NIOS Class 10 Business Studies Chapter 3 एकल स्वामित्व, साझेदारी तथा हिन्दू अविभाजित परिवार

NIOS Class 10 Business Studies Chapter 3 एकल स्वामित्व, साझेदारी तथा हिन्दू अविभाजित परिवार

NIOS Class 10 Business Studies Chapter 3. एकल स्वामित्व, साझेदारी तथा हिन्दू अविभाजित परिवार – आज हम आपको एनआईओएस कक्षा 10 व्यवसाय अध्ययन पाठ 3 एकल स्वामित्व, साझेदारी तथा हिन्दू अविभाजित परिवार के प्रश्न-उत्तर (Sole Proprietorship, Partnership & Hindu Undivided Family Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है । जो विद्यार्थी 10th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यह प्रश्न उत्तर बहुत उपयोगी है. यहाँ एनआईओएस कक्षा 10 व्यवसाय अध्ययन अध्याय 3 (एकल स्वामित्व, साझेदारी तथा हिन्दू अविभाजित परिवार) का सलूशन दिया गया है. जिसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10th Business Studies 3 एकल स्वामित्व, साझेदारी तथा हिन्दू अविभाजित परिवार के प्रश्न उत्तरोंको ध्यान से पढिए ,यह आपकी परीक्षा के लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Business Studies Chapter 3 Solution – एकल स्वामित्व, साझेदारी तथा हिन्दू अविभाजित परिवार

प्रश्न 1. एकल स्वामित्व की परिभाषा दीजिए।
उत्तर– एकल स्वामित्व का अर्थ है-एक व्यक्ति का स्वामित्व । इसका अर्थ यह हुआ कि एक ही व्यक्ति व्यवसाय का स्वामी होता है। इस प्रकार एकल स्वामित्व वह व्यापार संगठन है, जिसमें एक ही व्यक्ति स्वामी होता है और व्यवसाय से संबंधित सभी कार्यकलापों का प्रबंधन और नियंत्रण उसी के हाथ में होता है।

प्रश्न 2. एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय संगठन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय संगठन से अभिप्राय क ऐसे व्यवसाय से है जिसमें एक व्यक्ति व्यापार का स्वामी होता है तथा व्यवसाय की समस्त क्रियाओं पर उसका नियंत्रण होता है। एकल व्यवसाय के स्वामी और संचालक को एकल स्वामी या एकल व्यवसायी कहते हैं। एकल व्यवसायी अपने व्यवसाय से संबंधित सभी संसाधनों को जुटाकर उन्हें योजनाबद्ध ढंग से व्यवस्थित करता है तथा लाभ कमाने के एकमात्र उद्देश्य से व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन करता है।

प्रश्न 3. क्या एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय का अस्तित्व हमेशा के लिए रह सकता है?
उत्तर- एक स्वामित्व वाले व्यवसाय में व्यापारी और व्यापार इतने जुड़े हुए हैं कि व्यापारी के बिना व्यापार कल्पना ही नहीं की जा सकती। दुर्भाग्यवश, व्यापार की समाप्ति तब होगी जब व्यापारी चला जाता है। साथ ही, व्यापार समाप्त हो सकता है अगर वह व्यक्तिगत कर्जों के कारण दिवालिया घोषित हो जाता है या उसका क्रियाशील जीवन समाप्त हो जाता है, जैसे वृद्धावस्था, दुर्घटना आदि।

प्रश्न 4. स्पष्ट कीजिए कि किस तरह ‘एकल स्वामित्व ‘ व्यवसाय में रोजगार के अवसर पैदा करता है।
उत्तर– एकल स्वामित्व व्यवसाय रोजगार के अवसरों में वृद्धि करता है। इस व्यवसाय संगठन के स्वामी को तो काम मिलता ही है, साथ ही वह कभी – कभी दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध कराता है। दुकानों पर वस्तुएं बेचने में स्वामी की सहायता के लिए कई कर्मचारी होते हैं। इस प्रकार एकल स्वामित्व वाला व्यवसाय संगठन देश में बेरोजगारी और गरीबी दूर करने में सहायक है।

प्रश्न 5. बैंकिंग व्यवसाय करने वाली फर्म तथा गैर-बैंकिंग व्यवसाय करने वाली फर्म में साझेदारों की अधिकतम संख्या बताइए |
उत्तर – साझेदारी में साझेदारों की संख्या कम से कम दो तथा अधिकतम बैंकिंग व्यवसाय की दशा में 10 और अन्य प्रकार के व्यवसाय की दशा में 20 तक हो सकती है।

