NIOS Class 10 Business Studies Chapter 1. व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र

प्रश्न 26. किस प्रकार व्यवसाय सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है?
उत्तर– सरकार के प्रति उत्स्दायित्त्व इस सन्दर्भ में व्यवसायी को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(i) हर प्रकार के सरकारी करों का ईमानदारी के साथ समय पर भुगतान करना चाहिए।
(ii) चोर-बाजारी को रोकने में सरकार का सहयोग करना चाहिए।
(iii) मिलावट (adulteration) को रोकना चाहिए।
(iv) सरकारी कर्मचारी को स्वार्थवश घूस नहीं देना चाहिए।
(v) सरकार द्वारा निर्धारित व्यापार प्रणाली का भली प्रकार पालन करना चाहिए।
(vi) धन या संरक्षण के द्वारा राजनीतिक समर्थन प्राप्त नहीं करना चाहिए आदि।

प्रश्न 27. पर्यावरण प्रदूषण की परिभाषा दीजिए तथा इसके प्रकार भी बताइये।
उत्तर- पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ है विभिन्न पदार्थों द्वारा पर्यावरण का प्रदूषण, जिसका सजीव तथा निर्जीव तत्त्वों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
पर्यावरण प्रदूषण के तीन प्रकार हैं-
1. वायु प्रदूषण,
2. जल प्रदूषण, तथा
3. भूमि प्रदूषण ।

प्रश्न 28. वायु प्रदूषण के विभिन्न कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- वायु प्रदूषण के कुछ सामान्य कारण निम्नलिखित हैं:
(i) वाहनों से निकलने वाला धुआँ
(ii) औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआँ तथा रसायन
(iii) आणविक संयंत्रों से निकलने वाली गैसें तथा धूल-कण
(iv) जंगलों के जलने से कोयले, तेल शोधन कारखानों आदि से निकलने वाला धुआँ।

प्रश्न 29. वायु प्रदूषण के किन्हीं तीन प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- वायु प्रदूषण का प्रभाव वायु प्रदूषण हमारे वातावरण तथा हमारे ऊपर अनेक प्रभाव डालता है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

1. हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से पशुओं, पंछियों और मनुष्यों को कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इससे अस्थमा, सर्दी-खांसी, अंधापन, कम श्रवण क्षमता, त्वचा रोग आदि बीमारियां होती हैं। लंबे समय तक इससे जननिक विकृतियां पैदा होती हैं, जो घातक भी हो सकती हैं।

2. वायु प्रदूषण से सर्दियों में कोहरा छाया रहता है, जिसका कारण धुएं तथा मिटटी के कणों का कोहरे में मिला होना है। इससे प्राकृतिक दृश्यता में कमी आती है तथा आंखों में जलन होती है। और सांस लेने में कठिनाई होती है।

3. वायु प्रदूषण से तेजाबी वर्षा के खतरे बढ़े हैं, क्योंकि बारिश के पानी में सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि जैसी जहरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ी है। इससे फसलों, पेड़ों, भवनों तथा ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुंच सकता है।

प्रश्न 30. जल प्रदूषण के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर- जल प्रदूषण का अर्थ है पानी में अवांछित तथा घातक तत्त्वों की उपस्थिति से पानी का दूषित हो जाना, जिससे कि पानी पीने के योग्य नहीं रहता। जल प्रदूषण के प्रभाव-जल प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव
(i) इससे मनुष्य, पशु तथा पक्षियों के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता है। इससे टाईफाइड, हैजा, गैस्ट्रिक आदि बीमारियां पैदा होती हैं।
(ii) इससे पीने के पानी की कमी बढ़ती है, क्योंकि नदियों, नहरों यहां तक कि जमीन के भीतर का पानी भी प्रदूषित हो जाता है।

प्रश्न 31. व्यवसाय किस प्रकार से पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाता है? किन्हीं पांच बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- व्यवसाय निम्नलिखित तरीकों से पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाता है-
1. उत्पादन इकाइयों से निकलने वाली गैसों और धुएं से,
2. मशीनों, वाहनों आदि के उपयोग से ध्वनि प्रदूषण के रूप में,
3. औद्योगिक इकाइयों को स्थापित करने के लिए वनों की कटाई से,
4. औद्योगीकरण तथा शहरीकरण के विकास से,
5. नदियों तथा नहरों में कचरे तथा हानिकारक पदाथों के विसर्जन से,
6. ठोस कचरे को खुली हवा में फेंकने से,
7. खनन तथा खदान संबंधी गतिविधियों से।

