NIOS Class 10 Business Studies Chapter 1. व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र

NIOS Class 10 Business Studies Chapter 1. व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र

NIOS Class 10 Business Studies Chapter 1 व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 Business Studies विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 व्यवसाय अध्ययन अध्याय 1 (व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Business Studies Chapter 1 Nature and Scope of Business दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Business Studies Chapter 1 व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Business Studies Chapter 1 Solution – व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र

प्रश्न 1. आर्थिक तथा अनार्थिक क्रियाओं के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर- आर्थिक क्रियाओं के उदाहरण-
1. श्रमिक द्वारा मजदूरी के बदले में कारखाने में कार्य करना,
2. अध्यापक द्वारा स्कूल में वेतन के लिए पढ़ाना ।
अनार्थिक क्रियाओं के उदाहरण-
1. लोगों द्वारा पूजा करना,
2. बाढ़ अथवा भूकंप राहतकोष में दान देना ।

प्रश्न 3. धंधे से क्या अभिप्राय है?
उत्तर– जीविका अर्जित करने के उद्देश्य से नियमित आधार पर की जाने वाली आर्थिक क्रियाओं को धंधा कहते हैं।

प्रश्न 4. नौकरी की किन्हीं दो विशेषताओं को समझाइये |
उत्तर- नौकरी की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
(i) दूसरों के लिए कार्य – नौकरी करने वाले हमेशा दूसरों की सेवा करते हैं। वे अपने काम के बारे में स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते। उसे अपने मालिक या नियोक्ता की बात सुननी चाहिए।

(ii) नियम तथा शर्तें – प्रत्येक नौकरी में काम करने का समय, पारिश्रमिक राशि, अन्य सुविधाएं आदि नियम और शर्तें हैं। इन शर्तों और नियमों का निर्धारण मालिक करता है। इन शर्तों का पालन करना हर व्यक्ति को नौकरी मिलेगी।

(iii) निश्चित आय – नौकरी करने वाले व्यक्ति की आय निश्चित होती है, जो वेतन या मजदूरी के रूप में प्राप्त होती है। नौकरी में वेतन एक निश्चित समय के बाद मिलता है। यह दिन-प्रतिदिन या मासिक रूप से होता है। नियमों के अनुसार वेतन और भत्ता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 5. पेशे की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – पेशे की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
1. विशेष ज्ञान – प्रत्येक पेशे और प्रोफेशन में प्रशिक्षण आवश्यक है। यह ज्ञान न तो विरासत में मिलता है और न ही दिया जा सकता है। डॉक्टर का बेटा डॉक्टर नहीं बन सकता जब तक वह आवश्यक मेडिकल डिग्री और पाठ्यक्रम पूरा नहीं कर लेता। इसी तरह, लोगों को कानूनी सेवाएं देने के लिए एक वकील को कानून की पढ़ाई और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।

2. सेवा उद्देश्य – पेशे का प्राथमिक उद्देश्य लोगों को सेवाएं प्रदान करना है। यद्यपि प्रत्येक डॉक्टर, वकील या दूसरे पेशेवर लोग अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए धन अर्जित करते हैं, लेकिन ये सभी सेवा करने के उद्देश्य से काम करते हैं।

3. पेशागत निकाय द्वारा नियंत्रित ( प्रोफेशनल बॉडी) – प्रत्येक पेशे को नियंत्रित (Control) करने वाला एक पेशागत निकाय होता है । उदाहरण के लिए भारतीय चार्टर्ड अकाउंटेंट संस्थान, भारतीय बार काउंसिल तथा भारतीय मेडिकल काउंसिल आदि पेशागत निकाय हैं, जिनका गठन भारत में चार्टर्ड अकाउंटेंटों, वकीलों, डॉक्टरों आदि की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए किया गया है।

4. आचार संहिता – प्रत्येक पेशे के लिए उसका पेशागत निकाय एक आचार संहिता बनाता है, जिसका प्रत्येक पेशेवर व्यक्ति कठोरतापूर्वक पालन करना चाहिए।

प्रश्न 6. ‘व्यवसाय’ शब्द को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर – वास्तव में, व्यवसाय धन के बदले वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन, विक्रय और विनिमय करता है। यह नियमित लाभ कमाने के लिए किया जाता प्रो. हैने ने कहा कि “व्यवसाय एक मानवीय क्रिया है जो वस्तुओं के क्रय-विक्रय द्वारा धन उत्पादन अथवा धन प्राप्ति के लिए की जाती है।” खनन, उत्पादन, व्यापार, परिवहन, भंडारण, बैंकिंग और बीमा के उदाहरण हैं।

प्रश्न 7. जब कोई व्यक्ति बढ़ईगिरी करता है, तो हम क्यों कहते हैं कि यह उसका रोजगार है?
उत्तर- बढ़ईगिरी उसके लिए जीविका एक साधन है, अतः यह उसका रोजगार है।

प्रश्न 8. यदि कोई मोची अपने लिए जूते बनाता है, तो वह व्यवसाय नहीं करता, क्यों?
उत्तर- क्योंकि इस क्रिया का उद्देश्य धन कमाना नहीं है।

प्रश्न 9. व्यवसाय की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – व्यवसाय एक ऐसी क्रिया है, जिसमें लाभ कमाने के उद्देश्य से नियमित आधार पर वस्तुओं अथवा सेवाओं का क्रय-विक्रय, उत्पादन, हस्तांतरण आदि सम्मिलित है। व्यवसाय की विशेषताएं – व्यवसाय की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-

1. वस्तुओं तथा सेवाओं का लेन-देन – व्यवसाय में लोग उत्पादन और वस्तुओं अथवा सेवाओं का वितरण करते हैं। इन वस्तुओं में कुछ उपभोक्ता वस्तुएं (जैसे ब्रेड, मक्खन, दूधा, चाय) और पूंजीगत वस्तुएं (जैसे मशीनरी, उपकरण, बैंकिंग, बीमा आदि) भी शामिल हो सकती हैं।