प्रश्न 6. साझेदारी को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर- दो या दो से अधिक व्यक्ति, जो अनुबंध (Contract) के लिए योग्य हैं, एक कानूनी व्यवसाय को चलाने तथा उसके लाभ में हिस्सा बांटने के लिए समझौता करते हैं। ऐसा व्यवसाय या तो सभी लोग मिलकर चलाते हैं या उनमें से कुछ या एक प्रत्येक व्यक्ति से संचालित होता है। व्यवसाय चलाने के लिए सहयोग करने वाले व्यक्ति को साझेदार कहा जाता है, और व्यावसायिक संस्था को साझेदारी फर्म कहा जाता है।

1932 के भारतीय साझेदारी अधिनियम में कहा गया है कि “साझेदारी ऐसे व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध को कहते हैं, जो एक व्यवसाय के लाभ को आपस में बांटने के लिए सहमत हुए हों और यह व्यवसाय सभी व्यक्तियों द्वारा अथवा सभी की ओर से उनमें से किसी एक व्यक्ति द्वारा चलाया जाता हो”। ”

प्रश्न 7. व्यावसायिक संगठन के साझेदारी स्वरूप की कोई चार विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – साझेदारी व्यवसाय की चार प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. दो या अधिक सदस्य – साझेदारी व्यवसाय में कम से कम दो लोगों की जरूरत होती है। परंतु साधारण व्यवसाय में यह संख्या 20 से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि बैंकिंग क्षेत्र में 10 से अधिक नहीं होनी चाहिए। साझेदारी फर्म को इस सीमा से अधिक साझेदार नहीं कहा जा सकता है।

2. अनुबन्ध (Contract) – साझेदारी का जन्म अनुबन्ध से होता है। यह अनुबन्ध लिखित अथवा मौखिक हो सकता है। यदि आप साझेदारी व्यापार को प्रारम्भ करने के लिए दूसरों को साथ लेते हैं तो आप सबके बीच करार ( Agreement) या अनुबन्ध होना जरूरी जरूरी है। इसमें निम्नलिखित बातें सम्मिलित होती हैं-

• प्रत्येक साझेदार फर्म में लगाने वाली पूंजी की राशि,
• लाभ-हानि के बंटवारे का अनुपात,
• साझेदार को दिया जाने वाला वेतन या कमीशन ( यदि दिया जाना हो),
• व्यवसाय की अवधि,
• फर्म तथा साझेदारों के नाम और पते,
• प्रत्येक साझेदार के अधिकार और कर्त्तव्य,
• व्यवसाय का स्वरूप और स्थान,
• व्यवसाय के संचालन के लिए अन्य कोई भी शर्त ।

3. वैध व्यवसाय – साझेदारी के लिए व्यवसाय वैध होना चाहिए। व्यवसाय को साझेदारी नहीं कहा जा सकता अगर वह कानूनन वैध नहीं है। तस्करी, कालाबाजारी इत्यादि को कानूनन साझेदारी व्यवसाय नहीं माना जा सकता। सामाजिक सेवाओं और कार्यों को भी साझेदारी व्यवसाय नहीं कहा जा सकता।

4. साझेदारों की योग्यता – चूंकि कुछ व्यक्ति आपस में मिल कर साझेदारी व्यवसाय की स्थापना करते हैं, इसलिए अवयस्क, दिवालिया और पागल साझेदारी के योग्य नहीं होते। लेकिन एक अवयस्क व्यक्ति साझेदारी से अर्जित लाभ में साझेदार हो सकता है।

5. लाभ-विभाजन– प्रत्येक साझेदारी फर्म का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय से होने वाले लाभ को तय किए गए अनुपात के अनुसार बांटना है। यदि साझेदारों में इस संबंध में कोई समझौता नहीं हुआ है तो लाभ साझेदारों में बराबर-बराबर बांटा जाता है।

6. असीमित देनदारी – प्रत्येक साझेदारी का दायित्व अनंत है। फर्म के दायित्वों के लिए साझेदारों की निजी संपत्ति और व्यापारिक संपत्ति दोनों का उपयोग किया जा सकता है। मान लीजिए कि फर्म को आपूर्तिकर्ताओं को ३५० हजार रुपये देना होगा। लेकिन फर्म को भुगतान करने के लिए केवल 29,000 रुपये चाहिए। इस स्थिति में साझेदारों की निजी संपत्ति से शेष छह हजार रुपये की व्यवस्था की जाएगी।

7. स्वैच्छिक पंजीकरण – साझेदारी फर्म का पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है।

8. पृथक् कानूनी अस्तित्व नहीं– साझेदारी व्यवसाय भी एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय से कानूनी रूप से अलग नहीं होता। पूरे उद्यम का नाम साझेदारी फर्म है। फर्म और साझेदार दोनों का अर्थ है