प्रश्न 32. पर्यावरण प्रदूषण के निवारण में व्यवसाय की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- व्यवसाय पर्यावरण प्रदूषण तथा संरक्षण में बराबर की भूमिका निभा सकता है। पर्यावरण प्रदूषण के निवारण में व्यवसाय की तीन प्रकार की भूमिका हो सकती है-निवारणात्मक, उपचारात्मक तथा जागरूकता।

1. निवारणात्मक भूमिका का अर्थ है कि व्यवसाय पर्यावरण को और अधिक नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इसके लिए, व्यवसाय सरकार द्वारा बनाए गए सभी प्रदूषण नियंत्रण नियमों का पालन करना चाहिए। संशोधन के बाद इसे पुनः उत्पादन में प्रयोग करने की बजाय, औद्योगिक कचरे को नदियों और नहरों में फेंकने की बजाय, चिमनियों में फिल्टरों और ध्वनिरोधकों (साइलेंसरों) का उपयोग करें। प्रदूषण कम करने के लिए व्यावसायिक संस्थाएं आगे आनी चाहिए। सुलभ इंटरनेशनल ने जनता को उचित सफाई सुविधाएं देकर अच्छा उदाहरण दिया है।

2. उपचारात्मक भूमिका- इसका अर्थ है व्यावसायिक इकाइयाँ पर्यावरण को पहुंची हानि को सुधारने में सहायता करें। यदि प्रदूषण को नियन्त्रित करना संभव न हो तो उसके निवारण के लिए उपचारात्मक कदम उठा लेने चाहिए। उदाहरण के लिए, वृक्षारोपण (वनरोपण कार्यक्रम) से औद्योगिक इकाइयों के आसपास के वातावरण में वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

3. जागरूकता का लक्ष्य है कर्मचारियों और आम जनता को पर्यावरण प्रदूषण के कारणों और परिणामों के बारे में जागरूक करना, ताकि वे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की बजाय स्वेच्छा से पर्यावरण की रक्षा कर सकें। व्यवसाय जागरूकता कार्यक्रमों को उदाहरण दें। आज, कुछ व्यावसायिक फमें पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर शहरों में पाकों का विकास और रखरखाव कर रहे हैं।

प्रश्न 33. ब्रिटिश शासन के दौरान किन महत्त्वपूर्ण घटनाओं ने भारतीय व्यापार को प्रभावित किया?
उत्तर- आधुनिक काल में लगभग 200 वर्षों तक भारत अंग्रेजों के अधीन रहा। सर्वप्रथम अंग्रेज भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आये थे, जो कि धीरे-धीरे उनकी राजनैतिक व आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं में बदल गया। उनकी दृष्टि में भारत का विशाल भू-भाग व बड़ी जनसंख्या उनके कारखानों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति व उनके द्वारा तैयार माल के बाजार के रूप में सहायक थे। इसी कारण सभी आधुनिक तकनीकों का भारत में केवल इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उपयोग हुआ। नीचे हम उन कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं की व्याख्या करेंगे जो भारत में वर्तमान व्यावसायिक गतिविधियों को अकार देने में सक्षम हुई।

रेल – रेल ने भारतीय परिवहन तंत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। भारत में पहली रेल लाइन 1853 में बंबई से थाणे के मध्य बनाई गई। फिर केवल चार वर्षों के अंतराल में भारत के सभी बड़े नगर रेल मार्ग द्वारा जोड़े जा चुके थे। संचार के इस नए साधन व्यवसाय के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों में नए बाजार व अवसर उपलब्ध करवा दिए।

2. इसी समय भारत में डाक एवं तार सेवा भी शुरू हुई, जो दूरी के बंधानों को तोड़ने में महत्वपूर्ण था। तार कलकत्त, बंबई, मद्रास और पेशावर को जोड़ता था। डाक एवं तार अधिनियम, 1854, ने डाक व तार सेवाओं को आधुनिक बनाया।

3. औद्योगिक क्रांति- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप बड़े पैमाने पर उत्पादन सम्भव हो गया। उत्पादन प्रक्रिया में श्रम के स्थान पर मशीनों का महत्त्व बढ़ गया। औद्योगिक क्रान्ति के दुष्परिणाम भी सामने आये, जैसे लघु और कुटीर उद्योगों का पतन, श्रमिकों का शोषण, कारखाना प्रणाली के दोष आदि।