2. वस्तुओं तथा सेवाओं का विक्रय अथवा विनिमय- किसी कार्य को व्यवसाय कहने के लिए विनिमय या विक्रय होना अनिवार्य है। यदि कोई व्यक्ति किसी को उपयोग या उपहार के लिए कुछ खरीदता या बनाता है, तो वह व्यवसाय नहीं करता है। लेकिन वह व्यवसाय में संलग्न होता है जब वह किसी दूसरे को बेचने के लिए कुछ बनाता है या खरीदता है। इसलिए, व्यापार में विक्रेता और क्रेता के बीच धान या वस्तु (वस्तु-विनिमय प्रणाली) के माध्यम से उत्पादित या खरीदे गए वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होना आवश्यक है।

3. वस्तुओं अथवा सेवाओं का नियमित विनिमय – व्यवसाय में उत्पादों का नियमित उत्पादन या क्रय-विक्रय होना चाहिए। व्यवसाय आम तौर पर एकाकी सौदा नहीं है। उदाहरण के लिए, रमेश अपनी पुरानी मारुति कार को हरी को बेच देता है, तो इसे व्यवसाय नहीं कहेंगे। वह व्यवसाय नहीं कर सकता अगर वह नियमित रूप से कार खरीद-बिक्री नहीं करता।

4. निवेश की आवश्यकता – प्रत्येक व्यवसाय में भूमि, श्रम अथवा पूंजी के रूप में कुछ न कुछ निवेश की आवश्यकता होती है। इन संसाधनों का प्रयोग विविध प्रकार की वस्तुओं अथवा सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग के लिए किया जाता है।

5. लाभ कमाने का उद्देश्य – प्रत्येक व्यवसाय का लक्ष्य लाभ कमाना है। व्यवसाय प्रेम या देशभक्ति के लिए नहीं होता। लाभ के बिना कोई व्यवसाय अधिक समय तक जीवित रह सकता है। व्यवसाय को बढ़ाने के लिए लाभ भी चाहिए।

6. आय की अनिश्चितता और जोखिम – व्यापार का लक्ष्य लाभ प्राप्त करना है। व्यवसायी विभिन्न संसाधनों में निवेश करके कुछ आय प्राप्त करना चाहता है। लेकिन उसके सबसे अच्छे प्रयासों के बावजूद कंपनी को पैसा नहीं मिलता है। कभी-कभी उसे बहुत लाभ मिलता है, कभी-कभी हानि मिलती है।

टॉमस के शब्दों में, “व्यवसाय एक ऐसा धंधा है जिसका मुख्य उद्देश्य मौद्रिक लाभ कमाना है और जिसमें मुख्य जोखिम मौद्रिक हानि है ।”

प्रश्न 10. व्यवसाय का क्या अर्थ है? व्यवसाय की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – व्यवसाय एक ऐसी क्रिया है, जिसमें लाभ कमाने के उद्देश्य से नियमित आधार पर वस्तुओं तथा सेवाओं का क्रय-विक्रय, उत्पादन, हस्तांतरण सम्मिलित है। व्यवसाय की दो विशेषताएं-
1. साहस – युद्ध, विज्ञान और व्यवसाय ये तीनों ऐसे क्षेत्र हैं जहां साहसिक व्यक्ति ही सफल होते हैं। व्यवसाय एक साहसिक कार्य है। व्यवसायी आशावादी होता है।
2. लाभ उद्देश्य – व्यवसाय का उद्देश्य लाभ कमाना है। बिना लाभ की इच्छा से की जाने वाली क्रियायें व्यवसाय नहीं कहलातीं ।

प्रश्न 11. व्यवसाय किस प्रकार पेशे से भिन्न है ? लगभग 60 शब्दों में लिखिए ।
उत्तर – व्यवसाय तथा पेशे में अन्तर-
1. प्रारम्भ का आधार-व्यवसाय व्यक्तिगत निर्णय के बाद प्रारम्भ किया जा सकता है, परन्तु किसी पेशे को प्रारम्भ करने से पूर्व उस पेशेवर संस्था की सदस्यता पाना आवश्यक है।

2. विशिष्ट ज्ञान एवं प्रशिक्षण- व्यवसाय के लिए साधारणतः किसी विशिष्ट ज्ञान या प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती जबकि पेशे के लिए विशिष्ट ज्ञान एवं प्रशिक्षण नितान्त आवश्यक है। जैसे- डॉक्टर, वकील बनने के लिए विभिन्न परीक्षाएं पास करनी पड़ती हैं।

3. पूंजी – व्यवसाय के लिए पर्याप्त मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होती है जबकि पेशे में पूंजी की उतनी अधिक आवश्यकता नहीं होती । पर्याप्त पूंजी के अभाव में व्यवसाय करना सम्भव नहीं होता। पेशे में पूंजी की तुलना में विशिष्ट ज्ञान व योग्यता का अधि महत्त्व है।

4. कार्य की प्रकृति – व्यवसाय में वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन एवं विनिमय किया जाता है। पेशे में केवल पेशेवर सेवाएं प्रदान की जाती हैं।

5. उद्देश्य – व्यवसाय में लाभ कमाने की भावना मुख्य होती है परन्तु पेशे में सेवा भाव मुख्य होता है। यद्यपि डॉक्टर अपनी सेवा के बदले फीस लेता है, परन्तु उसकी सेवा का मूल्य आंकना बहुत कठिन है।

6. जोखिम – व्यवसाय में पेशे की अपेक्षा अधिक जोखिम होता है। व्यवसाय में आय अनिश्चित रहती है तथा लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है, जबकि पेशे में आय साधारणतः निश्चित रहती है। पेशेवर व्यक्ति अपनी सेवा के बदले फीस प्राप्त करते हैं।

