलाप में पूरी दिलचस्पी लेते हैं।
(छ) साझेदारी व्यवसाय में दो या उससे अधिक लोग मिलकर कार्य करते हैं। अलग-अलग व्यक्ति में अलग-अलग कार्यक्षमता होती है। इसलिये सभी साझेदार अपने विशिष्ट ज्ञान के अनुसार व्यवसाय का संचालन करते हैं।
(ज) साझेदारी वयवसाय में प्रत्येक साझेदार को यह अधिकार है कि वह किसी निर्णय पर असंतुष्ट होने पर निर्णय बदलने को कह सकता है या साझेदारी का विलयन करा सकताहै या फर्म छोड़ सकता है।
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