4. भारत के आधुनिक उद्योग- उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में कुछ नए उद्योग खोले गए, लेकिन अधिकांश ब्रिटिश कंपनियों के पास थे। भारतीय भी कुछ उद्योग चलाते थे, लेकिन ब्रिटिश सरकार का रवैया सहयोगहीन था, इसलिए वे तेजी से विकसित नहीं हो पाए। उस समय के प्रमुख उद्योगों में सूती और जूट, कोयला उत्खनन और पौधीकरण शामिल थे। 1905 के स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय उद्योगों को जीवंत कर दिया। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतीय व्यवसायियों के उद्यम ने लौह, इस्पात, सीमेंट, रसायन, मोटर कार, जहाजरानी, चीनी और कपड़े की मीलें बनाईं, क्योंकि संचार और परिवहन क्षेत्र में सुधार हुआ था। 1911 में जमशेदपुर में जमशेद जी टाटा ने पहली भारतीय लोहा और इस्पात कारखाना बनाई। शहरों और नगरों की वृद्धि से वस्तुओं की मांग और शहरी जनसंख्या दोनों बढ़ी। इससे कई वाणिज्यिक और उनकी सहायक क्रियाओं का विकास हुआ, जैसे संचार, भंडारण, बैंकिंग, बीमा आदि। एकल व्यवसाय, साझेदारी, कम्पनी और सहकारी संस्थाएं भी पैदा हुईं और विकसित हुईं।

स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने व्यापार, उद्योग और वाणिज्य को विकसित किया। आर्थिक विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनाई गईं. आज, वित्त वर्ष 2002-2003 से दसवीं पंचवर्षीय योजना लागू है। देश में पेट्रोलियम पदार्थ, सीमेंट, मोटरकार, रासायनिक, उर्वरक, तेल और प्राकृतिक गैस, लौह इस्पात, रासायनिक और उर्वरक इकाइयों सहित अनेक उद्योगों की स्थापना हुई है।

प्रश्न 34. ‘भारत का विश्व व्यापार को योगदान महत्त्वपूर्ण है।’ किन्हीं चार योगदानों की सहायता से इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- विश्व व्यापार में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान- विश्व व्यापार को भारत की कुछ अति महत्त्वपूर्ण योगदान हैं। आधुनिक युग के कई व्यापार तंत्र पुराने समय से भारत के व्यापारियों द्वारा व्यवहार में लाए जाते रहे हैं। निम्न बिन्दुओं के आधार पर विश्व व्यापार में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान स्पष्ट किया जा सकता है।

1. अंक एवं दशमलव प्रणाली- वास्तव में, अंकों को इस तरह लिखने का प्रयोग भारत में पहले हुआ था, और अरबों ने सातवीं शताब्दी के आसपास इसे भारत से सीखा, जिसे बाद में यूरोपियनों ने सीखा। भारत ने पहली बार नौ अंकों को शून्य (0) के चिह्न के साथ लिखा और इसे अंक पद्धति के रूप में मान्यता दी। पांचवीं शताब्दी के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने इसका स्पष्ट वर्णन किया है। भारत में लोगों ने ऋणात्मक और धनात्मक मानों का अर्थ समझा। भारतीयों ने धन, समीकरणों, वर्गों और उनके मूलों की गणना भी सीखी। उन्होंने जोड़, घटा, गुणा, भाग जैसे शब्दों में प्रयोग होने वाले विभिन्न अंकों के नामकरण से संबंधित शब्दों का एक कोष बनाया था।

2. संयुक्त परिवार व्यवसाय प्रणाली – कुछ लोगों द्वारा संयुक्त उद्यम करना लाभदायक होता है। भारत में, शायद ईसा पूर्व से ही, परिवार के सभी योग्य सदस्यों की सहायता से व्यवसाय चलाया जाता है। संयुक्त हिन्दू परिवार प्रणाली, जो प्राचीन भारतीय समाज का एक विशिष्ट लक्षण है, में एक परिवार के सबसे बड़े सदस्य का नियंत्रण और मार्गदर्शन सभी पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र करते हैं। यह सिर्फ एक सामाजिक इकाई के रूप में नहीं रहते थे, बल्कि एक साथ अपना व्यापार और व्यवसाय भी चलाते थे। यह व्यवसाय संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय कहलाता है।

3. श्रम-विभाजन – श्रम विभाग का अर्थ है कार्यों का विभागीकरण। श्रम विभाजन का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार काम करे। व्यक्ति की विशेष क्षमता श्रम का आधार होना चाहिए। आजकल, श्रम विभाजन बहुत महत्वपूर्ण है। ऋग्वैदिक समाज में चार वर्ग थे: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। यह वर्गीकरण उनके काम के आधार पर था, नहीं जन्म के आधार पर। शिक्षा देने वालों को ब्राह्मण, शासकों और प्रशासकों को क्षत्रिय, किसानों, व्यापारियों, साहूकारों आदि को वैश्य, दस्तकारों और श्रमिकों को शूद्र कहा जाता था. इसलिए हम इस वर्ण व्यवस्था को प्राचीनतम श्रम विभाजन का साक्ष्य मान सकते हैं।