7. हस्तांतरण- व्यवसाय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित किया जा सकता है, जबकि पेशे में ऐसा सम्भव नहीं है।

प्रश्न 12. उदाहरण देते हुए व्यावसायिक क्रियाओं की विस्तृत श्रेणियों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर – व्यावसायिक क्रियाएं – व्यवसाय का क्षेत्र काफी विस्तृत है। व्यावसायिक क्रियाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. औद्योगिक क्रियाएं तथा
2. वाणिज्यिक क्रियाएं
औद्योगिक क्रियाएं विभिन्न संसाधनों का उपयोग करके उत्पादन तथा निष्कर्षण करती हैं। औद्योगिक क्रियाओं में फसलें और पौधे उगाना, धरती के गर्भ से तेल निकालना, प्राकृतिक गैस और खनिज पदार्थों का उत्खनन, कच्ची धातु को शुद्ध या अर्ध-शुद्ध पदार्थों में ढालना, भवनों, बांधों और पुलों का निर्माण आदि शामिल हैं। वे सभी वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय और विनिमय को वाणिज्यिक क्रियाओं कहते हैं। इससे वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग और उपयोग आसानी से होता है। इसलिए परिवहन, बैंकिंग, बीमा, पैकेजिंग आदि कार्यों को वाणिज्यिक कार्यों में शामिल किया गया है। इन सेवा संबंधी क्रियाओं को व्यापार की पूरक क्रियाएं भी कहते हैं। ये वस्तुओं को उनके उत्पादन स्थल से ग्राहक तक पहुंचाने, वित्तीय सुविधाओं को प्रदान करने, जोखिमों को वहन करने, वस्तुओं के सुनियोजित भंडारण की सुविधाओं को प्रदान करने और व्यापार में सहायता करने का काम करते हैं।

प्रश्न 13. ऐसे किन्हीं तीन प्रकार के धंधों का वर्णन कीजिए, जिनमें साधारणतः व्यक्ति संलग्न होते हैं।
उत्तर – जब कोई व्यक्ति किसी विशेष आर्थिक क्रिया में नियमित रूप से संलग्न होता है तो वह उसका धंधा कहलाता है- धंधो को मुख्यतः तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है: 1. पेशा, 2. नौकरी, 3. व्यवसाय ।

1. पेशा (Profession) — पेशे का अर्थ है ऐसा काम करने के लिए विशेष प्रशिक्षण, ज्ञान और योग्यता की आवश्यकता होती है। हौज एवं जॉनसन ने कहा कि “पेशा एक व्यवसाय है जिसके लिए किसी विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है जो उच्च डिग्री के माध्यम से प्राप्त होता है तथा जिसे समाज की सेवार्थ प्रयोग किया जाता है।”पेशेवर व्यक्ति अपने विशिष्ट ज्ञान और प्रशिक्षण के आधार पर लोगों की सेवा करते हैं। पेशे में शामिल हैं डॉक्टर, वकील, परामर्शदाता आदि।

2. नौकरी अथवा सेवा (Employment or Service)– नौकरी का अर्थ है जब कोई व्यक्ति नियमित रूप से दूसरों के लिए काम करता है और उसके बदले में भुगतान प्राप्त करता है। यह सरकारी कर्मचारी, कंपनियों के कार्यकारी, अधिकारी, बैंक कर्मचारी, फैक्टरी मजदूर आदि को शामिल करता है।

3. व्यवसाय (Business ) – व्यवसाय का अर्थ है एक ऐसा उद्यम जिसमें धन के बदले वस्तुओं अथवा सेवाओं का उत्पादन, विक्रय और विनिमय होता है। इसका उद्देश्य नियमित लाभ कमाने है। खनन, उत्पादन, व्यापार, परिवहन, भंडारण, बैंकिंग और बीमा के उदाहरण हैं।

प्रश्न 14. ‘यदि किसी लेन-देन में नियमितता नहीं है, तो उसे व्यवसाय नहीं कहेंगे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर- हम व्यवसाय में नियमित लेन-देन या सौदे शामिल करते हैं। नियमित सौदे व्यवसाय नहीं हैं। उदाहरण के लिए, कुछ विद्यार्थी परीक्षा के बाद अपनी पुरानी किताबों को बेच देते हैं, लेकिन इसमें कोई नियम नहीं है, इसलिए यह सौदा एक व्यावसायिक लेन-देन नहीं होगा।

प्रश्न 15. व्यवसाय में आय की अनिश्चितता होने पर भी व्यवसायी क्यों इसमें धन विनियोजित करना चाहते हैं ?
उत्तर – आय की अनिश्चितता होने पर भी व्यवसायी लाभ कमाने की इच्छा से व्यवसाय में धन का विनियोजन करता है। व्यवसायी का सदा यही प्रयास रहता है कि प्रत्येक व्यावसायिक कार्य से उसे लाभ होना चाहिए। लाभ साहस का पुरस्कार है। व्यवसायी के लिए लाभ प्रेरणा का स्रोत है।

प्रश्न 16. व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना है। व्याख्या कीजिए

उत्तर– व्यवसायी की मेहनत और साहस का पुरस्कार लाभ है। व्यवसाय का आर्थिक लक्ष्य लाभ कमाना है। व्यवसायी पूंजी का जोखिम नहीं उठाएंगे अगर लाभ की आशा नहीं होगी। व्यापार की सफलता केवल लाभ पर निर्भर करती है। लाभ से व्यापार बढ़ता है। व्यापार और लाभ दोनों का चोली-दामन संबंध है। C.F. Abott ने इस विषय में कहा कि “बिना लाभ के व्यवसाय, व्यवसाय नहीं है, यह ठीक उसी प्रकार है जैसे बिना खार के मुरब्बा।”व्यवसाय का अनिवार्य लक्ष्य लाभ कमाना है क्योंकि लाभ निम्नलिखित लक्ष्यों को पूरा करता है-
1. लाभ व्यवसाय का जन्मदाता है।
2. व्यवसाय को कायम रखने के लिए उचित और पर्याप्त लाभ कमाना आवश्यक है।
3. लाभ व्यवसाय के विकास तथा विस्तार का प्रमुख
4. पर्याप्त लाभ अर्जित करके अंशधारियों को अच्छा लाभांश दिया जा सकता है, जिससे व्यावसायिक जगत में स्याति (Goodwill) बनती है।
5. लाभ व्यवसाय की सफलता का मापदण्ड है।