9. एजेंसी सम्बन्ध – साझेदारों में स्वामी-एजेंन्ट का सम्बन्ध सबसे महत्वपूर्ण कानूनीय लक्षण है। साझेदारी व्यवसाय को सभी साझेदारों के नाम पर चलाया जा सकता है, और इन साझेदारों या उनमें से किसी एक द्वारा किए गए सभी सौदे साझेदारों पर लागू होंगे। प्रत्येक साझेदार को कंपनी का प्रबंधन करने का अधिकार है। प्रत्येक सहकारी फर्म का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

10. हिस्से के हस्तांतरण पर रोक– बिना अन्य सभी साझेदारों की सहमति के, कोई साझेदार अपना हित किसी दूसरे को दे सकता है। उदाहरण के लिए A, B और C तीन पार्टनर हैं। स्वास्थ्य खराब होने के कारण A अपना हिस्सा D बेचना चाहता है। लेकिन B और C इसके लिए तैयार होने तक वह ऐसा नहीं कर सकता।

11. व्यापार की निरंतरता– साझेदारी फर्म के किसी साझेदार के मरने, पागल या दिवालिया हो जाने से फर्म का अंत हो जाता है। इसके अलावा भी फर्म के सभी साझेदार जब चाहें साझेदारी तोड़कर फर्म भंग कर सकते हैं।

प्रश्न 8. संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर- यह परंपरागत व्यवसाय है जिसमें पूरा परिवार एक साथ काम करता है और पीढ़ी दर पीढ़ी व्यवसाय चलता रहता है। हिंदू अविभाजित परिवार व्यवसाय भी इसका नाम है। इस तरह का संगठन हिंदू अधिनियम से चलता है और उत्तराधिकार अधिनियम से नियंत्रित है। इस व्यवसाय में, सदस्य अपने पिता, दादा और परदादा से अपने पूर्वजों की संपत्ति में से हिस्सा विरासत में प्राप्त कर सकता है, इस प्रकार तीन आनुक्रमिक पीढ़ियाँ एक साथ संपत्ति प्राप्त कर सकती हैं। सबसे बड़ा सदस्य कर्ता है।

प्रश्न 9. संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय की विशेषताएँ बताइए |
उत्तर – संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) जन्म के साथ सदस्यता – इस व्यवसाय में बच्चे के जन्म के साथ ही उसे सदस्यता प्राप्त हो जाती है। सदस्यता के लिए किसी समझौते की आवश्यकता नहीं होती।
(ii) प्रबंध- परिवार का सबसे बड़ा सदस्य व्यवसाय का कर्ता है तथा वही इसका प्रबंध देखता है।

(iii) दायित्व – इसमें कर्ता का दायित्व असीमित होता है। अन्य सभी सदस्यों का दायित्व हिंदू अविभाजित परिवार की संपत्ति में उसके भाग तक सीमित होता है।

(iv) अधिकतम सीमा नहीं – इसमें सदस्यों की कोई अधिकतम सीमा नहीं होती किंतु इसकी सदस्यता केवल तीन आनुक्रमिक पीढ़ियों तक प्रतिबंधित है।

(iv) अवयस्क सदस्य – चूँकि इसमें सदस्यता बच्चे को जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाती है इसलिए इसमें परिवार अवस्यस्कों की सदस्यता को प्रतिबंधित नहीं करता।

(vi) मृत्यु से अप्रभावित – कर्ता की मृत्यु का व्यवसाय पर कोई प्रभाव नहीं है। व्यापार निरंतर चलता रहता है। जब परिवार के सभी सदस्य नहीं हैं, तो यह समाप्त हो जाता है। सदस्य संयुक्त हिंदू परिवार व्यापार के सदस्य नहीं हैं।

प्रश्न 10. सीमित दायित्व साझेदारी की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- सीमित दायित्व साझेदारी की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित

(i) 2008 अधिनियम के अनुसार, सीमित दायित्व साझेदारी एक निगमित संस्था है, जो अपनी साझेदारी से अलग है। कानून सम्मत व्यवसाय को चलाने के लिए दो या उससे अधिक व्यक्ति अपने नाम से सम्मिलित निगमन प्रपत्र पंजीयक के पास जमा कर सकते हैं।

(ii) इसमें साझेदारों के आपसी अधिकार तथा कर्त्तव्य तथा साझेदारी का अपनी फर्म से संबंधित एक समझौते द्वारा तथा सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम 2008 के प्रावधानों से नियमित होते हैं।

(iii) यह साझेदारी एक अलग कानूनी इकाई है और अपनी संपत्ति तक उत्तरदायी है. सभी साझेदारों का दायित्व भी उनके सहमत अनुपात (मूर्त या अमूर्त) तक सीमित है। दूसरे साझेदारों की स्वतंत्र गतिविधियों के लिए कोई साझेदार उत्तरदायी नहीं होगा।

(iv) सीमित दायित्व साझेदारी में साझेदारों की न्यूनतम संख्या दो होती है जिसमें से एक भारत का निवासी होना चाहिए ।

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