4. हुंडी मुगलकाल से ही वित्तीय लेन- देनों में ‘हुंडी’ नामक देशी विनिमय साक्ष्य प्रलेख का प्रयोग होता रहा है। वर्तमान विनिमय पत्रों की तरह हुंडी भी व्यापारी को नकद मुद्रा को एक जगह से दूसरे स्थान तक ले जाने के जोखिम से बचाता था। यद्यपि इन हुडियों पर कोई गवाह के हस्ताक्षर या मोहर नहीं थे, फिर भी इनका मूल्य चुकाया जाता था। धन के स्थानांतरण का एक आसान तरीका था, जो व्यापार में काफी फायदेमंद था।

5. ग्राहक- आज, उन्मुख व्यवसायों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है ग्राहक बनाना और उन्हें बनाए रखना। आज ग्राहक सब कुछ है। आज, उत्पाद (Product) की परिकल्पना से लेकर उत्पाद के विक्रय के बाद प्रदान की जाने वाली सेवाएं सब ग्राहक उन्मुख हैं। यह विचार भारत में पुराना है। गाव के सभी व्यापारी थे, इसलिए वे अपने ग्राहकों की आवश्यकताओं और पसंदों को जानते थे और इसे वस्तुओं के उत्पादन के दौरान ध्यान में रखते थे। अन्य शब्दों में, अधिकांश उत्पादों का उद्देश्य ग्राहक विशेष था। बाजार संबंधों पर भी आधारित था। वस्तुओं का उधार भी विक्रय किया गया था। ग्राहक, मध्यस्थ और उत्पादक के बीच घनिष्ठ संबंध थे।

6. गुणवत्ता की तुलना में मात्रा का महत्व भारतवासियों ने हमेशा उत्पादन की गुणवत्ता को प्राथमिकता दी है। भारतीय दस्तकारों ने सदैव उत्कृष्ट और लोगों को प्रसन्न करने वाली चीजें बनाई हैं। इसलिए वे किसी एक चीज के विशेषज्ञ थे और उनके द्वारा बनाई गई चीजें अलग-अलग थीं। इससे उन्हें दुनिया भर में प्रशंसा मिली। उदाहरण के लिए, मौर्य राजा सेल्यूकस ने अपने सैनिकों को तलवार बनाने की कला सीखने के लिए भेजा क्योंकि प्राचीन भारतीय लोगों ने बेहतरीन इस्पात बनाया था। भारतीय हाथ से निर्मित मलमल भारत का गौरव है। भारतीय बुनकरों ने बहुत मजबूत रंगों का उपयोग किया। भारतीय रंगरेजों द्वारा बनाया जाने वाला नीला रंग कुछ खास बूटियों से बनाया जाता था, इसलिए इसे “इंडिगो ब्लू” कहा जाता था, जो ग्रीक भाषा में “इंडिया का” का अर्थ है। भारतीय दस्तकारों ने चिकनकारी, कालीन बुनाई, पट्ट चित्र, चांदी की जरदोजी और गोटे के काम में सदैव प्रसिद्धि प्राप्त की है। उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट होता है कि भारत न केवल एक सांस्कृतिक संपन्न देश था, बल्कि विश्व व्यापार और व्यापार को आज के इस स्तर पर लाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. मानवीय क्रियाएँ कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर- मानवीय क्रियाओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- (i) आर्थिक (ii) अनार्थिक

प्रश्न 2. अर्चना जी स्वयं को बागवानी में व्यस्त रखती हैं, यह क्रिया आर्थिक है या अनार्थिक?
उत्तर-यह अनार्थिक क्रिया है, क्योंकि उनका उद्देश्य धन कमाना नहीं अपितु स्वयं की संतुष्टि है।

प्रश्न 3. व्यापार किसे कहते हैं?
उत्तर- व्यापार से तात्पर्य उस क्रिया से है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं का क्रय-विक्रय लाभ के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4. ‘धंधा’ शब्द को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-वे क्रियाएँ जिन्हें व्यक्ति अपनी जीविका कमाने के लिए करता है, धंधा कहलाती हैं।

प्रश्न 5. भूमि प्रदूषण के क्या कारण हैं?
उत्तर-भूमि प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं-
(i) औद्योगिक इकाइयों खानों तथा खदानों द्वारा निकले ठोस कचरे का विसर्जन।
(ii) भवनों, सड़कों आदि के निर्माण में ठोस कचरे का विसर्जन
(iii) कृषि में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकों का प्रयोग अधिक करना।