प्रश्न 17. व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है। व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्यों के अन्तर्गत लाभ कमाने के उद्देश्य के साथ वे समस्त आवश्यक क्रियाएं भी शामिल हैं जिनके द्वारा लाभ कमाने के उद्देश्य की पूर्ति की जाती है, जैसे- ग्राहक बनाना, नियमित नव प्रवर्तन तथा उपलब्ध साधनों का श्रेष्ठतम उपयोग आदि। प्रमुख आर्थिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) लाभ कमाना – व्यवसायी की मेहनत और साहस का पुरस्कार लाभ है। व्यवसाय का आर्थिक लक्ष्य लाभ कमाना है। यदि लाभ की आशा नहीं हो तो कोई व्यवसायी पूंजी नहीं लगाएगा। व्यापार की सफलता केवल लाभ पर निर्भर करती है।

(ii) ग्राहक बनाना – ग्राहक व्यवसाय की आत्मा हैं। ग्राहक वस्तुओं और सेवाओं को बनाते हैं। व्यवसाय केवल उचित मूल्य के बदले में अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएं और सेवाएं देकर लाभ कमा सकता है। इसके लिए वह अपनी विद्यमान वस्तुओं के लिए ग्राहकों को आकर्षित करना चाहिए और अधिक से अधिक ग्राहकों को लाना चाहिए। इसे कई विपणन तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है।

(iii) नियमित नव-प्रवर्तन – नव प्रवर्तन का अर्थ है – नई-नई वस्तुएं बनाना, उत्पादन प्रक्रिया में सुधार करना, पुरानी वस्तुओं के लिए नये उपयोग ढूंढ़ना, ग्राहकों की आवश्यकताओं को अधिक श्रेष्ठ ढंग से सन्तुष्ट करना आदि। संक्षेप में, नव प्रवर्तन का अर्थ है – नया परिवर्तन । ऐसा परिवर्तन जिसमें उत्पाद की गुणात्मकता, प्रक्रिया और वितरण में संशोधन हो । नव परिवर्तन द्वारा व्यवसाय उत्पादन के नए तरीके अपनाकर उत्पाद की कीमतों को घटाने तथा अधिक से अधिक ग्राहकों को आकर्षित कर अपनी बिक्री बढ़ाने में सफल हो पाता हैं। कीमतों में कमी और बिक्री में वृद्धि से व्यवसायी को अधिक लाभ प्राप्त होता है। हथकरघों के स्थान पर पावरलूम और कृषि में हल अथवा हाथ से चलने वाले यंत्रों के स्थान पर ट्रैक्टर का उपयोग आदि नव-प्रवर्तन के ही परिणाम हैं।

(iv) संसाधनों का श्रेष्ठतम उपयोग – किसी भी व्यवसाय को चलाने के लिए पर्याप्त पूंजी या कोष चाहिए। इस धन को मशीनें खरीदने, कच्चा माल खरीदने, कर्मचारियों को काम पर रखने और दैनिक खर्चों का भुगतान करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस तरह, व्यावसायिक क्रियाओं में विभिन्न संसाधनों की आवश्यकता होती है, जैसे मशीनें, आदमी, माल, मुद्रा आदि। इन संसाधनों की उपलब्धता आम तौर पर सीमित होती है। इसलिए प्रत्येक उद्यमी इन संसाधनों का अधिकतम लाभ उठाना चाहता है। कुशल कर्मचारियों की नियुक्ति से मशीनों का पूरा उपयोग और कच्चे माल के अपव्यय को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 18. व्यवसाय के सामाजिक उद्देश्यों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तरव्यवसाय के सामाजिक उद्देश्य – व्यवसाय समाज का हिस्सा है। वह समाज की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेगा, तो यह पनप नहीं सकता। व्यवसायों का उद्देश्य समाज की भलाई करना होता है। व्यवसाय समाज द्वारा उपयोग किए गए दुर्लभ संसाधनों से संचालित होता है, इसलिए समाज व्यवसाय से कुछ उपेक्षा (आशा) करता है। यही कारण है कि हर व्यवसाय का लक्ष्य है सामाजिक हित में कार्य करना। अर्थात् व्यवसायिक कार्यों से समाज को कोई नुकसान नहीं होगा। व्यवसाय के सामाजिक उद्देश्यों में अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन तथा पूर्ति, उचित व्यापारिक प्रयास अपनाना, समाज के सामान्य कल्याणकारी काम में भाग लेना तथा कल्याणकारी सुविधाओं का आयोजन शामिल है।

(i) अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन तथा पूर्ति – क्योंकि व्यापार कई संसाधनों का उपयोग करता है इसलिए समाज व्यवसाय से अच्छी वस्तुओं तथा सेवाओं की अपेक्षा करता है। यही कारण है कि व्यवसाय का लक्ष्य होना चाहिए कि वह अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं को उचित कीमत पर और समय पर उपलब्ध कराए। व्यवसाय की वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता उसकी लागत निर्धारित करती है। ग्राहक भी अपेक्षा करते हैं कि उनकी सभी आवश्यकताओं की सही समय पर आपूर्ति की जाएगी। इसलिए प्रत्येक उद्यमी को नियमित रूप से उत्पादों और सेवाओं की आपूर्ति करनी चाहिए।

(ii) उचित व्यापारिक प्रथाएं अपनाना – प्रत्येक समाज में जमाखोरी, कालाबाजारी, अधिक कीमत वसूलना आदि क्रियाएं अवांछित मानी जाती हैं। इसके अलावा गुमराह करने वाले विज्ञापन वस्तुओं की गुणवत्ता के बारे में गलत छाप छोड़ते हैं। इस प्रकार के विज्ञापन उपभोक्ता को धोखा देते हैं और व्यवसायी अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए ऐसा करते हैं। यह एक अनुचित व्यापारिक प्रथा है। व्यवसाय को अधिक लाभ कमाने के लिए आवश्यक वस्तुओं की कृत्रिम कमी अथवा कीमतों में वृद्धि नहीं करनी चाहिए। ऐसी क्रियाओं से व्यवसायी की बदनामी होती है और कभी-कभी उसे आर्थिक दंड अथवा कानूनन जेल की सजा भी भुगतनी पड़ती है। अतः उपभोक्ता और समाज के कल्याण को ध्यान में रखते हुए व्यवसाय का उद्देश्य उचित व्यापारिक प्रथाओं को अपनाना होना चाहिए।

(iii) समाज के सामान्य कल्याण कार्यों में योगदान– व्यावसायिक फर्मों को समाज के कुल कल्याण और विकास में योगदान देना चाहिए। यह अच्छी शिक्षा के लिए स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना, चिकित्सा के लिए अस्पतालों की स्थापना और पार्क और खेल परिसरों की व्यवस्था करके संभव है।

प्रश्न 19. व्यवसाय के राष्ट्रीय उद्देश्यों के महत्त्व के बारे में बताइए ।
उत्तर – राष्ट्रीय उद्यम उद्देश्य-व्यवसाय देश का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिए प्रत्येक व्यवसाय का लक्ष्य राष्ट्रीय लक्ष्यों और आकांक्षाओं की प्राप्ति होना चाहिए। राष्ट्रीय लक्ष्य शामिल हो सकते हैं, जैसे कि लोगों को रोजगार के अवसर देना, राजकोष के लिए आय अर्जित करना, उत्पादन में आत्मनिर्भर बनना और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना। व्यावसायिक गतिविधियों का निर्धारण इन राष्ट्रीय लक्ष्यों को ध्यान में रखकर किया जा सकता है। व्यवसाय के राष्ट्रीय उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना व्यवसाय के महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय लक्ष्यों में से एक लक्ष्य है, लोगों को लाभपूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना। नई व्यावसायिक इकाइयाँ स्थापित करके, बाजार का विस्तार करके तथा वितरण प्रणाली को और अधिक व्यापक बनाकर इस लक्ष्य की पूर्ति की जा सकती है।

(ii) सामाजिक न्याय को प्रोत्साहित (बढ़ावा देना) करना – व्यवसायियों से आज के समाज में जिम्मेदार नागरिक के रूप में आशा की जाती है कि वे सभी लोगों को समान अवसर दें। यह भी आशा है कि वह सभी कर्मचारियों को उन्नति करने के समान अवसर देगा। वह इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समाज के पिछड़े और कमजोर वर्गों पर विशेष ध्यान देगा।

(iii) सरकारी नीतियों और योजनाओं की प्राथमिकता के आधार पर व्यावसायिक इकाइयों को उत्पादन तथा आपूर्ति करना चाहिए, जो राष्ट्रीय प्राथमिकता है। व्यापार के राष्ट्रीय लक्ष्यों में से एक आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन और उचित कीमत पर उपलब्ध कराना होना चाहिए।

(iv) देश के राजस्व में योगदान – व्यवसायी को सरकारी करों का ठीक-ठीक भुगतान करना चाहिए । कर सरकार की आय के महत्त्वपूर्ण स्रोत है। करों से एकत्रित राशि देश के विकास में लगायी जाती है।

(v) आत्मनिर्भरता तथा निर्यात को बढ़ावा -व्यावसायिक संस्थाओं की अतिरिक्त जिम्मेदारी है कि वे आयातित उत्पादों को रोकें, जिससे देश को आत्मनिर्भर बनाया जा सकेगा। साथ ही, प्रत्येक उद्यम को निर्यात को बढ़ाना और अधिक विदेशी मुद्रा देश के कोष में लाना अपना लक्ष्य बनाना चाहिए।

प्रश्न 20. व्यवसाय के मानवीय उद्देश्यों की गणना करके व्याख्या कीजिए |
उत्तर – कम्पनी के मानवीय उद्देश्यव्यवसाय न केवल पैसे कमाने का एक मशीन है, बल्कि शांति, न्याय और मानवीय संबंधों में स्थिरता लाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। व्यवसाय के मानवीय उद्देश्यों में अक्षम और विकलांग लोगों का कल्याण, प्रशिक्षण या शिक्षा से वंचित लोगों का कल्याण और कर्मचारियों की अपेक्षाओं की पूर्ति शामिल हैं। इस प्रकार, व्यवसाय के मानवीय उद्देश्यों में कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक संतुष्टि और मान संसाधनों का विकास शामिल हैं।

(i) कर्मचारियों का आर्थिक कल्याण – व्यवसाय में कर्मचारियों को उचित वेतन, कार्य-निष्पादन के लिए अभिप्रेरक, भविष्यनिधि (Provident Fund) के लाभ, पेंशन तथा अन्य अनुलाभ जैसे चिकित्सा सुविधा, आवासीय सुविधा आदि उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इससे श्रमिक कार्य में अधिक संतुष्टि का अनुभव करेंगे और व्यवसाय के लिए अधिक योगदान दे सकेंगे।

(ii) कर्मचारियों की सामाजिक तथा मानसिक संतुष्टि- व्यवसायों का कर्तव्य है कि वे अपने कर्मचारियों को सामाजिक तथा मानसिक संतुष्टि प्रदान करें, जिससे वे काम को रोचक और चुनौतीपूर्ण बना सकते हैं, सही व्यक्ति को सही काम के लिए नियुक्त कर सकते हैं और काम की थकान को दूर कर सकते हैं। इसके अलावा, कर्मचारियों को उनके पदों में प्रोन्नति और पदोन्नति दी जानी चाहिए। निर्णय लेते समय कर्मचारियों की शिकायतों और सुझावों पर भी ध्यान देना चाहिए।