प्रश्न 6. व्यवसाय का अपने कर्मचारियों के प्रति क्या उत्तरदायित्व है?
उत्तर-(i) वेतन या मजदूरी नियमित समय पर देना।
ii) उचित कल्याणकारी सुविधाएँ तथा कार्य दशाएँ उपलब्ध कराना।
(iii) ‘भावी जीविका का श्रेष्ठ अवसर
(iv) नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा आदि प्रदान करना।

प्रश्न 7. आर्थिक एवं अनार्थिक क्रियाओं में अन्तर्भेद कीजिये।
उत्तर- मनुष्य जो क्रियाएँ धन कमाने के उद्देश्य से या जीविकोपार्जन के लिये करता है, वे आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे-किसी व्यक्ति का लाभ कमाने के उद्देश्य से व्यवसाय करना, वेतन प्राप्त करने के लिये किसी कारखाने में काम करना या किसान द्वारा लाभ कमाने के लिये खेती करना। इसके अतिरिक्त मनुष्य जो क्रियाएँ आत्मसंतुष्टि के लिए करता है अर्थात जिन क्रियाओं के परिणामस्वरूप वेतन या लाभ की प्राप्ति नहीं होती, वे अनार्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे-संगीत सुनना, खेलना, सेवा कार्यों में संलग्न रहना, घर के कार्य करना आदि।

प्रश्न 8. आधुनिक समाज में व्यवसाय के महत्त्व का वर्णन कीजिये।
उत्तर- व्यवसाय आज की दुनिया में एक महत्वपूर्ण क्रिया है, बिना जिसकी दुनिया नहीं होती। व्यवसायी की लाभोपार्जन की इच्छा नहीं, बल्कि समाज और देश की प्रगति से भी जुड़ा है।निम्नलिखित तथ्यों से व्यवसाय के महत्त्व को जाना जा सकता है-

(i) व्यवसाय का लक्ष्य है श्रेष्ठ सेवाओं और वस्तुओं का उत्पादन करना और उन्हें उपभोक्ताओं तक पहुँचाना ताकि उनके जीवन स्तर को सुधार दिया जा सके।
(ii) बड़े पैमाने पर व्यावसायिक क्रियाओं से बहुत से लोगों को जीविकोपार्जन के अवसर मिलते हैं, जिससे देश में रोजगार और गरीबी की समस्या का समाधान होता है।
(iii) उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और निर्यात करके एक व्यवसाय देश की प्रगति का पता लगाता है, इसलिए व्यवसाय देश की छवि को उज्ज्वल करता है।
(iv) व्यवसाय में विदेशों से अच्छी मशीनों व तकनीकी का आयात किया जाता है, जिससे अपने देश में विश्वस्तरीय गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उपयोग करने का अवसर मिलता है
(v) विदेशी व्यापार अंतरराष्ट्रीय सहयोग और शांति को बनाए रखने में मदद करता है और विभिन्न देशों के लोगों को अपनी संस्कृति का आदान-प्रदान करता है।
(vi) व्यवसाय में निवेश करने से निवेशकों को अपनी पूँजी पर अच्छे लाभ मिलते हैं और व्यवसाय को विकसित करने और बढ़ाने के लिए बेहतरीन अवसर मिलते हैं।
(vii) यह देश की एकता को बढ़ाता है। यह लोगों को एक-दूसरे के करीब लाता है, पर्यटन सेवाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम, व्यापार प्रदर्शनी आदि।

प्रश्न 9. पेशे का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर- पेशे का अर्थ है कि एक व्यक्ति अपने विशिष्ट ज्ञान, प्रशिक्षण और अनुभव के आधार पर दूसरों की व्यक्तिगत सेवा करता है और अपनी सेवाओं के लिए भुगतान करता है। इन आर्थिक क्रियाओं को करते समय कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। पेशे क निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(i) पेशे के लिये विशिष्ट ज्ञान होना आवश्यक है, जैसे वकील, डॉक्टर आदि।
(ii) अपनी सेवाओं के बदले में इन्हें प्रतिफल फीस के रूप में प्राप्त होता है।
(iii) व्यवसायी की तुलना में पेशेवर व्यक्ति में सेवा भावना अधिक रहती है।
(iv) अधिकांश पेशेवर संस्थान पेशे में काम करने वालों को नियंत्रित करते हैं। पेशे के लोगों को विनियमन संस्थान द्वारा निर्धारित आचार संहिता भी माननी चाहिए।
(v) पेशेवर व्यक्ति विशिष्ट ज्ञान अधिकांशतः महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों या विशिष्ट संस्थाओं से प्राप्त करते हैं।

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