(iii) मानवीय संसाधनों का विकास – किसी भी व्यवसाय में काम करने वाले कर्मचारी मनुष्य हैं, इसलिए वे हमेशा आगे बढ़ने के लिए उत्सुक रहते हैं। उनकी प्रगति के लिए उचित विकास और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। व्यवसाय अपनी क्षमताओं, कार्य-कुशलताओं और दक्षताओं में निरंतर सुधार करने से ही उन्नति कर सकता है। अतः व्यवसाय के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि वे अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण देते रहें।

(iv) सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का आर्थिक कल्याण– व्यावसायिक इकाइयां शारीरिक और मानसिक विकलांग लोगों की सहायता करके समाज को प्रेरित कर सकती हैं। वे इसे कई तरह से कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, पिछड़े समुदायों के लोगों की आय बढ़ाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है। व्यवसायों को शारीरिक और मानसिक विकलांग लोगों की भर्ती में प्राथमिकता देना चाहिए। व्यवसायिक संस्थाएं मेधावी विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति भी दे सकती हैं।

प्रश्न 21. व्यवसाय के वैश्विक उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – व्यवसाय के वैश्विक उद्देश्य की शुरुआत में भारत के अन्य देशों के साथ बहुत कम व्यापारिक संबंध थे। हाल ही में, उदारवादी आर्थिक नीतियों के कारण विदेशी निवेश पर प्रतिबन्ध काफी हद तक कम हो गया है और आयातित वस्तुओं पर लगने वाले शुल्क भी काफी कम हो गए हैं, जो तब बहुत कठोर थे। इन बदलावों से बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। आज वैश्वीकरण ने पूरे विश्व को एक बड़े बाजार में बदल दिया है। आज, एक देश में बनाया गया माल आसानी से दूसरे देश में बेचा जा सकता है। इस प्रकार, वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से सभी कंपनियां वैश्विक उद्देश्य का पालन करने लगी हैं। इस उद्देश्य के महत्वपूर्ण हिस्सों को नीचे बताया गया है:-

1. सामान्य जीवन-स्तर में वृद्धि – व्यवसायिक गतिविधियों के विकास से अब विश्व भर में उचित मूल्य पर अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएं आसानी से उपलब्ध होंगी। इस तरह, एक देश दूसरे देश का उपयोग कर सकेगा। यह लोगों के सामान्य जीवन स्तर को बेहतर बनाएगा।

2. विभिन्न देशों के बीच असमानताओं को कम करना – व्यवसाय को अपनी गतिविधियों का विस्तार कर अमीर और गरीब राष्ट्रों के बीच की असमानता को कम करना चाहिए। विकासशील तथा अविकसित देशों में पूंजी विनियोजित करके ये औद्योगिक तथा आर्थिक प्रगति को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

3. विश्वस्तर पर प्रतिस्पर्धी वस्तुओं तथा सेवाओं की उपलब्धता – व्यापार को वैश्विक बाजार में अधिक मांग वाली वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन बढ़ाना चाहिए। इससे निर्यातक देश की छवि और विदेशी मुद्रा क्षमता दोनों बढ़ती है।

प्रश्न 22. व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – व्यवसायों को उन सभी जिम्मेदारियों तथा कर्त्तव्यों का पालन करना चाहिए जो समाज की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं, उन्हें सामाजिक उत्तरदायित्व कहा जाता है। व्यवसाय समाज के भीतर ही किया जाता है, इसलिए बिना समाज की मदद और सहयोग के कोई व्यवसाय नहीं हो सकता। व्यवसाय समाज की आवश्यकताओं को पूरा करके लाभ कमाता है। समाज व्यवसाय को जन्म देता है। यह पारस्परिक लाभ के लिए उत्पादन और वितरण करना चाहता है। आधुनिक दुनिया में, व्यवसाय व्यक्तिगत लक्ष्यों के अलावा देश और समाज के विभिन्न वर्गों से भी जुड़ा हुआ है। व्यवसाय का सामाजिक दायित्व समाज के इन विभिन्न वर्गों के प्रति है। बोवेन ने कहा, “व्यवसाय का सामाजिक उत्तरदायित्व है उन नीतियों का अनुसरण करना, उन निर्णयों को लेना अथवा उन कायदों का पालन करना जो हमारे समाज के उद्देश्यों एवं मूल्यों की दृष्टि से वांछनीय हों।”

कुन्ट्ज तथा ओ’डोनेल के शब्दों में, “सामाजिक उत्तरदायित्व प्रत्येक व्यक्ति का निजी कर्त्तव्य है कि जब वह स्वयं के हित में कार्य करता है तो वह ध्यान रखे कि दूसरों के अधिकारों एवं न्यायोचित हितों की अवहेलना न हो। ” उपर्युक्त परिभाषाओं से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व से आशय समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति व्यवसायी द्वारा अपने उत्तरदायित्वों को समझने और निभाने से है।

प्रश्न 23. व्यवसाय की दैनिक गतिविधियों को प्रभावित करने वाले हित समूहों के बारे में बताइए ।
उत्तर – हित समूह ( Interest Groups ) – व्यवसाय दैनिक कार्यों में समाज के कई समूहों से लगातार जुड़ा रहता है। हित समूहों की क्रियाएं व्यवसाय की क्रियाओं को प्रभावित करती हैं, और व्यवसाय की क्रियाएं हित समूहों की क्रियाओं को प्रभावित करती हैं। व्यवसाय के विभिन्न हित-समूहों के प्रति कुछ जिम्मेदारियां हैं। व्यवसाय अक्सर स्वामियों, विनिवेशकों, कर्मचारियों, पूर्तिकर्ताओं, ग्राहकों, उपभोक्ताओं, प्रतियोगियों, राज्यों और समाज पर निर्भर रहता है। समाज के विभिन्न हित-समूहों के प्रति व्यवसाय के दायित्वों का इस प्रकार वर्णन किया जा सकता है-

1. स्वामियों के प्रति उत्तरदायित्व – स्वामी वे व्यक्ति होते हैं, जिनका व्यवसाय पर स्वामित्व होता है। स्वामी व्यवसाय में पूंजी लगाते हैं तथा व्यावसायिक जोखिमों को उठाते हैं। व्यवसाय के अपने स्वामियों के प्रति प्राथमिक उत्तरदायित्व हैं-
(i) व्यवसाय को सही ढंग से चलाना,
(ii) पूंजी तथा अन्य संसाधानों का उचित प्रयोग करना,
(iii) पूंजी की मूल्य वृद्धि करना,
(iv) विनिवेशित पूंजी पर नियमित तथा उचित प्रतिफल देना ।

2. विनिवेशकों के प्रति उत्तरदायित्व – विनिवेशक वे व्यक्ति होते हैं, जो गणपत्रों, बांड, जमाराशि आदि के रूप में व्यवसाय को आवश्यक वित्त प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त बैंक, वित्तीय संस्थान तथा आम जनता द्वारा निवेश इसी वर्ग में आते हैं। निवेशकों के प्रति व्यवसाय के निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं-
(i) विनिवेशकों के निवेश की सुरक्षा का आश्वासन देना,
(iii) मूलधन की समय पर वापसी करना ।
(ii) ब्याज का नियमित भुगतान करना,

3. कर्मचारियों के प्रति उत्तरदायित्व – व्यवसाय की कार्यकुशलता के लिए कुशल कर्मचारी जरूरी है उत्पादन के अन्य साधन उनके बिना उत्पादक नहीं बन सकते। अतः व्यवसाय की समृद्धि के लिए उन्हें संतुष्ट एवं सुखी रखना जरूरी हैं। व्यवसाय के कर्मचारियों के प्रति निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व हैं-
(i) वेतन अथवा मजदूरी का नियमित तथा समय पर भुगतान, उपलब्ध कराना,
(ii) उचित कार्य दशाएं तथा कल्याणकारी सुविधाएं
(iii) भावी जीविका के श्रेष्ठ अवसर,
(iv) नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा जैसे प्रोविडेंट फंड की सुविधाएं, सामूहिक बीमा, पेंशन, अवकाश प्राप्ति के बाद की सुविधाएं, मुआवजा आदि,
(v) बेहतर सुविधाएं, जैसे- आवासीय, परिवहन, कैंटीन, क्रैश
(vi) समयानुसार प्रशिक्षण तथा विकास। आदि ।

4. आपूर्तिकर्ताओं के प्रति उत्तरदायित्व – आपूर्तिकर्ता भी एक प्रकार के व्यवसायी होते हैं, जो उत्पादकों तथा व्यापारियों की आवश्यकतानुसार कच्चे माल तथा अन्य वस्तुओं की पूर्ति करते हैं। वे पूर्तिकर्ता जो उपभोक्ताओं को तैयार माल की पूर्ति करते हैं, वितरक (डिस्ट्रीब्यूटर) कहलाते हैं। व्यवसाय के आपूर्तिकर्ताओं के प्रति उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैं-
(i) वस्तुओं के क्रय के लिए नियमित आदेश देना,
(ii) उचित नियमों तथा शर्तों के आधार पर लेन-देन करना,
(iii) उचित उधार अवधि का लाभ उठाना,
(iv) बकाया राशि का समय पर भुगतान करना ।

5. ग्राहकों तथा उपभोक्ताओं के प्रति उत्तरदायित्व – ग्राहकों तथा उपभोक्ताओं के सहयोग के बिना कोई भी व्यवसाय टिका नहीं रह सकता। उन्हें वस्तुएं तथा सेवाएं बेचकर लाभ कमाना उसका मुख्य ध्येय होता है। व्यवसाय के ग्राहकों के प्रति निम्नलिखित दायित्व हैं-
(i) उसे ऐसी वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना चाहिए जो ग्राहकों की जरूरत को पूरा करे ।
(ii) वस्तुओं तथा सेवाओं की गुणवत्ता श्रेष्ठ होनी चाहिए,
(iii) वस्तुओं तथा सेवाओं की आपूर्ति में नियमितता होनी चाहिए,
iv) वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य उचित तथा सामर्थ्य क्षमता के अनुकूल होने चाहिए,
(v) वस्तुओं के हर गुण तथा दुर्गुण तथा उनके उपभोग के बारे में उपभोक्ता को उचित सूचना दी जानी चाहिए,
(vi) विक्रय-उपरांत उचित सेवाएं देनी चाहिए,
( vii) यदि ग्राहकों की कोई शिकायत है, तो उसे तुरंत दूर किया जाना चाहिए,
(viii) व्यवसायी को कम वजन, मिलावट, जमाखोरी, आदि अनुचित व्यापारिक प्रथाओं से बचना चाहिए।

6. प्रतियोगियों के प्रति उत्तरदायित्व – व्यवसाय करने वाले लोगों को प्रतियोगी कहते हैं। प्रतियोगियों की उपस्थिति व्यवसाय को अधिक सृजनात्मक बनाती है और अधिक गतिशील बनाती है। जिससे वे अपने प्रतिद्वंद्वी से बेहतर बन सकते हैं। परन्तु प्रतियोगिता कभी-कभी व्यवसायियों को गैरकानूनी व्यवहार करने के लिए भी प्रेरित करती है। व्यवसाय के अपने प्रतियोगियों के प्रति निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं-
(i) अत्यधिक विक्रय कमीशन का प्रस्ताव न दें,
(ii) प्रत्येक बिक्री पर ऊंची छूट दर या प्रत्येक वस्तु के साथ मुफ्त वस्तुएं न दें,
(iii) मिथ्या प्रचार तथा अभद्र विज्ञापनों के द्वारा अपने प्रतियोगियों को बदनाम करने की कोशिश न करें।

7. सरकार के प्रति उत्तरदायित्व – सरकार के प्रति व्यवसाय विभिन्न उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैं-
(1) सरकार के कानूनों और नियमों के अनुसार ही व्यावसायिक jbo इकाइयों की स्थापना करना,
(ii) फीस, कर, अधिभार आदि का नियमित तथा ईमानदारी के साथ भुगतान करना,
(iii) प्रतिबंधित तथा एकाधिकारी व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न न होना,
(iv) सरकार द्वारा स्थापित प्रदूषण संबंधी नियंत्रण मान-दण्डों का पालन करना,
(v) लोगों के जीवन-स्तर में सुधार के सरकारी कार्यक्रमों में सरकार को पूर्ण सहयोग देना चाहिए,
(vi) पिछड़े एवं ग्रामीण इलाकों में नए उद्योग स्थापित करके सन्तुलित विकास में सहयोग देना चाहिए।

8. समाज के प्रति दायित्व – व्यवसाय समाज के अंगों की सहायता से चलाया जाता है, अतः उसके प्रति भी उसके निम्नलिखित दायित्व हैं-
(i) समाज के पिछड़े तथा कमजोर वर्गों की सहायता करना,
(ii) सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करना,
(iii) रोजगार के अवसर जुटाना,
(iv) पर्यावरण की सुरक्षा करना
(v) प्राकृतिक संसाधानों तथा वन्य जीवन का संरक्षण करना,
(vi) खेलों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना,
(vii) शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान प्रौद्योगिकी आदि के क्षेत्रों में सहायक तथा विकासात्मक शोधों को बढ़ावा देने में सहायता करना।

प्रश्न 24. व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्वों के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
अथवा
व्यवसाय का समाज के प्रति उत्तरदायी होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर- विभिन्न हित समूहों की अपेक्षाओं को पूरा करने का एक ऐच्छिक प्रयास सामाजिक उत्तरदायित्व व्यवसाय है। हित समूहों में मालिक, निवेशक, कर्मचारी, ग्राहक, सरकार, समाज और समुदाय शामिल हैं। लेकिन व्यवसाय हित अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए आगे क्यों आते हैं? इस संदर्भ में निम्नलिखित मुद्दे विचार किए जाएंगे:-

1. सार्वजनिक छवि- व्यवसाय समाज की भलाई के लिए काम करता है, जिससे उसे सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। व्यापारिक क्रियाओं की सार्वजनिक मान्यता भी व्यवसाय का लाभ निर्धारित करती है। लोग उन व्यावसायिक फर्मों से सामान खरीदते हैं जो समाजसेवा में लगे हुए हैं। योग्य कर्मचारी अच्छी व्यावसायिक छवि से आकर्षित होते हैं।

2. सरकारी कानून– सरकारी दंड से बचने के लिए व्यावसायिक संस्थाओं को स्वेच्छा से अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए। उदाहरण के लिए, कठोर सरकारी कानूनों के अधीन आ जाएगा यदि कोई व्यवसाय वातावरण को प्रदूषित करता है, जिसके परिणामस्वरूप उसे अपना व्यवसाय भी बंद करना पड़ सकता है। इसलिए, व्यावसायिक संस्थाओं को प्रदूषण से मुक्त स्थान बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।

3. अस्तित्व एवं विकास- व्यवसाय समाज का हिस्सा है। इसलिए, इसे बचाने और विकसित करने के लिए समाज की मदद करना बहुत महत्वपूर्ण है। व्यवसाय बिजली, पानी, भूमि, सड़कों और अन्य सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग करते हैं। यही कारण है कि प्रत्येक उद्यम को यह जिम्मेदारी है कि अपनी कमाई का कुछ हिस्सा समाज की सेवा में लगाए।

4. उपभोक्ता जागरूकता आज उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति अधिक शिक्षित हैं। वे अलग-अलग समूहों को बनाकर खराब और घातक उत्पादों के खिलाफ संघर्ष करने लगे हैं। इसलिए, प्रत्येक उद्यम को प्रतिस्पर्धी मूल्य पर अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएं उपलब्ध कराना होगा।

5. कर्मचारियों की सन्तुष्टि- आज, कर्मचारी अच्छे वेतन और स्वस्थ कार्यस्थल के अलावा आवास, परिवहन, शिक्षा, प्रशिक्षण आदि की भी अपेक्षा करते हैं। व्यवसाय को अपने कर्मचारियों की इन सभी अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि कर्मचारियों की संतुष्टि उत्पादकता से संबंधित है और संगठन की दीर्घकालीन सफलता के लिए भी इसकी आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई कंपनी अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने पर अधिक धन खर्च करती है, तो इससे उनकी कार्यकुशलता बढ़ेगी और कंपनी को अधिक लाभ मिलेगा।

प्रश्न 25. ग्राहकों के प्रति व्यवसाय के उत्तरदायित्वों के बारे में बताइए।
उत्तर- ग्राहकों के प्रति व्यवसाय के निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं-
(i) ग्राहकों को उचित किस्म का सामान सही मूल्य पर उपलब्ध कराना,
(ii) एकाधिकार, वस्तुओं की कमी, संयोजन आदि से ग्राहकों का शोषण न करना,
(iii) आवश्यक एवं सही जानकारी देना,
(iv) विक्रय के उपरान्त स्वस्थ सेवाएं उपलब्ध कराना,
(v) उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं, रुचियों एवं क्रय-शक्ति को ध्यान में रखकर वस्तुओं व सेवाओं का निर्माण

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